Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका द्वि.श्रु. अ. ७ गौतमस्य सदृष्टान्तो विशेषोपदेशः ७२५ चउपंचमाइं छट्दसमाई वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जेत्ता अगारं वएज्जा, हंता वएज्जा, तस्स णं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते ?, जो इणट्रे समटे, से जे से जीवे जस्स परेणं सव्वपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्त आरेणं सव्वपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्त इयाणि सव्वपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ, परेण असंजए आरेणं संजए, इयाणिं असंजए, असंजयस्त णं सत्वपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ, से एवमायाणह ?, णियंठा! से एवमायाणियव्वं । भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-आउसंतो! नियंठा इह खलु परिवाइया वा परिवाइयाओ वा अन्नयरोहितो तित्थायय. हितो आगम्म धम्मं सवणवत्तियं उवसंकमज्जा, हता उवसंकमज्जा, कि तेसिं तहप्पगारेणं धम्मे आइक्खियब्वे !, हंता आइक्खियत्वे, तं चेव उवटावित्तए जाव कप्पंति, हंता कप्पंति किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए । हंता कप्पंति, तेणं एयारवेणं विहारेणं विहरमाणा तं चेव जाव अगारं वएज्जा ? हंता वएज्जा, ते णं तहप्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए ! जो इणढे समटे से जे से जीवे परेणं नो कप्पंति संभुजित्तए, से जे से जीवे आरेणं कप्पंति संभुजित्तए, से जे से जीवे जे इयाणिं णो कप्पंति संभुजित्तए, परेणं अस्लमणे आरेणं समणे, इयाणिं अस्प्तमणे असमणेणं सद्धि णो कप्पति समणाणं निग्गंथाणं संभुजित्तए, से एवमायाणह, णियंठा, से एव. मायाणियव्वं ॥सू० ११॥७८॥
छाया-भगवांश्च खलु उदाह निग्रन्थाः खलु प्रष्टव्याः आयुष्मन्तो निर्गन्धाः इह खलु सन्त्येकतये मनुष्या भवन्ति, तेषां चैवमुक्तपूर्व भवति ये इमे मुण्डा
श्री सूत्रतांग सूत्र : ४
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