Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 750
________________ समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ७ गौतमस्य सदृष्टान्तो विशेषोपदेशः ७३९ 'ते णं तहप्पगारा कप्पंति संभु जित्तए' ते खलु तथामकाराः कल्प्यन्ते संभोज यितुम् ? परित्यक्तसाधुलिङ्गास्ते गृहस्थाः साधुभिः सह संभोक्तुं शक्नुवन्ति किम् ? 'णो इणहे समढे' नायमर्थः समर्थः, गृहस्थभावमापन्नाः साधुभिः सह मोक्तुं शक्ष्यन्ति ? नहीत्युत्तरम्, अथवा गृहस्थभावमागताः साध्व्यः साध्वीभिः सह भोक्तुं न शक्नुवन्ति, 'से जे से जीवे परेणं नो कप्पंति संभुजित्तए' ते ये-ते जीवा:-ये परतो नो कल्प्यन्ते संभोजयितुम् । ते एव जीवाः यैः सह साधनां संमोजने दीक्षातः पूर्व नाऽभवत्, ‘से जे से जीवे आरेणं कप्पति संभंजित्तए' ते ये-ते जीवाः आरास्कल्प्यन्ते संभोजयितुम्, दीक्षाधारणानन्तरं दीक्षितैस्सह साधूनां चिरकालपर्यन्तं संभोजनादिकं भवति । ‘से जे से जीवे जे इयाणि नो कप्पंति संभुंजित्तए' ते ये-ते जीवाः ये-इदानीं नो कल्प्यन्ते संभोजयितुम्, पूर्व साधुसमये संभोजनादियोग्याः ये जीवा स्ते एव-इदानी परित्यक्तसाधु. भावाः परिकल्पितगृहस्थभावाः संभोजनादियोग्या न भवन्ति । 'परेण अस्समणे आरेणं समणे इयाणि अस्समणे' परतोऽश्रमण: आरात् श्रमणः इदानीमश्रमणः । गौतम स्वामी--जब वे साधु का वेष त्याग दें और गृहस्थ हो जाएं तब साधुओं के साथ संभोग के योग्य होते हैं ? निर्ग्रन्थ--नहीं यह अर्थ समर्थ नहीं है, अर्थात् गृहस्थ हो जाने के पश्चात् वे संभोग के योग्य नहीं रहते। गौतम स्वामी-ये वही जीव हैं, जो दीक्षा लेने से पहले संभोग के योग्य नहीं थे। ये वही जीव हैं जो दीक्षा लेने के पश्चात् संभोग के योग्य थे और ये वही जीव हैं जो अब दीक्षा त्याग देने के पश्चात् संभोग के योग्य नहीं रहे हैं। ये वही हैं जो पहले श्रमण नहीं थे, फिर श्रमण हो गए थे और अब श्रमण नहीं रहे हैं। श्रमणों को ગૌતમસ્વામી– જ્યારે તેઓ સાધુના વેષને ત્યાગ કરી દે અને ગૃહસ્થ બની જાય, તે પછી સાધુઓની સાથે સંભોગ કરવાને યોગ્ય ગણાય છે? નિર્ગળ્યું–ના, આ અર્થ બરાબર નથી. અર્થાત્ ગૃહસ્થ થયા પછી તેઓ સંગને યોગ્ય રહેતા નથી. ગૌતમવામી–આ તેજ જીવ છે, જે દીક્ષા લીધા પહેલાં સંગને યોગ્ય ન હતું. આ એજ જીવ છે કે જે દીક્ષા લીધા પછી સંગને યોગ્ય હતા. અને આ એજ જીવ છે કે જે-હવે દીક્ષાને ત્યાગ કર્યા પછી સંભેગને યોગ્ય રહેલ નથી. આ એજ જીવ છે જે પહેલાં શ્રમણ ન હતો. તે પછી શ્રમણ બન્યું અને હવે પાછે શ્રમણ રહ્યો નથી. શ્રમણોને અશ્રમણોની સાથે श्री सूत्रतांग सूत्र : ४

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