Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 688
________________ समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ६ आईकमुनेर्गोशालकस्य संवादनि० ६७१ अन्वयार्थ:-(वय) वयं हस्तितापसाः (सेसाण जीवाणं दयट्ठयाए) शेषाणां जीवानां दयार्थाय-दयां कर्तुम् (संवच्छ रेणावि य) संवत्सरेणापि च वर्षमात्रेण (बाणेण) बाणेन (एगमेगं महागयं मारेउ) एकमेक महागजे मारयित्वाव्यापाद्य (वयं वासं वित्ति) वर्ष-वर्षपर्यन्तं वृत्तिमाजीविकाम् (पकप्पयामो) प्रकल्पयामः-कुम इति ॥५२॥ टीया-एक दण्डिनं व्युदस्याऽऽर्द्र को मुनिमहावीरस्वामिनम् अनुगन्तुं यदा. ऽचलत् तदा-हस्तितापसनामानो बहवः समेंत्योक्तवन्तः । हे आर्द्राक ! वयं शेषजीवानां रक्षणार्थ भक्षणार्थम् एकमेव महान्तमुन्नतं गजं मारयित्वा वर्षमेक जीवनयात्रां परिकल्पयामः । एकस्य हनने बहवो रक्षिता भवन्तीति-अल्पीयान मे दोषः । अन्येषां तु पुनः अनेकजीववधजनितं पापबाहुल्यं भवतीति मन्मतमेव त्वयाऽप्युपासनीयम्' अलमलं तत्र गमनेनेति, अर्थ दर्शयति 'वयं सेसाणं जीवाणं ___ अन्वयार्थ-हम हस्तितापस शेष जीवों की दया पालने के लिए एक वर्ष में एक स्थूलकाय हाथी को बाण से मार कर एक वर्ष तक उसी से जीवन निर्वाह करते हैं ॥५२॥ ___टीकार्थ-एकदण्डी को पराजित करके आर्द्रककुमार मुनि महावीर स्वामी के समीप जाने लगे तो बहुत से हस्तितापस आकर कहने लगे -हे आर्द्र क ! यदि हम शेष जीवों की रक्षा करने के लिए सिर्फ एक बड़ा और ऊंचा हाथी मारते हैं और उसी से एक वर्ष तक अपना उदरनिर्वाह करते हैं एक जीव का घात करने से बहुत से जीवों की रक्षा हो जाती है। अतः हम सब से कम हिंसा के भागी हैं। दूसरे लोग अपने स्वार्थ के लिए अनेक जीवों का वध करते हैं उन्हें बहुत पाप लगता है । अतएव तुम भी हमारा मत का स्वीकार करलो। महावीर के पास जाने से क्या लाभ? ટકાથએકદંડીને પરાજય કરીને આદ્રકકુમાર મુનિ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી પાસે જવા લાગ્યા તે ઘણુ હસ્તિતાપસે આવીને તેને કહેવા લાગ્યા કેહે આદ્રક ! અમે બાકિના છની રક્ષા કરવા માટે કેવળ એક મહાકાય હાથીને જ મારીયે છીએ. અને તેનાથી એક વર્ષ સુધી પોતાની આજીવિકા ચલાવીએ છીએ. એક જીવની હિંસા કરવાથી ઘણું જીવોની રક્ષા થઈ જાય છે. તેથી અમે સૌથી ઓછી હિંસા કરવાવાળા છીએ. બીજા લેકે પિતાના સ્વાર્થ માટે અનેક જીને વધ કરે છે તેઓને ઘણું મોટું પાપ લાગે છે. તેથી જ તમે પણ અમારે મત સ્વીકારી લે. મહાવીરસ્વામી પાસે જવાથી શું વિશેષ લાભ થવાને છે? શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪

Loading...

Page Navigation
1 ... 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795