Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६००
सूत्रकृताङ्गसत्रे ___ अन्वयार्थ:--आर्द्रको गोशालकं प्रत्याह-महावीरस्वामी (णो कामकिच्चा) नो कामकृत्यः-नो कामकृत्यं-निष्पयोजनं कार्य न करोति (ण य बालकिच्चा) न च बालकृत्या-न वा बालक वदविचारित कर्म करोति, न वा-(रायाभिओगेण) राजाभियोगेन-राज्ञ आज्ञयाऽपि न करोति (कुभो भएणं) कुतो भयेन-भयेन कथं वदेत् अर्थात् कस्मादपि भयान्न वदतीत्यर्थः किन्तु- सकामकिच्चेणिह आयरियाणं) स्वकामकृत्येनेहाऽऽचायणिाम्- स्वेच्छाकारितया स भगवान् इह जगति आर्याय तथा उपार्जित तीथकरनामकर्मणः क्षपणाय च धर्मोपदेशं करोति, (पसिणं 'ण य बालकिच्चा-न च बालकृत्यः' न बालक के समान विना विचारे ही कोई कार्य करते हैं। 'न वा रायाभिभोगेण-न वा राजाभियोगेन' वे राजा के भयसे भी धर्मका उपदेश नहीं करते हैं 'कुओ भएणं-भयेन कुतः' तो दूसरे के भय से तो उपदेश करेंगे ही कैसे ? 'सकामकिच्चे णिह आरियाणं-स्वकाम कृन्येनेहाऽर्याणां' भगवान् उपार्जित किये हुए तीर्थ कर नाम कर्मका क्षय करने के लिये आर्य जनों को उपदेश देते हैं, अथवा 'पसिणं वियागरेज्जा-प्रश्नं व्यागृणीयात्'-अथवा निरवद्य प्रश्नका उपदेश देते हैं, सावध प्रश्न का उत्तर नहीं देते हैं ॥गा०१७॥ __ अन्वयार्थ--मुनि आर्द्रक उत्तर देते हैं -भगवान महावीर न निष्प्र. योजन कोई कार्य करते हैं और न बालक के समान विना विचारे कोई कार्य करते हैं । वे राजा के भय से भी धर्म का उपदेश नहीं करते हैं तो दूसरे के भय से तो उपदेश करेंगे ही कैसे ? भगवान् उपार्जित ४२॥ नथी. 'ण वा रायाभिओगेण-न वा राजाभियोगेन' ते ना ७२था ५९ यमनपहेश ४२ता नथी. 'कुओ भएणं-भयेन कुतः' तो पछी मीनसाना ७२थी । पहेश ४२वानी बात ४ ४यां २ ? 'सकाम किच्चे णिह आरियाणं-स्वकामकृत्येनेहाऽर्याणाम्' मगवान् त ४२वामा मासा तीथ ४२ नाममना क्षय ४२१॥ माटे माय" ५३वाने उपहेश पाये छ. 'पसिणं वियागरेज्जा-प्रश्न व्यागृणीयात्' निरवध प्रश्नोनउत्तर पाये छ, सावध પ્રશ્નોને ઉત્તર આપતા નથી. ગા૦૧૭
અન્વયાર્થ–આદ્રકમુનિ ઉત્તર આપતા કહે છે કે–ભગવાન મહાવીર સ્વામી પ્રોજન વિના કે કાર્ય કરતા નથી. તેમજ બાલકની માફક વગર વિચાર્યું કંઈ જ કાર્ય કરતા નથી. તેઓ રાજાના ભયથી ધર્મનો ઉપદેશ કરતા નથી તે પછી બીજા કેઈને ભયથી તે ઉપદેશ કેમ કરે? ભગવાન ઉપ
श्री सूत्रतांग सूत्र : ४