Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसत्र
अन्वयार्थ:--(दुहओ वि) द्विधा अपि-द्वावपि आवां सांख्यजैनौ (धम्ममि) धर्मे (समुढिया समुत्थिती (तह) तथा (अस्ति) अस्मिन् धर्मे (मुट्ठिया) सुस्थितौ (तह एसकाले) तथा एयत्काले वर्तमानभूतभविष्यदात्मककालत्रयेऽपि (आयारसीले) आचारशील?-आचारयुक्त एव पुरुषः आवयोर्दशने (नाणी बुइए) ज्ञानी उक्ता-कथितः तथा (संपरायमि ण विसेसमस्थि) संपराये-परलोके विशेषो भेदो नास्ति ॥४६॥ ____टीका-आर्द्रकोऽग्रे गच्छति मार्गे पुनरपि एको दण्डी समागत्य आद्रकमुनि कथयति-भोः आर्द्रकमुने ! 'दुहओ वि' द्वावपि आवाम् 'धम्ममि' धर्मे 'समुट्टिया' एसकाले-तथा एष्यत्काले भूत वर्तमान काल में 'एवं-एवं' एवं भविष्य काल में 'आयारसीले-आचारशील' आचारशील पुरुष ही हम दोनों के दर्शन में 'नाणी बुहए ज्ञानी उक्तः' ज्ञानी कहा गया है तुम्हारे
और हमारे मत में 'संपरायमि-संपराये परलोक के संबंध में भी 'ण विसेसमत्थि-न विशेषोऽस्ति' विशेष भेद नहीं है ।।४६॥ ___अन्वयार्थ-हम दोनों (सांख्य और जैन) के धर्म में प्रवृत्त हैं तथा धर्म में सम्यक् प्रकार से स्थित हैं, भूत वर्तमान एवं भविष्यकाल में आवारशील पुरुष ही हम दोनों के दर्शन में ज्ञानी कहा गया है। तुम्हारे और हमारे मत में पर लोक के संबंध में भी विशेष भेद नहीं है ॥४६॥ ___टीकार्थ-पाई ककुमार जव ब्राह्मणों को पराजित करके आगे बढे तो मार्ग में एकदण्डी मिल गये। उन्होंने आकर मुनि से कहा-हे आक! तुम और हम दोनों धर्म में समान रूप से वर्तते भूत, वतमान भने भविष्य tiwi ‘आयारसोले- आचारशीलः' मायावान् ५३५ ४ मा५९। मन्नेना शनमा 'नाणी बुइए-ज्ञानी उक्तः' ज्ञानी वाय छ. तमा॥ भने समा२। मतमा 'संपरायम्मि-सपराये' परसोना समां ५ ‘ण विसेसमत्थि-न विशेषोऽस्ति' पयारे भतले नथी. ॥४॥
અન્વયાર્થ—આપણે બને એટલે કે સાંખ્ય અને જૈન ધર્મમાં પ્રવૃત્ત છિએ તથા ધર્મમાં સમ્યફ પ્રકારથી સ્થિત છિએ, ભૂતવર્તમાન તેમજ ભવિષ્યકાળમાં આચાર શીલ પુરૂષ જ અમારા બનેના દર્શનમાં જ્ઞાની કહેલ છે. તમારા અને અમારા મતમાં પરલેક સંબંધમાં પણ વિશેષ ભેદ નથી. ૪૬
ટીકાર્થ-આદ્રકકુમાર જ્યારે બ્રાહ્મણને પરાજય કરીને આગળ વધ્યા તે માર્ગમાં એક દંડી મળી ગયા. તેણે આવીને આદ્રક મુનિને કહ્યું કેઆક! તમે અને અમે બને ધર્મમાં સરખી રીતે વર્તવાવાળા છીએ. અને
श्री सूत्रतin सूत्र : ४