Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयाबोधिनी टीका द्वि.श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुने! शालकस्य संवादनि० ६१९ मूलम्-अहिंसयं सवपयाणुकंपि, धम्मठियं कम्मविवेगहेडं।
तमायदंडेहिं समायरंता अबोहिये ते पडिरूवमेयं ॥२५॥ छाया-अहिंसकं सर्वप्रजानुकम्पिनं, धर्मे स्थितं कर्मविवेकहेतुम् ।
तमात्मदण्डैः समाचरन्तः, अवोधेस्ते प्रतिरूपमेतत् ॥२५॥ __ अन्वयार्थः--(अहिंसयं) अहिंसकम् (मध्यपयाणुक पि) सर्वमजानुकम्पिनम् -सर्वजीवेषु दयाशीलम् (धम्मेट्ठियं) धर्म स्थितम् (कम्मविवेगहेउ) कर्मविवेकहेतुम् -कर्मनिराकारणम्, इत्थं भूतं तीर्थकरं देवम् (तमायदंडेहिं समायरंता) तमास्मदण्डैः समाचरन्ता-आत्मदण्डा भवन्तः ये पुरुषाः भवत्सदृशाः सन्ति ते भगवति वणिक्रतुल्यतां समाचरन्ति नाऽन्ये विद्वांसः, (ते) ते-तव (अवाहिए) अबोधे. रज्ञानस्य (पडिरूवमेय) प्रतिरूपमेतत् तुल्यमेवेति ॥२५॥
शब्दार्थ –'अहिंसयं-अहिंसकं' अहिंसक 'सव्वपयाणुकंपि-सर्व प्रजानुकम्पिन' प्राणी मात्र की अनुकंपा करनेवाले 'धम्मेठियं-धर्म स्थितम्' धर्म में स्थित 'कम्मविवेगहेउं-कर्मविवेकहेतुम्' निर्जरा के हेतु देवाधिदेव को 'आयदंडेहिं समायरंता-आत्मदण्डैः समाचरन्तः' आप अपनी आत्मा को दण्डित करने वाले व्यापारियों के समान कहते हैं यह 'ते-ते' आप का 'अबोहिए-अबोधेः' अज्ञान के पडिरूवमेव-प्रतिरूपमेव' अनुरूप ही है ॥गा २५॥ ___अन्वयार्थ-अहिंसक, प्राणी मात्र पर अनुकम्पा करने वाले, धर्म में स्थित, निर्जरा के हेतु देवाधिदेव को आप अपनी आत्मा को दण्डित करने वाले व्यापारियों के समान कहते हैं, यह आपके अज्ञान के अनुरूप ही है ॥२५॥
साथ-'अहिंसयं-अहिंसकं' मा 'सव्वपयःणुकंपि-सर्वप्रजानु कम्पिन' प्राणी भात्री अनु४२११! 'धम्मे ठियं-धर्मे स्थितं' धर्ममा स्थित, 'कम्मविवेगहेउ-कर्मविवेकहेतुम्' मिशन हेतु पापिहने 'आय. दंडेहिं समायरता-आत्मदण्डैः समाचरन्तः' पाताना मामाने पावणा वाशियानी भरोस२ ४३॥ छ।. 20 ४थन 'ते-ते' तमा२। 'अबोहिए-अबोधेः' भज्ञानना 'पडीरूवमेव-प्रतिरूपमेव' अनु३५ ४ छे. ॥२५॥
अन्वयाथ-मसि -प्राणी मात्र ५२ अनु: ५। ४२वावा, भास्थित નિર્જરાના હેતુ એવા દેવાધિદેવને આપ પોતાના આત્માને દંડિત કરવાવાળા વ્યાપારિની સાથે સરખાવો છે તે આપના અજ્ઞાન પણાને યોગ્ય જ છે. ૨પા
श्री सूत्रता
सूत्र : ४