Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्रे
___अन्वयार्थ:--आईकमुनिः कथयति-हे गोशालक! (लवावसकी) लवावष्व
की-घातिकर्मणो दूरवर्ती (समणे) श्रमण स्तपश्चरणशीलः भगवान् महावीरः साधनुद्दिश्य (पंचमहव्वए) पञ्चमहाव्रतान् प्राणातिपातविरमणादीन् (पंच अणुव्वए) पश्चानुव्रतान्-लघुमाणातिपातविरमणादीन् श्रावकोदेशेन (तहेव) तथैव (पंचासवसंवरे य) पश्चास्रवसंवरांश्च' पंश्चास्रवान् प्राणातिपातादीन कर्मणः प्रदेशद्वारभूतान संवरांश्च-सप्तदशपकारकसंयमांश्च (पुन्ने सामणियंमि) पूर्णे श्राणप्ये-संयमे सः (विरई) विरति-सावधकर्मणो निवृत्तिम्, च शब्दात् जीवाजीवपुण्यपापबन्धनिर्जरामोक्षाणं चोपदिशतीति (त्ति बेमि) इत्यहं ब्रवीमि-कथयामीति ॥६॥
टीका--आई कमुनिः कथयति-'लवावसकी समणे' लवावष्वष्की श्रमण:लवः-कर्म तस्माद्ववष्की-ब-दूरम् सपणशील इति लवावष्वष्की, श्राम्यतीतिव्रतों का तथा 'पंच अणुव्वए-पञ्च अणुव्रतान्' पांच अणुव्रत 'तहेवतथैव' तथा 'पंचासवे-पञ्चास्रका' पांच आस्रवों का 'संवरे य-संवरांश्च' सतरह प्रकारके संवरों का 'पुन्ने सामणियमि-पूर्णे श्रामण्ये' पूर्ण संयम में वर्तते हुए सावध कर्म की निवृत्ति का और पुण्य पाप बन्ध निर्जरा एवं मोक्ष का उपदेश करते हैं। 'त्तिवेमि-इति ब्रवीमि' ऐसा मैं कहता हूँ ॥६॥
अन्वयार्थ-आईक मुनि गोशालक से कह रहे हैं-हे गोशालक ! भगवान् महावीर घातिक कर्मों से दूर हो चुके हैं-हे तपश्चरणशील हैं वे पूर्ण श्रामण्य संयम में वर्तते हुए साधुओं के लिए प्राणातिपातविरमण आदि पांच महाव्रत्तों का, श्रावकों के लिए पांच अणुव्रतों का तथा पांच आस्रवों का, सत्तरह प्रकार के संयम का, विरति का अर्थात् सावद्य कर्मों की निवृत्ति का और पुण्य, पाप, बन्ध, निर्जरा एवं मोक्ष का उपदेश करते हैं। ऐसा मैं कहता हूँ॥६॥ तथा 'प'चअणुव्वए-पञ्च अणुवतान्' पांय माबत 'तहेव-तथैव' तथा 'पंचासवे फचासवः' ५iय मासवान संवरेय-संवरश्च' सत्त२ मारना सरीनु 'पुन्नेसामणियमि-पूणे श्रामण्ये' पू श्रीभएयभारहीन 'विरई-विरतिः' अर्थात् सावध કર્મની નિવૃત્તિનો અને પુણ્ય, પાપ, બન્ધ, નિર્જરા અને મોક્ષને ઉપદેશ मा छे. मे प्रमाणे दुई छ. ॥२॥१॥
અન્વયાર્થ–આદ્રકમુનિ શાલકને કહે છે કે–હે ગોશાલક ! ભગ વાન્ મહાવીર ઘાતિયા કર્મોથી દૂર થઈ ચૂક્યા છે. તપશ્ચરણ શીલ છે. તેઓ પૂર્ણ શ્રાપ્ય સંયમમાં વર્તતા થકા સાધુઓ માટે પ્રાણાતિપાત વિરમણ વિગેરે પાચ મહાવ્રતને અને શ્રાવકો માટે પાંચ અણુવ્રતને તથા પાંચ આને સત્તર પ્રકારના સંયમને વિરતિ અર્થાત્ સાવધ કર્મોની નિવૃત્તિને અને પુણ્ય, पा५ म नि मन मोक्षन। पहेश २ छे. सम हुई छु. ॥६॥
श्री सूत्रता सूत्र : ४