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अभिनव प्राकृत-व्याकरण इन व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त रामतर्कवागीश का 'प्राकृतकल्पतरु' शुभचन्द का शब्दचिन्तामणि, शेषकष्ण का प्राकत चन्द्रिका और अप्पय दीक्षित का 'प्राकृतमणिदीप' भी अच्छे ग्रन्थ हैं। ___आधुनिक प्राकत व्याकरणों में ए० सी० वुल्नर का 'इण्टोडक्शन टु प्राक्त' ( १९३६ सन् ), दिनेशचन्द्र सरकार का 'ए ग्रामर ऑव दि प्राकृत लैंग्वेज (१९४३ सन् ), ए० एन० घाटगे का 'एन इण्ट्रोडक्शन टु अर्धमागधी' ( १९४० सन् ), होएफर का 'डे प्राकृत डिआलेक्टो लिनि दुओ' ( बलिन १८३६ सन् ), लास्सन का 'इन्स्टीट्यूसीओनेस लिगुआए प्राकृतिकाए' (बौन ई० १८३९ ), कौवे का 'ए शौर्ट इण्ट्रोडक्शन टु द ऑर्डनरी प्राकृत ऑव द संस्कृत ड्रामाज विथ ए लिस्ट ऑव कॉमन् इरेगुलर प्राकृत वर्डस्' ( लन्दन ई० १८७५ ) हृषीकेश का 'ए प्राक्त ग्रामर विथ इंगलिश टान्सलेशन ( कलकत्ता ई० १८८३ ) रिचर्ड पिशल का 'प्राकृत भाषाओं का ध्याकरण' ( पटना ई० १९५८ ) पं० वेचरदास दोशी का 'प्राकृत व्याकरण' (अहमदाबाद ई० १९२५ ; डा. सरयूप्रसाद अग्रवाल का 'प्राकृत विमर्श' ( १९५३ ई० ) आदि उपयोगी ग्रन्थ हैं। इन्हीं प्राचीन और नवीन ग्रन्थों से सामग्री ग्रहण कर 'अभिनव प्राकृत व्याकरण' लिखा गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ
उपयुक्त व्याकरण ग्रन्थों के रहने पर भी सर्वाङ्गापूर्ण प्राकृत व्याकरण की आवश्यकता बनी हुई थी, ऐसा एक भी प्राकत व्याकरण नहीं, जिसका अध्ययन कर जिज्ञासु ध्याकरण सम्बन्धी समस्त अनुशासनों को अवगत कर सके। हां, दस-पांच ग्रन्थों को मिलाकर अध्ययन करने पर भले ही विषय की पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सके, पर एक ग्रन्थ के अध्ययन से यह संभव नहीं है। अतएव संस्कृत व्याकरण 'सिद्धान्त कौमुदी' की शैली के आधार पर प्रस्तुत व्याकरण ग्रन्थ लिखा गया है। इस ग्रन्थ में निम्न विशेष दृष्टिकोण उपलब्ध होंगे :
(१) सन्धि और समास के उदाहरणों में विभिन्न प्राकृत भाषाओं के पदों को रखा गया है। इनके अवलोकन से इस प्रकार की आशंका का होना स्वाभाविक है कि सामान्य प्राकृत से लेखक का क्या अभिप्राय है ? उदाहरणों में अनेकरूपता रहने से सन्धि और समास के नियम किस प्राकृत भाषा के हैं ? इस आशंका के निराकरण हेतु हमारा यही निवेदन है कि सन्धि और समास के नियम सभी प्राकृतों में समान हैं। जो नियम महाराष्ट्री प्राकृत में लागू होते हैं, वे ही अर्धमागधी या अन्य प्राकृत भाषाओं में भी। अत: सन्धिप्रकरण और समासप्रकरण में महाराष्ट्री, अर्धमागधी और शौरसेनी के उदाहरण मिलेंगे; यत: विभिन्न प्राकृतों के अनुशासन में ध्वनि और वर्णविकार सम्बन्धी अन्तर ही सबसे प्रधान है। कृत प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय सम्बन्धी