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चंद्रप्रभा हैमकौमुदी की रचना की और पू. उपाध्याय श्री विनयविजयजी म. ने 'हैमलघुप्रक्रिया' की रचना की थी।
गुजराती भाषा समझनेवाला भी धीरे-धीरे प्रयत्न कर संस्कृत भाषा सीख सके, इसी ध्येय को नजर समक्ष रखकर पाटण (गुज.) निवासी पंडितवर्य श्री शिवलालभाई ने हैम संस्कृत प्रवेशिका भाग 1-2 व 3 की रचना की थी।
मैंने अपनी मुमुक्षु अवस्था में प.पू. विद्वद्वर्य मुनिराजश्री धुरंधरविजयजी म.सा. एवं सौजन्यमूर्ति पू.मु.श्री वज्रसेन विजयजी म.सा. के पास सिद्धहैम संस्कृत प्रवेशिका भागI व II का अभ्यास किया था। फिर दीक्षा के बाद वि.सं. 2033-34 में पाटण स्थिरता दरम्यान पंडितजी शिवलालभाई के पास सिद्धहैम शब्दानुशासनम् - लघुवृत्ति का अभ्यास किया था।
हिन्दीभाषी प्रजा के हित को ध्यान में रखकर उन्हीं दो भागों का हिन्दी अनुवाद संपादन करने का मैंने यह प्रयास किया है। देव-गुरु की असीम कृपा के बल से तैयार हुए इन दो भागों का व्यवस्थित अभ्यास कर हिन्दी भाषी वर्ग भी संस्कृत भाषा को जाने-समझे और उसके फलस्वरूप पूर्वाचार्य विरचित महान् ग्रंथों का स्वाध्याय कर सभी अपना आत्मकल्याण साधे, इसी शुभ-कामना के साथ।
श्रावण पूर्णिमा, 2066 दि. 24-8-2010
ओसवाल भवन, रोहा (रायगढ़), महाराष्ट्र
भवोदधितारक
अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य
कृपाकांक्षी रत्नसेन विजय