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कील
परिवर्तन संस्कृत | प्राकृत | परिवर्तन संस्कृत | प्राकृत | ज-लुक् - राजीव | राईव भ=ह - सभा= | सहा जय - रजत= रयय य=लुक् - | वियोग= | विओग ट-ड - नट
नड प्रारंभ में य का ज होता हैठ=ढ - मठ= मढ
य=ज - । यम= | जम डल - क्रीडति=
| याति= | जाइ त लुक् - . पति
किसी स्थान में र का ल होता हैत=य - पात
पाय थ-ह - कथा= कहा
र=ल - दरिद्र= | दलिद्द द-लुक् - विदेश= | विएस व लुक् - | कवि= कई द-य - गदा= गया व=य - लावण्य= लायण्ण ध=ह - साधु= |साहु श) =स - शेष= सेस (लुक् अर्थात् लोप) ष
शब्द=
पइ
सद्द
सूचना
1. इस 'प्राकृत विज्ञान पाठमाला' में दिये हए धातुओं और शब्दों के रूप तथा
उनके नियम कलिकालसर्वज्ञ भगवान श्रीहेमचंद्राचार्य विरचित प्राकृत (सिद्धहेम व्याकरण के अष्टम अध्याय) व्याकरण के अनुसार हैं | नियम
के बाद जो नंबर लिखें हैं वे प्राकृत व्याकरण सूत्र के नंबर हैं । 2. संस्कृत में जैसे दस गण और उसमें परस्मैपदी-आत्मनेपदी और उभयपदी
धातुएँ तथा उनके अलग- अलग प्रत्यय आते हैं, वैसे प्राकृत में नहीं हैं । 3. प्राकृत में 1. वर्तमानकाल, 2. भूतकाल (ह्यस्तन-परोक्ष-अद्यतन भूत के
बदले), 3. आज्ञार्थ-विध्यर्थ और 4. भविष्यकाल (श्वस्तन भविष्य और सामान्य भविष्य के बदले ) तथा 5. क्रियातिपत्त्यर्थ इतने कालों का ही
प्रयोग होता है । 4. प्राकृत में द्विवचन की जगह बहुवचन का प्रयोग होता है । तब द्वित्व अर्थ
बताने के लिए बहुवचनान्त नाम के साथ विभक्त्यन्त -'द्वि' शब्द का प्रयोग होता है. उदा. दोणि पुरिसा गच्छन्ति = दो पुरुष जाते हैं |
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