Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 14
________________ आचार्यश्री तुलसी डा० सम्पूर्णानन्द सम्पास, राजस्थान मेरी अनुभूति मणुक्त-भान्दोलन के प्रवर्तक प्राचार्यश्री तुलसी राजनीतिक सत्र से बहुत दूर है। किसी दल या पार्टी से सम्बन्ध नही रसते । सिी वाद के प्रचारक नहीं है, परन्तु प्रसिद्धि प्राप्त करने के इन मद मार्गों से दूर रहते हुए भी वे इस पाल के उन व्यक्तियों में हैं, जिनका न्यूनाधिक प्रभाव साखों मनुष्यों के जीवन पर पर है। जैन धर्म के सम्प्रदाय-विशेष के मधिटाता है, इसीलिए प्राचार्य पहलाते हैं। अपने मनुपापियों को जन-धर्म के मूल सिसान्तों ा मध्यापन पराते ही होगे, धमणो को अपने सम्प्रदाय विशेष के नियमादि को शिक्षा-दीपा ले ही होंगे; परन्तु रिसी ने उनके या उनके अनुयापियों के मुंह से कोई ऐसी पाव नहीं सुनी जो दूमरों के चित्त को दुगने वाली हो। भारतवर्ष की यह विशेषता रही है कि यहाँ के पार्मिक पर्यावरण की पर्म पर मारपा रखी जा सरती है और उसका उपदेश प्रिया पा सरता है। पापायंधी तुमसी एक दिन मेरे निवासस्थान पर रह चुरे है । मैं उनके प्रवचन मुन पा है। अपने सम्प्रदाय भागारों पालन तो करने ही है. गाहे प. रिचित होने के कारण ये माचार दूगरोपी विविध से लगते हो और वर्तमान पार के लिए (ए मनुपयुक्त भी प्रतीत होते हों; परन्तु उनके पापण मोर . धातपोत मे ऐगी कोई बात नहीं मिलेगी पो र माम्बिोपगिकर लगे । भारत सरोरिक्सामार मापारा। जरासना मोनोt दाना मन्सपो पारपरना परवारस्य होते हुए भी हम परिव और सागरे मामने सिर भगत है। हमारा तोर दियाम-पत्र म पातमा नसोपा पधा तपा-शिम रिप्रदेश, विन रिमो

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