Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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का चरित "अब्दुल्लाह चरित काव्य में लक्ष्मीधर कवि ने उपस्थित किया है। इसमें मुगल कालीन संस्कृति का परिचय मिलता है । "भारत वर्णन" काव्य में गणपति शास्त्री ने देश का स्वरूप अङ्कित किया है । इसी प्रकार 20 वीं शती में कवि विजय राघवाचार्य ने गांधी माहात्म्य, तिलक वैदग्ध, नेहरु विजय नामक काव्यों के माध्यम से उपर्युक्त नेताओं की राष्ट्रभक्ति का मूल्याङ्कन किया है । जैन एवं बौद्ध कवियों ने भी अनेक ऐतिहासिक काव्यों का सृजन किया है । चम्पूकाव्य :
जिस काव्य में गद्य-पद्य का संयुक्त प्रयोग किया जाता है उसे "चम्पू काव्य" कहते हैं - "गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते।''
चम्पू काव्य परम्परा का प्रारम्भ वैदिक साहित्य से - (अथर्ववेद, ऐतरेय ब्राह्मण, कृष्ण यजुर्वेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों के उपाख्यानों में) होता है । महाभारत, विष्णु पुराण, भागवतपुराण बौद्ध जातक कथाओं में चम्पू शैली के दर्शन किये जा सकते हैं । तदनन्तर चतुर्थ शती के पश्चात् परवर्ती शिलालेखों जैसे हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति आदि में चम्पू पद्धति का अनुसरण किया गया है । परन्तु अब तक उपलब्ध साहित्य के आधार पर काव्य के सम्पूर्ण लक्षणों से समन्वित चम्पू पद्धति का प्रवर्तक (त्रिविक्रमभट्ट कृत) "नलचम्पू" ही माना गया है। इसमें गद्य और पद्य का समानं भावात्मक काव्यमय उत्कर्ष सर्वप्रथम दिखाई देता है । अतः हम 10 शती में लिखित "नलचम्पू' 30 को चम्पू शैली का प्रथम ग्रन्थ कह सकते हैं । इसमें नल और दमयन्ती के प्रणय की कथा 7 उच्छ्वासों में मिलती है, किन्तु ग्रन्थ अधूरा ही है । मदालसा चम्पू लेखक की दूसरी रचना है।
उसी युग में दिगम्बर जैन सोमदेव सूरि ने "यशस्तिलक चम्पू" आठ आश्वासों में निबद्ध किया है । जैन संस्कृति में प्रसिद्ध यशोधर इसके चरित नायक हैं । जैन धर्म के सिद्धान्तों अहिंसा आदि का प्रचार करना एवं पुनर्जन्म की रहस्यमयी प्रवत्तियों को समझाना कथानक का प्रमुख लक्ष्य है । यह ग्रन्थ कादम्बरी के आदर्शों पर निर्मित हुआ है । "यशस्तिलक चम्पू" के अन्तिम 3 आश्वासों में जैन धर्म के उपदेशात्मक सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ है । जैन मुनि जीवन्धर का जीवन चरित कवि हरिचंद्र के "जीवनधर चम्पू" में (ग्यारह लम्बकों में) अङ्कित हुआ है 2 यह ग्रन्थ गुणभद्र के उत्तरपुराण" पर आधारित है।
पुराण, कथा रामायणादि ग्रन्थो पर आश्रित विविध चम्पू काव्यों का सृजन हुआ है। धारा के प्रसिद्ध राजा भोज ने वाल्मीकि रामायण का आश्रय लेकर "रामायण चम्पू" या चम्पू रामायण, किष्किन्धा काण्ड तक लिखी, लक्ष्मण कवि ने "युद्धकाण्ड" और वेंकटराज ने "उत्तरकाण्ड" लिखकर ग्रन्थ की पूर्ति की है । वैदर्भीरीति में लिखित एवं आलङ्कारिक सौन्दर्य से समन्वित "रामायण चम्पू" उत्कृष्ट रचना है ।
अभिनव कालिदास ने 11वीं शताब्दी में 6 अध्यायों की परिधि के अन्तर्गत भागवत कथा अपने "भागवत चम्पू" के माध्यम से प्रस्तुत की है । इसी समय अनन्त भट्ट ने महाभारत की कथा (12 स्तबकों में विरचित) भारत चम्पू में प्राञ्जलता तथा सरसता के साथ उपस्थित की है । भारत चम्पू में कल्पना की नवीनता, कविप्रतिभा एवं वैदर्भी की छटा सर्वत्र परिलक्षित होती है। सोड्ढल की "उदयसुन्दरी कथा''भी गद्य-पद्यात्मक होने से चम्पू काव्यों में समाविष्ट है । इसके 8 उच्छ्वासों में नागराजकुमारी उदय सुन्दरी और राजा मलयवाहन के विवाह की हृदयस्पर्शी कथा निबद्ध है।