Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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- 8 नाटेशविजय, भूराहविजय, मुकुन्दविलास आदि महाकाव्य लिखे गये । अठारहवीं शती की कृतियों में प्रमुख रूप से घनश्याम कृत भगवत्पाद चरित, वेंकटेश चरित, रामपणिवाद द्वारा विरचित विष्णु विलास, (8 सर्गों) राघवीय काव्य (20 सर्ग) केरलवर्मा कृत विशाखराज, लक्ष्मण सूरिकृत "कृष्ण लीलामृत एवं परमेश्वर शिवद्विज कृत "श्रीरामवर्ममहराज चरित" (8सर्ग) उल्लेखनीय कृतियाँ हैं ।
19वीं शती में विधुशेखर भट्टाचार्य का उमापरिणय, हरिश्चन्द्र चरित, नारायण शास्त्री कृत सौन्दरविजय ( 24 सर्ग), बंगाल के हेमचन्द्र राय द्वारा विरचित सत्यभामापरिग्रह, हैहयराज, पाण्डव विजय, परशुराम चरित महाकाव्य कृतियाँ विशेष महत्त्व रखती हैं । 20वीं शती में रचित महाकाव्यों में प्राचीन एवं नवीन परम्पराओं का भाव और शैली की दृष्टि से समन्वय हुआ है । वटुकनाथ शर्मा का सीता स्वयंवर, शिवकुमार शास्त्री का "यतीन्द्रं जीवन चरित", नागराज कृत (1940 के पहले) सीता स्वयंवर (16 सर्गों में) के अतिरिक्त भगवदाचार्य ने (3 भागों में) "भारत पारिजात" के प्रथम भाग में (25 सर्गों में) महात्मा गांधी का चरित लिखा । दूसरे भाग "पारिजातापहार (29 सर्गों में) 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन तक की घटनाओं का सङ्कलन है और तीसरे भाग "पारिजात सौरभ" के 21 सर्गों में स्वतंत्र भारत का सजीव मूल्याङ्कन किया गया है। इसके पश्चात् उमापतिशर्माकृत "पारिजातहरण' 22 भी उत्कृष्ट महाकाव्य है । रामसनेही दास का 108 अध्यायों में विरचित जानकी चरितामृतम् राष्ट्रीय चेतना से परिपूर्ण महाकाव्य हैं । द्विजेन्द्रनाथ का 18 सर्गों में निबद्ध "स्वराज्यविजय" भारतीय जनजीवन और आजादी के संघर्ष का विवेचन करता है । इसके साथ ही अन्य अनेक महाकाव्य वर्तमान समय में लिखे जा रहे हैं काश्मीरी कवियों जैन तथा बौद्ध कवियों ने भी अपना अमूल्य योगदान करके महाकाव्य परम्परा को समुन्नत एवं पल्लवित किया है। ऐतिहासिक काव्य :
ऐतिहासिक काव्यों की दिशा में विशेष रुचि हमारे साहित्यकारों की प्रायः नहीं रही। काव्य के रूप में बुद्धचरित, प्रथम ऐतिहासिक काव्य है । बाणभट्ट का हर्षचरित ऐतिहासिक सामग्री युक्त (हर्ष के जीवन चरित पर आधारित) काव्य है । वाक्पतिराज महाराष्ट्री प्राकृत में गउडवहो (गौड़ बध) में कन्नौज के राजा यशोवर्मा की पराजय और उसके वध का वर्णन किया गया है । पद्यगुप्त परिमल ने 11वीं शती में अठारह सर्गों में निबद्ध "नवसाहसाङ्क चरित" लिखा । इसमें मालवा के राजा नवसाहसाङ्क द्वारा राजकुमारी शशिप्रभा को वरण करने का वर्णन किया गया है 4 इसी समय बिल्हण ने अपने आश्रय दाता विक्रमादित्य षष्ठ के जीवन चरित पर 18 सर्गों में "विक्रमाङ्कदेव चरित" महाकाव्य लिखा इनके पश्चात् संस्कृत साहित्य के प्राख्यात इतिहासकार कल्हण ने 8 तरङ्गों की "राजतरङ्गिणी" में काश्मीर के राजाओं का वर्णन किया है । इसमें 7826 पद्य हैं । कल्हण ने 12वीं शती में अपने आश्रयदाता सोमपाल के वृत्तान्त का संग्रह "सोमपाल विलास" नामक काव्य में किया है। कवि हेमचन्द्राचार्य ने "कुमारपाल चरित की रचना की । कवि जयानक का पृथ्वीराज विजय भी अन्यतम कृति है । इसमें पृथ्वीराज को राम का अवतार माना गया है । 13वीं शती में 13 सर्गों में निबद्ध "सुकृत सङ्कीर्तन' 7 अरिसिंह की रचना है । सर्वानन्द ने जैनगृहस्य जगडूशाह के परोपकार पूर्ण कार्यों का निदर्शन"जगदूचरित"काव्य के 7 सर्गों में प्रस्तुत किया है। मेरुतुङ्गाचार्य की "प्रबन्ध चिन्तामणि में जैन कवियों एवं जैन महापुरुषों की आत्म कथाएँ चित्रित हुई हैं । वामन भट्ट वाण कृत वेमभूपाल चरित उत्कृष्ट ऐतिहासिक काव्य है । अब्दुल्लाह मन्त्री