Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि आयारी सूयगडो. ठाणं . समवाओ SAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVA वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल For Private & Personal use only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निग्गंयं पावयणं अंगसुत्ताणि आयारो • सूयगडो • ठाणं • समवाओ वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि : विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस) पृष्ठांक। ११०० मूल्य : १५ मुद्रक :-- एस. नारायण एण्ड संस (प्रिटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI AYĀRO SŪYAGADO. THANAM • SAMAWAO. (Original text Critically edited) Vāćanā PRAMUKHA ACĂRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreecbaud Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kartic Kșishna 13 2500th Nirvaņa Day Pages 1100 Rs. 85 - Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj. Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुग्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्झाग - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स प्पणिहाणपुग्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स घारा, गणे समत्थे मम माणसे वि। जो हेउभूओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में। हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी वनाना चाहता है, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में बह संविभाग इस प्रकार है संपादक: सहयोगी : पाठ-संशोधन : मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुँचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में 'गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है। 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये? दोनों संस्थान एक दसरे के पूरक होंगे। सुझाव पर विचार हुआ। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से श्री गोपीचन्दजी चोपड़ा और में तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादलालजी आच्छा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दुगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया। 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया। सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढे। आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पर थामे और मुझ से बोले "जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे। प्रतिक्रमण के बाद का समय था। पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिखर पर कांच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे। मैं उनके सामने बैठा था। बचनबद्ध हआ कि यदि जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .܀ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी ( उटकमण्ड) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनू ( राजस्थान ) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को हाथ में लिया। कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० श्री के दर्शन प्राप्त हुए कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए । मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-- “ ऐसा हो प्रकाशन ईप्सित है ।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही- की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी २०१३ में लाइन में आचार्य दशर्वकालिक सूत्र के अपने १. आगम-मुल ग्रन्थमाला मूलपाठ, पाठान्तर शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम कथा ग्रन्थमाला आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत - आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में - (१) दसवेआलिय तह उत्तरभवणाणि (२) आयारो तह आधारचूला, (३) निसीभयणं, (४) उबवाइये और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो ( प्रथम श्रुतस्कन्ध ) का मुद्रण कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए । दूसरी ग्रन्थमाला में – (१) दसवेलियं एवं (२) उत्तरभयणाणि (भाग १ और (भाग २) प्रकाशित हुए समवायांग का मुद्रण कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ । पाँचवी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं: (१) दशकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रशप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन] वर्गीकृत ( धर्म-प्रज्ञप्ति ख २ ) । उक्त प्रकाशन- कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी का बहुत बड़ा अनुदान महासभा की रहा। अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्त्वों गूंज रहे हैं"धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार है, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया । आचार्यधी की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है । प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसुसाणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत्, स्थान, समवाय — ये प्रथम चार अंग हैं । दूसरे खण्ड में भगवती - पाँचवाँ अंग है । तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाकये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आदम सुत ग्रंथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा । केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवेकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है; जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) को समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजीहंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चुना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है । मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन अन विश्व-भार तो Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयारो सम्पादकीय आचारांग का जो पाठ हमने स्वीकार किया है, उसका आधार कोई एक आदर्श नहीं है । हमने पाठ का स्वीकार प्रयुक्त आदर्शी, चूर्ण और वृत्ति के संदर्भ में समीक्षापूर्वक किया है। 'आयारों' के प्रथम अध्ययन के दूसरे उद्देशक के तीन सूत्र ( २७ - २६) शेष पांच उद्देशकों में भी प्राप्त होते हैं । पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों तथा आचारांग वृत्ति में यह प्राप्त नहीं है । आचारांग चूर्णि में 'लज्जमाणा पुढो पास' (आयारो, ११४०) सूत्र से लेकर 'अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए' (आयारी, ११५३) तक ध्रुवकण्डिका ( एक समान पाठ) मानी गई हैं' । चूर्ण में प्राप्त संकेत के आधार पर हमने द्वितीय उद्देशक में प्राप्त तीन सूत्र ( २७ - २६ ) शेष पांचों उद्देशकों में स्वीकृत किए हैं। आठवें अध्ययन के दूसरे उद्देशक (सू० २१ ) की चूर्णि' में 'कुंभारायतणंसि वा' के स्थान पर अनेक शब्द उपलब्ध होते हैं, जैसे- 'उवट्टणगिहे वा, गामदेउलिए वा, कम्मगारसालाए वा, तंतुवायगसालाए वा, लोहगारसालाए वा ।' चूर्णिकार ने आगे लिखा है- 'जचियाओ साला सव्वाओ भाणियव्वाओ' ।' यहां प्रतीत होता है कि 'कुंभारायतणंसि वा' शब्द अन्य अनेक शाला या गृहवाची शब्दों से युक्त था, किन्तु लिपि-दोष के कारण कालक्रम से शेष शब्द छूट गए। चूर्णि के आधार पर पाठ-पद्धति का निश्चय करना संभव नहीं था इसलिए उसे मूलपाठ में स्वीकृत नहीं किया गया । हमने संक्षिप्त पाठ की पूर्ति भी की है। पाठ-संक्षेप की परम्परा श्रुत को कंठाग्र करने की पद्धति और लिपि की सुविधा के कारण प्रचलित हुई। पं० वेचरदास दोशी ने ८-१२-६६ को आचार्यश्री तुलसी के पास एक लेख भेजा था । उसमें इस विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने १. देखें-- आयारो, पृ० ७ पादटिप्पण ७ ० ६ पादटिप्पण ३०; पृ० १० पादटिप्पण १ पृ० १२ पादटिप्पण १ .०१४ पादटिप्पण ८ २. प्राचारांग चूर्णि, पृ० २६० २६१ । पृ० ११ पादटिप्पण ६; पृ० १३ पादटिप्पण ५; ० ९५ पादटिप्पण १; ३. वही, पृ० २६१ । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिखा है-'प्राचीन जैन-श्रमण लिखने-लिखाने की प्रवृत्ति को आरंभ-रूप समझते थे, फिर भी शास्त्रों की रक्षा के लिए उन्होंने लिखने-लिखाने के आरंभ-रूप मार्ग को भी अपवाद समझकर स्वीकार किया ! पर जितना कम लिखना पडे, उतना अच्छा, ऐसा समझकर उन्होंने शास्त्र की रक्षा के लिए ही, हो सके वहां तक कम आरंभ करना पड़े, ऐसा रास्ता शोधने का जरूर प्रयास किया। इस रास्ते की शोध से 'वण्णओं' और 'जाव' दो नए शब्द उनको मिले । इन दो शब्दों की सहायता से हजारों श्लोक व सैकडों वाक्य कम लिखने से उनका आरंभ कम हो गया और शास्त्र के आशय में भी किसी प्रकार की न्यूनता नहीं हुई।' श्रुत को कंठस्थ करने की पद्धति, लिपि की सुविधा और कम लिखने की मनोवृत्ति-पाठसक्षेप के ये तीनों कारण संभाव्य हैं । इनसे भले ही आशय की न्यूनता न हुई हो, किन्तु ग्रंथ-सौन्दर्य अवश्य न्यून हुआ है। पाठक की कठिनाइयां भी बढ़ी हैं। जिन मुनियों के समग्र आगम-साहित्य कण्ठस्थ था, वे 'जाव' या 'वण्णग' द्वारा संकेतित पाठ का अनुसंधान कर पूर्वापर की सम्बन्ध-योजना कर सकते हैं। किन्तु प्रतिलिपियों के आधार पर पढ़ने वाला मुनि-वर्ग ऐसा नहीं कर सकता। उसके लिए 'जाव' या 'वष्णग' द्वारा संकेतित पाठ बहुत लाभदायी सिद्ध नहीं हुआ है। इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। इसी कठिनाई तथा ग्रन्थ-सौंदर्य की दृष्टि से हमारे वाचना-प्रमुख आचार्यश्री तुलसी ने चाहा कि संक्षेपीकृत पाठ की पुनः पूर्ति की जाए। हमने अधिकांश स्थलों में संक्षिप्त पाठ की पूर्ति की है। उसकी सूचना के लिए बिन्दु-संकेत दिया गया है । आयारो तथा आयार-चूला के पूर्ति-स्थलों के निर्देश की सूचना प्रथम परिशिष्ट में दी गई है। पं० बेचरदास दोशी के अनुसार पाठ संक्षेपीकरण देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने किया था। उन्होंने लिखा है—'देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रंथ-बद्ध करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखीं। जहां-जहां शास्त्रों में समान पाठ आए वहां-वहां उनकी पुनरावत्ति न करते हए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया। जैसे----'जहा उवधाइए' 'जहा पण्णवणाए' इत्यादि। एक ही ग्रन्थ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः पुनः न लिखते हए 'जाव' शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया। जैसे--'णागकुमारा जाव विहरन्ति', 'तेण कालेणं जाव परिसा णिग्गया' इत्यादि। इस परम्परा का प्रारंभ भले ही देवद्धिगणि ने किया हो, किन्तु इसका विकास उनके उत्तरवर्ती काल में भी होता रहा है। वर्तमान में उपलब्ध आदशों में संक्षेपीकृत पाठ की एकरूपता नहीं है। एक आदर्श में कोई सूत्र संक्षिप्त है तो दूसरे में वह समग्र रूप से लिखित है । टीकाकारों ने स्थान-स्थान पर इसका उल्लेख भी किया है। उदाहरण के लिए औपपातिक सूत्र में "अयपायाणि वा जाव अण्णयराई वा" तथा 'अयबंधणाणि वा जाव अण्णयराई वा'--ये दो पाठांश मिलते हैं। वत्तिकार के सामने जो मुख्य आदर्श थे, उनमें ये दोनों संक्षिप्त रूप में थे, किन्तु दूसरे आदर्शों में ये १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ० ८१। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समग्र रूप में भी प्राप्त थे । वृत्तिकार ने इसका उल्लेख किया है। लिपिकर्ता अनेक स्थलों में अपनी सुविधानुसार पूर्वागत पाठ को दूसरी बार नहीं लिखते और उत्तरवर्ती आदर्शों में उनका . अनुसरण होता चला जाता । उदाहरण स्वरूप---रायपसेणइय सूत्र में 'सविढीय अकालपरिहीणा' (स्वीकृत पाठ-हीण) ऐसा पाठ मिलता है। इस पाठ में अपूर्णता-सूचक संकेत भी नहीं है। 'सव्विड्डीए' और 'अकालपरिहीणं' के मध्यवर्ती पाठ की पूर्ति करने पर समग्र पाठ इस प्रकार बनता है'सव्विड्डीए सव्वजुत्तीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सम्वविभूसाए सब्व विभूइए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फ वत्थ-गंध-मल्लालंकरण सम्वदिव्वतुडियसहसन्निवाएणं महया इड्ढीए महया जुइए महया बलेणं मह्या समुदएणं महया वरतुडियजमगसमयपदुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-मल्लरिखरमुहि-हुहुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुभि-निग्धोस-नाइयरवेणं णियग परिवाल सद्धि संपरिबुडा साइं-साई जागविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं ।' आयार-चूला ५११४ में ‘महद्धणमोल्लाई' तथा १५११६ में ‘महव्वए' के आगे भी अपूर्णता सूचक संकेत नहीं हैं। प्रमादवश कहीं-कहीं अपूर्णता सूचक 'जाव' का विपर्यय भी हुआ है, यथा--- फास्यं..""""""लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा । (आयारचूला १११०१) बहकंटगं...........""लाभे संते जाव णो........... ! (आयारचूला १११३४) समर्पण-सूत्र-- संक्षिप्त पद्धति के अनुसार आयार वूला में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैंजाव-अकिरियं जाब अभूतोवघाइयं (४.११) तहेव - अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य (७११६-२०) अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव (७।३४,३५) एवं—एवं णायव्वं जहा सद्दपडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रुवपडियाए वि (१२।२-१७) जहा---पाणाई जहा पिंडेसणाए (५५५) संख्या--थूणंसि वा (४) (७।११) असणं वा (४) (१११२) से भिक्खू वा २ १. औपपातिक वृत्ति, पन १७७ : पुस्तकान्तरे समग्रमिदं सूत्रद्वयमस्त्येदेति । २. देखे--पं० बेचरदास दोशी द्वारा संपादित 'रायपसेणइयं, पृष्ठ ७३ । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तं चेव-तं चेव भाणियब्वं वरं च उत्याए जाणतं (१११४६-१५४) सेसं तं चेव एवं ससरक्खे (१९६५) हेट्ठिमो--एवं हेट्ठिमो गमो पायादि भाणियन्वो (१३।४०-७५) आचारांग का वाचना-भेद समवायांग में आचारांग की अनेक वाचनाओं का उल्लेख मिलता है। वाचना का अर्थ है-अध्यापन या सूत्र और अर्थ का प्रदान | संक्षिप्त वाचना-भेद अनेक मिलते हैं, किन्तु वर्तमान में मुख्य दो वाचनाएं प्राप्त हैं- एक प्रस्तुत-वाचना और दूसरी नागार्जुनीय-वाचना। चूणि और टीका में नागार्जुनीय वाचना-सम्मत्त पाठों का उल्लेख किया गया है। देखें--'आयारों' पृष्ठ २० पादटिप्पण संख्यांक १०, पृष्ठ २१ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३० पाद टिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३१ पादटिप्पण संख्यांक ७, पृष्ठ ३५ पादटिप्पण संख्यांक ५, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ४० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५२ पादटिप्पण संख्यांक ६ और ८, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक ६, पृष्ठ ५५ पादटिप्पण संख्यांक ८, पृष्ठ ६६ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ७३ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ७५ पादटिप्पण संख्यांक ४ । आचारांग के उद्धृत पाठ-- उत्तरवर्ती अनेक ग्रंथों में आचारांग के पाठ उद्धृत किए गए हैं। अपराजितसूरि ने मूलाराधना की टीका में आचारांग के कुछ पाठ उद्धृत किए हैं। शोध करने पर ऐसा ज्ञात हआ है कि कई पाठ आचारांग में नहीं हैं, कई पाठ शब्द-भेद से और कई पाठ आंशिक रूप में मिलते हैं। तुलनात्मक अध्ययन की दष्टि से दोनों के पाठ नीचे दिए जा रहे हैं आचारांग मूलाराधना तथा चोक्तमाचाराङ्ग:सुदं मे आउस्सन्तो भगत्रदा एव मक्खादं । इह खलु संयमाभिमुखा दुविहा इत्थी पुरिसा जादा भवंति । तं जहा-सव्व समण्णा गदे णो सब्द समागदे चेव । तत्थ जे सव्व समपणागदे थिराग हत्थ पाणि पादे सव्विदिय समण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारि १. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० १३६ । २. मूलाराधना ४।४२१, टीका पन ६१२। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं परिहिउं एवं अण्णत्थ एगेण पडिलेहगेण । अह पुर्ण एवं जाणिज्जा — उपातिकते म गिम्हे सुपsaणे से अथ पडिजुण्णमुवधि पदिद्वावेज्ज ! - ४/४२१ टीका, पत्र ६११ पडिले हणं, पादपुंछणं उग्गहं कडासणं अण्णदरं उवधि परवेज्ज | - ४४२१ टीका, पत्र ६११ तथावत्येसणाए - वृत्तं तत्थ एसे हरिमणे सेगं वत्थं वा धारेज्ज पडिलेहणगं विदियं तत्थ एसे जुग्गिदे देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणगं तदियं तत्थ एसे परिसाई अणधिहासस्स तओ वत्थाणि धारेज्ज पडिलेहणं चउत्थं । - ४१४२१ टीका, पत्र ६११ तथा पाएसणाए कथितं - हिरिमणे वा जुग्गिदे चाविअण्णगे वा तस्स ण कप्पदि वत्थादिकं पुनश्चोक्तं तत्रैव - पादचरित्तए । आलावु पत्तं वा दारुण पत्तं वा मट्टिगपत्तं वा, अप्पाणं अप्पबीजं अप्पसरिदं तथा अप्पकारं पत्तलाभे सति पडिग्ग हिस्सामि । ४४२१ टीका, पत्र ६११ भावनायां चोक्तं- चरिमं चीवरधारी तेण परम चेलके तु जिणे । ४४२१ टीका, पत्र ६११ १७ अह पुण एवं जाणेज्जा--उवाइक्कत खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापरि-, जुन्नाई वत्थाइ परिवेज्जा । आयारी ५०, ६६, ७२ । वत्थं पडिग्गहं कंबल, पायपुंछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेव जाणेज्जा । आयारो २।११२ । जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयथे से एवं वत्थं धारेज्जा णो बितियं 1 से frag वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं एसित्तए । आयारचूला ५२ । तं जहा - अलाउपायं वा दारुपायं वा, मट्टिया पायं वा तहप्पगारं पाये ।-(आयारचूला ६।१) फासूवं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा । आयारचूला ६.२२ X X Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रति परिचय (अ.) आचारांग (दानों श्रु तस्कंध) यह प्रति जैन-भवन, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ की श्री श्रीचन्द जी रामपुरिया द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र १८५ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १-२७ तक पंकियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४०-४५ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर वत्ति लिखी हुई है। प्रति सुन्दर व कलात्मक है। संवत् आदि नहीं है। (क.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६७ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। पंक्तियां १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में ५०-५२ तक अक्षर हैं। प्रति के अंत में लिखा हैं---- संवत् १६७६ वर्षे आषाढ सुदि द्वितीय ४ भौम । श्री मालान्वये राक्याणगोत्रे सं० जटमल पुत्र सं० वेणीदास पुस्तक प्रदत्तं श्री मद्नागपुरीय तपागच्छ सं० श्रीमानकोतिसूरि शिष्य माधव ज्योतिविद् । अंत के अक्षर किसी अन्य व्यक्ति के मालूम होते हैं। प्रति के बीच में बावडी तथा तीन बड़े-बड़े लाल टीके हैं। (ख.) आचारांग टब्बा (प्रथम श्रुतस्कन्ध) यह प्रात गधैया पुस्तकालय से गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके ४६ पत्र हैं। पंक्तियां पाठ की ७ तथा टब्बे की १४ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक पाठ के अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है-- संवत् १७३२ वर्षे श्रावणमासे कृष्णपक्षे पंचमी तिथौ गुरु वासरे। लिखितं पूज्य ऋषिश्री ५ अमराजी तशिष्येण लिपिकृतं मुनिविकी आत्मार्थो शुभं भवतु कल्याणमस्तु । सेहुरीया ग्रामे संपूर्ण मस्ति ।। (ग.) आचारांग (प्रथमश्र तस्कन्ध) पंच पाठी (बालावबोध) यह प्रति गधया पुस्तकालय से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके १० पत्र हैं। प्रथम ३ तथा छठा पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। मूलपाठ को पंक्तियां ५ से १० तक हैं। अक्षर ३० से ३३ तक हैं। अन्तिम प्रशस्ति नहीं है। (घ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध (जीर्ण) यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसके ३७ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १३॥ इंच लम्बा, ५ इंच चौड़ा है। पक्तियां १७ तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है--.. शुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥छ।। संवत् १५७३ वर्षे १० मंगलवार समत्तं ।।छ।। छ।। श्री 1 छ।। प्रति के दीमक लगने से अनेक स्थानों पर छिद्र होगए हैं। (च.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध, यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई ज्ञान भंडार से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हई है। इसके ७५ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४७ तक अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। बीच में बावड़ी है। (छ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध, वृत्ति सहित (त्रिपाठी) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से मोठीजी द्वारा प्राप्त है । इसके २६० पत्र हैं । प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है मूलपाठ की पंक्तियां १ से १७ तथा ४५ से ४७ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैं संवत् १८६६ वर्षे श्रावणशुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथी श्रीविक्रमपुरमध्ये लिपिकृतं ।। श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । शुभं भूयादिति ॥ (ब.) आचारांग द्वितीय श्रु तस्कन्ध टब्बा (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ८४ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा १०३ इंच चौड़ा है। मूलपाठ की पंक्तियां ४ से १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में २५ से ३३ तक अक्षर हैं। बीच-बीच में बावड़ियां हैं। अन्तिम प्रशस्ति निम्तोक्त है-- संवत् १७५२ वर्षे भादपदमामे पंचम्यां तिथी ओरस गच्छे भट्टारक श्रीकक्चसूरि तत्पट्टे वर्तमान भट्टारकदेव गुप्तसूरिभिहीता नागोरी तपागच्छीय पं० श्री दयालदास पार्वान् पंचचत्वारिंशत् ४५ वर्षात्तरात महतोद्यमेन । (व), (वृपा) मुद्रित, प्रकाशिका~-श्रीसिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति विक्रम संवत् १६६१ । (च), (चूपा) मुद्रित-श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी, रतलाम, वि १६६८ । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूयगडो हमने सूत्रकृत का पाठ किसी एक आदर्श को मान्य कर स्वीकार नहीं किया है। उसका स्वीकार पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शो, चूणि तथा वृत्ति के पाठों के तुलनात्मक अध्ययन तथा समीक्षापूर्वक किया गया है। . प्राचीनकाल में लिखने की पद्धति बहुत कम थी। प्रायः सभी ग्रन्थ कंठस्थ परम्परा में सुरक्षित रहते थे । इसीलिए घोषशुद्धि (उच्चारणशुद्धि) को बहुत महत्व दिया जाता था ! शिष्यों की घोषशुद्धि करना आचार्य का एक कर्तव्य था। दशाश्र तस्कन्ध सूत्र में लिखा है'--'घोषशुद्धि कारक होना आचार्य की एक संपदा है।' पाठ और अर्थ के मौलिक रूप की सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था थी। छेदसूत्रों से उसकी पूर्ण जानकारी मिलती है। ज्ञानाचार के आठ प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें तीन आचारों का उक्त व्यवस्था से सम्बन्ध है । वे ये हैं १. व्यंजन--सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु और शब्दों को यथावत् बनाए रखना। २. अर्थ---सूत्र के आशय को यथावत् बनाए रखना । ३. व्यंजन-अर्थ-~-सूत्र और अर्थ---दोनों को मौलिक रूप में सुरक्षित रखना। चूर्णिकार ने उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है:--'धम्मो मंगलमूक्किटठं'---यह प्राकृत भाषा है। इसका 'धर्मो मंगलमुत्कृष्टम्' इस प्रकार संस्कृत में पाठ करना भाषागत व्यंजनातिचार हैं। 'सव्वं सावज जोगं पच्चक्खामि'-इसकी मात्रा बदलकर जैसे---सवे सावज्जे जोगे पच्चक्खामि', उच्चारण करना मात्रागत व्यंजनातिचार है। 'णमो अरहंतागं' का 'णमो अरहताण' इस प्रकार प्राप्त बिन्दु को छोड़कर उच्चारण करना, णमो अरहताणं' इस प्रकार 'र' के साथ अप्राप्त बिन्दु का उच्चारण करना---यह बिन्दुगत व्यंजनातिचार है। १. दशाश्रुतस्कन्ध, दशा ४। २. निशीथभाष्य, गाथा ८, भाग-१, पु०६: काले विणये बहुमाने, उवधाने सहा अणिण्हवणे । वंजण अत्थतदुभए, अट्ठविधो णाणमायारो॥ ३. वही, गाथा १७, भाग १, पृ. १२ । सक्कयमत्ताबिंदू, अण्णाभिधाणेण वा वितं प्रत्यं । बजेति जेण प्रत्यं, वंजणमिति भण्णते सुत्तं ॥ ४, निशीथभाष्य चूणि, भाग १, पृ० १२ । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'धम्मो मंगल मुक्किदळं, अहिंसा संजमो तवो।' इनके मौलिक शब्दों को हटाकर वहां उनके पर्यायवाची शब्दों की योजना करना, जैसे--पुण्णं कल्लाणमुक्कोस, दयासंवरणिज्जरा । यह अन्याभिधान नामक व्यंजनातिचार है। सूत्र के अक्षर-पदों का हीन या अतिरिक्त उच्चारण करना अथवा उनका अन्यथा उच्चारण करना भी व्यंजनातिचार है। इस सारे विवरण का निष्कर्ष यह है कि सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु, शब्द, शब्द. संख्या और पाठ्य-क्रम मौलिकता सुरक्षित रहनी चाहिए। इस व्यवस्था के अतिक्रमण के लिए प्रायश्चित्त की व्यवस्था की गई । भाषा, मात्रा, बिन्दु आदि का परिवर्तन करने पर लघूमासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है । सूत्रपाठ को अन्यथा करने पर लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। चूर्णिकार ने विषय के उपसंहार में लिखा है--सूत्रभेद पे अर्थ भेद, अर्थभेद से चरणभेद, चरणभेद से मोक्ष असंभव हो जाता है। वैसा होने पर दीक्षा आदि कर्म प्रयोजन-शून्य हो जाते है। इसलिए व्यंजन-भेद नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अर्थभेद भी नहीं करना चाहिए। जो अर्थ अनुक्त और अघटित हो, वह नहीं करना चाहिए। अर्थ का परिवर्तन करने पर गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है। सूत्र और अर्थ दोनों का एक साथ परिवर्तन करने पर पूर्वोक्त दोनों प्रायश्चित्त प्राप्त होते हैं। सुत्र और अर्थ के मौलिक स्वरूप के सुरक्षित रखने की दिशा में आगमों के रचना-काल में चिन्तन प्रारंभ हो गया था। प्रस्तुत सूत्र में इसका स्पष्ट निर्देश है। ग्रन्थाध्ययन में मनि को सावधान किया गया है कि वह सूत्र और अर्थ की अन्यरूप में योजना न करे । अथवा १. निशीथभाष्य, गायः १८, चूणि भाग १, १०१२। २. निशीथभाष्य, गाथा १८, चूणि भाग १, पृ० १२ : सुत्तभेया अत्थभेओ । प्रत्यभेया चरणभेो । चरणभेया अमोक्खो मोक्खाभावा दिक्खादयो किरियाभेदा अफला भवन्ति । तम्हा बंजणभेदो ण कायन्यो। ३. निशीथभाष्य चूर्णि, भाग १, पृ० १३ ॥ ४. वही; Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ उसका अन्यथा प्रतिपादन न करे। इसकी व्याख्या में चूर्णिकार ने लिखा है--सूत्र को सर्वथा ही अन्यथा न करे। अर्थ वही करे जो स्वसिद्धान्त से अविरुद्ध है। वृत्तिकार ने लिखा है'---सूत्र में स्वमति से न जोड़े अथवा सूत्र और अर्थ को अन्यथा न करे । उक्त विवरण से ज्ञात होता है कि सूत्र अर्थ के मौलिक स्वरूप की सुरक्षा का तीव्र प्रयत्न किया गया था । फलत: एक सीमा तक उसकी सुरक्षा भी हुई है। फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि उसमें परिवर्तन नहीं हुआ है । वह उसके कारण भी प्राप्त हैं। जैसे१. विस्मृति, २. लिपिपरिवर्तन, ३. व्याख्या का मूल में प्रवेश, ४. देश-काल का व्यवधान । ___ शीलांकसरि सूत्रकृतांग की वृत्ति लिख रहे थे तब उनके सामने उसके आदर्श और प्राचीन टीका--दोनों विद्यमान थे । दुसरे शु तस्कन्ध के दूसरे अध्ययन के एक स्थल में आदर्शों में एक जैसा पाठ नहीं था और टीका में जो पाठ व्याख्यात था उसका संवादी पाठ किसी भी आदर्श में नहीं था। इसलिए उन्होंने एक आदर्श को मान्य कर चचित अंश की व्याख्या की। कुछ स्थानों पर हमने चणि के पाठ स्वीकृत किए हैं। आदशों और वृत्ति की अपेक्षा से वे अधिक संगत प्रतीत होते हैं। २१६४५ में 'णिहो णिसं' पाठ है । वह वृत्ति में 'णिवो णिसं' इस प्रकार व्याख्यात है। वहां हमने चूणि का पाठ स्वीकृत किया है। पादटिप्पणों में हमने पाठ-परिवर्तन व उनके कारणों की चर्चा की है। वैदिक परम्परा में भी वेदों के मौलिक पाठ की सुरक्षा के लिए तीव्र प्रयत्न किए थे। किन्तु उनके पाठों में भी कालजनित अतिक्रमण हुए हैं। डा० विश्वबन्धु ने लिखा है:--"यह सर्वमान्य तथ्य है १. सूमयडो, ११४१२६ : जो सुत्तमत्थं च करेज्ज अण्णं । २. सूवकृतांगचूणि, पृ० २९६ : न सूत्रमन्यत् प्रद्वेषण करोत्यन्यथा वा, जहा रपणो भत्तसिणो उज्ज्वलप्रश्नो नामार्थः तमपि नाम्यथा कुर्यात, जहा 'आयंती के प्रावती-एके यावती तं लोगो विपरामसंति' सूत्रं सर्वथैवाभ्यथा न कर्त्तव्यं, अर्थविकल्पस्तु स्वसिद्धान्ताविरुद्धो अविरुद्धः स्यात् । ३. सूवकृतांगवृत्ति, पत्न २५८ : न च सूत्रमन्यत् स्वमतिविकल्पनतः स्वपरनायी कुर्वीतान्यथा वा सूत्रं तदर्थ वा संसारात्वायीत्राणशीलो जन्तूनां न विदधीत । ४. वही, पन्न ७६। इह च प्रायः सूत्रादर्श नानाभिधानि सूत्राणि दृश्यन्ते, न च टीकासंवायेकोप्यस्माभिरादर्शः समुपलब्धोऽत एकमादर्शमंगीकृत्यास्माभिविवरण क्रियते । ५. देखें-२१४५ का पादटिप्पण। ६. अखिल भारतीय प्राच्य-विद्या-सम्मेलन, चौबीसवाँ अधिवेशन, वाराणसी १९६८, मुख्याध्यक्षीय भाषण, पृष्ठ । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ कि लगभग ५ हजार वर्षों से इस देश में वैदिक ग्रन्थों के प्राचीन पाठों को उनके मौलिक शुद्धरूप में सुरक्षित रखने के लिए उन्हें परम सावधानी और उत्कृष्ट श्रद्धा के साथ कण्ठस्थ करने का इतना घोर प्रयत्न होता रहा है कि जिसका किसी भी दूसरे देश के साहित्यिक इतिहास में उदाहरण नहीं है । किन्तु ऐसा होने पर भी, जैसा कि इस वैदिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कार्य करने वाले हमारे पूर्ववर्ती विद्वानों को देखने में संयोगवश कुछ-कुछ और गत चालीस वर्षों के सतत शोध कार्य के मध्य में हमारे देखने में, विस्तृत रूप में आया है कि ये ग्रन्थ भी कालकृत विध्वंस और मानवकृत संक्रमण की अपूर्णता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । यदि ऐसा बहुधा होता तो सचमुच यह एक अविश्वसनीय चमत्कार ही होता ।" कण्ठस्थ परंपरा से चलने वाले तथा प्रलंब अवधि में लिपि परिवर्तन के 'युग में संक्रमण करने वाले प्रत्येक ग्रन्थ के कुछ स्थल मौलिकता से इतस्ततः हुए हैं। प्रतिपरिचय (क) सूत्रकृतांग मूलपाठ यह प्रति 'घेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसकी पत्र संख्या ६४ व पृष्ठ संख्या १८८ है । प्रत्येक पत्र मे ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३७ तक अक्षर है । प्रति की लम्बाई ११ ॥ इंच व चौड़ाई ४ इंच है । प्रति शुद्ध व बड़े अक्षरों में स्पष्ट लिखी हुई है। यह प्रति संवत् १५८१ में लिखी हुई है । इसके अन्त में निम्न प्रशस्ति है !-- संवत् १५८१ वर्षे पत्तन नगरे श्री खरतरगच्छे श्री जिनवर्द्धनसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि । श्री जिनसागरसूरि । श्री जिनसुन्दरसूरि पट्ट पूर्वाचल सहस्रकरावतार श्री जिनहर्ष सूरिपट्टे श्री जिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन ऊकेशवंशे साधुशाखायां । सो० जीवाभार्या श्रावारुपुत्ररत्न सो० महिवाल सो० गांगाख्यो सा० तंत्र सो गांगा भार्या श्रा० धीरुपुत्र सो० पदमसी सो० हरिचंद विद्यमानपुत्र सो० शिवचन्द सो० देवचंद्राभ्या श्री एकादशांगी सूत्राणि अलेखिषत तत्रेदं श्री सूत्रकृतांगसूत्रं । सम्पूर्णः ॥ श्री रस्तु || (ख) सूत्रकृतांग बालावबोध प्रथमश्रुतस्कन्ध ( त्रिपाठी) यह प्रति 'गधेया पुस्तकालय' सरदाशहर की है। मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है । इसके पत्र ४३ व पृष्ठ ८६ हैं । प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ५-६ करीब हैं व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ६०-६२ करीब हैं। प्रति की लम्बाई १०३ इंच व चोड़ाई ४३ इंच है। अनुमानतः यह प्रति १७वीं शताब्दि की लगती है । प्रति के अन्त में प्रशस्ति नहीं है । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ (ग) सूत्रकृतांग द्वितीय बालावबोध (त्रिपाठी) यह प्रति 'वेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसके पत्र ६५ व पृष्ठ १३० है । मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ४ से १२ तक हैं व प्रत्येक में ४५ से ५० तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इंच व चौड़ाई ४३ इच करीब है । प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है- मूलपाठ प्रशस्ति--सूयगडस्स बीयं खंधो सम्मत्ते । श्री सुगडांग द्वितीय श्रुतस्कन्धः सूत्र संपूर्ण समाप्तः ॥ सुभं भवतु, कल्याणमस्तु । श्री रस्तुः ॥ ब ॥ ब | पंड्या भवान सूत मेघज्जी लक्षतं || बालावबोध प्रशस्ति---सूत्रकृतं आदितः सर्वमध्ययनं | २३ | श्री सारतशिष्येण पाशचन्द्रेण वृत्तित: वालावबोधार्थं द्वितीयांगस्यवात्तिकं सम्पूर्णः ॥ ब ॥ सुभ भवतुः । कल्याणमस्तुः श्रीरस्तु ॥ संवत् ॥ १६६३ वर्षे फागुणवदि बुधे प्रति सुगडांगनी पूरी कीधी प्रति ठीक है । ८ (क्व) सूत्रकृतांग बालावबोध पंचपाठी यह प्रति गधेया पुस्तकालय सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ६८ व पष्ठ १३६ । पाठ की पंक्तियां एक से १३ तक व प्रत्येक पंक्ति में ३४ से ३७ करीब अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इंच व चौड़ाई ४३ इंच करीब है। संवत् व प्रशस्ति नहीं है। आनुमानिक सं० १७वीं शदी । (क्व) सूत्रकृतांग (मूलपाठ) निर्युक्ति सहित यह प्रति 'गधेया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ४२ व पृष्ठ संख्या ८४ है । प्रत्येक पत्र में १६ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ६३ तक अक्षर हैं । प्रति की लम्बाई १३ इंच व चौड़ाई ४ इंच है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति हैसूयगडस्स निज्जुत्ती सम्मता । पद्मोपमं पत्रपरं परान्वितं वर्णोज्जलसूक्तमरदं सुन्दरं मुमुक्षुभृंगप्रकरस्यवल्लभं जीयाच्चिरं सुत्रकृदंग पुस्तकें ॥ संवत १५१२ वर्षे आसोज वदि दीपा || ऊसगच्छे भट्टारक श्रीकक्कसूरीणां ॥ विक्रमपुरे ॥ (वृ) सूत्रकृतांग वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति 'गधेया पुस्तकालय' सरदारशहर की है। इसके पत्र ६० व पृष्ठ १८० हैं । प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६७ के करीब अक्षर है। इसकी लम्बाई १० इंच व चौड़ाई ४ ॥ इंच है। प्रति सुन्दर व सूक्ष्म अक्षरों में लिखी हुई है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है शुभं भवतु संवत् १५२५ वर्षे श्री यवनपुर नगरे । श्रीखरतरगच्छे। श्रीजिनभद्रसूरियट्टालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये । श्री कमल संयमे । महोपाध्यायैः स्ववाचनार्थ ग्रंथोय लेखितः Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रीः॥ ब ॥श्रीः॥ श्री पदुमकी[पाठकेभ्यः पं० महिमसारगणिना प्रतिरियं प्रदत्ता स्वपुण्यार्थं ॥ (व०) सूत्रकृतांग वृत्ति मुद्रित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन देरासर पेढी। (चू०) सूत्रकृतांग चूणि मुद्रित श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्वर संस्था रतलाम । ठाणं प्राकृत में एक शब्द के अनेक रूप बनते हैं। आगमों में वे अनेक रूप प्रयुक्त भी हैं। आगम का संपादन करने वाले कुछ विद्वानों का यह आग्रह रहा है कि पाठ-संपादन में विभिन्न रूपों में एकरूपता लानी चाहिए। हमने पाठ-संपादन की इस पद्धति को मान्य नहीं किया है। यद्यपि प्रस्तुत सूत्र में 'नकार' और 'णकार' की एकता स्वीकार कर सर्वत्र ‘णकार' का ही प्रयोग किया है; पर रूप-भेदों में एकता लाने के सिद्धान्त का सर्वत्र उपयोग नहीं किया है। ३१३७३ में 'सुगती' और 'सुरगती'-ये दो रूप मिलते हैं। ३१३७५ में 'सोगता', 'सुगता' और 'सुग्गता-ये तीन रूप मिलते हैं। हमने उन्हें यथावत् रखा है। ग्रंथकार प्रयोग करने में स्वतन्त्र हैं। वे एकरूपता के नियम से बंधे हुए नहीं हैं, फिर संपादन कार्य में एकरूपता का प्रयत्न अपेक्षित नहीं लगता। आगमों में अनेक भाषाओं और वर्णादेशों के विविध प्रयोग मिलते हैं। उनमें एकरूपता लाने पर विविधता की विस्मृति की संभावना हो सकती है। 'वाएणं', 'कायसा'-ये दोनों रूप प्रयुक्त होते हैं। 'अंडजा' के 'अंडया' और 'अंडगा' तथा 'कर्मभूमिजा' के 'कम्मभूमिया' और 'कम्मभूमिगा'ये दोनों रूप बनते हैं। जिस स्थल में जो रूप प्राप्त हो उस स्थल में उसे रखना संपादन की त्रुटि नहीं है। प्रति परिचय (क) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित) गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र ७४ तथा पृष्ठ १४८ हैं। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां, प्रत्येक पंक्ति में ६० के करीब अक्षर हैं। यह प्रति १०॥ इंच लम्बी ४॥ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध है । लिपि संवत् १५६५ । प्रशस्ति में लिखा है शुभं भवतु ॥छ।। श्री खरतरगच्छे श्री सागरचन्द्राचार्यान्वये वा० दयासागरगणिभिः स्वशिष्य वा० ज्ञानमन्दिरगणिवाचनार्थं ग्रंथोऽयं लेखयांचक्र ।। संवत् १५६५ वर्षे जिनश्रीवर्धमानसंवत् २०३५ वर्षे चैत्रप्रयमाष्टम्यां श्री वोहिथिरागोत्रे मंत्रीश्वरवच्छराज नंदन प्रधान शिरोमणि मं० वरसिंहगेहिन्या मंत्रिणी वीऊलदेवी श्री विकया पुत्र मं० मेघराज मं० भोजराज मं० नगराज मं० हरिराज मं० अमरसिंह म० डूंगरसिंह पुत्रिका वीराई Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभृति पौत्रादि परिवारपरिवृतया मृपुण्यार्थं श्री ज्ञानभक्तिनिमित्तं श्री स्थानांग सूत्रवृत्तिसहितं लेखयित्वा बिहारितं श्रीखरतरगच्छे वृहतिथीवीकानयरे श्रीजिनहससूरि विजयिराज्ये वा० महिम राजगणीद्राणां शिष्य वा० दयासागगणीवराणां शिष्य वा. ज्ञानमन्दिरगणिदेवतिलकादिपरिवृतानां वाच्यमानं चिरं नंदतु । शुभं वोभोतु श्री चतुर्विध श्री संघाय ॥छ।। श्री रस्तु । (ख) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित) घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़ से प्राप्त । इसके पत्र १०८ और पृष्ठ २१६ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां । प्रत्येक पंक्ति में ४५ करीव अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध तथा स्पष्ट है । लिपि संवत् १६८५ है । गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त (वृत्ति की प्रति)। इसके पत्र २८३ और पृष्ठ ५६६ हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच है तथा चौड़ाई ४६ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५८ से ६० तक अक्षर हैं। (घ) ठाणांग (मूलपाठ) यह प्रति लालभाई भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद) की है। इसके पत्र ६६ तथा पृष्ठ १३२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। पत्रों के दोनों ओर कलात्मक वापिका है। अन्त में लिखा है--- संवत् १५१७ वर्षे ठाणांग सूत्रं लेखयित्वा तेषामेव गुरुणामुपकारिता। साधुजनैर्वा चिरं नंदतात् ॥छ। 1100 समवाओ प्रस्तुत सूत्र का पाठ-संशोधन तीन आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। कूल स्थलों में पाठ-संशोधन के लिए अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३४) में प्रयुक्त आदर्शों में 'अस्ससेणे' पाठ नहीं है। यह चतुर्थ चक्रवर्ती के पिता का नाम है। इसके बिना अगले नामों की व्यवस्था विसंगत हो जाती है। उल्लिखित सूत्र की संग्रह गाथाओं में पद्मोत्तर नाम अतिरिक्त है। इसे पाठान्तर रूप में स्वीकार किया गया है। आवश्यक नियुक्ति (३९६) में 'अस्ससेणे पाठ उपलब्ध है। उसके आधार पर 'अस्ससेणे' मूल-पाठ के रूप में स्वीकृत किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३०) की संग्रह गाथा में बलदेव वासुदेव के पिता के नाम है। उक्त गाथा में स्थानांग (९।१६) तथा आवश्यक नियुक्ति (४११)के आधार पर संशोधन Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया गया है। तीसरे बलदेव-वासूदेव के पिता का नाम रुह है, किन्तु समवायांग की हस्तलिखित वत्ति में 'रुट' के स्थान में 'सोम' है । वस्तुतः 'सोम' के बाद रुट्ट' होता चाहिए। समवाय ३० (सूत्र १, गाथा २६) में सभी सभी आदर्शों में 'सज्झायवायं' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने भी उसकी स्वाध्यायवादं-- इस रूप में व्याख्या की है । अर्थ की दृष्टि से यह संगत नहीं है । दशाश्र तस्कन्ध (सूत्र २६) में उक्त गाथा उपलब्ध है। उसमें 'सज्झायवाय' के स्थान पर 'सब्भाववायं' पाठ है। दशा तस्कन्ध के वत्तिकार ने इसका संस्कृत रूप 'सद्भाववाद' किया है । अर्थ-मीमांसा करने पर यह पाठ संगत प्रतीत होता है। प्राचीन लिपि में संयुक्त 'झकार' और संयुक्त 'भकार' एक जैसे लिखे जाते थे। इस प्रकार के लिपिहेतुक पाठ-परिवर्तन अनेक स्थानों में प्राप्त होते हैं। प्रति परिचय (क) समवायांग मूलपाठ यह प्रति जैसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मदनचन्दजी गोठी, सरदारशहर द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६४ तथा पृष्ठ १२८ हैं किन्तु २४ वां पत्र नहीं है। प्रत्येक पृष्ठ में ४ या ५ पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ११० अक्षर हैं। लिपि सं० १४०१ । (ख) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों ओर वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १०६ तथा पृष्ठ २१२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में पंक्तियां तथा प्रत्येक पक्ति में ३०,३२ अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। इसके अन्त में संवत् दिया हुआ नहीं है। किन्तु पत्रों की जीर्णता व लिपि के आधार पर यह पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी के लगभग की है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है-- ॥छ।। समवाउ चउत्थमंग 11छ। अंकतोपि ग्रंथान १६६७ ॥छ।। (ग) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों तरफ वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र ८१ तथा पृष्ठ १६२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में ५ से १२ पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४७ तक अक्षर हैं । यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४ इंच चौड़ी है । लिपि संवत् १३४५ लिखा है; पर संवत् की लिखावट से कुछ संदिग्ध सा लगता है। फिर भी प्राचीन है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है १. देखें, समवाप्रो, पइण्णगसमवामो सू० २३० का पाद-टिप्पण। २. देखें, समवायो, समवाय ३०, सू० १, गाथा २६ का दूसरा पाद-टिप्पण। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ॥छ। समवाउ चउत्थमंग संमत्तं ॥छ।। ग्रंथान १६६७ ॥छ।। इस प्रति में पाठ बहुत संक्षिप्त है । अनेक स्थानों पर केवल प्रथम अक्षर ही लिखे गए हैं । श्रीमदभयदेवसूरिवृत्तिः (मुद्रित)प्रकाशक श्रेष्ठी माणिकलाल चुन्नीलाल, कान्तिलाल, चुन्नीलाल-अहमदाबाद । संपादक--मास्टर नगीनदास, नेमचन्द । सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज ये १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई । उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थदृष्टि समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप-सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवत्ति में अध्यापनकर्म के अनेक अंग हैं.-.-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्यश्री का सक्रिय योग, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं । प्रस्तुत ग्रन्थ के पाठ संपादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है । मूनि शुभकरणजी इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रतिशोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल जी (आमेट) ने तैयार किया है। कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम के प्रबंध-संपादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ये कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित बकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगमसेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, जैन विश्व भारती के कार्यालय तथा आदर्श साहित्य संघ के कार्यालय के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार-पूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। मुनि नथमल अणुव्रत-विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका १. आगमों का वर्गीकरण जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम है । समवायांग में आगम के दो रूप प्राप्त होते हैं---- द्वादशांग गणिपिटक' और चतुर्दश पूर्व' । नन्दी में श्रुत ज्ञान ( आगम) के दो विभाग मिलते हैं-अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य' । आगम- साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पूर्वो से संबंधित हैं । जैसे १. सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने वाले - - ' सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, प्रथम वर्ग) | यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषय में प्राप्त है। 'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पंचम वर्ग, प्रथम अध्ययन ) | यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि की शिष्या पद्मावती के विषय में प्राप्त है । 'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जई' (अंतगड, अष्टम वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् महावीर की शिष्या काली के विषय में प्राप्त है । 'सामाइ माइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पष्ठ वर्ग १५वां अध्ययन ) | यह उल्लेख भगवान् महावीर के शिष्य अतिमुक्तककुमार के विषय में प्राप्त है । २. बारह अंगों को पढ़ने वाले -- 'बारसंगी' (अंतगड, चतुर्थ वर्ग, प्रथम अध्ययन ) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य जालीकुमार के विषय में प्राप्त है । ३. चौदह पूर्वों को पढ़ने वाले - चोट्सपुव्वाई अहिज्जइ (अंतगड, तृतीय वर्ग, नवम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य सुमुखकुमार के विषय में प्राप्त है । 'सामाइयमाइयाई चोट्सपुब्वाई अहिज्जइ' (अंतगड, तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन ) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयसकुमार के विषय में प्राप्त है । १, समवाओ, पण्णसभवाओ, सू० ८८ । २, वही, समवाय १४, सू० २ 1 ३. नन्दी, सु० ४३ । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान् पार्श्व के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे। भगवान् महावीर के तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे । समवायांग और अनुयोगद्वार में अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य का विभाग नहीं है। सर्व प्रथम यह विभाग नन्दी में मिलता है। अंग-बाह्य की रचना अर्वाचीन स्थविरों ने की है। नंदी को रचना से पूर्व अनेक अंग-बाह्य ग्रन्थ रचे जा चुके थे और वे चतुर्दश-पूर्वी या दस-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचे गये थे। इस लिए उन्हें आगम की कोटि में रखा गया। उसके फलस्वरूप आगम के दो विभाग किए गए--अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । यह विभाग अनुयोगद्वार (वीर-निर्वाण छठी शताब्दी) तक नहीं हुआ था । यह सबसे पहले नंदी (वीर-निर्वाण दसवीं शताब्दी) में हुआ है। नंदी की रचना तक आगम के तीन वर्गीकरण हो जाते हैं--पूर्व, अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । आज 'अंग-प्रविष्ट' और 'अंग-बाह्य' उपलब्ध होते हैं, किन्तु पूर्व उपलब्ध नहीं हैं । उनकी अनुपलब्धि ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्शनीय है। २. पूर्व जैन परम्परा के अनुसार श्रुत-ज्ञान (शब्द-ज्ञान) का अक्षयकोष 'पूर्व' है। इसके अर्थ और रचना के विषय में सब एक मत नहीं हैं। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार 'पूर्व' द्वादशांगी से पहले रचे गए थे, इसलिए इनका नाम 'पूर्व' रखा गया। आधुनिक विद्वानों का अभिमत यह है कि 'पूर्व' भगवान पावं की परम्परा की श्रुत-राशि है। यह भगवान महावीर से पूर्ववर्ती है, इसलिए इसे 'पूर्व' कहा गया है। दोनों अभिमतों में से किसी को भी मान्य किया जाए, किन्तु इस फलित में कोई अन्तर नहीं आता कि पूर्वो की रचना द्वादशांगी से पहले हुई थी या द्वादशांगी पूर्वो की उत्तरकालीन रचना है। वर्तमान में जो द्वादशांगी का रूप प्राप्त है, उसमें 'पूर्व' समाए हुए हैं। बारहवां अंग दृष्टिवाद है । उसका एक विभाग है--पूर्वगत । चौदह पूर्व इसी 'पूर्वगत' के अन्तर्गत हैं। भगवान महावीर ने प्रारंभ में पूर्वगत-श्रुत की रचना की थी। इस अभिमत से यह फलित होता है कि चौदह पूर्व और वारहवां अंग--ये दोनों भिन्न नहीं हैं। पूर्वगत-श्रुत बहुत गहन था। सर्वसाधारण के लिए वह १. समबाओ, पइयणगसमवाओ, सू०१४ । २. वही, सू० १२ ३. समवायांग वृत्ति, पत्र १०११ प्रथनं पूर्व तस्य सर्वप्रवचनात् पूर्व क्रियमाणत्वात् । ४. नन्दी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० : अन्ये तु व्याचक्षते पूर्व पूर्वगतसूत्रार्थमहन् भाषते, गणघरा अपि पूर्व पूर्वगतसूत्रं विरचन्ति, पश्चादाचारादिकम्। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुलभ नहीं था। अंगों की रचना अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए की गई। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने बताया है कि 'दृष्टिवाद में समस्त शब्द-ज्ञान का अवतार हो जाता है। फिर भी ग्यारह अंगों की रचना अल्पमेधा पुरुषों तथा स्त्रिया के लिए की गई । ग्यारह अगों को दे ही साधु पढ़ते थे, जिनकी प्रतिभा प्रखर नहीं होती थी। प्रतिभा सम्पन्न मुनि पूर्वो का अध्ययन करते थे । आगम-विच्छेद के कम से भी यही फलित होता है कि ग्यारह अंग दृष्टिवाद या पूर्षों से सरल या भिन्न-क्रम में रहे हैं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार वीर-निर्वाण वासठ वर्ष शद केवली नहीं रहे। उनके बाद सौ वर्ष तक श्रुत-केवली (चतुर्दश-पूर्वी) रहे। उनके पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष तक दशपूर्वी रहे। उनके पश्चात दो सौ बीस वर्ष तक ग्यारह अंगधर रहे। उक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि जब तक आचार आदि अंगों की रचना नहीं हुई थी, तब तक महावीर की श्रत-राशि 'चौदह पूर्व' या 'दृष्टिवाद' के नाम से अभिहित होती थी और जव आचार आदि ग्यारह अंगों की रचना हो गई, तब दृष्टिवाद को बारहवें अंग के रूप में स्थापित किया गया। यद्यपि बारह अंगों को पढ़ने वाले और चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले ये भिन्न-भिन्न उल्लेख मिलते हैं, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि चौदह पूर्वो के अध्येता बारह अंगों के अध्येता नहीं थे और बारह अंगों के अध्येता चतुर्दश-पूर्वी नहीं थे। गौतम स्वामी को 'द्वादशांगवित्' कहा गया है। वे चतुर्दश-पूर्वी और अंगधर दोनों थे। यह कहने का प्रकार-भेद रहा है कि श्रुतकेवली को कहीं 'द्वादशांगवित्' और कहीं 'चतुर्दश-पूर्वी' कहा गया है । ग्यारह अंग पूर्वो से उद्धृत या संकलित हैं । इसलिए जो चतुर्दश-पूर्वी होता है, वह स्वाभाविक रूप से द्वादशांगवित होता है। बारहवें अंग में चौदह पूर्व समाविष्ट हैं। इसलिए जो द्वादशांगवित होता है, वह स्वभावतः चतुर्दश-पूर्व होता है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आगम के प्राचीन वर्गीकरण दो ही हैं--चौदह पूर्व और ग्यारह अंग । द्वादशांगी का स्वतन्त्र स्थान नहीं है। यह पूर्वो और अंगों का संयुक्त नाम है। कुछ आधुनिक विद्वानों ने पूर्वो को भगवान् पार्श्वकालीन और अंगों को भगवान् महावीरकालीन माना है, पर यह अभिमत संगत नहीं है। पूर्वो और अंगों की परम्परा भगवान् अरिष्टनेमि और भगवान पार्श्व के युग में भी रही है। अंग अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए रचे गए, यह पहले बताया जा चुका है। भगवान् पार्व के युग में सब मुनियों का प्रतिभा-स्तर समान था, यह कैसे ---- -------------- १. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ५५४ : जइवि य भूतावाए, सव्वस्स वयोगयस्स भोयारो। निज्जूहणा तहावि हु, दुम्मेहे पप्प इत्थी य ।। २. जयधवला, प्रस्तावना पृष्ठ ४६ । ३. देखिए-भूमिका का प्रारम्भिक भाग। ४. उत्तयध्ययन, २३७॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माना जा सकता है ? प्रतिभा का तारतम्य अपने-अपने युग में सदा रहा है। मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि से विचार करने पर भी हम इसी बिन्दु पर पहुंचते हैं कि अंगो की अपेक्षा भगवान् पाश्व के शासन में भी रही है, इसलिए इस अभिमत की पुष्टि में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है कि भगवान् पाश्र्व के युग में केवल पूर्व ही थे, अंग नहीं। सामान्य ज्ञान से यही तथ्य निष्पन्न होता है। कि भगवान महावीर के शासन में पूर्वो और अंगों का युग की भाव, भाषा, जी और अपेक्षा के अनुसार नवीनीकरण हुआ । 'पूर्व' पार्श्व की परम्परा से लिए गए और 'अंग' महावीर की परम्परा में रचे गए, इस अभिमत के समर्थन में सम्भवतः कल्पना ही प्रधान रही है। ३. अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य भगवान् महावीर के अस्तित्व-काल में गौतम आदि गणवरों ने पूर्वी और अंगों की रचना की, यह सर्व विश्रुत है । क्या अन्य मुनियों ने आगम ग्रन्थों की रचना नहीं की । यह प्रश्न सहज ही उठता है । भगवान् महावीर के चौदह हजार शिष्य थे। उनमें सात सौ केवली थे, चार सौ वादी थे। उन्होंने ग्रन्थों की रचना नहीं की, ऐसा सम्भव नहीं लगता। नदी में बताया गया है कि भगवान् महावीर के शिष्यों ने चौदह हजार प्रकीर्णक बनाए थे। ये पूर्वो और अंगो से अतिरिक्त थे। उस समय अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य ऐसा वर्गीकरण हुआ, यह प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है । भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् अर्वाचीन आचार्यों ने ग्रंथ रचे तब संभव है उन्हें आगम की कोटि में रखने या न रखने की चर्चा चली और उनके प्रामाण्य और अप्रामाण्य का प्रश्न भी उठा। चर्चा के बाद चतुर्दश-पूर्वी और दश-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचित ग्रन्थों को आगम की कोटि में रखने का निर्णय हुआ किन्तु उन्हें स्वत: प्रमाण नहीं माना गया। उनका प्रामाण्य परतः था । वे द्वादशांगी में अविरुद्ध है, इस कसौटी से कसकर उन्हें आगम की संज्ञा दी गई। उनका प्रातः प्रामाण्य था, इसीलिए उन्हें अंग-प्रविष्ट की कोटि से भिन्न रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई। इस स्थिति के सन्दर्भ में आराम की अंग बाह्य कोटि का उद्भव हुआ । जिनमद्रगणि क्षमाश्रमण ने अंग-प्रविष्ट और जंग बाह्य के भेद निरूपण में तीन हेतु प्रस्तुत किए हैं--- १. जो गणवर कृत होता है, २. जो गणधर द्वारा प्रश्न किए जाने पर तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है १. समवाओ, समवाय १४ ० ४ । २. नन्दी, सू० ७८ : स्वाणि भगवद्धमाण Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. जो ध्रुव-शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित होता है, सुदीर्घकालीन होता है-वही श्रुत अंग-प्रविष्ट होता है। इसके विपरीत! १. जो स्थविर-कृत होता है, २. जो प्रश्न पूछे बिना तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित होता है, ३. जो चल होता है, तात्कालिक या सामयिक होता है-उस श्रत का नाम अंग-बाह्य है। अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य में भेद करने का मख्य हेत वक्ता का भेद है। जिस आगम के वक्ता भगवान् महावीर हैं और जिसके संकलयिता गणधर है, वह श्रत-पुरुष के मूल अंगों के रूप में स्वीकृत होता है इसलिए उसे अंग-प्रविष्ट कहा गया है। सर्वार्थसिद्धि के अनुसार वक्ता तीन प्रकार के होते हैं-१. तीर्थंकर २. श्रु त केवली (चतुर्दश-पूर्वी) और ३. आरातीय' । आरातीय आचार्यों के द्वारा रचित आगम ही अंग-बाह्य माने गए है। आचार्य अकलंक के शब्दों में आरातीय आचार्य कृत आगम अंग-प्रतिपादित अर्थ से प्रतिबिम्बित होते हैं इसीलिए वे अंग-बाह्य कहलाते हैं। अंग-बाह्य आगम श्रुत-पुरुष के प्रत्यंग या उपांग-स्थानीय है। ४. अंग द्वादशागी में संगभित बारह आगमों को अंग कहा गया है। अंग शब्द संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के साहित्य में प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य में वेदाध्ययन के सहायक-ग्रन्थों को अंग कहा गया है। उनकी संख्या छह है १. शिक्षा-शब्दों के उच्चारण-विधान का प्रतिपादक ग्रन्थ । २. कल्प-वेद-विहित कर्मों का क्रमपूर्वक व्यवस्थित प्रतिपादन करने वाला शास्त्र। ३. व्याकरण-पद-स्वरूप और पदार्थ-निश्चय का निमित्त-शास्त्र ४. निरुक्त-पदों की व्युत्पत्ति का निरूपण करने वाला शास्त्र । ५. छन्द -- मन्त्रोच्चारण के लिए स्वर-विज्ञान का प्रतिपादक-शास्त्र । ६. ज्योतिष-यज्ञ-याग आदि कार्यों के लिए समय-शुद्धि का प्रतिपादक शास्त्र : ...-..-- ----- ------ ------ १. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ५५२ : गणहर-थेरकयं वा, आएसा मुक्क - बागरणो वा। धुव • चल विसेसमो वा, अंगाणंगेसु नाणतं ।। २. तत्त्वार्थभाष्य, १२०: वक्त-विशेषाद् वैविध्यम् । ३. सर्वार्थसिद्धि, १.२० नयो वक्तार:- सर्वज्ञस्तीर्थकरः, इतरो वा श्रुतकेवली आरातीयश्चेति। ४. तस्वार्थ राजवातिक, ११२०: बारातीयाचार्यकृतांगार्थ प्रत्यासन्नरूपमंगबाह्यम् । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ वैदिक साहित्य में वेद-पुरुष की कल्पना की गयी है। उसके अनुसार शिक्षा वेद की नासिका है, कल्प हाथ, व्याकरण मुख, निरुक्त श्रोत्र, छन्द पैर और ज्योतिष नेत्र है । इसीलिए ये वेदशरीर के अंग कहलाते हैं। 7 पालि साहित्य में भी 'अंग' शब्द का उपयोग किया गया है। एक स्थान में बुद्धवचनों को नवांग और दूसरे स्थान में द्वादशांग कहा गया है। नवांग- १. सुत्त - भगवान् बुद्ध के गद्यमय उपदेश । २. गेय्य -- गद्य-पद्य मिश्रित अंश । ३. वैय्याकरण - व्याख्यापरक ग्रन्थ । ४. गाथा - पद्य में रचित ग्रन्थ । ५. उदान बुद्ध के मुख से निकले हुए भावमय प्रीति उद्गार | ६. इतिवृत्तक छोटे-छोटे व्याख्यान, जिनका प्रारम्भ 'बुद्ध ने ऐसा कहा से होता है। ७. जातक - बुद्ध की पूर्व - जन्म-सम्बन्धी कथाएं । अभूतषम्म अद्भुत वस्तुओं या योगज विभूतियों का निरूपण करने वाले ग्रन्थ । ६. वेदल्ल - वे उपदेश जो प्रश्नोत्तर की शैली में लिखे गए हैं। द्वादशांग--- १. सूत्र, २. गेय, ३. व्याकरण, ४. गाथा, ५. उदान, ६. अवदान ७. इतिवृत्तक, ८ निदान, १. वैपुल्य १०. जातक, ११. उपदेश धर्म और १२. अद्भुत-धर्म' । जैनागम बारह अंगो में विभक्त है- १. आचार, २. सूत्रकृत ३ स्थान, ४. समवाय, ५. भगवती, ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७ उपासकदशा, ८. अन्तकृतदशा, ६. अनुत्तरोपपातिकदशा, १०. प्रश्नव्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद । 'अंग' शब्द का प्रयोग भारतीय दर्शन की तीनों प्रमुख धाराओं में हुआ है। वैदिक और बौद्ध साहित्य में मुख्य ग्रन्थ वेद और पिटक हैं। उनके साथ 'अंग' शब्द का कोई योग नहीं है । जैन साहित्य में मुख्य ग्रन्थों का वर्गीकरण गणिपिटक है। उसके साथ 'अंग' शब्द का योग हुआ है। गणिपिटक के वारह अंग हैं - 'दुवालसंगे गणिपिडगे" । १. पाणिनीशिक्षा ४१:१२ । २. सूत, पू० ३४ ३. बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ 'अभिसमयालंकार' की टीका' पृ० ३५ : सुखं येदं व्याकरणं, गाघोदानावदानकम् । 2 इतिवृत्तकं निदानं वैपुल्यं च सजातकम् । उपदेशाद्भूत धर्मों द्वादशनि वचः ॥ ४. रामबाओ पण समाज सूत Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-परम्परा में श्रत-पुरुष की कल्पना भी प्राप्त होती है। आचार आदि बारह आगम श्रुत-पुरुष के अंगस्थानीय हैं। संभवतः इसीलिए उन्हें बारह अंग कहा गया। इस प्रकार द्वादशांग 'गणिपिटक' और 'श्रुत-पुरुष'-दोनों का विशेषण बनता है। आयारो नाम-बोध--- प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पहला अंग है। इसमें आचार का वर्णन है, इसलिए इसका नाम 'आयारो' (आचार) है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं----आयरो और आयारचला। विषय-वस्तु समवायांग और नन्दी में आचारांग का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके अनुसार प्रस्तुत सुत्र आचार, गोचर, विनय, वैनयिक (विनय-फल), स्थान (उत्थितासन, निषण्णासन, और शयितासन), गमन, चंक्रमण, भोजन आदि की मात्रा, स्वाध्याय आदि में योग-नियुंजन, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त-पान, उद्गम-उत्थान, एषणा आदि की विशुद्धि, शुद्धाशुद्ध-ग्रहण का विवेक, व्रत, नियम, तप, उपधान आदि का प्रतिपादक है। आचार्य उमास्वाति ने आचारांग के प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया है। वह क्रमश: इस प्रकार है-- १. षड्जीवकाय यतना। २. लौकिक संतान का गौरव-त्याग । ३. शीत-ऊष्ण आदि परीपहों पर विजय : ४. अप्रकम्पनीय सम्यक्त्व। ५. संसार से उद्वेग! ६. कर्मों को क्षीण करने का उपाय । ७. वैयावृत्य का उद्योग। ८. तपस्या की विधि। है. स्त्री-संग-त्याग । १. मूलाराधना, ४१५६६ विजयोदया : श्रुतं पुरुषः मुखचरणाचंगस्थानीयत्वादंगशब्देनोच्यते । २. (क) समवाओ, पइण्णग समवानो, सू० ८६ । (ख) नंदी, सू००। ३. प्रशभरति प्रकरण, ११४-११७ । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. विधि-पूर्वक भिक्षा का ग्रहण । ११. स्त्री, पशु, क्लीव आदि से रहित शव्या ! १२. गति शुद्धि | १२. भाषा-शुद्धि १४. वस्त्र की एषणा-पद्धति | १५. पात्र की एषणा-पद्धति । १६. अवग्रह-शुद्धि | १७. स्थान -शुद्धि । १८. निपद्या-शुद्धि | १९. ब्युत्सर्ग-शुद्धि | २०. शब्दासक्ति परित्याग | २१. रूपासक्ति परित्याग २२. परक्रिया - वर्जन | २२. अन्योन्यक्रिया वर्जन । २४. पंच महावतों की दूढ़ता २५. सर्वसंगों से विमुक्तता । ३७ नियुक्तिकार ने नव चाचयं अध्ययनों के विषय इस प्रकार बतलाए है--- १. सत्यपरिण्णाजीव संयम । २. लोग विजय - बंध और मुक्ति का प्रबोध | २. सीओोसणिज्य – सुख-दुःख-तितिक्षा 1 ४. सम्मत-सम्यक दृष्टिकोण ५. लोग सार - असार का परित्याग और लोक में सारभूत रत्नत्रयी की आराधना । ६. धुय --- अनासक्ति 1 ७. महापरिष्णा मोह से उत्पन्न परीषहों और उपसगों का सम्यक् सहन । ८. विमोनल निर्माण (अंतक्रिया) की सम्य-आराधना । ९. उ वहाणसुय भगवान् महावीर द्वारा आचरित आचार का प्रतिपादन । १. आचारांग निर्मुक्ति, गाथा ३३, ३४ : जमीन लोगो जह बाद नहतं पहियवं सुहदुक्खतितिक्खाबिय सम्मत्तं लोगसारो य ॥ निलांगमा य छठे मोहसमुत्या परीसराम्या । निज्जाणं अठ्ठमए नवमे य जिणेण एवंति || Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ आचार्य अकलंक के अनुसार आचारांग का समग्र विषय वर्मा-विधान तथा अपराजित सूरि के अनुसार त्रयी के आचरण का प्रतिपादन है। जैन- परम्परा में 'आचार' शब्द व्यापक अर्थ में व्यवहृत होता है । आचारांग की व्याख्या के प्रसंग में आचार के पांच प्रकार बतलाए गए हैं - १. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चरित्राचार, ४. तपाचार और ५. वीर्याचार' प्रस्तुत सूत्र में इन पांचों आचारों का निरूपण है सूयगडो नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशानी का दूसरा अंग है। इसका नाम 'सूपगडी' है। समवाय, नंदी और अनुयोगद्वार तीनों आगमों में यही नाम उपलब्ध होता है । निर्मुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने प्रस्तुत आगम के गुण-निष्पन्न नाम तीन बतलाए हैं १. सुतगड - सूतकृत २. सूत्तकड — सूत्रकृत ३. सूयगड - सुचाकृत प्रस्तुत आगम मौलिक दृष्टि से भगवान् महावीर से सूत ( उत्पन्न ) है तथा यह ग्रन्थरूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूतकूल' है। इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सूत्रकृत' है । इसमें स्व और पर समय की सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' है। वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। आकार भेद होने के कारण तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई है । १. तत्वार्थ राजपातिक १२०: आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टकपंचसमिति त्रिगुप्तिविकल्पं कथ्यते । २. दाराधना २, श्लोक १३० विजयोदयः रत्नखयाचरणनिरूपणपरतया प्रथम मंगमाचारशब्देनोच्यते । ३. समवाओ, पइण्णग समवाओ, ०६ : से समास पंचविहे पं० तं णाणायारे दंसणावारे चरितायारे तवायारे वोरियायारे । ४. (क) समवाओ, पदम्पसमा ०८ (ख) नंदी, सू० ८०। (ग) अणुओोगदाराई, सू० ५० । ५. नियुक्तिया २ " सूतगढं सुतक सूप व गोणाई Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभी अंग मौलिक रूप में भगवान् महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थरूप में प्रणीत हैं । फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही सूत्रकृत नाम क्यों ? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है। प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है। क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्वसमय और परसमय की तुलनात्मक सूत्रता के सन्दर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका संबंध सूचना से है। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है --'सूयगडे णं ससमयासूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमय-परसमया सूइज्जति । जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है। सूत्रकृत के नाम के सम्बन्ध में एक अनुमान और किया जा सकता है। वह वास्तविकता के निकट प्रतीत होता है । दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयो।, पूर्वगत और चूलिका। ___ आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है। प्रस्तुत आगम की रचना उसी के आधार पर की गई इसलिए इसका सूत्रकृत नाम रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। सूतगड' और बौद्धों के 'सुत्तनिपात' में नामसाम्य प्रतीत होता है। अंग और अनुयोग द्वादशांगी में प्रस्तुत आगम का स्थान दूसरा है । अनुयोग चार हैं१. चरणकरणानुयोग, २. धर्मकथानुयोग, ३. गणितानुयोग। ४. द्रव्यानुयोग। चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार शास्त्र) है । शीलांकसूरि ने इसे द्रव्यानुयोग (द्रव्य शास्त्र) की कोटि में रखा है। उनके अनुसार आचारांग प्रधानतया चरणकरणानुयोग तथा सुत्रकृतांग प्रधानतया द्रव्यानुयोग है। १. (क) समवाओ, पइग्णगसमवायो, सू० ६० । (ख) नंदी, सू० ८२। २. कसायपाहुह, भाग १, पृ.० १३४ । ३. सूत्रकृतांगचूणि पृ०५। इह चरणाणुगोगे ण अधिकारो। ४. सूत्रकृतॉग वुत्ति, पत्न १ तनाचाराङ्ग चरण करणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्यसूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्ग व्याख्यातुमारभ्यते । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय तथा नन्दी में द्वादशांगी का विवरण दिया हआ है। वहां सभी अंगों के विवरण के अंत में एवं चरणकरणपरूवणता' पाठ मिलता है। अभयदेवसूरी ने 'चरण' का अर्थ श्रमण धर्म और 'करण' का अर्थ पिण्डविशुद्धि, समिति आदि किया है। चुणिकार ने कालिकश्रुत को चरणकरणानुयोग तथा दृष्टिवादको द्रव्यानुयोग माना है।' द्वादशांगी में मुख्यतः द्रव्यशास्त्र दष्टिवाद है। शेष अंगों में द्रव्य का प्रतिपादन गौण है। द्रव्यशास्त्र में भी गौणरूप में आचार का प्रतिपादन हुआ है । चूर्णिकार ने मुख्यता की दृष्टि से प्रस्तुत आगम को आचार शास्त्र माना है और वह उचित भी है। वृत्तिकार ने इसमें प्राप्त द्रव्य विषयक प्रतिपादन को मुख्य मानकर इसे द्रव्यशास्त्र कहा है। इन दोनों वर्गीकरणों में सापेक्ष दृष्टिभेद है। ठाणं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का तीसरा अंग है। इसमें संख्या-क्रम से जीव, पुद्गल आदि की स्थापना की गई है इसलिए इसका नाम ठाणं है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में 'स्वसमय' (अर्हत् का दर्शन), 'परसमय' तथा स्वसमय और परसमयदोनों की स्थापना की गई है। जीव और अजीव, लोक और अलोक की स्थापना की गई है। इसमें संग्रह नय की दृष्टि से जीव की एकता और व्यवहार नय की दृष्टि से उसकी भिन्नता प्रतिपादित है । संग्रह नय के अनुसार चैतन्य की दृष्टि से जीव एक है । व्यवहार नय के दृष्टिकोण से प्रत्येक जीव विभक्त होता है, जैसे-ज्ञान और दर्शन की दष्टि से वह दो भागों में विभक्त है । कर्मचेतना, कर्मफल चेतना और ज्ञान चेतना की दृष्टि से अथवा ध्रौव्य, उत्पाद और १. समवायांग वृत्ति, पन १०२: चरणम्--ब्रतश्रमणधर्मसंयमाद्यनेकविधम् । करणम्--पिण्डविशुद्धिसमित्याधनेकविधम् । २. सूत्रकृतांगणि, पु०५। कालियसुर्य चरणकरणाणुयोगो, इसिभासिओत्तरायणाणि धम्माणुयोगो, सूरपण्णत्तादि गणितानुयोगो, दिठ्ठ वातो दवाणुजोगोत्ति । ३. समवायो, पइयणगसमवाओ, सू० ६१॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनाश की दृष्टि से वह तीन भागों में विभक्त है। गति-चतुष्टय में परिभ्रमण करने के कारण वह चार भागों में विभक्त है। पारिणामिकआदि पांच भावों की दष्टि से वह पांच भागों में विभक्त है। भवान्तर में संकमण के समय पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उध्वं और अध:----इन छह दिशाओं में गमन करने के कारण वह छह भागों में विभक्त है। स्यादस्ति, स्यादनास्ति की सप्तभंगी की दष्टि से वह सात भागों में विभक्त है। आठ कर्मों की दृष्टि से वह आठ भार्गो में विभक्त है। नौ पदार्थों में परिण मन करने के कारण वह नौ भागों में विभक्त है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रिय जाति की दृष्टि से वह दस भागों में विभक्त है।' इसी प्रकार प्रस्तुत आगम पुद्गल आदि के एकत्व तथा दो से दस तक के पर्यायों का वर्णन करता है। पर्यायों की दष्टि से एक तत्व अनन्त भागों में विभक्त हो जाता है और द्रव्य की दृष्टि से वे अनन्त भाग एक तत्त्व में परिणत हो जाते हैं। प्रस्तुत आगम में इस अभेद और भेद की व्याख्या उपलब्ध है। समवाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का चौथा अंग है। इसका नाम समवाओ है। इसमें जीव-अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समवतार है, इसलिए इसका नाम समवाओ है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का सादृश्य-सामान्य के द्वारा निर्णय किया गया है; इसलिए इसका नाम समवाओ है। समवाओ में द्वादशांगी का वर्णन है । यह द्वादशांगी का चौथा अंग है; इसलिए इसमें इसका विवरण भी प्राप्त है। द्वादशांगी का क्रम-प्राप्त विवेचन नन्दी सूत्र में है। उसके अनुसार समवाओ की विषयसूची इस प्रकार है १. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास । १. कसायपाहुड भाग पृ० १२३ २. समवायांग वृत्ति, पत्न १: समिति-सम्यक् अवेत्याधिक्येन अयनमयः-परिच्छेदो जीवाजीवादिविविधपदार्थसाधस्य यस्मिन्नसो समवायः, समवयन्ति वा-समवसरन्ति संमिलन्ति नाना विद्या आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसो समवाय इति । गोमटसार, जीवकाण्ड, जीवप्रबोधिनी टीका, गाथा ३५६ : "सं-संग्रहेण सादृश्यसामाग्येन प्रवेयंते ज्ञायन्ते जीवा दिपदार्था द्रव्य कालभावनाश्रित्य अस्मिम्मिति समवायाङ्गम् ।" Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. द्वादशांग गणिपिटक का वर्णन । समवायांग के अनुसार समवाओ की विषय सूची इस प्रकार है१. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास । ३. द्वादशांग-गणिपिटक का वर्णन। ४. आहार १४. योग ५. उच्छ वास १५. इन्द्रिय ६. लेश्या १६. कषाय ७. आवास १७. योनि ८. उपपात १८. कुलकर है. च्यवन १६. तीर्थंकर १०. अवगाह २०. गणधर ११. वेदना २१. चक्रवर्ती १२. विधान २२. बलदेव-वासुदेव । १३. उपयोग दोनों विषय-सूचियों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि समवायांग की नदि- त.विषय-सूची संक्षिप्त है जौर समवाओ-गत विषय-सूची विस्तृत । विषय-सूची के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का आकार भी छोटा और बड़ा हो जाता है। दोनों विवरणों में 'सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है' इसका उल्लेख है । अने कोतरिका वृद्धि का दोनों में उल्लेख नहीं है। नन्दीचूर्णी, हारिभद्रीयावृत्ति तथा मलयगिरीयावृत्ति-इन तीनों में अनेकोतरिका वृद्धि का कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने अनेकोतरिका वृद्धि की चर्चा की है। उनके अनुसार सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है और उसके पश्चात् अनेकोतरिका वृद्धि होती है। वृत्तिकार का यह उल्लेख समवायांग के विवरण के आधार पर नहीं, किन्तु उपलब्ध पाठ के आधार पर है-ऐसा प्रतीत होता है। १. नन्दी, सू० ८३: से कि तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिज्जति, अजीवा समासिजति जीवाजीवा समासिज्जति । ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय-गरसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ, अलोए समासिरजइ, लोयालोए समासिज्जइ । समवाएणं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयं-निवढ़ियाणं भावाणं परूवणा आधविज्जइ, दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लयम्ये समासिज्जइ ! २. समवानो, पइण्णगसमवाओ, सू०६२। ३. समवायांग, वृत्ति, पन्न १०५ : 'च शब्दस्य चान्यत्र सम्बन्धादेकोतरिका अनेकोतरिका च, तत्र शतं यावदेकोतरिका परतोऽनेकोत्तरिकेति।' Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोनों विवरणों की समीक्षा करने पर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं १. नन्दी में समवायांग का जो विवरण है, उससे उपलब्ध समवायांग क्या भिन्न नहीं है ? २. क्या उपलब्ध समवायांग देवधिगणी की वाचना का है ? यदि है तो समवायांग के दोनों विवरणों में इतना अन्तर क्यों ? प्रथम प्रश्न के समाधान में यह कहा जा सकता है कि नन्दीगत समवायांग-बिवरण के अनुसार समवायांग सूत्र का अन्तिमवि षय द्वादशांगी के आगे अनेक विषय प्रतिपादित हैं। इससे ज्ञात होता है कि समवायांग का वर्तमान आकार नन्दीगत समवायांग-विवरण से भिन्न है। दुसरे प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर देना कठिन है, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि आगमों की अनेक वाचनाएं रही हैं। इसीलिए प्रत्येक अंग के विवरण में अनेक वाचनाओं (परित्ता वाषणा) का उल्लेख किया गया है। अभयदेवसूरि ने समवायांग की वहद-वाचना का उल्लेख किया है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि नन्दी में लघु वाचना वाले समवायांग का विवरण है। अभयदेवसरि को प्रस्तुत-सूत्र के वाचनान्तर प्राप्त थे, ऐसा उनकी वृत्ति से ज्ञात होता है। समवायांग परिवर्धित आकार के विषय में दो अनुमान किये जा सकते हैं १. प्रस्तुत सूत्र देवर्धिगणी की वाचना से भिन्न वाचना का है। २. अथवा द्वादशांगी के उत्तरवर्ती अंश देवधिगणी के पश्चात् इसमें जोड़े गए हैं । यदि प्रस्तुत सूत्र भिन्न वाचना का होता तो इस विषय में कोई अनुश्रुति मिल जाती। ज्योतिटकरण्ड माधुरी वाचना का है--यह अनुश्रुति वराबर चलती आ रही है । उपलब्ध समवायांग भी यदि माथुरी वाचना का होता तो उस विषय को कोई अनुश्रुति मिल जाती। प्रथम अनुमान की पुष्टि की संभावना कम होने पर दूसरे अनुमान की संभावना बढ़ जाती है। किन्तु भगवती तथा स्थानांग से दूसरे अनुमान का भी निरसन हो जाता है। भगवती में कूलकर, तीथकर आदि के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है। इसी प्रकार स्थानांग में भी बलदेव-वासुदेव के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है। इससे ज्ञात होता है कि परिशिष्ट-भाग देवर्धिगणी के समय में ही जोड़ा गया था। १. (क) समवायांग वृत्ति, पत्र ५८ : बृहद्वाचनायामनन्तरोक्तमतिशयद्वयं नाधीयते । (ख) वही, पत ५६ : वृहद्वाचनायामिदमन्यदतिशयद्वयमधीयते । २. समवायांग वृत्ति, पन १४४ : वाचनान्तरे तु पर्युषणाकल्पोक्तक्रमेणेत्यभिहितम ३. भगवई शतक ५, उद्देशक ५। ४. ठाणं ३।१६,२० । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक आगम के लिए एक संकलनकार के द्वारा दो प्रकार के विवरण (समवायांग तथा नंदी में) दिए गए--यह विचित्र बात है। माथूरी और वल्लभी-ये दो मुख्य वाचनाएं थीं। गौण वाचनाए अनेक थीं। इसीलिए अनेक वाचनान्तर मिलते हैं। ये वाचनान्तर संभवत: व्याख्यांश या परिशिष्ट जोड़ने से हो जाते। समवायांग में द्वादशांगी का उत्तरवर्ती भाग उसका परिशिष्ट भाग है-ऐसी कल्पना की जा सकती है। परिशिष्ट का विवरण समवायांग के विवरण में परिवधित किया गया, इसलिए उसकी विषयसूची नन्दीगत समवायांग की विषय-सूची से लम्बी हो गई। परिशिष्ट भाग में प्रज्ञापना के ग्यारह पदों का संक्षेप है, ये किस हेतु से यहां जोड़े गए, यह अन्वेषण का विषय है। कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तरहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता हो पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। __मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधु-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Editorial Ayaro The text of the Āćāränga, adopted by us, does not depend on one specimen only. We have adopted it on the review with reference to the specimens in use, the Ćūrņi and the Vșitti. The three sūtras (27-29) in the second 'Uddeśaka' of the first Adhyayana of the 'Āyāro' are found in all the other five Uddeśakas also. In the specimens used in the redemption of the text as well as in the Acaranga Vșitti they are not found. In the Aćārānga Curņi, commenciog from the Sütrā "lajjamāņā pudhopasa' (Āyāro, Sü. 16, page 4) to the Sūtra 'Appege Sampamärae, Appege Uddawae' (Āyāro, Sū. 29, page 6), it is considered as Dhruvakandikā' (the one and the same text). On the basis of the indications found in the Čurņi, we have adopted the three Sütras in the second Uddeśaka in the rest five Uddeśakas. In place of Kumbhārāyatanamsi wā, in the Ćūrņia of the second Udde. saka (Sū. 21) of the cighth Adhyayana, many a word is found, e.g. 'uwattanagihe wā, gāmdeulie wā, kammagārasālāe wa, tantuwāyagasālāe wā, lohagarasālāe wā'. The Cūrnikāra further writes-Jaciyāo Sālā Sawwāo māniyawwão", Here it appears that the word 'Kumbhārāyatanamsi wā' was added with many other words meaning 'Sālā' or house but, in the course of time due to the faulty scribing, all the other words were left out. It is not possible to decide the text-system on the basis of the Curņi only. This is why it has not been included in the text. 1. See - Ayaro, page 8, footnote no 2, page 11 ; footnote no. 2, page 14; footnotc no 1, page 16; footnote no. 3, page 19; footnote no. 4. 2. Acaranga Curni, page 260 261 3. Acaranga Curni, page 261. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 We have completed the abridged text, too. The tradition to abridge the text was in vouge due to learning of the Sruta by heart and making the scribing easy. Pandit Bećar Das Joshi had written to Acarya Tulsi, throwing light on this topic in an article, on 8th December 1966. He observes, "The traditional Jain Sramanas considered the tendency to write and get written as sinful activities. They, nevertheless, adopted this path as an acception to safe-guard the scriptures. The less writing, the better. Taking this they, surely, tried to search out the way to reduce the sinful. activity to the least for the safeguard of the scriptures. In the search of this path they found two novel words as "Wannao' and 'Jawa. With the help. of these two words, they could abridge thousands of Slokas and hundreds of sentences and their beginning was shortened as well as to deficiency occured in understanding the meaning of the scripture." Three reasons-the system to learn the Śruta by heart, convenience by the script and the intention to write briefly, are probable to cause the abridgement of the text. It has undoubtly, caused no deficiency in the meaning, but it has marred the charm of the text. The difficulties of the reader have also increased. The Munis, having the whole Agama literature learnt by heart, can make out the antecedents and precedents referred to by the words Jawa' and 'Wannaga' but the class of Munis learning with. the help of the manuscripts cannot do so. The text, having the references of Jawa' and 'Wannaga', has not proved to be much beneficial to them. We, too have been experiencing this difficulty apparently. To solve this difficulty and bring back the beauty of the text Acarya Tulsi, our Vaćanä-head, desired that the abridved text be recompleted. We have accordingly, completed the abridged text in most places. To indicate that 'dot-marks' have been given. In the first and the second appendices, the tables to point out the places of completion in the 'Ayaro' end the 'Ayara-cüla" have been added. According to Bećara Das Joshi, the text-abridgement was done by Devardhigani Kamäśramana. He writes-"Devardhigani Kéamáśramana, while reducing the Agamas in writing, kept some important points in mind. Where ever he found similar readings he avoided the later one by using the words c.g. Jaha Uwawaie', 'Jaha Pannawanae' etc. to denote the omitted text, When some statement occured again and again in a work, he used the word "Jawa' and wrote the last word of it refraining from the repetition, e. g. 'Naga Kumārā Jawa wiharanti', 'Tena Kalena Jawa Parisa Niggaya' etc." 1. Jain Sahitya ka Vrihat Itihas, page 81. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The process of abridgement might have been started by Devar dhigani, but it developed in later period. In the specimens, available at present, the abridged text is not uniformal. A Sūtra has been abridged in one specimen but written in its full version in the other. The commentators have also mentioned it in many places. In the Aupapatik Sūtra, for example, these two passages, “Ayapāyāņi wā Jāwa Annayarāin wä" and 'Ayabandhanani wā Jāwa Annayarāin wä' are found. They were in the abridged form in the main specimens the Vțittikāra had, but their ful version too, was found in other specimens. The commentator himself has noted it! Many a time, the scribes, according to their own convenience did not write the preceding text again others followed them in the later specimens. SŪYAGADO We have adopted the text of the Sūtra Kpita depending not on one specimen only. It has been redeemed after the comparative study, based on the specimens used in the text-redemption, the Cūrni and the readings of the Vțitti, and their critical review as well. The system to write was little popular in ancient times. Almost all the scriptures were maintained traditionally learnt by heart. This is why the 'Ghoša-Suddhi' (correctness of pronounciation) was much stressed upon. This was a pious duty of the Ācārya to correct the seat of utterence of the disciples. The Daśāśrutaskandha Sutra says? ---to become 'Ghosa-Sudhi-Kārka' is one of the virtues of an Ācārya. Special arrangement was there to maintain the text and the meaning in the original form. The Ćhedasūtras throws full light on it. Eight kinds of the lñānālära have been enumerated'. Of them, the three Aláras are concerned with the said arrangement. They are 1, (a) Aupapatika Vritti, patra 177, (b) Pustakantare Samagramidam Sutradwayamastyeveti. 2. Dasasrutaskandha, Dasa 4. 3. Nisithabhasya, Gatha 8, part 1, page 6: Kale vinaye bahumano, uwadhane taha aninhawane, wanjana-atthatadubhac, atthawidho nanamayaro. Ibid, gatha 17, part 1, page 12: Sakkayamattabindu Annabhidhanena wa witam Attham, Wanjoti Jena Attham, wanjanamiti bhannate suttam. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 1. Vyanjana-To maintain the language, vowel-marks, nasal points and words of the text of Sūtra, as it is. 2. Artha --To maintain the purport (meaning) of the sutra as it is. 3. Vyanjana as well as artha-To maintain the Sutra and its meaning both in the original form. The Curņikära makes it clear with examples', 'Dhammoma ngalam mukkittham' is expressed in Prākļit language. To render this reading in Sanskrit “Dharmo Mangalamutkristam' as such is a dialectical sin of Vyanjana. In the same way, to utter 'Sawwam sāwwajjam Jogam paććakkhāami' as 'Sawwesāwajje joge paććakkhami' by changing its vowels is a diacritical sin of Vyanjana. likewise, to utter 'Namo arahantāṇani' as 'Namo arahantäna' omitting the therepotent point of nasal sound and also to pronounce 'Namo aramhantäņam' adding the point of nasal sound with 'ra' when it is not there, is a nasal-point-change sin of vyanjana. To bring in the synonyms, in piace of the original words of 'Dhammo mangalam mukkittham', such as “Puņım Kalläņa mukk osam' is also a different-word-sin of Vyanjana. The conclusion of all this account is to stress upon that the originality of language, vowel mark, point of nasal sound, word, word-number, and textorder must be maintained in all respects. Rules were laid down to expiate the sin against this arrangement. On changing the language, the vowelmark or the point of nasal sound one has to undergo the specified atonen.ent, On doing the Sütra-Pātha otherwise an expiation of four months followed. In the conclusion of the topic, the Cürnikära writes-A change of Sūtra causes a change of meaning, a change of meaning causes a change of 1. Nisithabhasya curni, Part I, page 12. Toid. 3. Nisithbhasya, Gatha 18, Curnjbhasya ), page 12. Suttabheya atthabheo, atthabheya caranabheyo, caranabheya amokkho. Mokkhabhawat dikkhadayo Kiriyabheda aphala bhawanti. Taha vanjanabhedo па kауаwwо. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49 conduct and the change of conduct makes the salvation impossible. In that case all the rites, such as Diksa etc. become futile. A change of Vyanjana, therefore, be not done, Likewise, a change of meaning also be not made. The meaning that is uncouth and not applicable be not carried out. On changing the meaning, an expiation for four months follows'. Similarly, on changing the Satra and its meaning together, both the aforesaid expiations fall on3. A deep thinking had taken place to maintain the originality of the Sūtras and their meaning even in the period of composition of the Agamas. In the present Sutra, it is clearly stated. A muni studying the work has been alerted that he in no way is set up a Sutra and its meaning differently or expound it otherwise. The Cürnikära annotates it thus. In no way a Sutra be done otherwise. The meaning and that meaning only be carried out which is consistant with its own principle. The Vrittikara writes"--A Sūtra be not added to intentionally or a Sutra or its meaning be not done otherwise. From the aforesaid account it is learnt that it was keenly endeavoured to maintain the Sutra and its meaning in its original form. As a result, it has been maintained also to some extent. We can, nevertheless, not say that it has not been changed. It has been done and the reasons for it are also there, e.g. 1. Forgetfulness 1. Nisithbhasya Curni, part 1, page 13. 2. Ibid. 3. Sutrakrita 1/14/26. No Suttamattha cakarcjja annam. 4. Sutrakrita Curni, page 296. Na Sutramanyat praddhesena karotyanyathawa. Jaha ranno bhattansino ujjawalaprasno namarthas tamapi nanyatha kuryat; Jaha 'Awantike Awantieke Yawanti tamtogo wipparmsanti'. Sutram sarwathaiwanyatha na Kartawyam, arthavikalpastu swasiddhantavinuddho aviruddah syat. 5, Suttrarkitavrtti, page 258. Na ca Sutramanyat Swamativikalpanatah swarparatrayi Kuritanyatha wa suttram todartha wa sansarattrayitrana sito jantunam na vidadhita. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. Change of script 3. Assimilation of the coinmentary with the text. 4. Intervention of time and place. When Silānkarsūri wrote his Vșitti on the "Sūtrakrita', he had its specimens and ancient commentary (Tika) both. In one place of the second Addhyayna of the second Srutāskandha, the reading was not similar to that of the specimens, and the reading, that was commented on, was not found consistant with that of any specimen. He, therefore, commented on the said passage honouring only one specimen. We have adopted the readings of the Cūrni in some places. In comparision to that of the specimens and the VỊitti they appear more relevant. In 2/6/45 the reading is ‘niho nisam'. It has been commented on in the Vțitti as 'ņiwo nisam'. We have adopted the reading of the Cūrni there? . We have discussed the changes in the text and their causes under the footnotes. It was keenly endeavourcd in the Vedic tradition also to maintain the originality of the text of the Vedas. But in their texts, too, there have been timely violations. Dr. Vißwabandhu writes__-"It is a fact accepted by all that great pains, which kuow no parallel in the world history of literature, were taken in this country to maintain the texts of the Vedic literature in their original and correct form by learning them by heart with great care and utmost reverence during the past five thousand ycars. Nevertheless, as the scholars, preceding to us, inicidently found here and there as we have largely seen during our incessant research work for the past forty years, these works, too, could not be saved from the effects of time bound damages and insufficient human hurlings. Had it becn mostly the other way, truly, it would be an incredible miracle." Continuing with the tradition of cramming and passing from one to the other age of script-change in the prolonged period. Some places of every work have deviated from their originality 1. Suttrakritavritti, page 79: That ca pravah sutradarsesu nanabbidhani Suttrabi drisyante, na ca tika sambadhckapyasmabhiradarsah samuphabdhot e kamadarsamangikrityasmabhi viwaranam kriyate. 2. See, Footnote on 2/6/45. 3. Akhilabharatiya praciya vidya Sammelan, Twentifourth gathering, Varanasi 1968, Mukhyadyaksiya speech, page, 8-9. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 51 THANAM A word has different forms in Präkrit, and these different forms are used, too, in the Agamas. Some scholars, engaged in the editing work of the Agamas, have stressed upon that the uniformity in the form of words should be brought up. We have not adopted this method of editing. Although accepting the sameness of the sound 'na' and 'na', only 'a' has been used in all the places, the principle to bring up uniformity in different forms everywhere has not been observed. In 3/373 two forms 'Sugati' and 'Suggati' are found; in 3/375 'Sogata', 'Sugata' and 'Suggata', three forms are found. We have adopted them as they are. The authors are free in their usages. As they are not the bondsmen of the rule of uniformity, to try to bring uniformity in the editing-work does not seem desirable. The Agamas contain the usages of different languages and syllable changes. In bringing up uniformity in them, the probability to forget the multiformity may arise. 'Wayenam' as well as 'Kamasa' both the forms are used. 'Andaya' as well as 'Andaga' for 'Andajâh' and 'Kammabhumiya' as well as 'Kammabhumiga' for 'Karmabhumijah' both the forms are formed. To keep up the form as found in a particular place is not a fault of editing. SAMAWÃO The text redemption of this Sutra is based on three specimens and the Vritti as well. In some places other works, too, have been used to redeem the text. In the specimens of the 'Prakirpa Samawaya' (Sütra 234) the reading 'Assasene' is not found. This is the name of the father of fourth Cakrawarti. In the absence of it, the arrangement of further names becomes inconsistent. In the Sangraha Gathas of the said Sutra, the name 'Padmottara' is in excess. It has been taken as a recension. The reading 'Assasene' is found in the Awalyaka Niryukti (399). Basing on it 'Assasene" has been adopted as the text-reading. In the Sangraha Gatha of the Prakirpa Samawäya (Sutra 230) BaldevaVasudeva's father's name are given. Basing on the Sthānanga (9/19) and the Awasyaka Niryukti the amendment has been carried out. The name of the third Baladeva-Vasudeva's father is 'Rudda', but the manuscript of the Vritti of Samawayanga mentions it as 'Soma' instead of 'Rudda'. In fact, 'Rudda' should follow Soma'. 1. See, Samawao, painnagasamawao, Sutra. 230, the first footnote, Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 In all the specimens of the Samawaya 30 (Sütra 1, gatha 26) it reads 'Sajjbayawayam'. The vrittikära, too, explains it as 'Swadhyayawadam". But it is not relevent as far as the meaning is concerned. The said 'gāthā' is found in the Daśişrutaskandha (Sütra 26) where the reading is "Sabbhāwawäyam' instead of 'Sajjhayawayam'. The Vrittikara of 'Dašāsrutaskandha' has given its Sanskrit form as 'Sadbhawa wadam'. On reviewing the meaning critically, this reading appears to be relevent1. 1, See, Samawao, Samawaya 30, Sutra. 1, the second footnote of Sutra 230, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Forward The Classification of the Agamas The most ancient part of the Jain literature is the Āgama. The Samawāyānga mentions two forms of the Āgama, such as, 1. Dwadasanga ganipitaka’ and 2. Caturadaśapūrwa?, In the Nandi, two divisions of the Śruta-Jyana (Agama) have been given. 1. Anga Pravişta and Angavāhya lhe accounts, found regarding the Adhyayanas of the Sadhus and Sadhwis (monks and nuns), pertain to the Angas and purwas, as 1. The readers of the eleven Angas beginning from the Sāmayika Sāmáiyamāiyāin ekkarasa-angāin ahijajai (Antagaça, Prathama Varga). This statement is found regarding Gautama, the disciple of lord Ariştanemi. Sāmāiyamáiyain ekkarasa angāin Ahijajai (Antāgada, Panćam Varga, Prathama Adhyayana). This statement relates to Padmavati, the disciple of lord Aristānemi. Sāmāiyamãiyāin ckkarasa-angăin (Antagada, Astama Varga, Prathama Adhyayana). This statement pertains to Kāli, the disciple of lord Mahavira. Sāmāiyamāiyain ekkarasa-angāin Ahijajai (Antagada Sasta Varga, 15th Adhyayana). This statement has been given regarding Atimuktakumara, the disciple of lord Mahavira, 2. The readers of the twelve Aogas The statement regarding Jālīkumāra, the disciple of lord Ariştanemi, is given as such Bārasangi (Antagada, Caturtha Varga, Prathama Adhyayana). 1. Samawayanga, Prakirnaka, Samawaya, Sutra. 88. 2. Ibid, Samawaya 14, Sutra. 2. 3. The Nandi, Sutra. 43. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. The readers of the fourteen Purwas Čauddasapuwwain ahijjai (Antagada, tritiya Varga, Navama Adhyayana). This is the statement found regarding Sumukhakumara the disciple of lord Aristanemi. 54 Samaiyamaiyain Čauddasapuwwain ahijjai (Antagada, triya Varga, Prathama Adhyayana). This statement is found regarding Aniyasakumāra, the disciple of lord Ariştanemi. There were three hundred and fifty Caturdaśa-pürw! munis of lord Pārśwa. There were three hundred éaturdașa- pürwi munis of lord Mahavira. The division, Anga-Pravista and Anga-Vahya, have not been given in the Samawayanga and Anuyogadwara. This division first have been made. in the Nandi. The later sthaviras composed the Anga-Vähya. Many angavahyas had been composed before the composition of the Nandi and they were done by the catûrdasa-pürwi or daša-pürwi sthaviras. They were, therefore, taken as solemn as the Agama and two divisions were made of it such as, 1. Anga-pravişta and 2. Anga-Vahya. This division is not found in the Anuyogdwära (sixth century of the Vira-Nirwana). This was first done in the Naudi (tenth century of the Vira-Nirwana) When the Nandi was composed, the Agama was classified threefold, 1. Parwa, 2. Anga-Pravista and 3. Anga-Vahya. What we have today is only Anga-Pravista and 'Anga-vahya'. The 'purwas' are extinct. Their extinction is a subject of delibration from the historical point of view. PURWA According to the Jaina tradition, the Purwa is the Aksaya-Kosa (in exhaustible lexicon) of the Śruta-Jyaña (word knowledge). All do not hold one and the same view about the meaning of the title and their composi tion. The ancient Adaryas hold that as they were composed before the 'Dwadasang they were given the title Purwa" But the modern, scholars 1. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 14. 2. Ibid, Sutra. 12. 3. Samawayanga vritti, Patra 101: Prathamam Purwam tasya Sarwa pravacnat purwam Kriyamanatwat. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ view that the ‘Pūrwa' was the Śruta- Rasi of the tradition of lord Pārswa and preceding to Lord Mahavira, it was, therefore called 'Purwa'. Whatever view of the two is accepted, the conclusion is the same that the Purwas' were composed before the 'Dwadaśāngi' or the 'Dwādaśangi' is a later composition than the 'Purwas". In the form the 'Dwādaśāngi' is now found, the 'Pūrwas' are assimilated. The twelfth Anga is 'Driştiwada'. One of its divisions is "Pūrwagata'. The fourteen 'Purwas' are included in it. The opinion that lord Mahāvira first composed the 'Purwagata Sruta', leads us to the conclusion that the forteen 'Purwas' and the twelfth Anga are one and the same. The 'Purwaśruta was very difficult to understand. The common people could not follow it. The Angas were composed for the benefit of less intelligent persons. Jinabhadra-gani Kšamāśramana says "The Dșiștiwāda contains all the word-knowledge (sabda-Jyaña). The eleven Angas, nevertheless, have been composed for the good of less intelligent people. The eleven Angas were studied only by those monks (Sadhus) who were not very intelligent. The intelligent munis studied the 'Pūrwas'. From the order of classification of the Agama, it is concluded that the eleven Angas are easier than Dţiştiwada or Purwas or have been in a different order from theirs. According to tbe Digambara tradition the Kewalis became extinct after 62 years of Vira-nirwāņa'. After that, for a hundred years only SrūtaKewalis (Caturdaśa-Pärwis) were found. Beyond that for one hundred and eightythree years only Daśapūrvīs were found. And, later to them for a period of two hundred and twenty years only the eleven-Angadharas were found.3 The discussion, given above, makes it quite clear that so long as the Ācāra etc. Angas were not composed, the Sruta-Rasî of lord Mahavira was called 'Caudaha Purwaś or 'Dțiştiwada'. When the eleven Acara 1. Nandi, Malayagiri vritti, Patra 240. Adye tu wyacaksate purwam purwagatasutrarthamarhan bhaste, Ganadhara api purwam purwagata Sutram Vira cayanti, Pascadaearadikam. Visesawasyaka Bhasya, Gatha 554. Ja-i-wi ya Bhutawa-e sawwassa waogayassa Nijjuhana Tahawi hu, dummehe pappa itthi oyaro ya. 3. Jayadhawala, Prastawapa, Page 49. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 etc. Angas were composed, the Dristiwāda was given in the form of the twelfth Anga. Though the two different accounts, such as, 'readers of the twelve Angas' and 'readers of the fourteen Purwas' are found, it cannot be said that the scholars in the fourteen Purwas were not scholars in the twelve Angas and vice-versa. Gautama Swami was called 'Dwādaśängavit. He was a *ćaturdaśa-purvī' as well as "Angadhara'. A 'śruta-kcwali' was somewhere called 'Dwadaśāngavit' and sometimes 'caturdaśa-pūrvi' as well. As the eleven Angas are taken from or a collection of the Purwas, a 'caturdasa-pūrvi' is, of course, a 'Dwādaśangi' also. As the fourteen Purwas are incorporated in the twelfth Anga, a 'Dwādaśāngavit' too. We, therefore, reach this conclusion that the Āgama had only two ancient classifications 1. the Fourteen Purwas and 2. the eleven Angas. The 'Dwādasangi' had no independent standing. This is the title given to the Purwas and the Angas jointly. Some modern scholars hold the Pūrwas, to be of the period of lord PärŚwa and the Angas of lord Mahāvira. But this view is not correct. The tradition of the Purwas and the Angas was prevelent at the time of lord Aristanemi and lord Pārswa too. That the Angas were composed for the use of less intelligent people has been told before. That the intelligence quotient of all the Munis at the time of lord Pārswa was equal is incredible. The intelligence quotients have always differed in each and every age. Considering from the psychological and practical view, we reach the conclusion that the necessity of the Angas prevailed in the order of lord PárŚwa too. To support this view that at the time of lord PärŚwa only the Purwas and not the Angas existed, no evidence is, thercfore, found. By common sense this fact is estabilished that the Purwas and the Angas were renovated according to the purport, language, style and necessity of the age in the order of lord Mahavíra. Fancy has, perhaps, played a main role to support the view that the Purwas were received traditionally from lord Pärswa and the Angas were composed in the tradition of Lord Mahāvīra. 3. Anga-Pravişta and Anga-Váhya It is heard by all that the gañadharas Gautama etc., composed the Pūrwas and the Angas at the time of lord Mahāvira. A simple question 1. See the beginning of the preface. 7 Ittaradhyavana 2317 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 57 arises if other Munis did not compose thc Agama works. There had been fourteen thousand desciples of lord Mahāvīra'. Of them seven hundred were 'Kewalīs' and four hundred 'Wādīs'. That they did not take part in the composition of the Āgamas does not seem credible. The Nandi says that the disciples of Lord Mahāvīra composed fourtcen thousand Prakirnakas'? besides the aforesaid 'Purwas' and 'Angas'. Nothing proves that the classification, such as 'Anga-Pravişta' and 'Aoga-Vābya' was done at that time. When the later Aćāryas compiled the works after the 'Nirwana' of lord Mabāvīra, the discussion was, perhaps, held to classify them under the Angamas or not and the question of their authenticity too, arose. After the discussion it was decided to classify the works, composed by the 'caturdasa-pūrvi' and the 'Dasa-pürvi' sthaviras, under the Agama but they were not considered authentic by themselves. Their authenticity depended on others. That they are consistent with the Dwādaśāngi was the touch-stone to give them the title of the Āgama. As their authenticity was dependent, the necessity was felt to keep them out of the class of the 'Anga Praviştà' and, in this content only, the 'AngaVabya' class of the Āgama took place. Jinabhadragani Kşmașramana ascertains the kinds of 'Anga-Pravista and 'Anga-Vahya' on three grounds, such as 1. That which is composed by a gañadhara. 2. That which is expounded by a Tirthankara on the query of a ganadhara. 3. That which is pertaining to the firm-eternal truths, and is perpetual and permanent; and that Sruta only is entitled as "Anga-Pravista'. Contrary to this 1. that Sruta which is composed by a Sthavira. temporary or suited to the times only is entitled as 'Anga-Vahya". The main ground to differenciate the Anga-Pravişta from the Anga 1. Samawayanga, Samawaya 14, Sutra 4. 2. Nandi, Sutra. 78. Coddaspa-i-onagasasahassani Bhagwa. Baddhamanassa, 3. Viscsavasyakabhasya, Gatha 552. Gapahara-therakatham wa, Aesa. Mukka-wagarana-O wa. Dhuva-cala visesawa, Anganamgesu Nanattam. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vähya is based on the difference of the person who has spoken it! The Agama delivered by Lord Mahavira and compiled by the ganadharas, is accepted as the basic Angas of the Śruta-Purușa. It is, therefore called the "Anga-Pravista,' According to Sarvárthsiddhi the speakers are of three kinds, 1. the Tirthankara, 2. the Sruta-Kewaii and 3. the Ārātiya?. The Āgamas Composed by the Ārātiya Aćāryas are regarded as 'Anga-Vähya'. According to Ācārya Akalanka, the Āgamas composed by the ArātiyaĀćārya reflect the meaning supported by the Angas'. They are, therefore, called the 'Anga-Vähyas.' The Anga-Vähya Agamas are as good as the Pratyanga or Upānga of the Śruta-purusa. ANGA The twelve Agamas incorporated in the Dwādaśãngi are called Angas. The word 'Anga' is found in the literature of Sanskrit and Prakrit both. In the Vedic literature the works assisting the study of Vedas are given the title of Abga' 'They are six 1. Siksa--The work that expounds the rules of utterence of the words. 2. Kalpa-The scripture that expounds the vedic rites and rituals in an order and agreement. 3. Vyakarana--The scripture that expounds the theories of morphology and meaning of the words. 4. Nirukta-The scripture that expounds etamology of the words. 5. Chandas - The scripture that expounds the theories of morpheme to recite the Mantras. 6. Jyotis--The scripture that expounds the theories to find correct time for the rites of Yajna-Yäga etc. The Vedas have been personified in the Vedic-literature. Accordingly the Sikşā' has been regarded as nose, the kalpa' as hands, the "Vyakarana' as mouth. the "Nirukta' as ears, the Chandas as feet and the Jyotis as eyes of the Veda-person. They are therefore, called the parts of the body of Vedas in the Pali-literature, too, the word 'Anga' has beenu sed. At one place the Buddha-Vaćanas' have been called 'Nawānga' and 'Dwadasānga' at the other. 1. Tatwartha-bhasya, 120. Waktri-viscsad dwaividhyam. 2. Sarvarthasiddhi. 1/20 Trayo waktaran - Sarvajna Tirthankarah, itaro wa Srutakewali Aratis asceti. 3. Tattwartha - Rajavaritika, 1/20. Aratiayacarya Kritangarthapratyasannarupamangavahyam. 4. Papipiyasiksa, 41, 12. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Nawanga 1. Sutta--The sermons of lord Buddha in prose. 2. Geyya-The mixed portion of prose and verse. 3. Vaiyyakarana-The works containing explanation. 4. Gatha-The works composed in verse. 5. Udana-The gistful and affectionate expressions delivered from the mouth of lord Buddha. $9 6. Itibuttaka-Small lectures beginning with the words, 'Lord Buddha said thus'. 7. Jataka-The stories of the former births of lord Buddha. 8. Abbbutadhamma-The work that explains the mysterious things or the superhuman powers born of the 'Yoga". 9. Vedalla-Those sermons which have written in the form of dialogues.'. Dwadasanga 1. The Sutra, 2, the Geyya, 3. the Vyakarane, 4. the Gatha, 5. the Udana, 6. the Awadana, 7. The Itivṛittäka, 8. The Niduna, 9. the Vaipalya 10. The Jataka, 11. the Upadesa-dharma and, 12. the Adbhuta-dharma. The Jainagama has been divided into twelve Angas 1. The Acara 2. The Sūtrakṛita 3. The Sthana 4. The Samawaya 5. The Bhagawati 6. The Jynätä Dharmekatha 7. the Upasakadasa 8. the Antakrita 9. the Anuttaropapätika 10. the Praśna-Vyakarana 11. the Vipäka and 12. the Dristiwada. The word 'Anga' has been used in the three chief Indian philosophical schools. The main works of the Vedic and Buddhist literature are the Vedas and the Pitakas respectively. Nowhere the word 'Anga' has been added to them. The main works in the Jain literature have been classified as the Gapipitaka. The Gapipitaka has the twelve Angas-Duwälasange ganipitage3 1. Saddharma Pundakrika Sutra, page 34. 2. Buddha Sanskrit Grantha 'Achisamayalankar' Ki tika, Page, 35. Sutram Geyam Vyakaranam, Gathoanavadanakam. Itibrittakam Nidanam, Vaipulayam ca Sajatakam. Upadesadbhutau dharman, Dwadasangamidam vacah. 3. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra 88. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The personification of "Sruta-Purusa' too, is found in the Jain-tradition. The twelve Agamas, Ācara etc., are like the parts of the 'Gruta Puruşa'. They are, therefore, called the twelve Angas. So the Dwādaśānga becomes the adjective of the Gaņipitaka and the Śruta-Purușa' both. AYĀRO The title This Agama is the first Anga of the 'Dwādaśāngi. As it contains the account of the conduct (Alära), the title 'AYĀRO' It has two Srutaskandhas-1. AYĀRO, 2. ĀYĀRAČULA The Contents The Samawâyānga and the Nandi give an account of the Āćārānga. According to that the present Sutra explains the Acara, Gocar. Vinava Vainavika (fruit of vinaya), (Utthitãsana, Nişaņāsana and Sayitäsana), Gamana, eamkramana, Dose of food etc.application of Yoga in self study ste language, Samiti, Gupti, Sayya, Upadhi, Bhakta-Päna (edibles and Udgama-Utthana, the purity of 'cşņā (motives) etc. the discernment of taking Suddhāśuddha, Vpita, Niyama, Tapas, Updhan etc. Akarya Umāswāti has expounded the topics of every Adhyayana in the Ācārāpga in brief That is given in the order as under :3 1. Sahajivakāya Y@tnã. 2. Renunciating the glory of the wordly off-springs. 3. Winning over of the Parişahas, such as cold-hot etc. 4. Vodaunted Samyaktwa. 5. Udvegas of the world, 6. The means of nullifying the 'Karmas' (deeds). 7. The endeavour to `Vaiyavritya'. 8. The way to penance. 1. Mularadhta 4/599, Vijayodaya : Srutam Purusah Mukhcaranadyangasthaniyatwadangasabdenocyate. 2. (a) Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 89. (b) Nandi, Sutra. 80, 3. Prasamarati Prakarana,114-117, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 61 9. Renunciation of passion for woman. 10. Rules to receive the aims. 11. Bed without woman, Creature, eunuch et. 12. Purity in movement. 13. Purity of language. 14. Method of begging cloth. 15. Method of begging bowls. 16. Purity of habit (Avagraha). 17. Purity of Place (Sthāna). 18. Purity of 'Visadya'. 19. Purity of "Vyutsarga'. 20 Renunciation of attachment to sound 21. Renunciation of attachment to form. 22. Giving up ‘Parakriya'. 23. Giving up Anyonya-kriya'. 24. Steadfastness to the Five Mahāvsitas. 25. Libration from 'Sarvasangas' (all associations). The Niryuktikāra has enumerated the topics of the nine Adhyayanas ol Brahmacarya as under : 1. Satya Parinna-Jiva Samyama. 2. Loga Vijaya-Knowledge of bondage and libration. 3. Siosanijja--Equanimity of pleasure and pain. 4. Sammatta–Right vision. 5. Loga-Sara-Renunciation of worthless and adoration of the Ratna trayi, worthy in the world. Acaranga Niryukti, Gatha 33-34 : Jiyasamjamo a logo jaha bajjhai jaba ya am pajabiyay vam, Suhadukkhatitikkhaviya samimattam logasaro ya. Nissangaya ya chatthe mohasamuttha parisahuwasagga, Nijjatam atthamac nawame ya jinena evamti. 2, Tatwartha Rajavarttika, 1/20. Acare carya-vidhanam sudhyastaka paniasamiti-triguptivikalpam kathyate, Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. Dhuya-non-attachment. 7. Mahaparinna-Enduring properly the Parisahas and Upsargas born of 'Moha'. 8. Vimokkha-Proper observanes of 'Niravana' (the final state). 9. Uvahanasuya-Explanation of the conduct observed by lord Maha vira1. 62 Acarya Akalanka bolds that the tota! matter of the Adaränga is concerning the 'Carya-Vidhana' (mode of behaviour and conduct). While Aparajit Suri opines that it is the ascertainment of the conduct of the 'Ratna-tray?". SÜYAGADO The Title This Agama, the second part of the Dwadasangi, is given the title as 'Suyagado. The Samawaya, the Nandi and the Anuyogadwär, all the three Agāmas have this title only for it. Bhadrawāhu-Swami, the Niryuktikära has given three titles of this Agama according to its tributes." 1. Sütagada-Sütakrita 2. Suttakada-Sütrakrita 3. Sayagada-Soćakrita Originally this Agama is 'Süta' (hails from) by lord Mahavira and was given the form of a work by ganadhara. This is, therefore, entitle as 'Sutakrita'. As the truth in it has been ascertained according to the 'Satra", it is 'Sutrakrita'. As the 'Sacana' of 'Swa' and 'Para' Samaya has been given in it, it is called 'Suda-krita." 1, Mularadhna, Aswasa 2, Sloka 130, vijayodaya: Ratnatrayacarana nirupanaparataya prathamabhangamacare sabdenocyate. 2. (a) Samawao, Paissagamawao, Sutra. 88. (b) Nandi, Sutra. 80. (c) Anuogadwarain, Sutra. 50. 3. Sutrakritanga-alryukti, Gatha 2: Sutagadam, suttakadam, suyagadam cewa gonna-in. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 63 Sūta, 'Sutta' and 'Sûya' are as a matter of fact, the Prakrit forms of *Sūtra' only. These different formations led to the imagination of the three attributive titles. Originally, all the Angas were delivered by lord Mahāvira and brought into a composed form by Ganadhara. Then, how can this Agama only be called "Sūtrakrita'? Similarly, the second title, too, is common to all the Angas. The third is the significant basis of the title of this "Āgama'. As the conduct has been ascertained in the context of a comparative prcception (Sütrnā) in this Agama, it is concerned with 'Sućana'. The Samawāya and the Nandi clearly state this Süyagade nam sasamayāsūhajjanti, Parasamaya Sühajjanti sasamaya. parasamaya suhajjanti.! What is preceptive is called a 'Sutra'. The background of this Agama mainly consists of preceptive element. Its title is. therefore, "Sūtrakṣita'. Another thought, which seems to touch the 'reality more closely, can be put forth regarding the title 'Sutrakrita'. The Driştiwäda is five fold-- 1. Parikarma 2. Sutra 3. Purwānuyoga 4. Pūrwägata 5. Calika According to Atarya Virasena the Sutra has an account of other philosophers. As this Agama was composed on that basis only, it was given the title 'Sūtrakrita. This meaning seems to be more logical than the other etomological meanings of the word 'Sutraksita'. The 'Suttagada' and the Suttanipata' of the Budhists seem to be identical in their titles. Anga and Anuyoga This Agama has the second place in the Dwādāśāngi. There are four kinds of Anuyoga--- 1. Čaranakaranānuooga. 2. Dharmakathānuyoga. 3. Ganitānuyoga. 4. Drawyānuyoga. 1. (a) Samawao, paissagasamawao, Sutra 90. (6) Nandi, Sutra. 82. 2. Kasayapa huda, Part 1, page 134. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 The Curņikāra holds that this Āgama is 'ćaranakaraṇānuyoga (treatise on conduct). Silänkasűri has classified it under Drawyānuyoga' (treatise on substances). According to him the Ācārānga is primarily a čaraņakaranayoga while 'Sūtrakritānga' is primarily a 'Drawyānuyoga", The Samawāya and the Nandi give an account of the 'Dwādaśängi." At the end of the account of the Angas, the lines read 'ewam carņakaranaparuwanayā'. Abhayadeva Súri connotes the meaning of 'carana' as Sramaņa-dharma' and of Karana' as 'Pinda-vićuddbi, Samiti etc.' The currikara has regarded the Kalikasrata as a 'caraṇakaranayoga' and the 'Driştiwäda' as a 'drawyanuyoga'.' The Dwadasangi primarily expounds the Driştiwāda, treatise on substances and secondarily the code of conduct. The Currikara legimately regards this Āgama primarily as a treatise on the code of conduct while the Vrittikāra lying stress upon its ascertainment of Dravya (substance), calls it Dravyašastra (a treatise on substance). Both of these classifications have a dialectical variation. THANAM The title This Agama is the third part of the Dwādaśāngi. It sets up the Jiva, Pudgala etc., in number-order. Hence the title , Thanam'. The Contents Swa-samaya (Achat-philosophy), Para-Samaya as well as swa-samaya and Para-samaya both have been set up in this Agama. The Jiya and the Ajīva, the Loka and the Aloka have been founded here. 5 One-ness of the Jiva and its sevarality, according to the views of the 'Sangraha Naya' and the "Vyavahāra Naya,' have been expounded 1. Sutrakritainga Curni, page 5. iha carananu-o-gena adhikaro. 2. Srirakritangaritti, page, 1. Tatracaranga carnakaranam pradhanyena Vyakhyatam, adhuna awasara yatam drawya pradhanyena sutrakritakhyam dwitiyamangam Vyakbyatumarabhyate. 3. Samawayangayritti, Patra 102. Caranam - Vratasramanadharma Samyamadyanekavidhan. Karanam-Pindavisuddhi Samityadyaneka vidham. Sutrakritanga CursiKaiyasuyam caranakarananuyogo isibhslottar ajjhayanani dhammanuyogo, Surpannattadi ganitanuyogo; ditthiwado dawwanujogotti. 5. Samawao, painnagasamawao, Sutra. 92 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 65 in it. According to the Sangraha Naya, the Jiva is one and the same far as the soul is concerned. From the view point of the 'vyavahāra-naya' each and every Jiva is parted with, i.e. it is divided into two parts according to the knowledge and appaerance, into three parts according to the 'Karma-letna' or 'Phrowge-utpāda' and 'Vināśa', into four parts because of its wandering in the four-fold motion; into five parts from the view point of Pariņāmikādi' five states; into six parts due to the accession to the six directions, such as the East, West, North, South, up-ward and down-ward at the time of transgression to other birth; into seven parts according to the seven kinds of 'Syādasti-Syádnāsti'; into eight parts according to the eight *Karmas'; into nine parts as it changes into the aine substances; and into ten parts from the view point of the *Prithivi-Kāyika', 'Jala Kāyika', 'Agni-Käyika', 'Wāyu-Kāyika', 'Pratyeka Vanaspati-Kāyika', 'Sadhārana Vanaspati-Káyika' species having two organs, species having three organs, species having four organs, and species having five organs. Likewise, this Agama gives an account of one-ness of "Pudgala' etc. and their various Paryāyas' (modifications) counting from two to ten. From the view of 'Paryāyas', one and the same element parts with into innumerable and unlimited parts, and, from the view point of the matter (Dravya), these innumerable parts conform into one and the same element. This exposition of conformity and deformity is well found in this Agama. Samawão The title The Agama is the fourth part of the 'Dwädaśāngi' having the title "Samawao'. The substances, Jiva-Ajiva etc., have been put into divisions or brought down properly in this Agama, therefore, the title “Samawão'. According to the Digamber literature, this Agama speaks of similarity of the Jivadi substances therfore, called the 'Samawão'. The 'Samawao' 1. Kasayapahuda, part 1, page 123. 2. Samawao-Vrithi, patra 1, Samit-Samyaka avetyadhikyena ayanamayah Paticchedo Jivajivadi-vividhapadartha Sarthasya yasaminnasan Samawayah Samawayanti wa, Samawasaranti Samuilanti nanawidha Atmadayo Bhawa Bhawa abhidheya.aya Yasminnasan Samawaya iti. 3. Gommatasara Jivakanda Jiyaprabodhni Tika, gatha 356. **Sam-Sangrahena Sadrisya-Samanyena Avayante joayante jivadipadartha dravya kalabhavan a sritya asmitnniti 'Samawayangam. Nandi, Sutra. 83 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 gives an aocount of the 'Dwādaśangi'. And, as it is the fourth part of the 'Dwadasangi'. it narrates the 'Samawao', too. The Nandi-Satra discusses the 'Dwadasangi in order. The table of contents of the 'Samawão' has been given in it as under: 1. The description of the Jiva-Ajīva, Loka-Aloka and Swa-Samaya as the well as Para-samaya. 2. The evolution of the number beginning from one to hundred. 3. The account of the Dwadasanga ganipitaka. According to the 'Samawāyānga' the table of contents of the 'Samawā-o' is as follows: 1. The description of Jiva-Ajīva, Loka-Aloka and swa-samaya as well as Para-samaya, 2. The evolution of the number beginning from one to hundred 3. The account of the 'Dwādaśānga-gani- pitaka'. 4. Ahāra 5. Uéchwāsa 6. Leśya 7. Äwasa 8. Upapata 9. Čyawana 10. Awagāka 11. Vedanã 12. Vidhāna 13. Upayoga 14. Yoga 15. Indriya (organs) 16. Kaşaya 17. Yoni 18. Kulakara 1. Se kim tam Samawac nam jiva samasijjanti, ajiva samaanjsa jti jivajiva samasij janti. Sasamae samasijjai, para-samaye Samasijjai, sasamaya para sama-e Samasijja-i. Loc sa masijiai, aloc samasijjai, lo-a-loe samasijjai, Sama Waenam ega-i-yanam eguttariyanam thanasaya-niwaddhiyanam bhawanam paruwana adhhawija-i duwalasa vihassa ya ganipidagssa pallawagge samasijja-i. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19. Tirathankara 20. Ganadhara 21. Cakrawarti 22. Baladeva-Vasudeva'. 67 A comparative study of both the tables of contents makes it clear. that the table of contents given in the Nandi is a brief one, and that of the 'Samawa-o' large. The volume of the Sutra, too, becomes short and long according to the tables of contents. That the 'ckottarika Vriddhi' (Increasing one by one) takes place upto hundred is mentioned in both the accounts. In either of them, there is no mention of the 'Anekottarika Vriddhi'. The Anekottarika Vriddhi has not at all been mentioned in the Nandi Čarni, Haribhadriyä Vritti and the Malaya Girlyavṛitti, all the three Abhayadeva Abhayadeva Süri has discuss the Anekottarika Vriddhi in his Vritti of Samawäyänga. According to him, the Ekottarika Vriddhi takes place upto hundred and beyond that the Anekottarika Vriddhi." It appears that the Vṛittikära has discussed it not on the account given in the "Samawäyänga' but on the text then available to him. On reviewing both the accounts, two questions arise 1. Is not the present Samawayanga different from the account of the Samawäyänga given in the Nandi ? 2. Is the present Samawäyänga is of the Vaćna by Devardhigani? If so, why then such a variation in both the accounts of the 'Samawayanga'? In reply to the first question, it can be said that 'Dwadasanngi' is the final content of the Samawäyänga-Sutra according to the account, relating to the Samawäyänga, given in the Nandi. Many a content has been expounded beyond the 'Dwadasangi' in the present Samawayanga. It is therefore, established that the present volume of the 'Samawayanga' is different from that of the account of the Samawäyänga given in the Nandi. 1. Samawa-o, pa-i-nnagasamawo, Sutra. 92. 2. Samawa-o Vritti, patra 105. 'ca sabdasya canyatra sambandhatdkottarika anekottarika ca, tatra satam yawalekottarika parata gnekottariketi, Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 Difficult it is to give an assertive answer to the second question. So much, nevertheless, can be said that there had been various Vacanás of the Agamas. This is why a mention of various Vaćanäs (Paritta Vāyaṇā) has been made while giving the account of each and every 'Anga'. Abhayadeva Suri gives a mention of the large (Brihat) Vaćana of the Samawayanga1. From it, this may be inferred that the Nandi gives an account of the Samawayánga relating to the short 'Vaćana." It is established from the Vritti written by him, that Abhayadeva Suri had with him various Vacanäs of this Sütra. There can be two likelihoods regarding the enlarged edition of the "Samawäyänga." 1. That this Sutra is based upon the Vaćana different from that of the Vaćana of Dewardhigani,' or 2. That the portions beyond the 'Dwadasangi' have been added to it after 'Devardhigani'. Had this Sūtra depended on some different 'Vaćana,' there would have been some tradition mentioned. This agelong traditional mention has been coming down that the Jyotis-Kanda is based upon the 'Mathurt Vaćana'. Had the present Samawayanga, too, been based on the Mäthuri Vacanã, there would have. been some traditional mention of it. The first likelihood lacking the probablity of its support, the second. likelihood gains the ground. But it too, is refuted by the Bhagwati, and the Sthänänga. The Bhagwati refers to the final part of the Samawayanga for the full account of Kulakar, Tirathankar etc. Likewise, the final part of the Samawayanga has been referred to for the full account of the BaldevaVasudeva by the Sthänänga also. It is, therefore, obvious that the appendix 1. (a) Samawan Vritti, Patra 58: Brihadvacanayamanantaroktamatisayadwayamcradhi yate. (b) Ibid, Patra 69: Brihadvacanayamidamanyadatisayadwayamadhiyate. 2. SamaWao Vritti, Patra 144 Vacanantaretu paryasana Kalpo tasramentyabhi hitam. 3. Bhagwati Satara 5; Uddesaka 5. 4. Sthananga, 9/19-20. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ was added in the time of Devardhigani only. It is strange that one and the same editor gave two different accounts in the Samawäyänga and the Nandi) of one and the same Āgama. There were two main Vācanās, the Māthuri and the Vallabhi. There were many other secondary Vācapās also. This is why there are many different readings. These different readings, probabily occured on adding the explanation or appendix portions. This can well be inferred that the later part of the Dwādasāngi in the Samawayānga is its appendix. The account of the appendix was added to the account of the Samawāyānga with the result that its table of contents swelled more than the table of the Samawāyānga found in the Nandi. There is a summary of eleven stenzas of the "Prajñāpna' in the appendix. It is a matter of investigation why they were added here? Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Agama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Āgamic literature bis intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualitics of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं पढमं ठाणं सू०१-२५६ पृ०:४८६-४६६ अस्थिवाय-पदं २, पइण्णग-पदं १७, पोग्गल-पदं ५५, अट्ठारसपाव-पदं ६१, अटारसपाववेरमण-पदं १०६, ओस प्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं १२७, चउवीसदंडग-पदं १४१, भव-अभवसिद्धि-पदं १६५, दिदि-पदं १७०, कण्ह-सुबक पक्खिय-पदं १८६, लेसा-पदं १६१, सिद्ध-पदं २१४, पोग्गल-पदं २३०, जंबुद्दीव-पदं २४८, महावीर-णिव्वाण-पदं २४६, देव-पदं २५०, णक्खत्त-पदं २५१, पोग्गल-पदं २५४ । बीअं ठाणं सू० १-४६५ प.५००-५३६ दुपओआर-पदं १, किरिया-पदं २, गरहा-पदं ३८, पच्चक्खाण-पदं ३६, विज्जा-चरण पदं ४०, आरंभ-परिगह-पदं ४१, सोच्चा-अभिसमेच्च-पदं ६३, कालचक्क-पदं ७४, उम्मायं-पदं ७५, दंड-पदं ७६, सण-पदं ७६, णाण-पदं ८६, धम्म-पदं १०७, संजम-पदं ११०, जीव-णिकाय-पदं १२३, दव-पदं १३८, जीव-णिकाय-पदं १३६, दब्व-पद १४४, जीव-णिकाय-पदं १४५, दव्व-पदं १५०, सरीर-पदं १५३, काय-पदं १६४, दिसादुगे करणिज्ज-पदं १६७, वेदणा-पदं १७०, गति-आगति-पदं १७३, दंडगमगणा-पदं १७७, आहोहि-णाण-दसण-पदं १६३, देसेण सव्वेण पदं २०१, सरोरपदं २०६, सह-पदं २१२, पोग्गल- पदं २२१, इंदिय-विसय-पदं २३४, आयार-पदं २३६, पडिमा-पदं २४३, सामाइय-पदं २४६, जम्म-मरण-पदं २५०, गन्भत्थ-पदं २५४, ठिति-पदं २५६, आउय-पदं २६२, कम्म-पदं २६५, खेत्त-पदं २६८, पव्वय-पदं २७२, गुहा-पदं २७६, कूड-पदं २८१, महादह-पदं २८७, महाणदी-पदं २६०, पवाय-दह-पदं २६४, महाणदी-पदं ३०१, कालचक्क-पदं ३०३, सलागापरिस-वंस-पदं ३०६, सलागा-पूरिस-पदं ३१२, कालाणभव-पदं ३१६, चंद-सर-पदं ३२१, णक्वत्त-पदं ३२३, णक्खतदेव-पदं ३२४, महग्गह-पदं ३२५, जंबुद्दीव-वेइआपदं ३२६, लवण-समुह-पदं ३२७, धायइसंड-पदं ३२६, पुक्खरवर-पदं ३४७, बेदिकापः ३५१. इंद-पदं ३५३, विमाण-पदं ३८५, देव-पदं ३८६, जीवाजीव-पदं ३८७, कम्म-पदं ३६३, अत्त-णिज्जाण-पदं ३९८, खय-उवसम-पदं ४०३, ओवमिय-काल-पदं ४०५, पाव-पदं ४०६, जीव-पदं ४०८, मरण-पदं ४११, लोग-पदं ४१७, बोधि-पदं ४२०, मोह-पदं ४२२, कम्म-पदं ४२४, मुच्छा -पदं ४३२, आराहणा-पदं ४३५, तित्थगर-चण्ण-पदं ४३८, पृथ्व-वत्थु-पदं ४४२, णखत्त-पदं ४४३, समुद्र-पदं ४४७, चक्कवट्टि-पदं ४४८, देवपदं ४४६, पावकम्म-पदं ४६१, पोग्गल-पदं ४६३ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं सू०१-५४२ पृ० ५४०-५६३ इंद-पदं १, विकुचणा-पदं ४, संचित-पदं ७, परियारणा-पदं , मेहुण-पदं १०, जोग-पद १३, करण-पदं १५, आउय-पगरण-पदं १७, गुत्ति-अ गुत्ति-पदं २१, दंड-पदं २४, गरहा-पदं २६, पच्चक्खाण-पदं २७, उपकार-पदं २८, पुरिसजात-पदं २६, मच्छ-पदं ३६, पक्खि-पदं ३६, परिसप्प-पदं ४२, इत्थी-पदं ४८, पुरिस-पदं ५१, णपुंसग-पदं ५४, तिरिक्रुजोणियपदं ५७, लेसा-पदं ५८, तारारूब-चलण-पदं ६६, देवविक्किया-पदं ७०, अंधयार-उज्जोयाइपदं ७२, दुप्पडियार-पदं ८७, संसार-वीईवयण-पदं ८८, कालचक्क-पदं ८६, अच्छिन्नपोग्गल-चलण-पदं ६३, उवधि-पदं ६४, परिग्गह-पदं ६५, पणिहाण-पदं ९६, जोणि-पदं १००, तणवणस्सइ-पदं १०४, तित्थ-पदं १०५, कालचक्क-पदं १०६, सलागा-पुरिस-वंसपदं ११७, सलागा-गुरिस-पदं ११६, आउय-पदं १२१, जोणि-ठिइ-पदं १२५, णरय-पद १२६, सम-पदं १३१, समुपदं १३३, उववाय-पदं १३५, विमाण-पद १३७, देव-पदं १३८, पण्णत्ति-पदं १३६ । लोग-पदं १४०, परिसा-पदं १४३, जाम-पदं १६१, वय-पदं १७३, बोधि-पदं १७६, मोह-पद १७८, पन्बज्जा-पदं १८०,णियंठ-पद १८४, सेहभूमि-पदं १८६, थेरभूमि-पदं १८७, गंताअगंता-पदं १८८, आगंता-अणागंता-पदं १६५, चिट्ठित्ता-अचिट्ठित्ता-पदं २०१, णिसिइत्ताअणिसिइत्ता-पदं २०७, हंता-अहंता-पदं २१३, छिदित्ता-अछिदित्ता-पदं २१६, बूइत्ता-अबुइत्तापदं २२५, भासित्ता-अभासित्ता-पदं २३१, दच्चा-अदच्चा-पदं २३७, भुजित्ता-अभंजित्ता-पदं २४३, ल भित्ता-अलभित्ता-पदं २४६, पिबित्ता-अपिवित्ता-पदं २५५, सुइत्ता-असुइत्ता-पदं २६१, जज्जित्ता-अज्जित्ता-पद' २६७, ज इत्ता-अजइत्ता-पदं २७३, पराजिणित्ता-अपराजिणित्ता-पदं २७६, सूर्ण ता-असूणेत्ता-पदं २८५, पासित्ता-अपासित्ता-पदं २६१, अग्घाइत्ता-अणग्याइत्ता-पदं २९७, आसाइत्ता-अणासाइत्ता-पदं ३०३, फासेत्ता-अफासेत्ता-पदं ३०६, गरहिय-पदं ३१५, पसत्थ-पदं ३१६, जीव-पदं ३१७, लोगठिता-पदं ३१६, दिसा-पदं ३२०, तस-थावर-पदं ३२६ अच्छेज्जादि-पदं ३२८, दुक्ख-पदं ३३६, आलोयणा-पदं ३३८, सुयधर-पदं ३४४, उपधि-पदं ३४५, आयरक्ख-पदं ३४८, नियइदत्ति-पदं ३४६, विसंभोग-पदं ३५०, अणण्णादिपदं ३५१, वयण-पदं ३५५, मण-पदं ३५७, वुट्टि-पदं ३५६, अहणोववण्ण-देवपदं ३६१, देवस्स मणदिइ-पद ३६३, विमाण-पदं ३६७, दिट्ठि-पदं ३७०, दुग्गति-सुगति-पदं ३७२, तव-पाणग-पदं ३७६, पिंडेसणा-पदं ३७६, ओमोयरियापदं ३८१. निग्गंथ-चरिया-पदं ३८३, सल्ल-पदं ३८५, तेउलेस्सा-पदं रह भिक्खपडिमा-पदं ३८७, कम्मभूमी-पदं ३६०, सण-पदं ३६२, पओग-पदं ३६४, ववसाय-पदं ३६५. अथजोणी-पदं ४००, पोग्गल-पदं ४०१, नरग-पदं ४०२, मिच्छत्त-पदं ४०३, धम्मपदं ४१०, उवक्कम-पदं ४११, तिवम्ग-पदं ४१६, पडिमा-पदं ४१६, काल-पदं ४२५, वयणपदं ४२६, णाणादीणं पण्णवणा-सम्म-पदं ४३०, उवघात-विसोहि-पदं ४३२, आराहणा-पद ४३४, संकिलेस-असं किलेस-पदं ४३८, अइक्कम-आदि पदं ४४०, पायच्छित्त-पदं ४४. अकम्मभूमि-पदं ४४६, वास-पदं ४५१, वासहरपब्वय-पदं ४५३, महादह-पदं ४५५, नदी-पटं Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ४५७, धाइयसंड-पुक्खरवर-पदं ४६३, भूकंप-पदं ४६४, देवकिन्विसिय-पदं ४६६, देवठिति-पदं ४६७, पायच्छित्त-पदं ४७०, पव्वज्जादि-अजोग-पदं ४७४, अवायणिज्ज-वायणिज्ज-पदं ४७६ दुसण्णप्प-सुसण्णप्प-पदं ४७८, मंडलिय-पन्वय-पदं ४८०, महतीमहालय-पदं ४८१, कप्पठितिपदं ४८२, सरीर-पदं ४८३, पडिगीय-पदं ४८८, अंग-पदं ४६४, मणोहर-पदं ४६६, पोग्गलपडिघात-पदं ४६८, चक्खू-पदं ४६६, अभिसमागम-पदं ५००, इडि-पदं ५०१, गारव-पदं ५०५, करण-पदं ५०६, सुयक्खायधम्म-पदं ५०७, जाणु-अजाण-पदं ५०८, अंत-पदं ५११, जिण-पदं ५१२, लेसा-पदं ५१५, मरण-पदं ५१६, असदहंतस्स पराभव-पदं ५२३, सहहंतस्स विजयपदं ५२४, पुढवी-वलय-पदं ५२५, विग्गह-गइ-पदं ५२६, खीणमोह-पदं ५२७, णखत-पद ५२८, तित्थकर-पदं ५३०, गेविज्ज-बिमाण-पदं ५३६, पावकम्म-पदं ५४०, पोग्गल-पदं ५४१,. चउत्थं ठाणं सू०१-६६२ पृ०५६४-६८० अंतकिरिया-पदं १, उन्नत-पणत-पदं २, उज्जू-वंक-पदं १२, भासा-पदं २२, सुद्ध-असूद्ध-पदं २४, सुत-पदं ३४, सच्च-असच्च-पदं ३५, सुचि-असुचि-पदं ४५, कोरव-पदं ५५, भिक्खागपदं ५६, तणवणस्सइ-पदं ५७, अहणोववण्ण-णेरइय-पदं ५८, संधाडि-पद ५६, झाण-पदं ६०, देवाणं पदमेरा-पदं ७३, संवास-पदं ७४, कसाय-पदं ७५, कम्मपगडि-पदं ६२, पडिमा-पदं १६, अत्थिकाय-पदं १६, आम-पक्क-पदं १०१, सच्च-मोस-पदं १०२, पणिधाण-पदं १०४, आवातसंवास-पदं १०७, वज्ज-पदं १०८, लोगोपचार-विणय-पद १११, सज्झाय-पदं ११६, लोगपालपदं १२१, देव-पदं १२३, पमाण-पदं १२५, महत्तरिया-पदं १२६, देवठिति-पदं १२८, संसारपदं १३०, दिद्रिवाय-पदं १३१, पायच्छित्त-पदं १३२, काल-पदं १३४, पोपगल-परिणाम-पदं १३५, चाउज्जाम-पदं १३६, दुग्गति-सुगति-पदं १३८, कम्मस-पदं १४२, हासुप्पत्ति-पदं १४५, अन्तर-पदं १४६, भयग पदं १४७, पडिसेवी-पदं १४८, अम्गमाहिसि-पदं १४६, विगति-पदं १८३, गुत्त-अगुत्त-पदं १८६, ओगाहणा-पदं १८८, पृण्णत्ति-पदं १८६, पडिसलीण-अपडिसंलीण-पदं १६०, दीण-अदीम-पदं १६४, अज्ज-अणज्ज-पदं २११, जाति-पदं २२६, कल-पदं २३३, बल-पदं २३५, हस्थि-पदं २३६, विकहा-पदं २४१, कहा- पदं २४६, किसदढ-पदं २५१, अतिसेस-नाण-दसण-पदं २५०, सज्झाय-पदं २५६, लोगठिति पदं २५६, परिस-भेद-पदं २६०, आय-पर-पदं २६१, गरहा-पदं २६४, अलमथु-पदं २६५, उज्जु-वंक-पदं २६६, खेम-अखेम-पदं २६७, वाम-दाहिण-पदं २६६, णिग्गंथ-णिग्गंथी-पदं २७४, तमुक्कायपदं २७५, दोस-पदं २७६, जय-पराजय-पदं २८०, माया-पदं २८२, माण-पदं २८३, लोभपदं २८४, संसार-पदं २८५, आहार-पदं २८८, कम्मावत्था-पदं २६०, संखा-पदं ३००, कूडपदं ३०३, काल-चक्क पदं ३०४, अकम्मभूमि-पदं ३०७, महाविदेह-पदं ३०८, पव्वय-पदं ३०६, सलागा-पूरिस-पदं ३१५, मंदर-पव्वय-पद ३१६, धाय इसंड-पुखरवर-पदं ३१६, दारपदं ३२०, अंतरदीव-पदं ३२१, महापायाल-पदं ३२६, आवास-पव्वय-पदं ३३०, जोइस-पदं ३३२, दार-पदं ३३५, धायइसंड-पुक्खरवर-पदं ३३६, गंदीसरवरदीव-पदं ३३८, सच्च-पदं ३४६, आजीविय-तव-पदं ३५०, कोह-पदं ३५४, भाव-पदं ३५५, रुत-रूव-पदं ३५६, Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्तिय-अपत्तिय-पदं ३५७, उपकार-पदं ३६१, आसास-पदं ३६२, उदित-अत्थमित-पदं ३६३, जूम्म-पदं ३६४, सूर-पदं ३६७, उच्चणीय-पदं ३६८, लेसा-पदं ३६६, जुत्त-अजुत्त-पदं.३७१, सारहि-पदं ३७६, जुत्त-अजुत्त-पद ३८०, पंथ-उप्पह-पदं ३८८, रूव-सील-पदं ३८६, जातिपदं ३६०, कुल-पदं ३९६, बल-पदं ४०१, रूव-पदं ४०५, सुय-पदं ४०८, सील-पदं ४१०, आयरिय-पदं ४११, वेयावच्च-पदं ४१२, अट्ठ-माण-पदं ४१४, धम्म-पदं ४१६, आयरिय-पदं ४२२, अंतेवासि-पदं ४२४, महाकम्म अप्पकम्म-निरगंथ-पदं ४२६, महाकम्म-अप्पकम्मनिग्गंथी-पदं ४२७, महाकम्म-अप्पकम्म-समणोवासग-पदं ४२८, महाकम्म-अप्पकम्म-समणोवासिथा-पदं ४२६, समशोवासग-पदं ४३०, अहुणोववरण-देव-पदं ४३३, अंधयार-उज्जोयाइपदं ४३५, दुहसेज्जा-पदं ४५०, सुहसेज्जा-पदं ४५१, अवायणिज्ज-वायणिज्ज-पदं ४५२. आयपर-पदं ४५४, दुग्गत-सुग्गत-पदं ४५५, तम-जोति-पदं ४६०, परिणात-अपरिण्णात-पदं ४६३. इहत्थ-परत्य-पदं ४६६, हाणि-बूडिढ-पदं ४६७, आइण्ण-खलुक-पदं ४६८, जातिपदं ४७०, कुल पदं ४७४, बल-पदं ४७७, रूव-पदं ४७६, सीह-सियाल-पदं ४८०, सम-पदं ४८१, बिसरीर-पदं ४८३, सत्त-पदं ४८६, पडिमा-पदं ४८७, सरीर-पदं ४६१, फूड-पदं ४६३, तुल्ल-पदं ४६५, गो सुपस्स-पदं ४६६, इंदियत्थ-पदं ४६७, अलोग-अगमण-पदं ४६८, णात-पदं ४६६, हेउ-पदं ५०४, संखाण-पदं ५०५, अंधगार-उज्जोय-पदं ५०६, पसप्पग-पदं ५०६, आहार-पदं ५१०, आसीविस-पदं ५१४, वाहि-तिगिच्छा-पदं ५१५, वणकर-पदं ५१५ अंतोबाहि-पदं ५२१, सेयंस-पास-पदं ५२३, आघवण-पदं ५२७, रुक्खविगुव्वणा-पदं ५२६, वादि-समोसरण-पदं ५३०, मेह-पदं ५३३, अम्म-पियर-पदं ५३८, राय-पद ५३६, मेह-पदं ५४०, आयरिय-पदं ५४१, भिक्खाग-पदं ५४४, गोल-पदं ५४५, पत्त पदं ५४८, कड-पदं ५४६, तिरिय-पदं ५५०, भिक्खाग-पदं ५५३, णिक्कट्ठ-अणिक्कट्ट-पदं ५५४, बुध-अबुध-पदं ५५६, अणुकंपग-पदं ५५८, संवास-पदं ५५६, अवदस-पदं ५६६, पव्वज्जा-पदं ५७१, सण्णा-पदं ५७८, काम-पदं ५८३, उत्ताण-गंभीर-पदं ५८४, तरग-पदं ५८८, पूण्ण-तुच्छ-पदं ५९०, चरित-पदं ५९५, महु-विस-पदं ५६६, उवसग्ग-पदं ५६७, कम्म-पदं ६०२, संघ-पदं ६०५, बुद्धि-पदं ६०६, मइ-पदं ६०७, जीव-पदं ६०८, मित्त-अमित्त-पदं ६१०, मुत्त-अमुत्तपदं ६१२, गति-आगति-पदं ६१४, संजम-असंजम-पदं ६१६, किरिया-पदं ६१८, गुण-पदं ६२१, सरीर-पदं ६२३, धम्म-दार-पदं ६२७, आउ-बंध-पदं ६२८, वज्ज-नद्रआइ-पदं ६३२. विमाण-पदं ६३८, देव-पदं ६३६, गब्भ-पदं ६४०, पुन्ववत्थ-पदं ६४३, कव्व-पदं ६४४, समग्घात-पदं ६४५, चोदसपुब्वि-पदं ६४७, वादि-पदं ६४८, कप्प-पदं ६४६, समद्द-पदं ६५२, कसाय-पदं ६५३, नक्खत्त-पदं ६५४, पाव-कम्म-पदं ६५७, पोम्पल-पदं ६५६ । पंचमं ठाणं सू०१-२४० पृ० ६८१-७१६ महन्वय-अणव्वय-पदं १, इंदिय-विसय-पदं ३, आसव-संवर-पदं १६, पडिमा-पदं १८, थावर-कायपदं १६, अइसेस-नाण-दसण-पदं २१, सरीर-पदं २३, तित्थ भेद-पदं ३२, अन्भणुग्णात-पदं ३४, महानिज्जर-पदं ४४, विसंभोग-पदं ४६, पारचित-पदं ४७, बुग्गहट्ठाण-पदं ४८, अवुग्गहट्ठाण Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ पदं ४६, णिसिज्जा-पदं ५०, अज्जवटाण-पदं ५१, जोइसिय-पदं ५२, देव-पदं ५३, परिचारणापदं ५४, अग्गमहिसी-पदं ५५, अणिय-अणियाहिवइ-पदं ५७, देवठिति-पदं ६८, पडिहा-पदं ७०, आजीव-पद ७१, राय-चिंध-पदं ७२, उदिन्न-परिस्स होवसग्ग-पदं ७३, हेउ-पदं ७५, अहेउ-पदं ७९, अणुत्तर-पदं ८३, पंच कल्लाण-पदं ८४, महाणदी- उत्तरण-पदं १८, पढमपाउसपदं ६६, वासावास-पदं १००, अणुग्घातिय-पदं १०१, रायते उर-पवेस-पदं १०२, गब्भधरणपदं १०३, णिय-गिरगंथी-एगओवास-पदं १०७, आसव-संवर-पदं १०६, दंड-पदं १११, किरिया-पदं ११२, परिण्णा-पदं १२३, ववहार-पदं १२४, सुत्त-जागर-पदं १२५, रयादाणवमण-पदं १२८, दत्ति-पदं १३०, उवघात-विसोहि-पदं १३१, दुल्लभ-सुलभबोहि-पदं १३३, पडिसलीण-अपडिसलीण-पदं १३५, संवर-असंघर-पदं १३७, संजम-असं जम-पदं १३६, तणवगसइ-पदं १४६, आयारपद १४७, आयारपक-प-पद १०८, आरोवणा-पदं १४६, वक्खारपव्वय-पदं १५०, महादह-पदं १५४, वक्वारपवय-पदं १५६, धायइसंड-पुक्खरवर-पदं १५७, समयक्खेत्त-पद-१५८, ओगाहणा-पदं १५६, विबोध-पदं १६४, निग्गंथी-अवलंबण-पदं १६५, आयरिय-उवमाय-अइसेस-पदं १६६, आयरिय-उवज्झाय-गणावक्कमण-पदं १६७, इड्रिमंत-पद १६८, अस्थिकाय-पदं १६६, गइ-पदं १७५, इंदियत्थ-पदं १७६, मुंड-पदं १७७, बायर-पदं १७८, अचित्त-वाउकाय-पदं १८३, णियंठ-पदं १८४, उपधि-पदं १६०, णिम्साटाण-पदं १६२, णिहि-पदं १६३, सोच-पदं १६४, छउमत्थ-केवलि-पदं १९५, महाणिरय-पदं १६६, महाविमाणपदं १९७, सत्त-पदं १६८, भिक्खाग-पदं १६६, वणीमग-पदं २००, अचेल-पदं २०१, उक्कल-पदं २०२, समिनी-पदं २०३, जीव-गई २०४, गति-आगति-पदं २०५, जीव-पदं २०८, जोणि-ठिइ-पदं २०६, संबच्छर-पदं २१०, जीवस्स णिज्जाणमग्ग-पदं २१४, छयण-पदं २१५, आणंतरिय-पदं २१६, अणंत-पदं २१७, णाण-पदं २१८, पच्चवखाण-पदं २२१, पडिक्कमण-पदं २२२, सुत्त-पदं २२३, कप्प-पदं २२५, बंध-पदं २२८, महाणदी-पदं २३०, तित्थगर-पदं २३४, सभा-पदं २३५, शक्खत-पदं २३७, पाव-कम्म-पदं २३८, पोग्गलपदं २३६ । छटुं ठाणं सू० १-१३२ पृ०७१७-७३२ गण-धारण-पदं १, निग्गंथी-अवलंबण-पदं २, साहम्मियस्स अंतकम्म-पदं ३, छउमत्थ-केवलिपदं ४, असंभव-पदं ५, जीव-पदं ६, गति-आगति-पदं , जीव-पदं ११, तणवणस्सइ-पदं १२, णो-सुलभ-पदं १३, इदियत्थ-पदं १४, संवर-असंवर-पदं १५, सात-असात-पदं १७, पायच्छित्त-पदं १६, मणुस्स-पदं २०, कालचक्क-पदं २३, संघयण-पदं ३०, संठाण-पदं ३१, अणत्तव-अत्तव-पदं ३२, आरिय-पदं ३४, लोगदिति-पदं ३६, दिसा-पदं ३७, आहार-पदं ४१, उम्माय-पदं-४३, पमाय-पदं ४४, पडिलेहणा-पदं ४५, लेसा-पदं ४७, अग्गमहिसीपदं ५०, देवठिति-पदं ५२, महत्तरिया-पदं ५३, अग्गम हिसी-पदं ५५, सामाणिय-पदं ५६, मइ-पदं ६१, तब-पदं ६५, विवाद-पदं ६७, खुडुपाण-पदं ६८, गोयरचरिया-पद ६६. महाणिरय-पदं ७०, विमाण-पत्थड-पदं ७२, नवखत्त-पदं ७३, इतिहास-पदं ७६, संजम Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंजम पदं ८१, खेत्त - पव्वय-पदं ८३, महादह-पदं ८८, दो-पदं = धायइसंड- पुवखरवरपदं ३, उउ-पदं ६५, ओमरत-पदं १६, अतिरक्त पदं २७, अत्योगह- प ६५, ओहिणाणपदं ६६, अवयण-पदं १००, कप्पस्स- पत्थार-पदं १०१, पलिमंथु पदं १०२, कप्पठिति-पदं १०३, महावीरस्स - भक्त-पदं १०४, विभाण-पदं १०७, देव-पदं १०८, भोयण- परिणामपदं १०६, विसपरिणाम-पदं ११०, पट्ट- पद १११ विरहिय-पदं ११२, आउयबंध-पदं ११६, परभवियाय-पदं ११६, भाव-पदं १२४, पडिक्कमण-पदं १२५, नक्खत्त-पदं १२६, पावकम्म पदं १२८, पोम्गल - पदं १२६ । सत्तमं ठाणं ६५ सू० १-१५५ पृ० ७३३-७५५ गणावक्कण-पदं १, विभंगणाण-पदं २, जोणिसंग्रह-पदं ३, गति - आगति-पदं ४, संगहट्ठाण - पद ६, असंगहाण- पदं ७, पडिमा पदं 5, आयारचूला -पद ११, पडिमा पदं १३, अहेलोगट्ठति पद १४, वायरवाउकाइय-पदं २५, संठाणं पदं २६, भयठाणं पदं २७, छउमत्य-पदं २८, केवलि - पदं २६, गोत्त-पदं ३०, पय-पदं ३८, सरमंडल - पदं ३६, कायकिलेसपदं ४६, खेत्त पव्वय-नदी- पदं ५०, कुलगर - पदं ६१, चक्कवट्टिरयण-पदं ६७, दुस्समा - लक्खण-पदं ६६, सुसमा लक्खण-पदं ७०, जीव- पदं ७१, आउभेद-पदं ७२, जीव- पदं ७३, वंभवत्त - पदं ७४, मल्लीपव्वज्जा-पदं ७५, दंसण-पदं ७६, छउमत्थ - केवलि-पदं ७७, महावीर -पदं ७६, विकहा- पदं ८०, आयरिय उवज्झाय अइसेस पदं ८१, संजम असंजमपदं ८२, आरंभ-पदं ८४, जोणि-ठिइ-पदं ६०, ठिति-पदं ६१, अग्गमहिसी पदं ६४, देव-पदं १७, दीसरवर-पदं ११०, सेढी पदं ११२, अणिय अणियाहिवइ-पदं ११३ वयणविकप्पपदं १२६, विषय-पदं १३०, समुग्धात पदं १३८, पवयणनिव्हग पदं १४०, अणुभावपदं १४३, गक्खत्त-पदं १४५, कूड पदं १५०, कुलकोडि-पदं १५२, पावकम्म-पदं १५३, पोग्गल -पदं १५४ | अमं ठाणं सू० १-१२८ पृ० ७५६-७७६ एगल्लविहार-पडिया-पदं १, जोणिसगह पदं २, गति आगति-पदं ३, कम्म-बंध- पदं ५, आलोयणा-पदं, संदर-असंवर-पदं ११ फास-पदं १३, लोगट्टिति-पदं १४, गणिसंपया - पदं १५, महाणिहि पदं १६, समिति-पदं १७, आलोयणा-पदं १८, पायच्छित्त-पदं २०, मट्ठाण - पदं २१, अकिरियाचादिपदं २२, महानिमित्त - पदं २३ वयणविभत्ति-पदं २४, छउमत्थ- केवलिपदं २५, आउवेद पद २६, अग्ग महिसी पदं २७, महग्गह-पदं ३१, तणवणस्स इ-पदं ३२, संजमअसंजम पद ३३, सुहुम-पदं ३५, भरहचक्कवट्टि पदं ३६, पास-गण-पदं ३८, दंसण-पदं ३८, अमिय-पदं ३६, अरिनेमिपदं ४०, महावीर-पदं ४१, आहार पदं ४२, कण्हराइपदं ४३, मज्झपदेस-पदं ४८, महापउम पदं ५२, कण्ह- अग्गमहिसी पदं ५३, पुब्व-वत्थू-पदं ५४, गति पदं ५५, दीवसमुद्द-पदं ५६, काकणिरयण-पद ६१, मागध-जोयण-पदं ६२, जंबूदीव - पद ६३, बायझंड- पदं ८६, पुक्खरवर-पदं ८६, कूड- पदं ९१, जगति-पदं ६२, कूड पदं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ६३ महत्तरिया-पदं २६, कप्प - पदं १०१, पडिमा पदं १०४, जीव-पदं १०५, संजम पदं १०७, पुढवि-पदं १०८, अभुद्वेतव्व-पदं १११, विमाण-पदं ११२, वादि-पद ११३, केवलिस मुग्धातपदं ११४, अणुत्तरोववाइय-पदं ११५, वाणमंतर-पदं ११६, जोइस पदं ११८, दार पदं १२०, बंधठिति पदं १२२, कुलकोडि- पदं १२५, पावकम्म- पदं १२६, पोग्गल-पदं १२७ । नवमं ठाणं स १-७३ पृ० ७७७-७६४ विसंभोग-पदं १, बंभचेरअज्झयण-पदं २, बंभचेरगुति-पदं ३, बंभचेरअगुत्ति-पदं ४, तित्थगरपदं ५, सम्भावपयत्य-पदं ६, जीव-पदं ७, गति आगति-पदं ८, जीव-पदं १०, ओगाहणापदं ११, संसार-पदं १२, रोगुप्पति-पदं १३, दरिसणावरणिज्ज-पदं १४, जोइस पदं १५, मच्छ-पदं १८, वलदेव-वासुदेव-पदं १६, महाणिहि पदं २१, विगति-पदं २३, बोंदि-पद २४, पुण्ण-पदं २५, पावायतण-पदं २६, पावासुयपसग पदं २७, उणिय पदं २८, मण-पदं २६, भिक्खापदं ३०, देव-पदं ३१, आउपरिणाम पदं ४०, पडिमा पदं ४१, पायच्छित्त-पदं ४२, कूड- पदं ४३, पास-पदं ५६, तित्थगरणाम निव्वत्तण-पदं ६०, भावितित्थगर - पदं ६१. महापउम पदं ६२, णक्खत्त-पदं ६३, बिमाण-पदं ६४ कुलगर-पदं ६५, तित्थगर- पदं ६६. दीव - पदं ६७, महग्गह-पदं ६८, कम्मपदं ६६, कुलकोडि-पदं ७०, पावकम्मपदं ७२. पोग्गल-पदं ७३ | दसमं ठाणं सू० १-१७८ पृ० ७६५-८२३ लोगट्टिति-पदं १, इंदियत्थ-पदं २, अच्छिन्न-पोग्गल - चलण-पदं ६, कोधुप्पत्ति-पदं ७, संजमअसंजम-पदं संवर-असंवर-पदं १०, अहमंत पदं १२, समाधि-असमाधि-पदं १३, पव्वज्जा-पदं १५, समणधम्मपदं १६, वेयावच्च पदं १७, परिणाम-पदं १५, असम्झाइयपदं २०, संजम-असंजम - पदं २२, सुहुम-पदं २४, महानदी -पदं २५, रायहाणि - पदं २७, राय-पदं २८, मंदर - पदं २६, दिसा-पदं ३०, लवणसमुद्द-पदं ३२, पायाल -पदं ३४, पव्वयपदं ३६, खेत्त-पदं ३६, पव्वय-पदं ४०, दवियाणुओग-पदं ४६, उप्पातपव्वय-पदं ४७, ओगाहणा-पदं ६२, तित्थगर-पदं ६५, अनंत-पदं ६६, पुव्ववस्थु-पदं ६७, पडिसेवणा-पदं ६६, आलोयणा-पदं ७०, पायच्छित पदं ७३, मिच्छत ७४, तित्थगर-पदं ७५, वासुदेव-पदं ७८, तित्थगर - पदं ७९, वासुदेव-पदं ८०, भवणवीस पदं ८१, सोक्ख पदं ८३, उवघात विसोहिपदं ८४, संकिलेस असंकिलेस - पदं ८६, बल-पदं ८८ भासा-पदं =६, दिट्टिवाय-पदं ६२, सत्य-पदं ६३, दोस-पदं ६४, विसेस-पदं ६५, सुद्धवायाणुओग-पदं ६६, दाण ६७, गति-पदं वेयणा-पदं १०८, छउमत्थ - केवलि-पदं ८, मुंड- पदं ६६, संखाण-पदं १००, सामायारी पदं १०२ महावीर सुमिण-पदं १०३. रुचिपदं १०४, सण्णा पदं १०५, १०६, दसा - पदं ११०, कालचक्क पदं १२१, अनंतर परंपर- उबवण्णादि-पदं १२३ णरय-पदं १२४, ठिति-पदं १२५, भाविभद्दत्त-पदं १३३, आसंसप्पओग-पदं १३४, धम्म-पदं १३५, थेर-पदं १३६, पुतपदं १३७, अणुत्तर-पदं १३८, कुरा- पदं १३६, दुस्समा लक्खण-पदं १४०, सुसमा लक्खण-पदं Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ १४१, रुख-पदं १४२, कुलगर-पदं १४३, वक्खार-पव्वय-पदं १४५, करप-पदं १४८, पडिमा-पदं १५१, जीव-पदं १५२, सताउय-दसा-पदं १५४, तणवणस्सइ-पदं १५५, सेढि-पदं १५६, गेविज्जग-पदं १५८, तेयसा-भासकरण-पदं १५६, अच्छेरग-पदं १६०, कंड-पदं १६१, उवह-पढ १६४, णक्खत्त-पदं १६८, णाणविद्धिकर-पदं १७०, कुल कोडि-पदं १७१, पाककम्म-पद १७३, पोग्गल-पदं १७४ । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत- निर्देशिका ये दोनों बिन्दु पूर्त-पाठ के द्योतक हैं। पूर्त-पाठ के प्रारंभ में भरा बिन्दु [] और उसके समापन में रिक्त विन्दु [ ° ] रखा गया है। देखें – पृष्ठ १४ सू० १४० 1 [?] कोष्ठकवर्ती पाठ के आगे प्रश्न [?] आदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें - पृ० ४०४ सू० २ यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें — .. "" पृ० ६ ० २६ ॥ क्रास [X] पाठ न होने का सूचक है। देखें-- पृ० ४ ० ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली बिन्दु [0] अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें - पृ० ४ टिप्पणी १२, २ । 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूर्तिस्थल का निर्देश है । देखें - पृ० ४६९ टिप्पण ३ तथा पृ० ४६५ टिप्पण ४ । 'एव', 'जहा' 'तहेव' आदि के टिप्पण में उनकी पूर्तिस्थल का निर्देश है । देखें-- पृ० ४९६, सू० १६०, १८४ तथा अ, क, ख, ग, घ, च, छ । देखें – संपादकीय में 'प्रतिपरिचय' शीर्षक स्थल । क्वचित् प्रयुक्तादर्श | क्व सं०पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है । देखें - पृ० ४ टिप्पण ३ । वृत्ति का सूचक है । देखें -- पृ० ४ टिप्पण ५ । वृपा वृत्ति सम्मत पाठान्तर । देखें- पृ० ४ टिप्पण १० । दो० दीपिका सम्मत पाठान्तर । देखें-- पृ० २५६ टिप्पण व्या०वि० व्याकरण विमर्श | देखें - पृ० २६० टिप्पण ३ । पू० पूर्ण पाठार्थं द्रष्टव्यम् । देखें-- पृ० ५५४ टिप्पण ६ । पूर्णिका सूचक है। देखें-- पृ० ४० टिप्पण ५ । चू० चू०पी० चूर्णि सम्मत पाठान्तर । देखें- पृ० ४ टिप्पण १० । पद, विशेष गाथा तथा विशेष सूक्तियों को गहरे टाइप में दिया गया है। देखें-- आयारो । अणुओगदाराणि ओववाइयं चंदपण्णत्ती जंबूद्वीवपण्णत्ती X 0 वृ अ० ओ० चंद जं ठाणं 이 दसा० दसासुयक्खंधो नि० निसीहज्भयणं प० पण्ण ० पण्णवणा भ० भगवई राय रायपसेणइयं स० सू० पइण्णगसमवाओ समवाओ सूयगडो Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ़मं ठाणं १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवता एवमक्खायंअस्थिवाय-पदं २. एगे आया। ३. एगे दंडे ।। ४. एगा किरिया ॥ ५. एगे लोए॥ ६. एगे अलोए । ७. एगे धम्मे ।। ८. एग अहम्मे ।। ६. एगे बंधे। १०. एगे मोक्खे ॥ ११. एगे पुण्णे ॥ १२. एगे पावे। १३. एगे आसवे ॥ १४. एगे संवरे।। १५. एगा वेयणा ॥ १६. एगा णिज्जरा।। पइण्णग-पदं १७. एगे जीवे पाडिक्कएणं' सरीरएणं ।। १८. एगा जीवाणं अपरिआइत्ता विगुव्वणा ॥ १. पडिक्खएणं (वृपा)। ४८६ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं १६. एगे मणे ॥ २०. एगा वई॥ २१. एगे काय-वायामे ॥ २२. एगा उप्पा॥ २३. एगा वियती ॥ २४. एगा वियच्चा।। २५. एगा गती ।। २६. एगा आगती॥ २७. एगे च यणे ॥ २८. एगे उववाए॥ २६. एमा तक्का ।। ३०. एगा सण्णा ॥ ३१. एगा मण्णा ॥ ३२. एगा विण्णू ॥ ३३. एगा वेयणा॥ ३४. एगे छेयणे ॥ ३५. एगे भेयणे।। ३६. एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं ।। ३७. एगे संसुद्धे अहाभूए पत्ते ।। ३८. 'एगे दुक्खे' जीवाणं एगभूए । ३६. एगा अहम्मपडिमा, 'जं से आया परिकिलेसति ॥ ४०. एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए। ४१. एगे मणे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४२. एगा वई देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४३. एगे काय-वायामे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४४. एगे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसकार'-परक्कमे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४५. एगे णाणे ।। ४६. एगे दंसणे ॥ of १. एगहक्खे (वृपा)। २. जंसि (वृपा)। ३. पज्जवज्जाए (ख)। ४. बती (क, ख, ग)। ५. पुरिसक्कार (क)। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं ठाणं ४७. एगे चरिते ॥ ४८. एगे समए ॥ ४६. एगे पसे ।। ५०. एगे परमाणू ॥ ५१. एगा सिद्धी । ५२. एगे सिद्धे ॥ ५३. एगे परिणिव्वाणे ॥ ५४. एगे परिणिव्व ॥ पोग्गल-पदं ५५. एगे सद्दे ॥ ५६. एगे रूवे || ५७. एगे गंधे || ५८. एगे रसे ॥ ५६. एगे फासे ।। ६०. एगे सुब्भिसद्दे । ६१. एग दुब्भिस || ६२. एग सुरूवे ।। ६३. एगे दुरूवे ।। ६४. एगे दीहे ।। ६५. एगे हस्से' ।। ६६. एगे वट्टे ।। ६७. एगे तसे ॥ ६८. एगे चउरसे ॥ ६६. एगे पिहुले । ७०. एगे परिमंडले || ७१. एगे किन्हे ॥ ७२. एगे णीले || ७३. एगे लोहिए || ७४. एगे हालिद्दे ॥ ७५. एगे सुक्किल्ले' | ७६. एगे सुब्भिगंधे || १. ० निव्वुडे (क, ग ) । २. रहस्से (क, ग ) ! ३. सुक्किले (क, ग) । ४६१ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ ठाणं ७७. एगे दुब्भिगंधे ॥ ७८. एगे तित्ते ।। ७६. एगे कडुए। ८०. एगे कसाए । ८१. एगे अंबिले ॥ ८२. एगे महुरे॥ ८३. एगे कक्खड़े॥ ८४. “एगे मउए ॥ ८५. एगे गरुए।। ८६. एगे लहुए। ८७. एगे सीते ॥ ८८. एगे उसिणे ॥ ८६. एगे णिद्धे ॥ ६०. एगे° लुक्खे ॥ अट्ठारसपाव-पदं ६१. एगे पाणातिवाए। ६२. 'एगे मुसावाए॥ १३. एगे अदिण्णादाणे ।। ६४. एगे मेहुणे ॥ ६५. एगे परिग्गहे ॥ ६६. एगे कोहे'। ६७. 'एगे माणे॥ १८. एगा माया० ॥ ६६. एगे लोभे ॥ १००. एगे पेज्जे॥ १०१. एगे दोसे ।। १०२. 'एगे कलहे ॥ १०३. एगे अब्भक्खाणे॥ १०४. एगे पेसुण्णे ° ॥ १. कक्कडे (क, ग); सं० पा०-कक्खडे जाव लुक्खे। २. सं० पा०-पागातिावए जाव एगे। ६. सं० पा० -कोहे जाव एगे। ४. सं० पा०-दोसे जाव एगे। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं ठाणं १०५. एगे परपरिवाए || १०६. एगा अरतिरती ॥ १०७. एगे मायामोसे || १०८. एगे मिच्छादंसणसल्ले | अट्ठारसपाव- वेरमण-पदं १०६. एगे पाणाइवाय- वेरमणे' || ११०. एगे मुसावाय - वेरमणे ॥ १११. एगे अदिण्णादाण - वेरमणे || ११२. एगे मेहुण - बेरमणे || ११३. एगे परिग्गह- वेरमणे || ११४. एगे कोह - विवेगे ॥ ११५. "एगे माण - विवेगे ॥ ११६. एगे माया - विवेगे ॥ ११७. एगे लोभ - विवेगे || ११८. एगे पेज्ज - विवेगे ॥ ११६. एगे दोस - विवेगे || १२०. एगे कलह - विवेगे ॥ १२१. एगे अब्भक्खाण- विवेगे || १२२. एगे पेसुण्ण - विवेगे || १२३. एगे परपरिवाय-विवेगे || १२४. एगे अरतिरति-विवेगे || १२५. एगे मायामोस - विवेगे ॥ १२६. एगे मिच्छादंसणसल्ल - विवेगे || ० ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं १२७. एगा ओसप्पिणी || १२८. एगा सुसम सुसमा * ॥ १२६. "एगा सुसमा ॥ १३०. एगा सुसम - दसमा || १. सं० परिग्गहवेरमणे । २. कोव (क) पा० - पाणाश्वायवेरमणे जाय ४६३ ३. सं० पा०- - कोहविवेगे जाव मिच्छादंसण सल्ल । ४. सं० पा० सुसमसुसमा जाव एगा। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ ठाणं १३१. एगा दूसम-सुसमा ।। १३२. एगा दुसमा° । १३३. एगा दूसम-दूसमा ॥ १३४. एगा उस्सप्पिणी ।। १३५. एगा दुस्सम-दुस्समा'। १३६. “एगा दुस्समा ।। १३७. एगा दुस्सम-सुसमा । १३८. एगा सुसम-दुस्समा ।। १३६. एगा सुसमा ° || १४०. एगा सुसम-सुसमा ॥ चउवीसदंडग-पदं १४१. एगा णेरइयाणं वगणा !! १४२. एगा असुरकुमाराणं वग्गणा' । १४३. 'एगा णागकुमाराणं वग्गणा ॥ १४४. एगा सुवण्णकुमाराणं वग्गणा ॥ १४५. एगा विज्जुकुमाराणं वग्गणा ।। १४६. एगा अम्गिकुमाराणं वग्गणा ।। १४७. एगा दीवकुमाराणं वग्गणा ।। १४८. एगा उदहिकूमाराणं वग्गणा ।। १४६. एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा ! १५०. एगा वायुकुमाराणं वग्गणा ।। १५१. एगा थणियकुमाराणं वगणा ।। १५२. एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा ॥ १५३. एगा आउकाइयाणं वग्गणा ।। १५४. एगा तेउकाइयाणं वग्गणा ॥ १५५. एगा वाउकाइयाणं वग्गणा ।। १५६. एगा वणस्सइकाइयाणं वग्गणा ।। १५७. एगा बेइंदियाणं वग्गणा ॥ १५८. एगा तेइंदियाणं वग्गणा ॥ १५६. एगा चरिदियाणं वग्गणा ॥ -- १. सं०.पा.--दुस्समदुस्समा जाव एगा। २. सं० पा०--असुरकूमाराणं वग्गणा चवीस दंडओ जाव एगा। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं ठाणं १६०. एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा ।। १६१. एगा मणुस्साणं वग्गणा ॥ १६२. एगा वाणमंतराणं वगणा ॥ १६३. एगा जोइसियाणं वग्गणा ।। १६४. एगा वेमाणियाणं वग्गणा ॥ भव-अभव-सिद्धिय-पदं १६५. एगा भवसिद्धियाणं' वग्गणा ।। १६६. एगा अभवसिद्धियाणं वग्गणा ॥ १६७. ागा भवसिद्धियाणं रइयाणं वग्गणा ।। १६८. एगा अभवसिद्धियाणं णरइयाणं वग्गणा ।। १६६. एवं जाव एगा भवसिद्धियाण वेमाणियाणं वग्गणा, एगा अभवसिद्धियाणं वेमाणियाणं वगणा ।। दिट्ठि-पदं १७०. एगा सम्मद्दिवियाणं' वग्गणा ।। १७१. एगा मिच्छद्दिट्ठियाण वग्गणा ।। १७२. एगा सम्मामिच्छद्दि ट्ठियाणं वग्गणा ।। १७३. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं वग्गणा ॥ १७४. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणंर णेइयाणं वग्गणा ।। १७५. एगा सम्मामिच्छद्दिट्टियाणं णेरइयाणं वग्गणा ।। १७६. एवं जाव थणियकुमाराणं वग्गणा ॥ १७७. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं पुढविक्काइयाणं वग्गणा ।। १७८. एवं जाव" वणस्सइकाइयाणं ॥ १७६. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं बेइंदियाणं वग्गणा ।। १८०. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं बेइंदियाणं वग्गणा ॥ १८१. "एगा सम्मद्दिट्ठियाणं तेइंदियाणं वग्गणा ॥ १८२. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं तेइंदियाणं वग्गणा ॥ १८३. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं चाउरिदियाणं वग्गणा ।। १,२,३. सिद्धीयाणं (क, ख)। ८. सम्म (क, ग)। ४. ठा० १३१४२-१६३ ! ६. ठा० १११४२-१५०। ५,६. दिट्टीयाणं (क, ख, ग)। १०. ठा० १११५३-१५५ । ७. सम्ममिच्छदिट्ठीयाणं (क); °दिट्ठीयाणं ११. सं० पा०—एवं तेइंदियाणं वि चरिंदियाणं (ख, ग)। वि। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ ठाणं १८४. एगा मिच्छद्दिटियागं चरिदियाणं वग्गणा ॥ १८५. सेसा जहा' ण रइया जाब एगा सम्मामिच्छद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं वग्गणा ॥ कण्ह-सुक्क-पक्खिय-पदं १८६. एगा कण्हपक्खियाणं वग्गणा ॥ १८७. एगा सुक्कपक्खियाणं वग्गणा ।। १८८. एगा कण्हपविखयाणं णेरइयाणं वग्गणा ।। १८६. एगा सुक्कपक्खियाणं णेरइयाणं वग्गणा । १६०. एवं-चउवीसदंडओ भाणियव्यो। लेसा-पदं १६१. एगा कण्हलेस्साणं वग्गणा ॥ १६२. एगाणीललेसाणं वग्गणा ।। १९३. "एगा काउलेसाणं वग्गणा ।। १६४. एगा तेउलेसाणं वग्गणा ।। १६५. एगा पम्हलेसाणं वग्गणा ।। १६६. एगा ° सुक्कलेसाणं वग्गणा ।। १६७. एगा कण्हलेसाणं णेरइयाणं वगणा ।। १६८. "एगा णीललेसाणं णेरइयाणं वग्गणा ।। १९. एगा० काउलेसाणं णेरइयाणं वग्गणा ॥ २००. एवं-- जस्स जइ लेसाओ --भवणवइ-वाणमंतर-पुढवि-आउ-वणस्सइकाइयाणं च चत्तारि लेसाओ, तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-च उरिदियाणं तिण्णि लेसाओ, पंचिदियतिरिक्व जोणियाणं मणुस्साणं छल्लेस्साओ, जोतिसियाणं एगा तेउलेसा, वेमाणियाणं तिणि उरिमलेसाओ। २०१. एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं वगणा ।। २०२. एगा कण्हलेसाणं अभवसिद्धियाणं वग्गणा ॥ २०३. एवं-सुवि लेसासु दो दो पयाणि भाणियवाणि ।। २०४. एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा ।। २०५. एगा कण्हलेसाणं अभवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा ॥ १. ठा० १११६०-१६४ । २. ठा० १११७३-१७५ । ३. ठा० १११४२-१६४ । ४. सं० पा० –एवं जाव सुक्कलेसाणं । ५. सं० पा०--एवं जाव काउलेसाग । ६. ठा० १६१६-१६६। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम ठाणं ४६७ २०६. एवं जस्स जति लेसाओ तस्स ततियाओ भाणियठवाओ जाव' वेमाणियाणं ॥ २०७. एगा कण्हलेसाणं सम्मद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। २०८. एगा कण्हलेसाणं मिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। २०६. एगा कण्हलेसाणं सम्मामिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। २१०. एवं-छसुवि लेसासु जाववेमाणियाणं 'जेसि जइ दिट्ठीओ।। २११. एगा कण्हलेसाणं काहपक्खियाणं वग्गणा ।। २१२. एगा कण्हलेसाणं सुक्कपक्खियाणं वग्गणा ।। २१३. जाव' वेमाणियाणं । जस्स जति लेसाओ एए अट्र, चउवीसदंडया ।। सिद्ध-पदं २१४. एगा तित्थसिद्धाणं वग्गणा । २१५. एगा अतित्थसिद्धाणं वग्गणा ।। २१६. “एगा तित्थगरसिद्धाणं वग्गणा ! २१७. एगा अतित्थगरसिद्धाणं वग्गणा ।। २१८. एगा सयंबुद्धसिद्धाणं वग्गणा ।। २१६. एगा पत्तेयबुद्धसिद्धाणं वग्गणा ।। २२०. एगा बुद्ध बोहियसिद्धाणं वग्गणा ।। २२१. एगा इत्थीलिंगसिद्धाणं वग्गणा ॥ २२२. एगा पुरिसलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२३. एगा णपुंसकलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२४. एगा सलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२५. एगा अण्णलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२६. एगा गिहिलिंगसिद्धाणं वग्गणा ॥ २२७. एगा एक्कासिद्धाणं वग्गणा ।। २२८. एगा अणिक्कसिद्धाणं वग्गणा ।। २२६. एगा अपढमसमयसिद्धाणं वग्गणा, एवं जाव अणंतसमयसिद्धाणं वग्गणा ।। १. ठा० ११२००1 २. तत्तियाओ (क)। ३. ठा० १११४२-१६३ ४. ठा० १११४१-१६३ । ५. जेसि-जेस (क); जेमि जट्रिीओ (ख); पू०-ठा० १११७३-१८५ । ६. ठा० १२१४१-१६३ । ७. ठा० ११२०० । ८. सं० पा०—एवं जाव एगा। ६. पढमसमय ० (ख, वृपा)। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ पोग्गल-पदं २३०. एगा परमाणुपोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा अनंत एसियाणं खंधाणं' वग्गणा || २३१. एगा एगपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जपएसोगाढाणं पोग्लाणं वग्गणा ॥ २३२. एगा एगसमयठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जसमयठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा ।। २३३. एगा एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एगा अनंतगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा || २३४. एवं वण्णा गंधा रसा फासा भाणियव्वा जाव' एगा अनंत गुणलुक्खाणं पोग्गलाणं वग्गणा ॥ २३५. एगा जहणपएसियाणं खंधाणं वग्गणा || २३६. एगा उक्कस्सप एसियाणं' संधाणं वग्गणा || २३७. एगा अजहण्णुक्कस्सपएसियाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २३८. "एगा जहण्णोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा ।। २३६. एगा उक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४०. एगा अजहष्णुक्को सोगा हणगाणं खंधाणं वग्गणा || २४१. एगा जहण्णठितियाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४२. एगा उक्कस्सठितियाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४३. एगा अजहष्णुक्को सठितियाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४४. एगा जहण्णगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा || २४५. एगा उक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४६. एगा अजहष्णुवकस्स गुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४७. एवं--वण्ण-गंध-रस- फासाणं वग्गणा भाणियव्वा जाव एगा अजहष्णुक्कस्सगुणक्खाणं पोग्लाणं [ खंधाणं ? ] वग्गणा ॥ ठाण जंबुद्दीव-पदं २४८. एगे जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं' 'सव्वभंतराए सभ्वखुड्डाए, वट्टे तेल्लापूय १. पोरगाला (क, ख, ग ) २. ठा० ११७२ ८६ । ३. उक्कोस्स ० ( ख ); उक्कोस ° ( ग ) । ४. स० पा० एवं जहण्णोमाहणगाणं अजहष्णुक्कस्स गुणकालगाणं । ५. ठा० ११७२ ८६ । ६. सं० पा० - सव्वदीवसमुद्दाणं जाव अर्द्धगुलगं Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं ठाणं ४६६ संठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावोसे जोयणसए तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई° अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेण।। महावीर-णिव्वाण-पदं २४६. एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसाए तित्थगराणं ___ चरमतित्थयरे' सिद्धे बुद्धे मुत्ते' अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ देव-पदं २५०. अणुत्तरोववाइया णं देवा' 'एग रयणि" उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता । णक्खत्त-पदं २५१. अद्दाणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ॥ २५२. चित्ताणक्खत्ते एगवारे पण्णत्ते ।। २५३. सातिणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। पोग्गल-पदं २५४. एगपदेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णता ।। २५५. "एगसमय ठितिया' पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ २५६. एगगुणकालगा' पोरगला अणंता पण्णत्ता जाव' एगगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ १. चरिम ° (क, ग)। २. सं० पा०--मुत्ते जाव सव्वदुक्ख ° । ३. देवा णं (क, ख, ग)। ४. एगा रतणि (ख)। ५. सं० पा०–एवमेगसमय ठितिया। ६. ठितीया (क, ख, ग)। ७. °कालगाणं (ख)। ८. ठा० १७२-८६ । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुपओआर-पदं १. किरियापदं २. ३. ४. ५. ६. ७. बोअं ठाणं पदमो उद्देसो 'जदत्थि णं" लोगे तं सव्वं दुपओआरं, तं जहा - जीवच्चेव, अजीवच्चेव । 'तसच्चेव, थावरच्चेव" । सजोणियच्चेव, अजोणियच्चेव । साउयच्चेव, अणाउयच्चेव । सइदियच्चेव, अणिदियच्चेव । सवेयगा चेव, अवेयगा चेव । सरुवी चेव, अरूवी चेव । सपोग्गला चेव, अपोग्गला चेव । संसारसमावण्णगा चेव, असंसारसमावण्णगा चेव । सासया चेव, असासया चेव । आगासे चेव, णोआगासे चेव । धम्मे चेव, अधम्मे चेव । बंधे चेव, मोक्खे चेव । पुण्णे चैव, पावे चेव । आसवे चेव, संवरे चेव । बेयणा चेव, णिज्जरा चेव ॥ दो करियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - जीवकिरिया चेव, अजीवकिरिया चेव ।। जीवकिरिया दुविहा पण्णत्ता, जहा --- सम्मत्तकिरिया चेव, मिच्छत्तकिरिया चेव !! attaffरया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- इरियावहिया चेव, संपराइगा चेव ॥ दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- काइया चेव, आहिगरणिया' चैव ॥ काया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - अणुवरयकायकिरिया चेव, दुपउत्तकायकिरिया चेव || आहिरणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संजोयणाधिकरणिया चेव, वित्तणाधिकरणिया चेव १. जर्दास्थि च णं (क. वृपा ) ; जदत्थि णं च ( ग ) । २. दुपडोयारं (क, ख, ग, वृपा) । ३. तसे चैव थावरे चैव (क्व) | ४. अणिदिएच्चेव (क, ग ) । ५. अहिंग (ग) ६. दुप्प ० ( क्व ) 1 ० ७. अहिकर° (क); आहिकर ( ग ) । ५०० o Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५०१ ८. दो किरियाओ पण्णताओ तं जहा—पाओसिया चेव, पारियावणिया चेव ॥ ६. पाओसिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–जीवपाओसिया चेव, ___ अजीवपाओसिया चेव ।। १०. पारियावणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहत्थपारियावणिया चेव, परहत्थपारियावणिया चेव।। ११. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—पाणातिवायकिरिया चेव, अपच्चक्खाण किरिया चेव ।। १२. पाणातिवायकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहत्थपाणातिवायकिरिया चेव, परहत्थपाणातिवायकिरिया चेव ॥ १३. अपच्चक्खाणकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवअपच्चक्खाणकिरिया चेव, अजीवअपच्चक्खाणकिरिया चेव ॥ १४. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–आरंभिया चेव, पारिग्गहिया चेव । १५. आरंभिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–जीवआरंभिया चेव, अजीव आरंभिया चेव ।। १६. पारिग्गहिया किरिया दुविहा पणत्ता, तं जहा–जीवपारिग्गहिया चेव, अजीवपारिग्गहिया चेव ।। १७. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--मायावत्तिया' चेव, मिच्छादसणवत्तिया चेव। १८. मायावत्तिया' किरिया दुविहा पण्णता, तं जहा—आयभाववंकणता चेव, पर भाववंकणता चेव ।। १६. मिच्छादसणवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-ऊणाइरियमिच्छादसण वत्तिया चेव, तव्वइरित्तमिच्छादसणवत्तिया चेव ।। २०. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-दिट्ठिया चेव, पुट्टिया चेव ।। २१. दिट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवदिट्ठिया चेव, अजीवदिट्ठिया चेव ।। २२. "पुट्टिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहाजीवपुट्ठिया चेव, अजीवपुट्ठिया चव ॥ २३. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–पाडुच्चिया चेव, सामंतोवणिवाइया चेव ।। १. सं० पा०–एवं पारिग्गहिया वि। २. मायवत्तिया (क, ग)। ३. मायवत्तिया (क, ग)। ४. ऊणायरिय ° (क, ग); ऊणाइरित्त (क्व) । ५. सं० पा०-एवं पुट्रियादि । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ ठाणं २४. पाडुच्चिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- जीवपाडुच्चिया चेव, अजीवपाडुच्चिया चेव ॥ २५. सामंतोवणिवाइया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- जीवसामंतोवणिवाइया चेव, अजीव सामंतोवणिवाइया चेव ° ॥ २६. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- साहत्थिया चेव, णेसत्थिया चेव ॥ २७. साहित्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवसाहत्थिया चेव अजीव - साहित्थिया चेव || २८. सत्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवणेसत्थिया चेव, अजीवसत्थिया चेव ॥ ३०. २६. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आणवणिया चेव, वेयारणिया चेव ॥ आणवणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- जीवआणवणिया चेव, अजीवआणवणिया चेव ॥ ३१. वेयारणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीववेयारणिया चेव, अजीववेयारणिया चैव ॥ ३२. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- अणाभोगवत्तिया चेव, अणवकखवत्तिया चेव || ३३. अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - अणाउत्तआइयणता चेव, अण उत्तपमज्जगता चेव ॥ ३४. अणवकखवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आयसरी रअणवकखवत्तिया चेव, परसरीरअणवकखवत्तिया चेव ॥ ३५. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा --- पेज्जवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव || ३६. पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- मायावत्तिया चेव, लोभवत्तिया चेव ॥ ३७. दोसवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा – कोहे चेव, माणे चेव ॥ गरहा-पदं ३८. दुविहा गरिहा पण्णत्ता, तं जहा - माणसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति । अहवा - गरहा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - दीहं वेगे अद्धं गरहति, रहस्सं वेगे अद्धं गरहति ॥ १. सं० पा० एवं सामंतोवणिवाइयावि । २. सं० पा० - एवं सत्थियावि । ३. वेयारणीया (क, ख ) ; अणाणुवणिता ( ग ) । ४. सं० पा०--‍ ५. -- जहेव सत्थियाओ । ० आयाणता ( क ) 1 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) पच्चक्खाण-पदं ३६. दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चक्खाति। अहवा-पच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दीहं वेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्सं वेगे अद्धं पच्चक्खाति ।। विज्जाचरण-पदं ४०. दोहि ठाणेहि संपण्णे अणगारे अणादीयं अगवयग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसार __ कतारं वीतिवएज्जा, तं जहा-विज्जाए चेव चरणेण चेव ।। आरंभ-परिग्गह-पदं ४१. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, तं ___ जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ४२. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं बोधि बुज्झज्जा, तं जहा–आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४३. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा. तं जहा आरंभे चेव, परिग्गहे वेव ।। ४५. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा--- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ४६. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४७. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभ चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४८. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ४६. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा--- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। १. अपरियादितित्ता (क, ग); अपरियाइत्ता (वृपा)। २. अपरियाइत्ता (क, ग)। ३. सं० पा०–एवं गो केवलं बंभचेरवासमा वसेज्जा"ओहिणाणं मणपज्जवणाणं केवलजाणं। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ ठाणं ५०. दो ठाणाई अपरियाणत्ता आया णो केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा--आरंभे चेव परिग्गहे चेव ।। ५१. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा आरंभे चैव, परिग्गहे चेव ॥ ५२. दो ठाणाई परियाणेत्ता' आया केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, तं जहा आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ५३. "दो ठागाइं परियाणेत्ता आया केवलं बोधि बुज्झज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ५४. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्व इज्जा, तं जहा----आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ५५. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा -आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ५६. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव !। ५७. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ५८. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवल माििणबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा आरंभे चेव, परिमाहे चेव ।। ५६. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ ६०. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा--आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ६१. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा आरंभे चव, परिग्गहे चेव ।। ६२. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ सोच्चा-अभिसमेच्च-पदं ६३. दोहि ठाणेहि आया केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, तं जहा सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ॥ ६४. "दोहि ठाणेहि आया केवलं बोधि बुझज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभि समेच्चच्चेव ॥ १. परियाइत्ता (क); परियादित्ता (ग)। डेज्जा । २. सं० पा.-----एवं जाव केवलणाणं उप्पा- ३. सं० पाo-जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६५. दोहि ठाणेहिं आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं ___ जहा सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ।। ६६. दोहि ठाणेहि आया केवलं वंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ।। ६७. दोहि ठाणेहि आया केवलं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ।। ६८. दोहि ठाणेहिं आया केवलं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ॥ ६९. दोहि ठाणेहि आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा–सोच्चच्चेव अभिसमेच्चच्चेव ॥ ७०. दोहि ठाणेहि आया केवल सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ।। ७१. दोहि ठाणेहिं आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा--सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ।। ७२. दोहि ठाणेहि आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ॥ ७३. दोहिं ठाणेहि आया केवलं केवलणाणं उत्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ° ॥ कालचक्क-पदं ७४. दो समाओ पण्णत्ताओ, त जहा-ओसप्पिणी समा चेव, उस्सप्पिणी समा चेव ।। उम्माय-पदं ७५. दुविहे उम्माए पण्णत्ते, तं जहा–जक्खाएसे' चेव, मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं । तत्थ णं जे से जक्खाएसे, से णं सुहवेयतराए चेव, सुहविमोयतराए' चेव । तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मरस उदएणं, से णं दुहवेयतराए' चेव, दुहविमोयतराए चेव ॥ १. जक्खातेसे (क, ग); जक्खावेसे (क्व); अत्र लिपिदोषेण परिवर्तनं जातमथवा सूत्र ६।४३ सत्रे 'जक्खावेसेणं' पाठो विद्यते, अत्र कारस्य रचनाभेदः इति न निश्चेतं शक्यते । च 'जक्खाएसे' इति प्रथमान्त: पाठोस्ति । २. ० मोहतराए (ग)। वत्तिकारेणाप्यसौ प्रथमान्तत्वेन व्याख्यात:। ३. वेवतराए (ग)। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं दंड-पदं ७६. दो दंडा पण्णत्ता, तं जहा--अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव ॥ ७७. णेरइयाणं दो दंडा पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठादंडे य, अणट्ठादंडे य ॥ ७८. एवं--चउवीसादडओ जाव' वेमाणियाणं ।। दसण-पदं ७६. दुविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा–सम्मइंसणे चेव, मिच्छादसणे चेव ।। ५०. सम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-णिसग्गसम्मइंसणे चेव, अभिगमसम्महसणे चेव ।। ८१. णिसग्गसम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पडिवाइ चेव, अप डिवाइ चेव ॥ ८२. अभिगमसम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पडिवाइ चेव, अपडिवाइ चेव ।। ८३. मिच्छादसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अभिग्गहियमिच्छादसणे चेव, अणभिग्ग यिमिच्छादसणे चेव ।। ८४. अभिग्गहियमिच्छादसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सपज्जवसिते चेव, अपज्जव सिते चेव ॥ ८५. अणभिग्गहियमिच्छादसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सपज्जवसिते चेव, अपज्जवसिते चेव ।। णाण-पदं ८६. दुविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे चेव, परोक्खे चेव ॥ ८७. पच्चक्खे णाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाकेवलणाणे चेव, णोकेवलणाणे चेव ।। ८८. केवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवत्थकेवलणाणे चेव, सिद्धकेवलणाणे चेव। ८९. भवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—सजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव ॥ १०. सजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पढमसमयसजोगिभवत्थ केवलणाणे चेव, अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव । अहवा–चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अचरिमसमयसजोगिभवत्थ केवलणाणे चेव ॥ ६१. "अजोगिभवत्थ केवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पढमसमयअजोगिभवत्थ केवलणाणे चेव, अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव । ३. संपा०-एवं अजोगिभवत्थकेवलणाणे वि। १. ठा० १६१४२-१६३ । २. सं.पा.-एवं अभिग्गहितमिच्छादसणे वि। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०७ बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) अहवा---चरिमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अचरिमसमयअजोगिभवत्थ केवलणाणे चंव। ६२. सिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अणंतरसिद्धकेवलणाणे चैव, परंपर सिद्धकेवलणाणे चेव ॥ ६३. अणंतरसिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—एक्काणंतरसिद्ध केवलणाणे चेव, अणेक्काणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव ॥ १४. परंपरसिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा---एक्कपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव, अणेक्कपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव ।। ६५. णोकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—ओहिणाणे चेव, मणपज्जवणाणे चेव ।। ६६. ओहिणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—भवपच्चइए चेव, खओवसमिए चेव ।। ६७. दोण्हं भवपच्चइए पण्णत्ते, तं जहा—देवाणं चेव, जेरइयाणं चेव ॥ १८. दोण्हं खओवसमिए पण्णत्ते, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं चेव ॥ ६६. मणपज्जवणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उज्जुमति चेव, विउलमति चेव ।। परोक्खे णाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--आभिणिबोहियणाणे चेव, सुयणाणे चेव ॥ १०१. आभिणिबोहियणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–सुयणिस्सिए चेव, असुयणिस्सिए चेव ।। १०२. सुयणिस्सिए दविहे पण्णत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे चैव, वंजणोग्गहे चेव ।। १०३. असुपिस्सिए' 'दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे चेव, वंजणोग्गहे चेव ।। १०४. सुयणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अंगपविढे चेव, अंगबाहिरे चेव ॥ १०५. अंगबाहिरे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--आवस्सए चेव, आवस्सयवतिरित्ते चेव ।। १०६. आवस्सयवतिरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–कालिए चेव, उक्कालिए चेव ।। धम्म-पदं १०७. दुविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-सुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे चेव ॥ १०८. सुयधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्तसुयधम्मे चेव, अत्थसुयधम्मे चेव ।। १०६. चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—अगारचरित्तधम्मे चेव, अणगारचरित्त धम्मे चेव ।। संजम-पदं ११०. दुविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-सरागसंजमे चेव, वीतरागसंजमे चेव ।। १. सं० पा.---असूयणिस्सितेवि एमेव । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण १११. सरागसंजमै दुविहे पण्णत्त, त जहा - सुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव, वादरसंपरायसरागसंजमे चेव ॥ ५०८ ११२. सुहुमसंप रायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- पढमसमय सुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव, अपढमसमय सुहुम संप रायस रागसंजमे चैव ॥ अहवा - चरिमसमयसुहुम संप रायसरागसंजमे चेव, अर्चारिमसमयसुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव । अहवा— सुहुमसंप रायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - संकिलेस माणए चेव, विसुज्झमाणए चैव ॥ ११३. बादरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमयवादरसंपरायसरागसंजमे चैव, अपढमसमयबादरसंपरायस रागसंज मे चेव । अहवा -- चरिमसमयवादरसंप रायसरागसंजमे चेव, अचरिमसमयबादरसंप रायसरागसंजमे चेव । अहवा - बादरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पडिवातिए चेव, अपडिवातिए चंव ॥ ११४. वीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उवसंतकसायवोयरागसंज मे चेव, खीणकसायवीय रागसंजमे चैव ॥ ११५. उवसंतकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- पढमसमय उवसंतकसायवीयरागसंजमे चेव, अपढमसमय उवसंत कसायवीय रागसंजमे चंव । अहवा - चरिमसमयउ वसंत कसायवीय राग संजमे चंव, अचरिमसमय वसंतकसायवीय रागसंजमे चेव || ११६. खीणकसायवीय रागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - छउमत्थखीणकसायवीरागसंजमे चेव, केवलिखीणकसायवीयरागसंजमे चेव ॥ ११७. छउमत्थखीणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सयं बुद्धछ उमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे चेव, बुद्धबोहियछ उमत्थखीण कसायवीतरागसंज मे चेव ॥ ११८. सयंबुद्धछउमत्थखोणकसायवीयरागसंजमें दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे चेव, अपढमसमय सयंबुद्धछउमत्थखीण कसायवीतरागसंजमे चेव । अहवा - चरिमसमय सयं बुद्धछउमत्थखीण कसायवीतरागसंजमे चेव, अचरिमसमयस बुद्धछ उमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे चैव ॥ ११६. बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणक सायवीत रागसंजमे चेव, अपढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणक सायवीतरागसंजमे चैव । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५०६ अहवा-चरिमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीयरागसंजमे चेव, अचरिम समयबुद्धबोहियछ उमत्थखीणकसायवीयरागसंजमे चेव ।। १२०. केवलिखीणकसायवीय रागसंजमे द विहे पण्णत्ते, तं जहा-सजोगिकेवलिखीण कसायवीय रागसंजमे चेव, अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागसंजमे चेव ॥ १२१. सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -पढमसमय सजोगिकेवलिखोणकसायवीयरागसंजमे चेव, अपढमसमयसजोगिकेवलिखोणकसायवीयरागसंजमे चेव । अहवा–चरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागसंजमे चेब, अचरिम समयसजोगिकेवलिखीण कसायवीय रामसंजमे चेव ।। १२२. अजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पढमसमय अजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव, अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव ।। अहवा --चरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागसंजमे चेव, अचरिमसमय अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागसंज में चेव ।। जीव-णिकाय-पदं १२३. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा-सुहमा चेव, बायरा चेव ।। १२४. “दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-सुहमा चेव, बायरा चेव ।। १२५. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा -सुहुमा चेव, बायरा चेव ॥ १२६. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा--सुहुमा चेव, वायरा चेव ॥ वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा---सूहमा चेव, बायरा चेव ॥ ढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ।। १२8. दविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा---पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ।। १३०. दुविहा तेउकाइया पणत्ता, तं जहा—पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ॥ १३१. दविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—पज्जतगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ।। १३२. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ।। १३३. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा -परिणया चेव, अपरिणया चेव ।। १३४. "दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—परिणया चेव, अपरिणया चेव ।। १३५. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—परिणया चेव, अपरिणया चेव ।। १३६. दविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-परिणया चेव, अपरिणया चेव ।। १३७. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा-परिणया चेव, अपरिणया चेव ॥ ३. सं० पा०–एवं जाव वणस्सइकाइया । १. सं० पा०..एवं जाव दुविहा। २. सं० पा०–एवं जाव वणस्सइकाइया । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ५१० दव्व-पदं १३८. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव, अपरिणया चैव ॥ जीव- णिकाय-पदं १३६. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव ॥ १४०. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णा चेव || १४१. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा --- गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव ॥ ठाणं १४२. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चैव ॥ १४३. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमाaणगा चैव ॥ दव्व-पदं १४४. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव ॥ जीव- णिकाय-पदं १४५. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अनंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ॥ १४६. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा -- अनंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चैव ॥ १४७. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा -- अनंत रोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव || १४८. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अनंत रोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ॥ १४६. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अनंत रोगाढा चैव परंपरोगाढा चैव ॥ दव्य-पदं १५०. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा - अनंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ।। १५१. दुविहे काले पण्णत्ते, तं जहा ओसप्पिणीकाले चेव, उस्सप्पिणोकाले' चेव || १५२. दुविहे आगासे पण्णत्ते, तं जहा- लोगागासे चेव, अलोगागासे चेव ॥ ३. उवस्सप्पिणी ० (ख); ओस्सप्पिणी (ग) 1 १. सं० पा० - एव जाव वणस्सइकाइया 1 २. सं० पा०-- जाव दव्वा । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) सरीर-पदं १५३. णेरइयाणं दो सरीरंगा पण्णत्ता, तं जहा - अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव । अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउब्विए || १५४. "देवाणं दो सरीरंगा पण्णत्ता, तं जहा - अब्भंतरगे चेव, बाहिरी चेव । अन्तरए कम्मए, बाहिरए वेउब्विए || चेव, बाहिरगे चेव । १५५. पुढविकाइयाणं दो सरीरंगा पण्णत्ता, तं जहा -- अब्भंत रंगे चेव, बाहिरगे चेव । अब्भंतरगे कम्मए, बाहिरगे ओरालिए जाव' वणस्सइकाइयाणं || १५६. बेइंदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा -- अब्भंतर अन्तर कम्मए, अद्विमंससोणितबद्धे बाहिर ओरालिए || १५७. ते इंदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - अब्भंतरगे चेव, अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिर ओरालिए || बाहिरगे चेव । १५८. चउरिदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - अभंतरगे चेव, बाहिरगे चेव । अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए || १५६. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दो सरीरंगा पण्णत्ता, तं जहा - अब्भंतरगे चैव, बाहिरगे चेव । अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणियण्हारुछिराबद्धे बाहिरगे ओरालिए | १६०. मणुस्साणं दो सरीरंगा पण्णत्ता, तं जहा - अभंतरगे चेव, बाहिरगे चेव । अब्भंतरगे कम्मए, अट्टिमंससोणिय हारुचिराबद्धे बाहिरगे ओरालिए | १६१. विग्गहगइ समावण्णगाणं णेरइयाणं दो सरीरमा पण्णत्ता, तं जहा - तेयए चेव, कम्मए चैव । णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ ५११ १६२. रइयाण दोहि ठाणेहि सरीरुप्पत्ती सिया, तं जहा- रागेण चैव, दोसेण चैव जाव' वेमाणियाणं ॥ १६३. रइयाणं दुट्ठाणणिव्वत्तिए सरीरंगे पण्णत्ते, तं जहा- -रागणिव्वत्तिए चेव, दोसणिव्वत्तिए चेव जाव' वेमाणियाणं ॥ काय-पदं १६४. दो काया पण्णत्ता, तं जहा -तसकाए चेव, थावरकाए चेव || १६५. तसकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - भवसिद्धिए चेव, अभवसिद्धिए चेव ।। १६६. "थावरकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा --भवसिद्धिए चेव, अभवसिद्धिए चेव ॥ १. सं० पा० एवं देवाणं भाणियव्वं । २ ठा० १:१५३-१५५ । ३. सं० पा० - जाव चउरिदियाणं । ४. सं० पा०-- मणुस्साणं वि एवं चेव । ५. ठा० १।१४२-१६३ । ६.४० १११४२-१६३ ॥ ७. ठा० १।१४२-१६३ । ८. सं० पा० एवं थावरकाए वि । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ ठाणं दिसादुगे करणिज्ज-पदं १६७. दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पव्वावित्तए - पाईणं चेव, उदीणं चेव ।। १६८. "दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा --मुंडावित्तए, सिवखावित्तए, उवट्ठावित्तए, संभुजित्तए, संवासित्तए, सज्झायमुद्दिसित्तए, सज्झायं समुद्दिसित्तए, सज्झायमणुजाणित्तए, आलोइत्तए, पडिक्कमित्तए, णिदित्तए, गरहित्तए, विउट्टित्तए, विसोहित्तए, अकरणयाए अभद्वित्तए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जित्तए—पाईण चेव, उदीणं चेव ॥ दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-जूसणा-जूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खिताणं पाओवगताणं कालं अणवकंखमाणाणं विहरित्तए, तं जहा--पाईणं चेव, उदीणं चेव ।। बीओ उद्देसो वेदणा-पदं १७०. जे देवा उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववपणगा चारोववण्णगा चार द्वितिया' गति रतिया गतिसमावण्णगा, तेसि णं देवाणं सता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति, अण्णत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति ।। १७१. गरइयाणं सता समियं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति, अण्णत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति जाव' पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं ।। १७२. मणुस्साणं सता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, इहगतावि एगतिया वेदणं वेदेति, अण्णत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति । मणुस्सवज्जा सेसा एक्कगमा ॥ गति-आगति-पदं १७३. णेरइया दुगतिया दुयागतिया पण्णत्ता, तं जहा—णेरइए जेरइएसु उववज्जमाणे मणुस्सेहितो वा पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से णेरइए णेरइयत्तं विप्पजहमाणे मणुस्सत्ताए वा पंचिदियतिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा ।। १. सं० पा०-एवं २. ठितीया (क, ग)1 ३. ठा० १२१४२-१५६ । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (बीओ उद्देसो) ५१३ १७४. एवं असुरकुमारावि, णवरं - से चेव गं से असुरकुमारे असुरकुमारतं विप्पजहमाणे सत्ताए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा । एवं सव्वदेवा ॥ १७५. पुढविकाइया दुर्गातिया दुयागतिया पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइए पुढविकाइस उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा णो पुढविकाइएहितो वा उववज्जेज्जा ! से चेवणं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा णो पुढविकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा ॥ १७६. एवं जाव' मणुस्सा ॥ खंडग-मग्गणा-पदं १७७. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा - भवसिद्धिया चेव, अभवसिद्धिया चेव जाव माणिया || १७८. दुविहा गेरइया पण्णत्ता, तं जहा अनंत रोववण्णगा चेव, परंपरोववण्णगा चेव जाव' वेमाणिया || १७६. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा- गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चैव जाव' वेमाणिया || १५०. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमओववण्णगा चेव, अपढमसमओववण्णगा चेव जाव" वेमाणिया || १८१. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा -- आहारगा चेव, अणाहारगा चेव । एवं जाव' वेमाणिया ॥ १८२. दुविहा पेरइया पण्णत्ता, तं जहा - उस्सासगा चेव, गोउस्सासगा चैव जाव' वैमाणिया ॥ १८३. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा -सइंदिया चेव, अणिदिया चेव जाव" वेमाणिया || १८४. दुविहा गरइया पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चैव जाव" वेमाणिया || १८५. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा - सण्णी चेव, असण्णी चेव । एवं पंचेंदिया सव्वे विगलिदियवज्जा जाव वाणमंतरा" || १८६. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा -भासगा चेव, अभासगा चेव । एवमेगिदिय वज्जा सव्वे ॥ १८७. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा सम्मद्दिट्टिया चेव, मिच्छद्दिट्टिया चेव । एगिदियवज्जा सव्वे" ।। १. असुरकुमारणवि (क, ग) 1 २. ठ० १।१४३-१५१, १६२-१६४ / ३. ठा० १११५३-१६० । ४-११. ठा० १।१४२-१६३ । १२. ठा० ११४२-१५१, १६० १६१ । १२. वेमाणिया ( वृ); वाणवंतरिया (वृपा) । १४, १५. ठा० १११४२-१५१, १५७-१६४ । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ ठाण १८८. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा–परित्तसंसारिता चेव, अणंतसंसारिता चेव माणिया । १८६. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा--संखेज्जकालसमयदितिया चेव, असंखेज्ज कालसमयट्ठितिया चेव। एवं पंचेंदिया एगिदियविगलिंदियवज्जा जाव' वाणमंतरा ॥ १६०. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा-सुलभवोधिया चेव, दुलभबोधिया चेव जाव वेमाणिया ।। १६१. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा --कण्हपक्खिया चेव, सुक्कपक्खिया चेव जाव' वेमाणिया ।। १९२. दुविहा णेरड्या पण्णता, तं जहा-चरिमा चेव, अचरिमा चेव जाव वेमाणिया ॥ आहोहि-णाण-दसण-पदं १६३. दोहि ठाणेहि आया अहेलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा--समोहतेणं चेव अप्पाणणं आया अहेलोगं जाणइ-पास इ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि समोहतासमोहतेणं' चेव अप्पाणेणं आया अहेलोग जाणइ-पासइ ।। "दोहिं ठाणेहिं आया तिरियलोग जाणइ-पासइ, तं जहा-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोग जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ।। आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणणं आया तिरियलोग जाणइ-पासइ ।। १६५. दोहिं ठाणेहिं आया उड्डलोग जाणइ-पासइ, तं जहा-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणणं आया उड्वलोग जाणइ-पास। आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणणं आया उड्डलोग जाणइ-पासइ ।। १६६. दोहि ठाणेहिं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-~-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ। १६४. १. ठा० १११४२-१६३ । २. संखेज्जकालठितीया (वृपा)। ३. ठा० १११४२-१५१, १६०, १६१ । ४-६. ठा० १११४२-१६३ । ७. समोहिता (क)। ८. सं० पा०---एवं तिरियलोगं उलोग केवल कप्पं लोग। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीअं ठाणं (बीओ उद्देसो) ५१५ आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ पासइ° ॥ १९७. दोहिं ठाणेहिं आता अहेलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-विउन्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता अहेलोगं जाणइ-पासइ, अविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आता अहेलोग जाणइ-पासइ। आहोहि विउव्वियाविउन्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता अहेलोगं जाणइ-पासइ । १९८. "दोहिं ठाणेहिं आता तिरियलोग जाणइ-पासइ, तं जहा---विउन्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणणं आता तिरियलोग जाणइ-पासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ-पासइ ।। १६६. दोहि ठाणेहिं आता उड्डलोग जाणइ-पासइ, तं जहा-विउव्वितेणं चेव आता उडलोग जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता उड्डलोग जाणइपासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता उड्डलोगं जाणइ-पासइ ।। २००. दोहि ठाणेहिं आता केवलकप्पं लोग जाणइ-पासइ, तं जहा–विउन्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता केवलकप्पं लोग जाणइ-पासइ, अविउवितेणं चेव अप्पाणणं आता केवलकप्पं लोग जाणइ-पासइ । आहोहि विउव्वियाविउवितेणं चेव अपाणेणं आता केवलकप्पं लोग जाणइ. पासइ° ॥ देसेण-सवेण-पदं २०१. दोहि ठाणेहिं आया सद्दाइं सुणेति, तं जहा--देसेण वि आया सद्दाइं सुणेति, सव्वेणवि आया सद्दाइं सुणेति ॥ २०२. "दोहि ठाणेहिं आया रूवाइं पासइ, तं जहा-देसेण वि आया रूवाई पासइ, सव्वेणवि आया रूवाइं पासइ ।। २०३. दोहि ठाणेहि आया गंधाई अग्धाति, तं जहा—देसेण वि आया गंधाई अग्घाति, सव्वेणवि आया गंधाइं अग्घाति ।। २०४. दोहि ठाणेहिं आया रसाइं आसादेति, तं जहा-देसेण वि आया रसाई आसादेति, सम्वेण वि आया रसाइं आसादेति ।। १. अहो (क, ग)। २. सं० पा०-एवं तिरियलोग उड़ढलोगं केवल कप्पं लोग। ३. सं० पा०-एवं स्वाइपासइ गंधाइं अग्धाति रसाई आसादेति फासाई पडिसंवेदेति । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ५१६ २०५. दोहिं ठाणेहिं आया फासाइं पडिसंवेदेति, तं जहा–देसेण वि आया फासाइं पडिसंवेदेति, सम्वेण वि आया फासाइं पडिसंवेदेति ॥ २०६. दोहि ठाणेहिं आया ओभासति, तं जहा–देसेणवि आया ओभासति, सव्वेणवि आया ओभासति ।। २०७. एवं-पभासति, विकुव्वति, परियारेति, भासं'भासति, आहारेति, परिणामेति, वेदेति, णिज्जरेति ॥ २०८. दोहिं ठाणेहिं देवे सद्दाई सुणेति, तं जहा-देसेणवि देवे सद्दाइं सुणेति, सव्वेणवि देवे सद्दाई सुणेति जाव' णिज्जरेति ॥ सरीर-पदं २०६. मरुया देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-'एगसरीरी चेव दुसरीरी" चेव ।। २१०. एवं किण्णरा किंपुरिसा गंधव्वा णागकुमारा सुवण्णकुमारा अग्गिकुमारा वायुकुमारा ॥ २११. देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -'एगसरोरी चेव, दुसरोरी" चेव ।। तइओ उद्देसो सद्द-पदं २१२. दुविहे सद्दे पण्णत्ते, तं जहा-भासासद्दे चेव, णोभासासद्दे चेव ॥ २१३. भासासद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अक्खरसंवद्ध चेव, णोअक्खरसंवद्धे चेव ।। २१४. णोभासासद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आउज्जसद्दे चेव, णोआउज्जसद्दे चेव ।। २१५. आउज्जसद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा ---तते चेव, वितते चेव ।। २१६. तते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा घणे चेव, सुसिरे' चेव ।। ११७. “वितते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-घणे चेव, सुसिरे चेव ।। २१८. णोआउज्जसद्दे दुबिहे पण्णत्ते, तं जहा-भूसणसद्दे चेव, गोभूसणसद्दे चेव ।। २१६. णोभूसणसद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-तालसद्दे चेव, लत्तियासद्दे चेव ।। २२०. दोहिं ठाणेहि सददुप्पाते सिया, तं जहा-साहण्णताणं चेव पोग्गलाणं सददुप्पाए सिया, भिज्जताणं चेव पोग्गलाणं सद्दुप्पाए सिया ॥ १. ४ (ख)। ४. एगासरीरा चेव बिसरीरा (क); एगसरीरे २. ठा० रा२०२-२०७। _ चेव बिसरीरे (ख)। ३. एनसरी रिणो चेव दुसरीरि (क); एगसरीरे ५. सुसरे (ख); गुसिरे (क्व) । चेव बिसरीरे (ख)। ६. सं० पा०..-एवं विततेवि। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५१७ पोगल-पदं २२१. दोहि ठाणेहि पोग्गला साहण्णंति, तं जहा-सई वा पोग्गला साहणंति, परेण वा पोग्गला साहण्णंति ।। २२२. दोहि ठाणेहिं पोग्गला भिज्जति, तं जहा -सई वा पोग्गला भिज्जति, परेण वा पोग्गला भिज्जंति ॥ २२३. दोहि ठाणेहिं पोग्गला' परिपडंति', तं जहा--सई वा पोग्गला परिपडंति, परेण वा पोगला परिपडंति ।। २२४. "दोहि ठाणेहि पोग्गला परिसडंति, तं जहा सई वा पोग्गला परिसडंति, परेण वा पोग्गला परिसडंति ॥ २२५. दोहि ठाणेहि पोग्गला विद्धंसंति, तं जहा - सई वा पोग्गला विद्धसंति, परेण वा पोग्गला विद्धंसंति ॥ २२६. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा-भिण्णा चेव, अभिण्णा चेव ।। २२७. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा-भेउरधम्मा चेव, णोभेउरधम्मा चेव ।। २२८. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा-परमाणुपोग्गला चेव, णोपरमाणुपोग्गला चेव ॥ २२६. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा-सुहमा चेव, बायरा चेव ।। २३०. दुविहा पोग्गला पश्णत्ता, तं जहा --बद्धपासपुट्ठा चेव, गोबद्धपासपुट्ठा चेव ।। २३१. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा--परियादितच्चेव', अपरियादितच्चेव' । २३२. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा–अत्ता' चेव, अणत्ता चेव ।। २३३. दुविहा पोग्गला पणत्ता, तं जहा-इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव । “कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ॥ इंदिय-विसय-पदं २३४. दुविहा सद्दा पण्णत्ता, तं जहा–'अत्ता चेव, अणत्ता चेव"। "इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव । कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव ! मणामा चेव, अमणामा चेव ।। १. परिवडंति (क); परिसडंति (ग)। २. परिवाडिज्जति (क); परिसाडिज्जति (ग)। ३. सं० पा०—एवं परिसडंति विद्धंसति । ४. परियादिइत° (क, ग)। ५. अपरियादिइत (क, ग)। ६. अत्ते (क)। ७. अणत्ते (क)। ८. सं० पा०-एवं कंता पिया मणुण्णा मणामा। ६. अत्तच्चेव अणत्तच्चेव (क)। १०. सं० पा०–एवमिट्रा जाव मणामा। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१५ ठाणं २३५. दुविहा रूवा पण्णत्ता, तं जहा—'अत्ता चेव, अणत्ता चेव" । "इट्टा चेव, अणिट्ठा चेव। कंता चेव, अकंता चेव। पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ।। २३६. "दुविहा गंधा पण्णत्ता, तं जहा -अत्ता चेव, अणत्ता चेव । इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव। कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ।। २३७. दुविहा रसा पण्णत्ता, तं जहा–अत्ता चेव, अणत्ता चेव । इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव। कंता चेव, अकंता चेव। पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ।। २३८. दुविहा फासा पण्णता, तं जहा–अत्ता चेव, अणत्ता चेव । इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव । कता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव। मणामा चेव, अमणामा चेव ।। आयार-पदं २३६. दुविहे आयारे पण्णत्ते, तं जहा-णाणायारे चेव, णोणाणायारे चेव ॥ २४०. णोणाणायारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दंसणायारे चेव, णोदसणायारे चेव ।। २४१. णोदसणायारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-चरित्तायारे चेव, णोचरित्तायारे चैव ॥ २४२. णोचरित्तायारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - तवायारे चेव वीरियायारे चेव ॥ पडिमा-पदं २४३. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समाहिपडिमा चेव, उवहाणपडिमा चेव ।। २४४. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विवेगपडिमा चेव, विउसग्गपडिमा चेव ।। २४५. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-'भद्दा चेव, सुभद्दा चेव" ।। २४६. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-महाभट्टा' चेव, सम्वतोभदा'चेव। २४७. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खुड्डिया चेव मोयपडिमा, महल्लिया चेव मोयपडिमा । २४८. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जवमझा चेव चंदपडिमा, वइरमज्झा चेव चंदपडिमा ॥ सामाइय-पदं २४६. दुविहे सामाइए पण्णत्ते, तं जहा-अगारसामाइए चेव, अणागारसामाइए चेय॥ १. अत्तच्चेव अणत्तच्चेव (क)। ४. भद्दे चेव सुभद्दे चेव (क, ग)। २. सं० पा०-एवमिट्ठा जाव मणामा। ५. ° भद्दे (क, ग)। ३. सं० पा.---एवं गंधा रसा फासा एवमिक्के- ६. • भद्दे (क, ग)। के छ छ आलावगा भाणियव्वा । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीअं ठाणं'(तइओ उद्देसो) ५१६ जम्म-मरण-पदं २५०. दोण्हं उववाए पण्णत्ते, तं जहा--देवाणं चेव, जेरइयाणं चेव ।। २५१. दोण्हं उव्वट्टणा पग्णत्ता, तं जहा--णेरइयाणं चेव, भवणवासीणं चेव ।। २५२. दोण्हं चयणे पण्णत्ते, तं जहा-जोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव ॥ २५३. दोण्हं गब्भवक्कंती पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्ख जोणियाण चेव ॥ गल्भत्थ-पदं २५४. दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पण्णत्ते, तं जहा–मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्ख जोणियाण चेव ।। २५५. दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्डी पण्णत्ता, तं जहा --मणुस्साणं चेव, पंचेदियतिरिक्ख जोणियाणं चेव ।। २५६. "दोण्हं गब्भत्थाणं-णिवुड्डी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्धाते कालसंजोगे आयाती मरणे पण्णत्ते, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं चेव ।। २५७. दोण्हं छविपव्वा' पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्साणं चेब, पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं चेव ।। २५८. दो सुक्कसोणितसंभवा पण्णता, तं जहा—मणुस्सा चेव, पंचिंदियतिरिक्ख- जोणिया चेव ॥ ठिति-पदं २५६. दुविहा ठिती पण्णत्ता, तं जहा—कायट्टिती चेव, भवद्विती चेव ॥ २६०. दोण्ह कायद्विती पण्णत्ता, तं जहा--मणुस्साणं चेव, पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं चेव ।। २६१. दोण्हं भवद्रुिती पण्णत्ता, तं जहा--देवाणं चेव, णे रइयाणं चेव ।। आउय-पदं २६२. दुविहे आउए पण्णत्ते, तं जहा---अद्धाउए चेव, भवाउए चेव ।। २६३. दोण्हं अद्धाउए पण्णत्ते, तं जहा–मणुस्साणं चेव, पंचि दियतिरिक्खजोणियाणं चेव ॥ २६४. दोण्हं भवाउए पण्णत्ते, तं जहा—देवाणं चैव, रइयाणं चेव ।। १. सं० पा०-एवं। २. आयाई (ग)। ३. छविपन्वत्ति (क, ग); छवियत्त, छविपत्त (वृपा) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० ठाण कम्म-पदं २६५. दुविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा—पदेसकम्मे चेव, अणुभावकम्मे चैव ।। २६६. दो अहाउयं पालेंति, तं जहा-देवच्चेव', णे रइयच्चेव ।। २६७. दोण्हं आउय-संवट्टए पण्णत्ते, तं जहा–मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्ख जोणियाणं चेव ।। खेत्त-पदं २६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता-बहुसम तुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवद्वृति आयाम-विक्खंभ'-संठाण परिणाहेणं, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव ।। २६६. एवमेएणमभिलावेणं -हेमवते चेव, हेरण्णवए" चेव । हरिवासे चेव, रम्मय वासे चेव ॥ २७०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं दो खेत्ता पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेस "मणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवदृति आयाम-विक्खंभ ठाण-परिणाहेणं, तं जहा -पुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव ।। २७१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो कुराओ पण्णत्तानो वसमतुल्लाप्रो जाव देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव । तत्थ णं दो महतिमहालया महादुमा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवटृति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहाकूडसामली चेव, जंबू चेव सुदंसणा।। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया" 'महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला महासोक्खा" पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा—गरुले चेव वेणुदेवे, अणाढिते चेव जंबुद्दीवाहिवती॥ पव्वय-पदं २७२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासहरपव्वया पण्णत्ता १. देवे चेव (ख, ग)। ४. लावणं यध्वं (क) । २. पण्णत्ता तं (क,ख,ग); प्रतिषु 'तंजहा' द्विवारं ५. एरन्नवते (क, ग)। विद्यते, किन्तु 'पण्णत्ता' शब्दस्यानन्तरं ६. पण्णत्ता तं (क, ख, ग)। 'तंजहा' पाठो न युज्यते, तेनास्माभिरसौ ७. सं० पा०--- अविसेस जाव पृथ्वविदेहे। पाठान्तरे स्वीकृतः। अयं क्रमोऽने केषु सूत्रेषु ८. ठा० २।२६८ । अनुवर्तते । प्रतिषु मध्ये-मध्ये क्वचित् 'तंजहा' १०. सं० पा०-महिड्डिया जाव महासोक्खा। पाठो नास्त्यपि । ११. महेसक्खा (वृपा)। ३. विक्खंभेणं (ख)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं ( तइओ उद्देसो) बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवर्वृति आयाम विक्खंभुच्चतोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा - चुल्लहिमवंते चैव, सिहरिच्चेव || २७३. एवं - महाहिमवंते चेव, रूप्पिच्चेव । एवं- णिसढे चेव, णीलवंते चैव ॥ २७४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं हेमवत- हेरण्णवतेसु वासेसु दो बट्टवेयपव्वता पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता' अण्णा मण्ण तिति आयाम - विक्खं भुच्च त्तोव्वेह संठाण-परिणाहेणं, तं जहा वेव, विडावाती' चेव । ० सद्दावाती तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमट्टितीया परिवसंति, साती चेव, प्रभासे चैव ॥ २७५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं हरिवास-रम्भसु' वासेसु दो वट्टवेयपव्वया पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा - गंधावाती" चेव, मालवंत परियाए चैव । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया' जाव' पलिओ मट्टितीया परिवसंति, तं जहा — अरुणे चैव, पउमे चेव ॥ २७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पुब्वावरे पासे, एत्थ णं आस-क्खंधग-सरिसा अद्धचंद" संठाण-संठिया दो वक्खारपव्वया पण्णत्ता --- बहुसमतुल्ला जाव" तं जहा- सोमणसे चेत्र, विज्जुप्पभे चैव ॥ १. सं० पा०- अविसेसमणाणत्ता जाव सद्दावाती । २७७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पुव्वावरे पासे, एत्थ गं आस बंधग सरिसा अद्धचंद-संठाण-संठिया दो वक्खारपव्वया पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव तं जहा - गंधमायणे चेव, मालवंते चैव ॥ २७८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं दो दीहवेयड्ढपव्वया पण्णत्ताबहुसमतुल्ला जाव" तं जहा - भारहे चेव दीहवेयड्ढे, एरवते " चेव दीवेयड्ढे ।। २. सद्दावती ( क, ख, ग ); द्रष्टव्यं ठा० ४१३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. विडावती (क, ख, ग ) । गुहा-पदं २७६. भारहए णं दीहवेयड्ढे दो गुहाओ पण्णत्ताओ - बहुसमतुल्लाओं अविसेसमणा ४. ठा० २।२७१ । ५. हरिवरिसरम्मतेसु (क, ग) ६. ठा० २२७२ । ५२१ तं जहा -- ९. ठा० २।२७१ । १०. अवद्धचंद (वृ); अद्धचंद (वृपा) । ११-१३ १० २२२७२ । १४. एरावते ( क ग ) | ७. गंधावती ( क, ख, ग ); द्रष्टव्यं ठा० ४।३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ८. महिड्डिया चेव (क, ख, ग ) 1 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ ठाणं पत्ताओ अण्णमण्णं णातिवति आयाम विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा - तिमिसगुहा चेव, खंडगप्पवायगुहा चेव ! तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा -- कयमालए चेव, णट्टमालए चेव ॥ २८०. एरव णं दीवेयड्ढे दो गुहाओ पण्णत्ताओ जाव' तं जहा- कयमालए चेव, ट्टमालए चेव || कूड-पदं २८१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव विवखंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहाचुल्ल हिमवंतकडे चेव, वेसमणकूडे चेव ॥ २८२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा -- महाहिमवंतकूडे चेव, वेरुलियकूडे चेव ॥ २८३. एवं - सिढे वासहरपव्वए दो 'कूडा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा - पिसढकूडे चेव, रुयगप्प चैव ॥ २८४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा -‍ - पीलवंतकूडे चैव, उवदंसणकूडे चेव ।। २८५. एवं - रुप्पिमि वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव तं जहारुप्पिकूडे चेव, मणिकं चणकूड़े चेव ॥ २८६. एवं - सिहरिमि वासहरपव्वते दो कूडा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव" तं जहा - सिहरिकूडे चेव, तिगिछिकूडे " चेव ॥ महा दह-पदं २८७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं चुल्लहिमवंत सिहरीसु वासहरपव्वसु दो महद्दहा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं जातिवति आयाम - विवखंभ उव्वेह संठाण-परिणाहेणं, तं जहा - पउमद्दहे चेव, पोंडरीय चेव । १. ठा० २२७१ । २. एरावते (क, ग)। ३. ठा० २२७६ ४. ठा० २।२६८ । ५६. ठा० २३२८१ । ७. रुयगकूडे ( ख ) । ८-१०. ठा० २।२८१ । ११. तेछि ( क ); तिनिच्छि° ( ख ) । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५२३ तत्थ णं दो देवयाओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति तं जहा-सिरी चेव, लच्छी चेव ।। २८८. एवं-महाहिमवंत-रुप्पीसु वासहरपब्वएसु दो महदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा–महापउमद्दहे चेव, महापोंडरीयद्दहे चेव । तत्थ णं दो देवयाओ' हिरिच्चेव, बुद्धिच्चेव ॥ २८६. एवं-णिसढ-णीलवतेसु तिगिछद्दहे चेव, केसरिहहे चेव । तत्थ णं दो देवताओ' धिती चेव, कित्ती चेव ।। महाणदी-पदं २६०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ महापउमद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा--रोहियच्चेव, हरिकंतच्चेव ॥ २६१. एवं-णिसढाओ' वासहरपव्वयाओ तिगिछिद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा हरिच्चेव, सीतोदच्चेव ॥ २६२. जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंताओ वासहरपव्वताओ केसरि दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा-सीता चेव, णारिकता चैव ॥ २६३. एवं–रुप्पीओ वासहरपव्वताओ महापोंडरीयद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा–णरकता चेव, रुप्पकूला चेव ।। पवायदह-पदं २६४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे वासे दो पवायदहा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला', तं जहा-गंगप्पवायदहे चेव, सिंधुप्पवायदहे चेव ।। २९५. एवं–हेमवए बासे दो पवायदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला", तं जहा-रोहिय प्पवायद्दहे चेव, रोहियंसप्पवायदहे चेव ॥ २६६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं हरिवासे वासे दो पवायदहा पण्णता -बहुसमतुल्ला", तं जहा-हरिपवायदहे चेव, हरिकंतप्पवायदहे चेव ।। २९७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं महाविदेहे वासे दो पवायद्दहा १. ठा० २।२७१ । २. ठा० २०२८७ । ३-५. पू०-ठा० २१२८७ ॥ ६. हरिकता चेव (ख)। ७. निसिढाओ (क)। ८. सीतोत° (क, ख, ग)। ६-११. पू०-ठा० २२८७ । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ठाणं पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा-सीतप्पवायदहे चेव, सीतोदप्पवायदहे चेव ॥ २६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रम्मए वासे दो पवायदहा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तं जहाणरकंतप्पवायदहे चेव, णारिकतप्पवायदहे चेव ॥ २६६. एवं-हेरण्णवते वासे दो पवायद्दहा पण्णत्ता-- बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा सुवण्णकूलप्पवायद्दहे चेव, रुप्पकूलप्पवायदहे चेव ।। ३००. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवए वासे दो पवायदहा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा- रत्तप्पवाय(हे चेव, रत्तावईपवायद्दहे चेव ।। महाणदो-पदं ३०१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे ण भरहे वासे दो महाणईओ पण्णत्ताओ-बहुसमतुल्लाओ जाव' तं जहा-गगा चेव, सिंधू चेव ।। ३०२. एवं-जहा पवातहहा, एवं णईओ भाणियब्वाओ जाव' एरवए' वासे दो महाणईओ पण्णत्ताओ-बहुसमतुल्लाओ जाव' तं जहा–रत्ता चेव, रत्तावती चेव ।। कालचक्क-पदं ३०३. जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्स प्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले होत्था ।। ३०४. जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओस प्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले पण्णत्ते ।। ३०५. जंबुद्दीवे दीवे भरहे रवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले° भविस्सति ।।। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए मणुया दो गाउयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था, दोण्णि य पलिओवमाइं परमाउं पालइत्था ॥ ३०७. एवमिमीसे ओसप्पिणीए जाव" पालइत्था ॥ ३०८. एवमागमेस्साए उस्सप्पिणीए जाव" पालयिस्संति ! १-५. ठा० २१२८७ । ११. सं० पा० –एवमिमीसे ओस प्पिणीए जाव ६. नईओ वि (ख)। पपण ते एवं आगमिस्साए उस्सप्पिणीए जाव ७. ठा० २।२६५-२६६ । भविस्सति । ८. एरावए (क, ग)। १२. आगामेसाए (क)। ६. ठा० २।२८७ । १३,१४. ठा० २१३०६ । १०, रत्तिवति (क, ग)। ३०६. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) सलागा- पुरिस- वंस-पदं ३०६. जंबुद्दीवे दीवे भर हेरवएसु वासेसु 'एगसमये एगजुगे" दो अरहंतवंसा उपज्जिसु वा उपज्जेति वा उप्पज्जिस्संति वा ॥ ३१०. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो चक्कवट्टिवसा उपज्जिसु वा उपज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥ ३११. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो दसारवंसा उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उप्पज्जिस्संति वा || सलागा- पुरिस- पर्द ३१२. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो अरहंता' उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥ ३१३. "जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो चक्कवट्टी उप्पज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उप्पज्जिस्संति वा ॥ ३१४. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो बलदेवा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥ ५२५ ३१५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो वासुदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ॥ कालानुभव-पदं ३१६. जंबुद्दीवे दीवे दोसु कुरासु मणुया सया 'सुसमसुसममुत्तमं इड्डि" पत्ता पच्चणुभवमाणाविति तं जहा देवकुराए चैव, उत्तरकुराए चेव ॥ ३१७. जंबुद्दीवे दीने दो' वासेसु मणुया सया सुसममुत्तमं इड्डि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरति तं जहा - हरिवासे चेव, रम्मगवासे चेत्र । ३१८. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसमद्सममुत्तममिडि पत्ता पच्चणुभवमाणाविहरति तं जहा· -- हेमवए चेत्र, हेरण्णवए चैव ॥ ३१९. जंबुद्दीवे दीवे दासु खेत्तेसु मणुया सया दूसमसुसममुत्तममिडि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहति तं जहा - पुण्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव ॥ ३२०. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया छव्विपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - भरहे चेव, एरवते चेव ॥ १. एगजुगे एगसमये ( वृ); एगसमये एगजुगे (वृपा) । २. सं० पा०--एवं चक्कवट्टिवसा दसारवंसा । ३. अरिहंत ( ख ) ! ४. सं० पा० – एवं चक्कवट्टी एवं बलदेवा एव वासुदेवा जाव उपज्जिस्संति । ५. ० मुत्त मिड्डि (क); ° मुत्तममिड्ढि ( ग ) | ६. दो तत्थ ( क ) । ७. एरण्णव (क, ख, ग ) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ५२६ चंद-सूर-पदं ३२१. जंबुद्दीवे दीवे--दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा ।। ३२२. दो सूरिआ तर्विसु' वा तवंति वा तविस्संति' वा ।। णक्खत्त-पदं ३२३. दो कित्तियाओ, दो रोहिणीओ, दो मग्गसिराओ', दो अदाओं', 'दो पुणव्वसू, दो पूसा, दो अस्सलेसाओ, दो महाओ, दो पुव्वाफग्गुणीओ, दो उत्तराफग्गुणीओ, दो हत्था, दो चित्ताओ, दो साईओ, दो विसाहाओ, दो अणुराहाओ, दो जेट्ठाओ, दो मूला, दो पुव्वासाढाओ, दो उत्तरासाढाओ, दो अभिईओ, दो सवणा, दो धणिट्ठाओ, दो सयभिसया, दो पुन्वाभवयाओ, दो उत्तराभवयाओ, दो रेवतीओ दो अस्सिणीओ°, दो भरणीओ, [जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा ? ] ॥ णक्खत्तदेव-पदं ३२४. 'दो अग्गी, दो पयावती, दो सोमा, दो रुद्दा, दो अदिती', दो बहस्सती, दो सप्पा, दो पिती, दो भगा, दो अज्जमा, दो सविता, दो तट्ठा, दो वाऊ, दो इंदग्गी, दो मित्ता, दो इंदा, दो णिरती, दो आऊ, दो विस्सा, दो बम्हा', दो विण्हू, दो वसू, दो वरुणा, दो अया, दो विविद्धी, दो पुस्सा, दो अस्सा, दो यमा ॥ १. तवइंसु (क, ख); तवयंसु (ग)। रेवति अस्सिणि भरणी, २. तवतिस्संति (क, ख, ग)! णेयव्वा आणुपुव्वीए ॥३॥ ३. मगसिरा (क, ख)। एवं गाहाणसारेणं णेयव्वं जाव दो भरणीओ। ४. सं० पा०-दो अदाओ एवं भाणियव्वं । ३. असौ पाठः प्रस्तुतसूत्रे साक्षाल्लिखितो नास्ति, संगहणी गाहा-- किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति [पाहुड १६] पाठानुसारेकत्तिया रोहिणि भगसिर, गासौ युज्यते । पाठसंक्षेपपद्धतौ नास्य अद्दा य पुणव्वसू अ पूसोय । क्रियापदं लिखितमिति प्रतीयते । तत्तोऽवि अस्सलेसा, ६. अत्र नक्षत्रदेवशब्दस्य साक्षादल्लेखो नास्ति । महा य दो फग्गुणीओ य ।।१।। असौ च चन्द्रप्रज्ञप्ती [पाहुड १० पाहुडपाहुड हत्थो चित्ता साई, विसाहा तह य होति अणुराहा । १२], जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ [वक्षस्कार ७] च जेद्वा मूलो पुवाऽऽसाढा, लभ्यते । तह उत्तरा चेव ॥२॥ ७. अदिती (क, ग)। अभिई सवणे धणिवा, ८. बंभ (अ० सू० ३४२) । सयभिसया दो य होति भवया । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५२७ • महग्गह-पदं ३२५. 'दो इंगालगा, दो वियालगा, दो लोहितक्खा, दो सणिच्चरा, दो आहुणिया, दो पाहुणिया, दो कणा, दो कणगा, दो कणकणगा, दो कणगविताणगा', दो कणगसंताणगा, दो सोमा, दो सहिया, दो आसासणा, दो कज्जोवगा, दो कब्बडगा, दो अयकरगा', दो दुंदुभगा, दो संखा, दो संखवण्णा, दो संखवण्णाभा, दो कंसा, दो कंसवण्णा, दो कंसवण्णाभा, दो 'रुप्पी, दो रुप्पाभासा", दो णीला, दो णीलोभासा', दो भासा, दो भामरासी, दो तिला, दो तिलपुष्फवण्णा, दो दगा, दो दगपंचवष्णा, दो काका, दो कक्कंधा, दो इंदग्गी, दो धूमकेऊ, दो हरी, दो पिंगला, दो बुद्धा, दो सुक्का, दो बहस्सती, दो राहू, दो अगत्थी, दो माणवगा, दो कासा', दो फासा, दो धुरा', दो पमुहा, दो विगडा, दो विसंधी, दो णियल्ला, दो पइल्ला, दो जाडयाइलगा, दो अरुणा, दो अग्गिल्ला, दो काला, दो महाकालगा, दो सोत्थिया, दो सोबत्थिया, दो वद्धमाणगा", दो पलंबा, दो णिच्चालोगा, दो णिच्चुज्जोता, दो सयंपभा, दो ओभासा, दो सेयंकरा, दो खेमंकरा, दो आभंकरा, दो पभंकरा, दो अपराजिता, दो अरया, दो असोगा, दो विगतसोगा, दो विमला, 'दो वितता, दो वितत्था", दो विसाला, दो साला, दो सुन्वता, दो अणियट्टी, दो एगजडी, दो दुजडी, दो करकरिगा, दो रायग्गला, दो पुप्फकेतू, दो भावकेऊ, [चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वार ?] ॥ जंबुद्दीव-वेइआ-पदं ३२६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। १. अङ्गारकादयोऽष्टाशोतिर्ग्रहाः सूत्रसिद्धाः, ६. क्काकंधा (ख)। केवलमस्मद्दष्टपुस्तकेषु केचिदेव यथोक्त- ७. कसा (क, ग)। संख्या संवदतीति सूर्यप्रज्ञप्त्यनुसारेणासाविह ८. मधुरा (ग)। संवादनीया (वृत्ति पत्र ७४) । ६. जडियाइला (क, ग)। २. स्थानांगवृत्तौ उद्धृतसूर्यप्रज्ञप्ति (पाहुड २०) १०. वद्धमाणगा दो पूसमाणगा दो अंकुसा (ग)। पाठे किञ्चिद् भेदो दृश्यते ११. दो वितत्ता दो वितव्वा (क); दो विमुहा दो कणवियाणए कणसंताणए गीले णीलोभासे वितता (ग)। रुप्पी रुप्पोभासे । १२. असो पाठः प्रस्तुतसूत्रे साक्षाल्लिखितो नास्ति, ३. अतिकरगा (क, ग); अंतकरगा (ख) । किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति (पाहुड १६) पाठानुसारे४. रुप्पा दो रुप्पो (ख)। णासौ युज्यते । पाठसंक्षेपपद्धती नास्य क्रिया५. नोला (क, ग)। पदं लिखितमिति प्रतीयते । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ लवण समुद्द-पदं ३२७. लवणे णं समुद्दे दो जोयणस्यसहस्साइं चक्कवाल विक्खभेणं पण्णत्ते ॥ ३२८. लवणस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ धायइसंड-पदं ३२. धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे णं मंदरस्स पब्वयस्स उत्तर दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा - भरहे चेव, एरवए चेव || ३३०. एवं जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव' दोसु वासेसु मणुया छव्विपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - भरहे चेव, एरखए चेव, णवरं - कूडसामली चेव, धायईरुक्खे' चेव । देवा –गरुले चेव वेणुदेवे, सुदंसणे चेव || ३३१. धायइसंडे' दोवे पच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिने णं दो वासा पण्णत्ता -- बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा - भरहे चेव, एरवए चेव 11 ३३२. एवं - जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव' छव्विपि कालं पच्चणुभवमाणाविति तं जहा --भरहे चेव, एरखए चेव, णवरं – कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे' चैव । देवा - गरुले चेव वेणुदेवे, पियदसणे चेव ॥ ३३३. धायइसंडे णं दीवे दो भरहाई, दो एरवयाई, दो हेमवयाई, दो हेरण्णवयाई, दो हरिवासाई, दोरम्मगवासाई, दो पुव्वविदेहाई, दो अवरविदेहाई, दो देवकुराओ, दो देवकुरुमहद्दुमा, दो देवकुरुमहद्दुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरुमहद्दुमा, दो उत्तर कुरुमहद्दुमवासी देवा ।। ३३४. दो चल्लहिमवंता, दो महाहिमवंता, दो सिढा, दो पीलवंता, दो रुप्पी, दो ठाण सिहरी ॥ ३३५. दो सद्दावाती, दो सद्दावातिवासी साती देवा, दो वियडावाती, दो वियडावातिवासी पभासा देवा, दो गंधावाती दो गंधावातिवासी अरुणा देवा, दो मालवंतपरियागा, दो मालवंतपरियागवासी पउमा देवा || ३३६. दो मालवंता, दो चित्तकूड़ा, दो पम्हकूडा, दो णलिणकूडा, दो एगसेला, दो तिकूडा, दो वेसमणकूडा, दो अंजणा, दो मातंजणा, दो सोमणसा, १. ठा० २/२६८ । २. ठा० २२२६६-३२० । ३. धाती ० ( क, ख, ग ) 1 ४. धातती (क, ख, ग ) । ५. ठा० २१२६८ । ६. ठा० २२६६-३२० । ७. महाधायती ( क, ख, ग ) । ८. गंधावती (क, ख, ग ); द्रष्टव्यं ठा० ४१३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५२६ दो विज्जुप्पभा, दो अंकावतो, दो पम्हावती, दो आसोविसा, दो सुहावहा, दो चंदपव्वता, दो सूरपवता, दो णागपव्वता, दो देवपव्वता, दो गंधमायणा, दो उसुगारपव्वया, दो चुल्लहिमवंतकूडा, दो वेसमणकूडा, दो महाहिमवंतकूडा, दो वेरुलियकूडा, दो णिसढकूडा, दो रुयगडा, दो गीलवंतकूडा, दो उवदंसणकूडा, दो रुप्पिकूडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरिकूडा, दो तिगिछिकूडा ॥ ३३७. दो पउमद्दहा, दो पउमद्दहवासिणीओ सिरीओ देवीओ, दो महापउमद्दहा, दो महाप उमद्दहवासिणीओ हिरीओ देवीओ, एवं जाव' दो पुंडरीयदहा, दो पोंडरीयद्दहवासिणीओ लच्छीओ देवीओ।। ३३८. दो गंगप्पवायदहा जाव' दो रत्तावतोपवातद्दहा ।। ३३६. दो रोहियाओ' जाव' दो रुप्पकलाओ, दो गाहवतीओ', दो दहवतीओ, दो पंकवतीओ', दो तत्तजलाओ, दो मत्तजलाओ, दो उम्मत्तजलाओ, दो खीरोयाओ', दो सीहसोताओ', दो अंतोवाहिणीओ, दो उम्मिमालिणीओं, 'दो फेणमालिणीओ, गंभीरमालिणीओ ॥ ३४०. दो कच्छा, दो सुकच्छा, दो महाकच्छा, दो कच्छावती, दो आवत्ता, दो मंगलवत्ता, दो पुक्खला, दो पुक्खलावई, दो वच्छा, दो सुवच्छा, दो महावच्छा, दो वच्छगावती, दो रम्भा, दो रम्मगा. दो रमणिज्जा, दो मंगलावती, दो पम्हा, दो सुपम्हा, दो महपम्हा", दो पम्हगावती, दो संखा, दो णलिणा, दो कुमुया, दो सलिलावती, दो वप्पा, दो सुवप्पा, दो महावप्पा, दो बप्पगावती, दो वग्गू, दो सुवग्गू, दो गंधिला, दो गंधिलावती ॥ दो खेमाओ, दो खेमपुरोओ, दो रिट्ठाओ, दो रिटुपुरोओ, दो खग्गीओ, दो मंजूसाओ, दो ओसधीओ", दो पोंडरिगिणीओ दो सुसीमाओ, दो कुंडलाओ, दो अपराजियाओ, दो पभंकराओ, दो अंकावईओ, दो पम्हावईओ, ३४१. १. ठा० २०२८७-२८६ । ६. वेगवती (वृपा)। २. ठा० २।२६४-३०० ।। ७. खारोआओ (क, ग, वृ); खीरोदाओ (वृपा)। ३. रोहियसाओ (ग); 'दो रोहियाओ' इत्यादौ ८. सीयसोताओ (वृपा)। नद्यधिकारे गङ्गादीनां सदपि द्वित्वं नोक्तं, ६. उंमिणमा° (ख)। जम्बुद्वीपप्रकरणोक्तस्य -- "महाहिमवंताओ १०. दो गंभीरमालिणीओ, दो फेणमालिणीओ वासहरपव्वयाओ महापउमद्दहाओ दो महा- (वृपा)। नदीओ पवहंति" इत्यादिसूत्रक्रमस्याश्रयणात्, ११. महा° (क, ग)। तत्र हि रोहिदादय एवाप्टी श्रूयन्त इति(वृ)। १२. उसुहीओ (ख) । ४. ठा० २१२६०-२६३ । १३. पोंडर ° (ख)। ५. गंधावतीओ (क, ग)। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० ठाण दो सुभाओ, दो रयणसंचयाओ, दो आसपुराओ, दो सोहपुराओ, दो महापुराओ, दो विजयपुराओ, दो अवराजिताओ, दो अवराओ', दो असोयाओ, दो विगयसोगाओ, दो विजयाओ, दो वे जयंतीओ, दो जयंतीओ, दो अपरा जियाओ, दो चक्कपुराओ, दो खग्गपुराओ, दो अवज्झाओ, दो अउज्झाओ ॥ ३४२. दो भद्दसालवणा, दो णंदणवणा, दो सोमणसवणा, दो पंडगवणाई॥ ३४३. दो पंडकंबलसिलाओ, दो अतिपंडुकंबलसिलाओ, दो रत्तकवलसिलाओ, दो अइरत्तकंबलसिलाओ॥ ३४४. दो मंदरा, दो मंदरचूलिआओ ।। ३४५. धाय इसंडस्स णं दीवस्स वेदिया दो गाउयाई उडमुच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ३४६. कालोदस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। पुक्खरवर-पदं ३४७. पुक्खरवरदीवड्डपुरथिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा-भरहे चेव, एरवए चेव ।। ३४८. तहेव जाव' दो कुराओ पण्णत्ताओ-देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव । तत्थ णं दो महतिमहालया महद्दुमा पण्णत्ता, तं जहा-कूडसामली चेव, पउमरुक्खे चेव । देवा-गरुले चेव वेणुदेवे, पउमे चैव जाव' छव्विहपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ३४६. पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिपद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता। तहेव' णाणत्तं--कूडसामली चेव, महापउमरुक्खे चेव । देवा-गरुले चेव वेणुदेवे, पुंडरीए चेव ॥ ३५०. पुक्खरवरदीवड्ढे णं दीवे दो भरहाई, दो एरवयाइं जाव' दो मंदरा, दो मंदर चूलियाओ । वेदिका-पदं ३५१. पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ ३५२. सव्वे सिपि णं दीवसमुदाणं वेदियाओ दो गाउयाइं उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ताओ। इंद-पदं ३५३. दो असुरकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा--चमरे चेव, बली चेव ।। १. अवरयाओ (क, ग); अवयाओ (ख)। ५. ठा० २।२७२-३२० । २. पंडुगवणाई (ख)। ६. पू०-ठा० २।२६८.३२० । ३. ठा०२।२६८ । ७. ठा० २१३३३-३४३ । ४. ठा० २२६६-३७१ । ८. °चूलियाई (क)। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) ३५४. दो णागकुमारिंदा पपणत्ता, तं जहा—धरणे चेव, भूयागंदे चेव ।। ३५५. दो सुवण्णकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा–वेणुदेवे चेव, वेणुदाली चेव ।। ३५६. दो विज्जुकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा–हरिच्चेव, हरिस्सहे चेव ।। ३५७. दो अग्गिकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-अग्गिसिहे चेव, अम्गिमाणवे चेव ।। ३५८. दो दीवकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे चेद, विसिढे चेव ।। ३५६. दो उदहिकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-जलकते चेव, जलप्पभे चेव ।। ३६०. दो दिसाकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा--अमियगती चेव, अमितवाहणे चेव ।। ३६१. दो वायुकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-वेलंबे चेव, पभंजणे चेव ॥ ३६२. दो थणियकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा—घोसे चेव, महाघोसे चेव ।। ३६३. दो पिसाइंदा पण्णत्ता, तं जहा—काले चेव, महाकाले चेव ।। ३६४. दो भूइंदा पण्णत्ता, तं जहा–सुरूवे चेव, पडिरूवे चेव ।। ३६५. दो जविखदा पण्णत्ता, तं जहा --पुण्णभद्दे चेव, माणिभद्दे चेव ॥ ३६६. दो रक्खसिदा पण्णत्ता, तं जहा -भीमे चेव, महाभीमे चेव ॥ ३६७. दो किण्णरिंदा पण्णत्ता, तं जहा-किण्णरे चेव, किंपरिसे चेव ।। ३६८. दो किंपुरिसिंदा पण्णत्ता, तं जहा- सप्पुरिसे चेव, महापुरिसे चेव ।। ३६६. दो महोरगिंदा पण्णत्ता, तं जहा अतिकाए चेव, महाकाए चेव ।। ३७०. दो गंधविदा पण्णत्ता, तं जहा—गीतरती चेव, गोयजसे चेव ।। ३७१. दो अणपण्णिदा पण्णत्ता, तं जहा-सण्णिहिए चेव, सामण्णे' चेव ।। ३७२. दो पणपण्णिदा पण्णत्ता, तं जहा-धाए चेव, विहाए चेव ।। ३७३. दो इसिवाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-इसिच्चेव, इसिवालए चेव ।। ३७४. दो भूतवाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-'इस्सरे चेव, महिस्सरे" चेव ।। ३७५. दो कदिदा पण्णत्ता, तं जहा—सुवच्छे चेव, विसाले चेव ।। ३७६. दो महाकदिदा पण्णत्ता, तं जहा-हस्से चेव, हस्सरती चेव ।। ३७७. दो कुंभंडिदा पण्णत्ता, तं जहा.-सेए चेव, महासेए चेव ।। ३७८. दो पतइंदा पण्णत्ता, तं जहा–पत्तए तेव, पतयवई चेव ।। ३७६. जोइसियाणं देवाणं दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा--चंदे चेव, सूरे चेव ।। ३८०. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा–सक्के चेव, ईसाणे चेव ।। ३८१. सणंकुमार -माहिदेसु कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा---सणंकुमारे चेव, माहिंदे चेव ।। १. वसिट्टे (क, ग)। २. वात° (क, ग)। ३. सामाणे (क); सामणि' (ख, ग)। ४. इस्सिरे चेव महिस्सरे (क)। ५. कुंभडिदा (ख); कुंभंडिंडा (ग)। ६. महापयतए (क); पयगवते (ख); पयतए (ग)। ७. एवं सणं (क, ख, ग)। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ ठाणे ३८२. बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-बंभे चेव, लंतए चेव ।। ३८३. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा—महासुक्के चेव, सहस्सारे चेव ॥ ३८४. आणत-पाणत-आरण-अच्चुतेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा—पाणते चेव, अच्चुते चेव ॥ विमाण-पदं ३८५. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा दुवण्णा पण्णत्ता, तं जहा–'हालिद्दा चेव, सुकिल्ला " चेव ॥ देव-पदं ३८६. गेविज्जगा णं देवा' दो रयणीओ उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। चउत्थो उद्देसो जीवाजीव-पदं ३८७. समयाति वा आवलियाति वा जीवाति या अजोवाति या पच्चति ।। ३८८. आणापाणूति वा थोवेति वा जीवाति या अजोवाति या पवुच्चति ।।। ३८६. खणाति वा लवाति वा जीवाति या आजोवाति या पवुच्चति । एवं-मुत्ताति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा मासाति वा उडूति वा अयणाति वा संवच्छराति वा जुगाति वा वाससयांति वा वाससहस्साइ वा वाससतसहस्साइ वा वासकोडीइ वा पूवंगाति वा पुव्वाति वा तूडियंगाति वा तडियाति वा अडडंगाति वा अडडाति वा 'अववंगाति वा अववाति' वा हुहुअंगाति वा हयाति वा उत्पलंगाति वा उप्पलाति वा पउमंगाति वा पउमाति वा गलिणंगाति वा णलिणाति वा अत्थणिकुरंगाति' वा अत्थणिकुराति वा अउअंगाति वा अउआति वा 'णउअंगाति वा पउआति वा? पउतंगाति वा पउताति वा १. हालिद्दे चेव सुकिल्ले (क, ग)। ७. अपयगाति वा अपवाति (क, ग)। २. देवा णं (क, ख, ग)। ३,४, वा (क); वृत्तिकृता 'या' व्याख्यातः- ६. अच्छीणिकुरंगाति (क); अथिणिकुरंगा चकारी समुच्चयार्थी, दीर्घता च प्राकृ- (ख)। तत्वात् । १०. अत्थणिउराति (क, ग)। ५. थोवाति (क, ख, ग)। ६. उदूति (क, ग)। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) चलियंगाति वा चलियाति वा सीसपहेलियंगाति वा सीसपहेलियाति वा पलिओवमाति वा सागरोवमाति वा 'ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा"-- जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति ॥ ३९०. गामाति वा णगराति वा णिगमाति बा रायहाणीति वा खेडाति वा कब्बडाति वा मडंबाति वा दोणमुहाति वा पट्टणाति वा आगराति वा आसमाति वा संबाहाति वा सण्णिवेसाइ वा घोसाइ वा आरामाइ वा उज्जाणाति वा वणाति वा वणसंडाति वा वावीति वा पुक्खरणीति वा सराति वा सरपंतीति वा अगडाति वा तलागाति वा दहाति वा णदीति वा पुढवीति वा उदहीति वा वातखंधाति वा उवासंतराति वा वलयाति वा विग्गहाति वा दीवाति वा समुद्दाति वा वेलाति वा वेइयाति' वा दाराति वा तोरणाति वा णेरइयाति वा णेरइयावासाति वा जाव' वेमाणियाति वा वेमाणियावासाति वा कप्पाति वा कप्पविमाणावासाति वा वासाति वा वासधरपव्वताति वा कुडाति वा कडागाराति वा विजयाति वा रायहाणीति वा-जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति ॥ ३६१. छायाति' वा आतवाति वा दोसिणाति वा अंधकाराति वा 'ओमाणाति वा उम्माणाति वा अतियाणगिहाति वा उज्जाण गिहाति वा अवलिंबाति वा सणिप्पवाताति वा-जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति ॥ ३६२. दो रासी पण्णत्ता, तं जहा-जीवरासी चेव, अजीवरासी चेव ।। कम्म-पदं ३६३. दविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा-पेज्जबंधे चेव, दोसबंधे चेव ।। ३६४. जीवा णं दोहिं ठाणेहि पावं कम्मं बंधंति, तं जहा–रागेण चेव, दोसेण चेव ॥ ३६५. जीवा णं दोहि ठाणेहिं पावं कम्म उदीरेंति, तं जहा-अब्भोवगमियाए चेव वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए। ३९६. “जीवाणं दोहि ठाणेहिं पावं कम्मं वेदेति, तं जहा-अब्भोवगमियाए चेव वेयणाए, उबक्कमियाए चेव वेयणाए॥ ३९७. जीवा णं दोहि ठाणेहिं पावं कम्मं णिज्जरेंति, तं जहा° --अब्भोवगमियाए चेव वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए । १. उस्सप्पिणीति वा ओसप्पिणीति वा (क,ख)। ५. ओमाणाति वा पमाणाति बा (क)। २. वेतिताति (क, ख, ग)। ६. अतिताण ° (क, ख, ग)। ३. ठा० १२१४२-१६३ । ७. सं० पा०–एवं वेदेति एवं णिज्जरेंति । ४. छाताति (क, ख, ग)। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४ ठाण अत्त-णिज्जाण-पदं ३६८. दोहि ठाणेहि आता सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेवि आता सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं फुसित्ता णं णिज्जाति ।। ३९६. "दोहि ठाहि आता सरीरं फुरित्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेणवि आता सरीरं फुरित्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं फुरित्ता णं णिज्जाति ।। ४००. दोहि ठाणेहि आता सरीरं फुडित्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेणवि आता सीरं फुडित्ता गं णिज्जाति, सम्वेणवि आता सरीरगं फुडित्ता णं णिज्जाति ।। ४०१. दोहि ठाणेहि आता सरीरं संवट्टइत्ता णं णिज्जाति, तं जहा–देसेणवि आता सरीरं संवदइत्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं संवट्टइत्ता णं णिज्जाति ।। ४०२. दोहि ठाणे हि आता सरीरं णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेणवि आता सरीरं णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति ॥ खय-उवसम-पदं ४०३. दोहि ठाणेहिं आता केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, तं जहा-खएण' चेव, उवसमेण चेव ।। ४०४. "दोहि ठाणेहिं आता केवलं बोधि बुज्झज्जा, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइज्जा, केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं° मणपज्ज वणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-खएण चेव, उवसमेण चेव ।। ओवमिय-काल-पदं ४०५. दुविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा- पलिओवमे चेव, सागरोवमे चेव । से कि तं पलिओवमे ? पलिओवमे--- संगहणी-गाहा जं जोयणविच्छिण्णं', पल्लं एगाहियप्परूढाणं । होज्ज णिरंतरणिचितं, भरितं वालग्गकोडीणं ॥१॥ १. सं० पा०-एवं फुरित्ता णं एवं फुडित्ता ण __ एवं संवट्टइत्ता णं एवं णिवट्टइत्ता णं । २. खतेण (क, ख, ग)। ३. सं० पा०–एवं जाव भणपज्जवणाणं। ४. °च्छन्नं (क, ग)। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी ठाणं (उत्थो उद्देसो) वाससए वाससए, एक्केक्के अवहडंमि जो कालो । सो कालो बोद्धव्वो, उवमा एगस्स पल्लस्स ॥२॥ एएसि पल्लागं, कोडाकोडी हवेज्ज दस गुणिता । तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं ||३|| पाव-पदं ४०६. दुविहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा - आयपइट्टिए चेव, परपइट्ठिए चेव ॥ ४०७ दुविहे माणे, दुविहा माया, दुविहे लोभे, दुविहे पेज्जे, दुविहे दोसे, दुविहे कल, दुविहे अब्भवखाणे, दुविहे पेसुण्णे, दुविहे परपरिवाए, दुविहा अरतिरती, दुविहे मायामोसे, दुविहे मिच्छादंसणसल्ले पण्णत्ते, तं जहा - आयपइट्ठिए चेव, परपइट्ठिए चेव । एवं पेरइयाणं जावां वेमाणियाणं ॥ जीव-पदं ४०८. दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा - तसा चेव, थावरा चैव ॥ ४०६. दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - सिद्धा चेव, असिद्धा चैव ॥ ४१०. दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सइंदिया चेव अणिदिया चेव, सकायच्चेव अकायच्चेव, सजोगी चैव अजोगी चेव, सवेया चेव अवेया चेव, सकसाया चेव कसाया चेव, सलेसा चेव अलेसा चेव, गाणी चेत्र अगाणी चेव, सागारोवउत्ता चेत्र अणागारोवउत्ता चेव, आहारगा चेव अणाहारगा चेव, भासगा चेव अभागा चैव चरिमा चेव अचरिमा चेव, ससरीरी चेव असरीरी चेव ° 11 मरण-पदं ४११. दो मरणाई समणेण भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णो णिच्चं वण्णियाइं णो णिच्च कित्तियाइं णो णिच्चं बुइयाई पो णिच्चं पसत्थाई णो पिच्चं अण्णायाइं भवति, तं जहा -वलयमरणे' चेव, वसट्टमरणे चैव ॥ ४१२ एवं - णियाणमरणे चैव तब्भवमरणे चेव, गिरिपडणे चेव तरुपडणे चेव, जलपवेसे' चेव जलणपवेसे चेव, विसभक्खणे चेव सत्थोवाडणे चैव ॥ १. सं० पा० एवं णेरइयाण जाव वेमाणियाणं एवं जाव मिच्छादंसणसल्लाणं । २. ठा० १।१४२-१६३ । ३. सं० पा० - एवं एसा गाहा फासेतव्वा जाव ससरीरी चेव असरीरी चेव । संगहणी-गाहा सिद्ध सइदियकाए, जोगे वेए कसाय लेसा य । ५.३५ वगाहारे, भाग चरिमेय ससरीरी ॥१॥ ४. पूइयाई (क, ख, ग, वृपा) । ५. वलात ० ( क, ख, ग ) | ६. जलपडणे ( ग ) | Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ ठाणं ४१३. दो मरणाई 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णो णिच्च वणियाई णो णिच्चं कित्तियाइं णो णिच्चं बुइयाई गो णिच्चं पसत्थाई' णो णिच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति । कारणे पुण अप्पडिकुट्ठाई, तं जहा–वेहाणसे' चेव गिद्धपट्टे चेव ।। ४१४. दो मरणाई समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वग्णियाई *णिच्चं कित्तियाई णिच्चं बुइयाई णिच्च पसत्थाई णिच्चं° अब्भणुण्णायाई भवंति, तं जहा-पाओवगमणे चेव, भत्तपच्चक्खाणे चेव ।। ४१५. पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाणीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव । णियमं अपडिकम्म ४१६. भत्तपच्चपक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–णीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव। णियम सपडिकम्मे ।। लोग-पदं ४१७. के अयं लोगे? जीवच्चेव, अजीवच्चेव ॥ ४१८. के अणंता लोगे? जीवच्चेव, अजीवच्चेव ।। ४१६. के सासया लोगे ? जीवच्चेव, अजीवच्चेव ।। बोधि-पदं ४२०. दुविहा बोधी पण्णत्ता, तं जहा–णाणबोधी चेव, दंसणबोधी चेव ।। ४२१. दुविहा बुद्धा पण्णत्ता, तं जहा–णाणबुद्धा चेव, दसणबुद्धा चेव ।। मोह-पदं ४२२. "दुविहे मोहे पण्णत्ते, तं जहा-णाणमोहे चेव, दंसणमोहे चेव ।। ४२३. दुविहा मूढा पण्णत्ता, तं जहा-णाणमूढा चेव, दसणमूढा चेव ॥ कम्म-पदं ४२४. णाणावरणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–देसणाणावरणिज्जे चेव, सव्व __णाणावरणिज्जे चेव ॥ १. सं० पा०---मरणाइं जाव णो णिच्चं । ४. सं० पा०-बणियाइं जाव अब्भणण्णायाई। २. कारणेण (क, ख, ग, वृषा)। ५. ०क्कमे (क, ग)। ३. विहायसिनभसि भवं वैहायसं प्राकृतत्वेन ६. °क्कमे (क, ग)। तु वेहाणसमित्युक्तमिति (वृ)। ७. सं० पा०-एवं मोहे मूढा । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ४२५. दरिसणावरणिज्जे कम्मे' 'दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–देसदरिसणावरणिज्जे चेव, सव्वदरिसणावरणिज्जे चेव ॥ ४२६. वेयणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सातावेयणिज्जे चेव, असातावेयणिज्जे चेव ।। ४२७. मोहणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दसणमोहणिज्जे चेव, चरित्त मोहणिज्जे चेव ।। ४२८. आउए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अद्धाउए चेव, भवाउए चेव ।। ४२६. णामे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुभणामे चेव, असुभणामे चेव ।। ४३०. गोत्ते कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- उच्चागोते चेव, णीयागोते चेव ॥ ४३१. अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पडुप्पण्णविणासिए' चेव, पिहति' य आगामिपहं चेव ॥ मच्छा -पदं ४३२. दुविहा मुच्छा पण्णत्ता, तं जहा- पेज्जवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव ।। ४३३. पेज्जवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-माया' चेव, लोभे चेव ।। ४३४. दोसवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कोहे चेव, माणे चेव ।। आराहणा-पदं ४३५. दुविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा-धम्मियाराहणा चेव, केवलिआराहणा' चेव ॥ ४३६. धम्मियाराहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---सुयधम्माराहणा चेव, चरित्तधम्मा राहणा चेव ।। ४३७. केवलिआराहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अंतकिरिया चेव, कप्पविमाणो ववत्तिया चेव ।। तित्थगर-वण्ण-पदं ४३८. दो तित्थगरा णीलुप्पलसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-मुणिसुव्वए चेव, अरिटु णमी चेव ।। १. सं० पा०--दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं ४. क्वचिदागामिपथानिति दृश्यते, क्वचिच्च चेव। ___ आगमपहंति (वृ)। २. विणासी (वृपा)। ५. माते (क, ग)। ३. पिहित (क्व)। ६. कम्मिआ° (ग)। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण ४३९. दो तित्थगरा पियंगुसामा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-मल्ली चेव, पासे चेव ॥ ४४०. दो तित्थगरा पउमगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा- पउमप्पहे चेव, बासुपुज्जे चेव ॥ ४४१. दो तित्थगरा चंदगोरा वणेणं पण्णत्ता, तं जहा-चंदप्पभे चेव, पुप्फदंते' चेव ।। पुव्ववत्थु-पदं ४४२. सच्चप्पवायपुव्वस्स णं दुवे वत्थू पण्णत्ता ॥ णक्खत्त-पदं ४४३. पुव्वाभवयाणक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ४४४. 'उत्तराभवयाणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ४४५. “पुवफग्गुणीणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ४४६. उत्तराफग्गुणीणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। समुद्द-पदं ४४७. अंतो णं मणुस्सखेत्तस्स दो समुद्दा पण्णत्ता, तं जहा- लवणे चेव, कालोदे चेव ।। चक्क ट्रि-पदं ४४८. दो चक्कवट्टी अपरिचत्तकामभोगा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अपइट्ठाणे णरए णेरइयत्ताए उववण्णा, तं जहा-सुभूमे चेव, बंभदत्ते चेव ।। देव-पदं ४४६. असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीण देवाणं उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता॥ ४५०. सोहम्मे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। ४५१. ईसाणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। ४५२. सणकुमारे कप्पे देवाणं जहाणेणं दो सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।। ४५३. माहिदे कप्पे देवाणं जहण्णेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ॥ ४५४. दोसु कप्पेसु कप्पित्थियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव ।। १. °समा (क)। २. पासो (ग)। ३. वासपुज्जे (क, ग)। ४. पुष्प (क, ग)। ५. वत्थू पं सुभनामे चेव असुभनामे चेव (क)। ६. पुव ° (ख)। ७. उत्तर ° (ख); X (ग)। . सं० पा०--एवं पुटवफरगुणी उत्तराफग्गुणी। ६. पू०-ठा० १११४३-१५१ । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं ठाणं (चउत्थी उद्देसो) ५३६ ४५५. दोसु कप्पेसु देवा तेउलेस्सा पण्णत्ता, तं जहा- सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव || ४५६. दोसु कम्पेसु देवा कायपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा- सोहम्मे चेव, ईसाणे चैव ॥ ४५७. दोसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा - सणकुमारे चेव, माहिदे चैव ॥ ४५८. दोसु कप्पेसु देवा रूयपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा -- बंभलोगे चेव, लंलगे चेव ॥ ४५६. दोसु कप्पेसु देवा सद्दपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा - महासुक्के चैव, सहस्सारे चेव || ४६०. दो इंदा मण परियारगा पण्णत्ता, तं जहा -- पाणए चेव, अच्चुए चैव ॥ पावकम्म- पर्द o ४६१. जीवाण दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिगंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा ---तसकायणिव्वत्तिए चेव, यावर कायणिव्वत्तिए चैव ॥ ४६२. "जीवा णं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए उवचिणिसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा, बंधिसु वा बंधेति वा बंधिस्संति वा, उदीरिसु वा उदीरति वा उदीरिस्संति वा, वेदसु वा वेदेति वा वेदिस्संति वा, णिज्जरिसु वाणिज्जरेंति वा णिज्जरिस्संति वा, तं जहा --तसकायणिव्वत्तिए चेव, थावर कायणिव्वत्तिए चेव !! पोग्गल-पदं ४६३. दुपएसिया खंधा अनंता पण्णत्ता ॥ ४६४. दुपदेसोगाढा पोग्गला अनंता पण्णत्ता ॥ ४६५. एवं जाव' दुगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पण्णत्ता || १. सं० पा० - एवं २. ठा० १।२५५, २५६ । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं पढमो उद्देसो इंद-पदं १. तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहाणामिदे, ठवणिदे, दविदे॥ २. तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा-णाणिदे, सणिदे, चरित्तिदे। ३. तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा–देविदे, असुरिंदे, मणुस्सिदे ।। विकुव्वणा-पदं तिविहा विकुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा–बाहिरए' पोग्गलए परियादित्ता'एगा विकुव्वणा, बाहिरए पोग्गले अपरियादित्ता–एगा विकुव्वणा, बाहिरए पोग्गले परियादित्तावि अपरियादित्तावि--एगा विकुव्वणा ॥ तिविहा विकुठवणा' पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरए पोग्गले परियादित्ता-एगा विठवणा, अब्भंतरए पोग्गले अपरियादित्ता-एगा विकुव्वणा, अब्भंतरए पोग्गले परियादित्तावि अपरियादित्ताविएगा विकुव्वणा ।। तिविहा विकुव्वणा पण्णता, तं जहा–वाहिरभंतरए पोग्गले परियादित्ताएगा विकुव्वणा, वाहिरभंतरए पोग्गले अपरियादित्ता-एगा विकुव्वणा, बाहिरब्भंत रए पोग्गले परियादित्तावि अपरियादित्तावि—एगा विकुब्बणा ।। संचित-पदं ७. तिविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा–कतिसंचिता, अकतिसंचिता', अवत्तव्वगसंचिता ॥ ८. एवमेगिदियवज्जा जाव' वेमाणिया । १. बाहिरते (क, ख, ग)। २. परियातिता (क, ख, ग)। ३. विगुव्वणा (क, ग)। ४. नेरझ्या णं (क, ग)। ५. अकिति° (क)। ६. ठा० १३१४२-१५१, १५७-१६३ । ५४० Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५४१ परियारणा-पदं ९. तिविहा परियारणा' पण्णत्ता, तं जहा १. एगे देवे अण्णे देवे. अण्णेसि देवाणं दैवीओ य अभिजंजिय-अभिजंजिय परियारेति', अप्पणिज्जिआओ' देवीओ अभिजुजिय-अभिजुजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय-विउव्विय परियारेति । २. एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णेसि देवाणं देवीओ अभिजुजिय-अभिजुजिय परियारेति, अप्पणिज्जिआओ देवोओ अभिजुजिय-अभिजंजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउविय-विउव्विय परियारेति । ३. एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णेसिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय-अभिजुजिय परियारेति, णो अप्पणिज्जिताओ देवीओ अभिजंजिय-अभिजूजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पाणं विउविय-विउव्विय परियारेति ।। मेहण-पदं १०. तिविहे मेहुणे पण्णत्ते, तं जहा-दिव्वे, माणुस्सए, तिरिक्खजोणिए । ११. तओ मेहुणं गच्छंति, तं जहा—देवा, मणुस्सा, तिरिक्खजोणिया ।। १२. तओ मेहुणं सेवंति, तं जहा- इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। जोग-पदं १३. तिविहे जोगे पण्णत्ते, तं जहा-मणजोगे, वइजोगे कायजोगे। एवं ोरइयाणं विगलिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं ।।। १४. तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-मणपओगे, वइपओगे कायपओगे । जहा जोगो विगलिदियवज्जाणं जाव तहा पओगोवि ।। करण-पदं १५. तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, एवं विलि दियवज्ज जाव' वेमाणियाणं ।। १६. तिविहे करणे पण्णते, तं जहा-आरंभकरणे, संरंभकरणे, समारंभकरणे। णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ॥ १. परिणावणा (ग)। ६. णेरतिताणं वि (क); रतिता वि (ग)। २. ० रेंति (ग)। ७. ठा० १११४२-१५१, १६०-१६३ । ३. ०णिज्जाओ (क); अप्पणिच्चियाओ ८. ठा० १६१४१-१५१, १६०-१६४ । (भ० २१७६) 8. ठा० १११४१-१५१,१६०-१६३ । ४. अभिजुजियाओ (ख)। १०. ठा० ११४१-१६३ । ५. विकुब्विय (ग)। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ ठाणं १६. आउय-पगरण-पदं १७. तिहि ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा—पाणे अतिवातित्ता भवति, मुसं वइत्ता भवति, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेण पडिलाभेत्ता भवति- इच्चेतेहि तिहि ठाणेहि जीवा अप्पाउयत्ताए कम्म पगरति ।। १८. तिहि ठाणेहि जीवा दीहाउयत्ताए कम्भ पगरेंति, तं जहा--णो पाणे अतिवातित्ता भवइ, णो मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा 'फासुएणं एसणिज्जेण" असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ--इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्म पगरेति । तिहिं ठाणेहि जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा----पाणे अतिवातित्ता भवइ, मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता णिदित्ता खिसित्ता गरहित्ता अवमाणित्ता अण्णयरेणं अमणुण्णेणं अपीतिकारतेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ-इच्चेतेहिं तिर्हि ठाणेहि जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति ।। २०. तिहि ठाणेहिं जीवा सुभदीहा उयत्ताए कम्म पगरेंति, तं जहा–णो पाणे अति वातित्ता भवइ, जो मुसं वदित्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता णमंसित्ता सक्कारिता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं 'देवतं चेतितं पज्जुवासेत्ता मणुण्णेणं पीतिकारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ-इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहि जीवा सुहदीहाउयत्ताएं कम्मं पगरेति ।। गुत्ति-अगुत्ति-पदं २१. तओ युत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती ।। २२. संजयमणुस्साणं तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मणगुत्ती, वइगुत्ती, काय गुत्ती ॥ २३. तओ अगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—मणअगुत्ती, वइअगुत्ती, कायअगुत्ती। एवं-णे रइयाणं जाव थणियकुमाराणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं असंजत मणुस्साणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं ॥ दंड-पदं २४. तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे ।। १. फासुएसणिज्जेणं (क, ग)। २. X (वृपा)। ३. देवयं चेइयं (क, ग)। ४. सुभ° (ग)। ५. ततो (क, म) । ६. संजत ° (क, ग)। ७. ठा० १११४२-१५० । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं ठाणं ( पढमो उद्देसो) २५. णेरइयाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा -मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे । विगलिंदियवज्जं जाव' वेमाणियाणं ॥ गरहा-पदं २६. तिविहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा मणसा वेगे गरहृति, वयसा वेगे गरहति, कायसा वेगे गरहति - पावाणं कम्माणं अकरणयाए । अहवा - गरहा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- दोहंगे अद्धं गरहति, रहस्संपेगे अद्धं गरहति, कार्यपेगे पडिसाहरति - पावाणं कम्माणं अकरणयाए । पच्चक्खाण-पदं २७. तिविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा - माणसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चकखाति, कायसा वेगे पच्चक्खाति-पावाणं कम्माणं अकरणयाए । अहवा - पच्चक्खाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -- दीहंगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्पेगे अर्द्ध पच्चक्खाति, कार्यपेगे पडिसाहरति - पावाणं कम्माणं अकरणयाए || ५४३ उपकार- पर्द २८. तओ रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा - 'पत्तोवगे, पुप्फोवगे", फलोबगे । एवामेव तओ पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा - पत्तोवारुक्ख समाणे, पुप्फोवारुक्खसमाणे, फलोवरुक्ख समाणे || पुरिसजात-पदं २६. तओ पुरिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा - णामपुरिसे, ठवणपुरिसे, दव्वपुरिसे ।। ३०. तओ पुरिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा -गाणरिसे, दंसणपुरिसे, चरित्तपुरिसे ॥ ३१. तओ पुरिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदपुरिसे, चिधपुरिसे, अभिलावपुरिसे || ३२. तिविहा पुरिसा पण्णत्ता, तं जहा उत्तमपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, जहणपुरिसा ॥ ३३. उत्तमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मपुरिया, भोगपुरिया, कम्मपुरिसा । धम्मपुरिया अरहंता, भोगपुरिसा चक्कवट्टी, कम्मपुरिसा वासुदेवा ॥ ३४. मज्झिमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - उग्गा, भोगा, राइण्णा || ३५. जहण्णपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- दासा, भयगा, भाइल्लमा || १. ठा० ११४२-१५१, १६० १६३ । २. वसा (क, ग ) । ३. ०णताते (क, ग ) । ४. सं० पा० - एवं जहा गरहा तहा पञ्चक्खाणे वि दो आलावगा ५. पत्तोवेगे पुप्फोवेगे ( ख ) । ६. 'पत्तोवम' इत्यादिवाच्ये पत्तोवा इत्यादिकं प्राकृतलक्षणवशादुक्तं, 'समाणे' इत्यत्रापि च 'सामाणे' (वृ) । ७. अरिहंता ( ख ) । 5. भातिल्लमा ( क, ख, म ) Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ ठाणं मच्छ-पदं ३६. तिविहा मच्छा पण्णता, तं जहा-अंडया, पोयया', संमुच्छिमा ॥ ३७. अंडया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, परिसा, गपंसगा। ३८. पोतया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा—इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ॥ पक्खि -पदं ३९. तिविहा पक्खी पण्णत्ता, तं जहा- अंडया, पोयया, संमुच्छिमा ।। ४०. अंडया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा । इत्थी, पुरिसा, गपुंसगा। ४१. पोयया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- इत्थी, पुरिसा, गपुसगा।। परिसप्प-पदं ४२. “तिविहा उरपरिसप्पा पण्णत्ता, तं जहा---अंडया, पोयया, संमुच्छिमा ॥ ४३. अंडया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा । ४४. पोयया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा।। ४५. तिविहा भुजपरिसप्पा पण्णत्ता, तं जहा—अंडया, पोयया, संमुच्छिमा ।। ४६. अंडया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, गपुंसगा। ४७. पोयया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ॥ इत्थी -पदं ४८. तिविहाओ इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–तिरिक्खजोणित्थीओं', मणुस्सित्थीओ देवित्थीओ।। ४६. 'तिरिवख जोणीओ इत्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जलचरीओ, थलवरीओ, खहचरीओ।। ५०. मणुस्सित्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—कम्मभूमियाओ, अकम्मभूमि __ याओ, अंतरदीविगाओ ।। पुरिस-पदं ५१. तिविहा पुरिसा पण्णत्ता, तं जहा-तिरिक्खजोणियपुरिसा, मणुस्सपुरिसा, देवपुरिसा ।। ५२. तिरिक्खजोणियपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहाजलचरा, थलचरा, खह चरा ॥ १. पोतता (क, ग)। यव्वा एवं चेव। २. अंडगा (क) ४. ° जोणियातो (क, ख, ग)। ३. सं० पा० -एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरि- ५. जोणित्थिओ (ग)! सप्पावि भाणियव्वा भुजपरिसप्पावि भाणि Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं ( पढो उद्देसो) ५४५ ५३. मणुस्सपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - कम्मभूमिया, अकम्मभूमिया, अंतरदीवगा ॥ पुंसग - पदं ५४. तिविहा णपुंसगा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइयणपुंसगा, तिरिक्खजोणियणपुंसंगा, मणुस्सणपुंसगा ।। ५५. तिरिक्खजोणियणपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरा, थलयरा, खह यरा ॥ ५६. मणुस्सणपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा - कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतरदीवगा ॥ तिरिक्खजोणिय-पदं ५७. तिविहा तिरिक्खजोणिया पण्णत्ता, तं जहा -- इत्थी, पुरिसा, णपुंसंगा ॥ लेसा-पदं ५८. णेरइयाणं तओ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, गीललेसा, काउलेसा ॥ ५६. असुरकुमाराणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा || ६०. एवं जाव' थणियकुमाराणं || ६१. एवं - - पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सतिकाइयाणवि || ६२. तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं बंदियाणं तेंदियाणं चउरिदिआणवि' तओ लेस्सा, जहा णेरइयाणं || ६३. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, गीललेसा, काउलेसा || ६४. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ असं किलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहातेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥ ६५. मणुस्साणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, जललेसा, काउलेसा ॥ ६६. मणुस्साणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥ १. ठा० १।१४३-१५० । २. ० दिआ ( क ) । ३. जधा ( क ) 1 ४. ठा० ३१५८ । ५. सं० पा० - एवं मणुस्साणवि । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ६७. वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं ।। ६८. वेमाणियाणं तओ लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा--तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥ तारारूव-चलण-पदं ६६. तिहिं ठाणेहिं तारारूवे चलेज्जा, तं जहा-विकुव्वमाणे वा, परियारेमाणे वा, ठाणाओ वा ठाणं संकममाणे-तारारूवे चलेज्जा ।। देवविक्किया-पदं ७०. तिहिं ठाणेहिं देवे विज्जुयार करेज्जा, तं जहा-विकुबमाणे वा, परियारेमाणे वा, तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इथि जुति जसं बलं वोरियं पूरिसक्कार'-परक्कम उवदंसेमाणे-देवे विज्जुयारं करेज्जा ॥ ७१. तिहिं ठाणेहिं देवे थणियसदं करेज्जा, तं जहा-विकुव्वमाणे वा, “परियारे माणे वा, तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्डि जुति जसं बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कम उवदंसेमाणे -देवे थणियसई करेज्जा || . अंधयार-उज्जोयाइ-पदं ७२. तिहिं ठाणेहिं लोगंधयारे सिया, तं जहा -अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणेहि, अरहत पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे ।। ७३. तिहिं ठाणेहिं लोगुज्जोते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहताणं गाणुप्पायमहिमासु ।। ७४. तिहिं ठाणेहिं देवंधकारे सिया, तं जहा---अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाहिं, अरहंत पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे ।। ७५. तिहि ठाणेहिं देवुज्जोते सिया, तं जहा--अरहतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहताणं गाणुप्पायमहिमासु ।। ७६. तिहिं ठाणेहिं देवसण्णिवाए सिया, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाहि, अरहंताणं णरणुप्पायमहिमासु ।। ७७. “तिहि ठाणेहि देवुक्कलिया सिया, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ।। ७८. तिहिं ठाणेहि देवकहकहए सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ १. ठा० ३१५६। थणियसपि । २. विज्जुतार (क, ख, ग)। ५. अरहतेसु (क)। ३. पुरिसगार ° (क, ग)। ६. सं० पा---एवं देवुक्क लिया देवकहकहए। ४. सं० पा०-- एवं जहा विज्जुतारं तहेव Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त इयं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५४७ ७६. तिहिं ठाणेहिं देविंदा माणुसं लोग हव्वमागच्छंति, तं जहा-अरहतेहि जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८०. एवं-सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अग्गमहिसीओ देवीओ, परिसोववण्णगा देवा, अणियाहिवई देवा, आयरक्खा देवा माणुसं लोग हव्वमागच्छंति', तं जहा–अरहतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८१. तिहिं ठाणेहिं देवा अब्भुट्ठिज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि', 'अरहंतेहिं पव्वयमाणोह, अरहताणं णाणप्पायमहिमासू || ८२. "तिहिं ठाणेहिं देवाणं आसणाइं चलेज्जा, तं जहा ..अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पन्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ।। ८३. तिहि ठाणेहिं देवा सीहणायं करेज्जा, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहिं. अरहतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्यायमहिमासु ।। ८४. तिहि ठाणेहि देवा चेलुक्खेव करेज्जा, तं जहा--अरहतेहिं जायमाणोहिं, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ १५. तिहिं ठाणेहिं देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहताणं गाणुप्पायमहिमासु ॥ ८६. तिहिं ठाणेहिं लोगंतिया देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं जहा-अरहतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ दुप्पडियार-पदं ८७. तिण्हं दुप्पडियारं समणाउसो ! तं जहा--अम्मापिउणो, भट्टिस्स, धम्मा यरियस्स। १. संपातोवि य णं केइ पुरिसे अम्मापियरं सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहि अभंगेत्ता, सुरभिणा गंधट्टएणं" उव्वट्टित्ता, तिहिं उदगेहिं मज्जावेत्ता, सव्वालकारविभूसियं करेता, मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं 'भोयावेत्ता जावज्जीवं पिट्टिवडेंसियाए" परिवहेज्जा, तेणावि तस्स अम्मापिउस्स दुप्पडियारं भवइ । अहे णं से तं अम्मापियरं केवलिपण्णत्ते धम्मे आघव इत्ता पण्णव इत्ता" परूवइत्ता १. अरहंतेहिं य (क)। ६. स. पा०-- अरहतेहिं तं चेव । २. अणिताधिपती (क, ग)। ७. गंधोबट्टएण (ग)। ३. सं० पा० -हव्वमागच्छति... । ८. भोयावेज्जा तं पिट्टिवडेंसए (ग)! ४. सं० पा० -जायमाणेहिं जाव तं चेव । ६. आघइत्ता (क); आघय इत्ता (ग)। ५. सं० पा० -एवमासमाई चलेजा सीहशात १०. पन्न इवइत्ता (ग)। करेज्जा चेलुक्खेवं करेज्जा । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ठावइता' भवति, तेणामेव तस्स अम्मापि उस्स सुप्पडियारं भवति समणाउसो! २. केइ महच्चे दरिदं समुक्कसेज्जा । तए णं से दरिद्दे समुक्किट्ठे समाणे पच्छा पुरं च णं विउलभोगसमितिसमण्णागते यावि विहरेज्जा। तए णं से महच्चे अण्णया कयाइ दरिद्दीहूए समाणे तस्स दरिद्दस्स अंतिए हव्वमागच्छेज्जा। तए णं से दरिदे तस्स भट्टिस्स सव्वस्समवि' दलयमाणे तेणावि तस्स दुप्पडियारं भवति । अहे णं से तं भट्टि 'केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता पण्णवइत्ता परूवइत्ता ठावइता भवति, तेणामेव तस्स भट्टिस्स सुप्पडियारं भवति समणाउसो ! ?] | ३. केति तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सवयणं सोच्चा णिसम्म कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेस देवलोएस देवत्ताए उववण्णे। तए णं से देवे तं धम्मायरियं दुभिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं साहरेज्जा, कंताराओ वा णिक्कंतारं करेज्जा, दोहकालिएणं वा रोगातंकेणं अभिभूतं समाणं विमोएज्जा, तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवति । अहे णं से तं धम्मारियं केवलिपपत्ताओ धम्माओ भट्ठ समाणं भुज्जोवि केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता 'पण्णवइत्ता परूवइत्ता ठावइता भवति, तेणामेव तस्स धम्मायरियस्स सुप्पडियारं भवति [समणाउसो ! ? ] । संसार-वीईवयण-पदं ८८. तिहिं ठाणेहि संपण्णे अणगारे अणादीयं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकतारं वीईवएज्जा, तं जहा -अणिदाणयाए, दिद्विसंपण्णयाए, जोगवाहियाए । कालचक्क-पदं ८९. तिविहा ओसप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा -उक्कोसा", मज्झिमा, जहण्णा ।। ६०. "तिविहा सुसम-सुसमा, तिविहा सुसमा, तिविहा सुसम-दूस'मा, तिविहा दूसम १. ठावइत्ता (क, ग); ठाविता (ख) । २. °डितारं (क)। ३. सव्वस्सवि (क, ग)। ४. तेणे वि (ग)। ५. पन्नत्तं धम्म (क, ग)। ६. अंतियं (क, ग)। ७. आयरियं (क, ख)। ८. आधवित्ता (क); सं० पा०-आघवइता जाव ठावइता। ६. उस्स (क, ग)। १०. उक्कस्सा (ग)। ११. सं० पा०-एवं छप्पि समाओ भाणियब्वाओ जाव दुसमदूसमा। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाण (पढमो उद्देसी ) ५४६ सुसमा तिविहा दूसमा, तिविहा दूसम दूसभा पण्णत्ता, तं जहा उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ ६१. तिविहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा— उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ ६२. तिविहा दुस्सम- दुस्समा, तिविहा दुस्समा, तिविहा दुस्सम-सुसमा, तिविहा सुसम दुस्समा, तिविहा सुसमा तिविहा सुसम सुसमा पण्णत्ता, तं जहाउक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ अच्छिण्ण-पोग्गल - चलण-पदं ९३. तिहि ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेज्जा, तं जहा - आहारिज्जमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, विकुव्वमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, ठाणाओ वा ठाणं संकामिज्जमाणे पोग्गले चलेज्जा | उपधि-पदं ६४. तिविहे उबधी पण्णत्ते, तं जहा - कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिर भंडमत्तोवही । एवं असुरकुमाराणं भाणियव्वं । एवं - एगिदियणेरइयवज्जं जाव' वैमाणियाणं । अहवा -- तिविहे उवधी पण्णत्ते, तं जहा - सचिते', अचित्ते, मीसए । एवंरइयाणं निरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ परिग्रह-पदं ६५. तिविहे परिग्गहे पण्णत्ते, तं जहा - कम्मपरिग्गहे, सरीरपरिग्गहे, बाहिरभंडमत्तपरिग्गहे । एवं - असुरकुमाराणं । एवं - एगिदियणेरइयवज्जं जाव वैमाणियाणं । अहवा - तिविहे परिग्गहे पण्णत्ते, तं जहा - सचित्ते, अचिते, मीसए । एवं - रयाणं णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ पणिहाण -पदं ६६. तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणपणिहाणे, वयपणिहाणे, कायपणिहाणे | एवं पंचिदियाणं जाव' वैमाणियाणं ॥ १. ओस्स° ( क ) | २. उक्कस्सा ( ग ) | ३. सं० पा० - एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ जाव सुसमसुसमा । ४. ठा० १।१४३-१५१, १५७-१६३ । ५. सच्चित्ते ( क ) | ६. ठा० ११४२-१६३ । ७. ठा० १११४३-१५१, १५७-१६३ । ५. ठा० १११४२-१६३ । . ठा० १।१४१-१५१, १६०-१६३ | Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं १७. तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा–मणसुप्पणिहाणे, वयसुप्पणिहाणे', कायसुप्पणिहाणे !! ६८. संजयमणुस्साणं तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा–मणसुप्पणिहाणे, वयसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे ।। १६. तिविहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे । एवं—पंचिदियाणं जाव' वेमाणियाणं ।। जोणि-पदं १००. तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा--सीता, उसिणा, सीओसिणा। एवं एगिदियाणं' विगलिदियाणं तेउकाइयवज्जाणं समुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं संमुच्छिममणुस्साण य ॥ १०१. तिविहा जोणी पण्णता, तं जहा-सचित्ता, अचित्ता, मीसिया। एवं एगिदियाणं विलिदियाणं संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं संमुच्छिम मणुस्साण य ।। १०२. तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-संवुडा, वियडा,संवुडवियडा ।। १०३. तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-कुम्मुण्णया, संखावत्ता, वंसीवत्तिया । १. कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं । कुम्मुग्णयाते णं जोगिए तिविहा उत्तमपुरिसा गब्भं वक्कमंति, तं जहा–अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा । २. संखावत्ता णं जोणी इत्थीरयणस्स संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमति, चयंति, उववज्जति, णो चेव ण गिफज्जति । ३. वंसीवत्तिता णं जोणी पिहज्जणस्स। वंसीवत्तिताए णं जोगिए बहवे पिहज्जणा गभं वक्कमंति।। तणवणस्सइ-पदं १०४. तिविहा तणवणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा–संखेज्जजीविका', असंखेज्ज जीविका, अणंतजीविका ॥ तित्थ-पदं १०५. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा--मागहे, वरदामे, पभासे ।। १०६. एवं—एरवएवि ॥ १. वति० (ख, ग)। ४. निप्पज्जति (क, ग)। २. ठा० १११४१-१५१, १६०-१६३ । ५. पिहु° (ख)। ३. एगिदियाणं जाव (क)। ६. जीविता (क, ख, ग)। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५५१ १०७. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजये तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा मागहे, वरदामे, पभासे ॥ १०८. एवं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमदेवि पच्चत्थिमद्धेवि । पुक्खरवरदीवद्धे पुरस्थि - मद्धेवि, पच्चत्थिमद्धेवि ॥ कालचक्क - पदं १०६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिष्णि सागरोवमकोडाकोडीओ काले' होत्या || ११०. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए तिणि सागरोवमकोडाकोडीओ काले पण्णत्ते || - १११. जंबुद्दीवे दीवे भर हेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिष्णि सागरोवमकोडाकोडीओ काले भविस्सति ॥ ११२. एवं - धायइसंडे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि । पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धेवि कालो भाणियव्वो । ११३. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए मणुया तिष्णि गाउयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, तिष्णि पलिओवमाइं परमाउं पालइत्था || ११४. एवं - इमीसे ओसप्पिणीए, आगमिस्साए उस्सप्पिणीए || ११५. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरासु मणुया तिण्णि गाउआई उड़ढं उच्चतेगं पण्णत्ता, तिष्णि पलिओ माई परमाउं पालयति ॥ ११६. एवं जाव' पुक्खरवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे ॥ एवं - पुक्खरवरदीवद्धे सलागा - पुरिस- वंस-पदं ११७. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणि उस्सप्पिणीए तओ साओ उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उपज्जिस्संति वा, तं जहा -- अरहंतवंसे, चक्कवट्टिवसे, दसारवसे || ११८. एवं जाव पुक्ख रवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे ॥ सागा - पुरिस-पदं ११६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणी उस्सप्पिणीए ओ १. कालो (क, ख, ग ) । २. सं० पा० - एवं ओसप्पिणीए णवरं पण्णत्ते ३,४. टा० ३।१०८ । आगमिस्साते उस्सप्पिणीए भविस्सति । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५.२ ठाणं उत्तमपुरिया उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहाअरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा || १२०. एवं जाव पुक्खरवर दीवद्धपच्चत्थिमद्धे ॥ आउय-पदं १२१. तओ आहाउयं पालयति तं जहा - अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा ॥ १२२. तओ मज्झिममाउयं पालयंति, तं जहा - अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा ॥ १२३. बायरते उकाइयाणं उक्कोसेणं तिष्णि राइंदियाइं ठिती पण्णत्ता ॥ १२४. वायरवाउकाइयाणं उक्कोसेणं तिष्णि वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता ॥ जोणि-ठिइ-पदं १२५. अह भंते ! सालीणं वीहीणं गोधूमाणं जवाणं जवजवाणं - एतेसि णं धण्णाणं कोट्टाउत्ताणं पल्ला उत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं छियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ? जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिणि संवच्छराई । तेण परं जोणी पमिलायति । तेण परं जोणी' पविद्धंसति । तेण परं जोणी विद्धंसति । तेण परं बीए अबीए भवति । तेण परं जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते ॥ रय-पदं १२६. दोच्चाए णं सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता || १२७. तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए जहणेणं णेरइयाणं तिष्णि सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता || १२८. पंचमाए गं धूमप्पभाए पुढवीए तिष्णि णिरयावासस्यसहस्सा पण्णत्ता ॥ १२६. तिसु णं पुढवीसु णेरइयाणं उसिणवेयणा पण्णत्ता, तं जहा- पढमाए, दोच्चाए, तच्चाए ॥ १३०. तिसु णं पुढवीसु णेरइया उसिणवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा -- पढमाए, दोच्चाए, तच्चाए ॥ सम- पर्द १३१. तओ लोगे समा सर्पक्खि सपडिदिसिं पण्णत्ता, तं जहा - अप्पइट्ठाणे णरए, जंबुद्दीवेदी, सव्वट्टसिद्धे विमाणे । १. उप्पज्जं ( क ) 1 २. ठा० ३।१०८। ३. पार्लेति (क, ग ) । ४. जोणि ( ग ) । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं ठाणं ( पढमी उद्देसो) ५५३ १३२. तओ लोगे समा सर्पाक्खि सपडिदिसि पण्णत्ता, तं जहा- सीमंतए णं णरए, समयकखेत्ते, ईसीप भारा पुढवी || समुद्द-पदं १३३. तओ समुद्दा पगईए उदगरसेणं पण्णत्ता, तं जहा- कालोदे, पुक्खरोदे, भुरणे ॥ १३४. तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता, तं जहा - लवणे, कालोदे, सयंभुरमणे | उववाय-पदं १३५. तओ लोगे णिस्सीला णिव्वता णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पच्चक्खाणपोसहोदवासा कालमासे कालं किच्चा आहेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिट्ठाणे गरए णेरइयत्ताए उववज्जति, तं जहा - रायाणो, मंडलीया, जे य महारंभा कोडुंबी ॥ १३६. तओ लोए सुसीला सुव्वया सग्गुणा समेरा सपच्चवखाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा सव्वद्धसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा - रायाणो परिचत्तकामभोगा, सेणावती, पसत्थारो ॥ विमाण-पदं १३७. बंभलोग- लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा तिवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - किण्हा, जीला, लोहिया ॥ देव-पदं १३८. आणयपाणया रणच्चुतेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरंगा उक्को सेणं तिष्णि रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ पण्णत्त-पदं १३६. तओ पण्णत्तीओ कालेणं अहिज्जति तं जहा - चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती ॥ बीओ उद्देसो लोग-पदं १४०. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा -- णामलोगे, ठवणलोगे, दव्वलोगे ॥ १४१. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा - पाणलोगे, दंसणलोगे, चरितलोगे || १. × (क, ग ) । २. उदगरसा (क, ख ) । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं १४२. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा-उड्डलोगे, अहोलोगे, तिरियलोगे । परिसा-पदं १४३. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा समिता, चंडा, जाया। अभितरिता समिता, मज्झिमिता चंडा, बाहिरिता जाया ।। १४४. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सामाणिताणं देवाणं तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–समिता जहेव' चमरस्स ।। १४५. एवं-तावत्तीसगाणवि ।। १४६. लोगपालाणं-तुंबा तुडिया पव्वा ।। १४७. एवं-अग्गमहिसीणवि ।। १४८. वलिस्सवि एवं चेव जाव अग्गमहिसीणं ।। १४६. धरणस्स य सामाणिय-तावत्तीसगाणं च समिता चंडा जाता। १५०. 'लोगपालाणं अग्गमहिसीणं"- ईसा तुडिया दढ रहा। १५१. जहा धरणस्स तहा सेसाणं भवणवासीणं' ।। १५२. कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— ईसा तुडिया दढरहा ॥ १५३. एवं सामाणिय-अग्गम हिसीणं ।। १५४. एवं जाव' गीयरतिगीयजसाणं ।। १५५. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तुंबा तुडिया पन्वा ॥ १५६. एवं सामाणिय-अग्गमहिसीणं ।। १५७. एवं--सूरस्सवि ।। १५८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाया । १. ठा० ३.१४३ । २. तायत्ती° (ख)। ३. तुपा (क); तंपा (म)। ४. बलस्सवि (क); बालास्सवि (ग)। ५. ठा० ३।१४३-१४७ । ६. पू०-ठा० ३.१४३ । ७. लोगपालग्ग ° (क, ग)। ८. पू०-ठा० ३.१४३ । ६. ठा०२३५४-३६२ । १०. पू० ठा० ३११४३ । ११. ठा० २१३६३-३७० । १२. पू०--ठा० ३३१४३ । १३. पू०-ठा० ३.१४३ ! Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं ठाणं (बीओ उद्देसो) १५६. एवं जहा चमरस्स जाव' अग्गमहिसीणं ॥ १६०. एवं जाव' अच्चुतस्स लोगपालाणं || जाम-पदं १६१. तओ जामा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे || १६२. तिहि जामेहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहा – पढ जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १६३. तिहिं जामेहिं आया केवलं बोधि बुज्भेज्जा, तं जहा - पढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६४. तिहि जामेहिं आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, तं जहा - पढमे जामे, मज्भिमे जामे, पच्छिमे जामे || १६५. तिहि जामेहिं आया केवलं वंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा -- पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ ५५ १६६. तिहिं जामेहि आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा - पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६७. तिहि जामेहिं आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा -- पढमे जामे मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६८. तिहिं जामेहिं आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - पढ जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६६. तिहिं जामेहिं आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ १७०. तिहिं जामेहिं आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- पढमे जामे, मज्झिमे जागे, पच्छिमे जामे || १७१ तिहि जामेहिं आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - पढमे जाने, मज्झिमे जागे, पच्छिमे जामे ॥ १७२. तिहि जामेहिं आया केवल • केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ वय-पदं १७३. तओ वया पण्णत्ता, तं जहा - पढमे वए, मज्झिमे वए, पच्छिमेव ॥ १७४. तिहि वएहि आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहा -- पढमे वए, मज्झिमे वए, पच्छिमे वए ॥ १. ठा० ३।१४४-१४७ । २. ठा० २१३५० ३८४ । ३. सं० पा० एवं जाव केवलणाणं । ४. वते (क, ख, ग ) । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं १७५. "तिहि वरहि आया—केवलं बोधिं बुज्झज्जा, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलमाभिणिबोहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं केवलणाण उप्पाडेज्जा, तं जहा-पढमे वए, मज्झिमे वए, पच्छिमे वए । बोधि-पदं १७६. तिविधा बोधी पण्णत्ता, तं जहा-णाणबोधी, दंसणबोधी, चरित्तबोधी ।। १७७. तिविहा बुद्धा पण्णत्ता, तं जहा. - णाणबुद्धा, दंसणबुद्धा, चरित्तबुद्धा ॥ मोह-पदं १७८. “तिविहे मोहे पणत्ते, तं जहाणाणमोहे, दंसणमोहे, चरित्तमोहे ।। १७६. तिविहा मूढा पण्णत्ता, तं जहा--णाणमूढा, दंसण मूढा, चरित्तमूढा ।। पव्वज्जा -पदं १८०. तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा --इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिवद्धा, दुहतो लोग ?] पडिबद्धा' ।। १८१. तिविहा पव्वज्जा पणत्ता, तं जहा---पुरतोपडिबद्धा, मग्गतोपडिबद्धा, दुहओ पडिबद्धा ॥ १८२. तिविहा पव्यज्जा पण्णता, तं जहा-तुयाव इत्ता, पुयावइत्ता, वुआवइत्ता । १८३. तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा-ओवातपव्वज्जा', अक्खातपव्वज्जा, संगारपव्वज्जा। णियंठ-पदं १८४. तओ णियंठा णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता, तं जहा-पुलाए, णियंठे, सिणाए॥ १८५. तओ णियंठा सण्ण'-गोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता, तं जहा बउसे, पडिसेवणा कुसीले', कसायकुसीले ॥ सेहभूमि-पदं १८६. तओ सेहभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ! उक्कोसा छम्मासा, मज्झिमा चउमासा, जहण्णा सत्तराइंदिया ।। १.संपा-एसो चेव गमो यवो जाव केवलणाणंति ! २. सं० पा०—एवं मोहे मूढा । ३. द्रष्टव्यम् – ठा० ४१५७१ सूत्रम् । ४. अवबात (क) । ५. सन्नि (ख)। ६. कुसीले (ग)। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५७ तइयं ठाण (बीओ उद्देसो) थेरभूमी-पदं १८७. तओ थेरभूमोओ पण्णत्ताओ, तं जहाजातिथेरे, सुयथेरे, परियायथेरे । सद्विवासजाए समणे णिग्गंथे जातिथेरे, ठाणसमवायधरे णं समणे णिग्गंथे सुयथेरे, वीसवासपरियाए णं समणे णिग्गंथे परियायथेरे ।। गंता-अगंता-पदं १८८. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-सुमणे, दुम्मणे, णोसुमणे-णोदुम्मणे ॥ १८६. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--गंता णामगे सुमण भवति, गंता णामेगे दुम्मणे भवति, गंता णामेगे णोसमणे-णोदुम्मणे भवति । १६०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -जामीतेगे सुमणे भवति, जामीतेगे दम्मणे भवति, जामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ १९१. "तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-जाइस्सामीतेग सुमणे भवति, जाइ स्सामीतेगे दुम्मणे भवति, जाइस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ १६२. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–अगंता णामंगे सुमणे भवति, अगंता णामेगे दुम्मणे भवति, अगंता गामगे णोसुमण-णोदुम्मणे भवति ।। १६३. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--ण जामि एगे सुमणे भवति, ण जामि एगे दुम्मणे भवति, ण जामि एगे गोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ १६४. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा–ण जाइस्सामि' एगे सुमणे भवति, ण जाइस्सामि एगे दुम्मणे भवति, ण जाइस्सासि एगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। आगंता-अणागंता-पदं १६५. "तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आगंता णामेगं सुमणे भवति, आगंता ___णामेगे दुम्मणे भवति, आगंता गामगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । १६६. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–एमीतेगे सुमणे भवति, एमीतेग दुम्मणे भवति, एमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ १६७. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा –एस्सामीतेगे सुमणे भवति, एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, एस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ १६८. "तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अणागंता णामेगे सुमणं भवति, अणागंता णामेगे दुम्मणे भवति, अणागंता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। १. सं० पा० --एवं जाइस्सामीतेगे सुमणे भवति। २. जामिस्सामि (क, ग)। ३. सं० पा०—एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३.... एगे सुमणे भवति । ४. सं० पा.....एवं एएणं अभिलावणं---- Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ ठाण १६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण एमीतेगे सुमणे भवति, ण एमीगे दुम् भवति ण एमीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २०० तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण एस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण एस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति || चिट्ठित्ता-अचिट्ठित्ता-पदं २०१ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा चिट्ठित्ता णामेगे सुमणे भवति, चिट्ठित्ता जायेगे दुम्मणे भवति, चिट्ठित्ता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ॥ २०२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --चिट्ठामीतेगे सुमणे भवति, चिट्ठामोते दुम्मणे भवति, चिट्ठामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति || २०३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - चिट्ठिस्सामीतेगे सुमणे भवति, चिट्टि - स्वामीतेगे दुम्मणे भवति, चिट्ठिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २०४ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अचिट्टित्ता णामेगे सुमणे भवति, अचिट्ठित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अचिट्ठित्ता णामेगे गोसुमणे - गोदुम्मणे भवति || २०५ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -ण चिट्ठामीतेगे सुमणे भवति, ण चिट्ठामीतेगे दुम्मणे भवति, ण चिट्ठामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ।। २०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ण चिट्ठिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण चिट्ठिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण चिट्ठिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ णिसिइत्ता - अणिसिइत्ता-पदं २०७ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - णिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, णिसिइत्ता मेगे दुम्मणे भवति, गिसिइत्ता णामेगं णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ॥ संग्रहणी माहा गंताय अगंता य, आगता खलु तहा अणागता । चिट्ठित्तमचिट्टित्ता णिसितित्ता चेव णो चैव ॥ १ ॥ अछिदित्ता । भासित्ता चेव णो चेव || २ || हंताय अहंता य छिदित्ता खलु तहा बुतित्ता अबूतित्ता, - दच्चा य अदच्चा य, भुजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता | लभित्ता अलभित्ता, विइत्ता चेव णो चेव ॥ ३॥ सुतित्ता असुतित्ता, जुज्झित्ता खन्नु तहा अजुज्झित्ता । जतित्ता अजयित्ता य, पराजिणित्ता चेव णो चेव ||४|| सद्दा ख्वा गंधा, रसा य फासा तहेव ठाणा य 1 णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्या पुण सीलवंतस्स ||५|| afrahat तिणि उ तिष्णि उ बालावगा भाणियव्वा । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो) २०८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - णिसीदामीतेगे सुमणे भवति णिसीदामीते दुम्मणे भवति, णिसीदामीतेगे जोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, णिसीदिसामी दुम्मणे भवति, णिसीदिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २१०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अणिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अणिसित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अणिसिइत्ता णामेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति || २११. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण णिसीदामीतेगे सुमणे भवति, णणिसीदामी दुम्मणे भवति, ण जिसीदामीतेगे णोसुमणे- णोदुम्मणे भवति || २१२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण णिसीदिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसीदिस्सामीतेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ ५५६ हंता अहंता-पदं २१३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- हंता णामेगे सुमणे भवति, हंता णामेगे दुम्मणे भवति, हंताणामेगे गोसुमणे - गोदुम्मणे भवति ॥ २१४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - हणामीतेगे सुमणे भवति, हणामी गे दुम्मणे भवति, हणामी गे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २१५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- हणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, हणिस्सामीते दुम्मणे भवति, हणिस्सामीतेगं णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २१६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अहंता जामेगे सुमणे भवति, अहंता णामेगे दुम्मणे भवति, अहंताणामेगे णोसुमणे गोदुम्मणे भवति ॥ २१७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण हणामीतेगे सुमणे भवति, ण हणामी गे दुम्मणे भवति, ण णामोतेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति || २१८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण हणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण हणिस्सामी दुम्मणे भवति ण हणिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति || छिदित्ता - अछिदित्ता-पदं २१६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--छिदित्ता णामेगे सुमणे भवति, छिदित्ता मेगे दुम्मणे भवति, छिदित्ता णामेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २२० तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - छिंदामीतेगे सुमणे भवति, छिदामीतेगे दुम्मणे भवति, छिदामीतेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २२१ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - छिदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, छिदिस्सामीते दुम्मणे भवति, छिदिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० ठाणं २२२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अच्छिदित्ता णामेगे सुमणे भवति, अछिदित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अछिदित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --ण छिंदामीतेगे सुमणे भवति, ण छिदामी तेगे दुम्मणे भवति, ण छिदामोतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२४. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-ण छिदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण छिदिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण छिदिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। बूइत्ता-अबूइत्ता-पदं २२५. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-बूइत्ता णामेगे सुमणे भवति, इत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, बूइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—बेमीतेगे सुमणे भवति, बेमीतेगे दुम्मणे भवति, बेमातेगे जोसुमणे-गोदुम्मणे भवति ।। २२७. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-वोच्छामीतेगे सुमणे भवति, वोच्छामीतेगे दुम्मणे भवति, वोच्छामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २२८. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा—अबूइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अबूइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अवूइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२६. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा- बेमोलेगे सुमणे भवति, ण वेमीतेगे दुम्मणे भवति, ण बेमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३०. तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण वोच्छामीतेगे सुमणे भवति, ण वोच्छामीतेगे दुम्मणे भवति, ण वोच्छामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। भासित्ता-अभासित्ता-पदं २३१. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-भासित्ता णामेगे सुमणे भवति, भासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, भासित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २३२. तओ परिसजाया पणत्ता, तं जहा-भासामोतेगे सुमणे भवति, भासामीतेगे दुम्मणे भवति, भासामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३३. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--भासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, भासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, भासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३४. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --अभासित्ता णामे सुमण भवति, अभासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अभासित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –ण भासामीतेगे सुमणे भवति, ण भासामी तेगे दुम्मणे भवति, ण भासामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण भासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण भासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो) बच्चा-अदच्चा-पदं २३७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- दच्चा णामेगे सुमणे भवति, दच्चा णामेगे दुम्मणे भवति, दच्चा णामेगे णोसुमणे- गोदुम्मणे भवति ॥ २३८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- देमीतेगे सुमणे भवति, देमीतेगे दुम्मणे भवति, देमी गोमणेोदुम्मणे भवति || २३६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दासामीतेगे सुमणे भवति, दासामी गे दुम्मणे भवति, दासामी तेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ।। २४० तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अदच्या णामेगे सुमणे भवति, अदच्चा मेगे दुम्मणे भवति, अदच्चा णामेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति || २४१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ण देमीतेगे सुमणे भवति, ण देमीतेगे दुम्मणे भवति, ण देमीतेगे णासुमणे णोदुम्मणे भवति ।। २४२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ण दासामीतेगे सुमणे भवति, ण दासामीदुम्मणे भवति, ण दासामी तेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ ५.६१ भुंजित्ता - अभुंजित्ता - पदं २४३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा मेगे दुम्मणे भवति, भुंजित्ता णामेगे २४४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा भुंजित्ता णामेगे सुमणे भवति, भुंजित्ता णोसुमणे - गोदुम्मणे भवति ।। भुंजामीतेगे सुमणे भवति, भुंजामीतेगे दुम्मणे भवति, भुंजामीतेगे जोसुमणे- गोदुम्मणे भवति || २४५ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -भुंजिस्सामीतेगे सुमणे भवति, भुंजिस्सामीते दुम्मणे भवति, भुंजिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २४६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अभुंजित्ता णामेगे सुमणे भवति, अभुंजित्ता जागे दुम्मणे भवति, अभुंजित्ता णामेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २४७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण भुंजामीतेगे सुमणे भवति, ण भुंजामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भुंजामीतेगे णोसुमणे- गोदुम्मणे भवति ॥ २४८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--ण भुजिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण भुजिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भुंजिस्सामीतेगे णोसुमणे- गोदुम्मणे भवति ॥ लभित्ता अलभित्ता-पदं २४६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --लभित्ता णामेगे सुमणे भवति, लभित्ता मेगे दुम्मणे भवति, भित्ता णामेगे णोसुमणे- णोदुम्मणे भवति || २५० तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - लभामीतेगे सुमणे भवति, लभामीतेगे दुम्मणे भवति, लभामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २५१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, लभिस्सामीतेगे णोसुमणेोदुम्मणे भवति ॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ २५२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अलभित्ता णामेगे सुमणे भवति, अलभित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अलभित्ता णामेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २५३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ण लभामीतेगे सुमणे भवति, ण लभामीतेगे दुम्मणे भवति, ण लभामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २५४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण लभिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ पिबित्ता अपिबत्ता-पदं ठाण २५५ त पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा पिबित्ता णामेगे सुमणे भवति, पिबित्ता मेगे दुम्मणे भवति, पिवत्ता णामंगे गोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २५६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- पिवामीतेगे सुमणे भवति, पिबामीतेगे दुम्मणे भवति, पिवामीतेगे णोसुमणं णोदुम्मणे भवति ।। २५७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- पिबिस्सामीतेगे सुमणे भवति, पिबिस्सामीते दुम्मणे भवति, पिविस्सामीतेगे णोसमणे णोदुम्मणे भवति || २५८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अपिवत्ता णोमेगे सुमणे भवति, अपिवित्ता मेगे दुम्मणेभवति अपिबित्ता णामेगे णोसुमणेोदुम्मणे भवति ॥ २५६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण पिबामीतेगे सुमणे भवति, ण पिवामीते दुम्मणे भवति, ण पिवामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २६०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण पिबिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण पिविस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पिबिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ॥ सुइत्ता-असुइत्ता-पदं २६१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं 'जहा - सुइत्ता णामेगे सुमणे भवति, सुइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, सुइत्ता णामेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २६२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- सुमीतेगे सुमणे भवति, सुमीतेगे दुम्मणे भवति, सुमीतेगे गोसुमणे गोदुम्मणे भवति ॥ २६३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुइस्सामीतेगे सुमणे भवति, सुइस्सामी गे दुम्मणे भवति, सुइसामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २६४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- असुइत्ता णायेंगे सुमणे भवति, असुइत्ता जागे दुम्मणे भवति, असुइत्ता णामेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति || २६५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- ण सुमीतेगे सुमणे भवति, ण सुआमीतेगे दुम्मणे भवति, ण सुमीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति || २६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --ण सुइस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण सुइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण सुइस्सामीतेगे णोसुमणे - गोदुम्मणे भवति ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो) जुज्झित्ता-अजुज्झित्ता-पदा २६७ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुज्झित्ता णामेगे सुमणे भवति, जुज्झित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, जुज्झित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २६८. तो पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--जुज्झामीतेगे सुमणे भवति, जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवति, जुज्झामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २६६. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--जुज्झिस्सामीतेगे सुमणे भवति, जुज्झि स्सामीतेगे दुम्मणे भवति, जुज्झिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २७०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -अजुज्झित्ता णामगे सुमणे भवति, अजु ज्झित्ता जामगे दुम्मणे भवति, अजुज्झित्ता णामगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७१. तओ पूरिसजाया पण्णत्ता, त जहा ण जज्झामीतेग सूमण भवति, ण जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जुज्झामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –ण जुज्झिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण जुज्झिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जुज्झिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । जइत्ता-अजइत्ता-पदं २७३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जइत्ता णामेगे सुमणे भवति, जइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, जइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -जिणामीतेगे सुमणे भवति, जिणामीतेगे दुम्मणे भवति, जिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।। २७५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, जिणिस्सामी तेगे दुम्मण भवति, जिणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७६. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--अजइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अजइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अजइत्ताणामेगे जोसुमणे-गोदुम्मणे भवति ।। २७७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण जिणामीतेगे सुमणं भवति, ण जिणामी तेगे दुम्मणे भवति, ण जिणामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७८. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा- जिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण जिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जिणिस्सामोतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। पराजिणित्ता-अपराजिणित्ता-पदं २७६. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पराजिणित्ता णामेगे सुमणे भवति, परा जिणित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, पराजिणित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २८०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –पराजिणामोतेगें सुमणे भवति, पराजिणामीतेगे दुम्मणे भवति, पराजिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २८१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -पराजिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, परा जिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, पराजिणिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ ठाणं २८२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अपराजिणित्ता गायेगे सुमणे भवति, अपराजिणित्ता णामंगे दुम्मणे भवति, अपराजिणित्ता णामेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २८३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण पराजिणामीतेगे सुमणे भवति, ण पराजिणामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पराजिणामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २८४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण पराजिणिस्सामोतेगे सुमणे भवति, ण पराजिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पराजिणिस्सामोतेगे पोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ सुत्ता-असुत्ता-पदं २८५. "तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सद्दं सुणेत्ता णामेगे सुमणे भवति, सदं सुत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, सद्दं सुणेत्ता जामेगे जोसुमो गोदुम्मणे भवति ।। २८६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सद्दं सुणामीतेगे सुमणे भवति, सदं सुणामी दुम्मणे भवति, सद्दं सुनामीतेगे गोसुमणे-गोदुम्मणे भवति ॥ २८७ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सदं सुणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, स सुणिसामी दुम्मणे भवति, सद्दं सुणिस्सामीतेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २८८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सद्दं असुणेत्ता णामेगे सुमणे भवति, सदं असुणेत्ता गायेगे दुम्मणे भवति, सदं असुणेत्ता णामेगे णोसुमणे -णोदुम्मणे भवति ॥ २८६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सदं ण सुनामीतेगे सुमणे भवति, सद्दण सुणामी दुम्मणे भवति, सद्दं ण सुणामीतेगे गोसुमणे गोदुम्मणे भवति ॥ २६०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सद्दं ण सुणिस्सामीतेगे . सुमणे भवति, सद्द सुणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, सद्दं ण सुणिस्सामीतेगे णासुमणे णोदुम्मणे भवति || पासिता अपासित्ता-पदं २६१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवं पासित्ता णामेगे सुमणे भवति, रूवं पासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, ख्वं पासित्ता णामेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ २९२ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रूवं पासामीतेगे सुमणे भवति, रूवं पासामी दुम्मणे भवति, रूवं पासामीतेगे णोसुमणे -णोदुम्मणे भवति || १. स० पा० - सई सुत्ताणामेगे सुमणे भवति ३ एवं सुनामीति ३ एवं सुगोस्सामीति ३ एवं अमुत्ताणामेगे सु ३ ण सुणामीति ३ सुणिसामीति । २. सं० पा० एवं रूवाई गंधाई रसाई फासाइ एक्के के छन्छ आलावगा भाणियव्वा । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (वीओ उद्देसो) ५६५ २६३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवं पासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रूवं ___ पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं पासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २६४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं अपासित्ता णामेगे सुमणे भवति, रूवं अपासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रूवं अपासित्ता णामेगे जोसुमणे णोदुम्मणे भवति । २६५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवं ण पासामीतेगे सुमणे' भवति, रूवं ण पासामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं ण पासामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २६६. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवं ण पासिस्सामीतेगे समणे भवति. रूवं ण पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं ण पासिस्सामीतेगे णोसुमणे गोदुम्मणे भवति ॥ अग्घाइत्ता-अणग्घाइत्ता-पदं २६७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं अग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, गंधं अग्घाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घाइत्ता णामेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ।। २६८. तओं पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-पंधं अग्घामीतेगे सुमणे भवति, गंध अग्घाभीतगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २६६. तओं पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-गंधं अग्धाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, गंध अग्धाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घाइस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति । ३००. तओ पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंध अणग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, गंध अणग्धाइत्ता णामेग' दुम्मणे भवति, गंध अणग्घाइत्ता णामेगे णोसुमणे गोदुम्मणे भवति ।। ३०१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं ण अग्घामीतेगे सुमणे भवति, गंधं ण अग्घामीतेग दुम्मणे भवति, गंधं ण अग्घामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति॥ ३०२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंध ण अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, गंध ण अग्धाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं ण अग्घाइस्सामीतेगे जोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ आसाइत्ता-अणासाइत्ता-पदं ३०३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -रसं आसाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, रसं आसाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं आसाइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदम्मणे भवति ।। ३०४. तओ परिसजाया पण्णता, तं जहा--रसं आसादेमीतेगे सूमणे भवति, रसं आसादेमी तेगे दुम्मणे भवति, रसं आसादेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ३०५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- रसं आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रसं आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं आसादिस्सामीतेगे णोसुमणेगोदुम्मणेभवति ॥ ३०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रसं अणासाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, रसं अणासाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं अणासाइत्ता णामेगे णोसुमणेदुम्मणेभवति ॥ ३०७. तओ पुरिसजाय । पण्णत्ता, तं जहा - रसं ण आसादेमीतेगे सुमणे भवति, रसं ण आसादेमीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण आसादेमीतेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ ३०८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रसं ण आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रण आसादिसामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण आसादिस्सामीतेगे णोसुमणेदुम् भवति || ठाण फासेत्ता - अफासेत्ता-पदं ३०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा फासं फासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फार्स फासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे गोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ॥ ३१०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - फासं फासेमीतेगे सुमणे भवति, फासं फासेमी दुम्मणे भवति, फासं फासेमीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति || ३११. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - फासं फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, फास फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासिस्सामीतेगे गोसुमणे णोदुम्मणे भवति ॥ ३१२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा फासं अफासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं अफासेत्ता णामेगे णोसुमणेदुम्मणेभवति ॥ ३१३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं फासं ण फासेमीतेगे दुम्मणे णोदुम्मणे भवति ।। जहा - फासं ण फासेमीतेगे सुमणे भवति, भवति, फासं ण फासेमीतेगे णोसुमणे ३१४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - फासं ण फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे गोसुमणेणोदुम्मणे भवति ।। 9 गर हिअ-पदं ३१५. तओ ठाणा णिसीलस्स णिग्गुणस्स णिम्मेरस्स पिप्पच्चक्खाणपोसहोववासस्स गरहिता भवंति तं जहा - अस्सि लोगे गरहिते भवति, उववाते' गरहिते भवति, आयाती गरहिता भवति ।। १. अववाते ( क ग ) 1 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो) पसत्थ-पदं ३१६. तओ ठाणा 'सुसीलस्स सुव्वयस्स" सगुणस्स समेरस्स सपच्चक्खाणपोसहोव वासस्स पभत्था भवंति, तं जहा-अस्सि लोगे पसत्थे भवति, उववाए पसत्थे भवति, आजाती पसत्था भवति ।। जीव-पदं ३१७. तिविधा संसारसमावण्णगा जोवा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। ३१८. तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा--सम्मद्दिट्टी, मिच्छाद्दिट्टी', सम्मामिच्छद्दिट्ठी ॥ अहवा-तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा, अपज्जत्तगा, गोपज्जत्तगा-णोऽपज्जत्तगा। "परित्ता, अपरित्ता, गोपरित्ता-णोऽपरित्ता । सुहमा, वायरा, गोसुहमा-गोवायरा । अण्णी, असण्णी, णोसण्णी-णोअसण्णी। भवी, अभवी, णोभवीणोऽभवी । लोगठिती-पदं ३१६. तिविधा लोगठिती पण्णत्ता, तं जहा-आगासपइदिए वाते, वानपइट्ठिए उदही, उदहीपइट्ठिया पुढवी ॥ दिसा-पदं ३२०. तओ दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- उड्डा, अहा, तिरिया !! ३२१. तिहि दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति-उड्डाए, अहाए', तिरियाए । ३२२. "तिहि दिसाहि जीवाणं ...आगती, वक्कंती, आहारे, वुड्डी, णिवड्डी, गतिपरियाए, समुग्धाते, कालसंजोगे, दसणाभिगमे, जीवाभिगमे 'पण्णत्ते, तं जहा- उड्ढाए, अहाए, तिरियाए । ३२३. तिहिं दिसाहि' जीवाणं अजीवाभिगमे पण्णत्ते, तं जहा---उड्डाए, अहाए, तिरियाए। ३२४. एवं—पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं ।। ३२५. एवं—मणुस्साणवि ॥ १. ससीलस्स सव्वयस्म (ख)। ५. अहाते (क, ख, ग)। २. सुमेरस्म (ख)। ६. सं० पा०--एवं। ३. मिच्छ ° (क, ग)। ७. ठाणेहिं (ख)। ४. सं० पा०-एवं सम्मदिद्विपरित्ता पज्जत्तग- ८,६. पू.---ठा० ३।३२१-३२३ । सुहमसण्णिभविया य । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण तस-थावर-पदं ३२६. तिविहा तसा पण्णत्ता, तं जहा तेउकाइया, वाउकाइया, उराला तसा पाणा 11 ३२७. तिविहा थावरा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया वणस्सइकाइया। अच्छेज्जादि-पदं ३२८. तओ अच्छेज्जा पणत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाण ।। ३२६. "तओ अभेज्जा पणत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाण् । ३३०. तओ अडज्झा पण्णत्ता, तं जहा–समए, पदेसे, परमाणू ॥ ३३१. तओ अगिझा पणत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३२. तओ अगड्डा पण्णता, तं जहा -समए, पदेसे, परमाणू । ३३३. तओ अमझा पण्णत्ता, तं जहा—समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३४. तओ अपएसा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३५. तओ अविभाइमा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू ।। दुक्ख-पदं ३३६. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी - किंभया पाणा ? समणाउसो ! गोतमादी समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासो- णो खलु वयं देवाणुप्पिया! एयभट्ठ जाणामो वा पासामो वा। तं जदि णं देवाणुप्पिया! एयमदूं णो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमदूं जाणित्तए। अज्जोति' ! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी-दुक्खभया पाणा समणाउसो! से णं भंते ! दुक्खे केण कडे ? जीवेणं कडे पमादेणं । से णं भंते ! दुक्खे कहं वेइज्जति ? अप्पमाएणं !! ३३७. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परूवेति कहण्णं समणाणं णिग्गंथाणं किरिया कज्जति ? १. सं०.पा.–एवम भेज्जा अडझा अगिज्मा ___ अणड्डा अमझा अपएसा । २. अविभातिमा (क, ख, ग)। ३. गोयमाती (क, ख, ग)। ४. त्ति (ग)। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५६६ तत्थ जा सा कडा कज्जइ, णो तं पुच्छति । तत्थ जा सा कडा णो कज्जति, णो तं पुच्छति । तत्थ जा सा अकडा णो कज्जति, जो तं पुच्छति । तत्थ जा सा अकडा कज्जति, णो तं पुच्छति । से एवं वत्तव्वं सिया' ? अकिच्चं दुक्खं, अफुसं दुक्खं, अकज्जमाणकडे दुक्खं । अकट्टु अकट्टु 'पाणा भूया जीवा सत्ता" वेयणं वेदेतित्ति वत्तव्वं । जे ते एवमाहंसु, मिच्छा ते एवमाहंसु । अहं पुण एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पष्णवेमि एवं परूवेमि - किच्चं दुक्खं, फुसं दुक्ख, कज्जमाणकडे दुक्खं 1 कट्टु-कट्टु 'पाणा भूया जीवा सत्ता" वेयणं वेयंतित्ति वत्तव्वयं सिया || तइओ उद्देस आलोयणा-पदं ३३८. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा, जो पडिक्कमेज्जा, णो णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, जो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहाअरि वाह, करेमि वाह, करिस्सामि वाहं || ३३६. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा', "णो गिदेज्जा, जो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अभुज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहाअकित्ती वा मे सिया', अवण्णे वा मे सिया, अविणए " वा में सिया || ३४०. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा", "णो पडिक्कमेज्जा, गो णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विजट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भज्जा, गो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा प्रायः 'करिसु' 'चिणिसु' इत्यादि प्रयोगा एव लभ्यन्ते, क्वचिदेव 'अर्कारिसु' 'अभविसु' इत्यादि प्रयोगा: सन्ति । ८. सं० पा० णो पडिक्क मेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा । ४. फुस्स (वव ) । ५. किज्ज० ( क ) । ९. सिता ( क, ख, ग ) 1 ६. जीवा सत्ता भूता पाणा (क); पाणा भूता १०. अविणते (क, ख, ग ) १. सिता ( क, ख, ग ) । २. X ( ग ) । ३. जीवा सत्ता भूता पाणा ( क ); पाणा भूता (ग) । (ग) । ७. ठा० ८ १० सूत्रे 'करि' पाठो विद्यते । ११. सं० पा०—णो आलोएज्जा पडिवज्जेज्जा | जाव Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० ठाणं कित्ती वा मे परिहाइस्सति, जसे वा मे परिहाइस्सति, पूयासक्कारे वा मे परिहाइस्सति ।। ३४१. तिहि ठाणेहि मायी मायं कटु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा', "णिदेज्जा, गरि हेज्जा, विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अभुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तबोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा—माइस्स णं अस्सि लोगे गरहिए भवति, उववाए गरहिए भवति, आयाती गरहिया भवति । ३४२. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएज्जा', 'पडिक्कमज्जा णिदेज्जा, गरि हेज्जा, वि उट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अन्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा-अमाइस्स णं अस्सि लोगे पसत्थे भवति, उववाते पसत्थे भवति, आयाती' पसत्था भवति । ३४३. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरि हेज्जा, विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा—णाणट्ठयाए, दसणट्ठयाए, चरित्तट्टयाए । सुयधर-पदं ३४४. तओ पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-सुत्तधरे, अत्थवरे, तदुभयधरे ।। उपधि-पदं ३४५. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तओ वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा—'जंगिए, भंगिए, खोमिए"। ३४६. कप्पति णिग्गंथाण वा णिगंथोण वा तओ पायाइं धारित्तए वा परिरित्तए वा, तं जहा-- लाउयपादे वा, दारुपादे वा, मट्टियापादे वा ।। ३४७. तिहिं ठाणेहिं वत्थं धरेज्जा, तं जहा-हिरिपत्तियं, दुगुंछापत्तियं, परीसह वत्तियं ।। वा आयरक्ख-पदं ३४८. तओ आयरक्खा पण्णत्ता, तं जहा–धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता भवति, तुसिणोए वा सिया, उद्वित्ता वा आताए एगंतमंतमवक्कमेज्जा ।। वियड-दत्ति-पदं ३४६. णिग्गंथस्स णं गिलायमाणस्स कप्पंति तओ वियडदत्तीओ पडिग्गाहित्तते, तं जहा–उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ।। १. स०मा०--पडिक्कमेज्जा जाव पडिबन्जेज्जा। ४. सं० पा० --आलोएज्जा जाव पडिबज्जेज्जा। २. सं० पा.---आलोएज्जाजाव पडिवज्जेज्जा। ५. जंगिते भंगिते खोमिते (क, ख, ग); जंगियं ३. आयाय (ग)। भंगियं खोमियं (वृ) Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो) विसंभोग-पदं ३५०. तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे साहम्मियं संभोगियं विसंभोगिय' करंमाणे जातिक्कमति, तं जहा सयं वा दठ्ठे, सड्डयस्स वा णिसम्म, तच्चं मोसं आउटृति, उत्थं णो आउट्टति ॥ अण्णादिपदं ३५१. तिविधा अणुष्णा पण्णत्ता, तं जहा -आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए ॥ ३५२. तिविधा समणुण्णा पण्णत्ता, तं जहा आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए । ३५३. तिविधा उवसंपया पण्णत्ता, तं जहा - आयरियत्ताए, गणित्ताए ॥ ३५४. तिविधा विजहणा पण्णत्ता, तं गणित्ताए || 0 वयण-पदं ३५५. तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा - तव्वयणे, तदण्णवयणे, गोअवयणे ॥ ३५६. तिविहे अवयणे पण्णत्ते, तं जहा- गोतव्वयणे', णोतदण्णवणे, अवयणे ॥ मण-पदं ३५७. तिविहे मणे पण्णत्ते, तं जहा-तम्मणे, तयण्णमणे, णोअमणे । ३५८. तिविहे अमणे पण्णत्तं तं जहा - गोतम्मणे, णोतयण्णमणे, अमणे || बुट्ठि - पदं ३५६. तिहि ठाणेहिं अप्पवुट्टीकाए सिया, तं जहा - जहा - आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, १. विसंभोतियं ( क, ख ) 1 २. सढियस्स ( क, ख ); सड्ढस्स (क्व ) 1 ३. गणित्ताते (क, ख, ग ) 1 ४. सं० पा० - एवं उवसंपया एवं विजहणा । ५७१ उवज्झायत्ताए, १. तस्सि चणं देसंसि वा पदेसंसि वा णो बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताते वक्कमति विउक्कमंति चयंति उववज्जति । २. देवा गागा जक्खा भूता णो सम्ममाराहिता भवति, तत्थ' समुट्ठियं उदगपोग्गलं' परिणतं वासितुकामं अण्णं देसं साहति । ३. अब्भवद्दलगं च णं समुट्ठितं परिणतं वासितुकामं वाउका विधुति । इच्चेते हि तिहि ठाणेहिं अप्पबुद्धिगाए सिया || ५. तंवणे ( ख ) | अन्नत्थ ( ख ) | ० पोग्गलं वा ( क ) 1 ६. ७. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ ठाणं ३६०. तिहि ठाणेहि महावुट्टीकाए सिया, तं जहा १. तस्ति च णं देसंसि वा पदेसंसिौं वा बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला __य उदगत्ताए वक्कमंति विउक्कमति चयति उववज्जति । २. देवा जागा जवखा भूता सम्ममाराहिता भवंति, अण्णत्थ समुद्वितं उदग पोग्गलं परिणयं वासिउकाम त देसं साहरंति । ३. अभवद्दलगं च णं समुट्टितं परिणयं वासितुकामं णो वाउआए विधुणति । इच्चेतेहिं तिहि ठाणेहिं महावुट्टिकाए सिआ ।। अहुणोववण्ण-देव-पदं ३६१. तिहि ठाणेहि अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हवमागच्छि त्तए, णो चेव णं संचाएति हब्वमागच्छित्तए, तं जहा१. अहणोववण्ण देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झो ववणे, से णं माणुस्सए कामभोगे णो आढाति, णो परियाणाति, णो 'अटुं बंधति'", णो णियाणं पगरेति, णो ठिइपकप्पं पगरेति। २. अहुणोववणे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झो ववरण, तस्स णं माणुस्सए पेम्मे वोच्छिण्णे दिव्वे संकते भवति । ३. अहणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते' 'गिद्धे गढिते अज्झोववणे, तस्स णं एवं भवति--'इहि गच्छं मुहत्तं गच्छं'", तेणं कालेणमप्पाउया मणस्सा कालधम्मणा सजुत्ता भवति । इच्चेतेहि तिहिं ठाणेहिं अहुगोववरणे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, जो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए !! ३६२. तिहि ठाणे हि अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोग हव्वमागच्छि त्तए, संचाएइ हव्वमागच्छित्तए--- १. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिब्वेसु कामभोगसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते अणझोववण्णे, तस्स णमेवं भवति-अस्थि णं मम माणुस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति वा गणावच्छेदेति वा, जेसि पभावेणं मए इमा एतारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागते, तं गच्छामि णं ते १. तसिं (ग)। २. पतेसंसि (क, ख, ग)। ३. उक्कमति (ग)। ४. X (क, ग)। ५. अटेंति (ग)। ६. सं० पा०–मुच्छिते जाव अज्झोपवण्णे । ७. इयहिं (ख); इयहिं गच्छ मुहत्तागच्छ (ग); इयव्हिं न गच्छं (वृ)। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो) भगवंते वदामिणमस्सामि सबकारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि। २. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिा अगिद्धे अगढिते ° अणझोववण्णे, तस्स णं एवं भवति–'एस गं' माणुस्सए भवे णाणीति वा तवस्सीति वा अतिदुक्कर-दुक्करकारगे, तं गच्छामि णं ते भगवते वदामि णमंसामि' 'सरकारेमि सम्माणमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवा सामि। ३. अहणोववाणे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिद्धे अगढिते . अणज्झोववण्णे, तस्स णमेवं भवति - अस्थि णं मम माणुस्साए भवे माताति वा 'पियाति वा भायाति वा भगिणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा ध्याति वा सुण्हाति' वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता में इमं एतारूवं दिवं देविष्टि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमग्णागयं । इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहि अहुणोववणे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।। देवस्स मणट्टिइ-पदं ३६३. तओ ठाणाई देवे पीहेज्जा, तं जहा-माणुस्सगं भवं, आरिए खेत्ते जम्म, सकुलपच्चायाति ।। ३६४. तिहि ठाणेहि देवे परितप्पेज्जा, तं जहा १. अहो ! णं मए संते वले संते बीरिए संते पुरिसक्कार-परक्कमे खेमंसि सुभिक्खसि आयरिय-उबज्झाएहि विज्जमाहिं कल्लसरीरेणं णो वहुए सुते अहीते। २. अहो ! णं मए इहलोगपडिबद्धणं परलोगपरंमुहेणं विसयतिसितेणं णो दोहे सामण्णपरियाए अणुपालिते। ३. अहो ! णं मा इडि-रस-साय"-गमाणं भोगासंसगिद्धेण' णो विसुद्धे चरित्ते फासिते। इच्चेतेहि तिहि ठाणेहिं देवे परितप्पेज्जा ।। १. °सेमि (क, ख, ग)। ७. सुहीति (ग)। २. स. पा० अमुच्छिए जाव अणभोववगणे। ८. सुकूले ० (ख)। ३. एयंसि ण (क)। ६. बहुते (क, ख, ग)। ४. सं० पा० ..मसामि जाव पज्जुवासामि। १०. साया (ख)। ५. सं० पाo-~-देवलोगे जाव अगझोववण्णे। ११. भोगामिसगिद्धेणं (पा)। ६. सं० पा० ---माताति वा जाव सुहाति । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ ठाण ३६५. तिहि ठाणेहिं देवे चइस्सामित्ति जाणइ, तं जहा–विमाणाभरणाइं णिप्पभाई पासित्ता, कपरुक्खगं मिलायमाणं पासित्ता, अप्पणो तेयलेस्सं परिहायमाणि जाणित्ता-इच्ने एहिं तिहि ठाणेहिं देवे चइस्सामित्ति जाणइ ।। तिहिं ठाणेहि देवे उव्वेगमागच्छेज्जा, तं जहा१. अहो ! णं मए इमाओ एतारूवाओ दिव्वाओ देविड्डीओ दिवाओ देवजुतीओ दिवाओ देवाणुभावाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमण्णागताओ चइयव्वं भविस्सति । २. अहो ! णं मए माउओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसटुं तप्पढमयाए आहारो आयारेयव्वो भविस्सति । ३. अहो ! णं मए कलमल-जंबालाए असुईए उन्धेयणियाए' भीमाए गम्भ वसहीए वसियव्वं भविस्सइ । इच्चेए हिं तिहिं ठाणेहि देवे उव्वेगमागच्छेज्जा । विमाण-पदं ३६७. तिसंठिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा–वट्टा, तंसा, चउरसा। १. तत्थ णं जे ते बट्टा विमाणा, ते णं पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिया सव्वओ समंता पागार-परिक्खित्ता एगदुवारा पण्णत्ता। २. तत्थ णं जे ते तंसा विमाणा, ते णं सिंघाडगसंठाणसंठिया दुहतोपागार__ परिक्खित्ता एगतो वेइया -परिक्खित्ता तिदुवारा पण्णत्ता। ३. तत्थ णं जे ते चउरंसा' विमाणा, ते णं अक्खाडगसंठाणसंठिया सव्वतो समंता वेइया-परिक्खित्ता च उदुवारा पण्णत्ता ! ३६८. तिपतिट्टिया विमाणा पग्णत्ता, तं जहा–घणोदधिपतिट्टिता, घणवातपइद्विता, ओवासंतरपट्टिता ।। ३६६. तिविधा विमाणा पण्णत्ता, तं जहा--अवट्ठिता, वेउन्विता, पारिजाणिया॥ दिट्ठि-पदं ३७०. तिविधा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा–सम्मादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छा दिदी। ३७१. एवं---विगलि दियवज्ज जाव वेमाणियाणं ।। १. चवियव (क); चतियध्वं (ख, ग)। २. उव्वेवणिताते (क, ख, म)। ३. वेतिता (क, ख, ग)। ४. चउरंस (क, ग)। ५. उवट्टिता (क)। ६. परिजाणिता (क, ख, ग)। ७. ठा० १।१४२-१५१, १६०-१६३ । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नि ताइयं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५७५ दुग्गति-सुगति-पदं ३७२. तओ दुग्गतीओ पण्णताओ, तं जहा--णेरइयदुग्गतो, तिरिक्ख जोणियदुरगती', मणुयदुग्गती॥ ३७३. तओ सुगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--सिद्धसोगती, देवसोगती, मणुस्ससोगती ।। ३७४. तओ दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा—णेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मणुस्स दुग्गता॥ ३७५. तओ सुगता पण्णता, तं जहा-सिद्धसोगता, देवसुरगता, मणुस्ससुरंगता । तव-पाणग-पदं ३७६. चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा उस्सेइमे', संसे इमे, चाउलधोवणे ॥ ३७७. छ?भत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पति तओ पाणमाई पडिगाहित्तए, तं जहा-- तिलोदए, तुसोदए, जवोदए । ३७८. अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहा आयामए', सोवीरए', सुद्धवियडे ।। पिडेसणा-पदं ३७६. तिविहे उवहडे पण्णते, तं जहा–फलिओवहडे', सुद्धोवहडे, संसट्ठोवहडे । ३८०. तिविहे ओग्गहिते पण्णत्ते, तं जहा --जं च ओगिण्हति, जं च साहरति, जं च आसगंसि पविखवति ।। ओमोयरिया-पदं ३८१. तिविधा ओमोयरिया पण्णत्ता, तं जहा-उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणो मोदरिया, भावोमोदरिया । ३८२. उवगरणोमोदरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहाएगे वत्थे, एगे पाते, चियत्तो वहि-साइज्जणया" ।। णिग्गंथ-चरिया-पदं ३८३. तओ ठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अहियाए" असुभाए अखमाए १. तिरियदु ० (क); तिरियजो (ग)। ७. उवग्गहिते (क)। २. उस्मेतिमे (क, ख, ग)। ८ आसगंसि य (क)। ३. संसेतिमे (क, ख, ग)। 8. मोदरिता (क, ख, ग)! ४. आयामते (क, ख, ग) । १०. सातिज्जणता (क, ख, ग)। ५. सोवीरते (क, ख, ग)। ११. अभियाते (क); अहियाते (ख, ग)! ६. फल ° (क)। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ अणिस्साए अणानुगामियत्ताए भवंति तं जहा कूअणता, कक्करणता, 7 अवज्झाणता । ३८४. तओ ठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा हिताए सुहाए खमाए जिस्सेलाए' आगामि अत्ताए भवति, तं जहा - अकूअणता, अकक्करणता, अणवज्झाणता ॥ सल्ल-पदं ३८५. तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा - मायासल्ले, णियाणसल्ले, मिच्छादंसण सल्ले || तेउलेस्सा-पदं ३८६. तिहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संखित्त - विउलतेउलेस्से भवति, तं जहा आयावणताएं, खंतिखमाए, अपाणगेणं तवोकम्मेणं ॥ भिक्खुपडिमा पर्द ३८७ तिमसियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति तओ दत्तओ भोस पडिगात्तए, तओ पाणगस्स | ठाणं ३८८. एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्मं अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहिताए असुभाए अखमाए' अणिस्सेयसाए अणाणुगमियत्ताए भवति, तं जहाउम्मायं वा लभिज्जा, दीहकालियं वा रोगातंक पाउणेज्जा, केवली पण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा | ३८६. एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्मं अणुपालेमाणस्स अणगारस्स तओ ठाणा हिताए सुभाए खमाए णिस्साए आणुगामियत्ताए भवंति तं जहा - ओहिणाणे वा से समुपज्जेज्जा, मणपज्जवणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, केवलणाणे वा से समुपज्जेज्जा ।। कम्मभूमी-पदं ३६०. जंबुद्दोवे दीवे तओ कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - भरहे, एरवए, महाविदेहे ॥ ३६१. एवं - धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे जाव' पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे || दंसण-पदं ३९२ तिविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा ३६३. तिविहा रुई पण्णत्ता, तं जहा १. अणिस्से साए (क्व ) ! २. पिम्सेमा (क, ख, ग ); णिस्तेयसाए (क्व ) | ३. मासितं ( क ग ); सिंग ( ख ) सम्मद्दंसणे, मिच्छदंसणे, सम्मामिच्छदंसणे || सम्मरुई, मिच्छरुई, सम्मामिच्छरुई || ४. अक्खते ( ख ) ५. ठा० ३१०८ ६. रुती (क, ख, ग ) । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५७७ पओग-पदं ३६४. तिविधे पओगे पण ते, तं जहा–सम्मपओगे, मिच्छपओगे, सम्मामिच्छपओगे ।। ववसाय-पदं ३६५. तिविहे ववसाए' पण्णत्ते, तं जहा-धम्मिए' ववसाए, अधम्मिए ववसाए, धम्मियाधम्मिए ववसाए। अहवा'-तिविधे ववसाए पण्णते, तं जहा-पच्चक्खे, पच्चइए, आणुगामिए॥ अहवा-तिविधे ववसाए पण्णत्ते, तं जहा- इहलोइए, परलोइए', 'इहलोइय परलोइए ॥ ३९६. इहलोइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-लोइए", वेइए", सामइए । ३६७. लोइए ववसाए तिविधे पण ते, तं जहा–अत्थे, धम्मे, कामे ।। ३६८. वेइए" ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-रिव्वेदे", जउव्वेद, सामवेदे ।। ३६६. सामइए" ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा--णाणे, दंसणे, चरित्ते ।। अत्थजोणी-पदं ४००. तिविधा अत्थजोणी पण्णत्ता, तं जहा-सामे, दंडे ", भेदे ॥ पोग्गल-पदं ४०१. तिविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा-पओगपरिणता, मीसापरिणता, वीससा परिणता। णरग-पदं ४०२. तिपतिट्ठिया णरगा पण्णता, तं जहा-पुढविपतिट्ठिया, आगासपतिट्टिया, आय पइट्ठिया । णेगम-संगह-ववहाराणं पुढविपतिट्ठिया, उज्जुसुतस्स आगासपतिट्ठिया, तिण्हं सद्दणयाणं" आयपतिट्ठिया ॥ १. ववसाते (क, ख, ग)। २. धम्मिते (क, ख, ग)। ३. अथवा (क) ४. पच्चतिते (क, ख, ग)। ५. पारलोगिते (क)। ६. इहलोगित-परलोमिते (क, ख, ग)। ७. लोगिते (क, ख, ग)। ८. वेतिते (क, ख, ग)। ६. सामतिते (क, ख, ग)। १०. वेतिगे (क, ख, ग)। ११. रिउब्वेदे (ख)। १२. सामातिते (क); सामइते (ख, ग)। १३. पयाणे (वृपा)। १४. ०णताणं (क, ख, ग)। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ ठाणं मिच्छत्त-पदं ४०३. तिविधे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा–अकिरिया', अविणए', अण्णाणे ।। ४०४. अकिरिया तिविधा पण्णता, तं जहा-पओगकिरिया, समदाणकिरिया, अण्णाणकिरिया ॥ ४०५. पओगकिरिया तिविधा पण्णता, तं जहा-मणपओगकिरिया, वइपओगकिरिया, कायपओगकिरिया ।। ४०६. समुदाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–अणंतरसमुदाणकिरिया, परंपर समुदाणकिरिया, तदुभयसमुदाणकिरिया ।। ४०७. अण्णाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–मतिअण्णाणकिरिया, सुतअण्णाण किरिया, विभंगअण्णाण किरिया ॥ ४०८. अविणए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–देसच्चाई, णिरालंबणता, णाणापेज्जदोसे ।। ४०६. अण्णाणे तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-देसण्णाणे, सव्वण्णाणे, भावण्णाणे ॥ धम्म-पदं ४१०. तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा–सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अस्थिकायधम्मे ।। उवक्कम-पदं ४११. तिविधे उवक्कमे पणते, तं जहा --धम्मिए उवक्कमे, अधम्मिए उवकम्मे, धम्मियाम्मिए उवक्कमे ।। अहवा --तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा--आओवक्कमे, परोवक्कमे, तदुभयोवक्कमे। ४१२. “तिविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा-आयवेयावच्चे, परवेयावच्चे, तदुभय वेयावच्चे। १. अकिरिता (क, ख, ग)। २. अविणते (क, ख, ग)। ३. विभंगणाण' (क) ४. देसच्चाती (क, ग); देसच्चाता (ख)। ५. सं० पा०—एवं वेयावच्चे अणुग्गहे अणुसट्ठी उवालंभे एवमेक्केके तिण्णि-तिण्णि आलावगा जहेव उवक्कमे । अनेन संक्षिप्तपाठेनेति प्रतीयते--आत्म-पर-तदुभय-वैयावृत्त्यादिवत् धार्मिक - अधार्मिक - धामिकाधामिक-वैयावृत्त्यादि-आलापका अपि युज्यन्ते, किन्तु वृत्तिकृता केवलं आत्म-पर-तदुभय-भेदा एव स्वीकृताः। तथा च वृत्तिः-'एव' मिति उपक्रमसूत्रवत् आत्मपरोभयभेदेन वैयावृत्त्यादयो वाच्याः (वृत्ति पत्र १४५) । “एवं' मित्यादिना पूर्वोक्तोतिदेशो व्याख्यातः, एवं चात्राक्षरघटना-यथैवोपक्रमे आत्मपरतद्भयैस्त्रय आलापका उक्ता: एवमेकैकस्मिन् वैयावृत्त्यादिसूत्रे ते त्रयस्त्रयो वाच्याः (वृत्ति पत्र १४५)। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५७६ ४१३. तिविधे अणुग्गहे पण्णते, तं जहा-आयअणुग्गहे, परअणुग्गहे, तदुभयअगुग्गहे ।। ४१४. तिविधा अणुसट्ठी पण्णता, तं जहा-आयअणुसट्ठो, परअणुसट्ठो, तदुभय अणुसट्टी।। ४१५. तिविधे उवालंभे पण्णत्ते, तं जहा-आओवालंभे, परोवालंभे, तदुभयोवालंभे ॥ तिवग्ग-पदं ४१६. तिविहा कहा पण्णत्ता, तं जहा-अत्थकहा, धम्मकहा, कामकहा ।। ४१७. तिविहे विणिच्छए पण्णत्ते, तं जहा–अत्थविणिच्छए, धम्मविणिच्छए, कामविणिच्छए ।। ४१८. तहारूवं णं भंते ! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किफला पज्जवास णया? सवणफला। से णं भंते ! सवणे किंफले? णाणफले। से णं भंते ! णाणे किंफले ? विण्णाणफले। से णं भंते ! विण्णाणे किंफले ? पच्चक्खाणफले । से णं भंते ! पच्चक्खाणे किंफले ? संजमफले । से गं भंते ! संजमे किंफले ! अणण्हयफले। से णं भंते ! अणण्हए किंफले ? तवफले। से णं भंते ! तवे किंफले ? वोदाणफले । से णं भंते ! वोदाणे किंफले ? अकिरियफले। साणं भंते ! अकिरिया किफला? णिव्वाणफला। से णं भंते ! णिव्वाणे किंफले ? सिद्धिगइ-गमण-पज्जवसाण-फले समणाउसो! १. सं० पा०--एवमेतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणगंतव्वा--सवणे"णिवाणे जाव से गं भंते ! Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० उत्थो उद्देसो पडिमा पर्द ४१६. पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा - अहे आगमण हिंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा ॥ ४२०. पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए, तं जहा - अहे आगमण गिर्हसि वा, अहे विsiिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा ।। ४२१. पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्त कप्पंति तओ उवस्सया उवाइणित्तए, तं जहा -- अहे आगमण हिंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलहिंसि वा ॥ ४२२. पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पति तओ संथारंगा पडिलेहित्तए, तं जहा --- पुढविसिला, कटुसिला, अहासंथडमेव ॥ ४२३. पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए, तं जहा -- पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव || ४२४. पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा उवाइणित्तए, तं जहा - पुढविसिला, कटुसिला, अहासंथडमेव ॥ काल-पदं ४२५. तिविहे काले पण्णत्ते, तं जहा - तीए, पडुप्पण्ण, अणामए ॥ ४२६. तिविहे समए पण्णत्ते, तं जहा - तीए, पडप्पण्णे, अणागए || ४२७ एवं – आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरते जाव' वाससतसहस्से ' पुगे पुब्वे जाव' ओसप्पिणी ॥ ४२८. तिविधे पोरगलपरियट्टे पण्णत्ते, तं जहा-तीते, पडुप्पण्णे, अणागए || वयण-पदं ४२६ तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा- एगवयणे, दुवयणे, बहुवयणे । १. सं० पा० - एवमणुष्वेतते उवातिणित्तते । २. सं० पा० एवं अणुष्णवेत्तए उवाइणित्तए । अहवा-तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा - इत्थिवयणे, पुंवणे, णपुंसगवयणे । ३. ठा० २/३८६ । ४. ठा० २३८६ सूत्रे 'वाससतसहस्साइ वा ठाण ५. ६. वासकोडीइ वा पुवंगाति वा इति पाठो विद्यते । ठा० २३८६ । उस ० ( क, ख ) 1 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (च उत्थो उद्देसो) ५५१ अहवा-तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा----तीतवयणे, पडुप्पण्णवयणे, अणागयवयणे ।। णाणादीणं पण्णवणा-सम्म-पद ४३०. तिविहा पण्णवणा पण्णत्ता, तं जहा–णाणपण्णवणा, दंसणपण्णवणा, चरित्तपण्णवणा ।। ४३१. तिविधे सम्मे पण्णत्ते, तं जहा–णाणसम्मे, दसणसम्मे, चरित्तसम्मे ।। उवघात-विसोहि-पदं ४३२. तिविधे उवधाते पण्णत्ते, तं जहा-उग्गमोवघाते, उप्पायणोवधाते, एसणोवघाते ।। ४३३. "तिविधा विसोही पण्णता, तं जहा--उग्गमविसोही, उप्पायण विसोही, एसणाविसोही ॥ आराहणा-पदं ४३४. तिविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा–णाणाराणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा॥ ४३५. णाणाराहणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ।। ४३६. "दसणाराहणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ ४३७. चरित्ताराहणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ।। संकिलेस-असंकिलेस-पदं ४३८. तिविधे संकिलेसे पण्णते, तं जहा–णाणसंकिलेसे, दसणसंकिलेसे, चरित्तसंकिलेसे।। ४३8. तिविधे असंकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा---णाणअसंकिलेसे, दसणअसंकिलेसे. चरित्तअसंकिलेसे ।। अइक्कम-आदि-पदं ४४०. तिविधे अतिक्कमे पण्णत्ते, तं जहा—णाणअतिक्कमे, दंसणअतिक्कमे, चरित्तअतिक्कमे ।। ४४१. तिविधे वइवकमे पण्णत्ते, तं जहा—णाणवइक्कमे, सणवइक्कमे, चरित्तवइक्कमे ।। ४४२. तिविधे अइयारे पण्णत्ते, तं जहा णाणअइयारे, दसणअइयारे, चरित्तअइयारे।। १. अतीत ° (क)। २. सं० पा०--एवं विसोही। ३. सं० पा०--एवं दंसणाराहणावि चरित्ता राहणावि। ४. सं०पा०-एवं अंसकिलेसेवि.."अणायारेवि। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ ४४३. तिविधे अणायारे पण्णत्ते, तं चरित्तअणायारे ॥ ४४४. तिहमतिक्कमाणं - आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, जहा -- पाणअणायारे, दंसणअणायारे, गरहेज्जा, ' "विउज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटुज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा --- णाणातिक्कमस्स, दंसणातिक्कमस्स, चरितातिक्कमस्स ॥ ४४५. तिन्हं वइक्कमाण - आलोएज्जा, पडिवकमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा -- णाणवइक्कमस्स, दंसणव इक्कमस्स, चरित्तवइक्कमस्स ॥ ४४६. तिहमतिचाराणं - आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोज्जा, अकरणयाए अब्भुद्वेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा - णाणातिचा रस्स, दंसणातिचारस्स, चरितातिचारस्स || ४४७. तिण्हमणायाराणं - आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तंजहा - णाण - अणायारस्स, दंसण- अणायारस्स, चरित अणायारस्स ॥ ठाण पायच्छित्त-पदं ४४८. तिविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे || अम्मभूमी-पदं ४४६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ अकस्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - हेमवते, हरिवासे, देवकुरा ॥ ४५०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - उत्तरकुरा, रम्मगवासे, हेरण्णवऍ ॥ १. सं० पा०-- गरहेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा । २. सं० पा० – एवं वइक्कमाणं अतिचाराणं aणायाराणं । वास-पदं ४५१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासा पण्णत्ता, तं जहाभर, हेमवए, हरिवासे ॥ ३. ० माण वि ( ख ) 1 ४. एरण्णव (क, ख, ग ) । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ५५३ ४५२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासा पण्णत्ता तं जहा रम्मगवासे, हेरण्णवते, एरवए । वासहरपव्यय-पदं ४५३. जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा---चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे । ४५४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासहरपब्वत्ता पण्णत्ता, तं जहा----णीलवंते, रुप्पी, सिहरी ॥ महादह-पदं ४५५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे ण तओ महादहा पण्णत्ता, तं जहा पउमदहे, महापउमदहे, तिगिछदहे। तत्थ णं तओ देवताओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं जहा-सिरी, हिरी, धिती।। ४५६. एवं-उत्तरे णवि, नवरं-केसरिदहे, महापोंडरीयदहे, पोंडरीयदहे। देवताओ-कित्ती, बुद्धी, लच्छी। णदी-पदं ४५७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्ल हिमवंताओ वासधरपव्वताओ पउमदहाओ महादहाओ तओ महाणदीओ पवहंति, तं जहा-गंगा, सिंधू, रोहितंसा ।। ४५८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरीओ वासहरपव्वताओ पोंडरीयद्दहाओ महादहाओ तओ महाणदीओ पवहंति, तं जहा--सुवण्णकूला, रत्ता, रत्तवतो ।। ४५६. जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरे णं तओ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-गाहावती, दहवती, पंकवती॥ ४६०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं तओ अंत रणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--तत्तजला,मत्तजला, उम्मत्तजला ।। ४६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए दाहिणे णं तओ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खीरोदा, सीहसोता', अंतोवाहिणी ॥ ४६२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए उत्तरे णं तओ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- उम्मिमालिणी, फेणमालिणी, गंभीरमालिणी॥ ३. सीतसोता (क, ग)। १. तिगिच्छ ° (क); तिगिच्छि ° (ख)। २. ठा० २०७१। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ धाइड - पुवखरवर-पदं ४६३. एवं वायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धेवि अकम्मभूमीओ आढवेत्ता जाव' अंतरनदीओति णिरवसेसं भाणियव्वं जाव' पुक्खरवरदीवढपच्चत्थिमद्धे तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं ॥ भूकंप-पदं ४६४. तिहि ठाणेहिं देसे पुढवीए चलेज्जा, तं जहा १. आहे णं इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए उराला पोग्गला णिवतेज्जा । तते गं उराला पोग्गला णिवतमाणा देसं पुढवीए चालेज्जा' । २. महोरगे वा महिडीए जाव' महेसक्खे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे उम्मज्ज - णिमज्जियं करेमाणे देसं पुढवीए चालेज्जा' | ४६५. तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा, तं जहा ३. जागसुवण्णाण वा संगामंसि वट्टमाणंसि देस [ देसे' ? ] पुढवीए चलेज्जा । इच्चे हि तिहि ठाणेहि देसे पुढवीए चलेज्जा | ठाणं १. अधे णं इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते गुप्पेज्जा । तए णं से घणवाते गुविते समाणे घणोदहिमेएज्जा । तए णं से घणोदही एइए समाणे केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा | २. देवे वा महिड्डिए जाव' महेसक्खे तहारूवस्स समणस्स माहणस्स वा इड्डि जुर्ति जसं बलं वीरियं पुरिसक्का र परक्कम उवदंसेमाणे केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा । ३. देवासुरसंगामंसि वा वट्टमाणंसि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा । इच्चे हि तिहि ठाणेहिं केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा ।। देवकिम्ब सिय-पदं ४६६. तिविधा देवकिब्बिसिया पण्णत्ता, तं जहा - तिपलिओ मद्वितीया, तिसाग रोवमद्वितीया, तेरससागरोवर्माद्वितीया । १. कहि णं भंते! तिपलिओवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? १. ठा० ३१४४६ ४६२ । २. ठा० ३।१०८ ३. चलेज्जा (क, ख, ग ); वृत्तौ चलयेयुः इति व्याख्यातमस्ति, तेन चालेज्जा इति पाठ: प्रतीयते 1 ४. महोरते ( क, ख, ग ) ५. ठा० २१२७१ 1 ६. चलेज्जा ( क, ख, ग ) । ७. देसंति देशश्चले दिति (वृ ) 1 ८. ठा० २।२७१ / ६. वीरितं ( क, ख, ग ) 1 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ५८५ उप्प जोइसियाणं, हिट्ठि' सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओ मद्वितीया देवब्बिसिया परिवसति । २. कहिणं भंते ! तिसाग रोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि सोहम्मीसागाणं कप्पाणं, हेट्ठिी सणकुमार - माहिदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसति । ३. कहि णं भंते ! तेरससाग रोव मट्टितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि बंभलोगस्स कप्पस्स, हेट्ठि' लंतगे कप्पे, एत्थ णं तेरससागरोवमद्वितीया देवब्बिसिया परिवसंति || देवठित पदं ४६७. सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवाणं तिरिण पलिओ माई ठिई पण्णत्ता || ४६८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरपरिसाए देवीणं तिष्णि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता ॥ ४६६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवीणं तिणि पलिओमाई ठिती पण्णत्ता || पायच्छित्त-पदं ४७० तिविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - णाणपायच्छिते, दंसणपायच्छित्ते, चरितपायच्छित्ते ॥ ४७१. तओ अणुग्घातिमा पण्णत्ता, तं जहा - हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं सेवेमाणे, राईभोवणं भुजमा || ४७२. तओ पारंचिता पण्णत्ता, तं जहा -- दुट्ठे पारंचिते, पमत्ते पारंचिते, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिते ॥ ४७३. तओ अणवटुप्पा पण्णत्ता, तं जहा - साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अण्णधम्मियाणं तेणियं करेमाणे, हत्थाताल' दलयमार्णे || पव्वज्जादि - अजोग्ग-पर्द ४७४. तओ णो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं जहा -- पंडए, वातिए', कीवे ॥ १. हव्वि (क, ख ) 1 २. हृदि (क, ख ) 1 ३. माहिंदे (क) 1 ४. हवि ( क ) । ५. घातिया (ठा० ५। १०१) । ६. तेण्णं (क); तेणं (क्व ) । ७. हत्थतालं (ख); अत्थायाणं, हत्थालंबं (वृपा ) ८. दलमाणे (दृ) | ६. वाति (क, ख, ग ); वाहिए (वृपा) । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ४७५. “तओ णो कप्पंति °—मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावेत्तए', संभुंजित्तए, __ संवासित्तए, 'तं जहा-पंडए, वातिए, कीवे ।। अवायणिज्ज-वायणिज्ज-पदं ४७६. तओ अवायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा-अविणीए, विगतीपडिबद्धे, अविओस वितपाहुडे' ।। ४७७. तओ कप्पंति वाइत्तए, तं जहा-विणीए, अविगतीपडिबद्धे, विओसवियपाहुडे'। दुसण्णप्प-सुसण्णप्प-पदं ४७८. तओ दुसण्णप्पा पण्णत्ता, तं जहा–दुढे, मूढे, बुग्गाहिते ॥ ४७६. तओ सुसण्णप्पा पण्णत्ता, तं जहा- अदुद्वे, अमूढे, अबुग्गाहिते ॥ मंडलिय-पव्वय-पदं ४८०. तओ मंडलिया पन्वता पण्णत्ता, तं जहा-माणुसुत्तरे, कुंडलवरे, रुयगवरे ॥ महतिमहालय-पदं ४८१. तओ महतिमहालया पण्णत्ता, तं जहा-जंबुद्दीवए मंदरे मंदरेसु, सयंभूरमणे __समुद्दे समुद्देसु, बंभलोए कप्पे कप्पेसु ॥ कम्पठिति-पदं णय ४८२. तिविधा कप्पठिती पण्णत्ता, तं जहा—सामाइयकप्पठिती, कप्पठिती, णिव्विसमाणकप्पठिती।। अहवा-तिविहा कप्पट्टितो पण्णत्ता, तं जहा–णिविटुकप्पट्ठिती, जिणकप्प द्विती, थेरकप्पट्टिती। सरीर-पदं ४८३. णेरइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-वेउव्विए, तेयए, कम्मए ।। ४८४. असुरकुमाराणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, "तं जहा-वेउन्विए, तेयए, कम्मए° ॥ ४८५. एवं--सव्वेसिं देवाणं ॥ १. सं० पा०--एवं। २. उटावेत्तए (क, ख)। ३. अविओसित ° (क्व)। ४. वातित्तते (क, ख, ग)। ५. विउसिय° (क्व)। ६. रुतगवरे (क, ख, ग)। ७. सं० पा०-एवं चेव । ८. ठा० १११४३-१५१, १६२-१६४ । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८७ तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ४८६. पुढविकाइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए, तेयए, कम्मए ।। ४८७. एवं-वाउकाइयवज्जाणं जाव' चरिदिया। पडिणीय-पदं ४८८. गुरुं पडुच्च तओ पडिणीयापण्णता, तं जहा-आयरियपडिणोए, उवज्झाय पडिणीए, थेरपडिणीए॥ ४८६. गति पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा–इहलोगपडिणीए, परलोग पडिणीए, दुहओलोगपडिणीए । ४६०. समूहं पडुच्च तओ पडिणोया पण्णत्ता, तं जहा–कुलपडिणीए, गणपडिणीए, संघपडिणीए । ४६१. अणुकंपं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-तवस्सिपडिणीए, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए । ४६२. भावं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा—णाणपडिणीए, दसणपडिणीए, चरित्तपडिणीए॥ ४६३. सुयं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए, तदुभयपडिणीए॥ अंग-पदं ४६४. तओ पितियंगा पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठी, अट्ठिमिजा, केसमंसुरोमणहे। ४६५. तओ माउयंगा पण्णत्ता, तं जहा—मसे, सोणिते, मत्थुलिंगे। मणोरह-पदं ४६६. तिहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा १. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा सुयं अहिज्जिस्सामि ? २. कथा णं अहं एकल्लविहारपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि ? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि? एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे' समणे निग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति ।। ४६७. तिहिं ठाणेहिं समणोवासए" महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा १. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि? १. ठा० १११५३, १५४, १५६-१५६ । २. पडिणीता (क, ख, ग)। ३. पहारेमाणे (वृ); पागडेमाणे (वृपा)। ४. X (क)। ५. सम्णोवासते (क, ख, म)। Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ २. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइस्सामि ? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतिय संलेहणा - भूसणा-भूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकखमाणे विहरिस्सामि ? एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति ॥ पोग्गल पडघात पदं ४६८. तिविहे पोग्गलपडिघाते पण्णत्ते, तं जहा - परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलं पप्प पडिणिज्जा, लुक्खत्ताए वा पहिणिज्जा', लोगंते वा पडिणिज्जा || चक्खु पर्द ४६६. तिविहे चक्खू पण्णत्ते, तं जहा -- एगचक्खू, बिचक्खू, तिचक्खू 1 अभिसमागम-पदं ५०० तिविधे अभिसमागमे पण्णत्ते, तं जहा -- उड्ढ, अहं, तिरियं । छत्थे णं मस्से एगचक्खू, देवे विचक्खू, तहारूवे समणे वा माहणे वा उप्पण्णणाणदंसणधरे' तिचक्खुत्ति वत्तव्वं सिया ॥ ठाण जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जति से णं तप्पढमताए उड्डमभिसमेति, ततो तिरियं ततो पच्छा अहे । अहोलोगे णं दुरभिगमे पण्णत्ते समणाउसो ! इडिट-पदं ५०१. तिविधा इड्डी पण्णत्ता, तं जहा -- देविड्डी, राइड्डी, गणिड्डी || ५०२. देविड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - विमाणिड्डी, विगुव्वणिड्डी, परियारणिड्डी । अहवा -- देविड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सचित्ता, अचित्ता, मीसिता ॥ ५०३. राइड्डी तिविधा पण्णत्ता, तं जहा - रण्णो अतियाणिड्डी, रण्णो णिज्जाणिड्डी, रण्णो बल-वाहण - कोस- कोट्ठागारिड्डी । अहवा - राइड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सचित्ता, अचित्ता, मीसिता || ५०४. गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - णाणिड्डी, दंसणिड्डी, चरित्तिड्डी । अहवा-गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- सचित्ता, अचित्ता, मीसिता || गारव-पदं ५०५. तओ गारवा पण्णत्ता, तं जहा इड्डीगारवे, रसगारवे, सातागारवे || १. पहिज्जा ( ख ) | २. ० धरे से णं ( क, ख ) । ३. विगुब्वि ० ( क, ग ) | ४. रातिड्डी ( क, ख, ग ) । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ५८९ करण-पदं ५०६. तिविहे करणे पण्णते, तं जहा-धम्मिए करणे, अधम्मिए करणे, धम्मिया धम्मिए करणे ॥ सुयक्खायधम्म-पदं ५०७. तिविहे भगवता धम्मे पण्णत्ते, तं जहा--सुअधिज्झिते, सुज्झाइते', सुतवस्सिते । जया सुअधिज्झितं भवति तदा सुज्झाइतं भवति, जया सुज्झाइतं भवति तदा सुतवस्सितं भवति, से सुअधिज्झिते सुज्झाइते सुतवस्सिते सुयक्खाते' ण भगवता धम्मे पण्णत्ते ।। जाणु-अजाणु-पदं Y... तिविधा वावतो पण्णत्ता.तं जहा--जाण, अजाण, वितिगिच्छा। ५०६. "तिविधा अज्झोववज्जणा पण्णत्ता, तं जहा--जाणू, अजाण , वितिगिच्छा ।। ५१०. तिविधा परियावज्जणा पण्णता, तं जहा-जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा !! अंत-पदं ५११. तिविधे अंते पण्णत्ते, तं जहा-लोगते, वेयंते, समयंते ।। जिण-पदं ५१२. तओ जिणा पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणजिणे, मणपज्जवणाणजिणे, केवलणाणजिणे ।। ५१३. तओ केवली पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणकेवली, मणपज्जवणाणकेवली, केवलणाणकेवली ॥ ५१४. तओ अरहा पणत्ता, तं जहा--ओहिणाणअरहा, मणपज्जवणाणअरहा, केवलणाणअरहा॥ लेसा-पदं ५१५. तओ लेसाओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा॥ ५१६. तओ लेसाओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ।। ५१७. “तओ लेसाओ-दोग्गतिगामिणीओ, संकिलिट्टाओ, अमणुण्णाओ, अविसुद्धाओ, १. सुज्झातिते (क, ख, ग)। २. सुतक्खाते (क, ख, ग)। ३. सं०पा०—एवमझोवज्जणा परियावज्जणा। ४. मज्झोवज्जणा (क, ख, ग) । ५. सं०पा०—एवं दोग्गतिगामिणीओ सोगति गामिणीओ, संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ, अमणण्णाओ मणण्णाओ, अविसुद्धाओ विसुद्धाओ, अप्पसत्थाओ पसत्थाओ, सीतलुक्खाओ णि ण्हाओ। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० अप्पसत्थाओ, सीत- लुक्खाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा || ५१८. तओ लेसाओ - सोगतिगामिणीओ, असंकिलिट्ठाओ, मणुण्णाओ, विसुद्धाओ, पसत्थाओ, णिक्षुण्हाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥ ठाणं मरण-पदं ५१६. तिविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा - बालमरणे, पंडियमरणे, बालपंडियमरणे ॥ ५२०. बालमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा --ठित लेस्से, संकिलिट्ठलेस्से, पज्जवजात लेस्से ॥ ५२१ पंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा --ठितलेस्से, असंकिलिट्ठलेस्से पज्जवजातलेस्से || ५२२. बालपंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -ठितलेस्से, असं किलि लेस्से, अपज्जवजातलेस्से ॥ असद्दतस्स पराभव-पदं ५२३. तओ ठाणा अव्यवसितस्स अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियत्ता भवति, तं जहा १. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए' णिग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितगिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं णो सद्दहति जो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवंति, णो से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवइ । १. पव्वतिते ( क, ख, ग ) । २. सं० पा० – संकिते जाव कलुससमावण्णे । २. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइए पंचहि महत्वएहि संकिते ● कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे पंच महव्वताइं णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवंति णो से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवति । 7 ३. सेणं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहि जीवणिकाए हिं "किते कखि वितिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे छ जीवणिकाए णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवति, णो से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय• अभिभवति ॥ ३. सं० पा० - सद्दहति जाव णो से । ४. सं० पा० - जीवणिकाएहिं जाव अभिभवइ । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६१ तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) सद्दहंतस्स विजय-पदं ५२४. तओ ठाणा ववसियस्स हिताए 'सुभाए खमाए णिस्सेसाए ° आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा१. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिते' •णिक्कंखिते णिव्वितिगिच्छिते णो भेदसमावणे' णो कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं सद्दहति पत्तियति रोएति', से परिस्सहे अभिजु जिय-अभिजुजिय अभिभवति, णो तं परिस्सहा अभिमुंजिय-अभिजुजिय अभिभवति । २. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचहि महन्वहि णिस्संकिए णिक्कंखिए 'णिन्वितिगिच्छिते णो भेदसमावण्णे णो कलुससमावणे पंच महव्वताई सद्दहति पत्तियति रोएति, से° परिस्सहे अभिमुंजिय-अभिजुजिय अभिभवइ, णो तं परिस्सहा अभिमुंजिय-अभिजुजिय अभिभवति । ३. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहिं जीवणिकाएहिं णिस्संकिते "णिक्कखिते णिव्वितिगिच्छिते णो भेदसमावण्णे णो कलुससमावणे छ जीवणिकाए सद्दहति पत्तियति रोएति, से° परिस्सहे अभिजुजिय-अभि जुजिय अभिभवति, णो तं परिस्सहा अभिजुजिय-अभिमुंजिय अभिभवंति ।। पुढवी-वलय-पदं ५२५. एगमेगा णं पढवी तिहिं वलएहिं सब्बओ समता संपरिक्खित्ता, तं जहा घणोदधिवलएणं, घणवातवलएणं, तणुवायवलएणं ।। विग्गह-गइ-पदं ५२६. णेरइया णं उक्कोसेणं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जति । एगिदियवज्ज जाव' वेमाणियाणं ।। खीणमोह-पदं ५२७. खीणमोहस्स णं अरहओ तओ कम्मंसा जुगवं खिज्जंति, तं जहा णाणावरणिज्ज, सणावरणिज्ज, अंतराइयं ॥ णक्खत्त-पदं ५२८. अभिईणक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ ५२६. एवं-सवणे, अस्सिणी, भरणी, मगसिरे, पूसे, जेट्ठा । १. सं. पा.---हिताते जाव अणगामितत्ताते। २. सं० पा०-णिस्संकिते जाव णो कलुस- समावण्णे । ३. रोतेति (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-णिक्कंखिए जाव परिस्सहे। ५. सं० पा०-णिस्संकिते जाव परिस्सहे। ६. तिसमतितेणं (क, ख, ग)। ७. ठा० १११४२-१५१, १५७-१६३ । ८. अंतरातियं (क, ख, ग)। ६. अभिती ° (क, ख, ग)। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ ठाणं तित्थकर-पदं ५३०. धम्माओ णं अरहाओ संती अरहा तिहिं सागरोवमेहिं तिचउभागपलिओवम ऊणएहिं वीतिक्कतेहिं समुप्पण्णे ॥ ५३१. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकर भूमी ॥ ५३२. मल्ली णं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता' 'अगाराओ अणगारियं पव्वइए। "पासे णं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । ५३४. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तिग्णि सया चउद्दसयुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसण्णिवातीणं जिणा' [जिणाणं?] इव अवितहं बागरमाणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुव्विसंपया हुत्था ।। ५३५. तो तित्थयरा चक्कवट्टी होत्था, तं जहा --संती, कुंथू, अरो॥ गेविज्ज-विमाण-पदं ५३६. तओ गेविज्ज-विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा–हेट्टिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-रोविज्ज-विमाण-पत्थडे ।। ५३७. हिदिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--हेटिम हेटिम-गेविज्ज विमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-मज्झिम-गविज्ज-विमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-उवरिम-गेविज्जविमाण-पत्थडे ।। मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-मज्झिम-हेद्विमगेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-मज्झिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम उवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे ॥ ५३६. उवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–उवरिम-हेदिम गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-मझिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उरिम उरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे ।। ५३८. पावकम्म-पदं ५४०. जीवाणं तिट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा १. सं० पा०-भवित्ता जाव पब्वतिते । २. सं० पा०–एवं पासे वि। ३. जिणो (ख)। ४. चिणिति (क)1 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तय ठाणं (उत्थो उद्देसो) 383 चिणिस्संति वा, तं जहा - इत्थिणिव्वत्तिते, पुरिसणिव्वत्तिते, णपुंसगणिव्वत्तिते । एवं - चिण उवचिण-बंध उदीर - वेद' तह' णिज्जरा चेव ॥ पोग्गल-पदं ५४१. तिपदेसिया' खंधा अनंता पण्णत्ता ॥ ५४२. एवं जाव तिगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ १. वेदा (ख) । २. तहा ( क ) 1 ३. तिपतेसिता (क, ख, ग ) | ४. ठा० ११२५४-२५६ । ५. तिगुणा (क, ग ) । o Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं पढमो उद्देसो अंतकिरिया-पदं १. चत्तारि अंतकिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा १. तत्थ खलु इमा पढमा अंतकिरिया-अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहले लहे तीरट्टी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी। तस्स गंणो तहप्पगारे तवे भवति, णो तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसज्जाते दीहेणं परियारण सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिध्वाति सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा--से भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी -पढमा अंतकिरिया । २. अहावरा दोच्चा अंतकिरिया--महाकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले' 'समाहिबहुले लहे तीरट्टी° उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी। तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति, तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते णिरुद्धणं परियाएणं सिज्झति' 'बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाण ° मंतं करेति, जहासे गयसूमाले अणगारे-दोच्चा अंतकिरिया । ३. अहावरा तच्चा अंतकिरिया--महाकम्मपच्चायाते यावि भवति । से ण मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए "संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले लूहे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी । तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति, १. परितातेणं (क, ग)। २. सं० पा०-संवरबहले जाव उवहाणवं । ३. विरुद्वेणं (क)। ४. सं० पा०-सिज्झति जाव मतं । ५. गतसुकुमाले (ख)। ६, सं० पा०--जहा दोच्चा णवरं दोहेणं परि तातेण। ५६४ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५६५ तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते. दीहेणं परियाएणं सिझति' 'बुज्झति मुच्चति परिणिवाति ° सव्वदुक्खाणमंतं करेति, जहा–से सणंकुमारे राया चाउरतचक्कवट्टी--तच्चा अंतकिरिया। ४. अहावरा च उत्था अंतकिरिया-अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वइए संजमबहुले' संवरबहले समाहिवहुले लहे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवति, णो तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते णिरुद्धणं परियाएणं सिज्झति' 'बुज्झति मुच्चति परिणिन्वाति ° सव्वदुक्खाणमंतं करेति, जहा -सा मरुदेवा भगवती–चउत्था अंतकिरिया ॥ उण्णत-पणत-पदं २. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उपणते, उण्णते णामेगे पणते, पणते णाममेगे उण्णते, पणते णाममेगे पणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा.-उपणते णामेगे उण्णते, ""उण्णते नाममेगे पणते, पणते णाममेगे उपणते °, पणते णाममेगे पणते ।। चत्तारि रुक्खा पणत्ता, तं जहा---उण्णते णामभेगे उपणतपरिणते, उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पणत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, "उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममंगे पुणतपरिणते ।। ४. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तंजहा --उण्णते णाममेगे उण्णतरूवे, "उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उष्णतरूवे, पणते णामणेगे पणतरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- उपणते णाममेगे उण्णतरूवे, "उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उष्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे ।। ५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उष्णतमणे, उष्णते णाममेये पणतमणे, पणते णाममेगे उण्णतमणे, पणते णाममेगे पणतमणे ॥ ६. "चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उष्णतसंकप्पे, १. सं० पा०-सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण । ६. सं० पा०--चउभंगो। २. सं० पा०--भवित्ता जाव पव्वतिते । ७. सं० पा० --तहेव च उभंगो । ३. सं० पा.-..-संजमबहुले जाव तस्स णं। ८. सं. पा० - उष्णए णाम... ! संपा०—सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण ° ! ६. सं० पा० --एवं संकप्पे पणे पूरिसजाए ५. सं० पा०--तहेव जाव पणने । पडिवक्वो णस्थि । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ठाणं उण्णते णाममेगे पणतसंकप्पे, पणते गाममेगे उण्णतसंकप्पे, पणते णाममेगे पणतसंकप्पे । ७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतपणे, उण्णते णाम मेगे पणतपण्णे, पणते णाममेगे उष्णतपण्णे, पणते णाममेगे पणतपण्णे ।। ८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उग्णतदिट्ठी, उण्णते _णाममेगे पणतदिट्ठी, पणते णाममेगे उण्णतदिट्ठी, पणते णाममेगे पणतदिट्ठी !! चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतसीलाचारे', उण्णते णाममेगे पणतसीलाचारे, पणते णाममेगे उण्णतसीलाचारे, पणते णाममेगे पुणतसीलाचारे ।। १०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उग्णतववहारे, उण्णते णाममेगे पणतववहारे, पणते णाममेगे उष्णतववहारे, पणते गामगे पणत ववहारे ॥ ११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतपरक्कम, उण्णते णाममेगे पणतपरक्कमे, पणते णाममेगे उण्णतपरक्कम, पणते णाममेगे पणत परक्कमे ॥ उज्जु-वंक-पदं १२. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, "वंके णाममेगे उज्ज, वंके णाममेगे वंके ॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जू, "उज्ज णाममेगे वंके, वके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके ।। चत्तारि रुक्खा पण्णता, तं जहा---उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, बंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते ! एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- उज्जू गाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, वंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंक परिणते ।। १४. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा- उज्जू णाममेगे उज्जुरूवे, उज्जू णाममेगे वंकरूवे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे वंकरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- उज्जू णाममंग उज्जुरूवे, उज्ज णाममेगे वंकरूवे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे वंकरूवे ।। १५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममंगे उज्जुमणे, उज्ज णाममेगे वंकमणे, वंके णाममेगे उज्जुमणे, वंके णाममेगे वंकमणे ।। १. ०सीले आयारे (वृपा) । २. सं० पा० -चउभंगो। ३. सं० पा०-एवं जहा उग्णत...."विभाणि यव्वो जाव परक्कमे। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६७ चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) १६. चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुसंकप्पे, उज्जू णाममेगे वंकसंकप्पे, वंके णाममेगे उज्जुसंकप्पे, बंके णाममेगे वंकसंकप्पे ॥ १७. चत्वारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --उज्जू णाममेगे उज्जुपण्णे, उज्जू णाम मेगे वंकपणे, वंके गाममेगे उज्जुपण्णे, वंके णाममगे वंकपणे॥ १८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जुदिट्टी, उज्जू णाम मेगे वंकदिट्ठी, वंके णाममेगे उज्जुदिट्ठी, वंके णाममोगे वंकदिट्ठी॥ १६. चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा.-उज्ज णाममेगे उज्जुसीलाचारे, उज्ज णाममेगे वंकसीलाचारे, वंके णाममेगे उज्जुसीलाचारे, बंके णाममेगे वंक सीलाचारे ।। २०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उज्जू णाममेमे उज्जुववहारे, उज्ज णाममंगे वंकववहारे, वंके णाममेगे उज्जुववहारे, वंके णाममेगे वंकववहारे ।। २१. चत्तारि पुरिसजाया पुण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममंगे उज्जुपरक्कमे, उज्ज णाममेगे वंकपरक्कम, वंके णाममंगे उज्जुपरक्कमे, वंके णाममेगे वंक परक्कमे ॥ भासा-पदं २२. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति चत्तारि भासाओ भासित्तए, तं जहा-जायणी, पुच्छणी, अणुण्णवणी, पुट्ठस्स वागरणी ।। २३. चत्तारि भासाजाता पण्णत्ता, तं जहा-सच्चमेगं भासज्जायं, बीयं मोसं, तइयं सच्चमोसं, चउत्थं असच्चमोसं।। सुद्ध-असुद्ध-पदं २४. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा–सुद्धे णामं एगे सुद्धे, सुद्धे णाम एगे असुद्धे, असुद्धे णाम एगे सुद्धे, असुद्धे णाम एगे असुद्धे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुद्धे णाम एगे सुद्धे, "सूद्धे णाम एगे असुद्धे, असुद्धे णाम एगे सुद्धे, असुद्धे णामं एगे असुद्धे ।। २५. चत्तारि वत्था पणत्ता, तं जहा- सुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, सुद्धे णाम एगे असुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे असुद्धपरिणए। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा- सुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, - सुद्धे णाम एगे असुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, असुद्धे णाम एगे असुद्धपरिणए ।। २६. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धरूवे, सुद्धे णामं एगे असुद्ध रूवे, असुद्धे णामं एगे सुद्धरूवे, असुद्धे णामं एगे असुद्धरूवे । १. सं० पा०-चउभंगो एवं परिणतरूवे वत्था सपडिवक्खा। tion International Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ ठाण एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा---सुद्धे णाम एगे सुद्धरूवे, सुद्धे णामं एगे असुद्धरूवे, असुद्धे णाम एगे सुद्धरूबे, असुद्धे णामं एगे असुद्धरूवे • ॥ २७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सुद्धे णाम एगे सुद्धमणे, "सुद्धे णाम ___ एगे असुद्धमणे, असुद्धे णामं एगे सुद्धमणे, असुद्धे णामं एगे असुद्धमणे ।। २८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णाम एगे सुद्धसंकप्पे, सुद्धे णामं एगे असुद्धसंकप्पे, असुद्धे णाम एगे सुद्धसंकप्पे, असुद्धे णामं एगे असुद्धसंकप्पे ॥ २६. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-सुद्धे णाम एगे सुद्धपण्णे, सुद्धे णामं एगे असुद्धपण्णे, असुद्धे णामं एगे सुद्धपग्णे, असुद्धे णामं एगे असुद्धपण्णे !! ३०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धदिट्ठी, सुद्धे हामं एगे असुद्धदिट्टी, असुद्धे णामं एगे सुद्धदिट्ठी, असुद्धे णाम एगे असुद्धदिट्ठी ।। ३१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुद्धे णामं एगे सुद्धसीलाचारे, सुद्धे णाम एगे असुद्धसीलाचारे, असुद्धे णामं एगे सुद्धसीलाचारे, असुद्धे णामं एगे असुद्ध सीलाचारे॥ ३२. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा- सुद्धे णामं एगे सुद्धववहारे, सुद्धे णाम एगे असुद्धववहारे, असुद्धे णामं एगे सुद्धववहारे, असुद्धे णामं एगे असुद्धववहारे ।। ३३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--सुद्धे णाम एगे सुद्धपरक्कमे, सद्धे णाम एगे असद्धपरक्कमे, असुद्धे णाम एगे सुद्धपरक्कमे, असुद्धे णामं एगे असुद्धपरक्कमे ° ॥ सुत-पदं ३४. चत्तारि सुता पण्णत्ता, तं जहा-अतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले ॥ सच्च-असच्च-पदं ३५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सच्चे णामं एगे सच्चे, सच्चे णामं एगे ___ असच्चे, असच्चे णामं एगे सच्चे, असच्चे णामं एगे असच्चे ।। ३६. “चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सच्चे णामं एगे सच्चपरिणते, सच्चे णामं एगे असच्चपरिणते, असच्चे णामं एगे सच्चपरिणते, असच्चे णामं एगे असच्चपरिणते ॥ ३७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सच्चे णामं एगे सच्चरूवे, सच्चे णाम एगे असच्चरूवे, असच्चे णाम एगे सच्चरूवे, असच्चे णामं एगे असच्चरूवे ॥ १. सं० पा०-~-च उभंगो एवं संकप्पे जाव २. सं० पा०–एवं परिणते जाव परक्कमे । परक्कमे। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ५९६ णाम ३८. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--सच्चे णाम एगे सच्चमणे, सच्चे णाम एगे असच्चमणे, असच्चे णामं एगे सच्चमणे, असच्चे णामं एगे असच्चभणे ॥ ३६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सच्चे णाम एगे सच्चसंकप्पे, सच्चे असच्चसंकप्पे, असच्चे णामं एगे सच्चसंकप्पे, असच्चे णाम एगे असच्चसंकप्पे ।। ४०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सच्चे णाम एगे सच्चपण्णे, सच्चे णाम एगे असच्चपण्णे, असच्चे णामं एगे सच्चपण्णे, असच्चे णामं एगे असच्चपण्णे ।। ४१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सच्चे णामं एगे सच्चदिट्ठी, सच्चे णाम एगे असच्चदिट्ठी, असच्चे णामं एगे सच्चदिट्ठी, असच्चे णाम एगे असच्चदिट्ठी ।। ४२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा---सच्चे णामं एगे सच्चसीलाचारे, सच्चे णाम एगे असच्चसीलाचारे, असच्चे णामं एगे सच्चसीलाचारे, असच्चे णामं एगे असच्चसीलाचारे ।। ४३. चत्तारि परिसजाया पणत्ता, तं जहा-सच्चे णामंएगे सच्चववहारे, सच्चे णामं एगे असच्चववहारे, असच्चे णाम एगे सच्चववहारे, असच्चे णामं एगे असच्चववहारे ।। ४४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सच्चे णाम एगे सच्चपरक्कमे, सच्चे णामं एगे असच्चपरक्कमे, असच्चे णाम एगे सच्चपरकमे, असच्चे णामं एगे असच्चपरक्कमे ॥ सुचि-असुचि-पदं ४५. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा-सुई' णामं एगे सुई, सुई णामं एगे असुई, "असुई णामं एगे सुई, असुई णामं एगे असुई ° ॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -सुई णामं एगे सुई, “सुई णाम एगे असुई, असुई णामं एगे सुई, असुई णाम एगे असुई ।। ४६. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा-सुई णामं एगे सुइपरिणते, सुई णाम एगे असुइपरिणते, असुई णाम एगे सुइपरिणते, असुई णाम एगे असुइपरिणते ।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुई णामं एगे सुइपरिणते, सुई पाम एगे असुइपरिणते, असुई णामं एगे सुइपरिणते, असुई णाम एगे असुइपरिणते ॥ ४७. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा–सुई णाम एगे सुइरूवे, सुई णामं एगे असुइ रूवे, असुई णाम एगे सुइरूवे, असुई णामं एगे असुइरूवे । १. सुती (क, ख, ग)। २. सं० पा०-चउभंगो। ३. सं. पा०-चउभंगो एवं जहेव सुद्धणं वत्थेणं भणितं तहेव सुतिणावि जाव परक्कमे । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० ठाणे एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुई णामं एगे सुइरूवे, सुई णाम एगे असुइरूवे, असुई णामं एगे सुइरूवे, असुई णामं एगे असुइरूवे ॥ ४८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णामं एगे सुइमणे, सुई णाम एगे असुइमणे, असुई णाम एगे सुइमणे, असुई णामं एगे असुइमणे ।। ४६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णाम एगे सुइसंकप्पे, सुई णामं एगे असुइसंकप्पे, असुई णाम एगे सुइसंकप्पे, असुई णाम एगे असुइसंकप्पे ॥ ५०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुई णामं एगे सुइपणे, सुई णाम एगे असुइपण्णे, असुई णामं एगे सुइपण्णे, असुई णाम एगे असुइपणे ।।। ५१. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा–सुई णामं एगे सुइदिट्ठी, सुई णामं एगे असुइदिट्ठी, असुई णामं एगे सुइदिट्ठी, असुई णामं एगे असुइदिट्ठी ॥ ५१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णामं एगे सुइसीलाचारे, सुई णामं एगे असुइसीलाचारे, असुई णामं एगे सुइसोलाचारे, असुई णाम एगे असुइसीलाचारे ।। ५३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुई णामं एगे सुइववहारे, सुई णामं एगे असुइववहारे, असुई णामं एगे सुइववहारे, असुई णाम एगे असुइववहारे ।। ५४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णामं एगे सुइपरक्कमे, सुई णाम एगे असुइपरक्कमे, असुई णामं एगे सुइपरक्कमे, असुई णामं एगे असुइपरक्कमे° ॥ कोरव-पदं ५५. चत्तारि कोरवा पण्णता, तं जहा-अंबपलबकोरवे, तालपलबकोरवे, वल्लि पलबकोरवे, मेंढविसाणकोरवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अंबपलबकोरवसमाणे, ताल पलवकोरवसमाणे, बल्लिपलबकोरवसमाणे, मेंढविसाणकोरवसमाणे ॥ भिक्खाग-पदं ५६. चत्तारि घुणा पण्णत्ता, तं जहा-तयक्खाए', छल्लिक्खाए, कटुक्खाए, सारक्खाए। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा--तयक्खायसमाणे', 'छल्लिक्खायसमाणे, कटुक्खायसमाणे °, सारक्खायसमाणे । १. तयक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स सारक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते । २. सारक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स तयक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते। १. खाते (क, ख, ग)। २. सं० पा०-- तयक्खायसमाणे जाव सारक्खाय समाणे। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६०१ ३. छल्लिक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स कट्ठक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते। ४. कट्ठक्खायसभाणस्स ण भिक्खागस्स छल्लिक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते ।। तणवणस्सइ-पदं ५७. चउब्विहा तणवणस्सतिकाइया' पण्णत्ता, तं जहा-- अग्गबीया, मूलबीया, पोरवीया, खंधवीया ।। अहुणोववण्ण-णेरइय-पदं ५८. चउहि ठाणेहिं अहुणोववणे णेरइए णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्व मागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए--- १. अहुणोववण्णे णेरइए णिरयलोगंसि समुभूयं' वेयणं वेयमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। २. अहुणोववणे णेरइए णिरयलोगंसि णिरयपालेहिं भुज्जो-भुज्जो अहिद्विज्जमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। ३. अहुणोववणे णेरइए गिरयवेयणिज्जंसि कम्मसि अक्खीणसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वभागच्छित्तए, जो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। ४. "अहुणोववण्णे णेरइए णिरयाउअंसि कम्मंसि अक्खीणसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छेज्जा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए°, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे पेरइए "णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए °, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए । संघाडी-पदं ५६. कप्पंति णिग्गंथीणं चत्तारि संघाडीओ धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थारा, एग चउहत्थवित्थारं ॥ भाण-पदं ६०. चत्तारि झाणा पणत्ता, तं जहा अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के माणे ॥ १. कातिता (क, ख, ग)। २. सम्मुहभूयां, समहन्भूयं (वृपा)। ३. अवेतितंसि (क, ख, ग)। ४. सं० पा०----एवं णिरयाउअंसि अक्खीगंसि जाव णो चेव । ५. णिरतिताउ० (क, ग)। ६. सं० पा०-जेरतिते जाव णो चेव । कम्मंसि Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ ६१. अट्ट झाणे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. अमणुष्ण-संपओग-संपत्ते, तस्स विप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति । २. मणुण्ण-संपओग-संपते, तस्स अविप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति । ३. आतंक - संपओग-संपउत्ते, तस्स विप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति । ४. परिजुसित - काम - भोग-संपओग संपउत्ते" तस्स अविप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति ॥ ६२. अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा- कंदणता, सोयणता, तिप्पाणता, परिदेवणता ॥ ६३. रोद्दे झाणे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा - हिसाणुबंधि, मोसाणुबंधि, तेणानुबंधि, सारखणाणुबंधि ॥ ६४. रुट्स्स णं झाणस्स चत्तारि लवखणा पण्णत्ता, तं जहा- ओसण्णदोसे, बहुदोसे, अण्णा दोसे', आमरणंतदोसे || ६५. धम्मे झाणे चउविहे चउप्पडोयारे' पण्णत्ते, तं जहा आणाविजए', अवायविजए, विवागविजए, संठाणविजए || ६६. धम्मस्स गं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा आणारुई, सिगरई सुरु, गाढरु || ६७. धम्मस्स गं झाणस्स चत्तारि आलंवणा पण्णत्ता, तं जहा वायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टा अणुप्पेहा ॥ ६८. धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा एगाणुप्पेहा, अणिच्चाणुपेहा, असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा ॥ ठाणं - ६६. सुक्के झाणे चउन्विहे चउप्पडोआरे' पण्णत्ते, तं जहा पुहत्तवितक्के सवियारी, गत्तवित अवियारी, सुहुमकिरिए" अणियट्टी, समुच्छिण्णकिरिए अप्पडिवाती ॥ ७०. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा - अव्वहे, असम्मोहे, विवेगे, विउस्सगे | १. असमणुन्न ० ( क, ग, वृपा) । २. परिभूसिय (क, ग, वृपा ) । ३. भोगसंपत्ते ( वृ); भोगसंपओगसंप उत्ते (वृपा) । ४. सोणता (क, ख, ग ) । ५. नाणाविहदोसे ( वृपा ) ! ६. चउप्पयावयारं (वृ); चउप्पडोयार (वृपा) । ७. ० विजते (क, ख, ग ) । ८. उपओआरे ( ग ) | ६. पुहुप्त (ख) 1 १०. ० किरिते ( क, ख, ग ) । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६०३ ७१. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा -- खंती, मुत्ती, 'अज्जवे, मद्दवे" ॥ ७२. सुक्कस्स णं भाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- अनंतबत्तियाणुप्पेहा, विष्परिणामाणुप्पेहा, असुभाणुप्पेहा, अवायाणुप्पेहा ॥ देवाणं पदमेरा-पदं ७३. चउव्विहा देवाण ठिती पण्णत्ता, तं जहा - देवे णाममेगे, देवसिणाते णाममेगे, देवपुरोहिते णाममेगे, देवपज्जलणे णाममेगे | संवास-पदं ७४. चउब्बिहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा- देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छेज्जा, देवे णाममेगे छवीए सद्धि संवासं गच्छेज्जा, छवी णाममेगे देवीए सद्धि संवास गच्छेज्जा, छवी णाममेगे छवीए सद्धि संवासं गच्छेज्जा | कसाय-पदं ७५. चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा -- कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए | एवं रइयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ ७६. च उपतिट्ठिते कोहे पण्णत्ते, तं जहा - आतपतिट्ठिते, परपतिट्ठिते, तदुभयपतिट्ठिते, पतिते । एवं रइयाणं जाव' वेमाणियाणं || ७७. चपतिट्ठिते माणे पण्णत्ते, तं जहा - आतपतिट्ठिते, परपतिट्ठिते, तदुभयपतिट्ठिते, अपतिट्ठिते । एवं-रयाणं जाव' वेमाणियाणं || ७८. चउपतिट्ठिता माया पण्णत्ता, तं जहा - आतपतिद्विता, परपतिट्ठिता, तदुभयपतिट्ठिता, अतिट्ठिता । एवं - णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ ७६. च उपतिट्ठिते लोभे पण्णत्ते, तं जहा - आतपतिट्ठिते, परपतिट्ठिते, तदुभयपतिट्ठिते, अपतिट्ठिते । एवंणेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ ८०. चउहि ठाणेहिं कोधुप्पत्ती सिता, तं जहा - खेत्तं पडुच्चा, वत्युं पडुच्चा, सरीरं पडुच्चा, उवहिं पडुच्चा । एवं--- णेरइयाणं जाव" वेमाणियाणं ॥ १. मध्ये अज्जवे ( क, ख, ग ); औपपातिके (सूत्र ४३) 'अज्ज वे महवे' एवं पाठो विद्यते । अत्रापि इत्थमेव युज्यते । लिपिदोषेण शब्दविपर्ययो जात इति प्रतीयते । २. छब्वीते (क, ख, ग ) । ३४. ठा० १११४२-१६३ । ५. सं० पा०-- एवं जाव लोभे वैमाणियाणं । ६७. ठा० ११४२-१६३ । ८. ठा० १।१४२-१६३ । ६. पडुच्च ( क, ख, ग ) । १०. ठा० १।१४२-१६३ । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण ८४. ८१. "चउहि ठाणेहि माणुप्पत्ती सिता, तं जहा-खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा । एवं–णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।। ८२. चउहि ठाणेहिं मायुप्पत्ती सिता, तं जहा–खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा । एवं—णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ।। ८३. चउहि ठाणेहि लोभुप्पत्ती सिता, तं जहा-खेत्तं पडुच्चा, वत्थं पडुच्चा, सरीरं पडुच्चा, उवहिं पडुच्चा । एवं--रइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ चउव्विधे कोहे पण्णत्ते, तं जहा --अणंताणुबंधी कोहे, अपच्चक्खाणकसाए' कोहे, पच्चक्खाणाबरणे कोहे, संजलणे कोहे । एवं-गेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ।। ८५. "चउविधे माणे पणत्ते, तं जहा—अणंताणवंधी माणे, अपच्चक्खाणकसाए माणे, पच्चक्खाणावरण माणे, संजलणे माणे । एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।। ८६. चउव्विधा माया पण्णत्ता, तं जहा-अणंताणुबंधी माया, अपच्चक्खाणकसाया माया, पच्चक्खाणावरणा माया, संजलणा माया । एवं -णेरइयाणं जाव' वेमाणियाण ॥ ८७. च उविधे लोभे पण्णत्ते, तं जहा–अणताणुबंधी लोभे, अपच्चक्खाणकसाए लोभे, पच्चक्खाणावरणे लोभे, संजलणे लोभे । एवं--णेरइयाण जाव" वमाणियाणं ॥ ८८. चउबिहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा—आभोगणिव्वत्तिते, अणाभोगणिव्वत्तिते, उवसंते, अणुवसंते । एवं-णेरइयाणं जाव" वेमाणियाणं। ८६. *चबिहे माणे पण्णत्ते, तं जहा-आभोगणिव्वत्तिते, अणाभोगणिव्वत्तिते, उवसंते, अणुवसंते । एवं—णे रइयाणं जाव" वेमाणियाणं । १०. चउविहा माया पण्णत्ता, तं जहा---आभोगणिव्वत्तिता, अणाभोगणिवत्तिता, उपसंता, अणुवसंता । एवं-णेरइयाणं जाव" वेमाणियाणं । ६१. चउन्विहे लोभे पण्णत्ते, तं जहा-आभोगणिव्वत्तिते, अणाभोगणिव्वत्तिते, उवसंते, अणुवसंते । एवं-- रइयाणं जाव" वेमाणियाणं ।। कम्मपडि-पदं ६२. जीवा णं चउहि ठाणेहि अट्ठकम्मपगडीओ चिणिसु, तं जहा–कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं । एवं जाव वेमाणियाणं ।। १. सं० पा०—एवं जाव लोभे वेमाणियाणं । २,३,४. ठा० १।१४२-१५३ । ५. अपच्चक्खाण (ख)। ६. ठा० १११४२-१६३ । ७. सं० पा.-एवं जाव लोभे वेमाणियाणं। ८. ठा० १४१४२-१६३ । ६,१०,११. ठा० १११४२-१६३ । १२. सं० पाo----एवं जाव लोभे वेमाणियाणं । १३,१४,१५. ठा० १११४२-१६३ । १६. ठा० १११४१-१६३ । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६०५ ६३. "जीवा णं चउहि ठाणेहि अट्टकम्मपगडीओ चिणंति, तं जहा–कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं । एवं जाव' वेमाणियाणं ।। ६४. जीवा णं च उहि ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा---कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं । एवं जाब' वेमाणियाणं ।। ६५. एवं-उवचिणिसु उचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिसु बंधंति बंधिस्संति, उदीरिंसु उदीरिति उदीरिस्संति, वेदेसु देदेति वेदिस्संति, णिज्जरेसु णिज्जरेंति णिज्जरिस्संति जाव वेमाणियाणं' ।। पडिमा-पदं ६६. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समाहिपडिमा, उवहाणपडिमा, विवेग पडिमा, विउस्सग्गपडिमा ।। ६७. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा ।। १८. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--खुड्डिया मोयपडिमा, मल्लिया मोय पडिमा, जवमझा, वइरमज्झा । अस्थिकाय-पदं ६६. चत्तारि अत्थिकाया अजोवकाया पण्णत्ता, तं जहा--धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थि काए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए । १००. चत्तारि अत्थिकाया अरूविकाया पणत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थि काए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए । आम-पक्क-पदं १०१. चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा-आमे णाममेगे आममहुरे, आमे णाममेगे पक्कमहुरे, पक्के णाममेगे आममहुरे, पक्के णाममेगे पक्कमहरे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आमे णाममेगे आममहुरफलसमाणे, आमे णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे, पक्के णाममेगे आममहुरफलसमाणे, पक्के णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे ! सच्च-मोस-पदं १०२. चउव्विहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा--काउज्जुयया, भासुज्जुयया, भावुज्जुयया, अविसंवायणाजोगे। १. सं० पा०---एवं चिणंति एस दडओ एवं" ३,४. ठा० १११४१-१६३ । एवमेतेणं तिणिण दंडगा। ५. वेमाणियाणं एवमेक्के क्के पदे तिणि दंडगा २. ठा० ११४१-१६३ । भाणियव्वा जाव णिज्जरिस्संति (क,ख,ग )। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ ठाणं १०३. चउविहे मोसे पण्णत्ते, तं जहा-कायअणुज्जुयया, भासअणुज्जुयया, भाव अणुज्जुयया, विसंवादणाजोगे ।। पणिधाण-पदं १०४, चउबिहे पणिधाणे,पण्णते, तं जहा-मणपणिधाणे, वइपणिधाणे, कायपणिधाणे, उवकरणपणिधाणे । एवं–णेरइयाणं पंचिंदियाणं जाव' वेमाणियाणं ।। १०५. चउबिहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसुप्पणिहाणे', 'वइसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे , उवगरणसुप्पणिहाणे । एवं -संजयमणुस्साणवि॥ १०६. चउबिहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा—मणदुप्पणिहाणे', 'वइदुप्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे', उवकरणदुप्पणिहाणे । एवं-पंचिदियाणं जाव' वेमाणियाणं ।। आवात-संवास-पदं १०७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--आवातभद्दए' णाममेगे णो संवासभद्दए, संवास भद्दए णाममेगे णो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दएवि संवासभद्दएवि, एगे णो आवातभद्दए णो संवासभद्दए । वज्ज-पदं १०८. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा–अप्पणो णाममेगे वज्जं पासति णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं पासति णो अपणो, एगे अप्पणोवि वज्ज पासति परस्सवि, एगो णो अप्पणो वज्जं पासति णो परस्स ।। १०६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे वज्ज उदीरेइ णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्ज उदीरेइ णो अपणो, एगे अप्पणोवि वज्जं उदीरेइ परस्सबि, एगे णो अपणो वज्जं उदीरेइ णो परस्स ।। ११०. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा–अप्पणो णाममेगे वज्ज उवसामेति णो परस्स, परस्स णामगे वज्जं उवसामेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्ज उवसामेति परस्सवि, एगे णो अप्पण) वज्ज उवसामेति णो परस्स ।। लोगोपचार-विणय-पदं १११. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा- अब्भुट्ठति णाममेगे णो अब्भुट्ठावेति, १. ठा० १.१४२-१५१, १६०-१६३ । ___ दृष्टया च अधिकं संगच्छते । २. सं० पा०-मण मुप्पणिहाणे जाव उवगरण । ४. सं० पा०-मणदुप्पणिहाणे जाव उवक रण ! ३. 'एवं' शब्दस्य स्थाने यदि 'एयं' तथा 'अवि' ५. ठा० १११४१-१५१, १६०-१६३ । शब्दस्य स्थाने 'एव' स्यात्, यथा-- ..'एयं ६ भद्दते (क, ख, ग)। संजयमणुस्साणमेव' तदा अर्थदृष्ट्या रचना Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६०७ अब्भुट्ठावेति णाममेगे णो अब्भुट्टेति, एगे अब्भुटेति वि अन्भुट्ठावेति वि, एगे णो अब्भुट्टेति णो अन्भट्टावेति ॥ ११२. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--वंदति णाममेगे णो वंदावेति, वंदावेति णाममेगे णो वंदति, एगे वंदति वि वंदावेति वि, एगे णो वंदति णो वंदावेति ।। ११३. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सक्कारेइ णाममेगे णो सकारावेइ, सक्कारावेइ णाममेगे णो सक्कारेइ, एमे सक्कारेइ वि सक्कारावेइ वि, एगे णो सक्कारेइ णो सकारावेइ ।। ११४. चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सम्माणति णाममेगे णो सम्माणावेति, सम्माणावेति णाममेगे णो सम्माणेति, एगे सम्माणेति वि सम्माणावेति वि, एगे णो सम्माणेति णो सम्माणावेति ।। ११५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--पूएइ णाममेगे णो पूयावेति, पूयावेति णाममेगे णो पूएइ, एगे पूएइ वि पूयावेति वि, एगे णो पूएइ णो पूयावेति ।। सज्झाय-पदं ११६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--वाएइ णाममेगे णो वायावेइ, वायावेइ णाममेगे णो वाएइ, एगे वाएइ वि वायावेइ वि, एगे णो वाएइ णो वायावेइ ।। ११७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पडिच्छति णाममेगे णो पडिच्छावेति, पडिच्छावेति णाममेगे णो पडिच्छति, हगे पडिच्छति वि पडिच्छावेति वि, एगे णो पडिच्छति णो पडिच्छावेति ॥ ११८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुच्छइ णाममेगे णो पुच्छावेइ पुच्छावेइ णाममेगे णो पुच्छइ, एगे पुच्छइ वि पुच्छावेइ वि, एगे णो पुच्छइ णो पुच्छावेइ ।। ११६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वागरेति णाममेगे णो वागरावेति, वागरावेति णाममेगे णो वागरेति, एगे वागरेति वि वागरावेति वि, एगे णो वागरेति णो वागरावेति ° ॥ १२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सुत्तधरे णाममेगे णो अत्थधरे, अत्थधरे णाममेगे णो सुत्तधरे, एगे सुत्तधरे वि अत्थधरे वि, एगे णो सुत्तधरे णो अत्थधरे ॥ लोगपाल-पदं १२१. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे ॥ वाएइ पडिच्छति पुच्छइ वागरेति । १. सं० पा०--एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ। २. सं० पा.--एवं सकारेइ सम्माणेति पूएइ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ ठाण १२२. एवं बलिस्सवि--सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। धरणस्स--कालपाले, कोलपाले, सेलपाले, संखपाले । भूयाणंदस्स-कालपाले, कोलपाले, संखपाले, सेलपाले । वेणुदेवस्स-चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे। वेणुदालिस्स-चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे। हरिकंतस्स—पभे, सुप्पभे, पभकते, सुप्पभकते । हरिस्सहस्स-पभे, सुप्पभे, सुप्पभकते, पभकते । अग्गिसिहस्सतेऊ, तेउसिहे, तेउकते, ते उप्पभे। अग्गिमाणवस्स-तेऊ, तेउसिहे, तेउप्पभे, तेउकते । पुण्णस्स-'रूबे, रूवंसे", 'रूवकते, रूवप्पभे"। विसिट्ठस्स--रूवे, रूवंसे, रूवप्पभे, रूवकते। जलकंतस्स–जले, जल रते, जलकते, जलप्पभे । जलप्पहस्स- जले, जलरते, जलप्पहे, जलकते। अमितगतिस्स-तुरियगती, खिप्पगती, सोहगती, सीहविक्कमगती। अमितवाहणस्स-तुरियगती, खिप्पगती, सीहविक्कमगती, सीहगती । वेलंबस्स-काले, महाकाले, अंजणे, रितु । पभंजणस्स---काले, महाकाले, रिटे, अंजणे । घोसस्स-आवत्ते, वियावत्ते, णंदियावत्ते, महाणंदियावत्ते । महाघोसस्स--आवत्ते, वियावत्ते, महाणंदियावत्ते, गंदियावत्ते। सक्कस्स-सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे । ईसाणस्स–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे । एवं-एगंतरिता जाव' अच्चुतस्स ।। देव-पदं १२३. चउबिहा वाउकुमारा पण्णत्ता, तं जहा-काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे ।। १२४. चउम्विहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, विमाणवासी ॥ पमाण-पदं १२५. चउविहे पमाणे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वप्पमाणे, खेत्तप्पमाणे, कालप्पमाणे, भावप्पमाणे ॥ महत्तरिया-पदं १२६. चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-रूया, रूयंसा, सुरूवा, रूयावती !! १२७. चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-चित्ता, चित्तकणगा, सतेरा, सोतामणी॥ १. दालस्स (ख)। २. रूप्पे रूप्पंसे (क, ग); रूते रूतसे (ख)। ३. रूतकते रूतप्पभे (क, ख, ग); रूदकते रूदप्पभे (क्व)। ४. विसटुस्स (ख) । ५. ठा० २१३८१-३८४ ॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) देव- ठिति-पदं १२८. सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता || १२६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवीणं चत्तारि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता ॥ संसार - पदं १३०. चउव्वि ससारे पण्णत्ते, तं जहा दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे, भावसंसारे ॥ दिवाय-पदं १३१. चउव्विहे दिट्टिवाए पण्णत्ते, तं जहा - परिकम्मं', सुत्ताई, पुव्वगए, अणुजोगे || पायच्छित्त-पदं १३२. चउव्विहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा -- णाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते, चरित्तपायच्छित्ते, वियत्तकिच्च पायच्छिते ॥ १३३. चउव्विहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - पडिसेवणापायच्छित्ते, संजोयणापायच्छिते, आरोवणापायच्छित्ते, पलिउंचणापायच्छित्ते ॥ काल-पदं १३४. चउव्विहे काले पण्णत्ते, तं जहा - प्रमाणकाले, अहाउयनिव्वत्तिकाले, मरणकाले, अद्धाकाले ॥ पोग्गल - परिणाम-पदं १३५. चउव्विहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणामे || ६०६ चाउज्जाम-पदं १३६. भरहेरवएसु णं वासेसु पुरिम-पच्छिम वज्जा मज्झिमगा बावीसं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति, तं जहा - सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सब्बाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वा बहिद्धादाणाओ वेरमणं ॥ १३७. सव्वेसु णं महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति, तं जहा -- सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं', 'सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं 11 ३. सं० पा० - वेरमणं जाव सव्वातो । १ परिक्कम ( क ग ) | २. नियत्त (वृपा) । o Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० दुग्गति-सुगति-पदं १३८. चत्तारि दुग्गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रइयदुग्गती, तिरिक्खजोणिय दुग्गती, दुग्गी, देवदुग्गती ॥ मणुय १३६. चत्तारि सोग्गईओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- सिद्धसोगती, देवसोग्गगती, सोग्गती, सुकुलपच्चायाती ॥ १४०. चत्तारि दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा - रइयदुग्गता, तिरिक्खजोणिय दुग्गता', दुग्गता', देवदुग्गता ॥ १४१ चत्तारि सुग्गता पण्णत्ता, तं जहा -- सिद्धसुग्गता', 'देवसुग्गता, मणुयसुग्गता, सुकुल पच्चायाया || कम्स-पदं १४२. पढमसमयजिणस्स णं चत्तारि कम्मंसा खीणा भवंति तं जहा - णाणावरणिज्जं, दंसणावर णिज्जं, मोहणिज्जं, अंतराइयं ॥ १४३. उप्पण्णणाणदंसणधरे णं अरहा जिणे केवली चत्तारि कम्मंसे वेदेति, तं जहावेदणिज्जं, आउयं, णामं, गोतं ॥ १४४. पढमसमय सिद्धस्स णं चत्तारि कम्मंसा जुगवं खिज्जंति, तं जहा - वेयणिज्जं, आउयं णामं गतं ॥ हासुत्पत्ति-पदं १४५. चउहि ठाणेहिं हासुप्पत्ती सिया, तं जहा - पासेत्ता, भासेत्ता, सुणेत्ता, संभरेत्ता ॥ ठाणं अंतर - पदं १४६. चउविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा कटुंतरे, पम्हंतरे, लोहंतरे, पत्थरंतरे । एवामेव इथिए वा पुरिसस्स वा चउव्विहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा कटुंतरसमाणे, पम्हंतरसमाणे, लोहंतरसमाणे, पत्थरंतरसमाणे || भयग-पदं १४७. चत्तारि भयगा पण्णत्ता, तं जहा - दिवसभयए', जत्ताभयए, उच्चत्तभयए, कब्वालभयए' ॥ १. तिरियदुग्गता ( क ) 1 २. मस्स ( ख ) | ३. सं० पा०-- सिद्धसुग्गता जाव मुकुल 0 I ४. अंतरातितं ( क, ख, ग ) ५. भयते ( क, ख, ग ) 1 ६. कव्वाडभयते ( ख ) 1 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) पडिसेवि-पदं १४८. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा—संपागडपडिसेवी णामेगे णो पच्छण्ण पडिसेवो, पच्छण्णपडिसेवी णामेगे जो संपागडपडिसेवी, एगे संपागडपडिसेवी वि पच्छण्णपडिसेवी वि, एगे णो संपागडपडिसेवी' णो पच्छण्णपडिसेवी' ।। अग्गम हिसी-पदं १४६. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्ग महिसीओ 'पण्णताओ, तं जहा.-कणगा, कणगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा ॥ १५०. एवं -जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स ।। १५१. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारणो चत्तारि अग्ग महिसोओ पण्णत्ताओ, तं जहा -मितगा, सुभद्दा, विज्जुता, असणी ।। १५२. एवं--जमस्स वेसमणस्स वरुणस्स ।। १५३. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररणो कालवालस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -असोगा, विमला, सुप्पभा, सुदंसणा ।। १५४. एवं जाव' संखवालस्स ।। १५५. भूताणंदस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो कालवालस्स महारणो चत्तारि अग्म पहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सुणंदा, सुभद्दा, सुजाता, सुमणा ।। १५६. एवं जाव' सेलवालस्स ।। १५७. जहा धरणस्स एवं सव्वेसि दाहिणिदलोगपालाणं जाव' घोसस्स ।। १५८. जहा भूताणंदस्स एवं जाव' महाघोसस्स लोगपालाणं ॥ १५६. कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसाय रण्णो चत्तारि अग्गमहिसोओ पण्णत्ताओ, तं जहा · कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसणा ।। १६०. एवं - महाकालस्सवि।। १६१. सुरुवस्स णं भूतिदस्स भूतरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णताओ, तं जहा ... रूववती, वहुरूवा, सुरूवा, सुभगा। १६२. एवं--पडिरूवस्सवि ॥ १६३. पुण्णभद्दस्स णं जक्खिदस्स जक्खरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा---पुण्णा, बहुषुण्णिता, उत्तमा, तारगा ।। १६४. एवं -माणिभद्दस्सवि ॥ १. पडिसेवीवि (क, ग)। २. पडिसेवीवि (क, ग)। ३,४,५,६. ठा० ४११२२ । ७. पुत्तिता (ख) Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ ठाणं १६५. भीमस्स णं रखसिदस्स रक्खसरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–५उमा, वसुमती, कगगा, रतणप्पभा । १६६. एवं महाभीमसस्सवि ॥ १६७. किण्णरस्स णं किण्णरिदस्स किण्णररणो?] चत्तारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वडेंसा, केतुमतो, रतिसेणा, रतिप्पभा॥ १६८. एवं-किंपूरिसस्सवि ।। १६६. सप्पुरिसस्स ण किंपरिसिंदस्स [किंपुरिसरण्णो ? ] चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--रोहिणी, णवमिता, हिरी, पुप्फवती ।। १७०. एवं -महापुरिसस्सवि ॥ १७१. अतिकायस्स णं महोरगिंदस्स [महोरगरण्णो ?] चत्तारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भुयगा, भुयगावती, महाकच्छा, फुडा ॥ १७२. एवं -महाकायस्सवि ।। २७३. गीतरतिस्स णं गंधविदस्स [ गंधचरणो ? ] चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सुघोसा, विमला, सुस्सरा, सरस्सती ।। १७४. एवं--गीयजसस्सवि॥ १७५. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णा चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा. चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा ।। १७६. एवं -सूरस्सवि, णवरंसूरप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा ।। १७७. इंगालस्स णं महागहस्स चत्तारि अग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिया ।। १७८. एवं-सव्वेसि महग्गहाणं जाव' भावके उस्स ।। १७६. सक्कस्स णं देविदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-रोहिणी, मयणा, चित्ता, सामा। १८०. एवं जाव' वेसमणस्स ।। १८१. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारपणो चत्तारि अग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पुढवी, राती, रयणी, विज्जू ।। १८२. एवं जाव' वरुणस्स ।। विगति-पदं १८३. चत्तारि गोरसविगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--खीरं, दहि, सपि, णवणीतं ।। १८४. चत्तारि सिणेहविगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--तेल्लं, घयं, वसा, णवणीतं ।। १८५. चत्तारि महाविगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--महुं, मंसं, मज्ज, णवणीतं ।। १. ठा०२१३२५ । ३. ठा० ४।१२२ । २. सोमा (क्व)। ४. ठा०४१२२ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) गुत्त-अगुत्त-पदं १८६. चत्तारि कूडागारा पण्णत्ता, तं जहा-गुत्ते णामं एगे गुत्ते, गुत्ते णाम एगे अगुत्ते, अगुत्ते णाम एगे गुत्ते, अगुत्ते णाम एगे अगुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा---गुत्ते णामं एगे गुत्ते, गुत्ते णाम एगे अगुत्ते, अगुत्ते णामं एगे गुत्ते, अगुत्ते णामं एगे अगुत्ते ।। १८७. चत्तारि कूडागारसालाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—गुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, गुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा ।। एवामेव चत्तारित्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-गुत्ता णाममेगा गुत्तिदिया, गुत्ता णाममेगा अगुत्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा गुत्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तिदिया ।। ओगाहणा-पदं १८८. चउविहा ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-दवोगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालो गाहणा, भावोगाहणा ।। पण्णत्ति-पदं १८६. चत्तारि पण्णत्तीओ अंगबाहिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-चंदपण्णत्तो, सूर पण्णत्ती, जंबुद्दीवपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती ॥ बीओ उद्देसो पडिसलीण-अपडिसंलोण-पदं १६०. चत्तारि पडिलीणा पण्णत्ता, त जहा–कोहपडिसंलीणे', माणपडिसलीणे, मायापडिसंलीणे, लोभपडिसलीणे।. १६१. चत्तारि अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा -कोहअपडिसंलोणे', 'माणअपडि संलीणे, मायाअपडिसंलीणे , लोभअपडिसलीणे ।। १९२. चत्तारि पडिसलीणा पणत्ता, तं जहा-मणपडिसंलोणे, वतिपडिसंलोणे, काय पडिसलीणे, इंदियपडिसलीणे॥ १६३. चत्तारि अपडिसलीणा पण्णत्ता, तं जहा-मणअपडिसंलीणे', 'वतिअपडिसंलोणे, कायअपडिसंलीणे. इंदियअपडिसंलीणे ।। ३. सं० पाo-मणअपडिसलीणे जाव इंदिय 1 १. कोव ° (क)। २. सं० पा०-कोहअपडिसलीणे जाव लोभ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ ठाण दीण-अदीण-पदं १६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दीणे णाममेगे दीणे, दीणे णाममेगे अदीणे, अदीणे णाममेगे दीणे, अदीणे णाममेगे अदीणे ॥ १६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दीणे णाममेगे दीणपरिणते, दीणे णाममेगे अदीणपरिणते, अदीणे णाममेगे दीणपरिणते, अदीणे णाममेगे अदीणपरिणते ।। १६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दीणे णाममेगे दीणरूवे, दीणे णाममेगे अदीणरूवे, अदीणे णाममेगे दीणरूवे, अदीणे णाममेगे अदीणरूवे ॥ १६७. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दोणे णाममेगे दीणमणे, दीणे णाम मेगे अदीणमणे, अदीणे णाममेगे दीणमणे, अदीणे णाममेगे अदीणमणे ।। १६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दोणे णाममेगे दीणसंकप्पे, दीणे णाम मेगे अदीणसंकप्पे, अदीणे णाममेगे दीणसंकप्पे, अदीणे णाममेगे अदीणसंकप्पे ॥ १६६. चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दीणे णाममेगे दीणपण्णे, दीणे णाममेगे अदीणपण्णे, अदीणे णाममेगे दीणपण्णे, अदीणे णाममेगे अदीणपणे ।। २००. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दोणे णाममेगे दीणदिट्टी, दीणे णाममेगे अदीणदिट्ठी, अदीणे णाममेगे दीणदिट्ठी, अदीणे णाममेगे अदीदिट्ठी ।। २०१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दीणे णाममेगे दीणसीलाचारे, दीणे णाममेगे अदोणसोलाचारे, अदोणे णाममेगे दीणसीलाचारे, अदीणे णाममेगे अदीणसीलाचारे ।। २०२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणववहारे, दोणे णाम मेगे अदीणववहारे, अदीणे णाममेगे दीणववहारे, अदीणे णाममेगे अदीण ववहारे ॥ २०३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दीणे णाममेगे दीणपरक्कमे, दीणे णाम मेगे अदीणपरक्कमे, "अदीणे णाममेगे दीणपरक्कम, अदीणे णामभेगे अदीण परक्कमे ॥ २०४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-दीणे णाममेगे दीण वित्ती, दोणे णाम मेगे अदीणवित्ती, अदीणे णाममेगे दोणवित्ती, अदीणं णाममेगे अदीणवित्ती ।। २०५. “चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहादीण णाममेग दीणजाती, दाणे णाममेगे अदीणजाती, अदीणे णाममेगे दीणजाती, अदीणे णाममेगे अदीणजाती॥ १. सं० पा०-एवं दीणमणे दोणसंकप्पे दीण- ३. सं० पा०--एवं दीपजाती दीणभासी पण्णे दीणदिट्ठी दीणसीलाचारे दोणववहारे। दीणोभासी। २. सं० पा०-एवं सब्वेसि चउभंगो भाणियवो। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) २०६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --दोणे णाममेगे दोणभासी, दोणे णाम मेगे अदीणभासी, अदीणे णाममेगे दीणभासी, अदीणे णाममेगे अदीणभासी । २०७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दीणे णाममेगे दीणोभासी, दीणे णाम मेगे अदीणोभासी, अदीणे णाममेगे दीणोभासी, अदीणे णाममेगे अीणो भासी॥ २०८. चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दीणे णाममेगे दीणसेवी, दीणे णाम मेगे अदीणसेवी, अदीणे णाममेगे दीणसेवी, अदीणे णाममेगे अदीणसेवी । २०६. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दोणे णाममेगे दोणपरियाए, दीणे णाममेगे अदीणपरियाए, अदोणे णाममेगे दोणपरियाए, अदीणे णाममेगे अदीणपरियाए। २१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दोणे णाममंगे दीणपरियाले, दीणे णाममेगे अदीणपरियाले, अदीणे णाममेगे दीणपरियाले, अदीणे णाममेगे अदीणपरियाले ॥ अज्ज-अणज्ज-पदं २११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अज्जे णाममेगे अज्जे, अज्जे णाममेगे अणज्जे, अणज्जे णाममेगे अज्जे, अणज्जे णाममेगे अणज्जे ॥ २१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--अज्जे गाम मेगे अज्जपरिणए, अज्जे णाममेगे अणज्जपरिणए, अणज्जे णाममेगे अज्जपरिणए, अणज्जे णाममेगे अणज्जपरिणए । २१३. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अज्जे णाममेगे अज्जरूवे, अज्जे णाममेगे अणज्जरूवे, अणज्जे णाममेगे अज्जरूवे, अणज्जे णाममेगे अणज्ज रूवे ।। २१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अज्जे णाममेगे अज्जमणे, अज्जे णाम मेगे अणज्जमणे, अणज्जे णाममेगे अज्जमणे, अणज्जे णाममेगे अणज्जमणे ॥ २१५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -अज्जे णाममेगे अज्जसंकप्पे, अज्जे णाममेगे अणज्जसंकप्पे, अणज्जे णाममेगे अज्जसंकप्पे, अणज्जे णाममेगे अणज्ज संकप्पे ॥ २१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जपण्णे, अज्जे णाममेगे अणज्जपण्णे, अणज्जे णाममेगे अज्जपण्णे, अणज्जे णाममेगे अणज्जपण्णे ॥ १. सं० पा०—एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाए एवं दीणे णाममेगे दोणपरियाले सम्वत्थ चउभंगो। २. सं० पा०–एवं अज्जरूवे....."अज्जेण वि भाणियन्वा । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं २१७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अज्जे णाममंगे अज्जदिट्री, अज्जे णाममेगे अणज्जदिट्ठी, अणज्जे णाममेगे अज्जदिट्ठी, अणज्जे णाममेगे अणज्ज दिट्ठी।। २१८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अज्जे णाममेगे अज्जसीलाचारे, अज्जे णाममेगे अणज्जसीलाचारे, अणज्जे णाममेगे अज्जसीलाचारे, अणज्जे णाम मेगे अणज्जसीलाचारे ॥ २१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा --अज्जे णाममेगे अज्जववहारे, अज्जे णाममेगे अणज्जववहारे, अणज्जे णाममेगे अज्जववहारे, अणज्जे णाममेगे अणज्जववहारे । २२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अज्जे णाममेगे अज्जपरक्कमे, अज्जे णाममंगे अणज्जपरक्कमे, अणज्जे णाममेगे अज्जपरक्कमे, अणज्जे णाममेगे अणज्जपरक्कमे ।। २२१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अज्जे णाममेगे अज्जवित्ती, अज्जे णाममेगे अणज्जवित्ती, अणज्जे णाममेगे अज्जवित्ती, अणज्जे णाममंगे अणज्जवित्ती ।। २२२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममगे अज्जजाती, अज्जे णाममेगे अणज्जजाती, अणज्जे णाममेगे अज्जजाती, अणज्जे णाममेगे अणज्जजाती॥ २२३. चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जभासी, अज्जे णाममेगे अणज्जभासी, अणज्जे णाममेगे अज्जभासी, अणज्जे णाममेगे अणज्ज भासी॥ २२४. चतारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जओभासी, अज्जे णाममेगे अणज्जओभासी, अणज्जे णाममेगे अज्जओभासी, अणज्जे णाममेगे अणज्जओभासी ॥ २२५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अज्जे णाममेगे अज्जसेवी, अज्जे णाममेगे अणज्जसेवी, अणज्जे णाममेगे अज्जसेवी, अणज्जे णाममैगे अणज्ज सेवी।। २२६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जपरियाए, अज्जे णाममेगे अणज्जपरियाए, अणज्जे णाममेगे अज्जपरियाए, अणज्जे णाममेगे अणज्जपरियाए । २२७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाम मेगे अज्जपरियाले, अज्जे णाम मेगे अणज्जपरियाले, अणज्जे णाममेगे अज्जपरियाले, अणज्जे णाममेगे अणज्जपरियाले०॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (वीओ उद्देसो) ६१७ २२८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- अज्जे णाममेगे अज्जभावे, अज्जे णाममेगे अणज्जभावे, अणज्जे णाममेगे अज्जभावे, अणज्जे णाममेगे अणज्जभावे || जाति-पदं २२. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा- जातिसंपण्णे, कुलसंपण्णे, वलसंपणे, संपणे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे, "कुल संपण्णे, वलसंपणे रूवसंपण्णे || २३० चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा -- जातिसंपणे णामं एगे जो कुल संपण्णे, कुलसंपणे णामं एगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो कुल संपण्णे | एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णाममेगे णो कुल संपणे, कुलसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुल संपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे || २३१. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णामं एगे णो बलसंपणे, वलसंपणे णामं एगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो बलसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपण्णे णामं एगे णो बलसंपणे, वलसंपणे णामं एगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपणेवि, एगे णो जातिसंपणे णो वलसंपण्णे || २३२. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपण्णे णामं एगे णो रुवसंपणे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो रुवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णामं एगे जो रूवसंपण्णे, रूवसंपणे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपणेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपणे ॥ कुल-पदं १३३. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - कुलसंपणे णामं एगे णो बलसंपण्णे, बलसंपणे णामं एगे णो कुल संपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे जो कुलसंपणे णो वलसंपण्णे | एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- कुलसंपण्णे णामं एगे जो १. सं० पा०-- जातिसंपण्णे जाव रूवसंपणे । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ ठाण वलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे जो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे जो कुल संपणे जो बलसंपण्णे || २३४. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - कुलसंपण्णे णामं एगे णो रुवसंपणे, रूवसंपणे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपणे णो रुवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - कुलसंपण्णे णामं एगे जो रूव संपण्णे, रूवसंपणे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि saiपणेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे || बल-पदं २३५. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा - बलसंपण्णे णामं एगे णो रूवसंपणे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो वलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपणे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - बलसंपण्णे णामं एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो वलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूव संपण्णेवि, एगे णो बलसंपणे णो रुवसंपण्णे || हस्थि- पर्द २३६. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा -- भद्दे, मंदे, मिए, संकिण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - भद्दे, मंदे, मिए संकिणे ॥ २३७. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा -भद्दे णाममेगे भद्दमणे, भद्दे णामभेगे मंदमणे, भद्दे णाममेगे मियमणे, भद्दे णाममेगे संकिण्णमणे । एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा – भद्दे णाममेगे भद्दमणे, भद्दे णाममेगे मंदमणे, भद्दे णाममेगे मियमणे, भद्दे णाममेगे संकिण्णमणे ।। २३८. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा-मंदे णाममेगे भद्दमणे, मंदे णाममेगे मंदमणे, मंदे णाममेगे मियमणे, मंदे णाममेगे संकिण्णमणे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- मंदे णाममेगे भद्दमणे, मंदे नाममेगे मंदमणे, मंदे णाममेगे मियमणे, मंदे णाममेगे संकिण्णमणे ॥ ० २३६. चारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा - मिए णाममेगे भद्दमणे, मिए णाममेगे मंदमणे, मिए णाममेगे मियमणे, मिए णाममेगे संकिण्णमणे | एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - मिए णाममेगे भद्दमणे, मिए णाममेगे मंदमणे, मिए णाममेगे मियमणे, मिए णाममेगे संकिण्णमणे ॥ ३. सं० पा० तं चैव । १. मितें ( क, ख, ग ) 1 २. सं० पा०--तं चेव । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (वीओ उद्देसो) २४०. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा - संकिण्णे णाममेगे भद्दमणे, संकिण्णे णाममेगे मंदमणे, संकिणे णाममेगे मियमणे, संकिरणे णाममेगे संकिष्णमणे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - संकिणे णाममेगे भद्दमणे, ""संकिण्णे णाममेगे मंदमणे, संकिण्णे णाममेगे मियमणे, संकिरणे णाममेगे संकिण्णमणे । संग्रहणी - गाहा मधुगुलिय-पिंगलक्खो, पुरओ चल - बहल - विसम-चम्मो, थूलणह-दंत-वालो, तणुओ भीरू उदग्गधीरो, तणुयग्गीवो', तणुयतओ' तणुयदंत-ह-वालो | तत्थुविग्गो, तासीय भवे मिए णामं ॥ ३॥ एतेसि हत्थीणं 'थोवा थोव', " तु जो अणुहरति हत्थी । रुवेण व सीलेण व, सो संकिण्णोत्ति णायव्वो ॥४॥ भद्दो मज्जइ मिउ मज्जति अणुपुव्व-सुजाय- दीहणंगलो t सव्वंगसमाधितो भो ॥१॥ थूलसिरो' थूलपण पेण । हरिपिगल-लोयणो मंदो ||२|| विकहा- पदं २४१ चत्तारि विकहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, • सरए, मंदो उण मज्जते वसंतंमि । हेमंते, संकिण्णो सव्वकालंमि ||५|| रायकहा 11 २४२. इत्थिकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा -- इत्थीणं जाइकहा, इत्थीणं कुलकहा, इत्थी रुवकहा, इत्थीण वत्थकहा || १. सं० पा०-- तं चैव जाव संकिणे । २. धुल्ल सिरो ( क ग ) । ३. ततग्गीवो (क, ख, ग ) । ४. तणुयततो ( क, ख, ग ) ५. थोवं थोवं (क्व) 1 २४३. भत्तकहा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा - भत्तस्स आवावकहा, भत्तस्स faranहा, भत्तस्स आरंभकहा, भत्तस्स गिट्ठागकहा ॥ २४४. देसकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - देसविहिकहा, देसविकल्पकहा, देसच्छंद कहा. देसवत्थकहा ॥ २४५. रायकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - रण्णो अतियाणकहा, रणो पिज्जा कहा, रणो बलवाहणकहा, रण्णो कोसकोट्ठागारकहा || & ६. आवाहकहा (क, ग); अवोहकहा ( ख ) | ७. निव्वाहकहा ( क ग ); णिच्चावक हा ( ख ) । ८. मिट्टावण कहा (क, ग ) । ६. अतिताण ( क, ख, ग ) । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं कहा-पदं २४६. चउविहा कहा' पण्णता, तं जहा---अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेयणी', णिव्वेदणी।। २४७. अक्खेवणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-आया रअक्खेवणी, ववहार अक्खेवणी, पण्णत्तिअखेवणी', दिट्ठिवातअक्खेवणी ॥ २४८. विक्खेवणी कहा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा-ससमयं कहेइ ससमयं कहित्ता परसमयं कहेइ, परसमयं कहेत्ता ससमयं ठाव इता' भवति, सम्मावायं कहेइ सम्मावायं कहेत्ता मिच्छावायं कहेइ, मिच्छावायं कहेत्ता सम्मावायं ठावइता' भवति ।। २४६. संवेयणी कहा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा–इहलोगसंवेयणी, परलोगसंवेयणी, आतसरीरसंवेयणी, परसरीरसंवेयणी ॥ २५०. णिव्वेदणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा १. इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति । २. इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुह फलविवागसंजुत्ता भवति । ३. परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति । ४. परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति । १. इहलोगे सुचिण्णा कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवति । २. इहलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवति । ३. परलोगे सुचिण्णा कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवति । ४. परलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ° ।। किस-दढ-पदं २५१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाकिसे णाममेगे किसे, किसे णाममेगे दढे, दढे णाममेगे किसे, दढे णाममेगे दढे ॥ २५२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-किसे णाममेगे किससरीरे, किसे णाम मेगे दढसरीरे, दढे णाममेगे किससरीरे, दढे णाममेगे दढसरीरे ।। २५३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-किससरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे १. धम्मकहा (क्व)। २. सवेगणी (क, ख, ग) सर्वत्र । ३. निव्वेगणी (ख, ग)। ४. पन्नत्तिखेवणी (क, ग)। ५. ठावतित्ता (क, ख); ठवइत्ता (ग)1 ६. °वातं (क, ख, ग)। ७. ठावतित्ता (क, ख); ठवेत्ता (ग) । ८. ° लोग (क)। ६. सं० पा०–एवं चउभंगो तहेव । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) समुप्पज्जति णो दढसरीरस्स, दढसरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे समुप्पज्जति णो किससरीरस्स, एगस्स किससरीरस्सवि णाणदसणे समुप्पज्जति दढ सरीरस्सवि, एगस्स णो किससरीरस्स णाणदंसणे समुप्पज्जति णो दढसरी रस्स।। अतिसेस-णाण-दसण-पदं २५४. चउहि ठाणेहि णिग्गंथाण वा णिग्गंथोण वा अस्सि समयंसि अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जिउकामेवि ण समुप्पज्जेज्जा, तं जहा१. अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थिकह भत्तकहं देसकहं रायकहं कहेत्ता भवति । २. विवेगेण विउस्सग्गेणं णो सम्ममप्पाणं भाविता भवति । ३. पुठवरत्तावरत्तकालसमयंसि णो धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति । ४. फासुयस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स णो सम्मं गवेसित्ता भवति । इच्चेतेहि चउहि ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा' 'अस्सि समयंसि अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जिउकामेवि णो समुप्पज्जेज्जा ॥ २५५. चउहि ठाणेहि णिग्गंथाण वा णिग्गथीण वा [अस्सि समयंसि ?] अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे समुप्पज्जेज्जा, तं जहा - १. इत्थिकहं भत्तकहं देसकहं रायकहं णो कहेत्ता भवति । २. विवेगेण विउस्सगेणं सम्ममप्पाणं भावेत्ता भवति । ३. पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति । ४. फासुयस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स सम्म गवेसित्ता भवति । इच्चेतेहि चउहि ठाणेहि णिग्गंथाण वा णिग्गीण वा' •[अस्सि समयंसि ? | अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे ° समुप्पज्जेज्जा॥ सज्झाय-पदं २५६. णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथोण वा चरहिं महापाडिवएहि सज्झायं करेत्तए, तं जहा---आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हग पाडिवए । २५७. णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथोण वा चरहिं संझाहिं सज्झायं करेतए, तं जहा---पढ़माए', पच्छिमाए, मज्झण्हे, अड्डरत्ते ।। २५८, कप्पइ णिगंथाण वा णिग्गंथोण वा चउक्ककालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा -- पुवण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे ॥ लोगठ्ठिति-पदं २५६. चउव्विहा लोगद्विती पण्णत्ता, तं जहा-आगासपतिट्ठिए वाते, वातपतिहिए उदधी, उदधिपतिट्ठिया पुढवी, पुढविपतिट्ठिया तसा थावरा पाणा ।। १. सं० पा०—णिगंथीण वा जाव णो समुप्प ३. पढमाते (क, ख, ग)। २. सं० पा०—णिगंथीण वा जाव समुप्प । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ ठाण पुरिस-भेद-पदं २६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-तहे गाममेगे, गोतहे णाममेगे, सोवत्थी णाममेगे, पधाणे णाममेगे। आय-पर-पदं २६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा----आयंतकरे णाममेगे णो परंतकरे, परंतकरे णाममेगे णो आयंतकरे, एगे आयंतकरेवि परंतकरेवि, एगे णो आयंतकरे णो परंतकरे ॥ २६२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--आयंतमे णाममेगे णो परंतमे, परंतमे णाम मेगे णो आयंतमे, एगे आयंतमेवि परंतमेवि, एगे जो आयंतमे णो परंतमे ।। २६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--आयंदमे णाममेगे णो परंदमे, परंदम णाममेगे णो आयंदमे, एगे आयंदमेवि परंदवि, एगे णो आयंदमे णो परंदमे ।। गरहा-पदं २६४. चउविहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा-उवसंपज्जामित्तेगा गरहा, वितिगिच्छामि त्तेगा गरहा, जकिचिमिच्छामित्तेगा गरहा, एवंपि पण्णत्तेगा गरहा ।। अलमंथु-पदं २६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा—अप्पणो णाममेगे अलमंथू भवति णा परस्स, परस्स णाममेगे अलमंथू भवति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि अलमंथ भवति परस्सवि, एगे णो अपणो अलमंथ भवति णो परस्स ।। उज्जु-वंक-पदं २६६. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा -उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, बंके गाममेगे वके । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, बंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके ।। खेम-अखेम-पदं २६७. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमे, खेमे णाममेगे अखेमे, अखेमे गाममेगे खेमे, अखेमे णाममेगे अखेमे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमे, खेमे णाम मेगे अखेमे, अखेमे णाममेगे खेमे, अखेमे णाममेगे अखेमे ॥ २६८. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा- खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे णाममेगे अखेम रूवे, अखमे णाममेगे खेमरूवे, अखेमे णाममेगे अखेमरूवे । १. पण्णते एगा (वृपा)। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) ६२३ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे णाममेगे अखेमरूवे, अखेमे णाममेगे खेमरूवे, अखेमे णाममेगे अखेमरूवे॥ वाम-दाहिण-पदं २६६. चत्तारि संवुक्का पण्णत्ता, तं जहा-वामे णाम मेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे गाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते ।। २७०. चत्तारि धूमसिहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता। एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाम मेगा दाहिणावत्ता। २७१. चत्तारि अग्गिसिहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता। एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता ।। २७२. चत्तारि वायमंडलिया पण्णत्ता, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता ॥ एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णताओ, तं जहा -वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता॥ २७३. चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा-वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते ।। णिग्गंथ-णिग्गंथी-पदं २७४. चउहि ठाणेहि णिग्गंथे णिग्गंथि आलवमाणे वा संलवमाणे वा णातिक्कमति, तं जहा-१. पंथं पुच्छमाणे वा, २. पंथं देसमाणे वा, ३. असणं वा पाणं वा Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ ठाणं खाइमं वा साइमं वा दलेमाणे वा, ४. 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं ar दलावेमा वा ॥ तमुक्काय-पदं २७५ तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - तमेति वा, तमुक्काति वा, अंधकारेति वा, महंधकारेति वा ॥ २७६. तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा- लोगंधगारेति वा, लोगतमसेति वा, देवंधगारेति वा, देवतमसेति वा ॥ २७७. तमुक्कायस्स गं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा -- वातफलिहेति वा, वातफलिहखोभेति वा, देवरण्णेति वा, देववूहेति वा ॥ २७८. तमुक्काते णं चत्तारि कप्पे आवरित्ता चिट्ठति तं जहा -सोधम्मीसाणं सकुमार- माहिद || दोस - पर्द २७६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - संपागडपडिसेवी णाममेगे, पच्छण्णडिसेवी णाममेगे, पडुप्पण्णणंदी' णाममेगे, णिस्सरणणंदी णाममेगे || जय-पराजय-पदं २८० चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा जइत्ता णाममेगा णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगा णो जइत्ता, एगा जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगा णो जइत्ता को पराजिणित्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- जइत्ता णाममेगे णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगे णो जइत्ता, एगे जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगे णो जइत्ता णो पराजिणित्ता ॥ २८१. चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- जइत्ता णाममेगा जयइ, जइत्ता णाममेगा पराजित, पराजिणित्ता णाममेगा जयइ, पराजिणित्ता णाममेगा पराजिणति । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जइत्ता णाममेगे जयइ, जइत्ता जामगे पराजिणति, पराजिणित्ता णाममेगे जयइ, पराजिणित्ता णाममेगे पराजिणति ॥ १. दलतमाणे (क. ग ); दलमाणे ( ख ) । २. x (क. ख, ग ) । ३. दवावेमाणे ( क ग ) 1 ४. देवफलिहेति (वृपा ) ५. वातपरिखोभेति, देवपरिखोभेति (कृपा) । ६. पडुप्पन्नसेवी (वृपा ) ( ७. जतित्ता (क, ख, ग ) । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) माया-पदं २८२. चत्तारि केतणा पण्णत्ता, तं जहा-वंसीमूलकेतणए, मेंढविसाणकेतणए, गोमुत्तिhaण, अवलेहणियतणए । 'एवमेव चउविधा माया पण्णत्ता, तं जहा -- वंसीमूलकेतणास माणा', 'मेंढविसाणकेतणास माणा, गोमुत्तिकेतणासमाणा, अवलेहणिकेतणास माणा । १. वसीमूलकेतणासमाणं मायमणुपविट्ठे जीवे कालं करेति णेरइएस उववज्जति । २. मेंढविसाणकेतणासमाणं मायमणुपविट्टे जीवे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । o ३. गोमुत्ति केतणासमाणं मायमणुपविट्टे जीवे कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. अवलेहणिय केतणासमाणं मायमणुपविट्टे जीवे कालं करेति, देवेसु उववज्जति ॥ माण- पर्द २८३. चत्तारि थंभा पण्णत्ता, तं 'जहा - सेलथंभे, अद्विथंभे, दारुथंभे, तिणिसलतार्थभे । एवामेव चउग्विधे माणे पण्णत्ते, तं जहा - सेलथं भसमाणे', 'अद्विथंभसमाणे, दारुथं भसमाणे, तिणिसलताथं भसमाणे । ६२५ १. सेयथंभसमाणं माणं अणुपविट्टे जीवे कालं करेति णेरइएसु उववज्जति । २. "अद्विथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ० ३. दारुथंभसमाणं माणं अणुपविट्टे जीवे कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. तिणिसलतार्थ भसमाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, देवेसु उववज्जति ॥ लोभ-पदं २८४. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा - किमिरागरत्ते, कद्दमरागरत्ते, खंजणरागरत्ते, हलिद्दरागरत्ते' | एवामेव चव्विधे लोभे पण्णत्ते, तं जहा - किमिरागरत्तवत्थसमाणे, कद्दमरागरत्तवत्थसमाणे, खंजणरागरत्तवत्थसमाणे, हलिद्दरागरत्तवत्थसमाणे । १. पूर्व क्रोधमानसूत्राणि ततो मायासूत्राणि (वृपा) । २. सं० पा० - वंसीमूलके तणास माणा अवलेह । ३. सं० पा० - गोमुत्ति जाव कालं । जाय ४. सं० पा० – अवलेहणित जाव देवेसु । ५. सं० पा० - सेलथंभसमाणे जाव तिणिस | ६. सं० पा० - एवं जाव तिणिस ० । ७. हलिद्दा° ( क ) 1 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ ठाणं १. किमिरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जीवे कालं करेइ, णेरइएसु उववज्जई। २. "कद्दम रागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणितेसु उववज्जइ। ३. खंजणरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जीवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जइ । ४. हलिद्दरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जोवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जइ। संसार-पदं २८५. चउव्विहे संसारे पण्णत्ते, तं जहाणेरइयसंसारे', 'तिरिक्खजोणियसंसारे, मणस्ससंसारे , देवसंसारे ।। २८६. चउठिवहे आउए' पण्णत्ते, तं जहा–णेरइयआउए, 'तिरिक्खजोणियआउए, मणस्साउए °, देवाउए । २८७. चउविहे भवे पण्णत्ते, तं जहाणेरइयभवे', 'तिरिक्खजोणियभवे, मणुस्सभवे', देवभवे ॥ आहार-पदं २८८. चउठिवहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे ।। २८६. चउविहे आहारे पणते, तं जहा-उवक्खरसंपण्णे, उवक्खडसंपण्णे, सभाव संपण्णे, परिजुसियसंपण्णे ।। कम्मावत्था-पदं २६०. चउविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा-पगतिबंधे, ठितिबंधे, अणुभावबंधे, पदेसबंधे ।। २६१. चउविहे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणोवक्कमे, उदीरणोवक्कमे, उवसमणोवक्कमे, विप्परिणामणोवक्कमे ।। २६२. बंधणोवक्कमे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--पगतिबंधणोवक्कमे, ठितिबंधणो वक्कमे, अणुभावबंधणोवक्कमे, पदेसबंधणोवक्कमे ॥ २६३. उदीरणोवक्कमे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–पगतिउदोरणोवक्कमे, ठिति उदीरणोवक्कमे, अणुभाउदीरणोवक्कमे, पदेसउदीरणोवक्कमे ॥ २६४. उवसामणोवक्कमे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा--पगतिउवसामणोवक्कमे, ठिति उवसामणोवक्कमे, अणुभाव उवसामणोवक्कमे, पदेसउवसामणोवक्कमे॥ -------------------- १. सं० पा०--तहेव जाव हलिद्द । ___४, सं० पा.-रतिआउते जाव देवाउते । २. सं० पा०—रतियसंसारे जाब देवसंसारे। ५. सं० पा० -रतियभवे जाव देवभवे । ३. आउते (क, ख, ग)। ६. नो उवक्खरसंपन्ने (वृपा)। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) २५. विष्परिणामणोवक्कमे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा - पगतिविष्परिणामणोवक्कमे, ठितिविपरिणामणोवक्कमे अणुभावविप्परिणामणोवक्कमे, पएसविप्परिणामगोवक्कमे' || २६६. चउब्विहे अप्पाबहुए पण्णत्ते, तं जहा -- पगतिअप्पा बहुए, ठितिअप्पाबहुए, अणुभावअप्पाबहुए, पएसअप्पा बहुए ॥ २६७. चव्विहे संकमे पण्णत्ते, तं जहा - पगतिसंकमे, ठितिसंकमे, अणभावसंकमे, एससंक मे || २८. चउव्विहे धित्ते पण्णत्ते, तं जहा - पगतिणिधत्ते, ठितिणिधत्ते, अणुभावणिधत्ते, सणिधत्ते ।। २६. चव्विणिगायिते पण्णत्ते, तं जहा - पगतिणिगायिते, ठितिणिगायिते, अणुभावणिगायिते, पसणिगायिते ॥ संखा-पदं ३००. चत्तारि एक्का पण्णत्ता, तं जहा - दविएक्कए, माउएक्कए', पज्जवेक्कए, संगक्कए || ३०१ चत्तारि कती पण्णत्ता, तं जहा -दवितकती, माउयकती, पज्जवकती, संगहकती । ३०२. चत्तारि सव्वा पण्णत्ता, तं जहा - णामसव्वए, ठवणसन्नए, आएससव्वए, णिरवसेस सव्वए || कूड-पदं ३०३. माणुसुत्तरस्स णं पव्वयस्स चउदिसि चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा - रयणे, तच्च सव्वरयणे, रतणसंच ' ॥ ६२७ कालचक्क - पर्व ३०४. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो हुत्था | ३०५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो पण्णत्तो ॥ ३०६. जंबुद्दींवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो भविस्सइ || १. पतेस ० ( क, ख, ग ) 1 २. दविए एक्कए (ग, वृपा ) । ३. माउ एक्कते ( ख ) । ४. पज्जवेक्कगे (क); पज्जवे एक्कए ( ख, ग ) । ५. संगहे एक्कते ( ख, ग ) 1 ६. रतणसंचये (क, ख, ग ) । ७. हुत्था ( ख, ग ) । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ ठाणं अकम्मभूमी-पदं ३०७. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुवज्जाओ चत्तारि अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - हेमवते, हेरण्णवते, हरिवरिसे', रम्मगवरिसे। चत्तारि वट्टवेयड्पव्वता पण्णत्ता, तं जहा-सद्दावाती', वियडावाती, गंधावाती, मालवंतपरिताते । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिक्संति, तं जहा साती, पभासे, अरुणे, पउमे ।। महाविदेह-पदं ३०८. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चउन्विहे पण्णत्ते, तं जहा-पुन्वविदेहे, अवर विदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा ।। पन्वय-पदं ३०६. सव्वे वि णं णिसढणीलवंतवासहरपव्वता चत्तारि जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता ।। ३१०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-चित्तकूडे, पम्हकूडे', णलिणकूडे, एगसेले ॥ ३११. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा—तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मातंजणे ॥ ३१२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणदीए १. वस्से (ग)। स्थानाङ्गवृत्ती तथा जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ च २. वासे (ख); °वस्से (ग)। 'शब्दापाती विकटापाती गंधापाती' इति ३. ठा० २१२७४, २७५ सूत्रयोः 'सदावाती सस्कृतरूपं कृतमस्ति । वृत्त्याधारण सद्दावाती' • वियडावाती गंधावाती' पाठ: वृत्त्याधारण प्रभृतिपाठस्य कल्पना जायते । 'सद्दावई' स्वीकृतः । ठा० २.३३५ सूत्रे प्रतिषु 'सद्दा. इत्यादि पाठः मृदूच्चारणार्थं कृतमथवा लिपिवाती' तथा 'सहावतिवासी'- इत्थं रूपद्वयं दोषेण परिवर्तन जातमिति न निश्चतुं शक्यते, लभ्यते । प्रस्तुतसूत्रे प्रतिपु ‘सद्दावई वियडावई तेनास्माभिः सर्वत्रापि 'सद्दावाती' प्रभृतिपाठ: गंधावई' इति पाठोस्ति । 'रायपसेणइय' सूत्रे स्वीकृतः। तथा 'जट्टीवरणत्ती' सूत्रपि प्राप्तादर्शषु ४. ठा०२२७१। 'सद्दावई वियडावई गंधावई' पाठो लभ्यते। ५. बंभकूडे (क)। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) ६२६ दाहिणकुले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा - अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे || ३१३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महानदीए ' उत्तरकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा - चंदपव्वते, सुरपव्वते, देवपव्वते, नागपव्वते ॥ ३१४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा- सोमणसे, विज्जुप्पभे, गंधमायणे, मालवंते ॥ सलागा-पुरिस-पदं ३१५. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे जहण्णपए' चत्तारि अरहंता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि वलदेवा चत्तारि वासुदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिसंति वा ॥ मदर - पव्वय-पदं ३१६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा - भद्दसालवणे, णंदणवणे, सोमणसवणे, पंडगवणे | ३१७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- पंडुकंबलसिला, अइपंडुकंबलसिला, रत्तकंबलसिला, अतिरत्तकंबलसिला || ३१८. मंदरचूलिया णं उवरि चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ धाइड पुक्खरवर-पदं ३१६. एवं -- धायइसंडदीवपुर स्थिमद्धेवि कालं आदि करेत्ता जाव' मंदरचूलियत्ति । एवं जाव पुक्खरवरदीवपच्चत्थिमद्धे जाव मंदरचूलियति । संगहणी - गाहा जंबुद्दीवग आवस्सगं तु कालाओ चूलिया जाव । धायइसंडे पुक्खरवरे य पुब्वावरे पासे ||१|| दार- पर्द ३२०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा -- विजये, वेजयंते, १. महाणतीते ( क, ख, ग ) । २. जहणवते ( क, ख, ग ) 1 ३. ठा० ४।३०४-३१८ । ४. ठा० ३।१०८ । ५. जंबुद्दीवे ० ( वृपा ) 1 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं जयंते, अपराजिते । ते णं दारा चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते ॥ अंतरदीव-पदं ३२१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे गं चुल्ल हिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुदं तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा–एगूरुयदीवे', आभासियदीवे, वेसाणियदीवे, णंगोलियदीवे। तेसु णं दीवेसु चउन्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा—एगूरुया', आभासिया, वेसाणिया, गंगोलिया ॥ ३२२. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुई चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एस्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा-हयकण्णदीवे, गयकण्णदीवे, गोकण्णदीवे, सक्कुलिकण्णदीवे ।। तेसु णं दीवेसु चउविधा मणुस्सा परिवति, तं जहाहयकण्णा, गयकण्णा, गोकण्णा, सक्कुलिकण्णा ॥ ३२३. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं पंच-पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ परं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा-आयंसमुहदीवे, मेंढमुहदीवे, अओमुहदीवे, गोमुहदीवे । तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा' परिवसंति, तं जहा-आयंसमुहा, मेंढमुहा, अओमुहा. गोमुहा० ॥ ३२४. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं छ-छ जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा- आसमुहदीवे, हत्थिमुहदीवे, सीहमुहदीवे, वग्धमुहदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मगुस्सा परिवसंति, तं जहा--आसमुहा, हत्थिमुहा, सीहमुहा, वग्घमुहा० ॥ ३२५. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं सत्त-सत्त जोयणसयाइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा, पण्णत्ता, तं जहा—आसकण्णदीवे, हत्थिकण्णदीवे अकण्णदीवे, कण्णपाउरणदीवे ।। १. तावतितं (क, ख, ग)। ५. संकुलि (क्व)। २. ठा० २।२७१। ६. स० पा०–मणुस्सा भाणियन्वा । ३. एगरूअदीवे (क, ख, ग)। ७. सं० पा०-~मणुस्सा भाणियब्वा । ४. एगरूता (क, ग); एगुरूता (ख)। ८. कन्नापाउ' (क, ग)। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३१ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा' 'परिवसंति, तं जहा-आसकण्णा, हत्थि कण्णा, अकण्णा, कण्णपाउरणा ॥ ३२६. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं अट्ठट्ठ जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा- उक्कामुहदीवे, मेहमुहदीवे, विज्जुमुहदीवे, विज्जुदंतदीवे । तेसु णं दीवेसु चउम्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा—उक्कामुहा, मेहमुहा, विज्जुमुहा, विज्जुदंता ।। ३२७. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं णव-णव जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा–घणदंतदीवे, लट्ठदंतदीवे, गूढदंतदीवे, सुद्धदंतदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-घणदंता, लट्ठदंता गूढदंता, सुद्धदंता॥ ३२८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुई तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगूरुयदीवे', सेसं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव सुद्धदंता॥ महापायाल-पदं ३२६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ' चउदिसिं लवणसमुदं पंचा णउई जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालता महालंजरसंठाणसंठिता' चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, तं जहा-वलयामुहे', के उए', जूवए, ईसरे । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे ॥ आवास-पव्वय-पदं ३३०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसि लवणसमुहूं बायालीस-बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपन्वता पण्णत्ता, तं जहा—गोथूभे, उदओभासे", संखे, दगसीमे। १. सं० पा०–मणुस्सा भाणियन्वा । २. सं० पा०-मणुस्सा भाणियव्वा । ३. एगरूय° (क, ख, ग)! ४. ठा० ४।३२१-३२७ । ५. वेतितंताओ (क, ख, ग)। ६. महालिंजर (क, ग)। ७. वलतामुहे (क, ख, ग)। ८. केउते (क, ख, ग)। ६. ठा० २१२७१।। १०. दउयभासे (ख); उदयभासे (क्व)। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा गोथूभे, सिवए, संखे, मणोसिलाए॥ ३३१. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउसु विदिसासु लवणसमुई बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं च उण्हं अणुवेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा--कक्कोडए, विज्जुप्पभे, केलासे, अरुणप्पभे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा - कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरुणप्पभे ।। जोइस-पदं ३३२. लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा । चत्तारि सूरिया तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा। चत्तारि कित्तियाओ जाव' चत्तारि भरणीओ॥ ३३३. चत्तारि अग्गी जाव चत्तारि जमा ।। ३३४. चत्तारि अंगारा जाव चत्तारि भावकेऊ।। दार-पदं ३३५. लवणस्स णं समुदस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा–विजए, वेजयंते, जयंते अपराजिते । ते णं दारा चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, त जहा विजए", वेजयंते, जयंते, अपराजिए। धायइसंड-पुक्खरवर-पदं ३३६. धायइसंडे णं दीवे चत्तारि जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते॥ ३३७. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बहिया चत्तारि भरहाई, चत्तारि एरवयाई। एवं जहा १. ठा० २१२७१। २. ०रातीणं (क, ख, ग)। ३. ठा० २।२७१। ४. सूरिता (क, ख, ग)। ५. तवइंसु (वृ)। ६. ठा० २१३२३।. ७. ठा० २।३२४ । ८. अंगारया (क, ग)। ६. ठा० २।३२५ । १०. ठा०२।२७१ । ११. विजते (क, ख, ग)। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) सदुद्देसए' तहेव गिरवसेसं भाणियव्वं जाव' चत्तारि मंदरा चत्तारि मंदरचलियाओ। गंदीसरवरदीव-पदं ३३८. गंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं चत्तारि अंजणगापव्वता पण्णत्ता, तं जहा -पुरस्थिमिल्ले अंजणगपव्वते, दाहिजिल्ले अंजणगपन्वते, पच्चथिमिल्ले अंजणगपव्वते, उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते । ते णं अंजणगपव्वता चउरासीति जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्साइं विवखंभेणं, तदणंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणा-परिहायमाणा उवरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पण्णत्ता। मूले इकतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवणं, उवरि तिण्णि-तिण्णि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठ जोयणसतं परिक्खेवेणं । मूले विच्छिण्णा मज्झे संखेत्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वअंजणमया' अच्छा 'सण्हा लण्हा“ घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकड़-च्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा।। ३३६. तेसि णं अंजणगपव्वयाणं उवरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि सिद्धायतणा पण्णत्ता। ते णं सिद्धायतणा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं. बावरि जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं । तेसि णं सिद्धायतणाणं च उदिसिं चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा—देवदारे, असुरदारे, णागदारे, सुवण्णदारे । तेसु णं दारेसु चउविवहा देवा परिवसंति, तं जहा–देवा, असुरा, णागा, सुवण्णा । तेसि णं दाराणं पुरओ चत्तारि मुहमंडवा पण्णत्ता। तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ चत्तारि पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता। तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं बहुमज्भदेसभागे चतारि वइरामया अक्खाडगा पण्णत्ता। १. शब्दोपलक्षित उद्देशकः शब्दोद्देशको द्विस्थान- 'सण्हा' तथा 'स्' लोपे कृते 'लव्हा' इतिरूपं कस्य तृतीय इत्यर्थः (वृ)। जायते । वृत्तिकारेणानयोः किञ्चिदर्थभेदोऽपि २. ठा० २।३३३-३४३, ३५० । सूचितः,यथा-सहा-इलक्षणपरमाणस्कन्ध ३. सव्वंजण ° (वृ)। निष्पन्नाः, श्लक्ष्णदल निष्पन्नफ्टवत्, लण्हा-~-- ४. 'सण्हा लण्हा' एती एकस्यैव शब्दस्य रूप- श्लक्षणा मसृणा इत्यर्थः (वृ)। भेदी स्तः । श्लक्ष्णशब्दस्य 'ल' लोपे कृते ५. सस्सिरीया (क)। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणे तेसि णं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्भदेसभागे चत्तारि मणिपेढियातो पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढिताणं उरि चत्तारि सीहासणा पण्णत्ता। तेसि णं सीहासणाणं उरिं चत्तारि विजयदूसा पण्णत्ता। तेसि णं विजयदूसगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया' अंकुसा पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु अंकुसेसु चत्तारि कुंभिका मुत्तादामा पण्णत्ता । ते णं कुंभिका मुत्तादामा पत्तेयं-पत्तेयं अण्णेहिं तदद्धउच्चत्तपमाणमित्तेहिं चउहिं अद्धकभिक्केहि मुत्तादामेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता ।। तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ' पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरि चत्तारि-चत्तारि चेइयथूभा' पण्णत्ता। तेसि णं चेइयथूभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरि चत्तारि जिणपडिमाओ सम्वरयणामईओ संपलियंकणिसण्णाओ थूभाभिमुहाओ चिट्ठति, तं जहारिसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा, वारिसेणा। तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरिं चत्तारि चेइयरुक्खा पण्णत्ता । तेसि णं चेइयरुवखाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरिं चत्तारि महिंदज्झया पण्णत्ता। तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरओ चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ। तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउदिसि चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा---पुरस्थिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे थे । संगहणी-गाहा पूवे णं असोगवणं, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं । अवरे णं चंपगवणं, चूतवणं उत्तरे पासे ॥१॥ ३४०. तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले अंजणगपन्वते, तस्सणं चउद्दिसिं चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–णंदुत्तरा, गंदा, आणंदा, णदिवद्धणा । ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं, पण्णासं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, दसजोयणसताई उव्वेहेणं । १. वइरामता (क, ख, ग)। २. ° कुंभिकेहि (ख, वृ)। ३. ° पेढिताओ (क, ख, ग) ! ४. चेतितथूभा (क, ख, ग)। ५. महेन्द्रा इति---अतिमहान्तः समयभाषया ते च ते ध्वजाश्चेति, अथवा महेन्द्रस्येव शक्रादेर्ध्वजाः महेन्द्रध्वजाः (१) । ६. तत्थ (क) सर्वत्र। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पण्णत्ता, तं जहापुरथिमे णं, दाहिणे णं, पच्च स्थिमे णं, उत्तरे णं । तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा---पुरतो, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं ।।। संगहणी-गाहा पुन्वे णं असोगवणं', 'दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं । अवरे णं चंपगवणं °, च्यवणं उत्तरे पासे ॥१॥ तासि णं पुक्खरिणीणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि दधिमुहगपव्वया पण्णत्ता। ते णं दधिमुहगपव्वया चउट्टि जोयणसहस्साई उड्ढे उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिता, दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा। तेसि णं दधिमुहगपव्वताणं उरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता । सेसं जहेव अंजणगपव्वताणं तहेव गिरवसेसं भागियव्वं जाव' चूतवणं उत्तरे पासे ।। ३४१. तत्थ णं जे से दाहिणिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चदिसिं चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–भद्दा, विसाला, कुमुदा, पोंडरी गिणी। ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्स, सेसं तं चेव जाव दधिमूहगपव्वता जाव' वणसंडा ।। ३४२. तत्थ णं जे से पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपन्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--दिसेणा, अमोहा, गोथूभा, सुदंसणा । सेसं तं चेव, तहेव दधिमुहगपव्वता, तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा ।। ३४३. तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं च उद्दिसि चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिता । ताओ ण णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं, सेसं तं चेव पमाणं, तहेव दधिमुहगपव्वत्ता, तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा॥ ३४४. गंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउसु १. सं० पा०---असोगवणं जाव च्यवणं । २. ठा० ४१३३८ । ३. ठा० ४१३३६ । ४. पोंडरगिणी (क, ग); पोंडरिगिणी (ख)। ५,६. ठा० ४१३४० । ७. ठा०४१३४० । ८. ठा०४१३४०। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं विदिसासु चत्तारि रतिकरगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरगपवए, दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए, उत्तरपच्चस्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए। ते णं रतिकरगपब्धता दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठाणसंठिता ; दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा ।। ३४५. तत्थ णं जे से उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपन्वते, तस्स णं चउद्दिसि ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो चउण्हमागमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–णंदुत्तरा, णंदा, उत्तरकुरा, देवकुरा। कण्हाए, कण्ह राईए, रामाए, रामरक्खियाए । ३४६. तत्थ णं जे से दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स ण चउद्दिसि सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमन्गहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–समणा, सोमणसा, अच्चिमाली, ममोरमा । पउमाए, सिवाए, सतीए', अंजूए ।।। ३४७. तत्थ णं जे से दाहिणपच्चस्थिमिल्ले रतिक रगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गम हिसीणं जंबुद्दीवपमाणमेत्ताओ' चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--भूता, भूतवडेंसा, गोथूभा, सुदंसणा। अमलाए, अच्छराए, णवमियाए', रोहिणीए ।। ३४८. तत्थ णं जे से उत्तरपच्चथिमिल्ले रतिकरगपन्वते, तस्स णं च उद्दिसिमीसाणस्स देविदस्स देवरण्णो चउण्हमन्गम हिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णताओ, तं जहा–रयणा, रतणुच्चया, सव्वरतणा, रतणसंचया। वसूए, वसुगुत्ताए, वसुमित्ताए, वसुंधराए । सच्च-पदं ३४६. चउविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा–णामसच्चे, ठवणसच्चे, दव्वसच्चे, भावसच्चे ।। आजीविय-तव-पदं ३५०. आजीवियाणं चउविहे तवे पण्णत्ते, तं जहा-उग्गतवे', घोरतवे, 'रसणिज्जूहणता, जिभिदियपडिसलीणता । १. ठा० ४१३३८ । मेत्ताओ' पाठोस्ति । आदर्शषु इत्थमेव २. कण्हरातीते (क, ख, ग)। लभ्यते, तेन तथैव स्वीकृतः । ३. सुतीते (क, ख, ग)। ५. णवमिताते (क, ख, ग)। ४. प्राग्वतिनोः द्वयोः सूत्रयोः केवलं 'पमाणाओ' ६. उदारतबे (वृपा)। पाठोस्ति । अत्र उत्तरपतिनि सूत्रे च 'पमाण Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) ६३७ ३५१. चउबिहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-मणसंजमे, वइसंजमे', कायसंजमे, उवगरण संजमे ॥ चउविधे चियाए' पण्णत्ते, तं जहा-मणचियाए, वइचियाए, कायचियाए, उवगरणचियाए॥ ३५३. चउब्विहा अकिंचणता पण्णत्ता, तं जहा-मणअकिंचणता, वइअकिंचणता, कायअकिंचणता, उवगरणअकिंचणता ।। ३५२. तइओ उद्देसो कोह-पदं ३५४. चत्तारि राईओ' पण्णत्ताओ, तं जहा---पवयराई, पुढविराई, वालुयराई, उदगराई। एवामेव चउन्विहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा-पव्वय राइसमाणे, पुढविराइसमाणे, वालुयराइसमाणे, उदगराइसमाणे।। १. पव्वयराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ, णेरइएसु उववज्जति । २. पुढविराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ३. वालुयराइसमाणं कोहमणुपविट्ठ जीवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. उदगराइसमाणं कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जति ।। भाव-पदं ३५५. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा-कद्दमोदए, खंजणोदए, वालुओदए, सेलोदए। एवामेव' चउविहे भावे पण्णत्ते, तं जहा—कद्दमोदगसमाणे, खंजणोदगसमाणे, वालुओदगसमाणे, सेलोदगसमाणे। १. कद्दमोदगसमाणं भावमणुपविढे जीवे कालं करेइ, णेरइएसु उववज्जति । २. "खंजणोदगसमाणं भावमणुपविढे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति। ३. वालुओदगसमाणं भावमणुपविटे जोवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जति ॥ ४. सेलोदगसमाणं भावमणुपविढे जीवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जति ।। रुत-रूव-पदं ३५६. चत्तारि पक्खी पण्णत्ता, तं जहा–रुतसंपण्णे णाममेगे' णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे १. वति ° (क, ख, ग)। २. चिताते (क, ख, ग)। ३. रातीओ (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-एवं जाव सेलोदग० । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाममेगे णो रुतसंपण्णे, एगे रुतसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो रुतसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-रुतसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो रुतसंपण्णे, एगे रुतसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो रुतसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ।। पत्तिय-अप्पत्तिय-पदं ३५७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तिय करेति ।। ३५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अप्पणो णाममेगे पत्तियं करेति णो परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं करेति णो अपणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं करेति परस्सवि, एगे णो अपणो पत्तियं करेति णो परस्स ।। ३५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति ॥ ३६०. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे पत्तियं पवेसेति णो परस्स, परस्स गाममेगे पत्तियं पवेसेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं पवेसेति परस्सवि, एगे णो अपणो पत्तियं पवेसेति णो परस्स ॥ उपकार-पदं ३६१. चत्तारि रुक्खा पण्णता, तं जहा-पत्तोवए, पुष्फोवए, फलोवए, छायोवए । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पत्तोवारुक्खसमाणे, पुप्फोवारुक्खसमाणे, फलोवारुक्खसमाणे, छायोवारुक्खसमाणे ।। आसास-पदं ३६२. भारण्णं' वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा-- १. जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। २. जत्थवि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । ३. जत्थवि य णं णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उर्वति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । १. भारूण्णं (क); भारूप्प (ग)। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) ४. जत्थवि य णं आवकहाए चिति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा१. 'जत्थवि य ण" सीलव्वत-गुणव्वत-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाई पडिवज्जति, तत्थवि य से एगे आसासे पपणत्ते। २. जत्थवि य णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममणुपालेइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। ३. जत्थवि य णं चाउद्दसट्ठमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । ४. जत्थवि य णं अपच्छिम-मारणंतित-संलेहणा-'झूसणा-झूसिते२ भतपाणपडियाइक्खिते' पाओवगते कालमणवकखमाणे विहरति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते॥ उदित-अत्थमित-पदं ३६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-उदितोदिते णाममेग, उदितत्थमिते णाममेगे, अत्थमितोदिते णाममेगे, अत्थमितत्थमिते णाममेगे । भरहे राया चाउरतचक्कवट्टी णं उदितोदिते, बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी उदितत्थमिते, हरिएसबले' णं अणगारे अत्थमितोदिते, काले णं सोयरिये अत्थमितत्थमिते ।। जुम्म-पदं ३६४. चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा-कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलिओए ।। ३६५. रइयाणं चत्तारि जुम्मा पणत्ता, तं जहा-कडजुम्मे, तेओए, दावरजुम्मे, कलिओए। ३६६. एवं-असुरकुमाराणं जाव' थणियकुमाराणं । एवं-पुढविकाइयाणं आउ-तेउ वाउ-वणस्सतिकाइयाणं बंदियाणं तेंदियाणं चउरिदियाणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं वाणमंतर-जोइसियाणं वेमाणियाणं-सव्वेसि जहा रइयाणं ॥ सूर-पदं ३६७. चत्तारि सूरा पण्णत्ता, तं जहा--तवसूरे, खंतिसूरे, दाणसूरे, जुद्धसूरे । खंतिसूरा अरहंता, तवसूरा अणगारा, दाणसूरे वेसमणे, जुद्धसूरे वासुदेवे ।। १. जत्थ णं से (ख)। ४. हरितेसबले (क, ख, ग)। २. जूसणाजूसिते (वृ)। ५. ठा० १।१४३-१५० । ३. पडितातिक्खिते (क, ख, ग)। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० ठाणं उच्चणीय-पदं ३६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उच्चे णाम मेगे उच्चच्छंदे, उच्चे णाम मेगे णीयच्छंदे, णीए' णाममेगे उच्चच्छंदे, णीए णाममेगे णीयच्छंदे ।। लेसा-पदं ३६६. असुरकुमारा चत्तारि लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा॥ ३७०. एवं जाव' थणियकुमाराणं । एवं-पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सइकाइयाणं वाणमंतराणं-सवेसि जहा असुरकुमाराणं ।। जुत्त-अजुत्त-पदं ३७१. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते गाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ।। ३७२. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा---जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते ।। ३७३. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहाजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जुत्ते णाममगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाम मेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ! ३७४. चत्तारि जाणा पणत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णामभेगे अजुत्तसोभे। एबामेव चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जत्ते णाममेगे जत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे॥ ३७५. चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते गाममेगे अजुत्ते ॥ १. णोते (क, ख, ग)। २. ठा० १६१४३-१५०। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) ३७६. "चत्तारि जुग्गा पण्णता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुतपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते ॥ ३७७. चत्तारि जुग्गा पण्णता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-जुते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूव, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ॥ ३७८. चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे ।। सारहि-पदं ३७६. चत्तारि सारही पण्णत्ता, तं जहा--जोयावइत्ता णामं एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णाममेगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जोयावइत्ता णाम एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णामं एगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता ।। जुत्त-अजुत्त-पदं ३८०. चत्तारि ह्या पण्णता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाम मेगे अजुत्ते।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाम मेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ॥ ३८१. "चत्तारि हया पण्णता, तं जहा- जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते गाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते पाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्त परिणते ॥ १. सं० पा०–एवं जहा जाणेण "पुरिसजाया २. स० पा०--एवं जुत्तपरिणते "पुरिसजाता। जाव सोभेत्ति। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ ठाणं ३८२. चत्तारि या पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त रूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूबे, अजुत्ते गाममेगे अजुत्तरूवे ।। ३८३. चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा -जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त सोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे ।। चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्त, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममंगे अजुत्ते ।। ३८५. "चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा --जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णामभेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते ।। ३८६. चत्तारि गया पणत्ता, तं जहा---जुत्ते गाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त रूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ॥ ३८७. चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा -जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजत सोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेवा चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्त सोभे ।। पंथ-उप्पह-पदं ३८८. चत्तारि जुग्गारिता' पण्णत्ता, तं जहा --पंथजाई' णाममेगे णो उप्पहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उप्पहजाईवि, एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई। १. सं० पा०–एवं जहा याण."तहेव २. जुगारिता (ख); जुम्गायरिया (वृपा) । पुरिसजाया। ३. जाती (क, ख, ग)। International Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) ६४३ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तं जहा - पंथजाई णाममेगे णो उप्पहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उपपहजाईवि, एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई ॥ रूब- सील-पदं ३८६. चत्तारि पुप्फा पण्णत्ता, तं जहा - रूवसंपणे णाममेगे णो गंधसंपण्णे, गंधसंपणे नाममेगे णो वसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि गंधसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपणे णो गंधसंपणे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सोलसंपणे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे जो रूवसंपणे णो सीलसंपणे ॥ जाति-पदं ३६० चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- जातिसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपणे, कुलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपणे णो कुल संपण्णे || ३६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपणे, बलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे || ३६२. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- जातिसंपणे णाममेगे णो रुवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपणे णो रूवसंपणे ॥ ३९३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपणे. सुयसंपवणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपणे णो सुयसंपण्णे || ३४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- जातिसंपणे णाममेगे णो सील संपण्णे, सीलसपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपणे णो सीलसंपण्णे || ३६५ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णाममेगे णो चरित्तसंपणे, चरितसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि चरितसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो चरित्तसंपणे ● ॥ ० १. सं० पा० एवं जातीते य" जातीते य चरितेण य । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ ठाणं कुल-पदं ३६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे गाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णे वि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे ॥ ३६७. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ ३६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो सूयसंपण्णे, सुयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे गो सुयसंपण्णे ॥ ३९६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - कुलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सीलसंपण्णवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ॥ ४००. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--कुलसंपण्णे णाममेगे णो चरितसंपण्णे, चरित्तसंपणे णाममेगे जो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ° ।। बल-पदं ४०१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपणे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो वलसंपण्णे गो रूवसंपण्णे ।। ४०२. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- बलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपणे, सुयसंपण्णे णाममेगे णो वलसंपण्णे, एगे वलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपणे णो सुयसंपण्णे ।। ४०३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे गाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ।। ४०४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ॥ रूव-पदं ४०५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रूवसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे १. सं० पा०-एवं कुलेण य"चरित्तेण य । २. सं० पा०–एवं बलेण य"'चरितंण य । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देओ) सुयसंपण्णे गाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सुयसंपण्णे ।।। ४०६. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे जो रूवसंपण्णे णो सीलसंपण्णे । ४०७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ' ।। सुय-पदं ४०८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुयसंपण्णे णाममेगे जो सीलसंपणे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो सुयसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ॥ ४०६. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-सुथसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे. चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो सुयसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ° ॥ सील-पदं ४१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–सीलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्ण, एगे सीलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि. ॥ णो सीलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ॥ आयरिय-पदं ४११. चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा–आमलगमहुरे, मुद्दियामहुरे, खीरमहरे, खंडमहुरे। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-आमलगमहरफलसमाणे', 'मुद्दियामहुरफलसमाणे, खीरमहुरफलसमाणे °, खंडमहुरफलसमाणे ।। वेयावच्च-पदं ४१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा आतवेयावच्चकरे णाममेगे णो पर वेयावच्चकरे, परवेयावच्चकरे णाममेगे णो आतवेयावच्चकरे, एगे आतवेयावच्चकरेवि परवेयावच्चकरेवि, एगे णो आतवेयावच्चकरे णो परवेयावच्चकरे ।। १. सं० पा०-एवं रूवेण य.. चरित्तेण य । २. सं० पा०-एवं सुतेण य चरित्तेण य । ३. सं० पा०-आमलगमहरफलसमाणे जाव खंडमहुर° 1 ४. वेतावच्चकरे (क, ख, ग)। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ ठाणं ४१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-करेति णाममेगे वेयावच्चं णो पडिच्छइ, पडिच्छइ णाममेगे वेयावच्च णो करेति, एगे करेतिवि वेयावच्चं पडिच्छइवि, एगे णो करेति वेयावच्च णो पडिच्छइ॥ अटु-माण-पदं ४१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो अट्ठकरे, एगे अट्ठकरेवि माणकरेवि, एगे णो अट्टकरे णो माणकरे ।। ४१५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ाणटकरे गाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणटकरे, एगे गणट्टकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणट्ठकरे णो माणकरे ॥ ४१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसंगहकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणसंगहकरे, एगे गणसंगहकरेवि माणकरेवि, एगे गो गणसंगहकरे णो माणकरे । चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसोभकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणसोभकरे, एगे गणसोभकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणसोभकरे णो माणकरे ॥ ४१५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--गणसोहिकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणसोहिकरे, एगे गणसोहिकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणसोहिकरे णो माणकरे ! धम्म-पदं ४१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं णाममेगे जहति णो धम्म, धम्म णाममेगे जहति णो रूवं, एगे रूवंपि जहति धम्मंपि, एगे णो रूवं जहति णो धम्म। ४२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्म णाममेगे जहति णो गणसंठिति, गणसंठिति णाममेगे जहति णो धम्म, एगे धम्मवि जहति गणसंठितिवि, एगे णो धम्म जहति णो गणसंठिति ।। ४२१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पियधम्मे णाममेगे णो दढधम्मे, दढ धम्मे णाममेगे णो पियधम्मे, एगे पियधम्मेवि दढधम्मेवि, एगे णो पियधम्मे णो दढधम्मे॥ आयरिय-पदं ४२२. चत्तारि आयरिया पण्णता, तं जहा--पव्वावणारिए णाममेगे णो उवट्ठावणायरिए, उवट्ठावणायरिए गाममेगे णो पव्वावणायरिए, एगे १. पन्चायणा • (क्व)। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) ६४७ पवावणायरिएवि उवट्ठावणायरिए वि, एगे णो पव्वावणारिए णो उवट्ठावणायरिए-धम्मायरिए । ४२३. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा—उद्देसणायरिए णाममेगे णो वायणायरिए, वायणायरिए णाममेगे णो उद्देसणायरिए, एगे उद्देसणायरिएवि वायणायरिएवि, एगे णो उद्देसणायरिए णो वायणायरिए–धम्मायरिए । अंतेवासि-पदं ४२४. चत्तारि अंतेवासी पपणत्ता, तं जहा–पन्वावणंतेवासी गाममेगे णो उव ट्ठावणंतेवासी, उवट्ठावणंतेवासी णाममेगे णो पव्वावणंतेवासी, एगे पव्वावणंतेवासीवि उवट्ठावणंतेवासीवि, एगे णो पव्वावणंतेवासी णो उवट्ठावणंतेवासी धम्मतेवासी ।। ४२५. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तं जहा---उद्देसणंतेवासी णाममेगे णो वायणंतेवासी, बायणतेवासी णाममेगे णो उद्देसणंतेवासी, एगे उद्देसणंतेवासीवि वायणंतेवासीवि, एगे णो उद्देसणंतेवासी णो वायणंतेवासी-धम्मंतेवासी ।। महाकम्म-अप्पकम्म-णिग्गंथ-पदं ४२६. चत्तारि णिग्गंथा पण्णत्ता, तं जहा-- १. रातिणिए' समणे णिग्गंथे महाकम्मे महाकिरिए अणायावी असमिते धम्मस्स अणाराधए भवति । २. रातिणिए समणे णिग्गंथे अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिए धम्मस्स आराहए भवति। ३. ओमरातिणिए समणे णिग्गंथे महाकम्मे महाकिरिए अणातावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति । ४. ओमरातिणिए समणे णिग्गथे अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिते धम्मस्स आराहए भवति ।। महाकम्म-अप्पकम्म-णिम्गंथी-पदं ४२७. चत्तारि णिग्गंथीओ पण्णत्ताओ, तं जहा १. रातिणिया समणी णिग्गंथी "महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । २. रातिणिया समणी णिगंथी अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति । १. रातिणिते (क, ख, ग)। २. अणाराधते (क, ख, ग)। ३. • किरिते (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-एवं चेव । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ ठाण ३. ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । ४. ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी अप्पकम्मा अपकिरिया आतावी समिता धम्मस्स राहिया भवति ॥ o महाकम्म- अध्पकम्म- समणो वासग-पदं ४२८. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा १. राइणिए समणोवासए महाकम्मे "महाकिरिए अणायावी असमिते धम्मस्स अपराध भवति । २. राइणिए समणोवासए अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिए धम्मस्स आराहए भवति । ३. ओमराइणिए समणोवासए महाकम्मे महाकिरिए अणातावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति । ४. ओमराइणिए समणोवासए अप्पकम्मे अप्प किरिए आतावी समिते धम्मस्स आराहए भवति ॥ o महाकम्म- अप्पकम्म- समणोवासिया-पदं ४२६. चत्तारि समणोवासियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा १. राइणिया समणोवासिता महाकम्मा "महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । २. राइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति । ३. ओमराइणिया समणोवासिता महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । ४. ओमराइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस आराहिया भवति ॥ 0 समणो वासग पर्द ४३०. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा - अम्मापितिसमाणे, भातिसमाणे, मित्तसमाणे, सवत्तिसमाणे || ४३१. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा --अद्दागसमाणे, पडागसमाणे, खाणुसमाणे, खरकटयसमाणे ॥ १. सं० पा० तहेव । २. रायणिता (क) 1 ३. सं० पा०—तहेब चत्तारि गमा । ४. वरण्टसमाणे (वृपा ) 1 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (तइओ उद्देसी) ૬૪૨ ४३२. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स समणोवासगाणं सोघम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे चत्तारि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता ॥ अणवण्ण-देव-पदं ४३३. चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज' माणुसं लोगं हव्वमागच्छत्तए, णो चेवणं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा १. अणोववणे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोबवण्णे, से णं माणुस्सए कामभोगे णो आढाइ, णो परियाणाति, णो अट्ठ बंधइ, णो णियाणं परेति, णो ठितिपगप्पं पगरेति । २. अणोवणे देवे देवलोगेसु दिन्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अभोववणे, तस्स णं माणुस्सए पेमे वोच्छिष्णे दिव्वे संकते भवति । ३. अणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववणे, तस्स णं एवं भवति - इन्हि' गच्छं मुहुत्तेणं गच्छं, तेणं कालेणमप्पाउया मगुस्सा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति । ४. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिवेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे, तस्स णं माणुस्सए गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि' भवति, उड्ढपि यणं माणुस्सए गंधे जाव चत्तारि पंच जोयणसताई हव्वमागच्छति । इच्चेतेहि चहि ठाणेहिं अहुणोववणे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुस लोगं हव्वमागच्छत्तए, णो व णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए || ४३४. चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएस इच्छेज्ज माणुस लोगं हवमागच्छि तर, संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा -- O १. अणोववणे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते "अगिद्धे अगढिते अणज्भोववण्णे, तस्स णं एवं भवति -- अत्थि खलु मम माणुस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति गावच्छेदेति वा, जेसि पभावेणं मए इमा एताख्वा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती [ दिव्वे देवाणुभावे ? ] लद्धे पत्ते अभिसमण्णागते, तं गच्छामि णं ते भगवते वंदामि' 'णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं • पज्जुवासामि । २. अणोवणे देवे देवलोएसु' 'दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते १. इच्छेज्जा ( क, ख, ग ) 1 २. ताणं (क, ख, ग ) ३. इयहिं (ख) 1 ४. तावि (क, ख, ग ) । ५. सं० पा० - अमुच्छिते जाव अणज्भोववण्णे । ६. सं० पा० - वंदामि जाव पज्जुवासामि । ७. सं० पा० – देवलोएसु जाव अणज्झोववण्णे । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० ठाण अणज्झोववणे, तस्स णमेवं भवति-एस णं माणुस्सए भवे गाणीति वा तवस्सीति वा अइदुक्कर-दुक्करकारगे, तं गच्छामि णं ते भगवते वंदामि *णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि । ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु' 'दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते' अणज्झोववणे, तस्स णमेवं भवति–अस्थि णं मम माणुस्सए भवे माताति वा पियाति वा भायाति वा भगिणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा सुण्हाति वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतिय पाउन्भवामि, पासंतु ता में इममेतारूवं दिव्वं देविढि दिव्वं देवजुर्ति [दिव्वं देवाणुभावं ? ] लद्धं पत्तं अभिसमग्णागतं । ४. अहणोववणे देवे देवलोगेसु "दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते ° अणज्झोववष्णे, तस्स णमेवं भवति–अस्थि णं मम माणुस्सए भवे मित्तेति वा सहाति' वा सुहोति वा सहाएति वा संगइएति वा, तेसि च णं अम्हे अण्णमण्णस्स संगारे पडिसुते भवति--जो मे पुब्बि चयति से संबोहेतवे । इच्चेतेहि 'चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए ° संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।। अंध्यार-उज्जोयाइ-पदं ४३५. चहि ठाणेहिं लोगंधगारे सिया, तं जहा-अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणे हिं, अरहंतपण्णते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजेर वोच्छिज्जमाणे ॥ ४३६. चउहि ठाणेहि लोउज्जोते सिया, तं जहा--- अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणाहर,अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताण परिनिव्वाणमहिमासु ।। ४३७. १ चाहिं ठाणेहिं देवंधगारे सिया, तं जहा-अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुन्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे॥ १. सं० पा. ----वंदामि जाव पज्जुवासामि । ५. सहीएति (ख)। २. सं० पा०-देवलोएस जाव अणभोववष्णे। 8. ज (क)। ३. सं. पा.- माताति वा जाव सुहाति। १०. सं० पा० - इच्चेतेहिं जाव संचातेति । ४. तेसिमंतितं (क, ख, ग)। ११. लोगंधारे (क)। ५. इमे (ख, वृपा)। १२. जायतेते (ख)। ६. सं० पा०-देवलोगेसू जाव अणज्झोववणे। १३. पन्वतमाणेहिं (क)। ७. सहीति (ख, ग)। १४. सं० पा०-एवं देवंधगारे""देवकहकहते । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) ६५१ ४३८. चउहि ठाणेहिं देवुज्जोते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४३६. चउहि ठाणेहिं देवसण्णिवाते सिया, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४०. चउहि ठाणेहिं देवुक्कलिया' सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहतेहि पन्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४१. चउहि ठाणेहिं देवकहकहए सिया, तं जहा–अरहतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाण महिमासु.॥ ४४२. चउहि ठाणेहि देविदा माणुसं लोग हब्वमागच्छंति', 'तं जहा—अरहतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु॥ ४४३. एवं सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अग्गमहिसीओ देवीओ, परिसोववण्णगा देवा, अणियाहिवई देवा, आय रक्खा देवा माणसं लोगं हव्वमागच्छंति, तं जहा-अरहतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४४. चउहि ठाणेहिं देवा अब्भुद्धिज्जा, तं जहा -अरहतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४५. चउहि ठाणेहिं देवाणं आसणाई चलेज्जा, तं जहा - अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु ॥ ४४६. चउहिं ठाणेहिं देवा सीहणायं करेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाण महिमासु ॥ ४४७. चउहि ठाणेहिं देवा चेलुक्खेवं करेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाण महिमासु ॥ ४४८. चउहि ठाणेहिं देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु ॥ .."जायमाणेहिं जाव अरहंताणं''महिमासु । १. देवुक्कलिताते (क)। २. सं० पा०-एवं जहा तिठाणे जाव लोगंतिता Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ ठाणं ४४६. चउहि ठाणेहिं लोगंतिया देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं जहाअरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ॥ दुहसेज्जा-पदं ४५० चत्तारि दुहसेज्जाओ पण्णत्ताओ, तं जहा १. तत्थ खलु इमा पढमा दुहसेज्जा - से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ' अणगारिय पव्वइए णिग्गंथे पावणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएइ, णिग्गंथं पावयणं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे मणं उच्चावयं णियच्छति, विणिघात मावज्जति - पढमा दुहसेज्जा ! २. अहावरा दोच्चा दुहसेज्जा से णं मुडे भवित्ता अगाराओ' 'अणगारियं • पव्वइएसएण लाभेणं णो तुस्सति परस्स लाभमासाएति पीहेति पत्थेति अभिलसति, परस्स लाभमासाएमाणे "पीहेमाणे पत्थेमाणे अभिलसमाणे मणं उच्चावयं णिच्छर, विणिघात मावज्जति - दोच्चा दुहसेज्जा । ३. अहावरा तच्चा दुहसेज्जा से णं मुंडे भवित्ता' अगाराओ अणगारिय पइए दिव्वे माणुस्सर कामभोगे आसाएइ' "पीहेति पत्येति अभिलसति, दिव्वे माणुस्सर कामभोगे आसाएमाणे' 'पीहेमाणे पत्येमाणे • अभिलसमाणे मणं उच्चावयं नियच्छति, विणिघात मावज्जति -- तच्चा दुहसेज्जा । ४. अहावरा चउत्था दुहसेज्जा--से णं मुंडे' भवित्ता अगाराओ अणगारियं • पव्वइए, तस्स णं एवं भवति - जया णं अहमगारवासमावसामि तदा महं संवाहण परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाई लभामि, जम्पभिदं च गं अहं मुंडे" "भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तप्पभिदं च णं अहं संवाहण" "परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाई णो लभामि । से णं संवाहण "परिमद्दण-गातब्भंग • गातुच्छोलणाई आसाएति पीहेति पत्थेति अभिलसति, o ܘ ० o १. तंतस्थ (क, ख, ग ) । २. आगारातो ( क ग ) । ८. सं० पा० आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे । 8. सं० पा०-- मुंडे जाव पव्वइए (तिते ) । १०. सं० पा० - मुंडे जाव पव्वइए (तिते ) । ११. सं० पा०-संवाहण जाव गातु । ३. अपतिएमाणे ( ख ) । ४. सं० पा० - अगारातो जाव पव्वतिते । ५. सं० पा०-- आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे । १२. सं० पा०-संवाहण जाव गातु । ६. सं० पा०-- भवित्ता जाव पब्वइए । १३. सं० पा०-- आसएति जाव अभिलसति । ७. सं० पा० - आसाएइ जाव अभिलसति । 0 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) सेणं संवाहण-परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलाणाई आसाएमाणे' "पीहेमाणे पत्येमाणे अभिलसमाणे मणं उच्चावयं णियच्छति, विणिघात मावज्जतिउत्था दुहसेज्जा || सुहसेज्जा-पदं ४५१ चत्तारि सुहसेज्जाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. तत्थ खलु इमा पढमा सुहसेज्जा - से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइए णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिते णिक्कंखिते णिव्वितिगिच्छिए णो भेदसमावणे णो कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं सद्दहइ पत्तियइ' रोएति, णिग्ग्रंथं पावयणं सद्दहमाणे पत्तियमाणे रोएमाणे णो मणं उच्चावयं नियच्छति, णो विणिघात मावज्जति -- पढमा सुहसेज्जा । o o २. अहावरा दोच्चा सुहसेज्जा से णं मुंडे' भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइए सएणं लाभेणं तुस्सति परस्स लाभं णो आसाएति णो पोहेति णो पत्येति णो अभिलसति परस्स लाभमणासाएमाणे' 'अपीहेमाणे अपत्येमाणे अभिसमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघात मावज्जतिदोच्चा सुहसेज्जा ! ३. अहावरा तच्चा सुहसेज्जा से णं मुंडे' भवित्ता अगाराओ अणगारियं • ose दिव्यमाणुस्सर कामभोगे णो आसाएति' णो पीहेति णो पत्येति णो अभिलसति दिव्वमाणुस्सर कामभोगे अणसामाणे' 'अपीहेमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघात मावज्जति---तच्चा सुहसेज्जा । 3 ४. सं० पा०- १. सं० पा०-संवाहण जाव गातु । २. सं० पा०-- आस । एमाणे जाव मणं । ३. पती ( ख ) । - मुंडे जाव पव्वतिते । ६५३ ४. अहावरा चउत्था सुहसेज्जा-से गं मुंडे" भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइए, तस्स णं एवं भवति -- जइ ताव अरहंता भगवंतो हट्ठा अरोगा बलिया कल्लसरीरा अण्णयराई ओरालाई कल्लाणाई विउलाई पयताई परहिताई महाणुभागाई कम्मक्खयकरणारं तवोकम्माई पडिवज्जंति, किमंग पुण अहं tortaraaaaaमियं वेयणं णो सम्मं सहामि खमामि तितिक्खेमि अहियासेमि ? ५. सतेणं (क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - अणासाएमाणे जाव अणभिलस- १० सं० पा० - मुंडे जाव पव्वतिते । माणे o ७. सं० पा० - मुंडे जाव पव्वइए । ८. सं० पा० णो आसाएति जाव णो अभिलसति । ६. सं० पा०-- अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ममं च णं अब्भोवगमिओवक्कमियं [वेयणं?] सम्ममसहमाणस्स अक्खममाणस्स अतितिखेमाणस्स अणहियासेमाणस्स कि मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जति ।। ममं च णं अब्भोवगमिओ"वक्कमियं [वेयणं ? ] ० सम्म सहमाणस्स 'खममाणस्स तितिक्खेमाणस्स ° अहियासेमाणस्स किं मण्णे कज्जति ? एगतसो मे णिज्जरा कज्जति -चउत्था सुहसेज्जा !! अवायणिज्ज-वाणिज्ज-पदं ४५२. चत्तारि अवायणिज्जा पण्णता, तं जहा-अविणीए, विगइपडिबद्धे', अवि ओसवितपाहुडे, माई ।। ४५३. चत्तारि वाणिज्जा' पण्णत्ता, तं जहा –विणोते, अविगतिपडिवद्धे', विओ सवितपाहुडे', अमाई ॥ आय-पर-पदं ४५४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-आतंभरे गाममेगे णो परंभरे, परंभरे ___णाममेगे णो आतंभरे, एगे आतंभरेवि परंभरेवि, एगे णो आतंभरे णो परंभरे। दुग्गत-सुग्गत-पदं ४५५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--दुग्गए णाममेगे दुग्गए, दुग्गए णाममेगे सुभगए, सुग्गए णाममंगे दुग्गर, सुग्गए णाममेगे सुग्गए।।। ४५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए णाममेगे दुव्वए, दुग्गए णामभेगे सुव्वए, सुग्गए णाममेगे दुव्वए, सुग्गए णाममेगे सुव्वए। ४५७. चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दग्गए णाममेगे दुप्पडिताणदे, दग्गए णाममेगे सुप्पडिताणंदे, सुग्गए णाममेगे दुप्पडिताणंदे, सुग्गए णाममेगे सुप्पडिताणंदे ।। ४५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, दुग्गए णाममेगे सुग्गतिगामी, सुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, सुग्गए णाममेगे सुरगतिगामी।। ४५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए गाममेगे दुग्गति गते, दुग्गए णाममेगे सुग्गतिं गते, सुग्गए णाममेगे दुग्गति गते, सुग्गए णाममेगे सुग्गति गते ।। १. सं० पा०-अब्भोवगमिओ जाव सम्म । २. सं० पा०-सहमाणस्स जाव अहियासे- माणस्स। ३. वीए ° (क); वीई ° (ख, ग)। ४. वातणिज्जा (क)। ५. अविती (क, ख, ग)। ६. वितोसवित° (क)। १७. अमाती (क, ख, ग)। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) तम- जोति-पदं ४६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - तमे णाममेगे तमे, तमे णाममेगे जोती, जोती णाममेगे तमे, जोती णाममेगे जोती ॥ ४६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - तमे णाममेगे तमबले, तमे णाममेगे जोतिबले, जोती णाममेगे तमबले, जोती णाममेगे जोतिबले || तम ४६२ . चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - तमे णाममेगे तमबलपलज्जणे', णाममेगे जोतिबलपलज्जणे, जोती णाममेगे तमवलपलज्जणे, जोतो णाममेगे जोतिबलपलज्जणे || परिण्णात अपरिण्णात-पदं ४६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - परिण्णातकम्मे णाममेगं णो परिण्णातसणे. परिण्णातसणे णाममेगे णो परिष्णातकम्मे, एगे परिण्णातकम्मेवि परिणात सवि, एगे जो परिण्णातकम्मे णो परिण्णातसण्णे || ४६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- परिण्णातकम्मे णाममंगे जो परिण्णातगिहावासे, परिणातगिहावासे णाममेगे णो परिण्णातकम्मे, एगे परिण्णात कम्मेवि परिण्णातगिहावासेवि, एगे णो परिण्णात कम्मे णो परिण्णातगिहावासे ॥ ४६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता', तं जहा - परिणात सण्णे णाममेगे णो परिण्णातगिहावासे, परिण्णातगिहावासे णाममंगे णो परिण्णातसणे, एगे परिण्णातसण्णेवि परिण्णातगिहावासेवि, एगे णो परिण्णातसणे णो परिण्णातगिहावासे ।। इत्थ-परत्थ-पदं ६५५ ४६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - इहत्थे णाममेगे णो परत्थे, परत्थे णाममंगे जो इहत्थे, एगे इहत्येवि परत्येवि, एगे जो इहत्थे णो परत्थे || हाणि वुड्डि-पदं ४६७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - एगेणं णाममेगे वढति एगेणं हायति, एगेण णाममेगे वढति दोहि हायति, दोहिं णाममेगे बढति एगेण हायति, दोहि मेगे वढति दोहि हायति ॥ आइण्ण- खलुंक-पदं ४६८. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा - आइण्णे णाममेगे आइण्णे, आइण्णे णाममेगे खलुके, खलुंके णाममेगे आइण्णे, खलुंके णाममेगे खलुंके । १. ० पज्जलणे ( क, ख, ग, वृपा) । २. पथका (क); कंथका (वृपा ) 1 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आइण्णे णाममेगे आइण्णे, "आइण्णे णाममेगे खलुके, खलुके णाममेगे आइण्णे, खलुके णाममेगे खलंके ॥ ४६६. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा---आइण्णे णाममेगे आइण्णताए वहति, आइण्णे णाममेगे खलुंकताए' वहति, खलुंके गाममेगे आइण्णताए वहति, खलुंके णाममगे खलुंकताए वहति । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा –आइपणे णाममेगे आइण्णताए वहति, आइण्णे णाममेगे खलुंकताए वहति, खलुके णाममेगे आइण्णताए वहति, खलुंके णाममेगे खलुंकताए वहति ।। जाति-पदं ४७०. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा---जातिसंपण्णे गाममेग णो कुलसंपण्णे, कुल संपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे ।। चत्तारि पकथगा पण्णत्ता. तं जहा --जातिसंपण्णे णाममेगे जो बलसंपण्णे. बलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, वलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे ।। ४७२. चतारि[प ? ] कंथगा पण्णत्ता, तं जहा--जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्ण, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्ण, रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णे वि रूव संपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ ४७३. चत्तारि[प?कंथगा पण्णत्ता, तं जहा--जातिसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपणे, जयसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एग जातिसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो जयसंपण्णे। १. सं० पा० --चउभंगो। २. विहरति (क, ख, ग, वृपा)। ३. खलुंकत्ताए (क, ग)। ४. कंथका (ख, वृपा)। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५७ चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो जयसंपण्णे ॥ कुल-पदं ४७४. "चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपणे णाममंगे णो कुलसंपणे, एगे कुलसंपण्णेवि वलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो वलसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्या णाममेगे णो कुलसंपणे, एगे कुलसंपण्णेवि वलसंपग्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो वलसंपण्णे ।। ४७५. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा--कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—कुलसंपण्णे णाम मेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि स्वसंपण्णेवि एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ।। ४७६. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपणे ° ।। बल-पदं ४७७. "चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममगे णो रूवसंपण्णे, रूव संपण्णे णाममंग णो बलसंपण्णं, एगे वलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो, बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- बलसंपण्णे णाममे गे णो रूवसंपणे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे वलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ।। १. सं. पा.--एवं कुल संपण्णेण य.... 'जय- २. सं० पा० --एवं बलसंपणेण य... पुरिससंपण्णेण य । जाया पडिवक्खो। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ ठाणं ४७८. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा - बलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपणे णाममेगे जो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपणे णो जयसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - बलसंपणे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपणे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो वलसंपणे णो जयसंपण्णे' ° 11 रूव-पदं ४७९. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा - रूवसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपणे, जयसंपणे णाममेगे णो वसपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे जो रूवसंपणे णो जयसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपणे णाममेगे णो जयसंपणे, जयसंपणे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपणेवि, एमे णो ख्वसंपणे णो जयसंपण्णे ।। सोह-सियाल-पदं ४८०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सीहत्ताए णाममेगे णिक्खते सीहत्ताए विहरइ, सीहत्ताए णाममेगे णिक्खते सीयालत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममेग क्खिते सीहत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममंगे णिक्खते सीयालत्ताए विहरइ ॥ सम-पदं ४८१. चत्तारि लोगे समा पण्णत्ता, तं जहा -- अपइट्ठाणे गरए, जंबुद्दीवे दोवे, पालए जाणविमाणे, सव्वसिद्धे महाविमाणे || ४८२. चत्तारि लोगे समा सपक्व सपडिदिसि पण्णत्ता, तं जहा- सीमंतए परए, समयक्खेत्ते, उडुविमाणे, इसीप भारा पुढवी ॥ बिसरीर-पदं ४८३. उडलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा ॥ ४८४. अहोलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, तं जहा - "पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा ॥ ४८५. तिरियलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, तं जहा- पुढविकाइया, आउकाइया. वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा ॥ १. सं० पा०-- एवं चेव एवं तिरियलोए वि । Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो) सत्त-पदं ४८६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाहिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसते || बडिमा-पदं ४८७. चत्तारि सेज्जपडिमाओ पण्णत्ताओ || ४८५ चत्तारि वत्थपडिमाओ पण्णत्ताओ ॥ ४८६. चत्तारि पायपडिमाओ पण्णत्ताओ || ४६०. चत्तारि ठाणपडिमाओ पण्णत्ताओ || सरीर-पदं ४६१. चत्तारि सरीरंगा जीवफुडा पण्णत्ता, तं जहा वेउव्विए, आहारए, तेयए, कम्मए ॥ ४६२. चत्तारि सरीरमा कम्मुम्मीसगा पण्णत्ता, तं जहा -ओरालिए, वेउत्रिए, आहारए', तेय' || फुड- पदं ४९३. चउहि अत्थिकाएहिं लोगे फुडे पण्णत्ते, तं जहा - धम्मत्थिकाएणं, अधम्मत्थिकाएणं, जीवत्थिकाएणं, पुग्गलत्थिकारणं ॥ ४६४. चउहिं बादरका एहि उववज्जमाणेहिं लोगे फुडे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइ - एहि, आउकाइएहि, वाउकाइएहि, वणस्सइकाइएहिं ॥ ६५६ तुल्ल-पदं ४६५. चत्तारि पएसग्गेणं तुल्ला पण्णत्ता, तं जहा -- धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, लोगागासे, एगजीवे ॥ सुप ४६६. चउण्हमेगं सरीरं णो सुपस्सं भवइ, तं जहा - पुढविकाइयाणं, आउकाइयाणं, काइयाणं, वणस्सइकाइयाणं ॥ इंदियत्थ-पदं ४९७ चत्तारि इंदियत्था पुट्ठा वेदेति, तं जहा- सोइंदियत्ये, घाणिदियत्थे, जिब्भिदियत्थे, फासिंदियत्थे ॥ १. कम्ममीसगा ( ख ) । २. आहारते ( क, ख, ग ) । ३. तेतते (क, ख, ग ) ४. ० काते हि (क, ख, ग ) । ५. पस्सं ( वृ) : सुपस्सं (वृपा ) | Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० ठाणं अलोग-अगमण-पदं ४६८. चरहिं ठाणेहि जीवा य पोग्गला य णो संचाएंति बहिया लोगंता गमणयाए, तं जहा—गतिअभावेणं, णिरुवग्गयाए, लुक्खताए, लोगाणुभावेणं ।। णात-पदं ४६६. चउव्विहे गाते पण्णत्ते, तं जहा-आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवणए।। ५००. आहरणे चउविहे पण्णते, तं जहा—अवाए, उवाए, ठवणाकम्मे, पडुप्पण्ण विणासी ।। ५०१. आहरणतईसे चउब्विहे पणत्ते, तं जहा --अणुसिट्ठी', उवालंभे, पुच्छा, णिस्सा क्यणे ॥ ५०२. आहरणतद्दोसे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवणीते, दुरुवणीते ॥ ५०३. उवण्णासोवणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--तव्वत्थुते, तदण्णवत्थुते, पडिणिभे, हेतू ॥ हेउ-पदं ५०४. हेऊ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-जावए, थावए, वंसए, लूसए । अहवा-हेऊ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, आगमे । अहवा-हेऊ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अत्थित्तं अत्थि सो हेऊ, अत्थित्तं णत्थि सो हेऊ, णत्थित्तं अस्थि सो हेऊ, पत्थित्तं पत्थि सो हेऊ ॥ संखाण-पदं ५०५. चउब्विहे संखाणे पण्णत्ते, तं जहा–परिकम्म', ववहारे, रज्जू, रासी।। अंधगार-उज्जोय-पदं ५०६. अहोलोगे णं चत्तारि अंधगारं करेंति, तं जहा–णरगा, णेरइया, 'पावाई कम्माई", असुभा पोग्गला ।। ५०७. तिरियलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेंति, तं जहा-चंदा, सूरा, मणी, जोती ।। ५०८. उड्डलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेंति, तं जहा–देवा, देवीओ, विनाणा, आभरणा ॥ ३. पाव-कम्माई (क, ग)। १. अणुसट्टे (क, ग)। २. पडिकम्म (क, ख, ग) ! Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६१ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) चउत्थो उद्देसो पसप्पग-पदं ५०६. चत्तारि पसप्पगा पण्णत्ता, तं जहा--अणुप्पण्णाणं भोगाणं उप्पाएत्ता' एगे पसप्पए, पुवप्पण्णाणं भोगाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए, अणुप्पण्णाणं सोक्खाणं उप्पाइत्ता एगे पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं सोक्खाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए॥ आहार-पदं ५१०. रइयाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा- इंगालोवमे, मुम्मुरोबमे, सीतले, हिमसीतले ॥ ५११. तिरिक्खजोणियाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-ककोवमे, बिलोवमे, पाणमंसोवमे, पुत्तमंसोवमे । ५१२. मणुस्साणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा- असणे, पाणे, खाइमे, साइमे ।। ५१३. देवाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा --वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते।। आसीविस-पदं चत्तारि जातिआसीविसा पण्णत्ता, तं जहा---विच्छ्यजातिआसीविसे', मंडुवकजातिआसीविसे, उरगजातिआसीविसे, मणुस्स जातिआसीविसे । विच्छ्यजातिआसीविसस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णते ? पभू णं विच्छ्यजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणयं' विसट्टमाणि करित्तए। विसए से विसट्टताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा। मंडुवकजातिआसीविसस्स *णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोदि विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणि "करित्तए। विसए से विसट्ठताए, णो चेव गं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा° करिस्संति वा । उरगजाति' 'आसीविसस्स णं भंते ! केवइए विसर पण्णत्ते ? पभू णं उरगजातिआसीविसे जंबुद्दीवपमाणमेत्तं बोंदि विसेणं "विसपरिणयं १. उप्पायत्ता (क, ग)। ५. सं.पा.-मंदुक्कजातिआसीविसस्स पुच्छा। २. जातीयासीविसे (क, ख, ग) सर्वत्र । ६. सं० पा०-सेसं तं चेव जाव करिस्संति । ३. विसपरिगयं (वृपा)। ७. सं० पा.---उरगजाति पुच्छा । ४. इह चैकवचनप्रक्रमेऽपि बहवचननिर्देशो वृश्चि- ८. सं० पा०-सेसं तं चेव जाव करिस्सति । काशीविषाणां बहुत्वज्ञापनार्थम् (वृ)। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण विसट्टमाणि करित्तए । विसए से विसट्टताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा । मणस्सजाति आसीविस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ° ? पभू णं मणुस्सजातिआसीविसे समयखेत्तपमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणतं विसट्टमागि करेत्तए। विसए से विसट्ठताए, णो चेव णं' 'संपत्तीए करेंसु वा करेति वा ° करिस्संति वा ।। वाहि-तिगिच्छा-पदं ५१५. चउन्विहे वाही पण्णत्ते, तं जहा-वातिए, पित्तिए, सिभिए, सण्णिवातिए । ५१६. चउव्विहा तिगिच्छा पण्णत्ता, तं जहा-विज्जो, ओसधाई, आउरे, परियारए। ५१७. चत्तारि तिगिच्छगा पण्णत्ता, तं जहा-आततिगिच्छए णाममेगे णो पर तिगिच्छए, परतिगिच्छए णाममेगे णो आततिगिच्छए, एगे आततिगिच्छएवि परतिगिच्छएवि, एगे णो आततिगिच्छए णो परतिगिच्छए । वणकर-पदं ५१८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वणकरे णाममेगे णो वणपरिमासी, वणपरिमासी णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणपरिमासीवि, एगे णो वणकरे णो वणपरिमासी ॥ ५१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वणकरे णाममेगे णो वणसारक्खी, वणसारक्खी गाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसारक्खीवि, एगे णो वणकरे णो वणसारक्खी ।। ५२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वणकरे णाममेगे णो वणसरोही' वणसरोही णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसरोहीवि, एगे णो वण करे णो वणसरोही। अंतोबाहि-पदं ५२१. चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा-अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अंतोसल्ले गाममेगे णो ३. °सारोठी (ग)। - १. मं० पा०-मणुस्सजाति पुच्छा। २. सं० पा०-णो चेव णं जाव करिस्संति । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ६६३ बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि वाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले ।। ५२२. चत्तारि वणा पण्णता, तं जहा-अंतोदुढे णाममेगे णो बाहिंढे, बाहिंदुटे णाममेगे णो अंतोदुटे, एगे अंतोदुद्वेवि बाहिंदुहृवि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिदुटे । एवामेव चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अंतोद णाममेगे णो बाहिदुद्वे, बाहिंदुढे गाममेगे णो अंतोदुढे, एगे अंतोदुद्वेवि बाहिंदुद्वेवि, एगे णो अंतो दुढे णो बाहिंदुद्वे ।। सेयंस-पास-पदं ५२३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसे, सेयंसे णाममेगे पावंसे, पावसे णाममेगे सेयंसे, पावसे णाममेगे पावसे ।। ५२४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, सेयंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए, पावसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, पावंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए । ५२५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्ति मण्णति, सेयंसे णाममेगे पावंसेत्ति मण्णति, पावंसे णाममेगे सेयंसेत्ति मण्णति, पावंसे णाममेगे पावंसेत्ति मण्णति ॥ ५२६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए मण्णति, सेयंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए मण्णति, पावसे णाममेगे सेयंसेत्ति सालिसए मण्णति, पावंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए मण्णति ।। आघवण-पदं ५२७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता णाममेगे णो पविभावइत्ता', पविभावइत्ता णाममेगे णो आधवइत्ता, एगे आघवइत्तावि पविभावइत्तावि, एगे णो आघवइत्ता णो पविभावइत्ता ।। ५२८ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता णाममेगे जो उंछजोवि__ संपण्णे, उंछजोविसंपण्णे गाममेगे णो आघव इत्ता, एगे आघवइत्तावि उंछजीवि संपण्णेवि, एगे णो आघवइत्ता णो उंछजीविसंपण्णे ।। रुक्खविगुव्वणा-पदं ५२६. चउन्विहा रुक्खविगुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा-पवालत्ताए, पत्तत्ताए', पुप्फत्ताए, फलत्ताए । १. परि ° (ग)। २. पण्णत्ताए (क, ख, ग) । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ वादिसमोसरण-पदं ५३०. चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा - किरियावादी, अकिरियावादी, अण्णाणियावादी, वेणइयावादी ॥ ५३१. णेरइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा - किरियावादी', 'अकिरियावादी, अण्णाणियावादी वेणइयावादी || ५३२. एवमसुरकुमाराणवि जाव' थणियकुमाराणं । एवं - विगलिदियवज्जं जाव' माणियाणं ॥ . मेह-पदं ५३३. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा - गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे जो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो वासित्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - राज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे णो गज्जित्ता जो वासित्ता || ५३४. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा - गज्जिता णाममेगे जो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे जो गज्जित्ता गो विज्जुयाइत्ता | ठाणं एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- गज्जित्ता णाममेगे जो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि विज्जुयातावि, एगे जो गज्जित्ता णो विज्जुयाइत्ता ॥ ५३५. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा - वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो वासिता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे जो वासित्ताणो विज्जुयाइत्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो वासित्ता णो विज्जुयाइत्ता ॥ ५३६. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा - कालवासी णाममेगे णो अकालवासी, अकालवासी णाममेगे जो कालवासी, एगे कालवासीवि अकालवासीवि, एगे गो कालवासी गो अकालवासी । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा – कालवासी णाममेगे णो १. सं० पा० २. ठा० १११४३-१५० । किरियावादी जाव वेणइयावादी । ३. ठा० १।१६० १६३ । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) अकालवासी, अकालवासी गाममेगे णो कालवासी, एगे कालवासीवि अकाल वासीवि, एगे गो कालवासी णो अकालवासी ।। ५३७. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-खेत्तवासी गाममेगे णो अखेत्तवासी, अखेत्त वासी णाममंगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि, एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेत्तवासी णाममेगे जो अखेत्तवासी, अखे त्तवासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि, एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी ।। अम्म-पियर-पदं ५३८. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा--जणइत्ता णाममेगे णो जिम्मवइत्ता, णिम्म वइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे णो जणइत्ता णो णिम्मवइत्ता। एवामेव चत्तारि अम्मपियरो पण्णत्ता, तं जहा-जणइत्ता णाममेगे णो हिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे णो जण इत्ता णो णिम्मवइत्ता ।। राय-पद ५३६. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-देसवासी णाममेगे णो सव्ववासी, सव्ववासी णाममेगे णो देसवासी, एगे देसवासीवि सव्ववासीवि, एगे णो देसवासी णो सब्दवासी। एवामेव चत्तारि रायाणो पण्णत्ता, तं जहा-देसाधिवती णाममेगे णो सव्वाधिवती, सव्वाधिवती णाममेगे णो देसाधिवती, एगे देसाधिवतीवि सव्वाधिवतीवि, एगे णो देसाधिवती णो सव्वाधिवती ॥ मेह-पदं ५४०. चत्तारि मेहा पण्णता, तं जहा-पुक्खलसंवट्टते, पज्जुण्णे', जीमूते, जिम्मे' । पुक्खलसंवट्टए णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवाससहस्साई भावेति । पज्जुण्णे णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवाससयाई भावेति ! जीमूते णं महामेहे एगेणं वासेणं १. खेत्तावासी (ख)। 'पज्जण्ण' शब्दस्य 'पज्जुण्ण' इति न जातम् ? २. प्राप्तादशेषु सर्वत्रापि 'पज्जुण्णे' इति पाठो किन्तु अत्र मेघस्य विशिष्टप्रकारा निर्दिष्टाः लभ्यते । भगवत्या (१४१२१) सामान्यमेघाथ सन्ति, तेन 'पज्जुण्ण' इति पाठो पिनासंभवी। 'पज्जणे' इति पाठो विद्यते । तमनुसृत्या- ३. जिम्हे (क्व)। श्रापि संदेहो जायते, क्वचित् लिपिदोषेण Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं दसवासाइं भावेति । जिम्मे णं महामेहे बहूहि वासेहिं एगं वासं भावेति वा ण वा भावेति ।। आयरिय-पदं ५४१. चत्तारि करंडगा पण्णत्ता, तं जहा–सोवागकरंडए, वेसियाकरंडए, गाहावति करंडए, रायकरंडए। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा--सोवागकरंडगसमाणे, वेसियाकर डगसमाणे, गाहावतिकरंडगसमाणे, रायकरंडगसमाणे ॥ ५४२. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए । ५४३. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-साले गाममेगे सालपरिवारे, साले णाममेगे एरंडपरिवारे. एरंडे णाममेगे सालपरिवारे, एरंडे णाममेगे एरंडपरिवारे।। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरिवारे, साले णाममेगे एरंडपरिवारे, एरंडे णाममेगे सालपरिवारे, एरंडे णाममेगे एरंडपरिवारे। संगहणी-गाहा सालदुममज्झयारे, जह साले णाम होइ दुमराया। इय सुंदरआयरिए, सुंदरसीसे मुणयध्वे ॥१॥ एरंडमझयारे, जह साले णाम होइ दुमराया। इय सुंदरआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ॥२॥ सालदुममझयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया। इय मंगुलआयरिए, सुंदरसीसे मुणेयब्वे ॥३॥ एरंडमझयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया। इय मंगुलआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ।।४।। भिक्खाग-पदं ५४४. चत्तारि मच्छा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मज्झचारी। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मज्झचारी॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं ठाणं (उत्थो उद्देसो) गोल-पदं ५४५. चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा -- मधु सित्थगोले, जउगोले, दारुगोले, मट्टियागोले । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जउगोलसमाणे, दारुगोलसमाणे, मट्टियागोलसमाणे ॥ ५४६. चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा - अयगोले, तउगोले, तंबगोले, सीसगोले । एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अयगोलसमाणे', 'तउगोलसमाणे, तंबगोल समाणे, सीसगोलसमाणे ॥ ५४७. चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा - हिरण्णगोले, सुवण्णगोले, रयणगोले, वयरगोले । ६६७ जहा -- मधुसित्थगोलसमाणे, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - हिरण्णगोलसमाणे', • सुवण्णगोलसमाणे, रयणगोलसमाणे, वयरगोलसमाने ॥ पत्त-पदं ५४८. चत्तारि पत्ता पण्णत्ता, तं जहा - असिपत्ते, करपत्ते, खुरपत्ते, कलंबचीरियापत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - असिपत्तसमाणे', 'करपत्तसमाणे, खुरपत्तसमाणे, कलंबचीरियापत्तसमाणे || कड-पदं ५४६. चत्तारि कडा पण्णत्ता, तं जहा - सुबकडे, ' विदलकडे, चम्मकडे, कंबलकडे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुबकडसमाणे', "विदलकडसमाणे, चम्मकडसमाणे, • कंबलकडसमाणे || तिरिय-पदं ५५०. चउव्विहा चउप्पया पण्णत्ता, तं जहा - एगखुरा, दुखुरा, गंडीपदा, सणप्फया ॥ ५५१. चउव्विहा पक्खी पण्णत्ता, तं जहा - चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी, विततपक्खी ॥ १. सं० पा० - अयगोलसमाणे जाव सीसगोल | २. सं० पा०-- हिरण्णगोलसमाणे जाव वइरगोल । ३. सं० पा०- असिपत्तसमाणे जाव कलंब ५५२. चउब्विहा खुड्डपाणा पण्णत्ता, तं जहा - बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोगिया ॥ चीरिता । ४. सुंठकडे ( क, ख, ग ) । ५. सं० पा० - सुंबक इसमाणे जाव कंबलकड ६. सणप्पदा ( क ) ; सणपदा ( ग ) | Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं भिक्खाग-पदं ५५३. चत्तारि पक्खी पण्णत्ता, तं जहा-णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता ।। णिक्कट्ठ-अणिक्कट्ठ-पदं ५५४. चतारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--णिक्कटे णाममेगे णिक्कटे, णिक्कटे णाममेगे अणिक्कटे, अणिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कटे, अणिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कटे || ५५५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --णिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्टप्पा, णिक्कट्रे णाममेगे अणिक्कट्टप्पा, अणिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्ठप्पा, अणिक्कट्ठ णाममेगे अणिक्कट्ठप्पा ।। बुध-अबुध-पदं ५५६. गत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बुहे णाममेगे बुहे, बुहे णाममेगे अबुहे, अबुहे णाममेगे बुहे, अबुहे णाममेगे अबुहे ।। ५५७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--बुधे णाममेगे बुधहियए', बुधे णाममेगे अबुधहियए, अबुधे णाममेगे बुधहियए, अबुधे णाममेगे अबुधहियए । अणुकंपग-पदं ५५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आयाणुकंपए णाममेगे णो पराणुकंपए, पराणुकपए णाममेगे णो आयाणुकंपए, एगे आयाणुकंपएवि पराणुकंपएवि, एगे णो आयाणुकंपए णो पराणुकंपए। संवास-पदं ५५६. चउविहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-दिव्वे, आसुरे, रक्खसे, माणुसे ।। ५६०. चउव्विहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, देवे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६१. चउम्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, १. बुहबोहिए (ख)। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) देवे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६२. चउव्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा--देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, देवे णाममेगे मणुस्सीए' सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६३. चउम्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे रक्खसोए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६४. चविधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति ।। ५६५. चउन्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममंग मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति, मणस्से णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, भणुस्से गाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ अवद्धंस-पदं ५६६. चउबिहे अवद्धसे पण्णत्ते, तं जहा--आसरे, आभिओगे', संमोहे, देवकिब्बिसे ।। ५६७. चउहि ठाणेहिं जीवा आसुरत्ताए कम्म पगरेंति, तं जहा-कोवसीलताए', पाहुडसीलताए, संसत्ततवोकम्मेणं णिमित्ताजीवयाए। ५६८. चउहि ठाणेहिं जीवा आभिओगत्ताए कम्म पगरेति, तं जहा–अत्तुक्कोसेणं, परपरिवाएणं, भूतिकम्मेणं, कोउयकरणेणं ॥ ५६६. चउहि ठाणेहिं जीवा सम्मोहत्ताए कम्म पगरेति, तं जहा—उम्मग्गदेसणाए, मग्गंतराएणं, कामासंसपओगेणं, भिज्जाणियाणकरणेणं ।। ५७०. चहि ठाणेहिं जीवा देवकिदिवसियत्ताए कम्म पगरेति, तं जहा~-अरहंताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणमवणं वदगाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वदमाणे ।। १. मणुस्सीहिं देवीहिं मणुस्सीहि-एषु बहुवचनं दृश्यते । लिपिदोषेण जातमिति संभाव्यते । एकस्मिन् २. अभिओगे (क, ख, घ)। आदर्श 'मणुस्सीइ' इति लभ्यते । एकारस्य ३. क्रोध° (ख); क्रोधन ()। स्थाने इकारो जातः, तत् स्थाने च 'हि' इति ४. ०जीवाते (ग)। जातम् । पूर्वापरसूत्रेषु सर्वत्र एकवचनमेव Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पव्वज्जा-पदं ५७१. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा, दुहतोलगपडिबद्धा, अप्पडिबद्धा ! ५७२. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - पुरओपडिबद्धा, मग्गओपडिबद्धा, genusबद्धा, अप्पबिद्धा || ५७३. चव्विहा पव्वज्जा पग्णत्ता, तं जहा -- ओवायपव्वज्जा, अक्खातपव्वज्जा, संगारपव्वज्जा, विहगगइपव्वज्जा' ॥ ५७४. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा -- तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता', परियावइत्ता * ॥ ५७५. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा -- णडखइया, भडखइया, सोहखइया, सियालखइया || ठाण ५७६. चउव्विहा किसी पण्णत्ता, तं जहा - वाविया, परिवाविया, णिदिता परिनिंदिता । एवमेव चउब्विा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - वाविता, परिवाविता, णिदिता, परिणिदिता ॥ ५७७. चउग्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - धण्णपुंजितसमाणा धण्णविरल्लितसमाणा, धण्णविक्खित्तसमाणा, धण्णसंकट्टितसमाणा || सण्णा-पदं ५७८. चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा || ५७६. चउहि ठाणेहि आहारसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा - ओमकोट्ठताए, छुहावेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥ ५८०. चउहिं ठाणेहिं भयसण्णा समुप्पज्जति तं जहा - होणसत्तताए, भयवेयणिज्जस्त ' कम्मस्स उदरणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥ ५८१. चउहि ठाणेहिं मेहुणसण्णा समुप्पज्जति तं जहा - चितमंससोणिययाए, मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥ ५८२. चउहि ठाणेहिं परिग्गहसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा - अविमुत्तयाए, लोभवेणज्जस' कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥ १. विहगपव्वज्जा ( क, ख, ग, वृपा) । २. उयावइत्ता (वृपा ) 1 ३. मोयावइत्ता ( क, ख, ग, वृपा ) 1 ४. परिपूयावत्ता ( क, ग ) ; परिवयावइता (ख, वृ) 1 ५. भयमोहणिज्जस ( क) 1 ६. लोभमोहणिज्जस ( क ) | Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (उत्थो उद्देसो) काम-पदं ५८३. चउव्विहा कामा पण्णत्ता, तं जहा - सिंगारा, कलुगा, बीभच्छा, रोद्दा । सिंगारा कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाण, रोद्दाकामा रइयाणं ॥ उत्तान गंभीर-पदं ५८४. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदए । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहिदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरहिदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणहिदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरहिए || ५८५. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा — उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममंगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी । ६७१ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेंगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी ॥ ५८६. चत्तारि उदही पण्णत्ता, तं जहा- उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदही, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदही, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदही, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदही । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहियए, उत्ताने णाममेगे गंभीरहियए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणहियए, गंभीरे णाममंगे गंभीरहिए ॥ ५८७. चत्तारि उदही पण्णत्ता, तं जहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममंगे गंभीरोभासी ॥ तरग-पदं ५८८. चत्तारि तरगा पण्णत्ता, तं जहा - समुद्दं तरामीतेगे समुद्दं तरति, समुद्दं तरामीतेगे गोप्यं' तरति गोप्यं तरामीतेगे समुद्दं तरति गोप्पयं तरामीतेगे गोप्पयं तरति ॥ १. गोप्पतं ( क, ख, ग ) सर्वत्र Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ ठाणं ५८९. चत्तारि तरगा पण्णत्ता, तं जहा-समुदं 'तरेत्ता णाममेगे" समुद्दे विसीयति', समुइं तरेता णाममेगे गोप्पए विसीयति, गोप्पयं तरेत्ता गाममेगे सम् हे विसो यति, गोप्पयं तरेत्ता णाममेगे गोप्पए विसीयति ।। पुण्ण-तुच्छ-पदं ५६०. चत्तारि कुंभा पणत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुणे, पुणे णाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुण्णे, तुच्छे णाममेगे तुच्छे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णे, पुण्ण णाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुण्णे, तुच्छे णाममेगे तुच्छे ।। ५६१. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे णाममेगे तुच्छोभासी, तुच्छे णाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे णाममेगे तुच्छोभासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णोभासी, पुणे णाममेगे तुच्छो भासी, तुच्छे णाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे णाममेगे तुच्छोभासी॥ ५६२. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा -पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुग्णे णाममेगे तुच्छ रूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेगे तुच्छरूवे ।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुण्णे णाममेगे तुच्छरूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेगे तुच्छरूवे ।। ५६३. चत्तारि कुंभा पणत्ता, तं जहा—पुण्णेवि एगे पिय?', पुण्णेवि एगे अवदले', तुच्छेवि एगे पियट्टे, तुच्छेवि एगे अवदले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-पुण्णेवि एगे पियढे, "पुण्णेवि एगे अवदले, तुच्छेवि एगे पियट्टे, तुच्छेवि एगे अवदले ॥ ५६४. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णेवि एगे विस्संदति, पुण्णेवि एगे णो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णेवि एगे विस्संदति, •"पुष्णेवि एगे णो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति ॥ चरित्त-पदं ५६५. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा–भिण्णे, जज्जरिए, परिस्साई, अपरिस्साई । १. तरामीतेगे (क)। २. सीतति (क); विसीतति (ख, ग)। ३. पित? (क, ख, ग)। ४. अबद्दले (क, ख, ग)। ५. सं० पा०--तहेव । ६. सं० पा०तहेव । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७३ एवामेव चव्विहे चरिते पण्णत्ते, तं जहा - भिण्णे', 'जज्जरिए, परिस्साई ", अपरिस्साई ॥ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) महु-विस-पदं ५६६. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा महुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे विसपिहाणे | एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - महुकुंभे णाममेगे महपिहाणे, महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे विपि । संगहणी-गाहा हिययमपावकसं, जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से मधुकुंभे हिययमपावकसं, जम्मि पुरिसम्मि विज्जति हिययं कलुसमयं जम्मि पुरिसम्मि विज्जति जं हिययं कलुसमयं जम्मि पुरिसम्म विज्जति जीहाऽवि य महुरभासिणी णिच्चं । मधु पहाणे ||१|| जीहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं । से मधुकुंभे विसपिहाणे ||२|| जीहाऽवि य मधुरभासिणी णिच्च । से विसकुंभे महुपहाणे ॥३॥ जीहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं । विसकुंभे विपिहाणे ||४|| से उवसग्ग-पदं ५६७. चउब्विहा उवसग्गा पण्णत्ता, तं जहा दिव्वा, माणुसा, तिरिक्खजोणिया, आयसंचेयणिज्जा' ॥ ५६८. दिव्वा उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - 'हासा, पाओसा," वोमंसा, पुढोमाता || ५६६. माणुसा उवसग्गा वउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा -हासा, पाओसा, वोमंसा, कुसील डिसेवणया || ६०० तिरिक्खजोणिया उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - भया, पदोसा, आहारहेउ, अवच्चलेण-सारक्खणया || ६०१. आयसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता, भणता, लेसणता ॥ १. सं० पा० - भिण्णे जाव अपरिस्साई । २. आयसंवेय (क ) | ३. हास पउस ( ख ) । तं जहा - घट्टणता, पवडणता, ४. माणुस्सा ( ग ) । ५. भता ( क, ख, ग ) Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ ठाणं कम्म-पदं ६०२. चउन्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा--सुभे णाममेगे सुभे, सुभे णाममेगे असुभे, असुभे णाममेगे सुभे, असुभे णाममेगे असुभे ॥ ६०३. चउविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा–सुभे णाममेगे सुभविवागे, सुभे णाममेगे असुभविवागे, असुभे णाममेगे सुभविवागे, असुभे णाम मेगे असुभविवागे। ६०४. चउविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा--पगडीकम्मे, ठितीकम्मे, अणुभावकम्मे, पदेसकम्मे ॥ संघ-पदं ६०५. चउविहे संघे पण्णत्ते, तं जहा-समणा, समणीओ, सावगा, सावियाओ । बुद्धि -पदं ६०६. चउव्विहा बुद्धी पण्णत्ता, तं जहा---उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मिया, परिणामिया ॥ मइ-पदं ६०७. चउव्विहा मई पण्णत्ता, तं जहा–उग्गहमती, ईहामती, अवायमती, धारणामती। अहवा---चउव्विहा मती पण्णत्ता, तं जहा–अरंजरोदगसमाणा, वियरोदगसमाणा, सरोदगसमाणा, सागरोदगसमाणा।। जीव-पदं ६०८, चउन्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-णेरइया तिरिक्ख जोणिया, मणुस्सा, देवा ।। चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा--मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी, अजोगी। अहवा–चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा--इत्थिवेयगा, पुरिसवेयगा, णपुंसकवेयगा, अवेयगा ! अहवा-चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, ओहिदसणी, केवलदसणी। अहवा–चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा--संजया, असंजया, संजयासंजया, णोसंजया गोअसंजया ।। मित्त-अमित्त-पदं ६१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--मित्ते णाममेगे मित्ते, मित्ते णाममेगे अमित्ते. अमित्ते णाममेगे मित्ते, अमित्ते णाममेगे अमित्त ।। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ६७५ ६११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-मित्त णाममेगे मित्तरूवे, "मित्ते णाममेगे अमित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे ॥ मुत्त-अमुत्त-पदं ६१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--मुत्ते णाममेगे मुत्ते, मुत्ते णाममेगे अमुत्ते, अमुत्ते णाममेगे मुत्ते, अमुत्ते णाममेगे अमुत्ते॥ ६१३. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा–मुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, मुत्ते णाममेगे ___ अमुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, अमुत्ते णामोंगे अमुत्तरूवे ।। गति-आगति-पदं ६१४. पंचिदियतिरिक्खजोणिया चउगइया चउआगइया पण्णत्ता, तं जहा-पंचिदिय तिरिक्खजोणिए पचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणे णेरइएहितो वा, तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पंचिदियतिरिक्खजोगिए पंचिदियतिरिक्खजोणियत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा', 'तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मणुस्सत्ताए वा°, देवत्ताए वा गच्छेज्जा ।। मणुस्सा चउगइआ चउआगइआ "पण्णत्ता, तं जहा–मणुस्से मणुस्सेसु उववज्जमाणे जेरइएहितो बा, तिरिक्खजोणिएहितो वा, मणुस्सेहितो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा । से चेव णं से मणस्से मणुस्सत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, तिरिक्खजोणिय ताए वा, मणुस्सत्ताए वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा ॥ संजम-असंजम-पदं ६१६. बेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स चउबिहे संजमे कज्जति, तं जहा--- जिब्भामयातो सोक्खातो अववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति, फासामएणं दुक्खेणं असंजोगित्ता भवति । ६१७. बेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स चउविधे असंजमे कज्जति, तं जहा जिब्भामयातो सोक्खातो ववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, "फासामएणं दुक्खेणं संजोगिता भवति ॥ १. सं० पा०-चउभंगो।। २. उववज्जमाणा (क्व) 1 ३. सं० पा०-रइयत्ताए वा जाव देवत्ताए। ४. उवागच्छेज्जा (क्व)। ५. सं० पा०-एवं चेव मणस्सावि। ६. सं० पा०---एवं चेव । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं किरिया-पदं ६१८. सम्मबिटियाणं रइयाणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया', अपच्चक्खाणकिरिया ।। ६१६. सम्मद्दिट्ठियाणमसुरकुमाराणं चत्तारि किरियाओ पण्णताओ, तं जहा "आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया ॥ ६२०. एवं विगलिंदियवज्जं जाव' वेमाणियाणं ॥ गुण-पदं ६२१. चउहि ठाणेहिं संते गुणे गासेज्जा, तं जहा-कोहेणं, पडिणिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिणिवेसेणं ।। ६२२. चउहि ठाणेहिं असंते गुणे दीवेज्जा, तं जहा--अब्भासवत्तियं, परच्छंदाणु वत्तियं, कज्जहेडं, कतपडिकतेति वा ।। सरीर-पदं ६२३. णेरइयाणं चउहिं ठाणेहिं सरीरुप्पत्ती सिया, तं जहा -कोहेणं', माणेणं, मायाए, लोभेणं ॥ ६२४. एवं जाव वेमाणियाणं ।। ६२५. रइयाणं चउढाणणिव्वत्तिते सरीरे पण्णत्ते, तं जहा --कोहणिव्वत्तिए', 'माण गिव्वत्तिए, मायाणिवत्तिए °, लोभणिव्वत्तिए ।। ६२६. एवं जाव वेमाणियाणं॥ धम्म-दार-पदं ६२७. चत्तारि धम्मदारा पण्णत्ता, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, महवे ।। आउ-बंध-पदं ६२८. चउहि ठाणेहि जीवा णेरइयाउयत्ताए कम्म पकरेंति, तं जहा महारंभताए, महापरिग्गयाए", पंचिंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं ॥ ६२९. चउहि ठाणेहिं जीवा निरिक्खजोणिय [आउय ? ]त्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–माइल्लताए, णियडिल्लताए, अलियवयणेणं, कडतुलकडमाणेणं ।। १. मातावत्तिया (क, ख, ग)। २. सं० पा०--एयं चेव ।। ३. ठा० १।१४३-१५१, १६०-१६३ । ४. संते (क, ख, ग, वृषा)। ५. कोवेणं (क, ग)। ६. ठा० १३१४२-१६३ । ७. सरीरए (क)। ८. सं० पा०--कोहणिन्वत्तिए जाव लोभ । ६. ठा० १११४२-१६३ । १०. रतियत्ताए (क, ख, ग, वृ); णेरइयाउय त्ताए (वृपा)। ११. १परिग्गहाते (क)। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७७ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ६३०. चउहि ठाणेहि जीवा मणुस्साउयत्ताए कम्म पगति, तं जहा-पगतिभद्दताए, पगतिविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरिताए। ६३१. चउहि ठाणेहिं जोवा देवाउयत्ताए कम्म पगरेंति, तं जहा—सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं, वालतवोकम्मेणं, अकामणिज्जराए । वज्ज-णट्टआइ-पद ६३२. चउविहे वज्जे पण्णत्ते, तं जहा-तते, वितते, घणं, झुसिरे ॥ ६३३. चउविहे णट्टे पण्णत्ते, तं जहा-अंचिए, रिभिए, आरभडे, भसोले ।। ६३४. चउव्विहे गेए पण्णत्ते, तं जहा -'उक्खित्तए, पत्तए, मंदए', रोविंदए" ।। ६३५. चउबिहे मल्ले पण्णत्ते, तं जहा—गथिमे, वेढिमे, पूरिम', संघातिमे ।। ६३६. चउविहे अलंकारे पण्णत्ते, तं जहा-केसालंकारे, वत्थालंकारे, मल्लालंकारे, आभरणालंकारे ।। ६३७. चउबिहे अभिणए पण्णत्ते, तं जहा–'दिद्वंतिए, पाडिसुते', सामण्णओविणि वाइयं', लोगमज्भावसिते॥ १. मगुस्सत्ताते (ख)। स्थानाङ्गवृतो तु नास्ति व्याख्यातोसौ पाठः। २. भिसोले (क, म)। स्वयं वृत्तिकारणालेखि-नाट्यगेयाभिनय३. मेदए (क)। मूत्राणि सम्प्रदायाभावान्न विवृतानि । ४. रायपसेणइयसुत्ते (११५, २८१ सूत्रयोः) -वृत्ति पत्र २७२। क्रमशः --'उक्खितं पायंत मंदायं रोइया- ५. पूतिमे (क)। वसाणं' 'उक्वित्तायं पायंतायं मंदायं रोइया- ६. पाडसुते (क, ग); पाडुसुत्ते (क्व)। वसाणं' पाठ: प्राध्यते । तत्रापि २८१ सूत्रे ७. सामंतोवातणिते (क, ख, ग)। प्रतिपू 'रोइंदावसाण' पाठोऽस्ति, किन्तु वृत्ति- ८. मझो ० (ख)। कारेण रोझ्यावसाणं' पाठोऽस्ति व्याख्यातः । ६. रायपसेणइय (सूत्र ११७, २८१) स्थानाङ्ग (४।६३७) जीवाभिमम (३२) दिटुंतिय पाडतिय सामन्नओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं दिटुंतिए पाडिसुते सामन्नओविणिवाइय लोगमझावसिते दिलृतियं पाडिसुयं सामन्नओविणिवाइयं लोगमझावसाणियं स्थानाङ्गवृत्ती नास्ति व्याख्यातोसी पाठः । जीवाभिगमस्य पाठो वृत्तिमनुसृत्यास्माभिरुट्रहितः । रायपसेणइयसूत्रे प्रथमवारमसौ व्याख्यातोस्ति-'दार्टान्तिकम् प्रात्यन्तिकमा सामान्यतोविनिपातम् लोकमध्यावसानिकम।' --वृत्ति पत्र १४५ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ विमाण-पदं ६३८. सणकुमार माहिदेसु णं कप्पेसु विमाणा चउवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - णीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला ॥ देव-पदं ६३६. महासुक्क सहस्सारेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जा सरीरंगा उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ गब्भ-पदं ६४० चत्तारि दगगब्भा' पण्णत्ता, तं जहा - उस्सा, महिया, सीता, उसिणा । ६४१ चत्तारि दगगव्भा' पण्णत्ता, तं जहा - हेमगा, अब्भसंथडा, सीतोसिणा, पंचरूविया । संग्रहणी - गाहा माहे उमगा गब्भा, फग्गुणे अब्भसंथडा । सीतोसिणा उ चित्ते, वइसाहे' पंचरूविया ॥ १ ॥ ६४२. चत्तारि मणुस्सीगब्भा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थित्ताए, पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताते, बिबताए । संग्रहणी-गाहा अप्पं सुक्कं बहुं ओयं इत्थी तत्थ पजायति । अप्प ओयं बहु सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायति ॥ १ ॥ दोहपि रत्तसुक्काणं, तुल्लभावे णपुंसओ । इत्थी - ओय' - समायोगे, बिंबं तत्थ पजायति ॥२॥ पुव्ववत्थु पर्द ६४३. उप्पायपुव्वस्स गं चत्तारि चलवत्थू पण्णत्ता ॥ ठाण वृत्त्यनुसारेणात्र 'सामन्न ओविणिवा' पाठो युज्यते । जीवाभिगमवृत्तावपि 'सामान्यतोविनिपातिकम्' इति व्याख्यातमस्ति । आदर्श 'सामंतोवणिवाइयं' जातम् । सम्भवत: 'सामन्नाओ' स्थाने 'सामन्नी' जातः, अस्यैव 'सामन्तो' रूपे परिवर्तनं जातमिति प्रतीयते । स्थानाङ्गे 'पाडिसुते' पाठस्तथा १. उदग° ( क ) 1 २. उदग० (क, ग ) । ३. वतिसाहे (क, ख, ग ) । ४. तोत (क, ख, ग ) । जीवाभिगमवृत्तौ प्रतिश्रुतिकम्' इति व्याख्यातो- ५. समातोगे (क, ख, ग ) । ऽस्ति पाठ: । एतौ द्वावपि 'रायपसेणइय' सूत्रस्य 'पाडंतिय' शब्दाद् वाचनाभेद गच्छतः । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ६७६ कव्व-पदं ६४४. चउविहे कव्वे पण्णत्ते, तं जहा—गज्जे, पज्जे, कत्थे, गेए ।। समुग्धात-पदं ६४५. णेरइयाणं चत्तारि समुग्धाता पण्णत्ता,तं जहा-वेयणासमुग्धाते, कसायसमुग्धाते, मारणंतियसमुग्धाते, वेउब्वियसमुरघाते । ६४६. एवं --- वाउक्काइयाणवि ।। चोदसपुस्वि-पदं ६४७. अरहतो णं अरिटुणेमिस्स चत्तारि सया चोद्दसपुवीणमजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसण्णिवाईणं जिणो' [जिणाणं ?] इव अवितथं' वागरमाणाणं उक्कोसिया च उद्दसपुस्विसंपया हुत्था ।। वादि-पदं ६४८. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वादीणं सदेवमणयासूराए परिसाए अपराजियाणं उक्कोसिता वादिसंपया हुत्था । कप्प-पदं ६४६. हेदिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे, ईसाणे, सणंकुमारे, माहिदे ॥ ६५०. मझिल्ला चत्तारि कप्पा पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-बंभलोगे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे ॥ ६५१. उवरिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-आणते. पाणते, आरणे, अच्चुते ॥ समुद्द-पदं ६५२. चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, तं जहा-लवणोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घतोदे॥ कसाय-पदं ६५३. चत्तारि आवत्ता पण्णत्ता, तं जहा-खरावत्ते, उण्णतावत्ते, गूढावत्ते, आमिसावत्ते। १. तृतीयस्थानस्य ५३४ सूत्रे 'जिणा इव' पाठो व्याकरणदृष्ट्या उभयत्रापि 'जिणाणं इव' लभ्यते तथा 'ख' प्रतौ 'जियो इव' । अत्र तु व । अत्र तु युज्यते । सर्वासु प्रतिषु 'जिणो इव' पाठो लभ्यते। २. अवितह (ख, ग)। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० ठाणं एवामेव चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा-खरावत्तसमाणे कोहे', उण्णतावत्तसमाणे माणे, गूढावत्तसमाणा माया, आमिसावत्तसमाणे लोभे! १. खरावत्तसमाणं कोहं अणुपविढे जीवे कालं करेति, गैरइएसु उववज्जति । २. "उण्णतावत्तसमाणं माणं अणुपविट्ठ जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति । ३. गूढावत्तसमाणं मायं अणुपविढे जीवे कालं करेति, रइएसु उववज्जति । ४. आमिसावत्तसमाणं लोभमणुपविट्ठ जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति ॥ णक्खत्त-पदं ६५४. अणुराहाणक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ।। ६५५. पुव्वासाढाणक्खत्ते चउत्तारे पग्णत्ते ॥ ६५६. उत्तरासाढा णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥ पावकम्म-पदं ६५७. जीवाणं च उट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा--रइयणिवत्तिते, तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, मणुस्स णिन्वत्तिते, देवणिव्वत्तिते ॥ ६५८. एव'--उवचिणिसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा । एवं --चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं ६५६. चउपदेसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ।। ६६०. चउपदेसोगाढा पोग्गला अणता पण्णत्ता ।। ६६१. चउसमय द्वितीया पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। ६६२. चउगुणकालगा पोग्गला अणंता जाव चउगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। १. कोवे (क, ग)। २. सं० पा०-उण्णत्तावत्तसमाणं माण एवं चेव गूढावत्तसमाणं मातमेवं चेव। ३. पूवासाढे (क, ग); सं० पा०--पुवासाढा एवं चेव। ४. उत्तरासाढे (क, ग); सं० पा०--उत्तरासादा एवं चेव । ५. ठा० ४१६५७ ६. ठा० ११२५६ । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं पढमो उद्देसो महव्वय-अणुव्वय-पदं १. पंच महव्वया पण्णता, तं जहा-सव्वाओ पाणातिवायाओ' 'वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ।। २. पंचाणुव्वया पण्णत्ता, तं जहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिग्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छा परिमाणे ।। इंदिय-विसय-पदं ३. पंच वण्णा पण्णत्ता, तं जहा—किण्हा, गीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला ॥ ४. पंच रसा पण्णत्ता, तं जहा-तित्ता', 'कडुया, कसाया, अंविला, मधरा ।। ५. पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा-सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा ।। ६. पंचहि ठाणेहिं जीवा सज्जंति, तं जहा–सद्देहि', 'रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं , फासेहिं ॥ ७. "पंचहि ठाणेहिं जीवा रज्जति, तं जहा- सद्देहिं, रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं, फासेहि। ८. पंचहि ठाणेहिं जीवा मुच्छंति, तं जहा--सद्देहि, रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं, फासेहि ॥ १. सं० पा०-पाणातिवायाओ जाव सव्वातो। ४. सं० पा०-एवं रज्जति मुच्छंति गिज्झति २. सं० पा०—तित्ता जाव मधुरा । अज्झोक्वज्जति। ३. सं० पा०- सद्देहि जाव फासेहि । ६८१ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण ६८२ ६. पंचहि ठाणेहिं जीवा गिज्झति, तं जहा-सद्देहि, रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं, फासेहिं ।। १०. पंचहि ठाणेहिं जीया अज्झोववज्जति, तं जहा--सद्देहि, रूवेहिं, गंधेहि, रसेहिं, फासे हिं° ॥ ११. पंचहि ठाणेहिं जीवा विणिघायमावज्जति, तं जहा- सद्देहि', 'रूवेहि, गंधेहिं, रसे हिं', फासेहिं ।। १२. पंच ठाणा अपरिग्णाता जीवाणं अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेस्साए अणाणगामियत्ताए भवंति, तं जहा–सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा, फासा ॥ १३. पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं हिताए सुभाए', 'खमाए णिस्सेस्साए ° आणु गामियत्ताए भवंति, तं जहा-सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा', फासा ।। १४. पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं दुग्गतिगमणाए भवंति, तं जहा-सहा', 'रूवा, गंधा, रसा, फासा ।। १५. पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं सुग्गतिगमणाए भवंति, तं जहा- सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा°, फासा ॥ आसव-संवर-पदं १६. पंचहि ठाणेहि जीवा दोग्गति गच्छंति, तं जहा-पाणातिवातेणं', 'मुसावाएणं, अदिण्णादाणेणं, मेहुणेणं, परिग्गहेणं !! १७. पंचहि ठाणेहिं जीवा सोगति गच्छंति, त जहा-पाणातिवातवेरमणेणं', 'मुसा वायवेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं °, परिग्गहवेरमणेणं । पडिमा-पदं १५. पंच पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा, भद्दुत्तरपडिमा ॥ थावरकाय-पदं १६. पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा-इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सम्मती थावरकाए, पायावच्चे थावरकाए । ८. सं० पा०-पाणातिवातवेरमणणं जाव परि १. सं० पा०-सद्देहिं जाव फासेहि। २. सं० पा०--सहा जाव फासा । ३. सं० पा०-सुभाते जाव आणुगामियत्ताते। ४,५,६. स० पा०-सट्टा जाव फासा। ७. सं० पा०—पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेण । ६. सुमति (क); समुति (ग)। १०. पातावच्चे (क, ख, ग)। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६८३ २०. पंच थावरकायाधिपती पण्णत्ता, तं जहा- इंदे थावरकायाधिपती', 'बंभे थावरकायाधिपती, सिप्पे थावरकायाधिपती, सम्मती थावरकायाधिपती, पायावच्चे थावरकायाधिपती।। अइसेस-णाण-दसण-पदं २१. पंचहि ठाणेहि ओहिदसणे समुप्पज्जिउकामेवि तप्पढमयाए खंभाएज्जा', तं जहा१. अप्पभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। २. कुंथुरासिभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। ३. महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा । ४. देवं वा महिड्डियं' *महज्जुइयं महाणुभाग महायसं महाबलं ° महासोक्ख' पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। ५. पुरेसु वा 'पोराणाई उरालाई महतिमहालयाई महाणिहाणाई पहोणसामियाइं पहीणसे उयाई पहीणगुत्तागाराइं उच्छिण्णसामियाई उच्छिण्णसेउयाई उच्छिण्णगुत्तागाराई जाइं इमाइं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडग - तिग-च उक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापहपहेसु णगर-णिद्धमणेसु सुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदर-संति-सेलोवट्ठावण-भवणगिस संणिक्खित्ताइ चिटुंति, ताई वा पासित्ता तप्पढमताए खंभाएज्जा। इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि ओहिदसण समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए खंभा २२. पंचहिं ठाणेहिं केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे तुप्पढमयाए णो खंभाएज्जा, तं जहा१. अप्पभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा । २. "कुंथुरासिभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा । ३. महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। ४. देवं वा महिड्डियं महज्जुइयं महाणुभाग महायसं महाबलं महासोक्खं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। ५. पुरेसु वा पोराणाई उरालाई मतिमहालयाई महाणिहाणाई पहीणसामियाई १. सं० पा०-इंदे थावरकाताधिपती जाव ५. पोराणाई महंति (ख); पोराणाई (वृ); पातावच्चे। पोराणाइं ओरालाइं (वृपा)। २. खभातेज्जा (क, ख, ग) सर्वत्र । ६. पहीणसेक्काराई (व); पहीणसेउयाई(वपा)। ३. सं० पा०-महिड्डियं जाव महासोक्खं । ७. सं० पा०-सेसं तहेव जाव भवणगिहेसु । ४. महेसक्कं (क, ग); महेसक्खं (वृपा) ! Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ ठाण पहीणसेउयाई पहीणगुत्तागाराई उच्छिष्णसामियाई उच्छिष्ण से उयाई उच्छिष्णमुत्तागाराई जाई इमाई गामागर नगर खेड-कब्वड-मडंब - दोणमुहपट्टणासम-संवाह-सण्णवेससु सिंघाडग-तिग- चउक्क - चच्चर-चउम्मुह- महापहपसु नगर- गिद्धमणेसु सुसान- सुष्णागार - गिरिकंदर-संति सेलोवट्टावण° भवणगहे सणवत्ताई चिट्ठति, ताइं वा पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा । इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि' केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिकामे तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा | सरोर-पदं २३. णेरइयाणं सरीरगा पंचवण्णा पंचरसा पण्णत्ता, तं जहा - किण्हा' णीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला | तित्ता', कड्या, कसाया, अंविला', मधुरा ॥ २४. एवं -- णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ २५. पंच सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए, वेउम्लिए, आहारए, तेयए, कम्मए' ॥ २६. ओरालियसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे', 'णोले, लोहिते, हालिदे, सुविकल्ले । तित्ते', 'कडुए, कसाए, अंविले, महुरे ॥ २७. ""वेउव्वियसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे, नीले, लोहिते, हालिदे, सुकिल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ॥ २८. आहारयस रीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे, गीले, लोहिते, हालिदे, किल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे || २६. तेययसरी पंचवणे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे, पीले, लोहिते, हालिदे, सुकिल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ॥ ३०. कम्मगसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे, पीले, लोहिते, हालिदे, सुकिल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ● ॥ ० ३१. सव्वेवि णं वादरवोंदिधरा कलेवरा पंचवण्णा पंचरसा दुगंधा अट्ठफासा ॥ तित्थभेद-पदं ३२. पंचहि ठाणेहि पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा -- दुआइक्ख, दुव्विभज्ज, दुपस्सं, दुतितिक्ख, दुरणुचरं ॥ १. सं० पा० - ठाणेहि जाव णो खंभातेज्जा ! २. सं० पा०-- किण्हा जाव सुविकल्ला । ३. सं० पा० - तित्ता जाव मधुरा । ४. ठा० ११४२-१६३ । ५. कम्मते (क, ग) 1 ६. सं० पा० - किण्हे जाव सुक्किल्ले । ७. सं० पा० - तित्ते जाव महुरे । ८. सं० पा०- एवं जाव कम्मगसरीरे | ६. दुव्विभवं ( वृपा) । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो) ६८५ ३३. पंचहि ठाणेहि मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा---सुआइक्खं, सुवि __ भज्ज, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरणुचरं'। अब्भणुण्णात-पदं ३४. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिगंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चमभणण्णाताई भवंति, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे ।। ३५. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं' 'समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णि ताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अभणण्णा ताइं भवंति, तं जहा-सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे ।। ३६. पंच ठाणाई समणेणं 'भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिचं वण्णि ताई णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अ०भणण्णाताइं भवंति, तं जहा उक्खित्तचरए, णिक्खित्तचरए, अंतचरए, पंतचरए, लहचरए। ३७. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णि ताई णिचं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा -अण्णातच रए, अण्ण इलायचरए', मोणचरए, संसदकप्पिए, तज्जातसंसट्ठकप्पिए। ३८. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाण णिच्चं वण्णि ताई णिच् कित्तिताई णिच्चं वुइयाइं णिच्च पसत्थाई णिच्चं॰ अब्भणण्णाताई भवंति, तं जहा --उवणिहिए, सुद्धेसणिए, संखादत्तिए, दिठुलाभिए, पुटुलाभिए ३६. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णि ताई णिच्चं कित्तिताई णिच्च बुझ्याइं णिच्चं पसत्थाई णिच्च अब्भणुग्णाताई भवंति, तं जहा--आयंविलिए, णिव्विइए, पुरिमड्डिए", परिमितपिंडवा तिए", भिण्प पिडवातिए।। ४०. पंच ठाणाई" 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं १. 'सुरनुचर' न्ति रेफप्राकृतत्वादिति (वृ)। ७,८. सं० १to-ठाणाई जाव अब्भणुण्णायाई । २. पूतिताई (ग)। १. निविते (क, ग)। ३. स० पाo-महावीरेणं जाव अब्भणुष्णायाई। १०. पुरमट्टिते (क)। ४. सं० पा०-समणेणं जाव अब्भणुण्णायाई। ११. परिमितपिंडवातिते (क)। ५. सं० पा०-ठाणाई जाव अब्भणुण्णाया। १२. गं० पा.----ठाणाई जाव अब्भणुण्णायाई। ६. अन्नवेलचरए (वृपा)। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ ठाणं वपिणताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा--अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे, लूहाहारे ॥ ४१. पंच ठाणाई' समणेणं भगवता महावोरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं. अब्भणण्णाताई भवंति, तं जहा.--अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी, पंतजीवी, लहजीवी ४२. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णि ताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्च अभणण्णाताई भवंति, तं जहा-ठाणातिए, उक्कुडुआसहिए, पडिमट्ठाई, वीरासहिए, णेसज्जिए॥ ४३. पंच ठाणाई' 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्च पसत्थाई णिच्चं अब्भगुण्णाताई' भवंति, तं जहा-दंडायतिए, लगंडसाई, आतावए, अवाउडए', अकंडूयए। महाणिज्जर-पदं ४४. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा अगिलाए आयरियवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे ॥ ४५. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा अगिलाए सेहवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए कुलवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गणवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए संघवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे ।। विसंभोग-पदं ४६. पंचहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे साहम्मियं संभोइयं' विसंभोइयं करेमाणे णाति क्कमति, तं जहा--१. सकिरियट्ठाणं पडिसेवित्ता भवति । २. पडिसेवित्ता णो आलोएइ। ३. आलोइत्ता णो पट्टवेति । ४ पट्टवेत्ता णो णिव्विसति । १. सं० पा...ठाणाइं जाव अभYण्णाया। ५. संभोतितं (क, ख, ग)। २,३. सं० पा०-ठाणाइं जाव भवति । ६. विसंभोतितं (क, ख, ग)। ४. अवाअडते (क)। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (पढमो उद्द े सो ) ६८७ ५. जाई इमाई थेराणं ठितिपकप्पाई भवंति ताइं अतियंचिय-अतियंचिय पडिसेवेत से दहं पडि सेवामि किं मं थेरा करेस्संति ? पारंचित-पदं ४७. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे साहम्मियं पारंचितं करेमाणे णातिक्कमति, तं जहा - १. कुले वसति कुलस्स भेदाए अब्भुट्ठिता भवति । २. गणे वसति गणस्स भेदाए अभुत्ता भवति । ३. हिंसप्पेही । ४. छिप्पेही । ५. अभिक्खणंअभिक्खणं परिणायतणाई पउंजित्ता भवति ॥ बुगट्ठाण-पदं ४८. आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंच बुगाहट्टाणा पण्णत्ता, तं जहा - १. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्मं परंजित्ता भवति । २. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं णो सम्भं पउंजित्ता भवति । ३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले णो सम्ममणुप्पवाइत्ता भवति । ४. आयरियउवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्च णो सम्ममभुट्ठित्ता भवति । ५. आयरियउवज्झाए णं गर्णसि अणापुच्छियचारी' यावि हवइ, णो आपुच्छियचारी ॥ अवहट्ठाण - पर्द ४९. आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंचावुग्गट्टाणा पण्णत्ता, तं जहा - १. आयरियउवज्झाए णं गर्णसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति । २. आयरियउवज्झाए णं गणंसि० आधारातिणिताए सम्मं किइकम्मं परंजित्ता भवति । ३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले सम्म अणुपवाइत्ता भवति । ४. आयरियउवज्झाए गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्मं अब्भुद्वित्ता भवति । ५. आयरियउवज्झाए गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, जो अणापुच्छियचारी ॥ १. सकुले (क, ग) 1 २. ताई ( ख ) । ३. आणा उच्छितचारी (क, ग ) । ४. सं० पा० - एवमाधारा तिणिताते। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ ठाणं णिसिज्जा-पदं ५०. पंच णिसिज्जाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–उक्कुडुया', गोदोहिया, समपायपुता, पलियंका, अद्धपलियंका। अज्जवट्ठाण-पदं ५१. पंच अज्जवट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-साधुअज्जवं, साधुमद्दवं, साधुलाघवं, ___साधुखंति, साधुमुत्ती ।। जोइसिय-पदं ५२. पंचविहा जोइसिया पण्णत्ता, तं जहा-चंदा, सूरा, गहा, णक्खत्ता, ताराओ॥ देव-पदं ५३. पंचविहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-भवियदव्वदेवा', शरदेवा, धम्मदेवा, देवाति देवा, भावदेवा ।। परिचारणा-पदं ५४. पंचविहा परियारणा" पण्णत्ता, तं जहा-कायपरियारणा', फासपरियारणा, रूवपरियारणा, सद्दपरियारणा, मणपरियारणा ।। अग्गम हिसी-पदं ५५. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररणो पंच अगमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-काली, राती, रयणी', विज्जू, मेहा ॥ ५६. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, ___ 'तं जहा-सुभा, णिसुंभा, रंभा, णिरंभा, मदणा ।। अणिय-अणियाहिवइ-पदं ५७. चमरस्स गं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगा मिया अणियाधिवती पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए। १. उक्कडतो (क); उक्कडुती (ग)। २. पुलितंका (क, ग); पलितंका (ख)। ३. अद्धपलितका (क, ख, ग)। ४. भवित (क, ख, ग)। ५. परितारणा (क, ख, ग)। ६. कात ° (क, ख, ग)। ७. रतणी (क, ख, ग)। ८. वतिरोत (क, ख, ग)। ६. मतणा (क, ख, ग)। Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम ठाणं (पढमो उद्देसो) ६८६ दुमे पायत्ताणियाधिवती, सोदामे आसराया पीढाणियाधिवती, कुंथ' हत्थिराया कुंजराणियाधिवती, लोहितवखे महिसाणियाधिवतो, किण्णरे रधाणिया धिवती।। ५८. बलिस्स णं बइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगा मियाणियाधिवती पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए', 'पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए°, रधाणिए। महद्दुमे पायत्ताणियाधिवती, महासोदामे' आसराया' पीढाणियाधिवती, मालंकारे हत्थिराया कुंजराणियाधिपती, महालोहिअक्खे महिसाणियाधिपती, किंपुरिसे रधाणियाधिपती ।। ५६. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स गागकुमाररण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामियाणियाधिपती पपणत्ता, तं जहा–पायत्ताणिए जाव' रहाणिए । भद्दसेणे पायत्ताणियाधिपती, जसोधरे आसराया पोढाणियाधिपती, सुदंसणे हत्थिराया कुंजराणियाधिपती, णीलकंठे महिसाणियाधिपती, आणंदे रहाणियाहिवई ।। ६०. भूयाणंदस्स णं णागकुमारिदस्स पागकुमाररण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगामियाणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए जाव रहाणिए । दखे पायत्ताणियाहिवई, सुग्गीवे आसराया पीढाणियाहिवई, सुविक्कमे हत्थिराया कुंजराणियाहिवई, सेयकंठे महिसाणियाविई, णंदुत्तरे रहाणियाहिवई ॥ ६१. वेणुदेवस्स णं सुवण्णिदस्स सुवण्णकुमाररण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगामियाणियाहिपती पण्णत्ता, तं जहा--पायत्ताणिए । एवं जधा धरणस्स" तधा वेणुदेवस्सवि । वेणु दालियस्स जहा भूताणंदस्स" ॥ ६२. जधा धरणस्स" तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव" घोसस्स ॥ ६३. जधा भूताणंदस्स तथा सन्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव' महाघोसस्स ।। १. वेकुंथू (क, ग)। २. सं० पा०—पायत्ताणिते जाव रधाणिते । ३. ° सोतासे (क, ग)। ४, आसराता (क, ख, ग)। ५. पत्ताणीएते (क)। ६. ठा० ५।५७ । ७. पत्ताणीएते (क)। ८. ठा० ५।५७ । ६. पत्ताणीएते (क)। १०. ठा० ५।५६ । ११. ठा० ५।६० । १२. ठा० ५.५६ । १३. ठा० २।३५६-३६१ । १४. ठा० ५।६०। १५. ठा० २।३५६-३६१ । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ६४. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामियाणिया धिवती पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए', 'पोढागिए, कुंजराणिए, ' उसभाणिए, रधाणिए। हरिणेग मेसी पायत्ताणियाधिवती, वाऊ आसराया पीढाणियाधिवती, एरावणे हत्थिराया कुंजराणियाधिपती, दामड्डी उसभाणियाधिपती, माढरे रधाणियाधिपती॥ ६५. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो पंच संगामिया अणिया जाव' पायत्ताणिए', पीढाणिए, कुंजराणिए, उसभाणिए, रधाणिए। लहुपरक्कमे पायत्ताणियाधिवती, महावाऊ आसराया पीढाणियाहिवती, पुप्फदते हत्थिराया कुंजराणियाहिवती, महादामड्डी उसभाणियाहिवती, महामाढरे रधाणियाहिवती ।। ६६. जधा सक्कस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव' आरणस्स ॥ ६७. जधा ईसाणस्स' तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव" अच्चुतस्स ।। देवठिति-पदं ६८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभंतरपरिसाए देवाणं पंच पलिओक्माई ठिती पण्णत्ता।। ईसाणस्सणं देविदस्स देवरणो अब्भंतरपरिसाए देवीणं पंच पलिओवमाई ठिती पण्णता ।। पडिहा-पदं ७०. पंचविहा पडिहा पण्णत्ता, तं जहा -गतिपडिहा, ठितिपडिहा, बंधणपडिहा, भोगपडिहा, बल-बीरिय-पुरिसयार-परक्कमपडिहा ।। आजीव-पदं ७१. पंचविधे आजीवे पण्णत्ते, तं जहा–जातिआजोवे, कुलाजोवे, कम्माजीवे, सिप्पाजीवे, लिंगाजीवे ।। १. पत्ताणीएते (क); सं० पा०--पायत्ताणिते जाव उसभाणिते । २. ठा० ५५७ । ३. पत्ताणीएते (क)। ४. ठा० ५।६४। ५. ठा० २।३८१-३८४ । ६. ठा० ५।६५ । ७. ठा० २३८१-३८४ । ८. 'पडिह' त्ति प्राकृत्वात् 'उप्पा' इत्यादिवत् प्रतिघातः (वृ)। ६. गणाजीवे (वृपा): Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो) राय-चिंध-पदं ७२. पंच' रायककुधा' पण्णता, तं जहा-खग्गं, छत्त, उप्फेस', पाणहाओ', वालवीअणी ॥ उदिण्ण-परिस्सहोवसग्ग-पदं ७३. पंचाहिं ठाणेहिं छउमत्थे णं उदिपणे परिस्सहोवसग्गे सम्म सहेज्जा ख मेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा, तं जहा१. उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूते । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिंदति वा विच्छिंदति वा भिदति वा अवहरति वा। २. जक्खाइट्रे' खलु अयं पूरिसे । तेण मे एस पूरिसे अक्कोसति वा १० अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछति वा बंधेति वा रुभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायछणमच्छिंदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा अवहरति वा। ३. ममं ज णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे" भवति । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा १२ अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा अवहरति वा। ४. ममं च णं सम्ममसहमाणस्स अखममाणस्स अतितिक्खमाणस्स अणधियासमाणस्स" किं मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जति । १. अनन्तरं साधनां रजोहरणादिक लिङ्ग- ४ उपाणहाओ (क्व)। मुक्तम्, अधुना खनादिरूपं राज्ञां तदेवाह-- ५. बालवीयणि (क, ग); बालवीयणे (ख)। 'पंच रायककुभा' इत्यादि (वृ० प० २८६) ६. अदिन्ने (क)। अनेन वृत्त्युललेखेन ज्ञायते प्रस्तुतसूत्रात् पूर्व ७. ओयन्नकम्मे (क) । वृत्तिकारस्य सम्मुखीनेष्वादशेषु निर्दिष्ट सूत्र- ८. उबद्दवेइ (ब)। मासीत् सांप्रतिकेष्वादशेषु तन्नोपलभ्यते । ६. जक्खाति? (क, ख, ग)। वस्त्र-रजोहरणसूत्रे अतोग्रे (१९०-१६१) १०. सं० पा०--तहेव जाव अवहरति । लभ्येते । ११. उतिन्ने (क, ग)। २. रात (क, ख, ग)। १२. सं० पा०--तहेव जाव अवहरति । ३. उप्फेसि (क, ग)। १३. अणधितास ० (क, ख, ग)। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ७४. ५. ममं च णं सम्म सहमाणस्स' 'खममाणस्स तितिक्खमाणस्स ° अहियासेमाणस्स कि मण्णे कज्जति ? पगंतसो मे णिज्जरा कज्जति । इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि छउमत्थे उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्म सहेज्जा 'खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा। पंचहि ठाणेहि केवलो उदिण्णे परिसहोवसगे सम्म सहेज्जा' खमेज्जा तितिक्वेज्जा अहियासेज्जा, तं जहा१. खित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा "अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा अवहरति वा ।। २. दित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे । तेण मे एस पुरिसे' 'अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति बा विच्छिदति वा भिंदति वा अवहरति वा। ३. जक्खाइट्टे खलु अयं पुरिसे । तेण मे एस पुरिसे 'अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा। ४. ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे भवति । तेण मे एस पुरिसे 'अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रु भति वा छविच्छेदं करेति वा, पमार वा ति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा । ५. ममं च णं सहमाणं खममाणं तितिक्खमाण अहियासेमाणं पासेत्ता वहवे अण्णे छउमत्था समणा णिग्गंथा उदिग्णे-उदिण्णे परीसहोवसग्गे एवं सम्म सहिस्संति 'खमिस्संति तितिक्खिस्संति अहियासिस्संति । इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि केवली उदिण्णे परीसहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा ।। १. सं० पा०-सहमाणस्स जाब अहियासे- ६,७,८. सं० पा०-पुरिसे जाव अवहरति । माणस्स। ६. तितिक्माणं (क, ग)। २,३. सं० पा...- सहेज्जा जाव अहियासेज्जा। १०. सं० पा०–सहिस्संति जाव अहियासिस्सति । ४. अतं (क, ख, ग)। ११. सं० पा०-सहेज्जा जाव अहियासेज्जा। ५. सं० पा० --तहेव जाव अवहरति । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं ( पढमो उद्देसो) उ-पदं ७५. पंच' हेऊ पण्णत्ता, तं जहा - हेउ ण जाणति, हेउं ण पासति, हेउं ग बुज्झति, हे णाभिगच्छति, हेउं अण्णाणमरणं मरति ॥ ७६. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा हेउणा ण जाणति', 'हेउणा ण पासति, हेउणा ण बुज्झति, हेउणा णाभिगच्छति', हेउणा अण्णाणमरणं मरति ॥ ७७. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा - हेउं जाणइ', 'हेउ पासइ, हेउं बुज्झइ, हेउं अभिगच्छइ, हेउं छउमत्थमरणं मरति ॥ ७८. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा - हेउणा जाणइ, हेउणा पासइ, हेउणा बुज्झइ, उणा अभिगच्छइ, हेउणा छउमत्थमरणं मरइ || अहेउ-पदं ७६. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा - अहेडं ण जाणति, अहेउं ण पासति, अहेउं ण बुज्झति, अहेउं णाभिगच्छति, अहेउं छउमत्थमरणं मरति ॥ ६६३ ८०. पंच अहेऊ पण्णत्ता तं जहा - अहेउणा ण जाणति', 'अहेउणा ण पासति, अहेउणा ण बुज्झति, अहेउणा णाभिगच्छति, अहेउणा छउमत्थमरणं मरति ॥ ८१. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा - अहेउं जाणति', 'अहेउं पासति, अहेउं बुज्झति, अहे अभिगच्छति, अहेउं केवलिमरणं भरति ॥ ८२. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा - अहेउणा जाणति', 'अहेउणा पासति, अहेउणा वुज्झति, अहेउणा अभिगच्छति, अहेउणा केवलिमरणं मरति ॥ अणुत्तरपदं ८३. केवलिस णं पंच अणुतरा पण्णत्ता, तं जहा - अणुत्तरे गाणे, अणुत्तरे दंसणे अणुत्तरे चरिते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए ॥ पंच कल्लाण-पदं ८४. परमप्प णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, तं जहा - १. चित्ताहिं" चुते चइत्ता गम्भ वक्कते । २. चित्ताहि जाते । ३. चित्ताहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं १. भगवती पंचशतकम् सप्तमोद्देशे एतानि अष्टसूत्राणि क्रमभेदेन तथा किञ्चित् पाठभेदेन लभ्यन्ते । २. सं० पा० - जागति जाव हेउणा । ३. सं० पा० - जाणइ जाव हेउ । ४. सं० पा० - जाणइ जाव हेउणा । ५. सं० पा० - जाणति जाव अहे । ६. सं० पा० - जाणति जाव अहेउणा । ७. सं० पा० - जापति जाव अहेउं । ८. सं० पा० - जाणति जात्र अहेउणा । ६. चित्ता ( क ग ) 1 १०. चित्राभिरिति रूढ्या बहुवचनम् (वृ) 1 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं पव्वइए । ४. चित्ताहि अणते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । ५. चित्ताहिं परिणिव्वुते ।। ८५. पुष्फदंते णं अरहा पंचमूले हुत्था, तं जहा-मूलेणं चुते च इत्ता गम्भं वक्ते ।। "सीयले णं अरहा पंचपुव्वासाढे हुत्था, तं जहा-पुत्वासाढाहिं चुते चइत्ता गब्भं वक्कते' ।। ८७. विमले णं अरहा पंच उत्तराभद्दवए हुत्था, तं जहा---उत्तराभवयाहिं चुते चइत्ता गब्भं वक्ते ।। ८८. अणते णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा--रेवतिहिं चुते चइत्ता गभं वक्कते। ८६. धम्मे णं अरहा पंचपूसे हुत्था, तं जहा-पूसेणं चुते चइत्ता गब्भं वक्कते। ६०. संतो णं अरहा पंचभरणीए हुत्था, तं जहा–भरणीहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते।। ११. कंथ णं अरहा पंचकत्तिए हुत्था, तं जहा-कत्तियाहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते।। ६२. अरे णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा-रेवतिहि चुते चइत्ता गब्भं वक्कते।। ६३. मुणिसुव्वए णं अरहा पंचसवणे हुत्था, तं जहा-सवणेणं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते ।। १४. णमी णं अरहा पंचआसिणीए" हुत्था, तं जहा–आसिणीहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते॥ १५. णेमी णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, तं जहा--चित्ताहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। १६. पासे णं अरहा पंचविसाहे हुत्था, तं जहा--विसाहाहिं चुते चइत्ता गभं वक्कते"० ॥ ६७. समणे भगवं महावीरे पंचहत्थत्तरे होत्था, तं जहा--१. हत्थुत्तराहिं चुते चइत्ता WU १. पू०-ठा० ५८४। अरस्स तह रेवतीतो य ॥२॥ ... २. सं० पा०-एवं चेव एवमेतेणं अभिलावेणं मुणिसुव्वयस्स सवणो, इमातो गाहातो अगुगंतव्वातो-- आसिणि गमिणो य णेमिणो चित्ता। पउमप्पभस्स चित्ता, पासस्स विसाहाओ, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पंच य हत्थत्तरे वीरो ॥२॥ पुव्वाइं आसाढा, ३. पू०--ठा० १८४ सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवता ।।१।। ४.१०. पू०-ठा० ५।८४ । रेवतित अणंतजिणो, ११. असिणिए (क, ग)। सो धम्मस्स संतिणो भरणी। १२-१४. पू०--ठा० ५।०४। कुंथुस्स कत्तियाओ, Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं ठाणं (बीओ उद्देसो) ६६५ भं वक्कते । २. हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिते ३. हत्थुत्तराहि जाते । ४. हत्थुत्तराहि मुंडे भवित्ता' 'अगाराओ अणगारितं पव्वइए । ५. हत्थुत्तराहि अणते अणुत्तरे' 'णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुणे • केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे ॥ बीओ उद्देस महानदी -उत्तरण-पदं १८. णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा इमाओ उद्दिट्ठाओ गणियाओ' वियंजियाओ' पंच महण्णवाओ महाणदीओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरितए वा संतरितए वा, तं जहा - गंगा, जउणा, सरऊ, एरावती, मही । पंचहि ठाणेहिं कप्पति, तं जहा - १. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खसि वा, ३. पव्वहेज्ज वा णं कोई, ४. दओवंसि वा एज्जमानंसि महता वा, ५. अणारिए | पढम पाउस-पदं ६६. णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पढमपाउसंसि गामाणुगामं दृइज्जित्तए' । पंचहि ठाणेहिं कप्पर, तं जहा- १. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खसि वा), ३- पव्वहेज्ज वा णं कोई, ४. दओघंसि वा एज्जमाणंसि महता वा, ५. अणारिएहि ।। वासावास-पदं १००. वासावासं पज्जोसविताणं णो कप्पइ णिगंथाण वा णिग्गंथीण वा गामाणुगामं दूइज्जित्तए । पंचहि ठाणेहिं कप्पर, तं जहा - १. जाणट्टयाए, २. दंसणट्टयाए, ३. चरितट्टयाए, ४. आयरिय-उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा, ५. आयरिय उवज्झायाण वा बहता आवच्चकरणयाए । अघातिय-पदं १०१. पंच अणुग्धातिया" पण्णत्ता, तं जहा - हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवेमाणे, रातीभोयणं भुंजेमाणे, सागारियपिंडं भुंजेमाणे, रायपिंडं भुजेमाणे ॥ १. सं० पा० - भविता जाव पव्वइए । २. सं० पा०-- अणुत्तरे जाव केवलवर | ३. × (क, ग) । ४. विसंजितातो ( क, ख, ग ) । ५. उत्तरिते ( क ग ) । ६. भतंसि ( क ) । ७. उदओघंसि ( ख ) 1 ८. दूतिज्ञ्जते ( क ग ) । ६. सं० पा०-- दुब्भिक्खसि वा जाव महता । घातिमा ( ३ | ४७१) । १०. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं रायतेउर-पवेस-पदं १०२. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे रायते उरमणुपविसमाणे णाइक्कमति, तं जहा - १. णगरे सिया सव्वतो समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समणमाहणा णो संचाएंति भत्ताए वा पाणाए वा णिक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा, तेसिं विष्णवणट्ठयाए रायंतेउरमणुपविसेज्जा। २. पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणमाणे रायंतेउरमणुपविसेज्जा। ३. हयस्स' वा गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते रायंतेउरमणुपविसेज्जा। ४. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायंतेउरमणुपवेसेज्जा। ५. वहिता व णं आरामगयं वा उज्जाणगयं वा रायतेउरजणो सम्वतो समंता संपरिक्खिवित्ता णं सण्णिवेसिज्जा। इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि समणे णिगंथे' 'रायंतेउरमणुपविसमाणे ° णातिक्कमइ॥ गब्भधरण-पदं १०३. पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा, तं जहा १. इत्थी दुव्वियडा दुण्णिसण्णा सुक्कपोग्गले अधिद्विज्जा। २. सुक्कपोग्गलसंसिटे व से वत्थे अंतो जोणीए अणुपवेसेज्जा। ३. सई वा से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा । ४. परो व से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा । ५. सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए मुक्कपोग्गला अणुपवेसेज्जा-इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि 'इत्थी पुरिसेण सद्धि असंवसमाणीवि गम्भं धरेज्जा ॥ १०४. पंचहिं ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गभं णो धरेज्जा, तं जहा-- १. अप्पत्तजोव्वणा । २. अतिकंतजोब्वणा ! ३. जातिवंझा। ४. गेलण्णपुट्ठा । ५. दोमणसिया---इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि 'इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गभं णो धरेज्जा ।। १०५. पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि णो गम्भं धरेज्जा, तं जहा १. णिच्चोउया, २. अगोउया। ३. वावण्णसोया । ४. वाविद्धसोया। ५. अणंगपडिसेवणी-इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गब्भं णो धरेज्जा ।। १. हतस्स (क, ख, ग)। २. निवेसिज्जा (ख, ग)। ३. सं० पा०-णिग्गंथे जाव णातिकमइ । ४. सं० पा०-ठाणेहिं जाव धरेज्जा। ५. सं० पाo-ठाणेहिं जाव णो धरेज्जा । ६. सं० पा०-इच्चे तेहि जाव णो धरेज्जा। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (बीओ उद्दे सो) ६६७ १०६. पंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गन्भं णो धरेज्जा, तं जहा १. उउंमि' णो णिगामपडिसेविणी यावि भवति । २. समागता वा से सुक्कपोग्गला पडिविद्धसंति । ३. उदिण्णे वा से पित्तसोणिते । ४. पुरा वा देवकम्मणा। ५. पुत्तफले वा णो णिव्वि?' भवति–इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गभं° णो धरेज्जा ।। णिग्गंथ-णिग्गंथी-एगओवास-पदं १०७. पंचहि ठाणेहि णिग्गंथा णिग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्ज वा णिसीहियं बा चेतेमाणा णातिक्कमंति, तं जहा-- १. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धमडविमणुपविट्ठा, तत्थेगयतो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा णातिक्कमंति। २. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य गामंसि वा णगरंसि वा' खेडंसि वा कव्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा णिगमंसि वा आसमंसि वा सण्णिवेसंसि वा रायहाणिसि वा वासं उवागता, एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया णो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा 'सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा ' णातिक्कमंति। ३. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य णागकुमारावासंसि वा 'सुवण्णकुमारावासंसि वा" वासं उवागता, तत्थेगओ' 'ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा' णातिक्कमंति। ४. आमोसगा दीसंति, ते इच्छंति णिग्गंथीओ चीवरपडियाए पडिगाहित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा 'सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा' णातिक्कमति । ५. जुवाणा दीसंति, ते इच्छंति णिग्गंथीओ मेहुणपडियाए पडिगाहित्तए, तत्थेगओठाणं वा सेज्जं वाणिसीहियं वा चेतेमाणा णातिक्कमंति। इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि •णिग्गंथा णिग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा' णातिक्कमंति ।। १. अउंमि (क)। ७. सं० पा०-ठाणं वा जाव णातिक्कमति । २. तावि (क, ख, ग)। ६. X (ख, ग) ३. निविटे (ख)। ६. गतिओ (क, ग); गयाओ (क्व); ४. सं० पा०--इच्चे तेहिं जाव णो धरेज्जा। सं० पा०-तत्थेगओ जाव णातिक्कमति । ५. सं० पा०-गरंसि वा जाव रायहाणिसि । १०,११. सं०पा०-ठाणं वा जाव णातिक्कमति । ६. तत्थेगतिता (क); तत्थगतिता (ग)। १२. सं० पा०-ठाणेहि जाव णातिक्कमति । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ ठाण १०८. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे अचेलए सचेलियाहि णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति, तं जहा -- १. खित्तचित्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । २. "दित्तचित्ते' समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । ३. जक्खाइटे समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहि अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । ४. उम्मायपत्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । ५. णिग्गंथीपवाइयए समणे णिगंथेहि अविज्जमाणेहि अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहि सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ॥ आसव-संवर-पदं १०६. पंच आसवदारा पण्णत्ता, तं जहा–मिच्छत्तं, अविरती, पमादो, कसाया', जोगा। ११०. पंच संवरदारा पण्णत्ता, तं जहा-संमत्तं, विरती, अपमादो, अकसाइत्तं अजोगित्तं ।। दंड-पदं १११. पंच दंडा पण्णत्ता, तं जहा--अट्ठादंडे, अणट्ठादंडे, हिंसादंडे, अकस्मादंडे, दिट्टी विप्परियासियादंडे ॥ किरिया-पदं ११२. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया', अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया ॥ ११३. मिच्छादिट्टियाणं णेरइयाणं पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा'--'आरंभिया, यावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादसणवत्तिया । १. खेत्त इत्ते (क, ख, ग)। ४. कसाता (क, ख, ग)! २. सं० पा०–एवमेतेणं गमएणं दित्तचित्त । ५. अकम्हा ° (ख)। ___ जक्खातिढे उम्मायपत्ते । ६. मातावत्तिता (क, ख, ग)। ३. वित्ततित्ते (क, ख, ग)। ७. सं० पा०-तंजहा जाव मिच्छादसणवत्तिया। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ पंचमं ठाणं (बीओ उद्देसो) ११४. एव सव्वेसि णिरंतरं जाव' मिच्छद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं, णवरं - विगलिंदिया मिच्छीि ण भणति । सेसं तहेव ॥ ११५. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- काइया, आहिगरणिया, पाओसिया, पारितावणिया, पाणातिवातकिरिया || ११६. रइयाणं पंच एवं चेव । एवं- निरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ ११७. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- आरंभिया', 'पारिगहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादंसणवत्तिया ॥ ११८. रइयाणं पंच किरिया निरंतरं जाव' वेमाणियाणं || ११६. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - दिट्ठिया, पुट्ठिया, पाडुच्चिया, सामंतोafणवाइया, साहत्थिया' ।। १२० एवं रइयाणं जाव वैमाणियाणं ॥ १२१. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - सत्थिया, आणवणिया, बेयारणिया, अणाभोगवत्तिया, अणवकखवत्तिया । एवं जाव" वेमाणियाणं ॥ १२२. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- पेज्जवत्तिया, दोसवत्तिया, पओगकिरिया, समुदाकरिया, ईरियावहिया । एवं मणुस्साणवि । सेसाणं णत्थि ।। परिण्णा-पदं १२३. पंचविहा परिण्णा पण्णत्ता, तं जहा -उवहिपरिण्णा, उवस्सय परिण्णा, कसायपरिण्णा, जोगपरिण्णा, भत्तपाणपरिणा ॥ हार-पर्द १२४. पंचविहे " ववहारे पण्णत्ते, तं जहा --आगमे, सुते, आणा, धारणा, जीते । जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्टवेज्जा । णो से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्टवेज्जा । णो से तत्थ सुते सिया जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पढ़वेज्जा । णो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पवेज्जा | ६. ठा० ११४२-१६३ । ७. पाडोचिता (क, ख, ग ) 1 ८. सोहत्थिता ( ग ) । ४. ठा० ११४२-१६३ । ६,१०. ठा० १११४२-१६३ । ५. सं० पा० - आरंभिता जाव मिच्छादंसण- ११. तुलना - भगवती ८।३०१; व्यवहार १० । वत्तिता । १२. सं० पा० एवं जाव जहा से । १. ठा० १११४२-१५१, १६०-१६३ । २. कविता ( क, ख, ग ) । ३. पातोसिता ( क, ख, ग ) । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण णो से तत्थ धारणा सिया जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा । इच्चतेहिं पंचहि ववहारं पट्टवेज्जा-आगमेणं' 'सुतेणं आणाए धारणाए ° जीतेणं । जधा-जधा से तत्थ आगमे 'सुते आणा धारणा जीते तधा-तधा ववहारं पट्टवेज्जा । से किमाह भंते ! आगमवलिया समणा णिगंथा ? इच्चेतं पंचविधं ववहारं जया-जया जहि-जहिं तया-तया तहि-तहिं अणिस्सि तोवस्सित सम्म ववहरमाणे समणे णिगंथे आणाए आराधए भवति ।। सुत्त-जागर-पदं १२५. संजयमणुस्साणं सुत्ताणं पंच जागरा पण्णत्ता, तं जहा–सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा°, फासा ।। १२६. संजतमणुस्साणं जागराणं पंच सुत्ता पण्णत्ता, तं जहा सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा , फासा ॥ १२७. असंजयमणुस्साणं सुत्ताणं वा जागराणं वा पंच जागरा पण्णत्ता, तं जहा सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा', फासा ।। रयादाण-वमण-पदं १२८. पंचहिं ठाणेहिं जीवा रयं आदिज्जंति, तं जहा--पाणातिवातेणं', 'मुसावाएणं, अदिण्णादाणेणं, मेहणेणं, परिग्गहेणं ।। १२६. पंचहिं ठाणेहिं जीवा रयं वमंति, तं जहा पाणातिवातवेरमणेण, मुसावाय वेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेण, मेहुणवेरमणेणं, परिग्गहवेरमणेणं ॥ दत्ति-पदं १३०. पंचमासियं णं भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पाणगस्स ।। उवघात-विसोहि-पदं १३१. पंचविधे उवधाते पण्णत्ते, तं जहा- उग्गमोवघाते, उप्पायणोवधाते, एसणोव ___ घाते, परिकम्मोवधाते, परिहरणोवघाते ।। १. सं० पा०-आगमेण जाव जीतेण । ६,७,८. सं० पा०-सहा जाव फासा । २. सं० पा०-आगमे जाव जीते। ६. सं० पा०-पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं। ३. जता (क, ख, ग)। १०. सं० पा०--पाणातिवातवेरमणेणं जाव परि४. तता (क, ख, ग)। गह° । ५. अणिस्सातो० (क, ग)। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं ठाणं (बीओ उद्देसो) ७०१ १३२. पंचविहा विसोही पण्णत्ता, तं जहा-उगमविसोही, उप्पायणविसोही, एसण विसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही ।। दुल्लभ-सुलभबोहि-पदं १३३. पंचहि ठाणेहि जीवा दुल्लभबोधियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा - अरहताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरियउवझायाणं अवणं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वदभाणे, विवक्क' तव-बंभचेराणं देवाण अवण्णं वदमाणे ॥ १३४. पंचहि ठाणेहिं जोवा सुलभबोधियत्ताए कम्म पकरेति, तं जहा-अरहताणं वण वदमाणे', 'अरहतपण्णत्तस्स धम्मस्स वण्णं वदमाणे, आयरिय उवज्झायाणं वण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स वण्णं वदमाणे °, विवक्क'-तब बंभचेराणं देवाणं वण्णं वदमाणे ।। पडिसंलीण-अपडिसंलोण-पदं १३५. पंच पडिसलीणा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियपडिसंलोणे', 'चक्खिदियपडिसंलोणे, धाणिदियपडिसलीणे, जिभिदियपडिसलीणे °, फासिंदियपडिसंलीणे ॥ १३६. पंच अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा-सोति दियअपडिसलीणे', 'चक्खिदिय अपडिसंलोणे. घाणिदियअपडिसंलीणं, जिभिदियअपडिसलीणे, फासिदियअपडिसलीणे ॥ सवर-असंवर-पदं १३७. पंचविधे संवरे पण्णते, तं जहा—सोतिदियसंवरे', 'चक्खिदियसंवरे, घाणिदिय संबरे, जिभिदियसवरे°, फासिदियसंवरे ।। १३८. पंचविधे असंबरे पण्णत्ते, तं जहा- सोतिदियअसंवरे', 'चविखदियअसंवरे, पाणिदियअसंबरे, जिभिदियअसंवरे °, फासिदियअसंवरे ।। संजम-असंजम-पदं १३६. पंचविधे संजमे पण्णते, तं जहा—सामाइयसंजमे', छेदोवद्रावणियसंजमे, परिहारविसुद्धियसंजमे', सुहुमसंपरागसंजमे, अहक्खायचरित्तसंजमे ।। १. विविक्क (ख)। फासिदिय । २. सं० पा०-बदमाणे जाव विवक्कतब ° । ६. सं० पा०-सोतिदियसंवरे जाव फासिदिय । ३. विविक्क (ख)। ७. सं० पा०-सोतिदियअसंवरे जाव फासिं४. सं० पा०-सोइंदियपडिसलीणे जाव फासि- दिय° । दिय। ८. सामातिते (क, ख, ग)। ५. सं० पा०-सोतिदियअपडिमलीणे जाव . विसुद्धित ° (क, ख, ग)। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ ठाणं १४०. एगिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविधे संजमे कज्जति, तं जहा-~ पुढविकाइयसंजमे', 'आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे °, वणस्सतिकाइयसंजमे ।। १४१. एगिदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तं जहा पुढविकाइयअसंजमे', 'आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइय असंजमे, वणस्सतिकाइयअसंजमें।। १४२. पंचिदिया णं जोवा असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, तं जहा-- सोतिदियसंजमे', 'चक्खिदियसंजमे, घाणिदियसंजमे, जिभिदियसंजमे, फासिदियसंजमे ॥ १४३. पंचिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविधे असंजमे कज्जति, तं जहा सोतिदियअसंजमें', 'चक्खिदियअसंजमे, धाणिदियअसंजमे, जिभिदियअसंजमे°, फासिदियअसंजमे।। १४४. सन्त्रपाणभूयजीवसत्ता णं असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, तं जहा-- एगिदियसंजमें', 'बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिदियसंजमे°, पंचिदिय संजमे ! १४५. सव्वपाणभूयजीवसत्ता णं समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तं जहा एगिदियअसंजमे', 'बेइंदियअसंजमे, तेइंदियअसंजमे, चरिदियअसंजमे', पंचिदियअसंजमे ।। तणवणस्सइ-पदं १४६. पंचविहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अग्गबीया, मूलबीया, पोर बीया, खंधबीया, बीयरुहा ।। आयार-पदं १४७. पंचविहे आयारे पण्णत्ते, तं जहा–णाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे । आयारपकप्प-पदं १४८. पंचविहे आयारपकप्पे पण्णत्ते, तं जहा-मासिए उग्घातिए, मासिए अणुग्धा तिए, चउमासिए उग्घातिए, च उमासिए अणुग्घातिए, आरोवणा ।। १. सं० पा.-पुढविकातियसंजमे जाव वण- दिय । स्सति । ४. सं० पा०–सोतिदियअसंजमे जाव फासि२. सं० पा०-पुढविकातितअसंजमे जाव वण- दिय° । स्सति: ५. सं० पा०-एगिदियसंजमे जाव पंचिंदिय । ३. सं० पा०---सोतिदियसंजमे जाव फासि- ६. सं० पा०--एगिदियअसंजमे जाव पंचिदिय 1 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (बीओ उद्देसो) ७०३ आरोवणा-पदं १४६. आरोवणा पंचविहा पण्णता, तं जहा-पट्टविया, ठविया, कसिणा, अकसिणा', हाडहडा ॥ वक्खारपवय--पदं १५०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीयाए महाणदीए उत्तरे णं पंच वखारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा - मालवंते, चित्तकूडे, 'पम्हकूडे, णलिणकूडे', एगसेले ॥ १५१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीयाए महाणदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपब्वता पण्णत्ता, तं जहा—तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे, सोमणसे ।। १५२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्ययस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपब्वता पण्णत्ता, तं जहा-विज्जुप्पभे, अंकावती, पम्हावतो, आसीविसे, सुहावहे ।। १५३. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए' महाणदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-चंदपव्वते, सूरपब्बते, णागपव्वते, देव पव्वते. गंधमादणे ।। महादह-पदं १५४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पंच महहहा पण्णत्ता, तं जहा--णिसहदहे, देवकुरुदहे, सूरदहे, सुलसदहे, विज्जुप्पभदहे ।। १५५. जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पब्वयस्स उत्तरे ण उत्तरकुराए कुराए पंच महादह ___पण्णत्ता,तं जहा--णीलवंतदहे, उत्तरकुरुदहे, चंददहे, एरावणदहे, मालवंत दहे ।। वक्खारपव्वय-पदं १५६. सव्वेवि गं वक्खारपव्वया सोया-सीओयाओ महाणईओ 'मदरं वा पव्वतं" पंच जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचगाउसताइं उव्वेहेणं ।। धायइसंड-पुक्खरवर-पदं १५७. धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं सीयाए महाणदीए १. अकसिणा जाब (क, ग)। २. बंभकूडे पम्हकूडे (क, ग)। ३. सीतोताते (क, ख, ग)! ४. मंदरं वा पब्वतंतेणं (क, ख, ग); समवाया ङ्गस्य 'पइण्णग' समवायस्य २३ सूत्रानुसारेण 'मंदरं वा पब्वयं' इति पाठो युज्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तावपि मंदरं वा--'मेरु वा पर्वत प्रति' इति व्याख्यातमस्ति । तदनुसारेणापि 'मंदरं बा पव्वतं' इति पाठो युज्यते । तेनैष एव पाठः स्वीकृतः। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ ठाणं उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-मालवंते, एवं जहा जंबुद्दीवे' तहा जाब पुक्खरवरदीवड्ढं पच्चत्थिमद्धे 'वक्खारपव्वया दहा य उच्चत्त भाणियव्वं ।। समयक्खेत्त-पदं १५८. समयक्खत्ते णं पंच भरहाई, पंच एरवताई, एवं जहा चउट्ठाणे बितीयउद्देसे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव' पंच मंदरा पंच मंदरचूलियाओ, णवरं उसुयारा णस्थि ।। ओगाहणा-पदं १५६. उसमे णं अरहा कोसलिए पंच धणुसताई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था । १६०. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी पंच धणुसताई उडढं उच्चत्तेणं होत्था । १६१. बाहाबली णं अणगारे पंच धणसताई उडद उच्चत्तणं होत्था । १६२. बंभी णं अज्जा "पंच धणुसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ १६३. "सुंदरी णं अज्जा पंच धणुसताइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ° ।। विबोध-पदं १६४. पंचहि ठाणेहिं सुते विबुज्झज्जा, तं जहा-सद्देणं, फासेणं, भोयणपरिणामेणं, सिद्दक्खएणं, सुविणदंसणेणं ॥ णिग्गंथी-अवलंबण-पदं १६५. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे णिग्गंथि गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा जातिक्क मति, तं जहा.-- १. णिगंथि च णं अण्णयरे पसुजातिए वा पक्खिजातिए वा ओहातेज्जा, तत्थ णिग्गंथे णिग्गंथि गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति । २. णिग्गंथे णिग्गथि दुग्गंसि वा विसमंसि वा पक्खलमाणि वा पवडमाणि वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति । ३. णिग्गथे णिग्गंथि सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कसमाणि वा उबुज्जमाणि' वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति । १. ठा० ५।१५०.१५६ । ५,६. सं० पा०—एवं चेव। २. ठा० ३३१०८। ७. सं० पा०—एवं सुंदरी वि । ३, वक्खार दहा य वक्खार-पन्वयाण (ख); ८. सेतसि (क, ख, ग)। वक्खारदहा त (ग)। ६. उवज्झमाणी (क); उवुज्झमाणी (ग)। ४. ठा० ४१३३७ । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (बीओ उद्देसो) ७०५ ४. णिग्गंथे णिग्गथि णावं आरुभमाणे वा ओरोहमाणे वा णातिक्कमति । ५. खित्तचित्तं दित्तचित्तं जक्खाइटुं उम्मायपत्तं उवसांगपत्तं साहिगरणं सपायच्छित्तं जाव भत्तपाणपडियाइक्खियं अटूजायं वा णिग्गंथे णिग्गंथि गेण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति ।। आयरिय-उवज्झाय-अइसेस-पदं १६६. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि पंच अतिसेसा पण्णत्ता, तं जहा १. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए 'णिगझिय-णिगझिय" पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा णातिक्कमति । २. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिंचमाणे वा विसोधेमाणे वा णातिक्कमति । ३. आयरिय-उवज्झाए पभु इच्छा वेयावडियं करेज्जा, इच्छा णो करेज्जा। ४. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा एगगो वसमाणे णातिक्कमति । ५. आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगरात वा दुरातं वा [एगओ ? ] वसमाणे णातिक्कमति । आयरिय-उवज्झाय-गणावक्कमण-पदं १६७. पंचहि ठाणेहि आयरिय-उवज्झायस्स गणावक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा १. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्मं पउंजित्ता भवति । २. आयरिय-उवज्झाए गणसि आधारायणियाए कितिकम्म वेणइयं णो सम्म पउंजित्ता भवति । ३. आयरिय-उवज्झाए गणंसि जे सुयपज्जवजाते धारेति, ते 'काले-काले' णो सम्ममणपवादेत्ता भवति । ४. आयरिय-उवज्झाए गणंसि सगणियाए' वा परगणियाए वा णिग्गंथीए बहिल्लेसे भवति। ५. मित्ते णातिगणे वा से गणाओ अवक्कमेज्जा, तेसिं संगहोवगहट्टयाए गणावक्कमणे पपणत्ते !! १. खेत्तइत्तं (क, ख, ग)। २. दित्तइत्तं (क, ख, ग)। ३. उवस्सगस्स (ख) सर्वत्र । ४. निमिज्झिय (क्व) 1 ५. X (क, ख, ग)। ६. काले (ख, ग)। ७. सगणिताते (क, ख, ग)। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ इति-पदं १६८. पंचविहा इडिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा -अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा, भाविप्पाणी अणगारा ॥ तइओ उद्देसो अस्थिकाय-पदं १६६. पंच अत्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासतिथकाए, जीवत्थिकाए, पोगलत्थिकाए || १७०. धम्मत्थिकाए अवणे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे | से समास पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ । Goaओ गं धम्मत्थिकाए एगं दव्वं । खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते । ठाणं कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति'भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे पिइए सासते अक्खए अव्वए' अवट्टिते णिच्चे । भावओ अवणे अगंधे अरसे अफासे । ओमणगुणे ॥ १७१. अधम्मत्थिकाए अवणे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्टिए लोग दव्वे | से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ । दव्वओ णं अधम्मत्थिकाए एवं दव्वं । खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते । १. भविस्सइ ( ख ) । २. अव्वते (क, ख, ग ) | कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे पिइए सासते अक्खए अव्बए अवट्टिते णिच्चे | ३. सं० पा०-- एवं चेव णवरं गुणतो ठाणगुणे । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०७ पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो) भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे । गुणओ ठाणगुणे ! १७२. आगासस्थिकाए अवण्णे “अगंध अरसे अफासे अरूवो अजावे सासर अवदिए लोगालोगदव्वे । से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। १७३. दव्वओ णं आगासत्थिकाए एग दव्वं । खेत्तओ लोगालोगपमाणमेत्ते । कालओ ण कयाइ णासी, " कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे । गुणओ अवगाहणागुणे ।। जीवत्थिकाए णं अवण्णे "अगंधे अरसे अफासे अरूबी जोवे सासए अवट्टिए लोगदव्व। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा--दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं जीवत्थिकाए' अणंताई दवाई। खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे । गुणओ उवओगगुणे' ।। १७४. पोग्गलत्थिकाए पंचवणे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे रूबी अजोवे सासते अवट्रिते. 'लोगदम्बे। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा--दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाइं । १. सं० पा०--एवं चेव गवरं खेत्तओ..... ____ अवगाहणागुणे सेसं तं चेव । २. सं० पा०---एवं चैव णवर दब्वओणं.... उवओगगुणे सेसं तं चंद। ३. जीवत्थिगाते (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-अवद्विते जाव दवओ। Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण खेत्तओ लोगपमाणमेले । कालओ ण कयाइ णासि', 'ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति---- भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे। भावओ वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते । गुणओ गहणगुणे !! गइ-पदं १७५. पंच गतोओ पण्णत्ताओ, तं जहा-णिरयगतो, तिरियगती, मणुयगती, देवगती, सिद्धिगती ! इंदियत्थ-पदं १७६. पंच इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा-सोतिदियत्थे', 'चक्खिदियत्थे, घाणिदियत्थे, जिभिदियत्थे, फासिंदियत्थे ॥ मुंड-पदं १७७. पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा-सोतिदियमुंडे', 'चक्खिदियमुंडे धाणिदियमुंडे, जिभिदियमुंडे,° फासिदियमुंडे । अहवा-पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा-कोहमुंडे माणमुंडे, मायामुंडे, लोभमुंडे, सिरमुंडे।। बायर-पदं १७८, अहेलोगे णं पंच वायरा पण्णत्ता, तं जहा -पुढविकाइया, आउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, ओराला तसा पाणा ॥ १७६. उडलोगे ण पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहा-"पुढविकाइया, आउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, ओराला तसा पाणा ।। १८०. तिरियलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया', 'बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया. पंचिदिया ॥ १८१. पंचविहा बायरतेउकाइया पणत्ता, तं जहा-इंगाले, जाले, मुम्मुरे, अच्ची, अलाते ।। १. सं० पा०--णासि जाव णिच्चे। ४. सं० पा.--एवं चेव । २. सं० पा०-सोतिदियत्थे जाव फासिदियत्थे। ५. सं० पा०--एगिदिया जाव पंचिंदिया। ३. सं० पासोतिदियमंडे जाव फासिदिय ! Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो) ७०६ १८२. पंचविधा बादरवाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-पाईणवाते, पडीणवाते, दाहिण वाते, उदीणवाते, विदिसवाते ॥ अचित्त-वाउकाय-पदं १८३. पंचविधा अचित्ता वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा–अक्कते, धंते', पीलिए, ___सरीराणुगते, संमुच्छिमे ॥ णियंठ-पदं १८४. पंच णियंठा पण्णत्ता, तं जहा-पुलाए', बउसे, कुसीले, णियंठे, सिणाते ।। १८५. पुलाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–णाणपुलाए, दंसणपुलाए, चरित्तपुलाए, लिंगपुलाए, अहासुहमपुलाए णाम पंचमे ।। १८६. ब उसे पंचविधे पण्णत्ते, णं जहा–आभोगबउसे, अणाभोगबाउसे, संवुडबउसे, असंवुडबउसे, अहासुहुमबउसे णामं पंचमे ॥ १८७. कुसीले पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा–णाणकुसीले, दंसणकुसीले, चरित्तकुसीले, लिंगकुसीले', अहासुहुमकुसीले णामं पंचमे ।। १८८. णियंठे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-पढमसमणियंठे, अपढमसमयणियंठे, चरिमसमयणियंठे, अचरिमसमयणियंठे, अहासुहमणियंठे णामं पंचमे ।। १८६. सिणाते पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा- अच्छवी, असबले, अकम्मसे, मंसुद्धणाणदंसण धरे अरहा जिणे केवली, अपरिस्साई । उपधि-पदं १६०. कप्पति णिग्गंथाण वा णिगंथीण वा पंच वत्थाई धारित्तए वा परिहरेत्तए वा, तं जहा-जंगिए', भंगिए', साणए', पोत्तिए', तिरीडपट्टए" णामं पंचमए । १९१. कप्पति" णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पंच रयहरणाइंधारित्तए वा परिहरेत्तए वा, तं जहाउण्णिए", उट्टिए", साणए, पच्चापिच्चिए", मुंजापिच्चिए णामं पंचमए॥ १. धम्मते (ख)। ८. साणते (क, ख, ग)। २. पुलाते (क, ख, ग)। ६. पोत्तिते (क, ख, ग)। ३. तवकुसीले (दृपा)। १०. तिरीडपट्टते (क, ख, ग)। ४. अपरिस्साती (क, ख, ग); अरहा (वृपा)। ११. कप्पंति (ब)। ५. कप्पंति (वृ); तृतीयस्थानस्य (३३३४५) १२. रतहरणाई (क, ख, ग)। वृत्तौ 'कल्पते' इति व्याख्यातमस्ति, अत्र तु १३. उष्णीते (क, ख, ग)। 'कल्पन्ते' इति व्याख्यातम् । १४. उट्टिते (क, ख, ग)। ६. जंगिते (क, ख, ग)। १५. पच्चापिच्चियए (ग)। ७. भंगिते (क, ख, ग)। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० ठाणं हिस्साट्ठाण-पदं १९२. धम्मण्णं चरमाणस्स पंच णिस्साट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-छक्काया, गणे, राया', गाहावती, सरीरं ।। णिहि-पदं १९३. पंच णिहि पण्णत्ता, तं जहा—पुत्तणिही, मित्तणिही, सिप्पणिही, धणणिही, धण्णणिही ।। सोच-पदं १६४. पंचविहे सोए' पण्णत्ते, तं जहा–पुढविसोए, आउसोए, तेउसोए, मंतसोए, बंभसोए॥ छउमत्थ-केवलि-पद १६५. पंच ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकाय, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं । एयाणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं', 'अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं°, परमाणुपोग्गल ।। महाणिरय-पदं १६६. अधेलोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महागिरया पण्णत्ता, तं जहा-काले, महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अप्पतिट्ठाणे ॥ महाविमाण-पदं १६७. उड्डलोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाविमाणा पण्णता, तं जहा--विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते, सव्वट्ठसिद्धे ।। सत्त-पदं १९८. पंच पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते, उदयणसत्ते ॥ भिक्खाग-पदं १६६. पंच मच्छा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोतचारी, पडिसोतचारी, अंतचारी, मज्झ चारी, सव्वचारी। १. राता (क, ख, ग)। २. सोते (क, ख, ग)। ३. सं० पा०-धम्मत्थिकात जाव परमाणु पोग्गलं। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणामासा पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो) ७११ एवामेव पंच भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोतचारी', पडिसोतचारी, अंतचारी, मझचारी , सव्वचारी ।। वणीमग-पदं २००. पंच वणीमगा पण्णत्ता, तं जहा-अतिहिवणीमगे, किवणवणीमगे, माहण वणीमगे, साणवणीमगे, समणवणीमगे । अचेल-पदं २०१. पंचहिं ठाणेहिं अचेलए पसत्थे भवति, तं जहा–अप्पापडिलेहा', लाधविए पसत्थे, ___ रूवे वेसासिए, तवे अणुण्णाते, विउले इंदियणिग्गहे ।। उक्कल-पदं २०२. पंच उक्कला पण्णता, तं जहा-दंडुक्कले, रज्जुक्कले, तेणुक्कले, देसुक्कले, सव्वुक्कले ।। समिती-पदं २०३. पंच समितीओ पण्णत्ताओ, तं जहा---इरियासमिती, भासासमिती', 'एसणा समिती, आयाणभंड-भत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण जल्ल ° -पारिठावणियासमिती ।। जीव-पदं २०४. पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया', 'बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, पंचिदिया ।। गति-आगति-पदं २०५. एगिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिए एगिदिएसु उव वज्जमाणे एगिदिएहितो वा', 'बेइदिएहितो वा, तेइंदिएहितो वा, चउरिदिएहितो वा°, पंचिदिएहितो वा उववज्जेज्जा। 'से चेव णं से एगिदिए एगिदियत्तं विप्पजहमाणे एगिदियत्ताए वा', "बेइंदियताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चरिंदियत्ताए वा ,पंचिदियत्ताए" वा गच्छेज्जा ॥ १. सं० पा०—अणुसोतचारी जाव सम्वचारी। ६. सं० पा०-एगिदितेहिंतो वा जाव पंचिदिय । २. वणीमते (क, ख, ग)। ७. X (क, ग)। ३. अप्पपडिलेही (ख)। ८. एगिदित्ताते (क, ग)। ४. सं० पा०---भासासमिती जाव पारिठावणिया- ६.सं० पा०-एगिदियत्ताते वा जाव पंचिदिय__समिती। त्ताते। ५. सं० पा०---एगिदिया जाव पंचिदिया। १०. पंचिंदित्ताते (क, ग) । Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ गणं २०६. बेंदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं चेव ।। २०७. एवं जाव' पंचिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा-पंचिदिए जाव' गच्छेज्जा । जीव-पदं २०८. पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा.-कोहकसाई', 'माणकसाई, माया कसाई °, लोभकसाई, अकसाई। __ अहवा-पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहाणेरइया', 'तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा°, देवा, सिद्धा॥ जोणि-ठिइ-पदं २०६. अह भंते ! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव - कुलत्थ - आलिसंदग - सतीण पलिमंथगाणं - एतेसि णं धण्णाणं कुदाउत्ताणं "पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताण मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराई। तेण परं जोणी पमिलायति', 'तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति °, तेण परं जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते ।। संवच्छर-पदं २१०. पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा~-णक्खत्तसंवच्छरे, जुगसंवच्छरे, पमाणसंवच्छरे, लक्खणसंवच्छरे, सणिचरसंवच्छरे ।। २११. जुगसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—चंदे, चंदे, अभिवड्डिते, चंदे, अभिवडिते चेव ।। २१२. पमाणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–णक्खत्ते, चंदे, उऊ, आदिच्चे, अभिवड्डिते ॥ २१३. लक्खणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-- संगहणी-गाहा समग णक्खत्ताजोगं जोयंति' समग उदू परिणमंति । णच्चुण्हं णातिसीतो, बहूदओ" होति णक्खत्तो ॥१॥ १. पू०-ठा० ५२०५। पमिलिथमाणे (ग)। २. ठा० ५।२०४। ७. सं० पा०-जधा सालीणं जाव केवतितं ! ३. ठा० ५२०५। ८. सं० पा०-पमिलायति जाव तेण पर। ४. सं० पा०-कोहकसाई जाव लोभकसाई। ६. जयंति (क, ग)। ५. सं० पा.--णेरइया जाव देवा। १०. णउण्हं (क, ग)। ६. पमिलिथगाणं (क); पलिमंथगाणी (ख); ११. बहूदतो (क, ख, ग)। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो) ७१३ ससिसगलपुण्णमासी, जोएइ विसमचारिणक्खत्ते । कडुओ' बहूदओ वा, तमाहु संवच्छरं चंदं ॥२॥ विसमं पवालिणो परिणमंति अणुदूसु देति पुप्फफलं । वासं ण सम्म वासति, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥३॥ पुढविदगाणं तु रसं, पुप्फफलाणं तु देइ आदिच्चो। अप्पेणवि वासेणं, सम्म णिप्फज्जए सासं ।।४।। आदिच्चतेयतविता, खणलवदिवसा उऊ परिणमंति । 'पुरिति रेणु थलयाई", तमाहु अभिवड्डितं जाण ॥५॥ जीवस्स णिज्जाणमग्ग-पदं २१४. पंचविधे जीवस्स णिज्जाणमग्गे पण्णत्ते, तं जहा---पाएहि, ऊरूहिं, उरेणं, सिरेणं, सव्वंगेहिं। पाएहि णिज्जायमाणे णिरयगामी भवति, ऊरूहि णिज्जायमाणे तिरियगामी भवति, उरेणं णिज्जायमाणे मणुयगामी भवति, सिरेणं णिज्जायमाणे देवगामी भवति, सव्वंगेहिं णिज्जायमाणे सिद्धिगति-पज्ज वसाणे पण्णत्ते ॥ छयण-पदं २१५. पंचविहे छेयणे पण्णत्ते, तं जहा-उप्पाछेयणे, वियच्छेयणे, बंधच्छेयणे, पएसच्छेयणे', दोधारच्छेयणे ।। आणंतरिय-पदं २१६. पंचविहे आणंतरिए पण्णत्ते, तं जहाउप्पायागंतरिए', वियाणंतरिए', पएसाणंतरिए', समयाणंतरिए', सामण्णाणंतरिए । पए अणंत-पदं २१७. पंचविधे अगंतए" पण्णत्ते, तं जहाणामाणंतए", ठवणाणतए, दव्वाणंतए, गणणाणतए पदेसाणंतए। अहवा-पंचविहे अणंतए पण्णत्ते, तं जहा-एगंतोऽणतए, दुहओणतए, देस• वित्थाराणंतए, सव्ववित्थाराणंतए, सासयाणंतए । १. विसमचारण (क, ग); बिसमाचारिण २, कडुतो (क, ख, ग)। ३. पूरेति त थलताई (क, ख)। ४. उप्पाय' (क, ग)। ५. पंथच्छेयण (वृपा)। ६. उप्पातयणंतरिते (क, ख, ग)। ७. वितणंतरिते (क, ख, ग)। ८. पतेसाणंतरिते (क, ख, ग) । ६. समताणंतरिते (क, ख, ग)। १०. अणंते (क, ख, ग): ११. णामणंतते (क, ग)। Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ ठाणं णाण-पदं २१८. पंचविहे गाणे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिवोहियणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे, मणपज्जवणाणे, केवलणाणे ।। २१६. पंचविहे गाणावरणिज्जे कम्मे पण्णते, तं जहा--आभिणिबोयिणाणावरणिज्जे', 'सुयणाणावरणिज्जे, ओहिणाणावरणिज्जे, भणपज्जवणाणावरणिज्जे °, केवल गाणावरणिज्जे ॥ २२०. पंचविहे सज्झाए पण्णत्ते, तं जहा–वायणा, पुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा। पच्चक्खाण-पदं २२१. पंचविहे पच्चक्खाणे पग्णत्ते, तं जहा—सद्दहणसुद्धे, विणयसुद्धे, अणुभासणासुद्धे, अणुपालणासुद्धे, भावसुद्धे ।। पडिक्कमण-पदं २२२. पंचविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा-आसवदारपडिक्कमणे, मिच्छत्तपडिक्कमणे, कसायपडिक्कमणे, जोगपडिक्कमणे, भावपडिक्कमणे ।। सुत्त-पदं २२३. पंचहि ठाणेहिं सुत्तं वाएज्जा, तं जहा-संगहट्ठयाए, उवग्गहट्टयाए, णिज्जर याए, सुत्ते वा मे पज्जवयाते भविस्सति, सुत्तस्स वा अवोच्छित्तिणयट्टयाए । २२४. पंचहि ठाणेहि सुत्तं सिक्खेज्जा, तं जहा–णाणठ्ठयाए, दंसणट्ठयाए, चरित्तट्टयाए, वुग्गहविमोयणट्ठयाए', अहत्थे वा भावे जाणिस्सामीतिकट्ट ॥ कप्प-पदं २२५. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा-किण्हा', 'णीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला ।। २२६. सोहम्भीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता । २२७. बंभलोग-लंतएस णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं पंचरयणी उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। बंध-पदं २२८. णेरइया णं पंचवण्णे पंचरसे पोग्गले बंधेसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा, १. सं० पा०---आभिणिबोहियणाणावरणिज्जे ३. विमोतणठ्ठयाते (क, ख, ग)। जाब केवल । ४. पंचविधा (क, ग)। २. उवग्गहणट्टयाए (ख)। ५. सं० पा०--किण्हा जाव सुक्किल्ला। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो) ७१५ तं जहा-किण्हे', 'णीले, लोहिते, हालिद्दे , सुक्किल्ले । तित्ते', 'कडुए, कसाए, अंबिले , मधुरे ॥ २२६. एवं जाव' वेमाणिया ॥ महाणदी-पदं २३०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं गंगं महादि पंच महाणदीओ समति, तं जहा—जउणा, सरऊ, आवी', कोसी, मही ।।। २३१. जंबुद्दीवे दीये मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं सिंधु महाणदि पंच महाणदोओ सम्प्पेंति, तं जहा---'स[त ? ] द्, वितत्था, विभासा", एरावती, चंदभागा ।। २३२. जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तं महादि पंच महाणदीओ समति, तं जहा—किण्हा, महाकिण्हा, णीला, महाणीला, महातीरा ॥ २३३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तावति महाणदि पंच महाणदीओ समप्पेति, तं जहा--इंदा, इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा, महाभोगा। तित्थगर-पदं २३४. पंच तित्थगरा कुमारवासमज्झे वसित्ता मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं' पव्वइया, तं जहा-वासुपुज्जे, मल्ली, अरिट्ठणेमी, पासे, वीरे ।। सभा-पदं २३५. चमरचंचाए रायहाणीए पंच सभा पण्णता, तं जहा–सभासुधम्मा, उववात सभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा, ववसायसभा । २३६. एगमेगे णं इंदट्ठाणे पंच सभाओ पण्णत्ताओ, तं जहा सभासुहम्मा", 'उववात सभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा, बवसायसभा ।। णक्खत्त-पद २३७. पंच णक्खत्ता पचतारा पण्णत्ता, तं जहा–धणिट्ठा, रोहिणी, पुणव्वसू, हत्थो, विसाहा ॥ पावकम्म-पदं २३८. जीवा णं पंचट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा १. मं० पा०--किण्हे जाव सुकिल्ले । २. सं० पा०..- तित्ते जाव मधुरे । ३. ठा० ११४२-१६३ । ४. आदी (क, ख, ग)। ५. सतद्दू विभासा वितत्था (क्व)। ६. ° मज्झा (क, ग)। ७. सं० पा०--मुंडा जाव पव्वतिता। ८. अलंकारित० (क, ख, ग)। ६. ववसात° (क, ख, ग)। १०. सं० पा०-सभासुहम्मा जाव ववसातसभा। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण चिणिस्संति वा, तं जहा-एगिदियणिव्वत्तिए', 'बेइंदियणिव्वत्तिए, तेइंदियणिव्वत्तिए, चरिंदियणिव्वत्तिए, • पंचिंदियणिव्वत्तिए । एवं-चिण-उचिण-बंध-उदीर-वेद तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं २३६. पंचपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ।। २४०. पंचपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णता जाव' पंचगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता॥ १. सं० पा०-एगिदियणिवित्तिते जाव पंचि- २. ठा० ११२५५, २५६ । दित Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठं ठाणं गण-धारण-पदं १. छहि ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति गणं धारित्तए, तं जहा-सड्डी पुरिसजाते, सच्चे पुरिसजाते, मेहावी पुरिसजाते, बहुस्सुते पुरिसजाते, सत्तिम अप्पाधिकरणे ।। णिग्गंथी-अवलंबण-पदं २. छहिं ठाणेहिं णिग्गंथे णिग्गथि गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ, तं जहा-खित्तचित्तं, दित्तचित्तं, जक्खाइटुं, उम्मायपत्तं', उवसग्गपत्तं, साहिकरणं ॥ साहम्मियस्स अंतकम्म-पदं छहि ठाणेहि णिग्गंथा णिग्गंथोओ य साहम्मियं कालगतं समायरमाणा णाइक्कमंति, तं जहा-अंतोहिंतो वा बाहिं णोणेमाणा, बाहीहिंतो वा णिब्बाहिं णीणेमाणा, उवेहेमाणा वा, उवासमाणा' वा, अणुण्णवेमाणा वा, तुसिणीए वा संपव्वयमाणा ।। छउमत्थ-केवलि-पदं छ ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आयासं, जीवमसरीरपडिबद्धं, परमाणपोग्गलं, सह।। एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा–धम्मत्थिकार्य', 'अधम्मस्थिकायं, आयासं, जीवमसरोरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं°, सदं ॥ १. उम्मातपत्तं (क, ख, ग)। २. साहीकरणो (ख)। ३. भयमाणा, उक्सामेमाणा (वृपा)। ४. सं० पा०-जिणे जाव सव्वभावेणं । ५. सं० पा०-धम्मत्थिकातं जाव सद्दे । Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं असंभव-पदं ५. छहिं ठाणेहिं सव्वजीवाणं णत्थि इड्डोति वा जुतीति वा जसेति वा बलेति वा वोरिएति वा पुरिसक्कार-परक्कमेति वा, तं जहा-१. जीवं वा अजीवं करणताए । २. अजोवं वा जीवं . करणताए । ३. एगसमए णं वा दो भासाओ भासित्तए। ४. सयं कडं वा कम्मं वेदेमि वा मा वा वेदेमि । ५. परमाणुपोग्गलं' वा छिदित्तए वा भिदित्तए वा अगणिकाएणं वा समोदहित्तए। ६. बहिता वा लोगंता' गमणताए । जीव-पदं ___ छज्जोवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा--पुढविकाइया', 'आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया. तसकाइया । ७. छ तारग्गहा पण्णत्ता, तं जहा-सुक्के, वुहे, वहस्सती, अंगारए, सणिच्छरे, केतू ।। . छबिहा संसारसमावण्णगा जोवा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया', *आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया,° तसकाइया ।। गति-आगति-पदं ६. पुढविकाइया छगतिया छआगतिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइए पुढवि काइएस् उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा', 'आउकाइएहितो वा, तेउकाइएहितो वा, वाउकाइएहितो वा, वणस्सइकाइएहितो वा, तसकाइएहितो वा उववज्जेज्जा ॥ से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा', 'आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइय त्ताए वा तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा !। १०. आउकाइया छगतिया छआगतिया एवं चेव जाव तसकाइया ।। जीव-पदं ११. छविहा सव्वजोवा पण्णता, तं जहा-आभिणिवोहियणाणो", 'सूयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी,° केवलणाणी, अण्णाणी। १. सुहमपोग्गले (क, ग)। ७. संपा०-पूढविकातितत्ताते वा जाव तस। २. सम्मोदहित्तते (क)। ५. ठा०६६। ३. लोगे वा (क, ग)। ६. ठा० ६.६ । ४. सं० पा०-पुढविकाइया जाव तसकाइया । १०. सं० पा०-आभिणिबोहियणाणी जाव केवल५. सं० पा०-पुढविकाइया जाव तसकाइया । णाणी। ६. सं० गा०-पूढविकाएहितो वा जाव तस। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छुट ठाणं ७१६ अहवा-छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा---एगिदिया', 'बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया,° पंचिंदिया, अणिदिया। अहवा–छविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–ओरालियसरीरी, वे उम्विय सरीरी, आहारगसरीरी, तेअगसरीरी, कम्मगसरीरी, असरीरी॥ तणवणस्सइ-पदं १२. छबिहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा–अग्गवीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा ॥ णो-सुलभ-पदं १३. छट्ठाणाई सव्वजीवाणं णो सुलभाई भवंति, तं जहा-माणुस्सए भवे । आरिए खेत्ते जम्मं । सुकुले पच्चायाती। केवलीपष्णत्तस्स धम्मस्स सवणता । सुतस्स वा सद्दहणता । सद्दहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्मं काएणं फासणता ।। इंदियत्थ-पदं १४. छ इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा -सोइंदियत्ये, 'चक्खिदियत्थे, घाणिदियत्थे, जिभिदियत्थे,° फासिंसदियत्थे, णोइंदियत्थे । संवर-असंवर-पदं १५. छविहे संवरे पण्णत्ते, तं जहा -सोतिदियसंवरे, 'चक्खिदियसंवरे, घाणिदिय संवरे, जिभिदियसंवरे, ° फासिदियसंवरे, णोइंदियसंवरे ।।। १६. छविहे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा ---सोतिदियअसंवरे', 'चक्खिदियअसंवरे घाणिदियअसंवरे, जिभिदियअसंवरे', फासिंदियअसंवरे, णोइंदियअसंवरे ।। सात-असात-पदं १७. छबिहे साते पण्णत्ते, तं जहा सोतिदियसाते', 'चक्खिदियसाते, घाणिदियसाते, जिभिदियसाते, फासिदियसाते °, णोइंदियसाते ।। १८. छविहे असाते पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदियअसाते', 'चक्खिदियअसाते, घाणि दियअसाते, जिभिदियअसाते, फासिदियअसाते °, णोइंदियअसाते ।। पायच्छित्त-पदं १६. छविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा --आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभया रिहे, विवेगारिहे, विउस्सग्गारिहे, तवारिहे ।। १. सं० पा०-एगिदिया जाव पंचिदिया। २. सं० पा०--सोइंदियत्थे जाव फासिदियत्थे। ५. सं० पा०-सोतिदियसाते जाव नोइंदियसाते । ३. सं० पा०-सोतिदियसंवरे जाव फासिं दिय। ६. सं० पा०---सोति दियअसाते जाव नोइंदिय४. सं० पा०—सोतिदियअसंवरे जाव फार्मि- असाते। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० ठाण मणुस्स-पदं २०. छविहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-जंबूदीवगा, धायइसंडदीवपुरस्थिमद्धगा, धायइसंडदीवपच्चत्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्डपुरस्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धगा, अंतरदीवगा। अहवा-- छव्विहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिममणुस्सा-कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा; गब्भवक्कंतिअमणुस्सा-कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा। २१. छव्विहा इडिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा--अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा, चारणा, विज्जाहरा ॥ २२. छव्विहा अणिड्डिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा- हेमवतगा, हेरपणवतगा, हरिवासगा', रम्मगवासगा', कुरुवासिणो, अंतरदीवगा ।। कालचक्क-पदं २३. छव्विहा ओसप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा --सुसम-सुसमा', 'सुसमा, सुसम-दूसमा, दूसम-सुसमा, दूसमा°, दूसम-दूसमा ।। २४. छन्विहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा-दुस्सम-दुस्समा', 'दुस्समा, दुस्सम सुसमा, सुसम-दुस्समा, सुसमा , सुसम-सुसमा ॥ २५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मणुया छ धणुसहस्साई उड्वमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था । २६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओस प्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए "मणुया छ धणुसहस्साई उडमुच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था ॥ २७. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए "मणुया छ धणुसहस्साई उड्डमुच्चत्तेणं भविस्संति °, छच्च अद्धपलि ओवमाइं परमाउं पालइस्संति ॥ २८. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु-उत्तरकुरुकुरासु मणुया छ धणुस्सहस्साई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालेति ।। १,२. °वंसगा (क, ग); ° वसगा (ख); २१२६६ सूत्रानुसारेण 'वास' पाठः स्वीकृतः । ३. सं० पा०-सुसमसुसमा जाव दूसमदूसमा । ४. सं० पा०-दुस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा। ५. सं० पा०--एवं चेव । ६. सं० पा०-एवं चेव जाव छच्च । ७, उत्तरकुराकुराए (ख)। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घट्ट ठाणं २६. एवं धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे चत्तारि आलावगा' जाव' पुक्खरवरदीवडुपच्चत्थिमद्धे चत्तारि आलावगा । संघयण-पदं ३०. छव्विहे संघयणे पण्णत्ते, तं जहा -- वइरोसभ -णाराय - संघयणे, उसभ-णारायसंघयणे, णाराय-संघयणे, अद्धणाराय- संघयणे, खोलिया-संघयणे, छेवट्टसंघयणे ॥ संठाण-पदं ३१. छव्विहे संठाणे पण्णत्ते, तं जहा - समच उरंसे, गग्गोहपरिमंडले, साई', खुज्जे, वामणे, हुंडे ॥ अणत्तव-अत्तव-पदं ३२. छट्टाणा अणसवओ अहिताए असुभाए अखमाए अणीसेसाए अणाणुगामियत्ताए भवति, तं जहा - परियाए", परियाले, सुते, तवे, लाभे, पूयासक्कारे ॥ ३३. छट्टाणा अत्तवतो हिताए' 'सुभाए खमाए णोसेसाए • आणुगामियत्ताए भवति, तं जहा - परियार, परियाले", "सुते, तवे, लाभे, पूयासक्कारे ॥ आरिय-पदं ३४. छव्विहा जाइ आरिया मणुस्सा पण्णत्ता, संग्रहणी - गाहा अंबट्टा य कलंदा य, वेदेहा वेदिगादिया " | हरिता चुंचुणा" चेव, छप्पेता इब्भजातिओ ॥ १॥ ३५. छव्विहा कुलारिया मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा— उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, जाता, कोरव्या ॥ १. ठा० ६।२५-२८ २. ठा० ३।१०८ । ७२१ तं जहा लोग ट्ठिति-पदं ३६. छव्विहा लोगट्टिती पण्णत्ता, तं जहा- आगासपतिट्ठिते वाए, वातपतिट्ठिते ३. ठा० ६१२५ २८ । ४. वृति (क, ख, ग ) 1 ५. णारात (क, ख, ग ) 1 ६. साती (क, ख, ग ) ७. परिता (क, ख, ग ) । ८. परिताले (क, ख, ग ) । ६. सं० पा०-हिताते जाव आणुगामियत्ताते ! १०. सं० पा० - परिताले जाव पूतासक्कारे । ११. वैदिगातिता (क, ख, ग ) 1 १२. चुंबणा ( क ); चुबुणा ( ग ) । Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ उदही, उदधिपतिद्विता पुढवी, पुढविपतिट्ठिता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिद्विता, जीवा कम्मपतिद्विता ॥ दिसा-पदं ३७. छद्दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- पाईणा', पडीणा, दाहिणा, उदीणा', उड्ढा, अधा ॥ ३५. छहि दिसाहि जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा - पाईणाए', 'पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अधाए ॥ ३६. छहि दिसाहि जीवाणं - आगई वक्कंती आहारे वुड्डी णिवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्धाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे णाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे पण्णत्ते, तं जहा - पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अधाए ॥ ४०. एवं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणवि, मणुस्सानवि || आहार- पर्द ४१. छहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारमाहारेमाणे णातिक्कमति, तं जहा--- संग्रहणी - गाहा वेयण'- वेयावच्चे, ईरियट्टाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छट्ठ पुण धम्मचिंताए ||१|| ४२. छहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारं वोच्छिदमाणे णातिक्कमति, तं जहा संग्रहणी - गाहा आतंके उवसगे, तितिक्खणे बंभचेरगुत्तीए । पाणिदया तवहेडं, सरीरवृच्छेयणट्टाए* ॥ १ ॥ उम्माय-पदं ४३. छहि ठाणेहिं आया उम्माय' पाउणेज्जा, तं जहा -- अरहंताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्त धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरिय उवज्झायाणं अवणं १. पातीणा ( क, ख, ग ) । २. उतीणा (क, ग ) । ३. सं० पा०-पातीणाते जाव अधाते । ४. सं० १० – एवं ठाण ५. ठा० ६।३८, ३६ । ६. वेतण ( क, ख, ग ) : याए ( क ) । ७. ८. उम्मायमायं (वृपा ) 1 Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं ठाणं ७२३ बदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवणं वदमाणे, जक्खावेसेणचेव,मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं ।। पमाय-पदं ४४. छविहे पमाए' पण्णत्ते, तं जहा-मज्जपमाए, णिद्दपमाए, विसयपमाए, कसाय पमाए, जूतपमाए, पडिलेहणापमाए । पडिलेहणा-पदं ४५. छविहा पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा __ आरभडा संमद्दा, वज्जेयध्वा य 'मोसली ततिया। पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेश्या' छट्ठी ।।१।। ४६. छविहा अप्पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा __ अणच्चावितं अवलित, अणाणबंधि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा णव खोडा, पाणीपाणविसोहणी ॥१॥ लेसा-पदं ४७. छ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेसा, “णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा, सक्कलेसा। ४८. पंचिदियतिरिक्खजोणियाण छ लेसाओ पण्णताओ, तं जहा-~-कण्हलेसा, *णीललेसा, काउलेसा, ते उलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥ ४६. एवं मणुस्स-देवाण वि। अग्गमहिसी-पदं ५०. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। ५१. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जम्मस्स महारपणो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। १. जक्खादेसेण (क, ख, ग)। २. पमाते (क, ख, ग)। ३. अट्ठाणठवणयाए (वृपा)। ४. वक्खित्ता (क, ख, ग)। ५. वेतिया (क, ख, ग)। ६. अचलित (ख)। ७,८. सं० पा०-कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ ठाणं देवठिति-पदं ५२. ईसाणस्स णं देविंदस्स [देव रण्णो' ? ] मज्झिमपरिसाए देवाणं छ पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता॥ महत्तरिया-पदं ५३. छ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ' पण्णत्ताओ, तं जहा–रूवा', रूवंसा', सुरूवा, रूववती, रूवकता, रूवप्पभा'! ५४. छ विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- अला, सक्का, सतेरा, सोतामणी, इंदा, धणविज्जुया ॥ अग्गमाहिसी-पदं ५५. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, __ तं जहा- अला', सक्का, सतेरा, सोतामणी, इंदा, घणविज्जुया ॥ ५६. भूताणंदस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो छ अग्गमहिसोओ पण्णत्ताओ, तं जहा-'रूवा, रूवंसा", सुरूवा, रूववती, रूवकता, रूवप्पभा ॥ ५७. जहाँ धरणस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स ॥ ५८. जहा" भूताणंदस्स तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव" महाघोसस्स ।। सामाणिय-पदं ५६. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो छस्सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ ६०. एवं भूताणंदस्सवि जाव" महाघोसस्स ।। मइ-पदं ६१. छविहा ओगह्मतो" पण्णत्ता, तं जहा--खिप्पमोगिण्हति", बहुमोगिण्हति, बहुविधमोगिण्हति, धुवमोगिण्हति, अणिस्सियमोगिण्हति, असंदिद्धमोगिण्हति ।। १. सर्वत्रापि एवं दृश्यते। २. ° महत्तरितातो (क, ख, ग)। ३. रूता (क, ख, ग)। ४. रूतसा (क, ख, ग)। ५. रूयकंता (क, ख, ग)। ६. रूतप्पभा (क, ख, ग)। ७. आला (क्व)। ८. रूता रूतंसा (क); रूता रूवंसा (ग)। ६. ठा० ६१५५ । १०. ठा०२१३५५-३६१ । ११. ठा० ६.५६ । १२. ठा० २१३५५-२६१ । १३. ठा० २।३५५-३६२ । १४. उम्गह° (क)। १५. खिप्पा (क, ग)। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ? ठाणं ७२५ ६२. छव्विहा ईहामती पण्णत्ता, तं जहा–खिप्पमीति, बहुमोहति', 'बहुविधमीहति, धुवमीहति, अणिस्सियमीहति °, असंदिद्धमीहति ॥ ६३. छविधा अवायमती पण्णत्ता, तं जहा- खिप्पमवेति', 'बहुमवेति, बहुविधमति, धुवमवेति, अणिस्सियमवेति °, असंदिद्धमवेति ॥ ६४. छविवहा धारणा [मती ? ] पण्णत्ता, तं जहा-बहुं धरेति, बहुविहं धरेति, पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अणिस्सितं धरेति, असंदिद्धं धरेति ॥ तव-पदं ६५. छविहे बाहिरए तवे पण्णत्ते, तं जहा–अणसणं, ओमोदरिया, भिक्खायरिया, रसपरिच्चाए', कायकिलेसो, पडिसलीणता ।। ६६. छविहे अभंतरिए तवे पण्णत्ता, तं जहा-पायच्छित्तं, विणओ, वेयावच्चं, सज्झाओ', झाणं, विउस्सग्गो । विवाद-पदं ६७. छविहे विवादे पण्णत्ते, तं जहा -ओसक्कइत्ता', उस्सक्कइत्ता', अणुलोमइत्ता', पडिलोमइत्ता, भइत्ता, भेलइत्ता ॥ खुडपाण-पदं ६८. छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता, तं जहा -- 'बंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया, तेउकाइया, वाउकाइया । गोयरचरिया-पदं ६९. छव्विहा गोयरचरिया" पण्णत्ता, तं जहा--पेडा, अद्धपेडा, गोमुत्तिया", पतंग वीहिया", संबुक्कावट्टा", गंतपच्चागता॥ महाणिरय-पदं ७०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ १. सं० पा.--बहुमीहति जाव असंदिद्धमीहति। ८. संकामइत्ता (क, ग)। २. स० पा०---खिप्पभवेति जाव असंदिद्ध°। ६. भेलतित्ता (क, ख, ग); भेयइत्ता (वृपा) । ३. भिक्खातरिता (क, ख, ग)। १०. खुड्ड (क)। ४. रसपरिच्चाते (क, ख, ग)। ११. वाचनान्तरे तु सिंहाः व्याघ्रा वृका दीपिका ५. अहेव सज्झाओ (ख)। ऋक्षास्तरक्षाः (व)। ६. ओक्कस्सतित्ता (क, ग); ओसक्कावइत्ता १२. चरिता (ख, ग)। (वृपा)। १३. गोमुत्तिता (क, ख, ग)। ७. उक्कस्सइत्ता (क, ग); ओसक्कइत्ता (वृ); १४. विहिया (क, ख, ग)। उस्सक्कावइत्ता (वृपा)। १५. संबुक्कवट्टा (ख, ग)। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाण अवक्कंतमहाणिरया पण्णता, तं जहा–लोले, लोलुए, उद्दड्ढे, गिद्दड्ढे, जरए', पज्जरए॥ ७१. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, तं जहा-आरे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे । विमाण-पत्थड-पदं ७२. बंभलोगे णं कप्पे छ विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा-अरए', विरए', णोरए, णिम्मले, वितिमिरे, विसुद्धे ॥ णक्खत्त-पदं ७३. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता पुबंभागा समखेत्ता तीसति मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाभद्दवया, कत्तिया, महा, पुव्वफग्गुणी, मूलो, पूव्वासादा" ! ७४. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता णत्तंभागा अवक्खेत्ता पण्ण रसमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा—सयभिसया, भरणी, भद्दा, अस्सेसा, साती, जेट्ठा ।। ७५. चंदस्स गं जोइसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता उभयभागा दिवड्डखेत्ता पणयालीसमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा–रोहिणी, पुणब्वसू, उत्तराफग्गुणी, विसाहा, उत्तरासाढा, उत्तराभद्दवया ॥ इतिहास-पदं ७६. अभिचंदे णं कुलकरे छ धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था । raha. भरद्रेणं राया चाउरंतचक्कवदी छ पुव्वसतसहस्साई महाराया हत्था । ७८. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणियस्स छ सता वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए अपराजियाणं संपया होत्था ।।। ७६. वासुपुज्जे णं अरहा छहिं पुरिससतेहिं सद्धि मुंडे' 'भवित्ता अगाराओ अणगा रियं पव्वइए ॥ ८०. चंदप्पभे णं अरहा छम्मासे” छउमत्थे हुत्था ।। संजम-असंजम-पदं ८१. तेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स' छव्विहे संजमे कज्जति, तं जहा१. जरते (क, ख, ग)। ६. सं० पाo-मुंडे जाव पव्वइते । २. अरते (क, ख, ग)। ७. छम्मासा (ख)। ३. विरते (क, ख, ग)। ८. तेतिदिया (क, ख, ग)। ४. णोरते (क, ख, ग)। ६. असमारंभ° (ख)। ५. पुव्वा आसाढा (ग)। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ8 ठाण ७२७ ८२. घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति । जिब्भामातो' सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति, “जिब्भामएणं दुवखेणं असंजोएत्ता भवति । फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । फासामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति ° ॥ तेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स छविहे असंजमे कज्जति, तं जहाघाणामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । “जिब्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति । जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति ° फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ।। खेत्त-पव्वय-पदं ८३. जंबुद्दीवे दीवे छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-हेमवते, हेरण्णवते, हरि वस्से, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा ।। ८४. जंबुद्दीवे दीवे छव्वासा पण्णत्ता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवए, हरिवासे, रम्भगवासे ॥ ८५. जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वता पण्णता, तं जहा-चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी ।। ८६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ कूडा पण्णत्ता, तं जहा-चुल्ल ___हिमवंतकूडे, वेसमणकूडे, महाहिमवंतकूडे, वेरुलियकूडे, णिसढकूडे, रुयगकूडे । ८७. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ कूडा पण्णत्ता, तं जहा--णीलवंत कूड', उवदंसणकूडे, रुप्पिकूडे, मणिकंचणकूडे, सिहरिकूडे, तिगिछिकूडे ।। महादह-पदं ८८. जंबुद्दीवे दीवे छ महद्दहा पण्णत्ता, तं जहा–पउमद्दहे, महापउमद्दहे, तिगिछिद्दहे', केसरिद्दहे, महापोंडरीयद्दहे, पुंडरीयद्दहे। तत्थ णं छ देवयाओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमट्ठितियाओ परिवसंति, तं जहा--सिरी, हिरी, धिती, कित्ती, बुद्धी, लच्छी ॥ णदो-पदं ८९. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ महाणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- __ गंगा, सिंधू, रोहिया, रोहितंसा, हरी, हरिकता॥ १. जिन्भमतो फासमतो (ग)। ५. णेल ° (क)। २. सं० पाo-एवं चेव एवं फासामातो वि। ६. तिगिच्छकूडे (क, ख, ग)। ३. सं० पा०-भवति जाव फासामतेणं। ७. तिगिच्छ° (क); तिनिछ (ख)। ४. णिसभकूडे (क, ग)। ८. ठा० २१२७१। Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० गणं १०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ महाणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- णरकता, णारिकता, सुवणकूला, रुप्पकूला, रत्ता, रत्तवती ॥ ६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उभयकूले छ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-गाहावती, दहवती, पंकवती, तत्तयला, मत्तयला, उम्मत्तयला ।। ६२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए उभयकले छ अंतरणदीओ पण्णताओ, तं जहा-खीरोदा, सीहसोता, अंतोवाहिणी, उम्मि मालिणी, फेणमालिणी, गंभीरमालिणी।। धायइसंड-युक्खरवर-पदं १३. धाय इसंडदीवपुरथिमद्धे णं छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-हेमवए', "हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा ॥ १४. एवं जहा जंबुद्दीवे दीवे जाव' अंतरणदीओ जाव' पुक्खरवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे भाणितव्वं ॥ उउ-पदं ६५. छ उदू पण्णत्ता, तं जहा—पाउसे, वरिसारत्ते, सरए, हेमंते, वसंते, गिम्हे ।। ओमरत्त-पदं ६६. छ ओमरत्ता पग्णत्ता, तं जहा-ततिए पव्वे, सत्तमे पव्वे, एक्कारसमे पव्वे, पण्णरसमे पव्वे, एगूणवीसइमे पव्वे, तेवीसइमे पव्वे ।। अतिरत्त-पदं ६७. छ अति रत्ता पण्णत्ता, तं जहा--चउत्थे पव्वे, अट्ठमे पव्वे, दुवालसमे पव्वे, सोलसमे पव्वे, वीसइमे पव्वे, चउवीसइमे पव्वे ॥ अत्थोग्गह-पदं १८. आभिणिबोहियणाणस्स णं छव्विहे अत्थोग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदिय त्थोग्गहें', 'चक्खि दियत्थोग्गहे, घाणिदियत्थोग्गहे, जिभिदियत्थोग्गहे, फासिं दियत्थोग्गहे °, णोइंदियत्थोग्गहे ।। ओहिणाण-पदं ६६. छव्विहे ओहिणाणे पण्णत्ते, तं जहा--आणुगाभिए, अणाणुगामिए, वड्डमाणए, हायमाणए, पडिवाती, अपडिवाती॥ -- - १. सं० पा०--हेमवए"." २. ठा० ६१८४-६२ । ३.ठा०३।१०८ ४. उडू (ग)। ५. सं० पा०-सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदिय । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं ठाण ७२६ अवयण-पदं १००. णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा इमाई छ अवयणाई वदित्तए, तं जहा अलियवयणे, हीलियवयणे, खिसितवयणे, फरुसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसवितं वा पुणो उदीरित्तए॥ कप्पस्स पत्थार-पदं १०१. छ कप्पस्स पत्थारा पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवायस्स वायं वयमाणे, मुसा वायस्स वायं वयमाणे, अदिण्णादाणस्स वायं वयमाणे, अविरतिवायं वयमाणे, अपरिसवायं वयमाणे, दासवायं वयमाणे-इच्चेते छ कप्पस्स पत्थारे पत्थारेत्तर सम्ममपडिपूरेमाणे तट्ठाणपत्ते ॥ पलिमंथु-पदं १०२. छ कप्पस्स पलिमथू पण्णत्ता, तं जहा-कोकुइते' संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए" सच्चवयणस्स पलिमंथ, चक्खुलोलुए ईरियावहियाए पलिमंथू , तितिणिए एसणागोयरस्स" पलिमंथू, इच्छालोभिते मोत्तिमग्गस्स पलिमंथू, भिज्जाणिदाण करणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवता अणिदाणता" पसत्था ।। कप्पट्ठिति-पदं १०३. छठिवहा कप्पट्टिती पण्णत्ता, तं जहा-सामाइयकप्पट्ठिती", छेओवट्ठावणिय कप्पद्विती", णिव्विसमाणकप्पद्विती, णिविट्ठकप्पद्विती, जिणकप्पद्विती, थेर कप्पट्टिती।। महावीरस्स छट्ठभत्त-पदं १०४. समणे भगवं महावीरे छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं मुंडे" भवित्ता अगाराओ अणगारियं ° पव्वइए॥ १०५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छटेणं भत्तेणं अपाणएणं अणते अणुत्तरे "णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे ° समुप्पण्णे ॥ १. अवतणाई (क, ख, ग)। २. वादं (क)। ३. वातं (क, ख, ग)। ४. सम्मा (ख)। ५. पाठान्तरेण परिमन्था वाच्याः (वृ)। ६. कोकुतिते (क, ख, ग)। ७. मोहरिते (क, ख, ग)। ८. चक्खुलोलुते (क, ख, ग)। ६. ईरितावहिताते (क, ख, ग)। १०. एसणागोतरस्स (क, ख, ग)! ११. अणिताणता (क, ख, ग)। १२. सामातित ° (क, ख, ग)। १३. छेतोवट्ठावणित ° (क, ख, ग)। १४. सं० पा०—मुंडे जाव पब्वइए । १५. सं० पा०—अगुत्तरे जाव समुप्पण्णे । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० ठाणं १०६. समणे भगवं महावीरे छ?णं भत्तेणं अपाणएणं सिद्धे 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिवुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ विमाण-पदं १०७. सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ देव-पदं १०८. सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जगा सरीरगा उक्कोसेणं छ रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। भोयण-परिणाम-पदं १०६. छविहे भोयणपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-मणुण्णे, रसिए, पीणणिज्जे, 'बिह णिज्जे, मयणिज्जे', दप्पणिज्जे"। विसपरिणाम-पदं ११०. छव्विहे विसपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा–डक्के, भुत्ते, णिवतिते, मंसाणुसारी __सोणिताणुसारी, अट्ठिमिजाणुसारी ॥ पट्ठ-पदं १११. छविहे पट्टे' पण्णत्ते, तं जहा–संसयपट्टे, वुग्गहपढे, अणुजोगी, अणुलोमे, ___ तहणाणे, अतहणाणे ॥ विरहिय-पदं ११२. चमरचंचा गं रायहाणी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववातेणं !! ११३. एगमेगे णं इंददाणे उक्कोसेणं छम्मासे विरहिते उववातेणं ।। ११४. अधेसत्तमा णं पुढवी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं॥ ११५. सिद्धिगती णं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं ॥ आउयबंध-पदं ११६. छविधे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा–जातिणामणिधत्ताउए, गतिणाम णिधत्ताउए, ठितिणामणिधत्ताउए, ओगाहणाणामणिधत्ताउए, पएसणामणिध त्ताउए, अणुभागणामणिहत्ताउए । ११७. गेरइयाणं छविहे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा–जातिणामणिहत्ताउए', १. सं० पा०--- सिद्धे जाव सव्वदुक्ख ° । २. दीवणिज्जे (१); मयणिज्जे (वृपा)। ३, दप्पणिज्जे विहणिज्जे मयणिज्जे (क, ग)। ४. अट्टे (वृपा)। ५. अणुभाव ° (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-जातिणामाणिहत्ताउते अणुभाग । जाव Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं ठाणं गतिणामणिहत्ताउए, ठितिणामणिहत्ताउए, ओगाहणाणामणिहत्ताउए, पएसणामणिहत्ताउए,° अणुभागणामणिहत्ताउए । ११८. एवं जाव' वेमाणियाणं ।। परभवियाउय-पदं ११६. रइया णियमा छम्मासावसे साउया परभवियाउयं पगरेंति ॥ १२०. एवं असुरकुमारावि जाव' थणियकुमारा॥ १२१. असंखेज्जवासाउया सणिपंचिदियतिरिक्खजोणि या णियम छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति ॥ १२२. असंखेज्जवासाउया सण्णिमणुस्सा णियम 'छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेति ॥ १२३. वाणमंतरा जोतिसवासिया वेमाणिया जहा गैरइया । भाव-पदं १२४. छविधे भावे पण्णत्ते, तं जहा-ओदइए', उवसमिए, खइए' खओवसमिए, पारिणामिए, सग्णिवातिए ॥ पडिक्कमण-पदं १२५. छव्विहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा-उच्चारपडिक्कमणे, पासवणपडिक्कमणे, इत्तरिए, आवकहिए, जंकिंचिमिच्छा, सोमणंतिए ।। णक्खत्त-पदं १२६. कत्तियाणक्खत्ते छत्तारे पण्णत्ते ।। १२७. असिलेसाणक्खत्ते छत्तारे पण्णत्ते।। पावकम्म-पदं १२८. जीवा णं छट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा--पुढविकाइयणिव्वत्तिए, 'आउकाइयणिव्वत्तिए, १. अणुभाव (क, ख, ग)। २. ठा० १११४२-१६३ । ३. ठा० १११४३-१५० । ४. सं० पा०-णियमं जाव पगरेंति। ५. ठा० ६.११६ । ६. ओदतिते (क, ख, ग)। ७. खतिते (क, ख, ग)। ८. खतोवसमिते (क, ख, ग)। ६. इत्तिरिते (क, ख, ग)। १०. सं०पा०-पुढविकाइयणिव्वत्तिते जाव तस। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठीण तेउकाइयणिव्वत्तिए, वाउकाइयणिव्वत्तिए, वणस्सइकाइयणिब्बत्तिए,' तसकायणिवत्तिए। एवं—चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १२६. छप्पएसिया णं खंधा अणंता पण्णत्ता ।। १३०. छप्पएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। १३१. छसमयट्ठितीया पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ १३२. छगुणकालगा पोग्गला जाव छगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। १. ठा० २५६ । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं गणावक्कमण-पदं सत्तविहे गणावक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा–'सव्वधम्मा रोएमि"। एगइया रोएमि एगइया णो रोएमि । सव्वधम्मा वितिगिच्छामि । एगइया वितिगिच्छामि एगइया णो वितिगिच्छामि । सव्वधम्मा जुहुणामि । एगइया जुहुणामि एगइया णो जुहुणामि। इच्छामि णं भंते ! एगल्लविहारपडिम उवसंपिज्जत्ता णं विहरित्तए॥ विभंगणाण-पदं २. सत्तविहे विभंगणाणे पण्णत्ते, तं जहा-एगदिसिं लोगाभिगमे, पंचदिसि लोगाभिगमे, किरियावरणे जीवे, मुदग्गे जीवे, अमुदग्गे जीवे, रूवी जीवे, सव्वमिणं जीवा। तत्थ खलु इमे पढमे विभंगणाणे—जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से गं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं पासति पाईणं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदोणं वा उड्ढे वा जाव सोहम्मे कप्पे । तस्स णं एवं भवति - अस्थि णं मम अतिसेसे पाणदसणे समुप्पण्णे-एगदिसिं' लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंस-पंचदिसिं लोगाभिगमे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु-पढमे विभंगणाणे ।। अहावरे दोच्चे विभंगणाणे-जया ण तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं पासति पाईणं वा' पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे । तस्स णं एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-पंचदिसिं १. सव्वधम्म जाणामि एवं पि एगे अवक्कमे २. एगदिसि (क, ग); एगदिसं (वृ)। (वृपा)। ३. क्वचिद्वाशब्दा न दृश्यन्ते (वृ)। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ ठाणं लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-एगदिसि लोगाभिगमे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु-दोच्चे विभंगणाणे । अहावरे तच्चे विभंगणाणे----जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं पासति पाणे अतिवातेमाणे, मुसं वयमाणे, अदिण्णमादियमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे, परिग्गह परिगिण्हमाणे, राइभोयणं भुजमाणे, पावं च णं कम्मं कोरमाणं णो पासति । तस्स णं एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पणे - किरियावरणे जोवे । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-णो किरियावरणे जीवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु - तच्चे विभंगणाणे ! अहावरे चउत्थ विभगणाणं-जया ण तधारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा 'विभंगणाणे ° समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं देवामेव पासति बाहिरभंतरए पोग्गले परियाइत्ता' पुढेगत्तं' णाणत्तं फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता विकुन्वित्ता णं चिट्ठित्तए। तस्स णं एवं भवति--अस्थि णं मम अतिसेसे गाणदंसणे समुप्पण्णे-मुदग्गे जीवे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु--अमुदग्गे जीवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमासु-चउत्थे विभंगणाणे। अहावरे पंचमे विभंगणाणे-जया' णं तधारूवस्स समणस्स' वा माहणस्स वा विभंगणाणे ° समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णणं देवामेव पासति बाहिरभंतरए पोग्गलए अपरियाइत्ता" पुढेगत्तं णाणत्तं 'फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता विउन्वित्ता णं चिद्वित्तए । तस्स णं एवं भवति---अत्थि' •णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे--अमुदग्गे जीवे । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-मुदग्गे जीवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छ ते एवमासुः-पंचमे विभंगणाणे। अहावरे छद्रे विभंगणाणे--जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा. 'विभंगणाणे ° समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं देवामेव पासति बाहिरभंतरए पोग्गले परियाइत्ता वा अपरियाइत्ता वा पुढेगत्तं णाणत्तं १. सं० पा०-माहणस्स वा जाव समुप्पज्जति। ६. सं० पा०-समणस्स जाव समुप्पज्जति । २. परितावितित्ता (क, ग)। ७. अपरितादितित्ता (क, ख)। ३. पुढविगत्तं (ख)। ८. सं० पा०–णाणत्तं जाव विउवित्ता। ४. फूडित्ता (क, ख); फुट्टित्ता संवट्टित्ता निव्व- ६. सं० पा०--अत्थि जाव समुप्पण्णे। . ट्टिता (बृपा)। १०. सं० पा०- माहणस्स वा जाव समुप्पज्जति। ५. जधा (क, ग)। Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं फुसित्ता' 'फुरित्ता फुट्टित्ता विकुवित्ता णं चिट्टित्तए । तस्स णं एवं भवतिअत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-रूवो जीवे । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-अरूवी जोवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु-- छट्टे विभंगणाणे। अहावरे सत्तमे विभंगणाणे-जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से ण तेण विभगणाणेणं समुप्पण्णेणं पासई सुहुमेणं वायुकाएणं फुडं पोग्गलकार्य एयंत वेयंत चलतं खुभंतं फंदंतं घटुंत उदीरेंतं तं तं भावं परिणमंतं । तस्स णं एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-सव्वमिणं जीवा । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमासु-- जीवा चेव, अजीवा चेव । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु । तस्स णं इमे चत्तारि जीवणिकाया णो सम्ममुवगता' भवंति, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया । इच्चेतेहि चहिं जीवणिकाएहिं मिच्छादंडं पवत्तेइ-सत्तमे विभंगणाणे ।। जोणिसंगह-पदं ३. सत्तविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा–अंडजा, पोतजा, जराउजा, रसजा, ____ संसेयगा', संमुच्छिमा, उब्भिगा ॥ गति-आगति-पदं ४. अंडगा सत्तगतिया सत्तागतिया पण्णत्ता, तं जहा-अंडगे अंडगेसु उववज्जमाणे अंडरोहितो वा, पोतजेहिंतो वा', 'जराउजेहितो वा, रसजेहितो वा, संसेयगेहितो वा, समुच्छिमेहितो वा°, उब्भिगेहितो वा उववज्जेज्जा । सच्चेवणं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा', 'जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, समुच्छिमत्ताए वा°, उब्भिगत्ताए वा गच्छेज्जा। ५. पोतगा सत्तगतिया सत्तागतिया एवं चेव । सत्तण्हवि गतिरागती भाणियब्वा जाव उब्भियत्ति ।। १. सं० पा०--फूसित्ता जाव विविधत्ता। गेहितो। २. एततं (क, ख, ग)। ८. सेच्चेव (ख)। ३. वेतंत (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-पोतगत्ताते वा जाव उब्भि४. ° मुवागता (क, ख, ग)। गत्ताते। ५. ° संगधे (क) 1 १०. पोत्तगा (क, ग)। ६. संसेत्तगा (क, ग)। ११. ठा० ७१३ ७. सं० पा०-~-पोतजेहिंतो वा जाव उब्भि Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३६ ठाणं संगहट्ठाण-पदं ६. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त संगहठाणा पण्णत्ता, तं जहा १. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्म पउंजित्ता भवति। २. "आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्म सम्म पउंजित्ता भवति । ३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले सम्ममणप्पवाइत्ता भवति । ४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्ममब्भु द्वित्ता भवति 1 ५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, णो अणापुच्छियचारी। ६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणुप्पण्णाई उवगरणाई सम्म उप्पाइत्ता भवति । ७. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि पुव्वुप्पण्णाई उवकरणाइं सम्मं सारक्खेत्ता संगोवित्ता भवति, णो असम्म सारक्खेत्ता संगोवित्ता भवति ।। असंगहट्ठाण-पदं ७. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त असंगहठाणा पण्णत्ता, तं जहा-- १. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्मं पउंजित्ता भवति। २. "आयरिय-उवज्झाए गं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्म णो सम्म पउंजित्ता भवति। ३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले णो सम्ममणप्पवाइत्ता भवति । ४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं णो सम्ममन्भुट्टित्ता भवति । ५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारी यावि हवइ, णो आपुच्छियचारी। ६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणुप्पण्णाई उवगरणाई णो सम्म उप्पाइत्ता भवति । १. सं० पा०-एवं जधा पंचट्ठाणे जाव आयरिय। ३. सं० पा०-एवं जाव पच्चुप्पण्णाणं । २. °चारी यावि भवति (क, ख, ग)। Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं ७३७ ७. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि° पच्चुप्पण्णाणं उवगरणाणं णो सम्म सारक्खेत्ता संगोवेत्ता भवति ।। पडिमा-पदं ८. सत्त पिडेसणाओ पण्णत्ताओ ॥ ६. सत्त पाणेसणाओ पण्णत्ताओ ।। १०. सत्त उग्गहपडिमाओ पण्णत्ताओ ।। आयारचूला-पदं ११. सत्तसत्तिक्कया पण्णत्ता । १२. सत्त महज्झयणा पण्णत्ता ।। पडिमा-पदं १३. सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एकूणपण्णत्ताए राइदिएहिं एगेण य छण्णउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं' 'अहाअत्थं अहातच्च अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया ° आराहिया' यावि भवति । अहेलोगठिति-पदं १४. अहेलोगे णं सत्त पुढवीओ पप्णत्ताओ ।। १५. सत्त घणोदधीओ पग्णत्ताओ। १६. सत्त घणवाता पण्णत्ता ।। १७. सत्त तणुवाता पण्णत्ता। १८. सत्त ओवासंतरा पण्णत्ता ।। १६. एतेसु णं सत्तसु ओवासंतरेसु सत्त तणुवाया पइट्ठिया ।। २०. एतेसु णं सत्तसु तणुवातेसु सत्त घणवाता पइट्ठिया ।। २१. एतेसु ण सत्तसु घणवातेसु सत्त घणोदधी पतिट्ठिया ।। २२. एतेसु णं सत्तसु घणोदधीसु ‘पिंडलग-पिहुल-संठाण-संठियाओ सत्त पूढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पढमा जाव सत्तमा ।। २३. एतासि णं सत्तण्डं पुढवीणं सत्त णामधेज्जा पण्णता, तं जहा-घम्मा, वंसा, सेला, अंजणा, रिट्ठा, मघा, माघवती ।। १. अहासुत्ता (क, ख, ग); सं. पा०- अहासुत्तं जाव आराहिया। २. समवायाङ्ग (४६।१) 'आणाए आराहिया' पाठोऽस्ति। ३. छत्तातिछत्तसंठाणसंठियाओ (): पिंडलगपिहुलसंठाणसंठिआओ, पिहुलपिहुलसंठाणसंठियाओ (वृपा) । Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं २४. एतासि णं सत्तण्डं पुढवीणं सत्त गोत्ता पण्णत्ता, तं जहा-रयणप्पभा, सक्कर प्पभा, वालुअप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, 'तमा, तमतमा" ॥ बायरवाउकाइय-पद २५. सत्तविहा बायरवाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—पाईणवाते, पडीणवाते', दाहिण वाते, उदीणवाते, उड्डवाते, अहेवाते, विदिसिवाते । संठाण-पदं २६. सत्त संठाणा पण्णत्ता, तं जहा-दीहे, रहस्से, वट्टे, तंसे, चउरंसे, पिहले, परिमंडले । भयाण-पदं २७. सत्त भयद्वाणा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगभए', परलोगभए, आदाणभए, ___ अकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए । छउमत्थ-पदं २८. सत्तहिं ठाणेहि छउमत्थं जाणेज्जा, तं जहा-पाणे अइवाएत्ता भवति । मुसं वइत्ता भवति । 'अदिण्णं आदित्ता" भवति । सद्दफरिस रसरूवगंधे आसादेत्ता भवति । पूयासक्कार' अणुवूहेत्ता भवति । इमं सावज्जति पण्णवेत्ता पडिसेवेत्ता भवति । णो जहावादी' तहाकारी' यावि भवति ॥ केवलि-पदं २६. सत्तहि ठाणेहि केवली जाणेज्जा, तं जहा–णो पाणे अइवाइत्ता भवति । णो मुसं वइत्ता भवति । णो अदिण्णं आदित्ता भवति । णो सद्दफरिसरसरूवगंधे आसादेत्ता भवति । णो पूयासक्कारं अणुवूहेत्ता भवति । इमं सावज्जति पण्ण वेत्ता णो पडिसेवेत्ता भवति ° । जहावादी तहाकारी यावि भवति ॥ गोत्त-पदं ३०. सत्त मूलगोत्ता पण्णत्ता, तं जहा-कासवा, गोतमा, वच्छा, कोच्छा, कोसिआ, मंडवा, वासिट्ठा ।। ३१. जे कासवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते कासवा, ते संडिल्ला, ते गोला, ते वाला, ते मुंजइणो, ते पव्वतिणो', ते वरिसकण्हा ।। १. तमप्पभा तमतमप्पभा (क)। २. पाडी (क)। ३. °भते (क, ख, ग)। ४. अदिन्नमदितिता (क, ग)। ५. पूता ° (क, ख, ग)। ६. जधा ° (क, ख, ग)। ७. तधा° (क, ख, ग)। ८. सं० पा०-अइवाइत्ता भवति जाव जधावाती। ६. पव्वपेच्छतिणो (क्व)। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं ७३३ ३२. जे गोतमा ते सत्तविधा पण्णता, तं जहा ते गोतमा, ते गग्गा, ते भारद्दा, ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्ख राभा, ते उदत्ताभा। ३३. जे वच्छा ते सत्तविधा, पण्णता, तं जहा --ने वच्छा, ते अग्गेया, ते मित्तेया', ते सामलिणो, ते सेलयया', ते अट्ठिसेणा, ते वीयकण्हा ॥ ३४. जे कोच्छा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते कोच्छा, ते मोग्गलायणा, ते पिंगलायणा', ते कोडिगो [ण्णा ?], ते मंडलिणो, ते हारिता, ते सोमया । ३५. जे कोसिआ ते सत्तविधा पण्णता, तं जहा-ते कोसिआ, ते कच्चायणा, ते सालं कायणा, ते गोलि कायणा, ते पक्खिकायणा, ते अग्गिच्चा, ते लोहिच्चा ! ३६. जे मंडवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा -ते मंडवा, ते आरिद्वा, ते संमुता, ते तेला, ते एलावच्चा, ते कंडिल्ला, ते खारायणा ।। ३७. जे वसिट्ठा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते वासिट्ठा, ते उंजायणा, ते जारु कण्हा, ते वग्यावच्चा, ते कोंडिण्णा, ते सण्णी, ते पारासरा ।। णय-पदं ३८. सत्त मूलगया पण्णता, तं जहा –णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुते, सद्दे, समभिरूढे, एवंभूते ॥ सरमंडल-पदं ३६. सत्त सरा पण्णत्ता, तं जहा--- संगहणी-गाहा सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे । धेवते. चेव णेसादे, सरा सत्त वियाहिता॥१॥ ४०. एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा सज्ज तु अग्गजिन्भाए, उरेण रिसभं सरं । कंठग्गतेण गंधारं, मज्झजिब्भाए मज्झिमं ।।१।। णासाए पंचमं बूया, दंतो?ण य धेवतं"। 'मुद्धाणेण यणेसादं, सरट्टाणा वियाहिता । २॥ १. उद्दसणाभा (क. टिप्पण); उदगत्ताभा (क्य) ८. खारातिणा (क); खातमा (ख); खारातेणा २. मित्ता (क, ग); मित्तेता (ख); मितिया (ग)। ६. जारेकण्हा (क्व)। ३. सेलतता (क, ख, ग)। १०. रेवते (ग, वृपा)। ४. पिंगातणा (क, ख, ग)। ११. साते (क, ख)। ५. सोमभी (क, ख, ग)। १२. रेवत (क, ग)। ६. समुता (ग)। १३. भमुहक्लेवेण (अ० सू० २६६) । ७. कतेल्ला (ख)। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० ठाण ४१. सत्त सरा जीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहा - सज्जं रवति मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं। हंसो णदति' गंधार, मज्झिमं तु गबेलगा ॥१॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं। छटुं च सारसा कोंचा, णेसायं सत्तमं गजो' ॥२॥ ४२. सत्त सरा अजीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहा सज्ज रवति मुइंगो, गोमुही रिसभं सरं । संखो णदति' गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ।।१।। चउचलणपतिढाणा, मोहिया पंचमं सरं। आडंबरो धेवतिय', महाभेरी य सत्तमं ॥२॥ ४३. एतेसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता, तं जहा सज्जेण लभति वित्ति, कतं च ण विणस्सति । गावो 'मित्ता य पुत्ता य", पारीणं चेव' वल्लभो ॥१॥ रिसभेण उ एसज्ज, सेणावच्चं धणाणि य । वत्थगंधमलंकार, इथिओ सयणाणि य ॥२॥ गंधारे गीतजत्तिण्णा, वज्जवित्ती' कलाहिया। भवंति कइणों पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा ॥३॥ मज्झिमसरसंपण्णा", भवंति सुहजीविणो । खायती पियती देती, मज्झिमसरमस्सितो ॥४॥ पंचमसरसंपण्णा, भवंति पढवीपती। सूरा संगहकत्तारो, अणेगगणणायगा ॥५॥ १. रवइ (अ० सू० ३००)। प्रसङ्गेऽत्र 'विज्जवित्ती' (वैद्यवृत्तयः) इति २. गओ (अ० सू० ३००)। पाठः समीचीन: प्रतिभाति । अनुयोगद्वारस्य ३. रवइ (अ० सू० ३०१)। आदर्शद्वये असौ लब्ध एव । वृत्तिकारयोः ४. रेवतियं (क, ख, ग)। सम्मुखे 'वज्जवित्ती' इति पाठः आसीत, तेन ५. पुत्ता य मित्ता य (अ० सू० ३०२) । ताभ्यां 'वर्यवृत्तयः' इति व्याख्या कृता। ६. होई (अ० सू० ३०२) । ८. कलाहिता (क, ख, ग)। ७. विज्जवित्ती (अ०सू० ३०२); स्थानाङ्गवृत्तौ १. कतिणो (क, ख, ग) ! अनुयोगद्वारस्य मलधारिहेमचन्द्रीयवृत्तौ च १०. मज्झिमसरमंता उ (अ० सू० ३०२) । 'वर्यवृत्तयः-प्रधानजीविकाः' इति व्याख्यात- ११. पितती (क, ख, ग)। मस्ति, किन्तु अस्मिन् श्लोके कलाप्रधानानां १२. पंचमसरमंता उ (अ० सू०३०२)। शास्त्रप्रधानानां च निर्देशो वर्तते, तस्मिन Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम ठाणं ७४१ धेवतसरसंपण्णा', भवंति कलहप्पिया। 'साउणिया वग्गुरिया, सोयरिया मच्छबंधा य ॥६।। 'चंडाला मुट्टिया मेया, जे अण्णे पावकम्मिणो। गोघातगा य जे चोरा, णेसायं सरमस्सिता" ||७|| ४४. एतेसि णं सत्तण्हं सराणं तओ गामा पण्णत्ता, तं जहा-सज्जगामे मज्झिमगामे गंधारगामे ।। ४५. सज्जगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- ___ मंगी कोरवीया, हरी य रयणी य सारकता य । छट्ठी य सारसी णाम, सुद्धसज्जा य सत्तमा ॥१॥ ४६. मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- उत्तरमंदा रयणी, उत्तरा उत्तरायता'। अस्सोकंता य सोवीरा, 'अभिरू हवति'" सत्तमा ॥१॥ ४७. गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा णंदी य खुद्दिमा पूरिमा, य च उत्थी य सुद्धगंधारा। उत्तरगंधारावि य, पंचमिया हवति मुच्छा उ ॥१॥ सुठुत्तरमायामा, सा छट्ठी णियमसो उ णायव्वा । अह उत्तरायता, कोडिमा य" सा सत्तमी मुच्छा ॥२॥ सत्त सरा कतो संभवंति ? गीतस्स का भवति जोणी ? कतिसमया उस्साया ? कति वा गीतस्स आगारा ? ||१|| सत्त सरा णाभीतो, भवंति गीतं च रुपणजोणीयं"। पदसमया" ऊसासा, तिण्णि य गीयस्स आगारा ॥२॥ ४८. १. रेवत ° (क, ख, ग); धेवयसरमंता उ चीनोस्ति, संगीतरत्नाकरेपि एतद् नाम (अ० सू० ३०२)। लभ्यते, तेन असौ पाठः अत्रापि स्वीकृतः । २. दुहजीविणो (अ० सू० ३०२) । ७. आसोकंता (ख, ग); आसकंता (अ० सूर ३. साउणिया वाउरिया, सोयरिया य मुट्ठिया ३०५)। ___ (अ० सू० ३०२) । ८. अभिरूवेति (क)। ४. णेसातं (क, ख, ग)। ६. खुड्डिया (अ० सू० ३०६)। ५. नेसायसरमता उ, हवंति हिंसगा नरा। १०. त (क, ग)। जंघाचरा लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा ॥ ११. गेयस्स (क, ख, ग)। (अ० सू० ३०२)। १२. कतिसमता (क, ख, ग)। ६. उत्तरासमा (क, ख, ग); अत्र आदर्शषु १३. गेयस्स (क, ख, ग)। 'उत्तरासमा' इति पाठो विद्यते, किन्तु वस्तुतः १४. रुय° (क्व)। अनूयोगद्वारस्वीकृतः 'उत्तरायता' पाठः समी- १५. पादसमता (ख); पायसमा (अ.सू० ३०७)! Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ आइमिउ आरभंता, अवसाणे 'य भवेंता", अट्टगुणे, छद्दोसे 'जो णाहिति" सो गाहिर, भीतं दूतं रहस्सं", काकस्सरमणुणासं, पुण्णं रत्तं च अलंकियं मधुरं समं सुललियं, उर-कंठ - सिर- विसुद्ध", च गिज्जते' मउय-रिभिअ-पदबद्ध सत्तसरसीहरं गेयं" 11011 समुव्वहंता य मज्भगारंमि । तिणि य गेयस्स आगारा ||३| तिणि य वित्ताइं 'दो य" भणितीओ । सुसिक्खिओ रंगमज्झमि ॥४॥ 'गायंतो मा य गाहि उत्ताल " । च होंति गेयस्स छद्दोसा ||५|| च वत्तं तहा अट्ठ गुणा होंति समतालपदुक्खेव', हेउजुत्तमलंकियं मितं णिद्दोसं सारवंत च, उवणीतं सोवयारं च, १. त उजवेता ( ख, ग ) 1 २. दोषिण (अ० सू० ३०७) । ३. जा णाहिति ( ग ) | ४. दुतं उपिच्छं (वृपा); दुयमपिच्छं ( अ० सू० ३०७ ) 1 ५. उत्ताल च कमसो मुणेयव्वं (अ०सू० ३०७ ) । ६. सुकुमारं ( क, ख, ग ); वृत्तिकृता 'सुकुमारं - ललित' इति व्याख्यातम् । ७. पसत्थं (क, ख, ग ) 1 ८. गिज्जते ( ख ) । ६. पक्वं (क, ख, ग, वृ); आदर्शषु 'पहुक्खेव' इति पाठो लिखितो लभ्यते, वृत्तावपि मुख्यत्वेनासौ व्याख्यातोस्ति, यथा - तथा समः प्रत्युत्क्षेपः प्रतिक्षेपो वा - मुरजकंशिकायातोद्यानां यो ध्वनिस्तल्लक्षणः नृत्यत्पादक्षेपलक्षणो वा यस्मिस्तत्सम प्रत्युत्क्षेपं समप्रतिक्षेपं वेति (वृत्ति पत्र ३७६ ) । वृत्ति - कारेण 'पडुक्खेवं' इति पाठो लब्धस्ततः प्रत्युत्क्षेपः इतिशब्दानुसारी अर्थः कृतः, विक १०. अविघुटुं । गेयस्स || ६ || 1 मधुरमेव य ॥५॥ ठाणं ल्परूपेण नृत्यत्पादक्षेपलक्षणः इत्यर्थोपि कृतः । अनुयोगद्वारस्य हारीभद्रीयवृत्ती 'पदुक्खेव' इति पाठ: प्राप्यते । अर्थ संगत्यासौ समीचीनोस्ति । दु-डु वर्णयोः प्राचीन लिप्यां सादृश्येन 'पदुक्खेवं इति स्थाने 'पडुक्खेवं ' इति परिवर्तनं जातं सम्भाव्यते । अनुयोगद्वारे अस्याः गाथायाः अनन्तरं निम्नलिखिता गाथा वर्तते - अक्खरसमं पदसमं, तालसमं लयसमं गृहसमं च । निस्ससिउस्ससियस मं, संचारसमं सरा सत्त ॥ ( अ० सू० ३०७ ) 1 अत्र वृत्तिकृता अनुयोगद्वारटीकामाश्रित्य व्याख्या कृतास्ति - इयं च गाथा स्वरप्रकरणोपान्ते 'तंतिसम' मित्यादिरधीतापि इहाक्षरसममित्यादि व्याख्यायते, अनुयोगद्वारटीकायामेवमेवदर्शनादिति (वृ) । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम ठाण ७४३ सममद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं । तिण्णि वित्तप्पयाराई', चउत्थं णोपलव्भती ॥६॥ सक्कता पागता चेव, 'दोण्णि य भणिति आहिया। सरमंडलंमि गिज्जते, पसत्था इसिभासिता ॥१०॥ केसी गायति' मधुरं ? केसि गायति खरं च रुक्खं च ? केसी गायति चउरं? 'केसि विलंब" ? दुतं केसी ? विस्सरं पुण केरिसी? ॥११॥ सामा गायइ मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च । गोरी गायति चउर, काण विलंबं दुतं अंधा ॥ विस्सरं पुण पिंगला ।।१२।। तंतिसमं तालसम, पादसमं लयसमं महसमं च ! णीससिऊससियसम, संचारसमा सरा सत्त ॥१३॥ सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एकविसती। ताणा एगूणपण्णासा, समत्तं सरमंडलं ॥१४॥ कायकिलेस-पदं ४६. सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा-ठाणातिए', उक्कुड्यासणिए, पडिमठाई, वीरासणिए, णेसज्जिए, दंडायतिए, लगंडसाई ।। खेत्त-पव्वय-णदी-पदं ५०. जंबुद्दीवे दोवे सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे ।। ५१. जंबद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-चुल्लहिमवंते, महाहिमवते, णिसढे', णीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे ॥ ५२. जवट्टीवे दीवे सत्त महाणदीओ पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्पेति",तं जहा-- गंगा, रोहिता, हरी, सीता, णरकंता, सुवण्णकूला रत्ता ।। ५३. जंबहीवे दीवे सत्त महाणदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समति, तं जहा - सिंध, रोहितंसा, हरिकता, सीतोदा, णारिकता", रुप्पकूला, रत्तावतो ।। १. वित्तप्पयायाई (ख)। २. दुविधा (क, ग)। ३. गातति (क, ख, ग) ! ४. केसी य विलंबियं (अ० सू० ३०७)। ५. वीसती (ख)। ६. ठाणातिते (क, ख, ग)। ७. दंडाततिते (क, ग); दंडातिए (ख) । ८. हरिवंसे (क, ग); अशुद्ध प्रतिभाति । ६. निसभे (क, ग)। १०. समुप्पंति (क, ख, ग)। ११. नारीकता (ख, ग)। १२. रत्तवती (क)। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ ठाणं ५४. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा---भरहे', 'एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे °, महाविदेहे ।।। ५५. धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासहरपव्वता पण्णत्ता, त जहा--चुल्लहिमवंते', 'महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी , मंदरे । ५६. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं सत्त महाणदीओ पुरत्थाभिमुहीओ कालोयसमुई समति, तं जहा-गंगा', 'रोहिता, हरी, सीता, गरकंता, सुवण्णकूला, रत्ता॥ ५७. धायइसंडदोवपुरथिमद्धे णं सत्त महाणदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुह समप्पेति, तं जहा-सिंधू', 'रोहितंसा, हरिकता, सीतोदा, णारिकता, रुप्प कूला°, रत्तावती !! ५८. धायइसंडदीवे पच्चत्थिमद्धे णं सत्त वासा एवं चेव, णवरं-पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समति, पच्चत्थाभिमुहीओ कालोदं । सेसं तं चेव ॥ ५६. पुक्खरवरदीवड्पुरस्थिमद्धे णं सत्त वासा तहेव', नवरं-पुरत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समूह समप्पंति, पच्चत्थाभिमुहीओ कालोदं समुई समप्पेति । सेसं तं चेव ॥ ६०. एवं पच्चत्थिमद्धेवि नवरं—पुरत्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं समति, पच्च स्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समप्पैति । सव्वत्थ वासा वासहरपवता णदीओ य भाणितव्वाणि ॥ कुलगर-पदं ६१. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था, तं जहा-- संगहणी-गाहा मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे । विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ॥१॥ ६२. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था पढमित्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे । तत्तो य पसेणइए, मरुदेवे चेव णाभी य ॥१॥ १. सं० पा०--भरहे जाव महाविदेहे । २. सं० पा०-चूल्ल हिमवंते जाव मंदरे । ३. संपा०--गंगा जाव रत्ता। ४. सं० पा०--सिंधू जाव रत्तावती। ५. ठा० ७१५४-५७। ६. ठा०७१५४-५७। ७. णतीतो (क, ख, ग)। ८. पसेणइ पुण (ख)। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाण ७४५ ६३. एएसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारियाओ हुत्था, तं जहा चंदजस चंदकता, सुरूव पडिरूव चक्खुकता य। सिरिकता मरुदेवी, कुलकरइत्थीण णामाई ॥१॥ ६४. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति मित्तवाहण' सुभोमे य, सुप्पभे य सयंपभे। दत्ते सुहुमे सुबंधू य, आगमिस्सेण होक्खती ॥१॥ ६५. विमलवाहणे णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताए हब्वमार्गाच्छसु, तं जहा मतंगया' य भिगा, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा । मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य ॥१॥ ६६. सत्तविधा दंडनीति पण्णत्ता, तं जहा-हक्कारे, मक्कारे, धिक्कारे, परिभासे, मंडलवंधे, चारए, छविच्छेदे ।। चक्कवट्टिरयण-पदं ६७. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त एगिदियरतणा पण्णत्ता, तं जहा चक्करयणे, छत्तरयणे, चम्मरयणे, दंडरयणे, असिरयणे, मणिरयणे, काकणिरयणे । ६८. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त पंचिदियरतणा पण्णत्ता, तं जहा सेणावतिरयणे, गाहावतिरयणे, वड्डइरयणे, पुरोहितरयणे, इत्थिरयणे, आस रयणे, हत्थिरयणे ।। दुस्समा-लक्खण-पदं ६६. सतहि ठाणेहि ओगाढं दुस्समं जागेज्जा, तं जहा--अकाले वरिसइ, काले ण वरिसइ, असाधू पुज्जति, साधू ण पुज्जति, गुरूहि जणो मिच्छं पडिवण्णो, मणोदुहता, वइदुहता ।। सुसमा-लक्खण-पदं ७०. सतहि ठाणेहि ओगाढं सुसम जाणेज्जा, तं जहा----अकाले ण वरिसइ, काले १. मित्तप्पभे (क, ग) 1 संभाव्यते । तेनैव वृत्ति कृता 'मत्तांग' शब्दो २. मत्तंगता (क, ख, ग); यद्यपि आदर्शेषु व्याख्यातः—मत्तं-मदस्तस्य कारणत्वान्मद्य वृत्तावपि चात्र 'मत्तंगता' पाठो लभ्यते, मिह मत्तशब्देनोच्यते तस्याङ्गभूता:-कारणतथापि अर्थसमीक्षया 'मतंगया' पाठः समी- भूतास्तदेव वाऽङ्ग–अवयवो येषां ते मत्ताचीनः प्रतिभाति । 'मदंगया' इत्यस्य स्थाने ङ्गका: (०)। 'त' श्रत्या 'मतंगया' इति पाठो जातः, तस्यैव ३. छबिछेदे (ख)। 'मत्तंगता' इत्याकारे परिवर्तनं जातमिति ४. कागिणि° (ग)। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ ठाण वरिसइ, असाधू ण पुज्जति, साधू पुज्जति, गुरूहि जणो सम्म पडिवण्णो, मणोसुहता, वइसुहता। जीव-पदं ७१. सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा---णेरइया, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ। आउभेद-पदं ७२. सत्तविधे आउभेदे पण्णते, तं जहासंगहणी-गाहा अज्झवसाण-णिमित्ते, आहारे वेयणा पराघाते । फासे आणापाणू 'सत्तविधं भिज्जए' आऊं ॥१॥ जीव-पदं ७३. सत्तविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सतिकाइया, तसकाइया, अकाइया। अहवा-सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा- कण्हलेसा', •णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा, अलेसा ।। बंभदत्त-पदं ७४. बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्त धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सत्त य वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अधेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिवाणे णरए णेरइयत्ताए उववण्णे । मल्ली-पवज्जा-पदं ७५. मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तं जहा-मल्ली विदेहरायवरकण्णगा, पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाये अंगराया, रुप्पी कुणालाधिपती, संखे कासीराया, अदीणसत्तू कुरुराया, जितसत्त पंचाल राया ॥ दसण-पदं ७६. सत्तविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मइंसणे, मिच्छइंसणे, सम्मामिच्छदसणे, चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणे, ओहिदसणे, केवलदसणे' ॥ ३. केवलि ° (क, ग)। १. सत्त-विधि बिभज्जए (क, ग)। २. सं० पा०-कण्हलेसा जाव सुक्क लेसा । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम ठाणं ७४७ छउमत्थ-केवलि-पदं ७७. छउमत्थ-वीयरागे णं मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ वेदेति, तं जहा-- णाणावरणिज्जं, दसणावरणिज्ज', वेयणिज्ज, आउयं, णाम, गोतं, अंतराइयं ।। ७८. सत्त ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मस्थिकायं, आगास स्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सइं, गंध। एयाणि चेव उप्पण्णणाण दंसणधरे अरहा जिणे केवली सब्वभावेणं' जाणति पासति, तं जहा-धम्मत्थिकाय', 'अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सह, गंधं ॥ महावीर-पदं ७६. समणे भगवं महावीरे वइरोसभणारायसंघयणे समचउरंस-संठाण-संठिते सत्त __रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था ।। विकहा-पदं ८०. सत्त विकहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा---इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा, दसणभेयणी, चरित्तभेयणी ।। आयरिय-उवझाय-अइसेस-पदं ८१. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा १. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स' पाए णिगिज्झिय-णिगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जमाणे वा णातिक्कमति । २. "आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिंचमाणे वा विसोधेमाणे वा णातिक्कमति । ३. आयरिय-उवमाए पभ इच्छा वेयावडियं करेज्जा. इच्छा जोकरेज्जा। ४. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा एगगो वसमाणे णातिक्कमति। ५. आयरिय-उवज्झाए ° बाहिं उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा [एगओ?] वसमाणे णातिक्कमति। १. दरिसणा (क, ग)। २. सं० पा०-उप्पणाण जाव जाणति । ३. सं० पा.---धम्मत्थिकायं जाव गंधं । ४. विकधातो (क, ग)। ५. मिउकालणिता (क,ग);मिउकोणिता (ख)। ६. उवस्सगस्स (क, ख, ग)। ७. पाते (क, ख, ग)। ८. सं० पा०- एवं जधा पंचट्टाणे जाव बाहिं। Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ठाणं ६. उवकरणातिसेसे। ७. भत्तपाणातिसेसे ॥ संजम-असंजम-पदं ५२. सत्तविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा -पुढविकाइयसंजमे', 'आउकाइयसंजमे, तेउ काइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे, वणस्सइकाइयसंजमे °, तसकाइयसंजमे, अजीवकाइयसंजमे ।। ८३. सत्तविधे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा--पुढविकाइयअसंजमे', 'आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे, वणस्सइकाइयअसंजमे, तसकाइय असंजमे, अजीवकाइयअसंजमे ।। आरंभ-पदं ८४. सत्तविहे आरंभे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकाइयआरंभे, आउकाइयआरंभे, तेउ काइयआरंभे, वाउकाइयआरंभे, वणस्सइकाइयआरंभे, तसकाइयआरंभे', अजीवकाइयआरंभे ।। ८५. "सत्तविहे अणारंभे पण्णत्ते, तं जहा ---पुढविकाइयअणारंभे ।। ८६. सत्तविहे सारंभे पण्णत्ते, तं जहा—पुढविकाइयसारंभे । ८७. सत्तविहे असारंभे पण्णत्ते, तं जहां-पुढविकाइयअसारंभे ।। ८८. सत्तविहे समारंभे पण्णत्ते, तं जहा -पुढविकाइयसमारंभे ।। ८६. सत्तविहे असमारंभे पण्णत्ते, तं जहा--पुढविकाइयअसमारंभे १० ॥ जोणि-ठिइ-पदं ६०. अध भंते ! अदसि-कुसुम्भ-कोद्दव-कंगु-रालग-'वरट्ट-कोदुसग-सण-सरिसव मूलगबीयाणं-एतेसि णं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं 'मंचाउत्ताणं मालाउत्ताण ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाण' पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं" सत्त संवच्छराइं। तेण पर जोणी UUUUs १. सं० पा०—पुढविकातितसंजमे जाव तस °1 ७. सरंभे (क) । २. सं० पा०-पुढधिकातितअसंजमे जाव तस°1 ८-११. पू०---ठा० ७/८४ । ३. अजीवकाय° (ख, ग)। १२. वराकोदूसगा (ख, ग); भगवत्या (६६१३१) ४. सं० पा०-पूढविकातितआरंभे जाव अजीव | 'वरग' इति पाठोस्ति। ५. स. पा.--एवमणारभेवि जाव अजीवकाय- १३. सं० पा०--पल्लाउत्ताणं जाव पिहियाणं । असमारंभे। १४. उक्कोसं (क., ग)। ६. पू०-ठा०७४। Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं ७४६ पमिलायति', 'तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण पर जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते ।। ठिति-पदं ११. बायरआउकाइयाणं उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता ।। ६२. तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता।। १३. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए जहणणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। अग्गमहिसी-पदं १४. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो वरुणस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ॥ १५. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। ६६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरग्णो जमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ॥ देव-पदं १७. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरपरिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता १८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो अग्गमहिसीणं देवीणं सत्त पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता॥ १६. सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता !। १००. 'सारस्सयमाइच्चाणं [देवाणं ? ] सत्त देवा सत्तदेवसता पण्णत्ता ।। १०१. गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्त देवा सत्त देवसहस्सा पण्णत्ता। १०२. सणंकुमारे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। १०३. माहिदे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सातिरेगाइं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ॥ १०४. बंभलोगे कप्पे जहणेणं देवाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। १०५. बंभलोय-लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा सत्त जोयणसताई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। १०६, भवणवासीणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उडढं उच्चत्तणं पण्णत्ता ।। Morror or ०० ० ० ३. तुलना-भ० ६.११४ । १. सं० पा०-पमिलायति जाव जोणी। २. वालुप्पभाते (ख, ग)। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० ठाणं १०७. " वाणमंतराणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरंगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ १०८. जोइसियाणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरंगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ १०६. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु देवाणं 'भवधारणिज्जा सरीरगा" उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता || दोसरवर-पदं ११०. मंदिस्सरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त दीवा पण्णत्ता, तं जहा - जंबुद्दीवे, धायइसंडे, पोक्खरवरे, वरुणवरे, खीरवरे, घयवरे, खोयवरे ॥ १११. गंदीसरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त समुद्दा पण्णत्ता, तं जहा -- लवणे, कालोदे, पुक्खरोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घओदे, खोओदें || सेदि-पदं ११२. सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - उज्जुआयता, एगतोवंका, दुहतोवंका, एगतोखहा', दुहतोखहा, चक्कवाला, अद्धचक्कवाला || अणिय अणियाहिवइ-पदं ११३. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररग्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाधिपती' पण्णत्ता, तं जहा -- पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए, ट्टाणिए, गंधव्वाणिए । "दुमे पायत्ताणियाधिवती, सोदामे आसराया पीढाणियाधिवती, कुंथू हत्थि - राया कुंजराणियाधिवती, लोहितक्खे महिसाणियाधिवती, किण्णरे रधाणियाधिवती, रिट्टे णट्टाणियाधिवती, गीतरती गंधव्वाणियाधिवती || ११४. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सत्ताणिया, सत्त अणियाधिपती पण्णत्ता, तं जहा - पायत्ताणिए' जाव गंधव्वाणिए । महद्दुमे पायत्ताणियाधिपती जाव" किंपुरिसे रधाणियाधिपती, महारिट्टे" णट्टाणियाधिपती, गीतजसे गंधव्वाणियाधिपती ॥ १. सं० पा० एवं वाणमंतराणं एवं जोइसियाणं । २. भवधारणिज्जगा सरीरा (क, ख, ग ) । ३. कालोते ( क, ख, ग ) । ४. खोतोदे (क, ख, ग ) । ५. ० खुहा ( ख ) 1 ६. अणित्ता (ख) ७. सं० पा० - एवं जहा पंचट्ठाणे जाव किष्णरे । ८. पत्ताणिते ( क ग ) | ६. ठा० ७।११३ १०. ठा० ५।५८ । ११. महारिहे (क, ख, ग ) । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम ठाणं ७५१ ११५. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स नागकुमार रण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाधि पती पण्णत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए जाव' गंधवाणिए । भद्दसेणे पायत्ताणियाधिपती जाव' आणंदे रधाणियाधिपती, णंदणे गट्टाणिया धिपती, तेतली गंधवाणियाधिपती ।। ११६. भूताणंदस्स ण णागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो सत्त अणिया, सत्त अणिया हिवई पण्णत्ता, तं जहा --पायत्ताणिए जाव' गंधव्याणिए । दक्खे पायत्ताणियाहिवती जाव णंदुत्तरे रहाणियाहिबई, रती गट्टाणियाहिवई, माणसे गंधव्वाणियाहिवई ।। ११७. “जधा धरणस्स तथा सव्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स ।। ११८. जधा भूताणंदस्स तथा सम्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स | ११६. सक्कस्स ण देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवती पण्णता, तं जहा-पायत्ताणिए जाव' रहाणिए, गट्टाणिए, गंधवाणिए। हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिपती जाव' माढरे रधाणियाधिपती, सेते गट्टाणि याहिवती, तुंबुरु" गंधव्वाणियाधिपती ।। १२०. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरणो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिबई पण्णत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए जाव" गंधव्वाणिए । लहुपरक्कमे पायत्ताणियाहिवती जाव" महासेते पट्टाणि याहिवती, रते गंधव्वा णिताधिपती॥ १२१. १०जधा सक्कस्स तहा" सम्बेसि दाहिणिल्लाणं जाव" आरणस्स ॥ १. ठा० ७.११३ । यन्वं । २. रुसेणे (क, ख, ग) । पंचमस्थाने (स०५६) ७. ठा० ७१११५। पादातानीकाधिपतेर्नाम 'भद्दसेगे' विद्यते, ८. ठा० २१३५५-३६१ । तस्यानुसारेणात्रापि 'भसेणे' पाठो युज्यते । ६. ठा०७।११६ । संभवतो लिपिदोषेण 'भ' स्थाने 'रु' वणों १०. ठा० २१३५५-३६१ । जातः अथवा कश्चिद् वाचनाभेद: स्यात् । ११. ठा० ५।६४ । आवश्यकचुणौँ 'रुद्दसेण' इति नाम लभ्यते-- १२. ठा० ५।६४ । दाहिणिल्लाणं पादत्ताणियाधिवती रुद्दसेणो १३. तंबुरू (क); तंबुरु (ख); तंपुरू (ग)। (१०१४६) जंबूद्वीपपज्ञप्तौ (वक्ष ५) 'भद्द- १४. ठा० ७।११६ ।। सेणे' पाठो लभ्यते । १५. ठा० ५१६५ । ३. ठा० ५।५६ । १६. सं० पा०-सेसं जहा पंचट्टाणे एवं जाव ४. ठा० ७१११३ । अच्चुतस्सवि णेतव्वं । ५. ठा० १६० । १७. पू०.-ठा० ७.११६ । ६. सं० पा०–एवं जाव घोसमहाघोसाणं १८. ठा० २।३८१- ३८४ । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं १२२. जधा ईसाणस्स तहा' सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव' अच्चुतस्स ।। १२३. चमरस्स णं असूरिंदस्स असूरकुमाररण्णो दमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा॥ १२४. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स पढ माए कच्छाए चउसट्ठि देवसहस्सा पण्णत्ता। जावतिया पढमा कच्छा तट्विगुणा दोच्चा कच्छा। जावतिया दोच्चा कच्छा तश्विगुणा तच्चा कच्छा । एवं जाव जावतिया छट्ठा कच्छा तश्विगुणा सत्तमा कच्छा ।।। १२५. एवं बलिस्सवि, गवरं-महद्दुमे सद्विदेवसाहस्सिओ। सेसं तं चेव ।। १२६. धरणस्स एवं चेव, णवर—अट्ठावीसं देवसहस्सा ! सेसं तं चेव ।। १२७. जधा धरणस्स एवं जाव' महाघोसस्स, णवर-पायत्ताणियाधिपती अण्णे, ते पुव्वभणिता॥ १२८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो हरिणेग मेसिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुतस्स । णाणत्तं पायत्ताणियाधिपतीणं । ते पुव्वभणिता । देवपरिमाणं इमं सक्कस्स चउरासीति देवसहस्सा, ईसाणस्स असीति देवसहस्साइं जाव" अच्चुतस्स लहुपरक्कमस्स दस देवसहस्सा जाव' जावतिया छट्ठा कच्छा तध्विगुणा सत्तमा कच्छा। देवा इमाए गाथाए अणुगंतव्वा . चउरासीति असीति, बावत्तरी सत्तरी य सट्ठी य । पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा य दससहस्सा ।।१।। वयविकप्प-पदं १२६. सत्तविहे वयणविकप्पे" पण्णत्ते, तं जहा -आलावे, अणालावे, उल्लावे, अणुल्लावे", संलावे, पलावे, विप्पलावे॥ विणय-पदं १३०. सत्तविहे विणए पण्णते, तं जहा--णाणविणए, दसणविणाए, चरित्तविणए, मणविणए, वइविणए, कायविणए, लोगोवयारविणए । १. ठा०५।१२० । २. ठा० २१३८१-३८४ । ३. ठा० ७.१२३ 1 ४. ठा०७१२४ । ५. ठा० ७११२३ । ६. ठा०.७१२४ । ७. ठा० २१३५४-३६२ । ८. ठा० ७।१२३, १२४ । ६. ठा० २।३००-३८४ । १०. असीति (क. ग)। ११. ठा० २१३८१-३८४ । १२. ठा० ७.१२४ । १३. वतणविकरपे (क, ख, ग)। १४. अणुलावे (वृपा)। Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं ७५३ १३१. पसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - अपावए, असावज्जे, अकिरिए, णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे' | १३२. अपसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहां पावए, सावज्जे, सकिरिए, सउ - वक्से, अण्हकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे ॥ १३३. पसत्यवइविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - अपावए, असावज्जे', 'अकिरिए, णिरुवक्से, अणण्यकरे, अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे || १३४. अपसत्यवइविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा -- पावए', 'सावज्जे, सकिरिए, सउवक्के, अण्हकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे || १३५. पसत्थकार्याविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - आउत्तं गमणं, आउत्तं ठाणं, आउत्तं णिसीयणं, आउत्तं तुअट्टणं, आउत्तं उल्लंघणं, आउत्तं पल्लंघणं, आउत्तं सव्विदियजोगजुंजणता ॥ १३६. अपसत्थकार्याविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - अणाउत्तं गमणं, 'अणाउत्तं ठाणं, अणाउत्तं णिसीयणं, अणाउत्तं तुअट्टणं, अणाउत्तं उल्लंघणं, अणाउत्तं पल्लंघणं॰, अणाउत्तं सव्विदियजोगजुंजणता ॥ १३७. लोगोवयारविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - अब्भासवत्तितं', परच्छंदाणुवत्तितं, कज्जहेउ, कतपडिकतिता, अत्तगवेसणता, देसकालण्णता, सम्वत्थेसु अपडिलोमता || समुग्धात पदं १३८. सत्त समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा - वेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतिय समुग्धाए, वेउव्वियसमुग्धाए, तेजससमुग्धाए, आहारगसमुग्धाए, केवलिसमुग्धाए ॥ १३६. मणुस्साणं सत्त समुग्धाता पण्णत्ता एवं चेव ॥ vaण णिण्हग-पदं १४०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्यंसि सत्त पवयणणिण्हगा" पण्णत्ता, १. अभिभूता (क, ग) 1 २. अण्हकरे (क, ख, ग ) । ३. सं० पा० – असावज्जे जाव अभूताभिसंक ४. सं० पा०--पावते जाव भूताभिसंकणे ! ५. सव्विदित (क, ख, ग ) । 0 ६. सं० पा० मणं जाव अणावत्तं । ७. लोगोवतारविणते (क, ख, ग ) 1 ८. आभा ० (क, ग) । ६. तेयग ० (ख) | १०. केवल ० ( ख ) । ११. पवतण ० (क, ख, ग ) । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५४ ठाण तं जहा-बहुरता, जीवपएसिया', अवत्तिया', सामुच्छेइया', दोकिरिया , तेरासिया, अबद्धिया । १४१. एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया' हुत्था, तं जहाजमाली, तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामाहिले ॥ १४२. एतेसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुत्था, तं जहासंगहणी-गाहा सावत्थी उसमपुरं, सेयविया मिहिलउल्लगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुरं, णिण्हगउप्पत्तिणगराइं ॥१॥ अणुभाव-पदं १४३. सातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा', 'मणुण्णा गंधा, मणुपणा रसा°, मशुण्णा फासा, मणोसुहता, वइसुहता॥ १४४. असातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा अमणुण्णा सद्दा", 'अमणुण्णा रूवा, अमणुण्णा गंधा, अमणुण्णा रसा, अमणुण्णा फासा, मणोदुहता °, वइदुहता !! णक्खत्त-पदं १४५. महाणक्खत्ते सत्ततारे पण्णत्ते ।। १४६. अभिईयादिया" णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया" पण्णत्ता, तं जहा-अभिई, सवणो, धगिट्ठा, सतभिसया", पुव्वभद्दवया, उत्तरभद्दवया, रेवती॥ १. जीवपतेसिता (क, ख, ग)। त्ताओ, तत्थेगे एवमाहंसु --कत्तिआइया सत्त २. अवत्तिता (क, ख, ग)। नखत्ता पुव्वदारिया पुण्णत्ता" एवमन्ये ३. सामुच्छेइता (क, ख, ग)। मघादीन्यपरे धनिष्ठादीनि इतरेऽश्विन्यादीनि ४. दोकिरिता (क, ख, ग)। अपरे भरण्यादीनि, दक्षिणापरोत्तरद्वाराणि च ५. नेरासिता (क, ख, ग) । सप्त सप्त यथामतं क्रमेणव समवसेयानोति, ६. अवट्टिता (क); अवद्धिता (ख, ग)1 'वयं पुण एवं वयामो-अभियाइया णं सत्त ७. धम्मातरिता (क, ख, ग)। नक्खत्ता पुव्वदारिया पणत्ता, एवं दक्षिण८. मिहला उल्लग (ख)। द्वारिकादीन्यपि क्रमेणवेति, तदिह षष्ठं मत६. सं० पा०--रूवा जाव मणुष्णा । माश्रित्य सूत्राणि प्रवृत्तानि, लोके तु प्रथम १०. सं० पा०-सदा जाव वतिदुहता। मतमाश्रित्यैतदभिधीयते' (वृ)। ११. अभितीयादिता (क, ख, ग); इह चार्थे पञ्च १२. पुव्वदारिता (क, ख, म) 1 मतानि सन्ति, यत आह चंद्रप्रज्ञप्त्याम्-- १३. अभिती (क, ख, ग)। "तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पष्ण- १४. सतभिसता (क, ख, ग)। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं ठाणं ७५५ १४७. अस्सिणियादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा-अस्सिणी, भरणी, कित्तिया', रोहिणी, मिगसिरे', अद्दा, पुणव्वसू ।। १४८. पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता अवरदारिया पण्णता, तं जहा ---पुस्सो, असिलेसा, मॅघा, पुवाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता ।।। १४६. सातियाइया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-साती, विसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुव्वासाढा, उत्तरासाढा ।। कूड-पदं १५०. जंबुद्दीवे दीवे सोमणसे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णता, तं जहा-- संगहणी-गाहा सिद्धे सोमणसे या', बोद्धन्ने" मंगलावतीकूडे । देवकुरु विमल कंचण, विसिट्टकडे य' बोद्धव्वे ॥१॥ १५१. जंबुद्दीवे दीवे गंधमायणे वक्खारपवते सत्त कडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धे य गंधमायण, बोद्धव्वे गंधिलावतीकूडे । उत्तरकुरु फलिहे, लोहितने आणंदणे चेव ॥१|| कुलकोडी-पदं १५२. विइंदियाणं सत्त जाति-कुलकोडि-जोणीपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता । पावकम्म-पदं १५३. जीवा णं सत्तट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा—णेरइयनिव्वत्तिते", "तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणिणीणिव्वत्तिते, मणुस्सणिव्वत्तिते, मणुस्सीणिव्वत्तिते, देवणिव्वत्तिते देवीणिव्वत्तिते । एवं-चिण- उवचिण-बंध-उदीर-वेद तह • णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १५४. सत्तपएसिया खंधा अणंता पण्णता ।। १५५. सत्तपएसोगाढा पोग्गला जाव" सत्तगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। १. अस्सणितादिता (क, ख, ग)। २. कित्तिता (क, ख, ग) । ३. मिगसिरं (ख)। ४. अस्सिलेसा (क, ग)। ५. पुव्व ° (क, ग)। ६. ता (क, ख, ग); तह (क्व) । ७. बोधव्वे (क, ख, ग)। ८. त (क, ख, ग)। ६. त (क, ख, ग)। १०. बितिदिताणं (क, ख, ग)। ११. जाती (क, ख, ग)। १२. स. पाल-रतियणिबत्तिते जाव देव णिव्वत्तिते। १३. स. पा० .-चिण जाव णिज्जरा। १४. ठा० १४२५४-२५६ । Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं एगल्लविहार-पडिमा-पदं १. अहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, तं जहा-सडी पुरिसजाते, सच्चे पुरिसजाते, मेहावी पूरिसजाते, बहुस्सुते पुरिसजाते, सत्तिम, अप्पाधिगरणे, धितिम, वीरियसंपण्णे ॥ जोणिसंगह-पदं २. अविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडगा, पोतगा', 'जराउजा, रसजा, संसेयगा संमुच्छिमा,° उब्भिगा, उववातिया' ।। गति-आगति-पदं ३. अंडगा अट्ठगतिया अट्ठागतिया पण्णत्ता, तं जहा-अंडए अंडएसु उववज्जमाणे अंडएहितो वा, पोतएहिंतो वा', 'जराउजेहितो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयरोहितो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उभिएहितो वा°, उववातिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से अंडए' अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा', 'जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भियत्ताए वा, उववातियत्ताए वा गच्छेज्जा।। ४. एवं पोतगावि जराउजावि सेसाणं गतिरागती" णत्थि ।। कम्म-बंध-पदं ५. जीवा णं अट्ठ कम्मपगडोओ चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा - १. सं० पा० -पोतगा जाव उब्भिगा। ६. ९० पा०.-पोतगत्ताते वा जाव उववातित२. उववातिता (क, ख, ग)। ताते । ३. सं० पा०-पोततेहितोवा जाव उववातितेहितो। ७. गति रागतिश्च नास्तीत्यष्टप्रकारा इति शेष: ४. X (क, ख, ग)। ५. अंडते (क, ख, ग)। - .---.. Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम ठाणं णाणावरणिज्जं, दरिसणावरणिज्जं, वेयणिज्जं, मोहणिज्जं, आउयं', णाम गोत्तं, अंतराइयं। णेरइया णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा एवं चेव ।। एवं णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ।। ८. जीवा णं अट्ठ कम्भपगडीओ उवचिणिसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा एवं चेव । एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव । 'एते छ चउवीसा दंडगा" भाणियव्वा ।। आलोयणा-पदं ___ अहिं ठाणेहिं मायो मायं कटु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा' णो गिदेज्जा णो गरिहेज्जा, णो विउद्देज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भट्रेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहाकरिसु वाहं, करेमि वाह, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा में सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविणए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ ।। १०. अहिं ठाणेहि मायी मायं कटु आलोएज्जा, “पडिक्कमज्जा, णिदेज्जा, गरिहेज्जा, विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जेज्जा, तं जहा-- १. आउत (क, ख, ग)। २. अंतरातितं (क, ख, ग)। ३. ठा० १३१४२-१६३ । ४. अस्य पाठस्य वृत्तिनिम्नप्रकाग वर्तते यतश्चयनादिपदानि पड़ अत: सामान्यसूत्रपूर्वका: षडेव दण्डका: (वृ) । इयं वृत्तिः उपलब्धपाठानुसारिणी नास्ति । अस्या अनुसारेण पाठ: इत्थं प्रतीयते--'एए छ, दंडगा भाणियव्वा' । ५. माती (क, ख, ग)। ६. सं० पा०—णो पडिक्कमेज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा। ७. ठा० ३।३३८ सूत्रे 'अकरिसु' पाठो विद्यते । ८. अवणए (ख, ग); ३६३३६ सूत्रे ‘अविणए' पाठोस्ति । अस्मिन् सूत्रे तस्य तुल्यमस्ति प्रकरणम् । अत्र 'अवणए' पाठोस्ति । वृत्तिकृता प्रथम स्थाने 'अविनयः साधुकृतो मे स्यात्' द्वितीयस्मिन् स्थाने 'अपनयो वा पूजा सत्कारादेरपनयनं मे स्यादिति' लिखितम् । इतिदर्शनेन प्रतीयते वृत्तिकारेण यादृशः पाठो लब्धस्तादृश एवार्थः कृतः । 'क' आदर्श 'अविणए' पाठो लिखित आसीत् । ततः 'वि' वर्णगतेकारमात्रां हरितालेनाच्छिद्य बकार: कृतोस्ति । पूर्वपाठस्य संगतिदृष्ट्यावापि 'अविणए' पाठो युज्यते । ६. सं० पा०-आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा। Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ १. मास्सि णं अस्सि लोए गरहिते भवति । २. उववाए गरहिते भवति । ३. आयाती' गरहिता भवति । ४. एगमवि मायी माय' कट्टु णो आलोएज्जा', 'गो पडिक्कमेज्जा, णो णिदेज्जा, गो गरिहेज्जा, जो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, गो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, णत्थि तस्स आराहणा । ५. एमवि मायी मायं कट्टु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा, गिदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, अत्थि तस्स आराहणा । ६. बहुओवि मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा', 'णो पडिक्कमेज्जा, णो णिदेज्जा णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणाए अब्भुज्जा, जो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, णत्थि तस्स आराहणा । ठाण ७. बहुओवि मायी मायं कट्टु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, अत्थि तस्स आराहणा । ८. आयरिय उवज्झायस्स वा मे अतिसेसे णाणदंसणे समुत्पज्जेज्जा, से यं मममालोएज्जा मायी णं एसे । १. आताती ( क, ख, ग ) । २. मातं (क, ख, ग ) । ३. सं० पा० णो आलोएज्जा जाव णो पडि वज्जेज्जा । ६. सं० पा०-- आलोएज्जा जाव अस्थि । ७. तं (क, ख, ग) 1 वज्जेज्जा । ८. आया (क, ख, ग ) । ६. ४. सं० पा०-- आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा ! ५. सं० पा०--णो आलोएज्जा जाव णो पडि- १०. मायी मायं कट्टु से जहाणामए अयागरेति' वा तंबागरेति वा तउआगरेति वा सीसागरेति वा रुप्पागरेति वा सुवण्णागरेति वा तिलागणीति वा तुसागगीति वा बुसागणीति वा णलागणीति वा दलागणीति वा सोंडियालिछाणि वा भंडियालिछाणि वा गोलियालिछाणि वा कुंभारावाएति वा कवेल्लुआवाएति वा इट्टावाएति वा जंतवाडचुल्लीति" वा लोहारंबरिसाणि वा । तत्ताणि समजोतिभूताणि किंसुकफुल्लसमाणाणि उक्कासहस्साई विणिम्मुयमाणाई - विणिम्यमाणाई, जालासहस्साइं पहुंचमाणाई - मुंचमाणाई इंगाल ० लिच्छाणि ( क ) 1 ० चुल्लिं (क, ग) । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं ७५६ सहस्साई पविक्खिरमाणाई-पविक्खिरमाणाइं,' अंतो-अंतो झियायंति, एवामेव मायी मायं कटु अंतो-अंतो झियाइ। जवि य णं अण्णे केइ वदंति तंपि य णं मायी जाणति अहमेसे 'अभिसंकिज्जामिअभिसंकिज्जामि। 'मायी णं मायं कटु अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए ‘उववत्तारो भवंति", तं जहाणो महिड्डिएसु णो महज्जुइएसु णो महाणुभागेसु णो महायसेसु णो महाबलेसु णो महासोक्खेसु णो दुरंगतिएसु णो चिरद्वितिएसु । से णं तत्थ देवे भवति णो महिडिए' *णो महज्जुइए णो महाणुभागे णो महायसे णो महाबले णो महासोक्खे णो दूरंगतिए ° णो चिरदितिए। जावि य से तत्थ बाहिरभंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव' चत्तारि पंच देवा अणुत्ता" चेव अब्भुटुंति--मा बहुं देवे ! भासउभासउ। से णं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव माणुस्सए भवे जाइं इमाइं कुलाइं भवंति, तं जहा---अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छ कुलाणि वा दरिद्दकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा किवणकुलाणि वा, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ पुमे भवति दुरूवे दुवण्णे दुग्गंधे दुरसे दुफासे अगिटे अकते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे हीणस्सरे दीणस्सरे अणिदुस्सरे अकंतस्सरे अपियस्सरे अमणुण्णस्सरे अमणामस्सरे अणाएज्जवयणे पच्चायाते। जावि य से तत्थ बाहिरब्भतरिया परिसा भवति, सावि य ण णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता" चेव अब्भुटुंति-मा बहुं अज्जउत्तो" ! भासउभासउ। १. अंगाल (क, ख, ग)। ८. सं० पा०—णो महिड्डिएसु जाव णो दूरंगति२. परिक्खिर ° (क, ग); परिकिर ° (क्व) । तेसु । ३. झियायइ (क्व)। ६. सं० पा०-णो महिड्डिए जाव णो चिरद्वितिते। ४. जंतवि (क); जतवि (ख, ग) १०. महा° (क)। ५. अभिसिक्खिज्जामि (क, ग)। ११. अवुत्ता (ख)। ६. से णं तस्स (वृ); मायो णं मायं कटु (वृपा)। १२. परिताणाति (ख, ग)। ७. 'उववत्तारो' त्ति वचनव्यत्ययादुपपता भव- १३. अवुत्ता (ग)। तीति (वृ)। १४. अज्जपुत्ते (ख)। Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ठाणं ० मायी गं मायं कट्टु आलोचित पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णत रेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति तं जहा- महिड्डिएस' 'महज्जुइएसु महाणुभागेसु महायसेसु महाबलेसु महासोक्खेसु दूरगंतिएसु चिरट्ठितिएसु' । से णं तत्थ देवे भवति महिड्डिए महज्जुइए महाणुभागे महायसे महाबले महासोक्खे दूरंगतिए चिरद्वितिए हार- विराइय-वच्छे कडक -तुडित-थंभितभु' अंगद - कुंडल - मट्ठ- गंडतल - कण्णपीढधारी विचित्तहत्याभरणे विचित्तवत्थाभरणे विचित्तमालामउली कल्लाणग-पवर वत्थ- परिहिते कल्लाणग-'पवर-गंधमल्लाणुलेवणधरे" भासुरबोंदी पलंब-वणमालधरे दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रसेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघातेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इडीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तएण दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे महयाहत - णट्टगीत-वादित-तंती-तल-ताल-तुडित- घण-मुइंग - पडुप्पवादित रवेण दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ । जावि से तत्थ बाहिरब्भतरिया परिसा भवति, सावि य णं आढाइ परिजागाति महरिहेणं आसणेण उवणिमंतेति, भासपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चैव अब्भटुंति - बहुं देवे ! भासउ-भासउ । से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं • चइत्ता इव माणुस्साए भवे जाई इमाई कुलाई भवंति - अड्ढाई' "दित्ताई' विच्छिण्ण- विउल-भवण-सयणासण जाण - वाहणाई" 'बहुधण - बहुजायरूव-रययाई"" आओगपओग-संपउत्ताइं विच्छड्डिय-पउर भत्तपाणाई बहुदासी दास-गोमहिस- गवेलय - पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूताई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ पुमे भवति सुरूवे सुवणे सुगंधे सुरसे सुफासे इट्ठे कंते " • पिए मणुण्णे • मणामे अहीणस्सरे" "अदीणस्सरे इट्ठस्सरे कंतस्सरे पियस्सरे मणुण्णस्सरे मणामस्सरे आदेज्जवयणे पच्चायाते । o जावि से तत्थ बाहिरब्भतरिया परिसा भवति, सावि य णं आढाति परि १. सं० पा० - महिडिएसु जाव चिरट्टितिए । २. ० द्वितीसु (क, ग ) । ३. सं० पा० - महिड्डिए जाव चिरट्ठितिते । ४. विरातित ( क, ख, ग ) ५. भुते ( क, ख, ग ) । ६. पवर मल्लाण (वृ ) : पवर-गंधमल्लाणं • (वृपा ) 1 ७. सं० पा० आउक्खएणं जाव चइता ८. सं० पा० - अड्ढाई जाव बहुजणस्स । ९. औपपातिके (सूत्र १४१ ) - दत्ताई वित्ताई । १०. क्वचिद् वाहणाइन्नाई (वृ ) । ११. औपपातिके (सूत्र १४१ ) बहुधण जाय १२. तहाप्प ० ( क, ग) । १३. सं० पा० कंते जाव मणामे । १४. सं० पा०-- अहोणस्सरे जाव मणामस्सरे । १५. सं० पा० - आढाति जावे बहुं । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं जाणाति महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता चेव अब्भुटुंति °-बहुं अज्जउत्ते ! भास उ-भासउ ।। संवर-असंवर-पदं ११. अट्टविहे संवरे पण्णत्ते, तं जहा-- सोइंदियसंवरे', 'चक्खिदियसंवरे, घाणिदिय संवरे, जिभिदियसंवरे°, फासिदियसंवरे, मणसंवरे, वइसंवरे, कायसंवरे । १२. अट्टविहे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा - सोतिदियअसंवरे', 'चक्खिदियअसंवरे, घाणिदियअसवरे, जिभिदियअसंवरे, फासिदियअसंवरे, मणअसंवरे, वइअसंवरे कायअसंवरे ।। फास-पदं १३. अढ फासा पण्णत्ता, तं जहा-कक्खडे', मउए, गरुए, लहुए, सीते, उसिणे णिद्धे, लुक्खे ॥ लोगठ्ठिति-पदं १४. अविधा लोगद्विती पण्णत्ता, तं जहा—आगासपतिट्ठिते वाते, वातपतिद्विते उदही, “उदधिपतिट्ठिता पुढवी, पुढविपतिट्टिता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिट्टिता° जीवा कम्मपतिद्विता, अजीवाजोवसंगहीता', जीवा कम्म संगहीता। गणिसंपया-पदं १५. अविहा गणिसंपया पण्णत्ता, तं जहा-आचारसंपया, सुयसंपया, सरीरसंपया, वयणसंपया', वायणासंपया', मतिसंपया, पओगसंपया, संगहपरिण्णा णाम अट्ठमा ॥ महाणिहि-पदं १६. एगमगे णं महाणिही अट्ठचक्कवालपतिट्ठाणे अट्ठजोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ते॥ समिति-पदं १७. अट्ट समितीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इरियासमिती, भासासमिती, एसणा १. सं० पा०-सोइंदियसंवरे जाव फासिदिय । ४. स० पा०-- एव जथा छद्राणे जाव जीवा। २. सं० पा०— सोतिदियअसंवरे जाव काय- ५. ० संगहिता (क, ग)। असंवरे। ६. वणसंपता (ख)। ३. कक्कडे (क, ख, ग)। ७. वातणासंपता (क, ख, ग)। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६३ ठाण समिती, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिघाण जल्ल-परिठावणियासमिती, मणसमिती, वइसमिती, कायसमिती । आलोयणा-पदं १८. अहिं ठाणेहि संपण्णे अणगारे अरिहति आलोयणं' पडिच्छित्तए, तं जहा आयारवं', आधारवं, ववहारवं, ओवीलए, पकुव्वए, अपरिस्साई, णिज्जावए, अवायदंसी।। १६. अहि ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति अत्तदोसमालोइत्तए', तं जहा--- जातिसंपण्णे, कुलसंपण्णे, विणयसंपण्णे, णाणसंपण्णे, दसणसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे, खंते, दंते ।। पायच्छित्त-पदं २०. अट्टविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा—आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तभ यारिहे, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे, मूलारिहे। मदट्ठाण-पदं २१. अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-जातिमए, कुलमए, बलमए, रूवमए, तवमए, सुतमए, लाभमए, इस्सरियमए ।। अकिरियावादि-पदं २२. अट्ट अकिरियावाई पण्णता, तं जहा---एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, __णिम्मितवाई, सायवाई, समुच्छेदवाई, णितावाई, णसंतपरलोगवाई।। महाणिमित्त-पदं २३. अट्टविहे महाणिमित्ते पण्णत्ते, तं जहा--भोभे, उप्पाते, सुविणे, अंतलिक्खे, अंगे, __सरे, लक्खणे, वंजणे ॥ वयणविभत्ति-पदं २४. अट्ठविधा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तं जहा-- १. आलोतणा (ख)। २. आतारवं (क, ख, ग)। ३. मालोतेत्तते (क, ग); °मालोयत्तते (ख)। ४. अमितवाती (क)। ५. ण संति परलोकवाती (ख, ग, ७); वृत्ति कारेण 'ण संति' इति पाठो व्याख्यातः 'न विद्यते शान्तिश्च मोक्षः ।' किन्तु 'णसते' इति पाठः समीचीनः प्रतिभाति 'असतपरलोकवादी' इति स्वाभाविकोर्थोस्ति । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं ७६३ संगहणी-गाहा णिद्देसे पढमा होती', बितिया उवएसणे! ततिया करणम्मि कता, चउत्थी __ संपदावणे ॥१॥ पंचमी य अवादाणे', छट्ठी सस्सामिवादणे । सत्तमी सण्णिहाणत्थे', अट्टमी आमंतणी भवे ॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, णिद्देसे---सो इमो अहं वत्ति । बितिया' उण उवएसे- भण 'कुण व इमं व तं वत्ति ॥३॥ ततिया करणम्मि कया- णीतं व कतं व तेण व मए वा। हंदि णमो साहाए, हवति चउत्थी पदाणमि ॥४॥ अवणे गिण्हसु तत्तो, इत्तोत्ति वा पंचमो अवादाणे । छट्ठी तस्स इमस्स व, गतस्स वा सामि-संबंधे ॥५॥ हवइ पुण सत्तमो तमिमम्मि आहारकालभावे य । आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण! ति ॥६॥ छउमत्थ-केवलि-पदं २५. अट्ठ ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकाय, 'अधम्मत्थिकायं, आगासस्थिकायं, जोवं असरीरपडिबद्धं, परमागुपोग्गलं, सई, गंध, वातं। एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली 'सव्वभावेणं जाणइ पासइ, त जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जावं असरीर पडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सदं °, गंध, वातं ।। आउवेद-पदं २६, अटुविधे आउवेदे पण्णत्ते, तं जहा-कुमारभिच्चे, कायतिगिच्छा, सालाई", सल्लहत्ता', जंगोली, भूतवेज्जा, खारतंते, रसायणे"॥ १. होति (क, ग)। २. अवाताणे (क, ख, ग)। ३. इह प्राकृतत्वाद् दीर्घत्वम् । ४. सन्नियाणत्थे (क, ग)। ५. आमंतणा (क, ख, स)। ६. बितीता (ग)। ७. कुणसु (अ० सू० ३०८)। ८. भणियं (अ० सू० ३०८)। ६. धम्मत्थिगातं (क, ख, ग); सं० पा-धम्म थिकायं जाव गंधं। १०. सं० पा०.-केवली जाणइ पास जाव गंधं । ११. सालभते (क); सालाती (ख, ग)। १२. सेल्लहता (ख)। १३. रसातणे (क, ख, ग)। Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं अग्गमहिसी-पदं २७. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अट्ठगमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–पउमा, सिवा, सची', अंजू, अमला, अच्छरा, णवमिया, रोहिणी ।।। २८. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो अट्ठग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कहा, कण्हराई', रामा, रामरक्खिता, वसू, वसुगुत्ता, वसुमित्ता, वसुंधरा ॥ २६. सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो अटुग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। ३०. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारणो अट्ठग्गमहिसीओ पग्णत्ताओ। महम्गह-पदं ३१. अट्ठ महग्गहा पण्णत्ता, तं जहा-चंदे, सूरे, सुक्के, बुहे, बहस्सती, अंगारे, सणिचरे, केऊ॥ तणवणस्सइ-पदं ३२. अट्ठविधा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा. -मूले, कंदे, खंधे, तया, साले, पवाले, पत्ते, पुप्फे ॥ संजम-असंजम-पदं ३३. चरिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स अट्ठविधे संजमे कज्जति, तं जहा-चक्खु मातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति । "घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति। जिब्भामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति ° । फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । फासामएणं दवखेणं असंजोगेत्ता भवति ॥ चरिदिया णं जीवा समारभमाणस्स अटुविधे असंजमे कज्जति, तं जहा--- चक्खमातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । "घाणामातो सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । जिन्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ° । फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति। फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ॥ १. सूती (ख, ग); सती (क्व)1 २. कण्हराती (क, ख, ग)। ३. सं० पा०--एवं जाव फासामातो। ४. सं० पा०—एवं जाव फासामातो। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं ७६५ सुहुम-पदं ३५. अट्ठ सुहुमा पण्णत्ता, तं जहा-पाणसुहुमे, पणगसुहुमे, बीयसुहुमे, हरितसुहुमे, पुप्फसुहुमे, अंडसुहुमे, लेणसुहुमे, सिणेहसुहुमे । भरहचक्कवट्टि-पदं ३६. भरहस्स णं रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाइं अणुबद्ध सिद्धाइं' 'बुद्धाइं मुत्ताइं अंतगडाई परिणिव्वुडाइ ° सव्वदुक्खप्पहीणाइं, तं जहाआदिच्चजसे, महाजसे, अतिबले महाबले, तेयवोरिए' कत्तवोरिए दंडवोरिए, जलवीरिए ॥ पास-गण-पदं ३७. पासस्स णं अरहो पुरिसादाणियस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहा सुभे, अज्जघोसे, वसिढे, बंभचारी, सोमे, सिरिधरे, 'वीरभद्दे, जसोभद्दे ।। दसण-पदं ३८. अविधे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मदसणे, मिच्छदसणे, सम्मामिच्छदसणे, चक्खुदंसणे', 'अचक्खुदंसणे, ओहिदसणे °, केवलदसणे, सुविणदसणे ।। ओवमिय-काल-पदं ३६. अढविधे अद्धोवभिए पण्णत्ते, तं जहा-पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी, उस्सप्पिणी, पोग्गलपरियट्टे, तोतद्धा, अणागतद्धा, सम्बद्धा ।। अरिठ्ठणेमि-पदं ४०. अरहतो णं अरिढणेमिस्स जाव अट्ठमातो पुरिसजुगातो जुगंतकरभूमी। दुवासपरियाए अंतमकासी। महावीर-पदं ४१. समणेणं भगवता महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंडे भवेत्ता' अगाराओ अणगारितं पव्वाइया', तं जहा १. अणहव (क, ग)। २. सं० पा०--सिद्धाइं जाव सव्वदुक्ख । ३. तेतवीरिते (क, ख, ग)। ४. कण्णवीरिते (क, ग)। ५. वीरिते भद्दजसे (ख, ग) ! ६. सं० पा०-चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे। ७. 'भवित्त' त्ति अन्तर्भूतकारितार्थत्वात् मुण्डान भावयित्वेति दृश्यम् (वृ)। ८. पवादिता (क, ख, ग)। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं संगहणी-गाहा वीरंगए वीरजसे, संजय एणिज्जए य रायरिसी। सेये सिवे उद्दायणे', तह संखे कासिवद्धणे ॥१॥ आहार-पदं ४२. अट्टविहे आहारे पण्णते, तं जहा-मणुणे-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे । अमणुण्णे –'असणे, पाणे, खाइमे°, साइमे ।। कण्हराइ-पदं ४३. उप्पि सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेटिं बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाण'-पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाण-संठिताओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-परत्थिमे णं दो कण्डराईओ.दाहिणे णंदो कण्हराईओ, पच्चत्थिमे णं दो कण्हराईओ, उत्तरे णं दो कण्हराईओ। पुरथिमा अभंतरा कण्ह राई दाहिणं वाहिरं कण्हराई पुट्ठा। दाहिणा अभंतरा कण्हराई पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पट्टा । पच्चत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा । उत्तरा अभंतरा कण्हराई पुरत्थिमं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा । पुरस्थिमपच्चत्थिमिल्लाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ छलंसाओ! उत्तरदाहिणाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ तंसाओ। सव्वाओ वि णं अब्भंतरकण्हराईओ चउरंसाओ।।। ४४. एतासि णं अढण्हं कण्हराईणं अट्ट णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा- कण्हराईति वा, मेहराईति वा, मघाति वा, माघवतीति वा, वातफलिहेति' वा, वातपलि क्खोभेति वा, देवफलिहेति वा, देवपलिक्खोभेति वा ॥ ४५. एतासि णं अहं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ट लोगतियविमाणा पण्णत्ता, तं जहा- अच्ची, अच्चिमाली, वइरोअणे, पभंकरे", चंदाभे, सूराभे, 'सुपइट्ठाभे, अग्गिच्चाभे १२ ॥ । १. उदायणे (क, ख, ग)। २. X (क)। ३. सं० पा० - अमणुपणे जाव साइमे। ४. हबि (क); हट्ठि (ख)। ५. रिटे' (क)। ६. कण्हरातीतो (क, ख, ग)। ७. कण्हरातीयं (क) । ८. मल्लाओ (क, ख, ग)! ६. फलहितेति (क) । १०. फलक्खो० (क) ! ११. सुभंकरे (७)। १२. अंकाभे सुपइट्ठाभे (वृ); सुक्काभे सुपइट्ठाभे (भ० ६.१०६); लोकान्तिकविमानाना नाम्नां तिम्नः परंपराः प्राप्यन्ते । एका भगवतीसूत्रस्य । तत्र षड् नामानि तुल्यानि सप्तमाष्टमयोरन्त रमस्ति । द्वितीया च स्थानांगसमवाययोः (समवाय ८.१५)। तृतीया च वृत्तिगता। तत्रापि पंच नामानि तुल्यानि, चतुर्थसप्तमाष्टमानि च भिन्नानि सन्ति । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं ४६. एतेसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु अट्ठविधा लोगंतिया देवा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा सारस्सतमाइच्चा, वही वरुणा' य गद्दतोया य । तुसिता अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव बोद्धव्वा' ।।१।। ४७. एतेसि णं अट्ठण्हं लोगंतियदेवाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं अट्ठा सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। मज्झपदेस-पदं ४८. अट्ट धम्मत्थिकाय-भज्झपएसा पण्णत्ता ॥ ४६. अट्ट अधम्मत्थिकाय-"मज्झपएसा पण्णत्ता ॥ ५०. अट्ठ आगासत्थिकाय-"मझपएसा पण्णत्ता ॥ ५१. अट्ठ जीव-मज्झपएसा पण्णत्ता ॥ महापउम-पदं ५२. अरहा णं महाप उमे अट्ठ रायाणो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वावे स्सति, तं जहा--पउमं, पउमगुम्म, णलिणं, णलिणगुम्मं, पउमद्धयं', धणूद्धयं, कणगरह, भरहं। कण्ह-अग्गमहिसी-पदं ५३. कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ठ अग्गमहिसीओ अरहतो णं अरिढणेमिस्स अंतिते मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइया सिद्धाओ' 'बुद्धाओ मुत्ताओ अंतगडाओ परिणिव्वुडाओ° सव्वदुक्खप्पहीणाओ, तं जहासंगहणी-गाहा पउमावती य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य । जंबवती सच्च भामा, रुप्पिणी अग्गमहिसीओ ॥१॥ पुवक्त्यु-पदं ५४. वोरियपुवस्स णं अट्ठ वत्थू अट्ठ चूलवत्थू पण्णत्ता ।। १. लोकान्तिकदेवानां नामसु चतुर्थाष्टमे नाम्नी ३. ° गात (क, ख, ग) । तत्त्वार्थसूत्रे भिन्ने स्त:-- सारस्वतादित्यव- ४. सं० पा०-एवं चेव। ह न्यरुणगर्दतोयतुषिताश्यावाधमस्तारिष्टाश्च ५. सं० पा०-एवं चेव । (४।२६) दिगम्बरपरंगरासम्मते 'मरुत्' नाम ६. पउमद्धत (क, ख, ग)। न विद्यते-सारस्वतादित्यवह न्यरुणगर्दतोय- ७. सिद्धाओ जाव सव्वदुक्ख । तुषिताव्याबाधरिष्टाश्च । ८. मूलवत्यू (क)। २. बोधव्वा (क, ख, ग)। Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६५ गति-पदं ५५. अट्ठ गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - णिरयगती, तिरियगती', 'मणुयगती, देवती सिद्धिगती गुरुगती, पणोल्लणगती, पब्भारगती ॥ ; दीवसमुद्द-पदं ५६. गंगा-सिंधु-रत्त-रत्तवतिदेवीणं दीवा 'अट्ट-अट्ठ" जोयणाई आयामविक्खभेणं पण्णत्ता ॥ ५७. उक्काम्ह - मेहमुह-विज्जुमुह विज्जुदंतदीवा णं दीवा अट्ट-अट्ठ जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ ५८. कालोदे' णं समुद्दे अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवाल विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ५६. अब्भंतरपुक्खरद्धे णं अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवाल विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ६०. एवं बाहिरपुक्ख रद्धेवि ॥ are furtaण-पदं ६१. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स असोवणिए काकणिरयणे छत्तले दुवाल सिए अटुकणिए अधिकरणिसंठिते ॥ मागध-जोयण-पदं ठाणं ६२. मागधस्स णं जोयणस्स अट्ठ धणुसहस्साइं विधत्ते पण्णत्ते || जंबूदीव - पदं ६३. जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खभेणं, सातिरेगाई अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ ६४. कूडसामली णं अट्ठ जोयणाई एवं चेव ॥ ६५. तिमिसगुहा णं अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं ॥ ६६. खंडप्पवातगुहा णं अट्ठ' 'जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेनं । ६७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उभतो कूले अट्ठ ववखारपव्वया पण्णत्ता, 'जहा - चित्तकूडे, पम्हकू डे', गलिणकूडे, एगसेले, तिकडे, वैसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे ।। ६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सोतोयाए महानदीए उभतो कूले १. सं० पा० - तिरियगती जाव सिद्धगती । २. अट्ठट्ठ ( क ) । ३. कालोते ( क, ख, ग ) 1 ४. निहारे (वृ) ; निहत्ते ( वृपा ) । ५. सं० पा० - अट्ठ एवं चेव । ६. बम्भकूडे ( क ) । Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं ठाणं ७६६ अट्ट बक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे, चंदपव्वते, सूरपब्बते, ‘णागपवते, देवपव्वते" । ६६. जबुहोवे दोवे मंदरस्स पत्रयस्स पुरथिमे ण साताए महाणदोए उत्तरे णं अट्ट चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा-कच्छे, सुकच्छे, महाकच्छे, कच्छगावतो, आवत्ते', 'मंगलावत्ते, पुक्खले°, पुक्खलावती ।। ७०. जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ चक्कवट्टिविजया पणत्ता, तं जहा–वच्छे, सुवच्छे', 'महावच्छे, वच्छगावती', रम्मे, रम्मगे, रमणिज्जे °, मंगलावती।। ७१. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोतोयाए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा –पम्हे', 'सुपम्हे, महपम्हे, पम्हगावती, संखे, णलिणे, कुमुए°, सलिलावती ॥ ७२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोतोयाए महाणदीए उत्तरे णं अट्ट चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा-वप्पे, सुवप्पे', 'महावप्पे, वप्पगावती, वग्गू, सुवग्गू, गंधिल्ले°, गंधिलावती' || ७३. जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सोताए महाणदीए उत्तरे णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खेमा, खेमपुरी', 'रिट्ठा, रिट्ठपुरी, खग्गी, मंजसा, ओसधो , पुंडरीगिणी ।। ७४. जंबुद्दोवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणईए दाहिणे णं अटू रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--सुसीमा, कुंडला', 'अपराजिया, पभंकरा, अंकावई, पम्हावई, सुभा°, रयणसंचया ॥ ७५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोओदाए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णताओ, तं जहा-आसपुरा", 'सोहपुरा, महापुरा, विजयपुरा, अवराजिता, अवरा, असोया °, वीतसोगा"। ७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोयाए महाणईए उत्तरे णं १. ठा० ४ ३१३ सूत्र देवपव्वते णागपव्वते' एवं ७. गंधला (ख)। पाठो विद्यते । ८. खेमपुरा (क, ख, ग); सं० पा.-खेमपुरी २. सं० पाo-आवत्ते जाव पुक्खलावती। जाव पुंडरीगिणी। ३. सं० पा०—सुवच्छे जाव मंगलावती। ६. स० पा०—कुंडला चेव जाव रयणसंचया । ४. ठा० २१३४० सूत्रे 'कच्छावती' पाठो विद्यते। १०. स. पा०-आसपुरा जाव वीतसोगा । ५. सं० पा०--पम्हे जाव सलिलावती । ११. वीतिसोगा (क,ग); विगयसोगा (२।३४१)। ३. सं० पा०----सुवप्पे जाव गंधिलावती। Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं अ राहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - विजया, वेजयंती', 'जयंती, अपराजिया, चक्कपुरा, खरगपुरा, अवज्झा, अउज्झा ॥ ७७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए उत्तरे णं उक्को पर अटू अरहंता, अट्ठ चक्कवट्टी, अट्ठ बलदेवा, अट्ठ वासुदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥ ७७० ७८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए [ महाणदीए ? ] दाहिणे णं उक्कोसपए एवं चेव ॥ ७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थि मे णं सोओयाए महाणदीए दाहिणे णं उक्को सपए एवं चैव ॥ ८०. एवं उत्तरेणवि ॥ ८१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थि मे णं सीताए महाणईए उत्तरे णं अट्ठ वेडा, अतिमिसगुहाओ, अट्ठ खंडगप्पवातगुहाओ, अट्ठ कयमालगा देवा, अट्ठ णट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुंडा, अटू सिंधुकुंडा, अट्ठ गंगाओ, अट्ठ सिंधूओ, अट्ठ उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा पण्णत्ता ॥ ८२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए दाहिणे णं अटू दीवेअड्डा एवं चेव जाव' अट्ट उसभकूडा देवा पण्णत्ता, गवरमेत्थ रत्त-रत्तावती, तासि चेव कुंडा ॥ ८३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोयाए महाणदीए दाहिणे णं णट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुंडा, अट्ठ सिंधुकुंडा, अट्ठ उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा अट्ट दीवेयड्ढा जाव' अट्ठ अट्ठ गंगाओ, अट्ठ सिंधू, पण्णत्ता ॥ ८४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महानदीए उत्तरे णं अट्ठ दीवेयड्डा जाव अट्ठ णट्टमालगा देवा पण्णत्ता' । अट्ठ रत्ताकुंडा, अट्ठ रतावतिकुंडा, अट्ठ रत्ताओ', 'अट्ठ रत्तावतीओ, अट्ठ उसभकूडा पव्वत्ता, अट्ठ उसभकडा देवा पण्णत्ता ॥ ८५. मंदरचूलिया णं बहुमज्झदेस भाए" अट्ठ जोइणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ धायइसंड-पदं ८६. धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं धायइरुक्खे अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खभेणं, साइरेगाई अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ १. सं० पा०-- वेजयंती जाव अउज्झा | २. ठा० ८८१ । ३,४. ठा० ६८१ । ५. पण्णत्ता नवरमेत्थ (क, ग) 1 ६. सं० पा० - रत्ताओ जाव अट्ठ उसभकूडा । ७. ० भाते (क, ग ) + Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं ठाणं ७७१ ८७. एवं धायइरुक्खाओ आढवेत्ता सच्चेव जंबूदीववत्तव्वता भाणियव्वा जाव' मंदर चूलियति ॥ ८. एवं पच्चत्थिमद्धेवि महाधातइरुक्खातो आढवेत्ता जाव' मंदरचूलियत्ति ॥ पुखरवर-पदं ८६. एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्धेवि पउमरुक्खाओ आढवेत्ता जाव' मंदरचूलि - यत्ति ॥ १०. एवं पुक्खर वरदीवड्डपच्चत्थिमद्धेवि महापउमरुक्खातो जाव' मंदरचूलियत्ति ॥ कूड-पदं ६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते भद्दसालवणे अट्ठ दिसाहत्यिकूडा पण्णत्ता, तं जहा - संग्रहणी - गाहा पउमुत्तर गीलवंते, सुहत्थि अंजणागिरी | कुमुदे" य पलासे य, वडेंसे रोयणागिरी ॥१॥ जगती- पदं ६२. जंबूदीवस्स णं दीवस्स जगतो अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अ जोयणाई विक्खभेणं पण्णत्ता ॥ कूड-पदं ९३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंते वासहरपव्त्रते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा- संग्रहणी - गाहा सिद्ध महाहिमवंते, हिमवंते रोहिता हिरीकडे ' । हरिकंता हरिवासे, वेरुलिए चेव कूडा उ ||१|| ४. जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुप्पिमि वासहरपव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा १. ठा० ६१६४-६५ । २. ठा० ८१६३-८५ । ३,४. ठा० ८१६३-८५ । ५. कुमुते (क, ख, ग ) | ६. रोतणागिरी (क, ख, ग ) । ७. हरी० (क, ख, ग ) । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ ठाणं सिद्धे य रुप्पि रम्मग, णरकता बुद्धि' रुप्पकूडे य । हिरण्णवते मणिकंचणे, य रुप्पिम्मि कूडा उ ॥१॥ ६५. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं रुयगवरे पव्वले अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा-- रिटे तवणिज्ज कंचण, रयत दिसासोत्थिते पलंबे य । अंजणे अंजणपुलए, रुयगस्स पुरथिमे कूडा ॥१॥ तत्थ णं अट्ट दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं जहा णंदुत्तरा य णंदा, आणंदा णदिवद्धणा। विजया य वेजयंतो, जयंती अपराजिया ।।२।। ६६. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं रुयगवरे पन्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा कणए कंचणे पउमे, णलिणे ससि दिवायरे चैव । वेसमणे वेरुलिए, रुयगस्स उदाहिणे कडा ॥२॥ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्डियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं जहा समाहारा सुप्पतिण्णा, सुप्पबुद्धा' जसोहरा। लच्छिवती सेसवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥२॥ ६७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं रुयगवरे पन्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तें जहा -.. सोत्थिते य अमोहे य, हिमवं मंदरे तहा। रुअगे रुयगुत्तमे चंदे, अट्ठमे य सुदंसणे ।।१।। तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्डियाओ जाव पलिओवमट्टितीयाओ परिवसंति, तं जहा--- इलादेवी सुरादेवी, पुढवी पउमावती। एगणासा' णवमिया, सीता भद्दा य अट्ठमा ॥२॥ ६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुअगवरे पन्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा रयण-रयणुच्चए या', सव्वरयण रयणसंचए चेव । विजये य वेजयंते, जयंते अपराजिते ॥१॥ १. मुट्ठि (क, ग)। २. ठा० २१२७१ । ३. सुपबुद्धा (क, ग); सुपवई (ख) । ४. रुतगुत्तमे (क, ख, ग)। ५. एगानासा (क, ख)। ६. ता (क, ख, ग)। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं ठाणं ७७३ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारि महत्तरियाओ महड्डियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवति, तं जहा-- अलंबसा मिस्सकेसी', पोंडरिगी य वारुणी । आसा सव्वगा चेव, सिरी हिरी चेव उत्तरतो ॥२॥ महत्तरिया-पदं ६६. अट्ठ अहेलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहासंगहणी-गाहा भोगंकरा भोगवती, सूभोगा भोगमालिणी। सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥१।। १००. अट्ठ उड्डलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मेघंकरा मेघवती, सुमेघा मेधमालिणी। तोयधारा विचित्ता य, पुष्फमाला अणिदिता ।।१।। कप्प-पदं १०१. अट्ट कप्पा तिरिय-मिस्सोववण्णगा पण्णत्ता, तं जहा- सोहम्म', 'ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभलोगे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे ।। १०२. एतेसु णं अट्ठसु कप्पेसु अट्ठ इंदा पण्णत्ता, तं जहा-सक्के', 'ईसाणे, सणकुमारे, __ माहिदे, बंभे, लंतए, महासुक्के°, सहस्सारे ॥ १०३. एतेसि णं अट्ठण्हं इंदाणं अट्ठ परियाणिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा-पालए, पुप्फए, सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते', कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे ।। पडिमा-पदं १०४. अट्टमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइदिएहि दोहि य अट्ठासीतेहिं भिक्खा सतेहिं अहासुत्तं 'अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्म कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया' अणुपालितावि भवति ॥ १. मितकेसी (क्व)। स्थानस्य १५० सूत्रे जाव 'विमलवरे सव्व२. बच्छब्बाओ (क, ग)। तोभट्टे' पाठोस्ति । तत्र वृत्तिकृता अष्टमः ३. सं० पा०–सोहम्मे जाव सहस्सारे । शब्दः 'मणोरमे' । इति व्याख्यात । ४, सं० पा०—सक्के जाव सहस्सारे । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि इत्थमेव पाठोस्ति । ५. णंदावत्ते (क्व)। तेनात्र ‘मणोरमे' इति पाठः स्वीकृतः । ६. विमले (क, ख, ग); यद्यपि सर्वेषु आदर्शषु ७. भिक्खुपडिमा णं (क, ख, ग)। 'विमले' इति पाठो विद्यते, किन्तु दशम- ८. सं० पा०-अहासुतं जाव अणुपालितादि । Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ जीव-पदं १०५. अदुविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा- पढमसमयणे रइया, अपढमसमयणेरइया, ' पढमसमय तिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा, अपढमसमयदेवा ॥ १०६. अट्ठविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइया, तिरिक्खजोगिया, तिरिवखजोगिणीओ, मणुस्सा मणुस्सीओ, देवा, देवीओ, सिद्धा । संजम-पदं १०७. अटुविधे संजमे पण्णत्ते, त अपढमसमयसुहुमसंपरागस रागसंजमे, अपढमसमयबाद रसंप रागस रागसंजमे, अहवा - अविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - आभिणिबोहियणाणी', सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी ०, केवलणाणी, मतिअण्णाणी, सुतअण्णाणी, विभंगणाणी ॥ 1 जहा -- पढम समय सुहुमसं परागस रागसंजमे, पढमसमय बादरसंप रागस रागसंजमे, पढमसमय उवसंत कसायवीतराग संजमे, अपढमसमय वसंत कसायवीतरागसंजमे, पढमसमयखीणकसायवीतराग संजमे, अपढमसमयखीणकसायवीतरागसंजमे || पुढ वि-पदं १०८ अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयणप्पभा', 'सक्करप्पभा, वालुअप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमा, अहेसत्तमा, ईसिप भारा ॥ १०६. ईसिप भाराएं णं पुढवीए बहुमज्झदेस भागे अट्टजोयणिए खेत्ते अट्ट जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते || ११०. ईसिपब्भाराए णं पुढवीए अट्ठ णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ईसिति वा, ईसिप भाराति वा, तणूति वा, तणुतणूइ वा सिद्धीति वा, सिद्धालएति वा, मुत्तीति वा, मुत्तालएति वा ॥ अब्भुतव्य-पदं १११. अहि ठाणेहिं सम्मं घडितव्वं जतितव्वं परक्कमितव्वं अस्सि चणं अट्ठे णो पमाएतव्वं भवति ठाणं १. असुयाणं धम्माणं सम्मं सुणणताए अन्भुवेतव्वं भवति । २. सुताणं धम्माणं ओगिण्हण्याए उवधारणयाए अब्भुतव्वं भवति । १. सं० पा० - अपढमसमयनेरतिता एवं जाव अपढम । २. सं० पा० - आभिणिबोहितणाणी जाव केवल ३. सं० पा० - रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा । ४. सिद्धातेति (क, ख, ग ) । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७५ अटुमं ठाणं ३. णवाणं' कम्माणं संजमेणमकरणताए अब्भुट्ठयव्वं भवति । ४. पोराणाणं कम्माणं तवसा विगिचणताए विसोहणताए अब्भुद्वैतव्वं भवति । ५. असंगिहीतपरिजणस्स' संगिण्हणताए अब्भुटेयव्वं भवति । ६. सेहं आयारगोयरं गाहणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति ।। ७. गिलाणस्स अगिलाए वेयावच्चकरणताए अन्भुट्टेयव्वं भवति । ८. साहम्मियाणमधिकरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो अपक्खग्गाही मज्झत्थभावभूते कह णु साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पतुमंतुमा ? उक्सामणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति ।। विमाण-पदं ११२. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विभाणा अट्ठ जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। वादि-पदं ११३. अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स अट्ठसया वादोणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वादे अपराजिताणं उक्कोसिया वादिसंपया हुत्था । केवलिसमुग्घात-पदं ११४. अट्ठसमइए केवलिसमुग्धाते पण्णत्ते, तं जहा-पढमे समए दंडं करेति, बीए समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेति, पंचमे समए लोग पडिसाहरति, छटे समए मंथ' पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति ।। अणुत्तरोववाइय-पदं ११५. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं "ठितिकल्लाणाणं' आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयसंपया हुत्था ।। वाणमंतर-पदं ११६. अट्ठविधा वाणमंतरा देवा पण्णत्ता, तं जहा--पिसाया, भूता, जक्खा, रक्खसा, किण्णरा, किंपुरिसा, महोरगा, गंधव्वा ।।। ११७. एतेसि णं अट्ठविहाणं वाणमंतरदेवाणं अट्ठ चेइयरुक्खा पण्णत्ता, तं जहा--- १. पावाणं (क्व)। ४. मंथानं (ख)। २. °परितणस्स (क, ग); ° परियणतस्स ५. मंथु (क, ग)। ६. सं० पा०--गतिकल्लाणाणं जाव आगमे । ३. समतिते (क, ख, ग)। Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ ठाणं संगहणी-गाहा कलंबो उ पिसायाणं, वडो जक्खाण चेइयं । तुलसी भूयाण भवे, रक्खसाणं च कंडओ ॥१॥ असोओ किण्णराणं च, किंपुरिसाणं तु'' चंपओ। णागरुक्खो भुयंगाणं, गंधव्वाण य तेंदुओ ॥२॥ जोइस-पदं ११८. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठजोयणसते उड्डमबाहाए सूरविमाणे चारं चरति ।। ११६. अट्ट णक्खत्ता चंदेणं सद्धि पमई जोगं जोएंति, तं जहा-कत्तिया, रोहिणी, पुणव्वसू, महा, चित्ता, विसाहा, अणुराधा, जेट्ठा ।। दार-पदं १२०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स दारा अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ १२१. सव्वेसिपि णं दीवसमुद्दाणं दारा अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। बंधठिति-पदं १२२. पुरिसवेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जहण्णणं अट्ठसंवच्छराइं बंधठिती पण्णत्ता ।। १२३. जसोकित्तीणामस्स गं' कम्मरस जहण्णणं अट्ठ मुहुत्ताइं बंधठिती पण्णत्ता॥ १२४. उच्चागोतस्स णं कम्मस्स "जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ताई बंधठिती पण्णत्ता ॥ कुलकोडी-पदं १२५. तेइंदियाणं अट्ठ जाति-कुलकोडी-जोगीपमुह-सतसहस्सा पण्णत्ता ।। पावकम्म-पदं १२६. जीवा णं अट्ठठाणणिव्वतिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा -पढमसमयणेरइयणिव्वत्तिते', 'अपढमसमयणेरइयणिव्वत्तिते, पढमसमयतिरियणिव्वत्तिते, अपढमसमयतिरियणिव्वत्तिते पढमसमयमणुयणिव्वत्तिते, अपढम समयमणुयणिव्वत्तिते, पढमसमयदेवणिव्वत्तिते ०, अपढमसमयदेवणिव्वत्तिते।। एवं---चिण-उवचिण'-'बंध-उदीर-वेद तह ° णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १२७. अट्ठपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ।। १२८. अनुपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव' अट्ठगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ १. °साण य (ख)। अपढम । २. नामए (क)। ५. सं० पा०-उवचिण जाव णिज्जरा। ३. सं.पा.-.-एवं चेव । ४. सं० पा०-पढमसमयणेरतितणिन्वत्तिते जाव र र ६ ठा० ११२५५,२५६ । Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं ठाणं विसंभोग-पदं १. णवहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे णातिक्कमति, तं। जहा--आयरियपडिणीयं, उवज्झायपडिणीयं, थेरपडिणीयं, कुलपडिणीयं, गणपडिणीयं. संघपडिणीयं, णाणपडिणीयं, दसणपडिणीयं, चरित्तपडिणीयं ।। बंभचेरअज्झयण-पदं २. णव बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणा, लोगविजओ', 'सीओसणिज्जं, सम्मतं, आवंती, धूतं, विमोहो °, उवहाणसुयं, महापरिण्णा ।। बंभचेरगुत्ति-पदं ३. णव बंभचेरगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-१. विवित्ताई सयणासणाई सेवित्ता भवति—णो इत्थिसंसत्ताई णो पसुसंसत्ताई णो पंडगसंसत्ताई। २. णो इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति। ३. 'णो इत्थिठाणाई सेवित्ता भवति । ४. णो इत्थीणमिदियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता णिज्झाइता भवति । ५. णो पणीतरसभोई [भवति ?]। ६. णो पाणभोयणस्स अतिमातमाहारए सया' भवति । ७. णो पुव्वरतं पुव्वकीलियं सरेत्ता भवति । ८. णो सहाणुवाती णो रूवाणुवाती णो सिलोगाणुवाती [भवति ?] 1 ६. णो सातसोक्खपडिबद्धे यावि भवति ॥ १. सं० पा०.-लोगविजयो जाव उवहाणसुयं । तीदमेव व्याख्यायते ..."हश्यमानपाठाभ्यूगमे २. 'नो इस्थिगणाई' तीह सूत्रं दृश्यते केवलं त्वेवं व्याख्या----नो स्त्रीगणानां पर्युपासको 'नो इत्थिगणाई' ति सम्भाव्यते उत्तराध्यय. भवेदिति (ब)। नेषु तथाधीतत्वात् प्रक्रमानुसारित्वाच्चास्ये- ३. सता (क, ख, ग)। ७७७ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ওওও ठाणं बंभचेरअगुत्ति-पदं ४. णव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-१. णो विवित्ताई सयणासणाई सेवित्ता भवति-इत्थीसंसत्ताई पसुसंसत्ताई पंडगसंसत्ताइ । २. इत्थीणं कह कहेत्ता भवति । ३. इत्थिठाणाई सेवित्ता भवति । ४. इत्थीणं इंदियाइ 'मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता णिज्झाइत्ता भवति । ५. पणीयरसभोई [भवति ?] । ६. पाणभोयणस्स अइमायमाहारए सया भवति। ७. पुव्वरयं पुव्वकीलियं सरित्ता भवति । ८. सद्दाणुवाई रूवाणुवाई सिलोगाणुवाई [भवति ? ] 1 ६. सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवति ॥ तित्थगर-पदं ५. अभिणंदणाओ णं अरहओ सुमती अरहा णवहिं सागरोवमकोडीसयसहस्सेहि वीइक्कतेहिं समुप्पण्णे॥ सम्भावपयत्थ-पदं ६. णव सब्भावपयत्था पण्णत्ता, तं जहा--जीवा, अजीवा, पुण्णं, पावं, आसवो, संवरो, णिज्जरा, बंधो, मोक्खो।। जीव-पदं ७. णवविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा--पुढविकाइया', 'आउ काइया, तेउकाइया, वाउकाइया', वणस्सइकाइया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया , पंचिदिया॥ गति-आगति-पदं ८. पुढविकाइया णवगतिया णवआगतिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइए पुढवि काइएसु उववज्जमाणे पुढविकाइएहितो वा', 'आउकाइएहितो वा, तेउकाइएहितो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहितो वा, चउरिदिएहिंतो वा°, पंचिदिएहितो वा उववज्जेज्जा । से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा', 'आउ काइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए बा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चउरिदियत्ताए वा°, पंचिदियत्ताए वा गच्छेज्जा ॥ ९. एवमाउकाइयावि जाव पंचिदित्ति ।। १. सं० पाo---इंदियाइं जाव णिज्झाइत्ता। २. कोडाकोडी (ग) ३. सं० पा०-पुढविकाइया जाव वणस्सइ- काइया । ४. सं० पा०-बेइंदिया जाव पंचिदिया। ५. पंचिदितत्ति (क, ग)। ६. सं० पा०--पुढविकाइएहितो वा जाव पंचिदिएहितो। ७. सं० पा०—पुढविकाइयत्ताए वा जाव पंचिंदियत्ताते। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं ठाणं ७७६ जीव-पदं १०. णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, जेरइया, पंचेदियतिरिक्खजोणिया, मणुया, देवा, सिद्धा। अहवा–णवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा.-पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया', 'पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणुया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा', अपढमसमयदेवा, सिद्धा ।। ओगाहणा-पदं ११. णवविहा सव्वजीवोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइओगाहणा, आउ काइओगाहणा', 'तेउकाइओगाहणा, वाउकाइओगाहणा, वणस्सइकाइओगाहणा, बेइंदियओगाहणा, तेइंदियओगाहणा', चरिदियओगाहणा, पंचिदिय ओगाणा ॥ संसार-पदं ११. जीवा णं णवहिं ठाणेहिं संसारं वत्तिसु वा वत्तंति वा वत्तिस्संति वा, तं जहा--- पुढविकाइयत्ताए, 'आउकाइयत्ताए, तेउकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणस्सइ काइयत्ताए, बेइंदियत्ताए, तेइंदियत्ताए, चरिदियत्ताए °, पंचिदियत्ताए। रोगुप्पत्ति-पदं १३. णवहिं ठाणेहिं रोगुप्पत्ती सिया, तं जहा-अच्चासणयाए, अहितासणयाए, अतिणिदाए", अतिजागरितेणं, उच्चारणिरोहेणं, पासवणणिरोहेणं, अद्धाण गमणेणं, भोयणपडिकूलताए, इंदियत्थविकोवणयाए । दरिसणावरणिज्ज-पदं १४. णवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा–णिद्दा, णिहानिद्दा, पयला, पयलापयला, थीणगिद्धी, चक्खुदंसणावरणे", अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदसणावरणे, केवलदंसणावरणे ॥ १. सं० पा०—अपढमसमयणेरतिता जाव ७. सं० पा०—पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिदियअपढमसमयदेवा। त्ताए। २. °काइया ° (ख)। ८. पंचिंदियकाइयत्ताए (ग)। ३. सं० पा०—आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइ- ६. ° सणाते (ख, ग)। काइओगाहणा। १०. णिदितेणं (क); णिदिते (ग)। ४. बेंदिओ० (क)। ११. चक्खुदरिसणा (क, ग)। ५. तेदिओ° (क)। १२. अवधि ° (क, ग)। ६. सासारं (ख)। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८० ठाणं जोइस-पदं १५. अभिई णं गक्खत्ते सातिरेगे णवमुहत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोएति ॥ १६. अभिइआइया णं णव णक्खत्ता णं चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा--अभिई, सवणो धणिट्ठा', 'सयभिसया, पुव्वाभद्दवया, उत्तरापोट्टवया, रेवई, अस्सिणी, भरणी॥ १७. इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमीभागाओ णव जोअण सताई उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ॥ मच्छ-पदं १८. जंबुद्दीवे णं दीवे गवजोयणिआ मच्छा पविसिसु वा पविसंति वा पवि सिस्संति वा॥ बलदेव-वासुदेव-पदं १६. जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए णव बलदेव-वासुदेव पियरो हुत्था, __ तं जहासंगणी-गाहा 'पयावती य बंभे रोहे सोमे सिवेति य । महसीहे अग्गिसीहे, दस रहे णवमे य वसुदेवे ।।१।। इत्तो आढत्तं जधा समवाये गिरवसेस जाव'-- एगा से गब्भवसही, सिज्झिहिति आगमेसेणं ॥ २०. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्स प्पिणीए णव बलदेव-वासुदेवपितरो भविस्संति, णव बलदेव-वासुदेवमायरो भविस्संति । एवं जधा समवाए णिरवसेसं जाव' महाभीमसेणे, सुग्गीवे य अपच्छिमे । एए खलु पडिसत्तू, कित्तिपुरिसाण वासुदेवाणं । सव्वे वि' चक्कजोही, हम्मे हिंती सचक्के हिं ॥१॥ १. समणो (ग)। ४. मलिनोभय-शुक्ति-छुप्तारब्ध -पदातेर्मइलावह२. सं. पा०--धणिवा जाव भरणी, चन्द्रप्रज्ञप्ती सिप्पि-छिक्काढत्त-पाइक्क (हेमशब्दानुशासन (१०-११) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ (वक्ष ७) च ८२११३८) । चन्द्रस्योत्तरेणं योग युजानानां द्वादश- ५. पइण्णगसमवाय सू० २३६-२४७ । नक्षत्राणामुल्लेखोस्ति । अत्र तु नवमस्थान- ६. पइण्णगसमवाय सू० २५६, २५७ ॥ कानुरोधेन नवैव गृहीतानि । ७. य (क, ग)। ३. जतावती त पम्हे (ग)। ८. हम्मेहंति (ख, ग)। Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं ठाण ७८१ महाणिहि-पदं २१. एगमेगे णं महाणिधी णव-णव जोयणाई विखंभेणं पण्णत्ते ।। २२. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स णव महाणिहिओ [णो ?] पण्णत्ता, तं जहा-- संगहणी-गाहा णेसप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण महापउमे । काले य महाकाले, माणवग महाणिही संखे ॥१॥ सप्पंमि णिवेसा, गामागरणगर-पट्टणाणं च। दोणमुह-मडंबाणं, खंधाराणं गिहाणं च ।।२।। गणियस्स य बीयाणं, माणम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य बीयाणं, उप्पत्ती पंडुए भणिया ॥३॥ सव्वा आभरणविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं । आसाण य हत्थोण य, पिंगलगणिहिम्मि सा भणिया ॥४॥ रयणाइं सव्वरयणे, चोद्दस पवराई चक्कवट्टिस्स । उपज्जंति एगिदियाई, पंचिदियाइं च ॥५॥ वत्थाण य उप्पत्ती, णिप्फत्ती चेव सव्व भत्तीणं । रंगाण य धोयाण य, सब्बा एसा महापउमे ॥६॥ काले कालण्णाणं, भव्व पुराणं च तीसू वासेसू । सिप्पसतं कम्माणि य, तिणि पयाए हियकराई ।।७।। लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं ॥८॥ जोधाण य उत्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च। सव्वा य जुद्धनीती, माणवए दंडणीतो य॥६॥ गट्टविही णाडगविही, कव्वस्स चउब्विहस्स उप्पत्ती। संखे महाणिहिम्मी, तुडियंगाणं च सव्वेसि ॥१०॥ चक्कट्ठपइट्ठाणा, अठुस्सेहा य णव य विक्खंभे । बारसदीहा मंजूस- संठिया जलवीए' मुहे ॥११॥ वेरूलियमणि-कवाडा, कणगमया विविध-रयण-पडिपुण्णा । ससि-सूर-चक्क-लक्खण-अणुसम-जुग-बाहु-वयणा य ॥१२।। ३. जह्नवीइ (क, ग)। १. धोयाणं (क); धोवाण (ख)। २. x (क)। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८२ ठाणं पलिओवमदितीया. णिहिसरिणामा य तेस खल देवा। जेसिं ते आवासा, अक्किज्जा' आहिवच्चा वा ॥१३।। एए ते णवणिहिणो,' पभूतधणरयणसंचयसमिद्धा । जे वसमुवगच्छंती, सव्वेसिं चक्कवट्टीणं ।।१४॥ विगति-पदं २३. णव विगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--खीरं, दधि, णवणीतं, सप्पि, तेलं, गुलो, महुं, मज्ज, मंसं ॥ बोंदी-पदं २४. णव-सोत-परिस्सवा बोंदी पण्णत्ता, तं जहा-दो सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, मुह, पोसए, पाऊ ।। पुण्ण-पदं २५. णवविधे पुण्णे, पण्णत्ते, तं जहा -अण्णपुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुण्णे, लेणपुण्णे, सयणपुण्णे, मणपुण्णे, वइपुण्णे, कायपुणे, णमोक्कारपुण्णे ॥ पावायतण-पदं २६. णव पावसायतणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवाते, मुसावाए', 'अदिण्णादाणे, मेहुणे °, परिग्गहे, कोहे, माणे, माया, लोभे ॥ पावसुयपसंग-पदं २७. णवविध पावसुयपसंगे पण्णते, तं जहासंगहणी-गाहा उम्पाते गिमित्त मंते, आइक्खिए" तिगिच्छिए । कला आवरणे अण्णाणे मिच्छापवयणे ति य ॥१॥ उणिय-पदं २८. णव णेउणिया वत्थू पण्णत्ता, तं जहा-- संखाणे णिमित्ते काइए पोराणे पारित्थिए । परपंडिते 'वाई य", भूतिकम्मे तिगिच्छिए ॥१॥ गण-पदं २९. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा-गोदासगणे, उत्तर १. अग्गिच्चा (क, ग)। २. निहओ (ख, ग)। ३. सं० पाo.-मुसावाते जाव परिग्गहे। ४. आतिक्खते (क, ख, ग)। ५. ° पवतणे (क, ग); ° पावतणे (ख)। ६. परिपंडितते (क, ग)। ७. वातित (क, ग); वाती (ख); वातिते (क्व)। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं ठाणं ७५३ बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, 'उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे", काम ड्डियगणे, माणवगणे, कोडियगणे ।। भिक्खा-पदं ३०. समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णवकोडिपरिसुद्धे भिक्खे पण्णत्ते, तं जहा–ण हणइ, ण हणावइ, हणतं णाणुजाणइ, ण पयइ', 'ण पया वेति, पयंत णाणुजाणति, ण किणति, ण किणावेति, किणंत णाणुजाणति ।। देव-पदं ३१. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो णव अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ।। ३२. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो असामहिसीणं णव पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता । ३३. ईसाणे कप्पे उनकोसेणं देवीणं णव पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। ३४. णव देवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा-- संगहणी-गाहा सारस्सयमाइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥१॥ ३५. अव्वाबाहाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णता ।। ३६. "अग्गिच्चाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णत्ता॥ ३७. रिट्ठाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णत्ता । ३८. णव गवेज्ज-विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा हेट्रिम-हेट्रिम-गविज्ज-विमाण पत्थडे, हेट्रिम-मज्झिम-गविज्ज-विमाण-पत्थडे, हेटिम-उवरिम-गेविज्ज-विमाणपत्थडे, मज्झिम-हेट्ठिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-मज्झिम-गेविज्जविमाण-पत्थडे, मज्झिम - उवरिम - गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-हेटिमगेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उरिमउवरिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे ।। १. पलितस्सतगणे (क, ग); बलितस्सतगणे उडुवाडियगणे वेसववाडिययगणे । ३. कामिड्डितिगणे (क, ख, ग)। २. उहवातितगणे विस्सवाइतगणे (क, ख, ग); ४. पतति (क, ख, ग)। कल्पसूत्रे (सूत्र २१३, २१४) पंचमषष्ठयो- ५. पतंतं (क, ख, ग)। र्गणयोर्नाम्नी किञ्चिद् भेदेन विद्येते, यथा- ६. सं० पा०-एव अगिच्चावि एव रिट्रावि । Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ३६. एतेसि णं णवण्हं गेविज्ज-विमाण-पत्थडाणं णव णामधिज्जा पण्णता, तं जहा-- संगहणी-गाहा भद्दे सुभद्दे सुजाते, सोमणसे पियदरिसणे।। सुदंसणे अमोहे य, सुप्पबुद्धे जसोधरे ॥१॥ आउपरिणाम-पदं ४०. णवविहे आउपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-गतिपरिणामे, गतिबंधणपरिणामे, ठितीपरिणामे, ठितिबंधणपरिणामे, उड्ढंगारवपरिणामे, अहेगारवपरिणामे, तिरियंगारवपरिणामे, दोहंगारवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे ।। पडिमा-पदं ४१. णवणवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीतीए रातिदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहि भिक्खासतेहिं अहासुतं' 'अहाअत्थं अहातच्चं अहामन्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया यावि भवति ॥ पायच्छित्त-पदं ४२. णवविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा-आलोयणारिहे', 'पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे°, मूलारिहे, अणवठ्ठप्पारिहे ॥ कूड-पदं ४३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दोहवेतड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा सिद्धे भरहे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा । भरहे वेसमणे या, भरहे कूडाण णामाई ॥शा ४४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं णिसहे' वासहरपव्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा १. जसेवरे (क)। २. एगासीताते (ख, ग)। ३. सः पा०—अहासुत्तं जाव आहारिया। ४. सं० पा -आलोयणारिहे जाव मूलारिहे। ५. अत्र पद्यत्वात् नाम्नां संक्षेपो विद्यते, पूर्ण नामानि इत्थं सन्ति--खंडग--खंडप्रपात:, माणी-माणिभद्रः, पुण्ण–पूर्णभद्रः । ६. निसुभे (क, ग)। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं ठाणं ७८५ सिद्धे णिसहे हरिवस, विदेह हरि' धिति असीतोया । अवर विदेहे रुयगे, णिसहे कूडाण णामाणि ।।१।। ४५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वते णंदणवणे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा गंदणे मंदरे चेद, णिसहे हेमवते रयय रुयए य । सागरचित्ते वइरे, बलकूडे चेव बोद्धव्वे ॥१॥ ४६. जंबुद्दीवे दीवे मालवंतवक्खारपवते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धे य मालवंते, उत्तरकुरु कच्छ सागरे रयते । सीता य पुण्णणामे, हरिस्सहकूडे य बोद्धव्वे ॥१॥ ४७. जंबुद्दीवे दीवे कच्छे दोहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धे कच्छे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा । कच्छे वेसमणे या, कच्छे कूडाण णामाई ॥१॥ ४८. जंबुद्दीवे दीवे सुकच्छे दोहवेयड्ढे णव कूडा पग्णता, तं जहा-- सिद्धे सुकच्छे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा । सुकच्छे वेसमणे या, सुकच्छे कूडाण णामाई ॥१।। ४६. एवं जाव' पोक्खलावइम्मि दीहवेयड्ढे ॥ ५०. एवं वच्छे दीहवेयड्ढे ।। ५१. एवं जाव" मंगलावतिम्मि दीहवेयड्ढे ॥ ५२. जंबुद्दीवे दीवे विज्जुप्पभे वक्खारपव्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा-- सिद्धे अविज्जुणामे, देवकुरा पम्ह कणग सोवत्थी। सीओदा य सयजले, हरिकूडे चेव बोद्धव्वे ॥१॥ ५३. जंबुद्दीवे दीवे पम्हे दीहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धे पम्हे खंडग, माणी वेयड्ढ' 'पुण्ण तिमिसगुहा । पम्हे वेसमणे या, पम्हे कूडाण णामाई° ॥१॥ ५४. एवं चेव जाव' सलिलावतिम्मि दीहवेयड्ढे ।। ५५. एवं वप्पे दीहवेयड्ढे ।। १. आदर्शेषु 'हरि' पाठो विद्यते । जम्बूद्वीप- सम्मुखीनः आसीत्, तेन तथा व्याख्यातः । प्रज्ञप्तौ (वक्ष० ४) चापि 'हरि' पाठोस्ति। २. उत्तरकुरा (क, ग)। अस्या वृत्तिकारेणापि 'हरिसलिलानदीसुरीकूट' ३. ठा० ८०६६ । उल्लिखितमस्ति । किन्तु अभयदेवसरिणा अत्र ४. ठा० ८७० । वृत्तौ 'हीकूट' इति उल्लिखितम्-'ह्रीदेवी- ५. सं० पा०-वेयड्ढ । निवासो ह्रीकूट' सम्भवतः पहिरि' पाठः तत् ६. ठा० ८७१ । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ ५६. एवं जाव' गंधिलावतिम्मि दोहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहासिद्धे गंधिल खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा । गंधिलावति वेसमणे, कूडाणं होंति णामाई ॥१॥ एवं सव्वेसु दोहवे यड्ढेसु दो कूडा सरिसणामगा, सेसा ते चेव' | ५७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णेलवंते वासहरपन्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा - सिद्धे णेलवंते विदेहे, सीता कित्ती य णारिकता य । अवरविदेहे रम्मगकूडे, उवदंसणे चेव ॥१॥ ५८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवते दीहवेतड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा - सिद्धेवर खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा । एरवते वेसमणे, एरवते कूडणामाई || १ || पास-पदं ५६. पासे णं अरहा पुरिसादाणिए वज्जरिसहणारायसंघयणे समचउरंस-संठाणसंठिते व रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था || तित्थगरणामणिव्वत्तण-पदं ६०. समणस्स गं भगवतो महावीरस्स तित्थंसि णवहिं जोवेहि तित्थगरणामगोते कम्मे वित्तिते तं जहा - सेणिएणं, सुपासेणं, उदाइणा, पोट्टिलेणं अणगारेणं, दढाउणा, संखेणं, सतएणं, सुलसाए सावियाए, रेवतीए ॥ ठाणं भावितित्थगर-पदं ६१. एस णं अज्जो ! कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुत्ते, पुट्टिले, सतए गाहावती, दारुए' नियंठे, सच्चाई' नियंठीपुत्ते, सावियबुद्धे अंब [म्म ?] डे परिव्वायए, अज्जावि णं सुपासा पासावच्चिज्जा | आगमेस्साए उस्सप्पिणीए चाउज्जामं धम्मं पण्णवइत्ता सिज्झिहिति" "बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिन्वाइहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ ० महापउस-पदं ६२. एस णं अज्जो ! सेलिए राया भिभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे १. ठी० ८।७२ । २. ठा० ६४३ | ३. सततेण (क, ख, ग ) । ४. साविताते ( क, ख, ग ) । ५. दारुते ( क, ख, ग ) । ६. नितंठे (क, ख, ग ) 1 ७. सच्चती ( क, ख, ग ) 1 ८. नितंठी (क, ख, ग ) । ९. सावित ( क, ख, ग ) । १०. सं० पा०-- सिज्भिहिति जाव अंतं । Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं ठाणं रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए णरए चउरासीतिवाससहस्सद्वितीयंसि' रियसि णेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से गंणं तत्थ णेरइए भविस्सति — काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं । सेणं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं' 'तिउलं" पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं । सेणं ततो णरयाओं उब्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भर वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएस सतदुवारे नगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दा भारियाए कुच्छिसि पुमत्ताए पच्चायाहिति । तणं सा भद्दा भारिया णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्टमाण य राइदियाणं वोतिक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीण पडिपुण्ण पंचिदिय- सरीरं लक्खण-वंजण'- गुणोववेयं माणुम्माण - प्पमाण- पडिपुण्ण-सुजाय सब्बंग सुंदरंग ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाहिती। जं रर्याणि च णं से दारए पयाहिती, तं रर्याणि च णं सतदुवारे नगरे सम्भंत रबाहिरए भारग्गसो कुंभग्गसोय पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिति । तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वोइक्कते' 'णिवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे" अयमेयारूवं गोण्णं गुणणिष्फणं णामधिज्जं काहिति जम्हा णं अम्हमिमंसि दारगंसि जातंसि समाणंसि सयदुवारे गरे सभितरवाहिरए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे य वासे बुट्टे, तं होउ णमम्ह मिमस्स दारगस्स णामधिज्जं महापउमे महापउने । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधिज्जं काहिति महापउमेत्ति । तए णं महापउमं दारगं अम्मापितरो सातिरेगं अट्ठवासजातगं जाणित्ता महतामहता रायाभिसेएणं अभिसिंचिहिति । से णं तत्थ राया भविस्सति महताहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे रायवण्णओ जाव" रज्जं पसासेमाणे विहरिस्सति । १. ° स्थितिषु (वृ ) । २. निरयंसि णेरइएस (क, ग ) ; नरकेषु (वृ ) 1 ३. सं० पा० - कालोभासे जाव परमकिण्हे । ४. स० पा० – उज्जलं जाव दुरहियासं । ५. विउलं (वृपा) । ६. णरतात ( क, ख, ग ) 1 ७. ० पातं (क, ख, ग ) 1 ८. सं० पा०-- वंजण जाव सुरूवं । ६. सं० पा०-- बीइक्कते जाव बारसाहे । Q ७८७ १०. बारसाहे दिवसे ( क, ख, ग ); बारसाहदिवसेत्ति द्वादशानां पूरणो द्वादशः स एवाख्या यस्य स द्वादशाख्यः स चासौ दिवसश्चेति विग्रहः, अथवा द्वादशं च तदहश्च द्वादशाहस्तन्नामको दिवसो द्वादशाहदिवस इति (वृ); द्रष्टव्यं औपपातिक सूत्र १४४ 'बारसाहे' पाठस्य पादटिप्पणम् । ११. ओ० सू० १४ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८८ ठाणं तए णं तस्स महापउमस्स रण्णो अण्णदा कयाइ दो देवा महिड्डिया' महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला महासोक्खा' सेणाकम्मं काहिति तं जहा - पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य । तर णं सतदुवारे णगरे बहवे राईसर-तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठिसेणावति सत्यवाह-प्पभितयो अण्णमण्णं सद्दावेहिति एवं वइस्संति- जम्हा देवाप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दो देवा महिड्डिया' 'महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला महासोक्खा सेणाकम्मं करेति, तं जहापुण्णभद्देय माणिभद्दे य । तं होउ णमम्हं देवाणुप्पिया ! महापउमस्स रण्णो दोच्चेवि णामघेज्जे देवसेणे-देवसेणे । तते णं तस्स महापउमस्स रण्णो दोच्चेवि णामधेज्जे भविस्सइ देवसेणेति । ० तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो अण्णया कयाई' सेय संखतल - विमल-सणिकासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पज्जिहिति । तए णं से देवसेणे राया तं सेयं संखतलविमल-सणिकासं चउदंतं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे सतदुवारं नगरं मज्झमज्झेणं अभिक्खणं-अभिक्खणं 'अतिज्जाहिति य णिज्जाहिति" य । तए णं सतदुवारे नगरे बहवे राईसर- तलवर' - माडंबिय कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि - सेणावति सत्यवाह-पभितयो० अण्णमण्णं सद्दावेहिति, एवं वइस्संति - जम्हा णं देवागुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रण्णो सेते संखतल - विमल-सण्णिकासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पण्णे, तं होउ णमम्हं देवाणुप्पिया ! देवसेणस्स तच्चेवि णामधेज्जे विमलवाहणे - [ विमलवाहणे ? ] । तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो तच्चेवि णामधेज्जे भविस्सति विमलवाहणेति । १. सं० पा० - महिड्डिया जाव महासोक्खा । २. महेसक्खा (क, ख, ग ); २।२७१ सूत्रे 'महासोक्खा' इति पाठोस्ति । वृत्तिकृता 'मसक्खा' इति पाठान्तरत्वेन उल्लिखितम् । अत्रापि मूलपाठे स एव उपयुज्यते । ३. सं० पा०-- महिड्डिया जाव महासोक्खा | ४. कताती ( क, ख, ग ) । ५. आदर्शषु अप्राप्तः 'ति' वर्णः भगवती तए णं से विमलवाहणे राया तीसं वासाई अगारवास मज्झे वसित्ता अम्मापतीहि देवत्तं गतेहिं गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुष्णाते समाणे, उर्दुभि सरए, संबुद्धे अणुत्तरे मोक्खमग्गे पुणरवि लोगतिएहिं जीयकप्पिएहि देवेहि, ताहि इट्ठाहि ताहि पियाहि मणुष्णाहि मणामाहि उरालाहि कल्लाणाहि सिवाहि घण्णाहि ( १५/१७२ ) सूत्रानुसारेण स्वीकृतः । वृत्तिकृता एष पाठो न लब्ध: तेन व्याख्यातमिदम्--- क्वचिद्वर्त्तमाननिर्देशो दृश्यते सच तत्कालापेक्ष: (वृ) | ६. सं० पा०--तलवर जाव अण्णमण्णं । ७. पुणोत (क, ग) 1 ८. लोगंतितेहि (क, ख, ग ) । Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं ठाणं ७८६ मंगलाहिं सस्सिरिआहिं वग्गूहिँ अभिणंदिज्जमाणे अभिथुव्वमाणे य बहिया सुभूमिभागे उज्जाणे एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहिति । से णं भगवं जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहिति तं चेव दिवसं सयमेयमेतारूवं अभिग्गहं अभिगिहिहिति'-जे केइ १. सं० पा०-भवित्ता जाव पब्वयाहिति । २. 'क' प्रतौ स्वीकृतपाठस्य वाचनान्तरस्य च सम्मिश्रण लभ्यते । वृत्तिकारेणापि वाचनान्तरस्य व्याख्या कृतास्ति, यथा-- इतो वाचनान्तरमनुश्रित्य लिख्यते। तस्स ण भगवतस्स [अत्र 'से णं भगवं' युज्यते साइरेगाई दुवालसवासाई निच्चं वोसटुकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसमगा उपजिहिति त दिवा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते सव्वे सम्म सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहिया सिस्सइ; तए णं से भगव अणगारे भविस्सइ इरियासमिए भासासभिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-जल्लसिंधाण-पारिट्ठावण्यिासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबभयारी अममे अकिंचणे छिन्नगंथे (वृपा--किन्नगंथे) निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहयहयासणे तिव तेयसा जलंते। कसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे ॥१॥ कुंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे। चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ।।२।। नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, सेय पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पगहिएइ वा, जं जं जं गं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडि बढे सुचिभूए लहभूए अणुप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेण दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेण अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं खत्तीए मुत्तीए गुत्तोए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय विय [चिय?] फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे समुप्पजिहिति । तए णं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए सव्वजीवाणं आगई गति ठियं चयण उववायं तक्कं मणोमाणसियं भुत्तं कडं परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्म अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ। तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुआसुराई लोगं अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं सणेरइए जाव पंचमहन्वयाई स भावणाई छ जीवनिकाया धम्म देसेमाणे विहरिस्सति । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ठाण उवसग्गा उप्पज्जिहिंति,' तं जहा-दिव्वा वा माणुसा वा तिरिवखजोणिया वा ते सव्वे सम्म 'सहिस्सइ खमिस्सई तितिक्खिस्सइ अहियास्सिसइ। तए णं से भगवं अणगारे भविस्सति-इरियासमिते भासासमिते एवं जहा वद्धमाणसामी तं चेव णि रवसेसं जाव' अव्वावारविउसजोगजुत्ते। तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहि संवच्छरेहि वीतिक्कतेहि तेरसहि य पक्खेहि तेरसमस्स णं संवच्छ रस्स अंतरा' वट्टमाणस्स अणुत्तरेणं णाणेणं जहा भावणाते केवलवरणाणदसणे समुप्पििहति। जिणे भविस्सति केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सणेरइय जाव पंच महन्वयाई सभावणाई छच्च जीवणिकाए धम्म देसेमाणे विहरिस्सति । से जहाणामए अज्जो ! मए' समणाणं णिग्गंथाणं ऐगे आरंभठाणे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं एगं आरंभठाणं पण्णवेहिति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं दुविहे बंधणे पण्णत्ते, तं जहा-पेज्जबंधणे य, दोसबंधणे य। एवामेव महाप उमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं दुविहं बंधणं पण्णवेहिति, तं जहा—पेज्जबंधणं च, दोसबंधणं च । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहामणदंडे, वयदंडे, कायदंडे । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं तओ दंडे पण्णवेहिति, तं जहा–मणोदंडं, वयदंडं, कायदंडं । १. उप्पज्जति (ख)। ८. अस्यपूतिर्भावनाध्ययनस्य चूणिविवृतपाठस्या२. सहेज्जा खमेज्जा (क, ख, ग) . धारेण इत्थं जायते-तिरियनरामरस्स ३. अस्य पूर्तिस्थलं अद्यावधिनोपलब्धम् । लोगस्स पज्जवे जाणिस्सइ पासिस्सइ, ४. तेरसगस्स (क, ग); तेरसम्मस्स (ख) । तं जहा-आगति गति ठिति चयणं उववायं ५. अंतो (क, ग)। तक्कं मणोमाणसियं भूतं कडं परिसेवियं ६. वद्धमाणस्स (ग)। आवीकम्भ रहोकम्म अरहा अरहस्स भागी, ७. अस्यपूर्तिर्भावनाध्ययनस्य चूणिविवृतपाठस्या तं तं कालं मणसवयसकाइएहिं जोगेहि धारेण इत्थं जायते--अणुत्तरेणं दंसणेणं बद्रमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे अणुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ। अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंतीए मुत्तीए तए णं से भगवं तेणं अणत्तरेणं केवलवरसच्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोवचिय-फल- नाणदंसणेणं सदेवमणुयासुर लोगं अभिसपरिनिवाण-मग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स मिच्चा समणाणं निग्गंथाणं । अंगसत्ताणि माणंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुत्तरे भाग १, परिशिष्ट २, आलोच्य-पाठ तथा निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे । वाचनान्तर । अंगसुत्ताणि भाग १, परिशिष्ट २, आलोच्य- ६. मते (क, ख, ग)। पाठ तथा वाचनान्तर । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवमं ठाणं ७६१ से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा -- कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए । एवामेव महापरमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाए पण्णवेहिति, तं जहाकोहकसायं, माणकसायं, मायाकसायं, लोभकसायं । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणा पण्णत्ता, जहा - सद्दे, रूवे, गंधे, रसे, फासे । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं frier पंच कामगुणे पण्णवेहिति, तं जहा - सद्दं, रूवं, गंध, रसं, फासं । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा - - पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाए पण्णवेहिति, तं जहा – पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए°, तसकाइए । से जहाणामए' 'अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सत्त भट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा – 'इहलोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अकमहाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सत्त भयद्वाणे पण्णवेहिति, तं जहा - इहलोगभयं परलोगभयं आदाणभयं अकमहाभयं वेयणभयं मरणभयं असिलोगभयं । एवं अट्ठ मयट्ठाणे, णव बंभचेरगुत्तीओ, दसविधे समणधम्मे, एवं जाव' तेत्तीसमासातणाउत्ति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावे' मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कटुसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धवित्तीओ पण्णत्ताओ । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं जग्गभाव' मुंडभावं अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणुवाहणयं भूमिसेज्जं फलगसेज्जं कटुसेज्जं केसलोय बंभचेरवासं परघर - पवेसं लद्धावलद्धवित्ती' पण्णवेहिति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मिएति वा उद्देसि - एति वा मीसज्जाएति वा अज्भोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे १. सं० पा०--एवमेतेणमभिलावेणं एवामेव ५. आवस्सय ४ । ६. निम्गभावे ( ख ) 1 जाव तसकाइया | २. सं० पा० - से जहाणामते । ३. सं० पा०-- सत्त भवद्वाणा पं० तंο...... ४. सं० पा० - पण्णवे हिति। .... ० ० ७. लद्धावलद्धवित्ती जाव (क, ग) । ८. सं० पा० - णम्गभावं जाव लद्धावलद्धवित्ती । १. लद्भावलद्धवित्ती जाव ( क ) | Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ अणिसट्टे अभिहडेति वा कंतारभत्तेति वा दुब्भिक्खभत्तेति वा गिलाणभत्तेति वा वद्दलियाभत्तेति वा पाहुणभत्तेति वा मूलभोयणेति वा कंदभोयणेति वा फलभोयणेति वा बीयभोयणेति वा हरियभोयणेति वा पडिसिद्धे । एवामेव महापमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मियं वा 'उद्देसियं वा मीसज्जायं वा अज्भोयरयं वा पूतियं कीतं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्वं अभिहडं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं वा मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा • हरितभोयणं वा पडिसे हिस्सति । ठाणं से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेल धम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतियं' "सपडिक्कमणं • अचलगं धम्मं पण्णवेहिति । o से जहाणामए अज्जो ! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए सत्तसिवखावतिए - दुवालसविधे सावगधम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणोवासगाणं पंचाणुब्वतियं' 'सत्तसिक्खावतियं - दुवालसविधं • सावगधम्मं पण्णवेस्सति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंडेति वा रायपिंडेति वा पडिसिद्धे । एवमेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंड वा रायपिंड वा पडसे हिस्सति । से जहाणामए अज्जो ! मम गव गणा एगारस गणधरा । एवामेव महापउमसवि अरहतो णव गणा एगारस गणधरा भविस्संति । o से जहाणामए अज्जो ! अहं तीसं वासाई अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता' • अगाराओ अणगारियं पव्वइए, दुवालस संवच्छराई तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहि पक्खेहि ऊणगाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिवासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं" "बुज्झिस्सं मुच्चिस्सं परिणिव्वाइस्सं सव्वदुक्खाणमंत करेस्सं । एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाई अगारवासमज्भे वसित्ता' 'मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वाहिती, दुवालस संवच्छराई" "तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, तेरसहिं पक्खेहि ऊणगाईं तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाई सामण्णपरि 0 १. सं० पा०---आधाकम्मितं वा जाव हरित ४. सं० पा० भवित्ता जाव पव्वतिते । भोयणं । ५. सं० पा० - सिज्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाण ६. सं० पा० - वसित्ता जाव पव्वाहिती । ७. सं० पा०-संवच्छराई जाव वावत्तरिवासाई । २. सं० पा० - पंचमहव्यतितं जाव अचलगं । ३. सं० पा० - पंचाणुब्वतितं जाव सावगधम्मं । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं ठाणं ७६३ यागं पाउणित्ता °, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती' 'बुझि हिती मुच्चिहिती परिणिव्वाइहिती सव्वदुक्खाणमंतं काहितीसंगहणी-गाहा जस्सील-समायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो। तस्सील-समायारो, होति उ अरहा महापउमो ॥१॥ णक्खत्त-पदं ६३. णव णक्खत्ता 'चंदस्स पच्छंभागा" पण्णत्ता, तं जहा-- संगहणी-गाहा अभिई समणो धणिट्ठा, रेवति अस्सिणि मग्गसिर पूसो। हत्थो चित्ता य तहा, पच्छंभागा णव हवंति ॥१॥ विमाण-पदं ६४. आणत-पाणत-आरणच्चुतेसु कप्पेसु विमाणा णव जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। कुलगर-पदं ६५. विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था ।। तित्थगर-पदं ६६. उसभेणं अरहा कोसलिएणं इमोसे ओसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडीहि __ वोइक्कंताहि तित्थे पवत्तिते ॥ दीव-पदं ६७. घणदंत-लट्ठदंत-गूढदंत-सुद्धदंतदीवा णं दीवा णव-णव जोयणसताइं आयाम विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। महग्गह-पदं ६८. सुक्कस्स णं महागहस्स णव वोहीओ पण्णओ, तं जहा-हयवीही', गयवीही', गागवीही, वसहवीही, गोवोही, उरगवीही', अयवीही, मियवीही', वेसाणरवीही ॥ १. सं० पा०-सिज्झिहिती जाव सबदुक्खाण° | २. पच्छभागा (क); पच्छं भागा (ख, ग)। ३. अस्सेति (ख)। ४. मिगसिरा (ग)। ५. हत° (क, ख, ग)। ६. गत ° (क, ख, ग)। ७. जरगवीही (क, ख); जरग्गविही (ग)। ८. मित° (क, ख, ग) । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ ठाण कम्म-पदं ६९. णवविध गोकसायवेयणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा---इत्थिवेए', पुरिसवेए, ___णपुंसकवेए, हासे, रती, अरती, भये, सोगे, दुगुंछा ॥ कुलकोडि-पदं ७०. चउरिदियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता ।। ७१. भुयगपरिसप्प-थलयर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणि पमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता ।। पावकम्म-पदं ७२. जीवा णं णवट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा-पुढविकाइयणिव्वत्तिते', 'आउकाइयनिव्वत्तिते, तेउकाइयणिवत्तिते, वाउकाइयणिन्वत्तिते, वणस्सइकाइयणिव्वत्तिते, बेइंदियणिव्वत्तिते, तेइंदियणिन्वत्तिते, चरिदियणिव्वत्तिते° पंचिदियणिन्वत्तिते । एव-चिण-उवचिण' 'बंध-उदीर-वेद तह ° णिज्जरा चेव ॥ पोग्गल-पदं ७३. णवपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता जाव' णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। १. °वेते (क, ख, ग)। २. सं० पा०-पुढविकाइयणिवित्तिते पंचिदियणिव्वत्तिते। ३. स० पा०-उवचिण जाव णिज्जरा। जाव ४. ठा० ११२५४-२५६ । Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं लोगठिति-पदं १. दसविधा लोगट्टिती पण्णत्ता, तं जहा १. जण्णं जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायंति-- एवंप्पेगा' लोगद्विती पण्णत्ता। २. जण्णं जीवाणं सया समितं पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्रिती पण्णत्ता। ३. जण्णं जीवाणं सया समितं मोहणिज्जे पावे कम्मे कज्जति-एवंप्पेगा लोगद्विती पण्णत्ता। ४. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति एवंप्पेगा लोगद्विती पण्णत्ता । ५. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं तसा पाणा वोच्छिज्जिस्संति 'थावरा पाणा भविस्संति", थावरा पाणा वोच्छिज्जिस्संति तसा पाणा भविस्संति-एवंप्पेगा लोगट्ठिती पण्णत्ता। ६. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं लोगे अलोगे भविस्सति, अलोगे वा लोगे भविस्सति-एवंप्पेगा लोग ट्ठिती पण्णत्ता। ७. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं लोए अलोए पविस्सति, अलोए वा लोए पविस्सति–एवंप्पेगा लोगट्टिती पण्णत्ता । ८. जाव ताव लोगे ताव ताव जीवा, 'जाव ताव" जीवा ताव ताव लोएएवंप्पेगा लोगट्टिती पण्णत्ता। १. एवं एगा (क, ख, ग, वृपा)। २. समिते (क, ग)। ३,४. एतं (क, ख, ग)। ५.४ (क्व)। ६. इह यावज्जीवास्तावत्तावल्लोको, यावति क्षेत्रे जीवास्तावत्क्षेत्र लोक इति भावार्थः, 'जाव तावे' त्यादिवाक्यरचना तु भाषामात्रम् (व)। ७६५ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ ठाणं है. जाव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गतिपरियाए ताव ताव लोए, जाव ताव लोगे ताव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गतिपरियाए एवंप्पेगा लोगद्विती पण्णत्ता। १०. सव्वेसुवि णं लोगंतेसु अबद्धपासपुट्ठा पोग्गला लुक्खत्ताए कज्जति, जेणं जीवा य पोग्गला य णो संचायति बहिया लोगंता गमणयाए--एवंप्पेगा लोगट्टिती पण्णत्ता।। इंदियस्थ-पदं २. दसविहे सद्दे पण्णत्ते, तं जहासंगह-सिलोगो णीहारि पिडिमे लुक्खे, भिण्णे जज्जरिते इ य । दीहे रहस्से पुहत्ते य, काकणी खिखिणिस्सरे ॥१॥ ३. दस इंदियत्था तीता पण्णत्ता, तं जहा--देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिसु । सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुर्णिसु । देसेणवि एगे रूवाई पासिसु । सव्वेणवि एगे रूवाइं पासिंसु। "देसेणवि एगे गंधाइं जिंघिसु । सवेणवि एगे गंधाई जिधिसु। देसे णवि एगे रसाइं आसादेंसु ! सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेंसु । देसेणवि एगे फासाइं पडिसं वेदेंस । सवेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेंस !! ४. दस इंदियत्था पडुप्पण्णा पण्णत्ता, तं जहा-देसेणवि एगे सद्दाइं सुणेति । सव्वेणवि एगे सद्दाई सुर्णेति । “देसेणवि एगे रूवाइं पासंति। सब्वेणवि एगे रूवाइं पासंति । देसेवि एगे गंधाइं जिघंति । सवेणवि एगे गंधाइं जिघंति । देसेणवि एगे रसाइं आसादेति । सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेति । देसेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेति । सवेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेति ° । ५. दस इंदियत्था अणागता पण्णत्ता, तं जहा-देसेणवि एमे सद्दाई सुणिस्संति । सव्वेणवि एगे सहाई सुणिस्संति । “देसेणवि एगे रूवाइं पासिस्संति । सम्वेणवि एगेरुवाई पासिस्संति । देसेणवि एगे गंधाइ जिघिस्संति । सन्वेणवि एगे गंधाई जिधिस्संति । देसेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति । सम्वेगवि एगे रसाइं आसादेस्संति। देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति। सव्वेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेस्संति ।। १. गतिपरिताते (क, ख, ग)। २. नीहारिए (क, ग)। ३. ४ (क, ग)। ४. सं० पा.-एवं गंधाई रसाई फासाइं जाय सब्वेणवि। ५. सं० पा०---एवं जाव फासाई । ६. सं० पा०-एवं जाव सम्वेणवि। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ७६७ अच्छिण्ण-पोग्गल-चलण-पदं ६. दसहिं ठाणेहिं अच्छिष्णे पोग्गले चलेज्जा, तं जहा-आहारिज्जमाणे वा चलेज्जा। परिणामेज्जमाणे वा चलेज्जा। उस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा। णिस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा । वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा। णिज्जरिज्जमाणे वा चलेज्जा। विउव्विज्जमाणे वा चलेज्जा । परियारिज्जमाणे वा चलेज्जा। जक्खाइटे वा चलेज्जा । वातपरिगए वा चलेज्जा ॥ कोधुप्पत्ति-पदं ७. दसहि ठाणेहि कोधुप्पत्ती सिया, तं जहा-मणुण्णाइं मे सद्द फरिस-रस-रूव-गंधाई अवहरिसु । अमणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं उवहरिसु। मणुण्णाई मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई अवहरइ। अमणुष्णाई मे सद्द-फरिस'- रस-रूव. गंधाइं उवहरति । मणुण्णाइं मे सद्द- फरिस-रस-रूव-गंधाई ° अवहरिस्सति । अमणण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं° उवहरिस्सति । मणण्णाई मे सद्द- फरिस-रस-रूव °-गंधाई अवहरिंसु वा अवहरइ वा अवहरिस्सति वा । अमणण्णाइं मे सद्द- फरिस-रस-रूव-गंधाइं° उवहरिंसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा । मणुण्णामणुण्णाई मे सद्द- फरिस-रस-रूव-गंधाई ° अवहरिसुवा अवहरति वा अवस्सिति वा, उवहरिंसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति बा। अहं च णं आयरिय-उवझायाणं सम्म वट्टामि, ममं च णं आयरिय-उवज्झाया मिच्छं विडिवण्णा' । सजम-असंजम-पदं ८. दसविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकाइयसंजमे', 'आउकाइयसंजमे, तेउ काइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे °, वणस्सतिकाइयसंजमे, बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चरिदियसंजमे, पंचिदियसंजमे, अजीवकायसंजमे ।। १. प्रतिषु 'वातपरिग्गहे' पाठो लभ्यते, किन्तु ३. सं० पाo--फरिस जाव गंधाई। अर्थ समीक्षया स संगति नैति । वृत्तिव्या- ४. सं० पा०–सद्द जाव अवहरिस्सति । ख्यात: पाठोत्र समीचीनो विभाति, तेनात्र स ५. स० पा०-सद्द जाव उवहरिस्सति । एव मूले स्वीकृतः । वृत्तौ व्याख्या इत्थमस्ति- ६. सं० पा०—सद्द जाव गंधाई। "वातपरिगतो-देहगतवायुप्रेरितः वातपरिगते ७. सं० पा०—-सद्द जाव उवहरिंसु । वा देहे सति बाह्यवातेन वोत्क्षिप्त इति।" ८. सं० पा०-सद्द जाव अवहरिंसू । (वृत्तिपत्र ४४८)। ६. पडिवन्ना (क्व)। २. इह चैकवचनबहवचनयोर्न विशेषः प्राकृतत्वात् १०. सं० पा०—पुढविकातितसंजमे जाव वण स्सति । Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ ठाणं ६. दसविधे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा----पुढविकाइयअसंजमे, आउकाइयअसंजमे, तेउ काइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे, वणस्सतिकाइयअसंजमें', 'बेइंदियअसंजमे, तेइंदियअसंजमे, चउरिदियअसंजमे, पंचिंदियअसंजमे°, अजीवकायअसंजमे ।। संवर-असंवर-पदं १०. दसविधे संवरे पण्णत्ते, तं जहा--सोतिदियसंवरे', 'चक्खिदियसंवरे, घाणिदिय संबरे, जिभिदियसंवरे', फासिदियसंवरे, मणसंवरे वयसंवरे कायसंवरे, उवकरणसंवरे, सूचीकुसग्गसंवरे ॥ ११. दसविधे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा.-सोतिदियअसंवरे', 'चक्खिदियअसंवरे, घाणिदियअसंवरे, जिभिदियअसंवरे, फासिदियअसंवरे, मणअसंवरे, वयअसंवरे, कायअसंवरे, उवकरणअसंवरे°, सूचीकुसग्गअसंवरे ॥ अहमंत-पदं १२. दसहि ठाणेहिं अहमंतीति थंभिज्जा, तं जहा--जातिमएण वा, कुलमएण वा, 'बलमएण वा, रूवमएण वा, तवमएण वा, सुतमएण वा, लाभमएण वा', इस्सरियमएण वा, णागसुवण्णा वा मे अंतियं हव्वमागच्छंति, पुरिसधम्मातो वा मे उत्तरिए आहोधिए णाणदसणे समुप्पण्णे ॥ समाधि-असमाधि-पदं १३. दसविधा समाधी पण्णत्ता, तं जहा - पाणातिवायवेरमणे, मुसावायवे रमणे, अदिण्णादाणवे रमणे, मेहुणवेरमणे, परिगहवेरमणे, इरियासमिती', भासा समिती, एसणासमिती, आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण___ खेल-सिंघाणग-जल्ल-पारिट्ठावणिया समिती ।। १४. दसविधा असमाधी पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवाते, 'मुसावाए, अदिण्णादाणे, मेहणे °, परिग्गहे, इरियाऽसमिती', 'भासाऽसमिती, एसणाऽसमिती, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणाऽसमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-जल्ल-पारि ट्ठावणियाऽसमिती ।। पन्वज्जा-पदं १५. दसविधा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा १. सं० पा०-वणस्सतिकातितअसंजमे जाव ४. सं० पा०-कुलमतेण वा जाव इस्स रिय। ___ अजीवकाय । ५. अबोधित (ग); अहो° (१)। २. सं० पा०-सोतिदियसंवरे जाव फासिदिय। ६. रितासमिती (क); इरिता (ख, ग)। ३. सं० पा०-सोतिदितअसंवरे जाव सूची- ७. सं० पा०-पाणातिवाते जाव परिग्गहे । ८. सं० पा०-इरिताऽसमिती जाव उच्चारण कुसमा । Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ७६६ संगहणी-गाहा छंदा रोसा परिजुण्णा, सुविणा पडिस्सुता चेव । सारणिया रोगिणिया, अणाढिता देवसण्णत्ती ॥१॥ वच्छाणुबंधिया ।। समणधम्म-पदं १६. दसविधे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, महवे, लाघवे, सच्चे, संजमे तवे, चियाए, बंभचेरवासे ॥ वेयावच्च-पदं १७. दसविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा-आयरियवेयावच्चे, उवज्झायवेयावच्चे, थेरवेयावच्चे, तवस्सिवेयावच्चे, गिलाणवेयावच्चे, सेहवेयावच्चे, कुलवेयावच्चे, गणवेयावच्चे, संघवेयावच्चे, साहम्मियवेयावच्चे। परिणाम-पदं १८. दसविधे जीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा--गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे', कसाय परिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवओगपरिणामे, गाणपरिणामे, सण परिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे'! १६. दसविधे अजीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा–बंधणपरिणामे, गतिपरिणामे, संठाण परिणामे, भेदपरिणामे, वण्णपरिणामे, रसपरिणामे, गंधपरिणामे, फास परिणामे, अगुरुलहुपरिणामे, सद्दपरिणामे ।। असज्झाइय-पदं २०. दसविधे अंतलिक्खए' असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा-~-उक्कावाते, दिसिदाघे, गज्जिते, विजुते, णिग्घाते, जुवए, जक्खालित्ते', धूमिया, महिया, रयुग्धाते। २१. दसविधे ओरालिए असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा -- अट्ठि, मसे, सोणिते', असुइ सामंते, सुसाणसामंते, दोवराए', सुरोवराए, पडणे, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे॥ १. इंदित (क, ख, म)। ६. रतुम्घाते (क, ख)। २. वेत° (क, ख, ग)। ७. ग्रन्थान्तरे चर्माप्यधीयते, यदाह-"सोणिय ३. अंतलिक्खिते (क, ख, ग)1 मंसं चम्म, अट्ठीवि य होति चत्तारि" (वृ)। ४. जूयते (ख)। ८. चंदोवराते (क, ख, ग)। ५. जक्खलित्तते (क); जक्खालित्तते (ख); १. सूरोवराते (क, ख, ग)। जक्खलितिते (ग)। Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०० ठाणं संजम-असंजम-पदं २२. पचिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स दसविधे संजमे कज्जति, तं जहा-सोता मयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। सोतामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति ! "चक्खुमयाओ सोक्खाओ अवदरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति । घाणामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति । घाणामएण दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति । जिब्भामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति । जिब्भामएणं दुक्खणं असंजोगेत्ता भवति । फासामयाओ सोक्खाओ अववरो वेत्ता भवति° ! फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति ।। २३. “पंचिदिया णं जीवा समारभमाणस्स दसविधे असंजमे कज्जति, तं जहा सोतामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । सोतामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । चक्खुमयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । घाणामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दसवेणं संजोगेत्ता भवति । जिब्भामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । फासामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ।। सुहुम-पदं २४. दस सुहुमा पण्णत्ता, तं जहा-पाणसुहुमे, पणगसुहुमे', 'बीयसुहुमे, हरितसुहुमे, पुप्फसुहुमे, अंडसुहुमे, लेणसुहुमे °, सिणेहसुहुमे, गणियसुहुमे, भंगसुहुमे ।। महाणदी-पदं २५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं गंगा-सिंधु-महाणदीओ दस महाण दीओ समप्पेंति, तं जहा--जउणा, सरऊ, आवी, कोसी, मही, सतद्, वितत्था', विभासा, एरावती, चंदभागा ।।। २६. जंबुद्दोवे दौवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्ता-रत्तवतीओ महाणदीओ दस महाणदीओ समप्पेति, तं जहा - किण्हा, महाकिण्हा, णीला, महाणीला, महातीरा, इंदा', 'इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा°, महाभोगा' ।। १. सं० पा०–एवं जाव फासामतेणं । २. सं० पा०--एवं असंयमो वि भाणितब्बो। ३. सं० पा० –पणगसुहमे जाव सिणेहसुहमे । ४. विवच्छा (क); विवत्था (ग)। ५. सं० पा०--इंदा जाव महाभोगा। ६. सर्वेषु प्रयुक्तादर्शेषु निम्नप्रकार: पाठो लभ्यते-"किण्हा महाकिण्हा नीला महानीला तीरा महातीरा इदा जाव महाभोगा।" वृत्तीच-"एवं रक्तासूत्रमपि नवर यावत्करणात् 'इन्दसेणा वारिसेण' ति द्रष्टव्यमिति" (वृत्तिपत्र ४५४) । किन्तु पंचमस्थानसमागतपाठस्य (सू० २३२, २३३) संदर्भ नैष पाठः समीचीनो भाति, तेनास्माभिर्मूले पंचमस्थानसमागतः पाठः स्वीकृतः । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम ठाणं ८०१ रायहाणी-पदं २७. जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे दस रायहाण ओ पमत्ताओ, तं जहा~संगहणी-गाहा चंपा महरा वाणारसी य सावत्थि 'तह य" साकेत। हत्थिणउर कंपिल्लं, मिहिला कोसंवि रायगिहं ।।१।। राय-पदं २८. एयासु णं दससु रायहाणीसु दस रायाणो मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तं जहा -- भरहे, सगरे', मघवं, सणंकुमारे, संती, कुंथू, अरे, महापउमे, हरिसेणे, जयणामे ॥ मंदर-पदं २९. जंबुद्दीवे दोवे मंदरे पव्वए दस जोयणसयाइं उन्हेणं, धरणितले दस जोयण सहस्साई विक्खंभेणं, उरिं दसजोयणसयाई विक्खं भेणं, दसदसाइं जोयण सहस्साई सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ दिसा-पदं ३०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागे इमीसे रयणप्पभाए पढवीए उवरिम-हेट्ठिल्लेसु खुडगपतरेसु, एत्थ णं अट्टपएसिए रुयगे पण्णत्ते, जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तं जहा–पुरथिमा, पुरथिमदाहिणा, दाहिणा, दाहिणपच्चत्थिमा, पच्चत्थिमा, पच्चस्थिमुत्तरा, उत्तरा, उत्तरपुरथिमा, उड्डा, अहा। ३१. एतासि ण दसण्हं दिसाणं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा... संगहणी-गाहा इंदा अग्गेइ जम्मा य, णेरती वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणी य, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥११॥ लवणसमुद्द-पदं ३२. लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साई गोतित्थविहरिते खेत्ते पण्णत्ते ॥ ३३. लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयणसहस्साई उदगमाले पण्णत्ते ।। १. चंपं (ग)। ५. सागरो (ख)। २. चंद त (ग)। ६. पतेसिते (क, ख, ग)। ३. सातेतं (क, ख, ग)। ७. अग्गीयी (ख) ४. सं० पा० - भवेत्ता जाब पव्वतिता। Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ ठाणं पायाल-पदं ३४. सव्वेवि णं महापाताला दसदसाइं जोयणसहस्साइं उव्वेहेणं पण्णत्ता, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ता, बहुमज्झदेसभागे एगपएसियाए सेढीए दसदसाइं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ता, उरि मुहमूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ता । तेसि णं महापातालाणं कुड्डा सव्ववइरामया सव्वत्थ समा दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ता॥ ३५. सव्वेवि णं खुद्दा पाताला दस ज़ोयणसताइं उब्वेहेणं पण्णत्ता, मूले दसदसाई जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता, बहुमज्झदेसभागे एगपएसियाए सेढीए दस जोयणसताई विक्खंभेणं पण्णत्ता, उरि मुहमूले दसदसाइं जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। तेसि ण खुड्डापातालाणं कुड्डा स० ववइरामया सव्वत्थ समा दस जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ता ।। पव्वय-पदं ३६. धायइसंडगा णं मंदरा दसजोयणसयाई उव्वेहेणं, धरणीतले देसूणाई दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उवरि दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पण्णता ।। ३७. पूक्खरवरदीवडगाणं मंदरा दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, एवं चेव ।।। ३५. सम्वेवि णं वट्टवेयड्डपव्वता दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाई उबेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता॥ खेत्त-पदं ३६. जंबुद्दीवे दीवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, __हरिवस्से, रम्मगवस्से, पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा ।। पव्वय-पदं ४०. माणुसुत्तरे णं पवते मूले दस वावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४१. सव्वेवि णं अंजण-पव्वता दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उवरिं दस जोयणसताइं विक्खंभेणं पण्णत्ता !! ४२. सव्वेवि णं दहिमुहपव्वता दस जोयणसताइं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ४३. सव्वेवि णं रतिकरपव्वता दस जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं, दसगाउयसताई उन्हेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठिता, दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ १. खुद्दापोताला (ग)। २,३. संठाणसठिता (क्व)। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ८०३ ४४. रुयगवरे णं पवते दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खभणं, उरि दस जोयणसताइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४५. एवं कुंडलवरेवि ।। दवियाणुओग-पदं ४६. दसविहे दवियाणुओगे पण्णते, तं जहा-दवियाणुओगे, माउयाणुओगे, एगट्ठियाणुओगे, करणाणुओगे, अप्पितणप्पिते', भाविताभाविते, बाहिराबाहिरे, सासतासासते, तहणाणे, अतहणाणे ।। उप्पातपव्यय-पदं ४७. चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिछिकडे उप्पातपब्बते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४८. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारणो सोमप्पभे उप्पातपञ्चते दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं', मूले दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४६. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारण्णो जमप्पभे उप्पातपव्वते एवं चेव ।। ५०. एवं वरुणस्सवि ।। ५१. एवं वेसमणस्सवि ।। ५२. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिदे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ५३. बलिस्स ण वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स एवं चेव, जधा चमरस्स लोगपालाण तं चेव बलिस्सवि ॥ ५४. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो धरणप्पभे उप्पातपवते दस जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसताई विक्खभेणं ।। ५५. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो कालवालस्स महारण्णो काल वालप्पभे उप्पातपक्वते जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं एवं चेव ।। १. अप्षिणप्पिते (क)। २. तेगिच्छि° (क)। ३. ओव्वे (क) ४, द्रष्टव्यम्-ठा० ४११२२ । ५. ठा० १०८४-५१। ६. महाकालप्पभे (क, ख, म); आदर्शषु 'महाकालप्पभ' पाठो लभ्यते, किन्तु 'सव्वेसि उप्पायपव्वया भाणियव्वा सरितामगा' Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ ५६. एवं जाव' संखवालस्स || ५७. एवं भूताणंदस्सवि' ॥ ५८. एवं लोगपालाणवि' से, जहा धरणस्स ॥ ५६. एवं जाव' थणितकुमाराणं सलोगपालाणं भाणियव्वं सव्वेसि उप्पायपव्वया भाणियव्वा सरिणामगा || ६०. सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो सक्कप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसहस्साइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ते || ६१. सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो । जधा सक्कस्स तथा सन्वेसि लोगपालाणं," सव्वेसि च इंदाणं जाव' अच्चुयत्ति । सव्वेसि पमाणमेगं ॥ ओगाहणा-पदं ६२. बायरवणस्सइकाइयाणं उक्कोसेणं दस जोयणसयाई सरीरोगाहणा पण्णत्ता ॥ ६३. जलचर- पंचिदियतिरिक्खजोगियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसताई सरीरोगाहणा पण्णत्ता ॥ ६४. उरपरिसप्प थलचर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसताई सरीरोगाहणा पण्णत्ता ॥ तिस्थगर-पदं ६५. संभवाओ गं अरहातो अभिनंदणे अरहा दसहि सागरोवमकोडिसतसहस्से हि वीक्तेि हि समुपणे ॥ अनंत-पदं ६६. दसविहे अनंत" पण्णत्ते, तं जहा - णामाणंतर ठेवणानंतर, दव्वाणंतए, गणणानंतर, पएसानंतर, एगतोणंतर, दुहतोणंतए, देसवित्थाराणंतए, सव्ववित्था रात सासतात ॥ पुन्ववथु-पदं ६७. उप्पायपुव्वस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता ॥ ६८. अत्थिणत्थिप्पवायपुव्वस्स" णं दस चूलवत्थू पण्णत्ता ॥ ठाणं इति नियामकपाठेन 'कालवालप्पभ' इति पाठो युज्यते । वृत्तौ कालवालस्य कालवालप्रभः' इत्युल्लिखितमस्ति । एतत् समीक्षयास्माभिः 'कालवालप्पभ' पाठः स्वीकृतः । १. ठा० ४। १२२ । २. ठा० १०१५४ । ३. लोगपालाणंपि (क, ख, ग ) । ४. ठा० १।१४४ - १५० । ५. द्रष्टव्यम्-ठा० ४। १२२ । ६. सरिणामगा (क्व ) । ७. द्रष्टव्यम् ठा० ४। १२२ । ८. ठा० २२३८० ३८४ । ६. सं० पा० - एवं चेव । १०. अनंत ते ( क, ख, ग ) 1 ११. ० पवात ( क, ख, ग ) Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम ठाणं ८०५ पडिसेवणा-पदं ६६. दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा दप्प पमायणाभोगे, आउरे आवतीसु य । संकिते सहसक्कारे, भयप्पओसा य वीमंसा ॥१॥ आलोयणा-पदं ७०. दस आलोयणादोसा पण्णत्ता, तं जहा आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता, जं दि8 बायरं च सुहुमं वा । छण्णं सद्दाउलग, बहुजण अश्वत्त तस्सेवी ॥१॥ ७१. दसहि ठाणेहि संपण्णे अणगारे अरिहति अत्तदोसमालोएत्तए, तं जहा जाइसंपण्णे, कुलसंपण्णे, "विणयसंपण्णे, णाणसंपण्णे, दंसणसंपण्णे, चरित्त संपण्णे, ° खते, दंते, अमायी', अपच्छाणुतावी ।। ७२. दसहि ठाणेहि संपण्णे अणगारे अरिहति आलोयणं पडिच्छित्तए, तं जहा--- आयारवं, आहारवं', ववहारवं, ओवोलए, पकुव्वए, अपरिस्साई, णिज्जावए, अवायदंसी, पियधम्मे दढधम्मे ।। पायच्छित्त-पदं ७३. दसविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा-आलोयणारिहे', 'पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे, मूलारिहे, अणवठ्ठप्पारिहे, पारंचियारिहे ।। मिच्छत्त-पदं ७४. दसविधे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा-अधम्मे धम्मसण्णा, धम्मे अधम्मसण्णा, उमर्गे मग्गसणा, मग्गे उम्मग्गसण्णा', अजोवेसु जीवसण्णा, जीवेसु अजीवसण्णा, - -------------- ----- --- १. सं० पा०-एवं जधा अदाणे जाव खते । इत्यर्थोभिप्रेतोस्ति, तेन 'आधा हा रवं' २. अमाती (क, ख, ग)। इत्येव पाठः समीचीनः प्रतिभाति । ३. अवहारवं (ख, ग, वृ); ८.१८ सूत्रे 'आधारवं' सं० पा०-आहारवं जाव अवातदंसी। पाठो विद्यते । भगवत्या (२५:५५४) मपि ४. वित° (क); पित° (ख, ग)। 'आहारव' पाठो लभ्यते। अष्टमस्थानेपि ५. सं० पा०—आलोयणारिहे जाव अणवट्रप्पावृत्तिकारणास्यार्थः 'अबधारणावान्' कृतः रिहे। अत्रापि स एवार्थः कृतोस्ति । भगवतीवृत्तावपि ६. अमग्गे (ख)। एष एवार्थोस्ति। अत्र 'आधारवान्' ७. अमग्गसण्णा (वृ)। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०६ ठाणं असाहुसु साहुसण्णा, साहुसु असाहुसण्णा, अमुत्तेसु मुत्तसग्णा, मुत्तेसु अमुत्तसण्णा ॥ तित्थगर-पदं ७५. चंदप्पभे णं अरहा दस पुवसतसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख पहीणे ।। ७६. धम्मे णं अरहा दस वाससयसहस्साई सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख पहीणे ।। ७७. णमी णं अरहा दस वाससहस्साई सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ।। वासुदेव-पदं ७८. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता छट्ठीए तमाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे ॥ तित्थगर-पदं ७६. मी णं अरहा दस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस य वाससयाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' "बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख प्पहीणे ॥ वासुदेव-पदं ८०. कण्हे णं वासुदेवे दस धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस य वाससयाई सव्वाउयं पाल इत्ता तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए परइयत्ताए उववणे ।। भवणवासि-पदं ८१. दसविहा भवणवासी देवा पण्णत्ता, तं जहा-असुरकुमारा जाव थणियकुमारा। ८२. एएसि णं दसविधाणं भवणवासीणं देवाणं दस चेइयरुक्खा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा 'अस्सत्थ' सत्तिवण्णे, सामलि उंबर सिरीस दहिवणे। -पलास-वग्या, तते य कणियाररुक्खे ॥१॥ १,२,३. सं० पा०--सिद्धे जाव पहीणे। ४. वाससहस्साई (क, ख, ग)। ५. सं० पा०---सिद्धे जाव प्पहीणे। ६. ठा० ११४३-१५० । ७. असत्थ (ख); अस्सत्त (ग)। ८. द्वयोरादर्शयोः मुद्रितपुस्तकेषु च 'वप्पा, वप्पो, वप्पे' इति पाठा लभ्यन्ते । किन्तु 'वर' शब्दस्य वृक्षवाचित्वं नोपलभ्यते । 'वग्घ' शब्दोत्र उपयुक्तोस्ति । पाइयसद्दमहण्णवे 'व्याघ्र' शब्दस्य वृक्षवाचि अर्थद्वयं विद्यते-- रक्तएरण्ड का पेड़, करंज का पेड़। आप्टेमहोदयस्य संस्कृतइंगलिशशब्दकोषे 'व्यान' शब्दस्यार्थः रक्तएरण्डवृक्षः कृतोस्तिThe red variety of the castor. Oil plant. ६. कणितार ° (क,ख, ग)। Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं सोक्ख-पदं ८३. दसविधे सोक्खे पण्णत्ते, तं जहा आरोग्ग दीहमाउं, अड्ढेज्जं काम भोग संतोसे । अत्थि सुहभोग क्खिम्ममेव तत्तो अणावाहे ॥ १ ॥ उवघात विसोहि पदं ८४. दसविधे उवघाते पण्णत्ते, तं जहा -- उग्गमोवघाते, उप्पायणोवधाते, "एसणोवघाते, परिकम्मोवघाते, परिहरणोवघाते, णाणोवघाते, दंसणोवघाते, चरित्तोवघाते, अचियत्तोवधाते, सारक्खणोवघाते || ८५. दसविधा विसोही पण्णत्ता, तं जहा - उग्गमविसोही, उप्पायण विसोही', 'एसणविसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही, पाणविसोही, दंसणविसोही, चरितविसोही, अचियत्तविसोही, सारखखणविसोही || संकिलेस असं किलेस-पदं ८६. दसविधे संकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा -- उवहिसं किलेसे, उवस्सय संकिलेमे, कसायसंकिलेसे, भत्तपाणसं किलेसे, मणसंकिलेसे, वइसंकिलेसे, कायसंकिलेसे, णाणसंकिले से, दंसणसं किलेसे, चरित्तसंकिलेसे ॥ ८७. दसविहे असंकिले से पण्णत्ते, तं जहा - उवहिअसंकिलेसे', 'उवस्सय असं किलेसे, कसायअसं किलेसे, भत्तपाणअसंकिलेसे, मणअसं किलेसे, वइअसंकिले से, कायअसं किलेसे, पाणअसं किलेसे, दंसणअसंकिले से चरित्तअसंकिले से | बल-पदं ८८. दसविधे बले पण्णत्ते, तं जहा- सोति दियबले', 'चक्खिदियबले, घाणिदियबले, जिभिदियबले, फासिदियबले, णाणबले, दंसणबले, चरितबले, तवबले, वीरियबले || भासा-पदं ८६. दसविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा संग्रहणी-गाहा ८०७ जणवय सम्मय ठवणा, णामे रूवे पडुच्चसच्चे य । ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्मसच्चे य ॥ १ ॥ १. सं० पा०--जह पंचट्ठाणे जाव परिहरणोवघाते । २. सं० पा०--- उपायणविसोही जाव सारक्खविसोही । ३. सं० पा० उबहिअसं किले से जाव चरित । ४. सं० पा० – सोतिदितबले जाव फासिदित बले । Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०८ ९०. दसविधे मोसे पण्णत्ते, तं जहाकोधे माणे माया, लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । हास भए अक्खाइय उवघात णिस्सिते दसमे ॥१॥ ९१. दसविधे सच्चामोसे पण्णत्ते, तं जहा - उप्पण्णमीसए, विगतमीसए, उप्पण्णfaraiसए, जीवमीसए, अजीवमीसए, जीवाजीवमीसए, अनंतमीसए, परितमीसए, अद्धामीसए, अद्धद्धामीसए || दिट्ठवाय-पदं ६२. दिट्टिवायरस णं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - दिट्टिवाएति वा, हेउवाएति वा, भूयवाएति वा, तच्चावाएति वा सम्मावाएति वा, धम्मावाएति वा, भासाविति वा, पुव्वगतेति था, अणुजोगगतेति वा, सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहाहेति वा ॥ सत्यपदं ६३. दसविधे सत्थे पण्णत्ते, तं जहा - संग्रह - सिलोगो सत्यमग्गी विसं लोणं, सिणेहो खारमंबिलं । दुप्पउत्तो मणो वाया, काओ' भावो य अविरती ॥१॥ दोस-पदं ६४. दसविहे दोसे पण्णत्ते, तं जहा तज्जातदोसे मतिभंगदोसे, पसत्थारदोसे परिहरणदोसे || सलक्खण-क्कारण हेउदोसे, संकामणं णिग्गह-वत्थु दोसे ||१|| विसेस-पदं ६५. दसविधे विसेसे पण्णत्ते, तं जहावत्थु तज्जातदोसे य, दो गति । कारणे य पडुप्पण्णे, दोसे णिच्चेहिय अट्टमे ॥ अता उवणीतेय, विसेसेति य ते दस ||१|| सुद्धवायाणुओग-पदं ९६. दसविधे सुद्धवायाणुओगे पण्णत्ते, तं जहा - चंकारे, मंकारे, पिंकारे", सेयंकारे, गत्ते, दुधत्ते, संजू, संकामिते, भिण्णे | १. कातो (क, ग); काया ( ख ) 1 २. 'अत्तण' ति आत्मना कृतमिति शेषः (वृ) । ३. उपनीत -- प्रापितं परेणेति शेषः (वृ) । ठाणं ४. चकारे मिकारे पिकारे ( ख, ग ) । ५. सुद्धन्ने (क); सुधन्ने ( ग ) । Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ८०६ दाण-पदं १७. दसविहे दाणे पण्णत्ते, तं जहासंगह-सिलोगो अणुकंपा संगहे चेव, भये कालुणिएति य । लज्जाए गारवेणं च, अहम्मे उण सत्तमे ॥ धम्मे य अट्ठमे वुत्ते, काहीति य कतंति य ।।१।। गति-पदं १८. दसविधा गती पण्णत्ता, तं जहा-णि रयगती, णिरयविग्गहगती, तिरियगती, तिरियविग्गहगती, "मणुयगती, मणुयविग्गहमती, देवगती, देव विग्गहगती, सिद्धिगती, सिद्धिविग्गहगती ॥ मुंड-पदं १. दस मुंडा पण्णत्ता, तं जहा–सोतिदियमुंडे', 'चक्खिदियमंडे, धाणिदियमंडे, जिटिभदियमुंडे , फासिदियमुंडे, कोहमुंडे', 'माणमुंडे मायामुंडे ° लोभमुंडे, सिरमुंडे ॥ संखाण-पदं १००. दसविधे संखाणे पण्णत्ते, तं जहा- संगहणी-गाहा परिकम्मं ववहारो, रज्जू रासी कला-सवण्णे य । जावंतावति वग्गो, घण्णो य तह वग्गवग्गोवि ॥१॥ कप्पो य० ॥ १०१. दसविधे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा अणागयमतिक्कतं, कोडीसहियं णियंटितं चेव । सागारमणागारं, परिमाणकडं णिरवसेसं ॥ संकेयगं चेव अद्धाए, पच्चक्खाणं दसविहं तु ॥२॥ सामायारी-पदं १०२. दसविहा सामायारी पण्णत्ता, तं जहा १. सं० पा०-एवं जाव सिद्धिगती। २. सोतिदित (क, ख, ग);सं० पा०–सोति- दितमुंडे जाव फासिदित । ३. सं० पा.-कोहमुंडे जाव लोभमंडे । Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१० ठाणं संगह-सिलोगो इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया' य णिसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छेदणा य णिमतणा ! उवसंपया य काले, सामायारी दसविहा उ ।।१।। महावीर-सुमिण-पदं १०३. समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसी इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा१. एगं च णं 'महं घोररूवदित्तधर तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ३. एगं च णं मह चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं' सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्व रयणामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं भुयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धे । है. एग' च णं महं हरि-वेरुलिय-वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सव्वतो समता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । १०. एगं च ण महं मंदरे पन्वते मंदरचूलियाए उरि सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । १. जगणं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं सालपिसायं समिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणेणं भगवता महावीरेणं मोहणिज्जे कम्मे मूलओ उग्घाइते । २. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सुक्किलपक्खग' 'पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता ण° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। १. आवस्सिती (क)। २. सामायारी भवे (क, ग)। ३. महाघोररूवदित्तधर (क, ख, ग, वृ)। ४. पूस० (क, ख, ग)। ५. उम्मीसहस्स ° (वृपा)। ६. एगेण (वृ); एग (वृषा)। ७. सं० पा०–सुक्किलपक्खगं जाव पडिबुद्धे । Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ११ ३. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं' 'पुसकोइल सुविणे पासित्ता णं° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे ससमय-परसमयियं चित्तविचित्तं दुवालसंगं गणिपिडगं आघवेति पण्णवेति परूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति, तं जहा-आयारं', 'सूयगडं, ठाणं, समवायं, विवा [आ ? हपण्णत्ति, णायधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं ° दिट्ठिवायं ।। ४. जणं समणे भर भगवं महावीर एगं च णं महं दामदुगं सब्वरयणा' 'मयं समिणे पासित्ता णं° पडिबुद्धे, तणं समणे भगवं महावीरे दुविहं धम्म पण्णवेति, तं जहा–अगारधम्म च, अणगारधम्म च । ५. जण्णं समणे भगवं महाबोरे एगं च ण महं सेत गोवरगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउव्वण्णाइण्णे संघ, तं जहा-समणा, समणीओ, सावगा, सावियाओ। ६. जण्णं समणे भगवं महावोरे एगं च णं महं पउमसरं 'सव्वओ समंता कुसमित सुमिणे पासित्ता ण° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे चउविहे देवे पण्णवेति, तं जहा--भवणवासी, वाणमतरे, जोइसिए, बेमाणिए। ७. जण्णं समणे भगव महावीरे एग च णं महं सागरं उम्मी-वोची - सहस्सकलित भयाहि तिणं सुमिणे पासित्ता ण° पडिबुद्धे, तं ण समणेणं भगवता महावीरेणं अणादिए" अणवदग्गे दीहमद्धे चाउरते संसारकंतारे तिण्णे । ..जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं दिणयरं 'तेयसा जलंतं समिणे पासित्ता गं° पडिबुद्ध, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अणते अणत्तरे' •णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे • समुप्पण्ण। १. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं हरि-वेरुलिय" 'वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सव्वतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता पं. पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवतो महावीरस्स सदेवमणुयासुर लागे उराला कित्ति-वण्ण-सह-सिलोगा परिगुव्वंति"..-इति खलु समणे भगव महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे। १. सं० पा०-चित्तविचित्तपक्खगं जाव पडिबुद्धे। ८. सं० पा०-दिणयरं जाव पडिबुद्धे । २. सं० पा०-~-आयारं जाव दिद्रिवायं । ६. सं० पा०-अणुत्तरे जाव समुप्पण्णे । ३. सं० पा०---सव्वरयणा जाव पडिबुद्धे । १०. नं० पा०-हरिवेरुलित जाव परिबुद्धे। ४. सं० पा०-सुमिणे जाव पडिबुद्धे । ११. परिभमंति(वृपा);परिभमंति(भ० १६१६१); ५. सं० पा०--पउमसरं जाव पडिबुद्धे । 'परिगुव्वंति' परिगुप्यन्ति व्याकुलीभवन्ति ६. सं० पा०-उम्मोवीची जाव पडिबुद्धे । सतत भ्रमन्तीत्यर्थः, अथवा परिगूयन्ते७. अणातीते (क, ख, ग) 1 गृङधातोः शब्दार्थत्वात् संशब्द्यते (व)1 Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ रुचि - पदं १०४. दसविधे सरागसम्मद्दंसणे पण्णत्ते, तं जहा - संग्रहणी - गाहा O १०. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उवरिं' "सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सदेवमणुयासुराए परिसाए मज्झगते केवलिपण्णत्तं धम्मं आधवेति पण्णवेत्ति धरूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति || सिग्गुवएस रुई, आणारु सुत्तबीयरुइ मेव । अभिगम वित्थाररुई, किरिया - संखेव धम्मरुई ||१|| सण्णा-पदं १०५. दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा", "भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा', 'माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, 'लोगसण्णा, ओहसण्णा ॥ रइयाणं दस सण्णाओ एवं वेव || १०६. १०७. एवं निरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ वेयणा-पदं ठाणं १०८. रइया णं दसविधं वेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा सीतं, उसिणं, खुधं, पिवास, कंडु, परज्यं, भयं, सोगं, जरं, वाहि ॥ छउमत्थ- केवलि-पदं १०६. दस ठाणाई छउमत्थे' सव्वभावेण ण जाणति ण पासति तं जहा - धम्मत्थिकार्य', 'अधम्मत्थिकार्य, आगासत्थिकार्य, जीवं असरीरपडिबद्ध, परमाणुपोग्गलं, सद, गंध, वात, 'अयं जिणे भविस्सति वा ण वा भविस्सति, अयं सव्वदुक्खाणमंत करेस्सति वा ण वा करेस्सति । १. स० पा० -उवरि जाव पडिबुद्धे । २. सं० पा०—पण्णवेति जाव उवदंसेति । ३. ० वतेसरुती ( क, ख, ग ) । ४. सं० पा०-आहारसण्णा जाव परिहसण्णा । ५. कोव ० ( ग ); सं० पा० - कोहसण्णा जाव लोभसण्णा ! ६. ओघसण्णा लोगसण्णा (वृ); लोगसण्णा ओघ एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा" "जिणे केवलो सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा -- धम्मत्थिकार्य अधम्मत्थिकार्य आगासत्थिकार्य, जीवं असरीर सण्णा (वृपा ) | ७ ठा० १११४२-१६३ । ८. छउमत्थे ण (क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - धम्मत्थिगातं जाव वातं । १०. अजिणा भविस्संति वा ण भविस्सति ( ग ) । ११. सं० पा० अरहा जाय अयं । Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ८१३ पडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सर्द, गंध, वातं, अयं जिणे भविस्सति वा ण वा भविस्सति, अयं सव्वदुक्खाणमंत करेस्सति वा ण वा करेस्सति ॥ दसा-पदं ११०. दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कम्मविवागदसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ || १११. कम्मविवागदसाणं दस अजभयणा पण्णत्ता, तं जहा- संग्रह - सिलोगो अंडे सगडेति यावरे | सोरिए' य उदुंबरे ! मियापुत्ते य गोत्तासे, माह मंदिसेणे, सहसुद्दा हे आमलए, कुमारे लेच्छई इति ॥ १ ॥ ११२. उवास गदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाआणंदे कामदेवे आ, गाहावतिचलणीपिता | सुरादेवे चुल्लसतए, गाहावतिकुंडकोलिए || सद्दालपुत्ते महासतए, गंदिणीपिया लेइयापिता ||१२|| ११३. अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा मि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते' सुदंसणे चेव । जमाली य भगाली य, किंकसे चिल्लए' ति य ॥ फाले अंबडपुत्ते य एमेते दस आहिता ॥ १ ॥ १. सूरिते ( क, ख, ग ) | २. सालितियापिता (क, ग ); सालेतितापिता (ख); हस्तलिखितवृत्ती 'लेइकापितृ०' इत्यपि लभ्यते --- लेइयापियत्ति लेयिकापितृनाम्नः श्रावस्तीनिवासिनो गृहमेधिनो भगवतो बोधिलाभिनोऽनंतरं तथैव सौधर्म्मगामिनो वक्तव्यतानिवद्धं लेयिका पितृनामकं दसममिति । तदाधारेणसौ पाठः स्वीकृतोस्ति । 'उवासगदसाओ' सूत्रेपि 'लेइयापिता' पाठः स्वीकृतोस्ति, यथा — एवं खलु जम्बू । समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा आणंदे कामदेवे य, गाहावति चुलणीपिता) सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावतिकुंड कोलिए । सद्दालपुत्ते महासतए, नंदिणीपिया लेइयापिता । (उवासगदाओ ११६ ) | ३. समणगुत्ते ( क ) । ४. किकम्मे (क्व ) । ५. पिल्लते ( ख ) । ६. फले (क, ग ) ; काले ( ख ) 1 ७. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र - - एतानि च नमोत्यादिकान्यन्तकृतसाधुनामानि अन्तकृद्दशाङ्गप्रथमवर्गेध्ययनसंग्रहे नोपलभ्यते, यतस्तत्राभिधीयते -. Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं ११४. अणुत्तरोववातियदसाणं दस अज्झयणा पण्णता, तं जहा इसिदासे य धण्णे य, सुणक्खत्ते कातिए ति य । संठाणे सालिभद्दे य, आणंदे तेतली ति य॥ दसण्णभद्दे अतिमुत्ते, एमेते दस आहिया ॥१॥ ११५. आयारदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - वीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अट्टविहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिढाणा, एगारस उवासगपडिमाओ, बारस भिक्खुपडिमाओ, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं मोहणिज्जट्ठाणा, आजाइट्ठाणं । दिसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासिआई, खोमगपसिणाई', 'कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई", अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। "गोयम समुद्द सागर, 'इसिदासे' त्यादि, तत्र तु दृश्यतेगंभीरे चेव होइ थिमिए या धन्ने य सुनखते, इसिदासे य आहिए। अयले कंपिल्ले खलु, अक्खोभ पसेणई विह॥" पेल्लए रामपुत्ते य, चंदिमा पोट्टिके इय' ||१| ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति संभावयामः, पेढालपुत्ते अणगारे, अणगारे पोट्टिले इय । न जन्मान्तरनामापेक्षयैतानि भविष्यन्तीति विहल्ले दसमे वृत्ते, एमे ए दस आहिया ।।२।। वाच्य, जन्मान्तराणां तत्रानभिधीयमानत्वादिति तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्तो न पुनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति (वृत्ति (वृत्ति पत्र ४९३); तत्त्वार्थराजवातिके अन्त __ पत्र ४८३); तत्त्वार्थराजवातिके अनुत्तरोकृतदशाया अध्ययनानां नामानि इत्थं पपातिकदशाया अध्ययनानां नामानि इत्थं सन्ति-'संसारस्यान्तः कृतो यैस्तेन्तकृतः सन्ति-''अनुत्तरेष्वौपपादिका अनुत्तरोपनमिमतंगसोमिलरामपुत्रसुदर्शनयमलीकबली पादिका: ऋषिदासधन्यसुनक्षत्रकातिकनन्दनकनिष्कंवलपालांबष्ठपुत्रा इत्येते दस वर्धमान -दनशालिभद्रअभयवारिषेणचिलातपुत्रा इत्येते तीर्थकरतीर्थे" (तत्त्वार्थराजवातिक ११२०)। दस वर्धमानतीर्थकरतीर्थे (तत्त्वार्थराजवार्तिक एषु कानिचिद् नामानि सदृशानि कानिचिच्च १।२०); ° कार्तिकेयानन्दनन्दन ° (षट्खण्डाभिन्नानि । अत्र भेदो लिपिकारणेन स्यादथवा गमधवलावृति १११।२) । वाचनान्तरापेक्षया । स्थानाङ्गवत्तिकारेण ३. अजाइ० (क, ग)। अज्जाइ (ख)। 'वाचनान्तरापेक्षाणि इमानि'-इति लिखितम् । ४. खोमाग (ख)। तत्त्वार्थ राजवातिके इमानि लभ्यन्ते । दिग- ५. अहागपसिणाई कोमलपसिणाई (क)। म्बरपरंपरैव वाचनान्तरमत्र विवक्षितम् ? ६. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र-प्रश्नव्याकरणदशा १. संठाण (क, ग)। इहोक्तरूपा न दृश्यन्ते दृश्यमानस्तु पञ्चाश्रव२. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र-इह च त्रयो वर्गा पञ्चसंवरात्मिका इति इहोक्तानां तूपमादी• स्तत्र तृतीयवर्ग दृश्यमानाध्ययनैः कैश्चित नामध्ययनानामक्षरार्थः प्रतीयमान एवेति सह साम्यमस्ति न सर्वः, यत इहोक्तम्--- (वृत्ति पत्र ४८५)। Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ११७. बंधदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा बंधे य मोक्खे य देवडि, दसारमंडलेवि' य । आयरियविप्पडिवत्ती, उवज्झायविप्पडिवत्ती, भावणा, विमुत्ती, सातो', कम्मे ।। ११८. दोगेद्धिदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा--वाए, विवाए, उववाते, सुखेत्ते, कसिणे, बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा, बावत्तरि सव्वसुमिणा, हारे रामगुत्ते य, एमेते दस आहिता ॥ ११६. दीहदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - चंदे सूरे य सुक्के य, सिरिदेवी पभावती। दीवसमुद्दोववत्ती, बहूपुत्ती मंदरेति य ।। थेरे संभूतिविजए य, थेरे पम्ह ऊसासणीसासे ॥१॥ १२०. संखेवियदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-खुड्डिया विमाणपविभत्ती, महल्लिया विमाणपविभत्ती, अंगचूलिया, वग्गचूलिया', विवाहचूलिया, अरुणो ववाते, 'वरुणोववाते, गरुलोववाते'', वेलधरोववाते, वेसमणोववाते ।। कालचक्क-पदं १२१. दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणीए । १२२. दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणोए । अणंतर-परंपर-उववण्णादि-पदं १२३. दसविधा रइया पण्णत्ता, तं जहा- अणंतरोववण्णा, परंपरोववण्णा, अणंतरा वगाढा, परंपरावगाढा, अणंत राहारगा, परंपराहारगा, अणंतरपज्जत्ता, परंपरपज्जत्ता, चरिमा, अचरिमा । एवं-णिरंतरं जाव वेमाणिया ।। १. मंडलेति (ग)। रकावलिकाश्रुतस्कन्धे उपलभ्यन्ते (वृत्ति पत्र २. सासते (ख)। ४८५)। ३. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र-बन्धदशानामपि ६. आयारचूलिता (क); अंगारचूलिया (ग)। बन्धाद्यध्ययनानि श्रौतेनार्थेन व्याख्यातव्यानि ७. वंग (क, ग)। (वृत्ति पत्र ४८५) ८. गरुलोववाते वरुणोववाए (क, ख, ग)। ४. वृत्तिकारेण संसूचिमत्र-द्विगृद्धिदशाश्च स्व- ६. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र--संक्षेपिकदशा रूपतोप्यनवसिताः (वृत्ति पत्र ४८५)। अप्यनवगतस्वरूपा एव (वृत्ति पत्र ४८६) । ५. वत्तिकारेण संसूचितमत्र-दीर्घदशाः स्वरूप- १०. ठा० १३१४२-१६३ । तोऽनवगता एव, तदध्ययनानि तु कानिचिन्न Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं गरय-पदं १२४. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए दस णिरयावाससतसहस्सा पण्णत्ता ।। ठिति-पदं १२५. रयणप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं गेरइयाणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता ।। १२६. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णता॥ १२७. पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। १२८. असुरकुमाराणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिती पणत्ता। एवं जाव' थणिय कुमाराणं ।। १२६. बायरवणस्सतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णता ।। १३०. वाणमंतराणं देवाणं जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता ।। १३१. बंभलोगे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं दस सागरोवमाइंठिती पण्णता॥ १३२. तए कप्पे देवाणं जहण्णेणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।। भाविभद्दत्त-पदं १३३. दसहि ठाणेहि जीवा आगमेसिभद्दत्ताए' कम्म पगरेंति, तं जहा-अणिदाणताए, दिट्रिसंपण्णताए, जोगवाहिताए', खंतिखमणताए, जितिदियताए, अमाइल्ल ताए, अपासत्थताए, सुसामण्णताए, पवयणवच्छल्लताए, पवयणउब्भावणताए ।। आसंसप्पओग-पदं १३४. दसविहे आसंसप्पओगे पण्णत्ते, तं जहा-इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, दुहओलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामासंसप्पओगे, भोगासंसप्पओगे, लाभासंसप्पओगे, पूयासंसप्पओगे, सक्कारासंसप्पओमे ॥ धम्म-पदं १३५. दसविधे धम्मे पण्णत्ते, तं जहागामधम्मे, णगरधम्मे, रटुधम्मे, पासंडधम्मे, कुलधम्मे, गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे ।। थेर-पदं १३६. दस थेरा पण्णता, तं जहा-गामथेरा, णगरथेरा, रट्टथेरा, पसत्थथेरा, कुलथेरा, गणथेरा, संघथेरा, जातिथेरा, सुअथेरा, परियायथेरा' । १. ठा० १६१४३-१५० । २. भद्दगताए (क, ग)। ३. जोगवाहियत्ताते (क, ग); जोगवाहित्ताते ४. अत्थिगातधम्मे (क, ख, ग)। ५. पत्थारथेरा (क); पासत्रा पसत्थारथैरा (क्व) । ६. परिताग° (क, ख, ग)। थेरथेरा (ग); Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ८१७ पुत्त-पदं १३७. दस पुत्ता पण्णता, तं जहा–अत्तए, खेत्तए, दिण्णए, विष्णए, उरसे, मोहरे, सोंडोरे, संवुड्ढे, उवयाइते, धम्मतेवासी । अणुत्तर-पदं १३८. केवलिस्स णं दस अणुत्तरा पण्णत्ता, तं जहा--अणुत्तरे गाणे, अणुत्तरे दसणे, अणुत्तरे चरित्ते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए, अणुत्तरा खंती, अमुत्तरा मुत्ती, अणुत्तरे अज्जवे, अणुत्तरे मद्दवे, अणुत्तरे लाघवे ।। कुरा-पदं १३६. समयखेत्ते णं दस कुराओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंच देवकुराओ पंच उत्तरकुराओ। तत्थ णं दस महतिमहालया महादुमा पण्णता, तं जहा-जम्बू सुदंसणा, धायइरुक्खे, महाधायइरुक्खे, पउमरुकवे, महाप उमरुक्षे, पंच कडसामलोओ। तत्थ णं दस देवा महिड्डिया जाव' परिवसंति, तं जहा-अणाढिते जंबुद्दीवा धिपती, सुदंसणे, पियदंसणे, पोंडरीए, महापोंडरीए, पंच गरुला वेणुदेवा ।। दुस्समा-लक्खण-पदं १४०. दसहि ठाणेहि ओगाढं दुस्समं जाणेज्जा, तं जहा-अकाले वरिसइ, काले ण वरिसइ, असाहू पूइज्जति, साहू ण पूइज्जति, गुरुसु जणो मिच्छं पडिवण्णो, अमणुण्णा सद्दा', 'अमणुण्णा रूवा, अमणुण्णा गंधा, अमणुण्णा रसा, अमणुण्णा ° फासा ।। सुसमा-लक्खण-पदं १४१. दसहि ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा-अकाले ण वरिसति, "काले वरिसति, असाहू ण पूइज्जति, साहू पूइज्जति, गुरुसु जणो सम्म पडिवण्णो, मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा, मणुण्णा गंधा, मणुण्णा रसा,° मणुण्णा फासा ।। रुक्ख-पदं १४२. सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, तं जहा-- १. सोडीरे (क, ख, ग)। २. उववातिते (ग)। ३. ठा० २।२७१। ४, साहु (ग)। ५. सं० पा०-अमणुण्णा सहा जाव कासा । ६. सं० पा०–त चेव 'विवरीत जाव मणुष्णा फासा। Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ संगहणी-गाहा मतंगया' य भिंगा, तुडितंगा दीव जोति चित्तंगा' | चित्तरसा मणिगंगा, गेहागारा अणियणा य ॥ १॥ कुलगर-पदं १४३. जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा हुत्था, तं जहा- संगही गाहा सयंजले सयाऊ य, अगंतसेणे य अजितसेणें य । कक्कसेणे' भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ॥१॥ दढ रहे दस रहे, सय रहे ॥ १४४. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमीसाए' उस्सप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति, तं जहा - सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, संमुती, पडिसुते, दढघणू, दसघणू, सतधणू' ॥ १. मत्तंगता ( क ग ) ; द्रष्टव्यम् - ७१६५ पादटिप्पणम् ! २. सिंगा ( क ) । ३. चितंगा ( ख ) । ४. सयज्जले ( क ग ) | ५. अतितसेणे (क, ग ); स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रती ( आगमोदयसमिति पत्र ५१८ सूत्रांक ७३७) चतुर्थकुलकरस्य नाम 'अमित सेणे' विद्यते । किन्तु पाठशोधनप्रयुक्तयोः 'क' 'ग' प्रत्योः 'ख' प्रतौ च क्रमश; 'अतितसेणे' 'अजितसेणे' पाठो विद्यते । समवायाङ्ग (श्रेष्ठि माणेकलाल चुन्नीलाल श्रेष्ठि कान्तिलाल चुन्नीलाल द्वारा प्रकाशित पत्र १३ सूत्रांक १५७ ) तृतीयकुलकरस्य नाम 'अजितसेणे' विद्यते । पाठशोधनप्रयुक्तयोः 'क' 'ख' प्रत्योरपि एष एव पाठोस्ति । स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ पञ्चमकुलकरस्य नाम 'तक्कसेणे' विद्यते । 'क' 'ग' प्रत्योरपि एष एव पाठो लभ्यते । समवायाङ्गस्य मुद्रितप्रती 'कज्जसेणे' तथा हस्तलिखिता दर्शेषु 'कक्कसेणे' पाठोस्ति । प्रतीयते स्थानाङ्ग समवायाङ्ग' 'च' 'अजियसेणे' 'कक्कसेणे' पाठ आसीत् किन्तु लिपिदोषेण पाठविपर्ययो जातः । ६. तक्कसेणे (क, ग) 1 ७. समवायाङ्ग (पइण्णगसमवाय सू० २१७ ) नाम्नां क्रमो भिन्नोस्ति सजले सयाऊ य, अजियसेणे अनंतसेणे य । aaraणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे । दढरहे दस रहे सतरहे । ८. अगामी ० ( ग ) । ९. समवायाङ्ग (पइष्णगसमवाय सू० २५० ) नाम्नां क्रमो भिन्नोस्तिविमलवाहणे सीमंकरे, सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे ! दढधण ठाणं 2 दसधणू, सण पडिसूई संमुइति ॥ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम ठाणं ८१६ वक्खारपब्वय-पदं १४५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सोताए महाणईए उभओकूले दस वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-मालवंते, चित्तकूडे, पम्हकूडे', 'लिणकूडे, एगसेले, तिकडे, वेसमणकुडे, अंजणे, मायंजणे, ° सोमणसे ।। १४६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणईए उभओकूले दस वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-विज्जुप्पो', 'अंकावतो, पम्हावतो, आसीविसे, सुहावहे, चंदपव्वते, सूरपव्यते, णागपव्वते, देवपव्वते °, गंधमायणे ।। १४७. एवं धायइसंडपुरस्थि मद्धेवि' वक्खारा भाणियवा जाव' पुक्ख रवर दीवड्डपच्चत्थिमद्धे ।। कप्प-पदं १४८. दस कप्पा इंदाहिटिया पण ता, तं जहा --मोहम्मे', ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभलोए, लंतए, महासुक्के,° सहस्सारे, पाणते, अच्चुते ।। १४६. एतेसु णं दससु कप्पेसु दस इंदा पणत्ता, तं जहा-सक्के, ईसाणे', 'सणकुमारे, माहिद,बभ, लतए, महासूक्के, सहस्सारे, पाणते, अच्चुते।। १५०, एतेसि णं दसण्हं इंदाणं दस परिजाणिया विमाणा" पण्णत्ता, तं जहा—पालए, पूप्फए', 'सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे ° विमलवरे, सव्वतोभद्दे ॥ पडिमा-पदं १५१. दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेण रातिदियसतेणं अद्धछट्टेहि य भिक्खासतेहि अहासुत्तं 'अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया यावि भवति ।। जीव-पदं १५२. दसविधा संसारसमवण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमसमयएगिदिया, अपढमसमयएगिदिया, "पढमसमयदे इंदिया. अपढमसमयबेइंदिया, पढमसमयतेइंदिया, अपढमसमयतेइंदिया, पढमसमय चारिदिया, अपढमसमयचरिदिया, पढमसमयपंचिदिया, अपढमसमयपंचिदिया ।। १. बंभकूडे (क, ख, ग); सं० पा०---पम्हकूडे ६. सं० पा०-ईसाणे जाव अच्चुते । जाव सोमणसे । ७. जाणविमाणा (व); विमाणा (वृपा)। २. सं. पा.--विज्जुप्पभे जाव गंधमातणे। सं० पा०--पूप्फए जाव विमलवरे। ३. ठा० १०११४५,१४६ । 8. भिक्खायतेहिं (ख)। ४. ठा० ३ १०८। १०. स० पा०-अहासुत्तं जाव आराहिया । ५. सं. पा.--मोहम्मे जाव सहस्सारे। ११. सं० पा.-- एवं जाव अपढ़मसमयपंचिंदिता। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० ठाणं दसविधा सव्वजीवा पग्णत्ता,तं जहा-पूढविकाइया', 'आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया,° वणस्सइकाइया, बेदिया', 'तेइंदिया, चउरिदिया, पंचेंदिया, अणिदिया। अहवा--दसविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया', 'पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा , अप ढमसमयदेवा, पढमसमय सिद्धा, अपढमसमयसिद्धा ।। सताउय-दसा-पदं १५४. वाससताउयस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहासंगह-सिलोगो बाला किड्डा मंदा, बला पण्णा हायणी । पवंचा पब्भारा, मुम्मुही सायणी तधा ॥१॥ तणवणस्सइ-पदं १५५. दसविधा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा-मूले, कंदे', 'खंधे, तया, साले, पवाले, पत्ते , पुप्फे, फले, बोये ॥ सेढि-पदं १५६. सव्वाओवि णं विज्जाहरसेढीओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ १५७. सव्वाओवि णं आभिओमसेढीओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ! गेविज्जग-पदं १५८. गेविज्जगविमाणा णं दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ तेयसा भासकरण-पदं १५६. दसहिं ठाणेहिं सह तेयसा भास कुज्जा, तं जहा १. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते १. सं० पा०-पूढविकाइया जाव वणस्स इका इया। २. सं० पा० - बेंदिता जाव पंचेंदिता । ३, सं० पा०-अपढमसमयणेरतिता जाव अपढ़मसमयदेवा । ४. बंभारा (ग)। ५. द्रष्टव्यम् – दशवकालिकनियुक्ति १० : बाला किड्डा मंदा बला य पन्ना य हायणि पवंचा पब्भार मम्मुही सायणी। य दसमा उ कालदसा ॥१०॥ ६. सं० पा०-कदे जाव पुप्फे। ७. तेतसा (क, ख, ग)। ८. कति (म)! Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाण १२१ समाणे परिकुविते तस्स तेयं णिमिरेज्जा । से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। २. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे देवे परिकुविए' तस्स तेयं णिसिरेज्जा । से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा । ३. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे परिकुविते देवेवि य परिकुविते ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं णिसिरेज्जा । ते तं परितावेंति, ते तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ४. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा', से य अञ्चासातिते [समाणे?] परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जति, ते फोडा भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ५. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ? ] देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जंति, ते फोडा भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ६. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे? ] परिकुविए देवेवि य परिकुविए ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं णिसिरेज्जा। तत्थ फोडा संमुच्छंति, “ते फोडा भिज्जति, ते फोडा भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कज्जा। ७. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ?] परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा। तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुला भिज्जति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ८. “केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे?] देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुला भिज्जंति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ६. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ?] परिकुविए देवेवि य परिकुविए ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं १. तेतं (क, ख, ग)। २. 'तामेव त्ति तमेव ..."दीर्घत्वं प्राकृतत्वात ५. अच्चासाएज्जा (क, ख, ग)। ६. समुप्पज्जति (वृ)। ७. सं० पा० - सेसं तहेव जाव भासं । ८. सं.पा०—एते तिणि आलावगा भाणि तव्या । ३. परिकुन्विते (क, ग)1 Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२२ ठाण णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुला भिज्जति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा । १०. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेमाणे तेयं णिसिरेज्जा, से य तत्थ णो कम्मति, णो पकम्मति, अंचिअंचियं करेति, करेत्ता आयाहिणपयाहिणं करेति, करेत्ता उड्ढं वेहासं उप्पतति, उप्पतेत्ता से णं ततो पडिहते पडिणियत्तति, पडिणियत्तित्ता तमेव सरीरगं अणुदहमाणे-अणुदहमाणे सह तेयसा भासं कुज्जा-जहा वा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेतेए। अच्छेरग-पदं १६०. दस अच्छेरगा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा उवसग्ग गब्भहरणं, इत्थोतित्थं अभाविया परिसा। कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चंदसूराणं ।।१।। हरिवंसकुलुप्पत्ती, चमरुप्पातो य अट्ठसयसिद्धा। अस्संजतेसु पूआ, दसवि अणतेण कालेण ।।२।। कंड-पदं १६१. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणे कंडे दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णते॥ १६२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरे कंडे दस जोयणसताई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १६३. एवं वेरुलिए, लोहितक्खे, मसारंगल्ले, हंसगब्भे, पुलए, सोधिए, जोतिरसे, ___ अंजणे, अंजणपुलए, रतयं, जातरूवे, अंके, फलिहे, रिटे। जहा रयणे तहा सोलसविधा भाणितव्वा ।। उव्वेह-पदं १६४. सव्वेवि णं दीव-समुद्दा दस जोयणसताई उब्वेहेणं पण्णता ॥ १६५. सव्वेवि णं महादहा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता ।। १६६. सम्वेवि णं सलिलकुंडा दस जोयणाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता॥ १६७. सीता-सीतोया णं महाणईओ मुहमूले दस-दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ताओ।। णखत्त-पदं १६८. कत्तियाणक्खत्ते सव्वबाहिराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरति ।। १६६. अणुराधाणक्खत्ते सव्वभंतराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरति ।। णाणविद्धिकर-पदं १७०. दस णक्खत्ता णाणस्स विद्धिकरा पण्णत्ता, तं जहा-- १. अच्चि अच्चि (क); अचि अचि (ग)। ३. वतिरे (क, ख, ग) । २. कंदे (क, ग)। ४. कंदे (क, ग)। Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं ठाणं ८२३ संगहणी-गाहा मिगसि रमद्दा पुस्सो, तिण्णि य पुवाई मूलमस्सेसा । हत्थो चित्ता य तहा, दस विद्धिकराई णाणस्स ॥१॥ कुलकोडि-पदं १७१. चउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह सतसहस्सा पण्णत्ता। १७२. उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह सतसहस्सा पण्णत्ता ।। पावकम्म-पदं १७३. जीवा णं दसठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा--पढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए', 'अपढमसमयएगिदियणिवत्तिए, पढमसमयबेइंदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयबेइंदियणिव्वत्तिए, पढ़मसमयतेइंदिर्याणव्वत्तिए, अपढमसमयतेइंदियणिव्वत्तिए, पढमसमयचरिदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयचरिदियणिव्वत्तिए, पढमसमयपंचिदियणि व्वत्तिए, अपढमसमय पचिदियणिव्वत्तिए। एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १७४. दसपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। १७५. दसपएसोगाढा पोरगला अणंता पण्णत्ता ॥ १७६. दससमयठितीया पोग्गला अणंता पण्णता ।। १७७. दसगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। १७८. एवं वण्णेहिं गंधेहिं रसेहिं फासेहिं दसगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर १६५४४८ अनुष्टुप् श्लोक ५१७०, अक्षर १. वुद्धिकराई (क, ग); विड्डिकराई (ख)। नास्यार्थोप्यत्र घटते । तेन प्रतीयते लिपि२. सं० पा०-पढमसमयएगिदिर्याणवत्तिए जाव प्रमादोसो जातः । अस्य स्थाने 'जाव पचिं. पंचिदिणिव्वत्तिए; पाठसंशोधनप्रयुक्तादर्शषु । दिय णिव्वत्तिए'। 'जाव फासिदित निव्वत्तिते' इति पाठो ३. समतठितीता (क, ख, ग)। लभ्यते, किन्तु वृत्तौ नेष व्याख्यातोस्ति, Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टः Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट- १ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार स्थल आयारो संक्षिप्त-पाठ, अहमसी जाव अण्णयरीओ आगममाणे जाव समत्तमेव एवं जं परिघेतव्वं ति, मन्नसि जं एवं हिययाए पित्ताए बसाए पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दंताए बाढाए नहाए हारुणीए अट्टीए अट्ठमिजाए अट्ठाए अट्ठाए गामं वा जाव रायहाणि जाएजा जाव एवं धारेज्जा जाव गिम्हे परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था समारम्भ जाव चेएइ अंतक्खिजाए जाव णो अरियं जाव अभूतोवघाइयं अक्कोति वा जाव उवंति अक्कोति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि itsarfarara णिगिणाइ य जहा सिज्जाए आलावगा णवरं ओग्गहवत्तव्वया अक्को सेज्ज वा जाव उवेज्ज अणुवयंति तं चैव जाव णो सातिज्जति बहुवणेणं भाणियव्व पूर्त-स्थल १३ ८६५,१६,१२३,१२४ ५/१०१ १।१४० ८।१२६ ८६४-६७ ८-१२ पा२३ ८२४ आयारचूला ५३३७, ३८ ४।११ ३।६१ ७११६-२० शह ५।४७ पूर्ति प्राधार स्थल ११ ८७८८० ५।१०१ १।१४० ८१०६ ८।४४-४८ ८।४६-५० ८२१ ८२३ ५/३६ ४/१० २२२ २५१-५५ २२ ५।४६ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११२ १:४ १४ ११४ ११४ २।२२ १११५५ ७२७,२८ १६१७ १।१७:११४ श१७ १।१७ २८ १।१२ २२ अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए ३.१३ अणेसणिज्ज जाव णो १।१७,६३,१०६,१३६ असणिज्जं जाव लाभे १।१०८,१२१ अणेसणिज्ज.."णो श२१ अणेसणिज्ज"लाभे ११८५,९७,८।१६।१ अणेसणिज्ज"लाभे संते जाव' णो १४१३५ अण्णमण्णमक्कोसंति वा जाव उद्दवेंति २०५१ अण्णयरं जहा पिंडेसणाए ७१५६ अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव ७४३४,३५ अपरिसंतरकडं जाव अणासेवितं ११२१,११२ अपुरिसंतरकडं जाव णो १।२४ अपरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं वा... अन्नयरंसि १०६ अपूरिसंतरकडे जाव अणासेविए (ते) २।१०,१२ अपुरिसंतरकडे जाव णो २११४,१६ अपूरिसंतरकडे वा जाव अणासे विते २१३ अप्पंडए जाव संताणए १।१३५ अप्पंडं जाव पडिगाहेज्जा अतिरिच्छच्छिन्नं तिरिच्छच्छिन्न नहेव ७१३७,३८ अप्पडं जाव मक्कडा ६२ अप्पंडं जाव संताणगं (य) रा५८-६१,६६,५।२६,३०,७४२७,२८,३०,३१,३४ अप्पंडा जाव संताणगा ११४३,३१५ अप्पडे जाव चेतेज्जा २१३२ अप्पापाणं जाव संताणगं २०२ अप्पपाणंसि जाव मक्कडा १०।२८ अप्पवीयं जाव मक्कडा १०१३ अप्पुस्सुए जाव सयाहीए ३1२६,५९,६१ अफासुयं जाव णो १११२,६४,८२,८३,८७,६२,६६, १०७,११०,१११,१२८,१३३; २१४८,५।२२,२३,२५,२८,२६; ६।२६,४६,७।२६,२७,२६,३० अफासुय जाव लाभे १११०६ अफासुयं 'लाभे ११८४,१०२,१०४,१२३ अफासुयाई जायणो ६।१३,१४ १. अत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते। ७।३०,३१ १२ श२ १२ १२२ ३१२२ १४४ ११४ ११४ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ ५।२३-२५ १२३ १५६४४ ६१२२-२५ ५।२४ १५१४७,४८ २११६,४६ ३३११ ६।१४ ११६२ ११९० ११३६,४१,८८,६१ १।११३,११५-११६ ४/२२ श५८ ३९,१० ६४१३ १२९७ ११४ १४ १९२११४ ४।११ अब्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणाइ सहेव सीओदगादि कंदादि तहेब अभिकख सि सेसं तहेव जाव गो अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज अयं तेण तं चेव जाव गमणाए अयवंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि असणं वा ४ अफासुयं असणं वा ४ जाव लाभे असणं वा ४ लाभे असत्थपरिणयंजाव णो असावज्जं जाव भासेज्जा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियसमुहिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समूहिस्स अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणोओ समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे समणमाहण पगणियपगणिय समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव उद्देसिय चेतेति, तहप्पगार थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अयुरिसंतरकडं वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा आश्मणाणि वा जाव भवणगिहाणि आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु आगंतारेसु वा जावोग्गहियंसि आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज आयरिए वा जाय गणावच्छेइए इक्कडे वा जाव पलाले ईसरे जाव एवोग्गहियसि उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेइएण एवं अतिरिच्छच्छिन्ने वि तिरिच्छच्छिन्ने जाव पडिगाहेज्जा एवं आउतेउवाउवणस्सइ १०१४-८ ३.४७ २॥३४,३५ ७:४६,४७ ३१३६६।४८ १११३१ २१६५,७१५४ ७३२,३३ २१७२ १।१२-१६ ३३५४ २०३६ रा३३ ७।२३,२४ ११५१ १११३० २०६३ ७।२५,२६ १११३० ७.४४,४५ २१४१ ७१३०,३१ २।४१ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।२-१७ १६८ ४।१६ ११॥५-२० १६२ ४११६ २१४,५,६ २३ २०१३-१८ एवं णायव्वं जहा सद्द-पडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रूव-पडियाए वि एवं तसकाए वि एवं पादणक्ककण्णउच्छिन्नेति वा एवं बहवे साहम्मियया एग साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ बहवे समणमाहणस्स तहेव, पुरिसंतरं जहा पिंडेसणाए एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावगा भाणियव्या एवं बहिया विचारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम दूइज्जेज्जा अहपुणेवं जाणेज्जा तिबदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सब्वं चीवरमायाए एवं वहिया बियारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणगाम दूइज्जेज्जा । तिव्वदेसियादि जहा बिइयाए वत्थेसणाए णवरं एत्थ पडिग्गहे एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगपर १२१२ ५१४३-४५ १३८-४० ६१५१-५८ ५२४३-५० याई ति ८१२-१५ २१२-१५ २।३-१५ १३.३-३८ ११५ .... एवं सेज्जागमेणं गेयव्वं जाव उदगप्पसूयाइंति एवं हिट्रिमो गमो पायादि भाणियब्वो एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा एसणिज्जं जाव लाभे एसणिज्ज"लाभे एस पइन्ना "जं ओवयंतेहि य जाव उप्पिजलगभूए कंदाणि वा जाव बीयाणि कंदांणि वा जाव हरियाणि कसिणे जाव समुप्पणे १३१४०-७५ १।१८,२३,२०६४ १७,१४३ २।६३६२ ६।२८,४५ १५४० .१०।१५ ५।२५ १५४० १९५६ १५ २१४ २०१४ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।१६ ७.१२ आयारो ६८ ५।३७ ७.१३ ७२५ १३१३०-३३ ५१४८ ५.४६ २३८ ७।२३ १३१२८ ३३५६ ३१५६ कुट्ठीति वा जाव महुमेहणी कुलियसि वा जाव णो खंधसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे जाव णो खलु जाब विहरिस्सामो गंडं वा जाव भगंदलं गच्छेज्जा जाव अप्पुस्सुए"तओ गच्छेज्जा जाव गामाणुगाम गच्छेज्जा तं चेव अदिण्णादाणवत्तव्चया भाणियन्दा जाव वोसिरामि गाम वा जाव गाम वा जाव रायहाणि गामंसि वा जाव रायहाणिसि गामे वा जाव रायहाणी गाहावई वा जाव कम्मकार गाहावइ-कुलं जाव पविढे गाहावइ-कुलं जाव पविसितुकामे गाहावइ-कुलं'पविसितुकामे गाहावई वा जाव कम्मकरीओ १५१५७ १५॥६४ ७२ ११३४,१२२,२११,३१२८।१ ११३४,१२२:३१२ श२८ श२८ श२८ श२५ ११ १३१६ १११६ १५६३,५।१८,६१७ १।१६,१७ ११८,४४ ११३७ १११२१, १२२, १४३; २१२२,३६,५१,७।१६ ४।१४ ७.२४ ३।२४ गोलेति वा इत्थी गमेणं तव्वं छत्तए वा जाव चम्मछेदणए छत्तगं बा जाव चम्मछेयणग जवसाणि वा जाव सेणं जहा पिंडेसणाए जाव संथारग जाएजा जाव पडिगाहेज्जा जाएज्जा जाव विहरिस्सामो जावज्जीवाए जाव वोसिरामि जीवपइट्टि यंसि जाव मक्कडा झामथंडिलंसि वा जाव अण्णय रंसि झामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय ठाणं'चेतेज्जा ठाणं वा जाव चेतेज्जा गरं वा जाव रायहाणि ११४६ ४।१२ २०४६ २०४६ ३१४३ श२६ १२१४१ ७१२३ १५॥४३ ११५१ २।१२ १:१४५,५।१६६।१६,१७ ७१४६ १५५७ १०।१४ १५१:३६ १।१३५ २।२८,२६ २।२७,५१-५५ ८१ ११३ २१ २११ १०२८ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५८ ७११४ १३२८ १६४२ १३१४८-१५४ ११११४ ११३१२-१४,१६ १११७-११,१५ ७।३६-४२ श१४१-१४७ ११४,९२ १११५ १०५ ७.२५-२८ ७।३ णगरस्स वा जाव रायहाणीए णिक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु ओग तं चेव भाणिय व्वं गवरं चउत्थाए णाणत से भिक्खू वा जाव समाणे सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा तंजहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदग वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियर्ड वा अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तहेव पडिगाहेज्जा तहप्पगार जाव को तहप्पगाराइं णो तहप्पगाराई."सहाई.''गो तहेव तिन्निवि आलाधगा वर ल्हसुण दंडगं वा जाव चम्मछेदणगं | दस्सुगायतणाणि जाव बिहारवत्तियाए दुब्बद्धे जाव णो देज्जा जाव पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासुयं 'पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासुयं"लाभे दोहिं जाव सण्णिहिसपिणचयाओ निक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु ० निक्खिवाहि जहा इरियाए णाणत्तं वत्थपडियाए पइण्णा जाब जं पगिझिय जाव णिज्झाएज्जा पडिक्कमामि जाव वोसिरामि पडिम जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जाव पगहियतरागं पडिवज्जमाणे तं चेव जाव अण्णोष्णसमाहीए ३९ ७११ १११४४ ११४७ ५१८ १६२४ ३१२ १११४१ १११४१ १३१४१ ११२१ १।४२ ५१५० २११६,२२,६।२८,४५ ३।४८,४६ १५२५० ६२२० ५२१ ८।२१-३० ३१६१ ११५६ ३४७ १५२४३ १११५५ १४१५५ २०६७-७६ २०६७ १११५५ - - १,२. अन्न 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते । Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णस्स जाव चिताए २१५०-५६,७।१५,२१ ११४२ पमज्जेता जाव एगं ३२३४ ३।१५ परक्कमे जाव णो ३७ पागाराणि वा जाव दरीओ ३१४७ ३१४१ पाडिपहिया जाव आउरांतो ३१५७ ३१५४ पाणाइं जहा पिंडेसणाए पाणाई जहा पिडेसणाए चत्तारि आलावगा 1 पंचमे बहवे समणमाहणा पगणिय-पगणिय तहेव से भिक्खू वा २ अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमहणा वत्थेसणालावओ ६॥४-१२ १।१२-१८:५१५-१३ पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज २१७१ ११८८ पायं वा जाव इंदिय २०४६ ११८८ पायं वा जाव लूसेज्ज २०७१ ११८८ पिहयं वा जाव चाउलपलबं १७.१४४ पुढविकाए जाव तसकाए १५॥४२ २१४१ पूढवीए जाव संताणए १।१०२,५१३५,७४१० ११५१ पूरिसंतरकड जाव आसे वियं १२२ १२१८ पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहेज्जा परिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं अण्णयरंसि १०।१० पुरिसंतरकड़े जाव आसे विए २।६,११,१३ १११८ परिसंतरकडे जाव चेतेज्जा २०१५,१७ राह पूवोवदिवा जाव चेतेज्जा २१३० २।२७ पुवोवदिट्ठा जाव ज १६१:२।२३,२४,२५,२७,२८,२६,३।६,१३,४६,५१२७ ११५६ पुवोवदिट्ठा जाव णो १९५ ११६१ पहाए जाव चिताचिल्लड ३१५६ फलिहाणि वा जाव सराणि १११५ नि० १७११४१ फासिए जाव आणाए १२४९ फासिए जाव आराहिए १०७० १५१४६ फासूयं जाव पडिगाहेज्जा १२२,२५,८१,१००,१४६,५२०,३०,७१२८,३१ ११५ फासुयं"पडिगाहेज्जा १११४१ ११५ फास्य "लाभे संते जाव' पडिगाहेज्जा १११०१,१२८,५११८ बहुकंटगं"लाभे संते जाव' णो १११३४ ११४ ५१११ १११८ १२५२ ११५ १.२. अन 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते। Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुपाणा जाव संताणगा बहुबीया जाव संताणगा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब भगवंतो जाव उवरया भिक्खुणी वा जाव पविट्ठे भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्ठियं तह चेव । एवं अगणिकायपइट्टियं लाभे भिक्खु वा जाव पग्गहिय भिक्खु वा जाव पविट्टे भिक्खु वा २ जाव सद्दाई भिक्खु वा जाव समाणे भिक्खु वा २ जाव सुणेति भिक्खू वा सेज्जं मणी वा जाव रयणावली मणुस्सं जाव जलयरं मत्ते तहेव दोच्चा पिंडेसणा महद्वणमोल्लाई "लाभे महब्वए" मासेण वा जहा वत्थेसणाए मूलाणि वा जाव हरियाणि रज्जमाणे जाव विणिग्धाय रज्जेज्जा जाव णो लाढे जाव णो वएज्जा जाव परोक्खवयणं वाणि लाभे वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि वाण जाव चिताए वित्ती जाव रायहाणि सअंडं जाव णो ご ३४ ३।१ १८२ २/२५ १५,६,७,११,१२,४२, ६२, ६२, ६६,६६, १०१, १०४, १०५, १०७ १०६,१११ १६३,६४ १११४६ १।२३,४६,५०,५२ ११।१६ ११५३, ५५,५८,६१,८३,८४,८७,८६, ६०,६७,१०२, १०६, ११०, ११२ ११६, १२४,१२५,१२६,१३५, १३६, १४५, १४७, १५१ ११:१४,१५ १८२,१२८,१३३,१३४, १४४ ५।२७ ४/२६ १/१४२ ५:१४ १५/५६,६३,८४,९१ ६।२१ १०/१२ १५१७३,७४ १५।७३,७४ ३।१२ ४|४ ५।१५ ४२१ २४६ ३।३ ७/३३ ११२ १२ १६ ११२१ ११ १६२ ११४५ ११ १११२ ११ ११।२ १११ २/२४ ४।२५ १११४१ १४ १५/४६ ५।२२ २१४ १५/७२ १५/७२ શ ४१३ १४ ३१४७ १४२ ११४३;३१२ ७/२६ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सअंडं जाव णो सअंडं जाव मक्कडा अंडं जाव संतान (गं) सादि सम्वे आलावगा जहा वत्येषणाए जाणतं तेस्लेण वा घरण वा णवणीएण वा बसाए वा सिणाणादि जाव अण्णयरंसि वा ६।२६-४२ २३१ अंडे जाव संताणए संतिभेया [दा] जाव भंसेज्जा संतिविभंगा जाव धम्माओ संतिविभंगा जाब मंसेज्जा संचारलाभे संधार जाव लाभे सकिरिया जब भूओवाइया सज्जमाणे जाव विणिग्वाय सज्जेज्जा जाव णो सत्ताई जाव चेएइ तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासे विए सपागं जाव मक्कडा सपाणे जाव संताणए समण जाव उवागया समणमा जान उद्यागमिस्संति सगणुजाणिजा जाय वोसिरामि समारंभेणं जाव अगणिकाए सम्म जाव आणाए सयं वा जान पडिगाहेज्जा ? सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा ससिणिद्वेण सेसं तं चैव एवं ससरक्खे मट्टिया को हरियाले हिगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे गेरुय वण्णिय सेडिय, पिट्ठ कुक्कस उक्कुट्ट संसद्वेण सामग्गिय सामग्गियं सामग्गियं जाव जएज्जासि है ७३६,४३ ८१६१ २।१,५७,६८,५२८, ७ २६, २६ १५६७,६८,६६,७५ १५/६६ १५०७३,७४ २५७,५८,५६,६० २६१ १५.४६ १५।७५, ७६ १५।७५ २१७.८ १०१२ १।५१ ૧૪ १।४३ १५।७१ २।४२ १५.६३ ६।१६ ६।१९ १२६५-८० ११४८,६०,८६,१०३, १२०, १२६, १३७ २२६,४३ ३:४६: ५१४०, ५१; ७/२२,५८ ८३१, १०१२१:११।२० ૨૨ १:२ १२ ५।२८-३६ १/२ १५।६५ १५।६५ १५।६५ ११४ १५. १५/४५ १५।७२ १५/७२ १०१६,१७ १२ ११२ ३२ ११४२ १५।४३ २४१ १५४६ १।१४१ १।१४१ ૬૪ ११२० २७७ २।७७ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साव जान पो सिणामेण वा जाव आपसित्ता सिणाणेण वा जाव पसेज्ज सिणाणेण वा तहेव सीओदगवियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा आलावओ सिया जाव समाहीए सिलाए जाव मक्कडासं ताणए सिलाए जाव संताणए सीओदन वियद्वेण वा जाव पधोएग्ज सीलमता जाव उबरया से आगतारेसु वा जाव सेसं तं चेत्र, एयं खलु० जइज्जासि हत्थं जाव अणासायमाणे हत्थं वा जाव सीसं हस्थिजुद्धाणि वा जाब कविजल हरियाणकरणाणि वा जाव कविजल अकेवले जाव असवदुक्स ० अकोहे जाव अलोभे अण्णा जाव परक्कमण्णू अगाराज जाव पव्वइत्तए अन्भारोहसंभवा जाव कम्माणियाण अणारिए जाव असय्यदुक्ख ० अणारिया वेगे जाव दुरुवा अणि जाव णो सुहं अणिट्टाओ जाव णो सुहाओ अमिट्टे जाव णो सुहे अणिट्टे जाव दुक्खे अणपुट्टिए जाब पि अपुट्टियं जाय पढिस्यं अणुपुब्वेणं जाव सुपण्णत्ते अगभवणसयस णिविद्रा जान पटिरुवा अपच्छिम जाव विहरितए १० ४२१ ५।२३ ५।३१ ५०३३,३४ ३।४४ ११८२ १८३ ५/३२ ३८ ७१६,८ १४/३-८० ३५०, ५२ २।१६ ११.१२ ११।११ सूयगडो २५७,६२ ४|२४ १२६,१० ७/२१ ३०७,८,१ २/७५ १४९ १।५१ ११५१ १५१ १।५१ १५ (10,5,2 १।२३-२५ ७२ ७२६ ४१० २।२० २।२१ ५३१,३२ ३।२६ १ ५१ ११५१ २१२१ १।१२१ ७४ १३।३-५० २७४ १८५ १०।१८ १०।१८ २३२ २/५८ १८ ७/२० ३।२ ३।३२ १।१३ १६५० 2120 ११५० ११५० १३ ११६ १।१३-१५ ७५ ७/२१ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ २०५८ २।७२ २।२४ २१५८ अपत्ते जाव अंतरा १११० अपत्ते जाव सेयंसि १६ अप्पडिविरया जाव जे यावण्णे २२७१ अभिगयजीवजीवे जाव विहरइ ७.४ अवहरइ जाव समणुजाणइ २।२५,२६,३० अहम्मिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वाओ परिगहाओ ७२२ अहावर पुरक्खायं इहेगइया सत्ता तेहिं चेव (१) पुढविजोणिएहिं रुक्खेहि (२) रुक्खजोणिएहि रुक्खेहि (३) रुक्खजोणिएहिं मूलेहि जाव बीएहि (४) रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहि (५) अज्झोरुहजोणिएहिं अज्झोरहेहि (६) अज्झोरुहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं (७) पुढविजोणिएहि तणेहिं (८) तण जोणिएहिं तणेहिं (६) तणजोणिएहि मूर्ताह जाव बीएहिं (१०-१२) एवं ओसहीहिं वि तिण्णि आलावगा' (१३-१५) एवं हरिएहि वि तिण्णि आलावगा (१६) पुढविजोणिएहि वि आएहिं जाव कूरेहिं । (१) उदगजोणिएहिं रुक्षेहि (२) रुक्खजोणिएहिं स्वखेहि (३) रुक्ख जोणिएहि मूलेहिं जाव बीएहि (४-६) एवं अज्झोरहेहिं वि तिणि (७-६) तणेहिं वि तिषिण आलावगा (१०-१२) ओसहीहि वि तिषिण (१३-१५) हरिएहि वि तिषिण (१६) उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहि तसपाणत्ताए बिउटति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं, उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं १. येषां चत्वार इचत्वार पालापकास्तेषां तुतीय पालापको न ग्राह्यः । Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२-४३ ११५६ हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झोरुहाणं तणाणं ओसहीण हरियाणं मूलाणं जाव बीयाण आयाणं कायाण जाव कूरवाणं उदगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेतिले जीवा आहारति पुढविसरीरं जाव संतं । अवरे वि यणं तेसि रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाण तणजोणियाण ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाण कायजोणियाण जाव बूरवजोणियाण उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खल च्छिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खाय । ३।४४-७ अहीणं जाव मोहरगाणं ३७६ आतोडिज्जमाणस्स वा जाव उबद्दविज्ज. ४।२१ आयहेङ वा जाव परिवारहे २६ आयाण जाव कूराणं ३१२२ आयारो जाव दिदिवाओ आरिए जाव सव्वदुक्ख २०७०,७५ अट्टसालाओ वा जाव गद्दभ. २०२८ उदगजोणिया जाव कम्म० ३२८७,८८ उदगसंभवा जाव कम्म० ३१२३,४३,८६ उदाहु..."संतेगइया ७२० उस्साणं जाव सुद्धोदगाणं ३१८५ ऊसियं जाव पडिरूवं एगखुराणं जाव सणप्फयाणं ३१७८ एवं उदगबुब्बुए भणियब्वे २३४ एवं ओसहीण वि चत्तारि आलावगा ३.१४-१७ एवं जहा मणुस्साणं जाव इत्थि ३१७८ एवं जाव तसकाए ति भाणियन्व ४।११-१५ एवं तणजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउटैति तणजोणियंतप्पसरीरं च आहारति जाव मक्खाय ३३१२ नंदी सू०८० २१३२ रा२३ ३८६ ३२२ ७।१७ ३८५ ३१७८ ११३४ ३३२-५ ३७६ ४.१०,३ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ ३१८२, चूणि, वृत्ति ११५१ ११२१,२२ ३।२-५ २१४१ १२१७ ११४६-७० २१४ २०१४ एवं तणजोणिएसु तणेसु मूलत्ताए जाव बीयत्ताए विउति ते जीवा जाव मक्खायं ३१३ एवं दुरूव संभवत्ताए एवं खुरदगताए ३२८३,८४ एवं पुढविजोगिएसु तणेसु तणत्ताए विउट्ट ति जाव मक्खायं ३३११ एवं विष्णू वेदणा ११५१ एवं सद्दहमाणा जाद इति ११३७,३८ एवं हरियाण वि चत्तारि आलावगा ३११८-२१ एवमाइक्खंति जाव परूवेति २२७८,७६;७१११ एवमेव जाव सरीरे १११७ एसो आलोगो तहा यवो जहा पोंडरीए जाव सब्दोवसंता सब्दत्ताए परिणिबुड त्तिबेमि २।३३-५४ कच्छसि वा जाव प०वयविदुग्गंसि २०६ कण्हुईरहस्सिया जाव तओ २०५६ कम्म जाव मेहुणवत्तिए ३१७८ कम्म तहेव जाव तओ ३१७७ किंचिदि जाव आसंदीपेढियाओ १२१ किब्बिसियाई जाव उववत्तारो ७२५ किरिया इ वा जाव अणिरऐ श२६,३६ किरिया इ वा जाव णिरए इवा जाव चउत्थे ११४५-४७ कुसले जाव पउमवरपोंडरीयं १७ केइ जाव सरीरे १।१७ केवले जाव सव्वदुक्ख० २१५५ कोहाओ जाव मिच्छा० २।५८ कोहे जाव मिच्छा. ४१३ खेत्तण्णे जाव परक्कमण्णू १।६,१० गाहावइपुत्ताण वा जाव मोतियं ।२६ गाहावइस्स जाव तस्स ४६ गोहाण जाव मक्खायं ३८० चम्मपक्खीणं जाव मक्खायं ३१८१ चाउद्दसट्ठमुद्दिट्टपुण्णमासिणीसु जाव अणुपालेमाणा ७२१ ३१७६ ७.२० २।१४ १।२० १०२६-३१ १२६ १७ २१३२ वृत्ति २१५८ २६ २।२४ ४।५ ३१८०,२ ३८१,२ ७१२० Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ३१८६-६२ ३२७६ ३३७६ ३१३-२१ २११२ २१५५ ओ० सू० १६३ ४।१६ २१२१ २।२३ રૂર २७७ २१७७ जहा अगणीणं तहा भाणियव्वा चत्तारिगमा ३६३-६६ जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियव्वं जाव सारूविकडं ३१८० जहा उरपरिसप्पाणं नाणतं ३१८१ जहा पुढविजोणियाणं रुक्खाणं चत्तारिगमा अज्झारोहणवि तहेव, तणाणं ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियब्वा एक्केक्के ३१२४-४२ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिते २।५८ जावज्जीवाए जाव जे यावण्णे २०६३ जावज्जीवाए जाव सव्वाओ २१५८ जीवणिकाहि जाव कारवेइ ४।१६ झामेइ जाव झामतं २।२६ झामेइ जाव समणुजाभइ २०२८ जाणागंधा जाब णाणाविह. ३५ जाणापण्णा जाव गाणाझवसाण० रा७७ जाणापण्णे जाव णाणाझवसाण. २।७७ जाणावण्णा जात ते जीवा ३४ णाणावण्णा णाव भवंति ३७६ णाणादण्णा जाव मक्खायं ३॥६-६,२२,२३,४३,७७-७६, ८२,८५-८६,६७ णाणाविहजोणिया जाव कम्म० ३.८५,८६,९३,९७ जो पाराए जाव सेयंसि ११८ तं चेव जाव अगारं वएज्जा ७.१६ तं चेव जाव उवट्ठावेत्तए ७१६ तालिजमाणा वा जाव उद्दविज्जमाणा ४.२१ ते तसा'ने चिर जाव अपि भेदे से... ७.२६ दंडगं वा जाव चम्मछेयणगं २०३० दंडणाणं जाव नो बहूर्ण રાહ दंडेण वा जाव कवालेण ११५६;४।२१ दुक्खइ वा जाव परितत्पइ दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु दुक्खामि वा जाव परितप्पामि १२४३ धम्माणं जाव णाणाझवसाण. ર૭૭ ३.२ श२ ३८२ ७१८ ७.१८ १९५६ ७२० રા २१७८ ११४२ ११४२ १४२ २७७ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७१ ओ० सू० १६१ २०६३ ओ० सू० १६१ ७.२० श२१,२२ ७.१६ ११२३-२५ ११५६ ओ० सू० १७१ ११४७ ११४७ धम्माणुया जाव एग्गच्चाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया २४ धम्माणुया जाव धम्मेणं २०७१ धम्माणुया जाव सव्वाओ ७२३ धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं १६३ पउमवरपोंडरीयं जाव सव्वं परिग्गहं १११० पच्चक्खाइस्सामो जाव सव्वं परिग्गहं ७१२१ पत्तियमाणा जाव इति २३०,३१ परियाए जाव णो धोयाउए ७३० पवालाणं जाव बीयाण ३१५ पाईण वा जाव सुयक्खाते २३२-३४,३६-४१ पाणाइवाए जाव परिग्गहे ४।३ पाणाइवायाओ जाव विरए १५५६ पाणा जाव सत्ता ११५६,५७,२।७८ पाणा जाव सत्वे ४.२१ पाणाणं जाव सत्ताण ४।१७ पाणाणं जाव सम्वेसि ४।५,६,१७ पाणावि जाव अयं....... ७।२६ पाणावि जाव अयं पिभे..... ७।२६ पाणा वि जाव अय पिभेदे ... ७.२६ पासादिए जाव पडिरूवे ११३ पासादीया जाव पडिरूवा पुढविकाइया जाव तसकाइया ४१३,२१ पूढविकाइया जाव वणस्सइकाइया ४।१७ पुढविकाए जाव तसकाए ११५६ पुढविकाए जाव पुढविमेव १३३४ पुढविसंभवा जाव कम्म ३।२२ पुढविसंभवा जाव गाणाविह ३।१० पुढविसरीरं जाव संतं ३।२२.२३,४३,७७-७६ ८१,८२,८५-८६, १७ पुढविसरीरं जाव सारूविकड ३६,७,८,७६ पुढवीणं जाव सूरकताणं ३१६७ पुरिसत्ताए जाव विउट्ट ति ३७८ परिसस्स जाव एत्थ णं मेहणे एवं तं चेव नाणत्तं ३७६ ११४७ ७१२० ७२० કાર ११ ७५ १।१ ११५६ ठाणं ७।७३ ११३४ ३०२ ३३२ ३।६७ ३१७६ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ११३४ ११३४ १॥३४ ७२२७ ७१३४ ७।२६ २०१६ ३१७७ श३४ ११३४ ११३४ ७१६ ७।३४ ७.२० २११६ पष्ण०१ २०७३,७४ २१६६ ७४२० २१२५,३० ७१२८ २१२२,२३,२४,२६ ३.६ ३९ २।६९,७० २०६६ ७१६ २०१६ ७१६ १११६ ३३५ पुरिसादिया जाव अभिभूय पुरिसादिया जाव चिट्ठति पुरिसादिया जाब पुरिसमेव बहुयरगा जाव णो णेयाउए बोहिए जाव उवधारियाणं भवित्ता जाव पव्वइत्तए भेत्ता जाव इति मच्छाणं जाव सुंमुमाराणं महज्जुइएसु जाव महासोक्खेस सेसं तहेव जाव एस ढाणे आयरिए जाव एगंतसम्मे महज्जुझ्या जाव महासोक्खा महया""जं णं तुम्भे वयह त चेव जाव अयं महया जाव उवक्खाइत्ता महया जाव णो णेयाउए मह्या जाव भवति मूलत्ताए जाव बीयत्ताए मूलाणं जाव बीयाणं रुइला जाव पडिरूवा वुच्चंति जाव अयं दूच्चंति जाव णो णेयाउए वुच्चंति ते तसा ए महा ते चिर ते बहुतरगा आयाणसो इती से महता जेणं तुम्भे णो णेयाउए समणुजाणइ"""1 समणोवासगस्स जाव णोणेयाउए सरीरं जाव सारूविकडं सव्वपाणेहि जाव सत्तेहिं सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहिं सिज्झिस्संति जाव सन्ध० सिणेहमाहारेंति जाव अवरे सिणेहमाहारति जाव ते जीवा सिया जाव उदगमेव सिया जाव पुढविमेव सेए जाव विसपणे ७२१ ७।२३,२४,२५ ७।२० ७/२० ७.२० २।१६ ७.२२ २१२७ ७।२६ ३१५ ७११८, ७.१८,२६ २१७६ २२ ११४७ १२४७ २१८० ३२ ३२२ ३।१० ११३४ १३४ ११३४ १।३४ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेए जान सेयंसि सेसा तिणि आलावा जहा उदगाणं सोयण जाव परितप्पण सोयाओ जाव फासाओ सोयामि वा जाव परितप्पामि तव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा हंतव्वा जाव कालमासे हंता जाव आहार हंता जाव उवक्खाइत्ता अवाइत्ता भवति जाव जधावाती अगारातो जाब पव्यतिते अट्ठ एवं नेव अड्डाई जाव बहुजणस्स terereमाणे जाव अणभिलस माणे अणुत्तरे जाय केवलवर० अणुतरे जाव समुप अत्तरे जाव समुपपणे अणुसोतचारी जाव सवणारी अतिय जाव समुप्पणे अपढमसमयणेरतिता एवं जाव अपढम० अपढमस मयणेरर्तिता जाव अपठमसमयदेवा अभोवगमियो जाव सम्म अमण्णा सद्दा जाव फासा अमण जान साइमे अमुछिए [ते) जाय अणभोववणे अयगोलसमाणे जाव सीसगोल ० अरहंतेहि व अरहा जाव अर्थ अवटुले जाव दव्वओ अवलेहणित जाव देवेसु अविसेस जाव पुब्वविदेहे १७ 815 ३११० १२,१८-१०० ४/१७ ११५२ ११५६ ४२१ ७१२५ २।१६ २।१६.२० ठाणं ७२६ ४४५० ८६६ ८ १० ४:४५१ ५२६७ ६।१०५ १०।१०३ ५।१६६ ७२ १०५ २०१० १० १५३ ४/४५१ १० १४० ८४२ ३१३६२४।४३४ ४१५४६ ३।८५ १०११०६ ५११७४ ४२८२ २१२७० ११६ ३१६६-६६ ४।१७ ११५२ ११४२ ११५६ २।१४ २१६ २१६ ७ २८ ३५२३ ८६५ वृत्ति ४।४५० ८४ ५/६४ १०।१०३ ५।१९९ ७२ ५ १७५ ५।१७५ ४.४५१ ५.५ ६४२ ३।३६२ ४५४६ ३/८१ ५।१९५१०११०६ ५।१७० ४२८२ २२६८ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविसेसमणाणत्ता जाव सद्दावाती असावज्जे जाव अभूताभिसंक असिपत्तसमाणे जाव कलंवचीरिया० अवसितेवि एमेव असुरकुमाराणं वयणा चडवीसं दंडओ आव एगा असोमवणं जाव चूयवर्ण अहासुतं जाव अणुपालिता आउक्साए जाव ता आगमे जान जोते आगमेणं जाव जीतेणं आपवत्ता जाव ठाया आडात जाव बहु आधाकम्मितं वा जाव हरित भोयणं अभिनिवोहिवणाणावरणिजे जान केवल ० अहासुतं जान आराहिया अहीणस्सरे जाव मणामस्सरे ८८१० आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइकाइओगाहणा २०११ ८१० आभिणित्रोहिय ( त ] णाणी जाव केवल ० आमलग महुरफलसमाणे जाव खंडमहुर० आयारं जाव दिट्टिवाय आरंभिता जाब मिच्छादंसणवत्तिता आलोएज्जा जाव अस्थि आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा आलोयणारिहे जाव अणवट्टप्पारिहे आलोयणारि जाव मूलारि आवले जाव पुक्खलावती आसपुरा जाब बीतसोगा १५ २।२७४ ७।१३३ ४|५४८ २११०३ १।१४३-१६३ ४३४० ८१०४ ७११३९४१:१० १५१ ५१२४ ५।१२४ ३१८७ ८1१० ६/६२ ५२१६ ६।११, ८/१०६ ४४११ १०११०३ ५।११७ ८१० २।२४२, २४३०११० १०१७३ ६४२ ८६६ ८७५ २२७२ ७ १३१ ४।५४८ २।१०२ २।३५४-३६२,४।३६६ ४/३३६ ७।१३ वृति' ८१० ७१३ ८1१० ५।१२४ ५१२४ ३१८७ ८१० હાદુર ५।२१६ ५।२१८ ४४११ समवाओ १२ १. सभेने ते ३१३ महानुतं वारकरणात महात्मात महामहाकप्पं सम्म कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया प्राराहिया ति ( पत्र ३६८ ) 1८।१०४ - 'अहमुत्ता ग्रहाकप्पा महामाना महातच्या सम्म कारण कासिया पालिया सोहिया गौरिया किट्टिया बाराहिया' इति यादव अनुपात (पत्र ४१७) २१४१-सूतं यथाकल्प वामार्थ यावं सम्पन्न सुष्टा पालिता शोभित तीरिता कीर्तितः बाराधिता चापि भोलि ४३०) १०/१५१ – पहात वावर करणात् ग्रहाअत्थं ग्रहातच्च ग्रहामागं महाकप्पं सम्यक्कायेन, फातिया फालिया शोधिता शोभिता वा तीरिया कीर्तिता अराधिता भवति (पत्र ४६२ ) । ५।११२ ८1१० ३२/३३८ ९४२ ८२० २१३४० २।३४१ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसाएद [ति] जाव अभिसि बसाएमाने जाव अभिसमाणे आसाएमाणे जाव मणं आहारवं जाव अवातदंसी आहारमण्णा जाव परिग्गहसणा इंदा जाव महाभोगा ई दियाई जाव निभाता इदेयावर काताभिपती जाव पातावच्चे इच्चे जाव णो परेजा इच्चेतेहि जाव संचातेति इरिताऽसमिती जाव उच्चार० ईसा जाय अ उज्जल जाव दुरहियासं उत्तरासाढा एवं चैव उण्णए नाम उष्णत्तावत्तसमाणं माणं एवं चैव गूढा वत्तसमाणं मातमेवं चेव उप्पण्णाण जाव जाणति उप्पाणविसोहि जाव सारक्खणविसोहि उम्मीवीची जाव परिबुडे उरगजाति पुच्छा उपचिण जाव णिज्जरा उपरि जान पडि उवहिअसं किले से जाव चरित० एगिदितेहितो वा जाव पंचिदिय० एगिदियत्ताते वा जाव पंचिदियत्ताते एगिदियअसं जमे जाव पंचिदिय० एमिदियणिव्वित्तिते जाव पंचिदिय एगिदियसंजमे जाव पंचिदिय० एगिदिया जाय पंचिदिया एते चैव एते तिणि आलावगा भाणितव्वा एवं एवं ० १६ ४/४५० ४८४५० ४९४५० १०।७२ १०.१०५ १०२६ ६१४ ५/२० ५१०५, १०६ ४४३४ १०।१४ १०११४९ ६६२ ४१६५६ ४४ ४/६५३ ७/७८ १०१८५ १० १०३ ४।५१४ ८१२६; ६/७२ १०।१०३ १०1८७ ५/२०५ ५२०५ ५।१४५ ५।२३८ २२१४४ ५।१८०, २०४६।११ ५।१७६ १०/१५९ २।१६८ २२५६ ४/४५० ४१४५० ४४५० दा१६ ४५७८ ५।२२३ ६३ ५।१६ ५।१०४ ४४३४ १०११३ २१३८०-३८४ वृत्ति ४/६५४ ४१४ ४/६५३ ५११५ १०/८४ १०११०३ ४।५१४ ३ ५४० १०।१०३ १०/८६ भ० २११३६ भ० २११३६ भ० २।१३६ ४० २।१३९ भ० २।१३६ भ० २।१३६ ५/१७८ १०।१५६ २।१६७ २।२५५ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एव एव एवं एवं एवं अग्गिच्चादि एवं रिट्ठावि एवं अजोगभवत्थकेवलणाणे वि एवं अणुण्णवेत्तए उवाइणित्तए एवं अज्जरुवे अज्जमणे अज्जसंकप्पे अज्जपणे अज्जदिट्ठी अज्जसीलाचारे अज्जववहारे अज्जपरक्कमे अज्जवित्ती अज्जजाती अज्जभासी अज्जओभासी अज्जसेवी अज्जपरियाए अज्जपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेण भणिया तहा अज्जेण वि भाणियव्वा एवं अभिहितमिच्छादंसणे वि एवं असंकिले से वि एवमतिक्कमे वि astra वि अइयारे वि अणायारे वि एवं असंयमो वि भाषितव्वो एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३ एमीगे सु३ एस्सामीति एगे सुमणे भवति एव उवसंपया एवं विजहणा एवं एएवं अभिलावेणं- १. चिट्टित्त न चिट्ठित्ता (क) । २. पिसितता ( क, ख ) । ३. दत्ता श्रदत्ता ( क ) 1 ४. पिवता ( क ग ) पिता ( क्व ) । २० २४६२ ३१३२२ ३।४७५ ६।३६ ६१३६,३७ २/६१ ३१४२३,४२४ ४२१३-२२७ २२८५ ३।४३१-४४३ १०/२३ संग्रहणी - गाहा संता य अगंता य आगंता खलु तहा अणागंता । चिट्ठित्तमचिट्ठित्ता, णिसितित्ता' चेव णो चेव ॥ १ ॥ हंता य अहंता य, विदित्ता खलु तहा अछिदित्ता । बूतित्ता अबुत्तिता, भासित्ता चेव णो चेव ॥२॥ 'दच्चा य अदच्चा " य, भुंजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता लभित्ता अलभित्ता, पिबत्ता' चेव णो चेव || ३ || ३।१६५-१६७ ३/३५३,३५४ २४६१ ३३२१ ३१४७४ ६३८ ६१३५ २६० ३,४२२ ४११६६-२१० २।८४ ३१४३८ १०२२ ३१८६-१९१ ३।३५१ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंगहणी-गाहा; ३।१८६-१९४ संगहणी-गाहा ३११०६ २१२३२ ४।४७१-४७३ सुतित्ता असुतित्ता, जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झिता । जतित्ता अजयित्ता य, पराजिणित्ता चेव णो चेव ॥४॥ सहा रूवा 'गंधा, रसा य" फासा तहेव ठाणा य । णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पूण सीलवंतस्स ॥५॥ एवमिक्कक्के तिषिण उ तिणि उ आलावगा भाणियब्वा। ३।१६८-२५४ एवं एसा गाहा फासेतव्वा, जाव--ससरीरी चेव असरीरी चेव सिद्धसइंदियकाए, जोगे वेए कसाय लेसा य । णाणुवओगाहारे, भासग चरिमे य ससरीरी ॥१॥ २४१० एवं ओस प्पिणीए नवरं पण्णत्ते आगमिस्साते उस्सप्पिणीए भविस्सति ३३११०,१११ एवं कंता पिया मणुण्णा मणामा २०२३३ एवं कुलसंपण्णण य बलसंपण्णण य कुलसंपण्णेण य रूवसंपण्णेण य कुलसंपण्णेण य जयसंपण्णण य ४१४७४-४७६ एवं कुलेण य रूवेण य' कुलेण य सुतेण य कुलेण त सीलेण य कुलेण य चरित्तेण य ४१३६७-४०० एवं गंधाई रसाइं फासाई जाव सम्वेण वि १०३ एवं गंधा रसा फासा एवमिक्किक्के छ-छ आलावगा भाणियव्वा २२३०-२३८ एवं चउभंगो तहेव एवं चक्कवट्रिवंसा दसारवंसा २।३१०,३११ एवं चक्कवटी एवं बलदेवा एवं वासूदेवा जाव उप्पज्जिस्संति २१३१३-३१५ एवं चिणंति एस दंडओ एवं चिणिस्संति एस दंडओ एवमेतेणं तिण्णि दंडगा ४०६३,६४ ३१४८४ एवं चेव ४१४२७ एवं चेव ४६१७ एवं चेव ४१६१६ एवं चेव ५११६१ ३।३६६ १०।३।२।२०३,२०४ २।२३४ ४।२५० २।३०६ २१३१२ एवं चेव ४१६२ ३१४८३ ४४२६ ४१६१७ ४१६१८ ५११५६ १. रसा गंधा (क, ग)। Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।२५ ८१४८ का१२३ ४१४८३ ६२८१ ५1८४ ६।२५ एवं चेव ५।१६२ एवं चेव ६२६ एव चेव ८.४६,५० एवं चेव का१२४ एवं चेव १०१६४ एवं चेव एवं तिरियलोए वि ४१४८४,४८५ एवं चेव एवं फासामातो वि ६८१ एवं चेव एवमेतेणं आभिलावेणं इमातो गाहातो अणुगंतव्वातो-- पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पुवाइं आसाढा, सीयलस्सुसर विमलस्स भद्दवता ॥१॥ रेवतित अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवतीतो य ॥२॥ मुणिसुब्वयस्स सवणो, आसिणी णमिणो य णेमिणो चित्ता। पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्यूत्तरे वीरो ॥३॥ १८६-६६ एवं चेव जाव छच्च ६१२७ एवं चेव णवर खेत्तओ लोगालोग्गपमाणमिते मुणतो अवगाहणागुणे सेसं तं चेव ५११७२ एवं चेव णवर गुणतो ठाणगुणे ५।१७१ एवं चेद णवर दवओणं जीवस्थिगाते अणंताई दवाइं अरूवि जीवे गुणतो उवओगगुणे सेसं तं चेव ५।१७३ एवं चेव मणस्सावि ४।६१५ एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ जाव दूसमदूसमा ३.६० एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ जाव सुसमसुसमा ३१६२ एवं जधा अटुट्ठाणे जाव खते १०७१ एवं जधा छुट्टाणे जाव जीवा ८।१४ एवं जधा पंचट्ठाणे जाव आयरिय एवं जघा पंचट्ठाणे जाव बाहिं ७८१ एवं जहण्णोगाहणगाणं उक्कोसोगाहणगाणं अजहणुक्कोसोगाहणगाणं जहण्णठितियाणं उक्कस्सटुितियाणं अजहण्णुक्कोसठितियाणं ५।१७० ५।१७० ४१६१४ १।१२८-१३३ १११३५-१४० ८.१६ ५४८ ५।१६६ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ १२३८-२४६ ११२३५.२३७ ४।१२-२१ ४॥२.११ ३।२७ ३।२६ ४१३७६-३७८ ४।३७२-३७४ ४।४४२-४४६ ३७६-८६ ५१५७ ३१७० ३७१ जहण्णगुणकालगाणं उक्कस्सगुणकालगाणं अजहष्णुक्कस्सगुणकालगाणं एवं जहा उण्णत पणतेहिं गमो तहा उज्जु वकेहि वि भाणियव्यो जाव परक्कमे एवं जहा गरहा तहा पच्चक्खाणे वि दो आलावगा एवं जहा जाणेण चत्तारि आलावगा तहा जग्गेणवि पडिवेक्खो तहेव पूरिसजाया जाब सोभेति एवं जहा तिट्राणे जाव लोगतिता देवा माणुस्सं लोग हव्वमागच्छेज्जा तं जहा अर इंतेहिं जायमाणेहिं जाव अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु एवं जहा पंचट्ठाणे जाव किण्णरे एवं जहा विज्जुतारं तहेव थणियसपि एवं जहा हयाणं तहा गयाणं वि भाणियव्वं पडिवेक्खो तहेब पुरिसजाया एवं जाइस्सामीतगे सुमण भवति एवं जातीते य रूवेण य चत्तारि आलावगा एवं जातीते य सुएण य एव जातीते य सीलेण य एवं जातीते य चरित्तेण य एवं जाव अपढमसमयपंचिदिता एवं जाव एगा एवं जाव कम्मगसरीरे एवं जाव काउलेसाणं एवं जाव केवलणाणं एवं जाव घोसमहाघोसाणं णेयव्वं एवं जाव जहा से एवं जाव तिणिस० एवं जाव दुविहा एवं जाव पच्चुप्पणाणं एवं जाव फासाई एवं जाव फासामतेणं एवं जाव फासामातो एवं जाव फासामातो ४।३८५-३८७ ३११६१ ४।३८१-३८३ ३॥१८६ ४१३६२-३६५ १०।१५२ १२१६-२२६ ५।२७-३० २।१६८ २१५३-६२,३।१६३-१७२ ७।११७,११८ ५६१२४ ४।२८३ २११२४-१२६ ७१७ १०१४ १०१२२ ८.३३ ५।१४५ पण्ण०१ ५।२५,२६ १।१६२ २१४२.५१ ५२६२,६३ ५।१२४ ४२८२,२८३ ७७३ ७१६ १०१३ ८।३३ ६।८१ ६१८२ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७५,७६ ४१७५,८० ४७५,८४ ४७५,८८ २११२४-१२७ १०३ ५११७५ समवाओ ६१ ४१३५४ ४३७२-३७४ ४१५८ एवं जाव मणपज्जवणाणं २१४०४ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ४७७-७६ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ४१८१-८३ एवं जाव लोभे देमाणियाण ४१८५-८७ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ४८६-६१ एवं जाव वणस्सइकाइया २११२६-१३२,१३४-१३७ १३०-१४३ एवं जाव सव्वेण वि १०१५ एवं जाब सिद्धिगती १०६६ एवं जाव सुक्कलेसाणं १११६३-१६५ एवं जाव सेलोदग ४१३५५ एवं जुत्तपरिणते जुत्तरूवे जुत्तसोभे सन्वेसि पडिवेक्खो पुरिसजाता ४३८१-३८३ एवं णिरयाउअंसि कम्मंसि अक्खीणंसि जाव जो चैव ४/५८ एवं गैरइयाणं जाव वेमाणियाणं एवं जाव मिच्छादसणसल्लाणं २०४०७ एवं सत्थियावि २।२८ एवं णो केवलं बभचेरवासमावसेज्जा णो केवलं संजमेणं संजमेज्जा णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा एवं सुयणाणं ओहिणाणं मणपज्जवणाणं केवलाणं २०४४-५१ एवं तिरियलोग उड्वलोगं केवल कप्पं लोगं २।१९४-१९६ एवं तिरियलोग उनलोगं केवलकप्पं लोग २।१९८-२०० एवं तेइ दियाणं वि चरिंदियाणं वि ११८१-१८४ एवं थावरकाए वि २११६६ एवं दसणाराहणा वि चरिताराहाणा वि ३१४३६,४३७ एवं दीणजाती दीणभासी दीणोभासी ४२०५-२०७ एवं दीण मणे दीणसंकप्पे दीणपण्णे दीणदिट्री दीणसीलाचारे दीणववहारे ४.१६७-२०२ एवं दीणे णाम मेगे दीणपरियाए एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाले सम्वत्थ चउभंगो ४।२०६,२१० १।६७-१०७:२।४०६ २१२७ २१४३ २।१६३ २११६७ १।१७६,१८० ।१६५ ३१४३५ ४११६५ ४१६५ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ४१४३५,४३६ २११५३ ३७६ ३१५१५,५१६ १२२३ ४।३-११ २०१५ ३१५३२ २०२१ २१४४३ २।३६८ एवं देवंधगारे देवुज्जोते देवसणिवाते देवुक्कलिताते देवकहकहते ४।४३७-४४१ एवं देवाणं भाणियव्वं २।१५४ एवं देवुक्कलिया देवकहकहए ३७७,७८ एवं दोग्ग तिगामिणीओ सोगतिगामिणीओ संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ अमणुण्णाओ मणुण्णाओ अविसुद्धाओ विसुद्धाओ अपसत्थाओ पसत्थाओ सीतलुक्खाओ णि ण्हाओ ३१५१७,५१८ एवं पडिसडंति विद्धसंति २।२२४,२२५ एवं परिणते जाव परक्कमे ५१३६-४४ एवं परिग्गहिया वि २०१६ एवं पासे वि ३१५३३ एवं पुट्टियावि २०२२ एवं पुन्वफग्गुणी उत्तराफग्गुणी २।४४५,४४६ एवं फुरित्ताणं एवं फुडित्ताणं एवं संवट्टइत्ताणं एवं णिवट्टतित्ताणं २।३६६-४०२ एवं बलसंपण्णण य रूवसंपण्णण य बलसंपण्णण य जयसंपण्णेण य सम्वत्थ पुरिसजाया पडिवक्खो ४१४७७,४७८ एवं बलेण य सुतेण य एवं बलेण य सीलेण य एवं बलेण य चरित्तेण य ४।४०२-४०४ एवं मणुस्साणवि एवं मोहे मुढा २।४२२,४२३ एवं मोहे मूढा ३३१७८,१७६ एवं रज्जति मुच्छंति गिझंति अज्झो ५७-१० एवं रूवाई गंधाइरसाई फासाई एक्केक छ-छ आलावगा भाणियव्वा ३१२६१-३१४ एवं रूवाइपास गंधाइ अग्घाति रसाई आसादेति फासाइ पडिसंवेदेति २।२०२-२०५ एवं रुवेण य सीलेण य एवं रुवेण य चरितण य . ४१४०६,४०७ एवं वइक्कमाणं अतिचाराणं अणायाराणं ३१४४५-४४७ एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ ४।४७२,४७३ ४१४०१ २१४०१ ३।१७६ ववज्जति ३।२८५-२६०२।२०२-२०५ २।२०१ ४.४०५ ३१४४४ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७।१०७,१०५ रा२१७ ७।१०६ २।२१६ ३।४३२ २।३६५ २१३६६,३६७ ६.४१२-४१५ ३।४११ ४१५ ४।११३-११६ ४।१११ एवं वाणमंतराणं एवं जोइसियाणं एवं विततेवि एवं विसोही एवं वेदेति एव णिज्ज रेंति एवं वेयावच्चे अणुरगहे अणुसट्टी उवालंभे एवमेक्केके तिण्णि-तिण्णि आलावगा जहेव उवक्कमे एवं संकप्पे पणे दिट्टी सीमाचारे ववहारे परक्कमे एगे पुरिसजाए पडिवक्खो नत्थि एवं सक्कारेइ सम्माणेति पूएइ वाएइ पडिच्छति पुच्छइ वागरेति एवं सम्माहिट्रि परित्ता पज्जत्तम सुहम सण्णि भवियाय एवं सब्वेसि च उभंगो भाणियव्वो एवं सामंतोवणिवाइयावि एवं सुंदरी वि एवं सुत्तेण य चरित्तेण य एवं मझोवज्जणा परियावज्जणा एवमणारंभे वि एवं सारंभे वि एवमसारंभे वि एवं समारंभे वि एवं असमारंभे वि जाव अजीवकाय असमारंभे एवमणुण्णवत्तते उवातिणित्तते एवमभेज्जा अडज्झा अगिज्झा अणडा अमज्झा अपएसा एवमाधारातिणिताते एवमासणाई चलेज्जा सीहणातं करेज्जा चेलुक्खेवं करेज्जा एवमिट्ठा जाव मणामा एवमिमीसे ओसप्पिणीए जाव पण्णत्ते एवं आगमिस्साए उस्सप्पिणीए जाव भविस्सति एवमेगसमयठितिया ३।३१८ ४।२०३ २।२५ ५१६३ ४१४०६ ३१५०६,५१० ३१३१८ ४१६५ २।२४ ५११५६ ४१४०८ ३१५०८ ७१८४ ७८५-८६ ३१४२०,४२१ ३१४१६ ३१३२६-३३४ ५।४६ ३।३२८ ५१४८ ३८२-८४ २।२३४,२३५ २।२३३ २१३१०,३११ १।२५५ २३०६ १४२५४ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवमेतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्दा - सवर्ण गाणे य विष्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे । अण्हते तवे चेव वोदाणे अकिरिय णिव्वाणे | जाव से णं भंते ! एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरिसप्पावि भाणिव्वा भुजपरिसप्पा वि भाणियव्वा एवं चेव एवमेतेनं गमएणं दित्तचित्ते जक्खाति उम्मायपत्ते एवमेतेणमभिलावेणं चत्तारि कसाया पं तं कोहकसाए ४ पंचकामगुणे पं तं सद्द ५ छज्जीवनिकाता पं तं पुढविकाइया जाव तसकाइया एवामेव जाव तसकाइया कंते जाव मणामे कंदे जाव पुप्फे कक्खडे जाव लक्खे कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा कालोभासे जाव परमकिन्हे किण्हा जाव सुविकला किण्हे जाव सुक्कि किरियावादी जाव वेणइयावादी कुंडला चेव जाव रयण संजया कुलमतेण वा जाव इस्सरिय० केवली जाणइ पासर जाव गंध अपडली जाव लोभ० कोहकसाई जाव लोभकसाई कोहणिव्यत्तिए जाव लोभ० कोहमुंडे जाव लोभमंडे कोहविवेगे जावमिच्छादंसण सल्ल० कोहसण्णा जाव लोभसण्णा कोहे जाव एगे खिप्पमवेति जाव असंदिद्ध० खेमपुरी जाव पुंडरीगिणी २७ ३।४१८ ३१४२-४७ ५१०८ ६/६२ ८|१० १०/१५५ ११८४-८६ ६/४७,४८,७१७३ हा६२ ५१२३, २२५ ५/२६,२२६ ४/५३१ ८।७४ १०।१२ ८।२५ ४/१६१ ५२०८ ४६२५ १०६६ ११११५-१२५ १०।१०५ १।६७,६८ ६/६३ ८/७३ ३।४१५ ३।३६-६८ ५/१०८ हा६२ ८१० ८३२ ८१३ समवाओ ६११ वृत्ति ५३ ५/३ ४|५३० २३४४ ८२१ ७ ७८ ४१६० ४/७५ ४/७५ ५।१७७ १२६७-१०७ ४/७५ ४/७५ ६।६१ २३४१ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ७५६ ८।११५ ७।१३६ ४।२५२ ३१४४४ ४।३ ४।१२ ४१४५ ४१४६८ ४.६११ ७१५२ पइण्णगसमवाय सू०४५ ७१३५ ४१२८२ ३१३३८ ४३ ४११२ ४।२४ ४१४६८ ४.४५-५४ ४१२४-२६ ४२७-३३ गंगा जाव रत्ता गतिकल्लाणं जाव आगमे० गमणं जाव अणाउत्तं गोमुत्ति जाव कालं गरहेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो एवं जहेव सुद्धेणं वत्थेणं भणित तहेव सुतिणा वि जाव परक्कमे चउभंगो एवं परिणतरूवे वत्था सपडिवक्खा चउभंगो एवं संकप्पे जाव परक्कमे चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे चिण जाव मिज्जरा चित्तविचित्तपक्खगं जाव पडिबुद्धे चुल्ल हिमवंते जाव मंदरे जधा सालीणं जाव केवतितं जह पंचट्ठाणे जाव परिहरणोवघाते जहा दोच्चा णवरं दीहेणं परितातेणं जहेव णेसत्थियाओ जाणइ जाव हे जाणइ (ति) जाव हेउणा जाणइ जाव अहेउ जाणति जाव अहेउणा जातिणामणिहत्ताउते जाव अणुभाग० जातिसंपण्णे जाव रूवसंपण्णे जायमाणेहिं जाव तं चेव जाव केवलणाणंउप्पाडेज्जा जाव चउरिदियाणं जाव दवा जिणे जाव सव्वभावेणं जीवणिकाएहिं जाव अभिभवई ४१२४-३३ ४॥२-४ ४१५-११ ७७६ ३१५४० १०।१०३ ७१५१ ३३१२५ ५।१३१ ७१५३ १०.१०३ ७५५ ५।२०६ १०१८४ ४१ २।३०,३१ ভও ५७६,७८ ५७६,८१ ५।००,८२ ६.११७ ४२२६ ३५१ २०६४-७३ १२।१५७,१५८ २।१४६-१५० रा२८ ५/७५ ५७५ १७५ ५७५ ४।२२६ ३१७६ २।४२-५१ १।१५८,२११५६ २११४०-१४४ ५।१६५ ३३५२३ ३१५२३ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणं वा जाव णातिक्कमंति ठाणाई जाव अब्भणुण्णाया इं ठाणाई जाब भवति ठाणेहि जाव णातिक्कमंति ठाणेहिं जाव घरेज्जा ठाणेहि जाव णो खंभातेज्जा ठाणेहिं जाव णो धरेज्जा जगरंसि वा जाव रायहाणिसि णग्गभावं जाव लढावलद्धवित्ती मसामि जाव पज्जुवासामि गाणत्तं जाव विउब्वित्ता मासि जाव णिच्चे fresखिए जाव परिस्सहे जिग्दीण वा जाव को समुप० निधीण वा जाव समुप्प० गिंये जाव णाक्किमइ नियमं जाव पगति रिकि जाव णो लुमसमावण् णिस्संकिते जाव परिस्स हे इयत्ताए वा जाव देवताए रइया जाव देवा रतिआउते जाव देवाजते णेरतिते जाव णो चेव रतिवन्वितिते जाव देवव्विति णेरतिय भवे जाव देवभवे पेरतिय संसारे जाच देवसंसारे णो आलोएज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा जो आसाएति जांव अभिलसति णो चेव णं जाव करिस्सति गो पडिक्कमैज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा णो महिडिए जान पो रिद्वितिते णो महिडिए जाय णो दूरंगतितेगु तं चैव तं चैव ૨૨ ५।१०७ ५/३७-४२ ५।४२,४३ ५.१०७ ५।१०३ ५/२२ ५१०४ ५१०७ ६/६२ ३।३६२ ७/२ ५।१७४ ३।५२४ ४२५४ ४२५५ ५।१०२ ६।१२२ ३।५२४ ३०५२४ ४१६१४ ५२०६ ४।२०६ ४१५८ ७११५३ ४१२८७ ४।२८५ ३।३४०८।१० ४१४५१ ४:५१४ ६०३३६८९ ८/१० ८१० ४:२३८ ४२३६ ५:१०७ ५।३४ ५।३४ ५१०७ ५१०३ ५।२२ ५।१०४ आयारचूला १।२८ ६/६२ ३/३६२ र २।१७० ३०५२४ ४:२५४ ४२५५ ५।१०२ ६१११९ ३०५२३ ३१५२४ ४६१४ ४:६०८ 81805 ४५८ ७२७१ ४।६०६ ४/६०६ ३।३३८ ४४५० ४|५१४ ३।३३५ १० २।२७१ ४२३८ ४:२३ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० तं चेव जाव संकिण्णे ४।२४० तं चेव विवरीतं जाव मणुण्णा फासा १०।१४१ तंजहा जाव मिच्छादसणवत्तिया ५११३ तत्थेगओ जाव णातिक्कमति ५११०७ तयक्खायसमाणे जाव सारक्खायसमाणे तलवर जाव अण्णमण्ण ६६२ तहेव ४१४२८ तहेव ४।५६३ तहेव Y1 ୫୪ तहेव चउभंगो ४॥४ तहेव चत्तारिगमा ४।४२६ तहेव जाव अवहरति ५७३,७४ तहेब जाव पणते ४.२ तहेव जाव हलिद्द० ४।२८४ तित्ता जाव मधुरा ५५४,३३ तित्ते जाव मधु (हु) रे ५२६,२२८ तिरियगती जाव सिद्धिगती दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं चेव २।४२५ दिणयरं जाव पडिबुद्धे १०११०३ दुभिक्खंसि वा जाव महता ५१९१ दुस्समदुस्समा जाव एगा १११३६-१३६ दस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा ६२४ देवलोगे [ए] सु जाव अणभोववणे ३१३६२,४।४३४ दो अदाओ एवं भाणियन्वं-- संगहणी-गाहा कत्तिया रोहिणिमगसिर 'अद्दा य' पुणव्वसू अ पूसो य । तत्तोऽवि' अस्सलेसा महा य दो फरगुणीओ य ॥१॥ हत्थो चित्ता साई विसहिा तह य होति अणुराहा । जेट्ठा मूलो पुत्वाऽऽसाढा तह उत्तरा चेव ॥२॥ ४।२४० १०.१४० ५३११२ ५.१०७ ४/५६ ६।६२ ४१४२६ ४१५६३ ५५६४ ४४ ४।४२६ ५।७३ ४।२ ४१२८४,२८२ ११७६-८१ २४ ५।१७५ २।४२४ १०।१०३ ५८ १११३६-१३६ १. कत्तिय (कप)। २. अद्दाओ (क, ग)। ३. तत्तो य (क, ग)। ४. साई य (क, ख, ग)। Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ अभिई सवणे धणिट्ठा, सयमसया दो य होंति भद्दवया । रेवति अस्सिणि भरणी, जेयव्वा अणुपुन्वीए ॥ ३ ॥ एवं गाहानुसारेण णेयव्वं जाव दो भरणीओ । २३२३ दोसे जाव एमे धणिट्टा जाव भरणी धम्मत्यिकांत जाव परमाणुपोग्गलं धम्मत्थिकातं जाव सद्दं धम्मत्थिकार्य जाव गंध धम्मत्थिगातं जाव वातं पउमसरं जाव पडिबुद्धे पचमवतितं जाव अचेलगं पंचाणुव्वतितं जाव सावगधम्मं पडिक्कमेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा पढमसमयए गिदियणिव्वत्तिए जाव पंचिदियणिव्वत्तिए पढमसमयणेरतितणिव्वत्तिते जाव अपढम० पण सुहुमे जाब सिणेहसुहुमे पण्णवेति जाव उवदंसेति पण वेहिति पमिलायति जाव जोणी मिलायति जाव तेण परं पम्हकुडे जाव सोमणसे म्हे जाव सलिलावती परिताले जाव पूतासक्कारे पल्ला उत्ताणं जाव पिहियाणं पाणावायवे रमणे जाव परिग्गहवेरमण पाणातिवाए जाव एगे पाणातिवातवेरमणे जाव परिग्गह० पाणातिवाते जाव परिग्गहे पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं पाणातिवायाओ जाव सव्वाती पातीणाते जाव अधाते पायत्ताणिते जाव उसभाणिते १११०२-१०४ ६।१६ ५/१६५ ६४ ७१७८८२५ १०/१०६ १०/१०३ हा६२ हा६२ ३।३४१ १०/१७३ १२६ १०१२४ १०।१०३ हा६२ ७६० ५। २०६ १०/१४५ ८।७१ ६/३३ ७६० १।११०-११२ ११६२-६४ ५:१७, १२६ १०।१४ ५१६,१२८ ५।१ ६।३८ ५/६४ संग हणीगाहा वृत्ति चंद्र० १० ११ ५।१६५ ६१४ ७७८ ८।२५ १०११०३ हा६२ ६२ ३।३३८ १०/१५२ ८१०५ ८१३५ १०।१०३ हा६२ ३।१२५ ३।१२५ ५।१५०,१५१ २/३४० ६।३२ ३।१२५ १०११३ १०।१३ १०/१३ १०।१३ १०/१३ १०।१३ ६।३७ ५/६५ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५।५८ ७.१३४ ५११७ ७.१३२ ७।७३ ६६ ७ है। १२ ६८ ६।१२८ ६७ ७१७३ हा७२ ६१६,८ ६७,१०११५३ ७८३ ५।१४१ ७१८४ पायत्ताणिते जाव रघाणिते पावते जाव भूताभिसंकणे पुढविकाइएहिंतो वा जाव तस० पुढविकाइएहितो वा जाव पंचिदिएहितो पुढविकाइएत्ताए जाव पंचिदियत्ताए पुढविकाइएताए वा जाव पंचिदियत्ताते पुडविकाइयणिव्वत्तिमे जाव तस० पुढविकाइयणिव्वत्तिते जाव पंचिदियणिवत्तिते पुढविकाइया जाव तसकाइया पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया पुढविकातितअसं जने जाव तस० पुढविकातितअसंजमे जाव वणस्सति० पुढविकातितआरंभे जाव अजीव० पुढविकातितत्ताते वा जाव तस० पुढविकातितसंज मे जाव तस० पुढविकातित [य] संजमे जाव वणस्सति० पुप्फए जाव विमलवरे पुरिसे जाव अवहरति पुवासाढा एवं चेव पोतगत्ताते वा जाव उब्भिगताते पोतगत्ताते वा जाव उववातितत्ताते पोतगा जाव उब्भिगा पोतजेहितो वा जाव उभिगेहितो पोततेहिंतो वा जाव उववातितेहितो फरिस जाव गंधाई फुसित्ता जाव विकुन्वित्ता बहुमीहति जाव असंदिद्ध मीहति बेइंदिया जाव पंचिदिया बेदिता जाव पंचेंदिता भरहे जाव महाविदेहे भवति जाव फासामतेणं भवित्ता जावं पन्धइए [तिते] भवित्ता जाव पव्वयाहिति १७ ७७३ ७७३ ७७३ ७१७३ ७८२ ७७३ ७७३ ७७३ ८.१०३ ५७३ ४१६५४ ६९ ७१८२ ५।१४०१०१८ १०।१५० ५७४ ४१६५५ ७४ ८।३ ८२ ८२ ७४ ८.३ ७१३ ७१३ s૨ १०७ ७२ ६४६१ १०७ ७२ ६१६२ हा७ १०११५३ ७१५४ ६५८२ ३१५३२,४११,४५०,५१६७,९।६२ ६६२ ६।११ ९।११ ७३५० ६।८१ ३१५२३ ३११२३ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवेत्ता जाव पव्वतिता भाषासमिती जाव पारिद्रावणियासमिती भिण्णे जाव अपरिस्साई मंडुक्कजातिआसीविसस्स पुच्छा मणअपडिललीणे जाव इंदिय० मण दुप्पणिहाणे जाव उवकरण. मणसुप्पणि हाणे जाव उवगरण. मणुस्सजाति पुच्छा मणुस्साणं वि एवं चेव मणस्सा भाभियव्वा १०२८ ५।२०३ ४१५६५ ४१५१४ ४१६३ ४११०६ ४।१०५ ४१५१४ २११६० ४.३२३,३२४,३२५,३२६ ८१७ ४१५६५ ४।५१४ ४.१६२ ४।१०४ ४११०४ ४१५१४ २१५६ ४।३२२,३२३, ३२४,६२५,३२६ २।४११ २१४१३ ५१३५ ८.१० ८.१० ५।२१ २०२७११६१ ३१३६२,४१४३४ ७२ ५।२३४ मरणाइं जाब पो णिच्च महावीरेणं जाव अब्भणण्णायाई महिड्डिए जाव चिरद्वितिते महिड्डिएसु जाव चिरट्ठितिएसु महिड्डियं जाव महासोक्खं महिड्डिया जाव महासोक्खा माताति वा जाव सुण्हाति माहणस्स वा जाव समुप्पज्जति मुंडा जाव पव्वतिता मुंडे जाव पव्वइए तिते] मुच्छिते जाव अज्झोववणे मुत्ते जाव सव्वदुक्ख० मुसाबाते जाव परिस्महे रत्ताओ जाव अट्ठउसभकूडा रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा रूवा जाव मणुण्णा लोगविजओ जाव उवहाणसुयं वंजण जाव सुरूवं वंदामि जाव पज्जुवासामि वंशीमूलकेतणासमाणा जाव अवलेह० ४।४५०,४५१६७९,१०४ ११२४६ ६।२६ ८1८४ ८.१० ८.१० २।२७१ वृत्ति सूय०१२।२१७ ७२ ३१५२३ ३१५२३ ३।३६१ वृत्ति १०११३ ८८२ ७।२४ ५१५ वृत्ति ओ०सू० १४३ ३।३६२ ४/२८२ ८.१०८ ७।१४३ ६२ ६६२ ४।४३४ ४।२८२ स्थानाङ्गवृत्ती-'पिपा इ वा भज्जा इ वा भाया इवा भगिणी इ वा पुत्ता इ वा घूया इवे' ति यावच्छब्दाक्षेपः (पत्र १३४) । 'भाया इ वा मज्जाइ वा भदणी इ वा पुत्ता ६ वा घूया इवे' त्ति यावच्छताक्षेपः (पन्न २३३)। Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१८ ५।१५२,१५३ ओ०सू० १४४ २१३४१ ६।४३ ३१५२३ ४१ ६।६२ ४१४५० २।३८०-३८३ ७।२७ वणियाई जाव अब्भणुण्णायाई २१४१४ वणस्सतिकातितअसंजामे जाव अजीवकाय० १018 बदमाणे जाब विवक्कतव. ५।१३४ वसित्ता जाव पव्वाहिती ६।६२ विज्जुप्पभे जाव गंधमातणे १०११४६ वीइक्कते जाव वारसाहे ६६२ वेजयंति जाव अउज्झा ८७६ वेयड्ड..... 81५३ वेरमणं जाव सव्वतो ४११३७ संकिते जाव कलुसमावणे ३१५२३ संजमबहुले जाव तस्स गं संवच्छराई जाव बावत्तरिवासाई ६६२ संवरबहले जाव उवहाणवं ४१ संवाहण जाव गातु० ४।४५० सक्के जाव सहस्सारे ८।१०२ सत्त भयाणा पंतं हा६२ सदं सुणेत्ताणामेगे सुमणे भवति ३ एवं सुणमीति' ३ एवं सुणेस्सामीति ३ एवं असुणेत्ताणामेगे सु ३ ण सुणमीति ३ ण सुणिस्सामीति ३१२८५-२६० सद्द जाव अवहरिसु १०१७ सद्द जाव अवहरिस्सति १०१७ सह जाव उवहस्रंसु सद्द जाव उवहरिस्सति १०७ सद्द जाव गंधाई १०७ सद्दहति जाव णो से ३३५२३ सदा जाव फासा ५।१२-१५,१२५-१२७ सद्दा जाव वतिदुहता ७।१४४ सद्देहिं जाव कासेहि सभासुहम्मा जाव ववसातसभा ५१२३६ समणस्स जाव समुप्पज्जति ७२ समणेणं जाव अब्भणुण्णायाई सव्वरयणा जाव पडिबुद्धे १०।१०३ १. सुणेमाणे (ख); सुणेमोति (ग)। ३११८६-१६४ १०१७ १०७ १०७ १०७ १०७ ३१५२३ ५१५ ७।१४३ ५२३५ ७।२ ५१३४ १०११०३ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्वदीवसमुद्दाणं जाय अर्द्धगुलगं सहमाणस्स जाव अहियासे माणस्स सहमाणस्स जाव अहिया से माणस सहिस्संति जाव अहिया सिस्संति सहेज्जा जाव अहियासेज्जा सिंघु जाव रत्तावती सिज्झति जाव मंत सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण ० सिज्झिहिति जाव अंतं सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाण ० सिज्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाण० सिद्धसुग्गता जाव सुकुल • सिद्धाई जाव सव्वदुक्ख ० सिद्धाओ जाव सव्वदुक्ख ० सिद्धे जाव प्पहीणे सिद्धे जाव सव्वदुक्ख ० सुंबक सभाणे जाव कंबलकड० सुक्किलपक्खगं जाव पडिबुद्धे सुभाते जाव आणुगामियत्ताए सुमिणे जाव पडिबुद्धे सुत्रच्छे जाव मंगलावती सुवप्पे जाव गंधिलावती सुसमसुसमा जाव एमा सुसमसुसमा जाव दुसमदूसमा से जहाणाम सेलथंभसमाणे जाब तिणिस० सेसं जहा पंचट्ठाणे एवं जाव अच्चुतस्सवि तव्वं सेसं तं चैव जाव करिस्संति सेसं तहेव जाव भवणगिहेसु से तहेव जाव भासं ..... ३५ ११२४८ ४४५१ ५७३ ५।७४ ५७३,७४ ७५७ ४११ ४|१ ६।६१ ६६२ ६/६२ ४११४१ ८३६ ८५३ १०/७५,७६,७८, ७६ ६।१०६ ४१५४६ १०।१०३ ५।१३ १०११०३ ८1७० ८७२ १।१२६-१३२ ६।२३ हा६२ ४२८३ ७ १२१,१२२ ४।५१४ ५२२ १०।१५६ ज०१२ ४/४५१ ५।७२ ५/७३ ५।७३ ७१५३ ४१ ४११ ४/१ ४१ ४१ ४|१३६ १२४६ ११२४६ १।२४६ ११२४६ ४१५४६ १०।१०३ ५।१२ १०११०३ २३२६ २/३२६ वृत्ति १।१२६-१३२ हा६२ ४२८३ १. वृत्तो अस्य पाठस्य पूर्ति निम्नप्रकारा विद्यते - यावदुग्रहणादेव सूत्रं द्रष्टव्यम् - सव्वन्तरए सब्बखुड्डाए बट्टे बेल्लापुयसंठाण संठिए एगँ जोयण सबसहस्सं आयाम विक्खंभेणं तिन्नि जोयण सय सहस्साई सोलससहरसाई दोन्नि सयाई सत्तावीसाई तिन्नि कोसा श्रट्टावीसं धणुसमं तेरस अंगलाई ( पत्र ३३ ) । ५/६६,६७ ४|५१४ ५।२२ १०।१५१ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।१४ ६६८ ५।१३५ ८।११ १०.११ १०१५ १०६६ पण्ण० १५१ समवायाओ २८३ पुष्ण० १५०१ पण्ण०१५६१ १०१० पण्ण० १५१ पण्ण० १३१ पण्ण०११ पण्ण० १५१ ८५११ पण १५११ सोइंदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदिय० सोइंदियपडिसलीणे जाव फासिं दिय० सोइंदियसंवरे जाव फासिं दिय. सोतिदितअसंवरे जाव सूचीकुसग्ग० सोतिदितबले जाव फासिदितवले सोतिदितमुंडे जाव फासिदित. सोतिदियअपडिसंलीणे जाव फासिदिय० सोतिदियअसंजमे जाव फासिदिय. सोतिदियअसंवरे जाव काय असंवरे सौतिदियअसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियअसाते जाव णोइंदियअसाते सोतिदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोतिदियमडे जाव फासिदिय० सोतिदियसंजमे जाव फासिदिय० सोतिदियसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियसाते जाव णोइंदिथसाते सोहम्मे जाव सहस्सारे हरिवेरुलित जाव पडिबुद्धे हव्वमागच्छति...... हिताते जाव आणुगामित[य]त्ताते हिरण्णगोलसमाणे जाव वइरगोल. हेमवए" ५।१४३ ८.१२ ५११३८,६११६ ६.१८ ५११७७ ५।१४२ ५।१३७६१५,१०११० ६१७ ८.१०१:१०।१४८ १०११०३ ३.८० ३३५२४६१३३ ४१५४७ पण्ण० १५१ पण्ण० १५१ पण्ण० १२१ पण्ण० १५१ ६।१४ २३८०-३८४ १०।१०३ ३१७६ ३२५२३ ४१५४७ ६।८३ अक्खराइं जाव एवं चरण अक्खरा जाव एवं चरण अक्खरा जाव चरण-करण अक्खराणि जाव एवं चरण अक्खराणि जाव सेत्तं समवाओ प०६५ प०६६ प०६१,६४ प० ६७,६६ प०६२ १.पण्णगसमवाय-सून्न । Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ प० ८६ १६५ अ० सू० २२७ १०८६ प० ८६ प० ८६ प०६१ अ० सू०२२७ वृत्ति आवरा तंत्र जाव परित्ता प०१० अगाराओ जाव पब्वइए ६७४ अजित जच बद्धमाणे २४.१५० २२२ अणंतागमा जाव चरण-करण प०६८ अणंतागमा जाव सासया प०६३ अगुओगदारा जाव संखेज्जाओ प०६४,६५,६८,६६,१३१ अणुओगदारा संखेज्जाओ प०६७ अभिणंदण जाव पास २३१३,४ अयले जाव रामे प० २४१ अवसेसाई परिकम्माई पाढाइयाई एक्कारसविहाई पण्णत्ताई प०१०४-१०८ अस्सगीवे जाव जरासंधे प० २४६ अहासुतं जाव आराहिया ४६।१६४१८१४११००१ आधविज्जति जाव उवदंसिज्जति प०१० आपविजंति जाव एवं प०६३ आघविज्जति जाव नाया० प०६४ आपविज्जति० प० १०,६१,६३-६६,१३१ आहारय जह देसूगारयणि उ पडिपुण्णारयणी प० १६६ आहारयसरीरे समचउरंससंठाण सठिते प० १६५ उववाएणं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियवाणि जहा नंदीए ८८.२ एवं गतिनाम"ओगाहणानाम १० १७६ एवं चउदिसिपि नेयवं ५८४ एवं चउसुवि दिसासु नेयव्वं' ८८।४,५,६ एवं चेव दोमासिया आरोवणा सचराय दोमासिया आरोवणा एवं तेमासिया आरोवणा एवं चउमासिया आरोवणा २८१ एवं चेव मंदरस्स ८७४ प० १०१,१०२ वृत्ति वृत्ति' प० ८६ प० ८६ वृत्ति; प० ६६ प० ८६ पण्ण० २१ पण्ण० २१ पग्ण०६ नंदी १०२ प०१७६ ५८1३,५२१३ ८८.३ २८.१ ८७११ १. वृतौ किञ्चिद् भेदेन लभ्यते, यथा ---६४।१ यावत्करणात् 'महाकप्पं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया सम्म प्राणाए प्राराहियावि भवति । ५११ जाव' तिकरणाद्य थाकल्पं यथामार्ग यथातत्व समय कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीत्तिता आज्ञयाऽऽराधितेति । २. नायव्वं (क); नातव्वं (ख, ग)। Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं जइ मणस्स किंगभवक्कंतिय संमृच्छिम गो गब्भवक्कंतिय णो समुच्छिम ज इ गम्भवक्कंतिय किं कम्मभूमग अकम्मभूमग गो कम्मभूमग णो अकम्मभूमग जइ कम्मभूमग कि संखेज्जवासाउय असंखेज्जवासाउय गो संखेज्जवासाउय णो असंखेज्जवासाउय जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तय अपज्जत्तय गोयमा पज्जत्तय णो अपज्जत्तय जइ पज्जत्तय कि सम्म मिच्छ सम्मामिच्छ गो सम्मद्दिट्रिनो मिच्छदिछि नो सम्मामिच्छदिट्टि जइ सम्मदिदि कि संजतं असंजत संजतासंजत गो संजय णो असंजय णो संजतासंजत जति संजय किं पमत्तसंजय अपमत्तसंजय गो पमत्तसंजय णो अपमत्तसं जइ पमत्तसंजय कि इडिपत्त अणिडिपत्त गो इडिपत्त नो अनिविपत्त वयणावि भतियव्वा प०१६४ एवं थेरे वि अज्जसुहम्मे १००१५ एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे ६६३ एवं दिवसोऽवि नायब्बो १२।६ एवं धणू नालिया जुगे अक्खे मुसले वि ६६।४-८ एवं पंचवि २७११ एवं पंचवि इंदिया २११ एवं पंचवि रसा २२१६ एवं पदुप्पण्णेवि अणागएवि एवं मंदरस्स पच्चस्थिमिल्लिाओ चरिमंताओ संखस्स पुरथिमिल्ले च ८७।३ एवं माणे माया लोभे १६।२२१।२ एवं संतिस्सवि ६०१३ एवं सगरे वि राया चाउरंतचक्कवट्टी एकसरि पुव्व जाव पव्वदाए कंतं वण्णं लेसं जाव णंदुत्तरवडेंस १५॥१३ कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ८६२ कालगयाई जीव सव्वदुक्ख० प०६३ कीयं आहट्ट जाव अभिक्खणं २१११ प० १६४ १००१४ ६६२ १२।८ ५२ पण्य० १५१ ठा० १.७८-१२ प० १३२ ८७१ अस्य पूतिः अत्रैव ६०१२ ७१।३ ३३२१ ८६१ ८६१ दसा० २ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०१ कोहविवेगे जाव लोभ २७११ चउरंसा जाव असुभा प० १४१ जातिनाम जाव ओगाहणानाम प० १७७ जूवे जाव माउया प० २४५ णितिया जाव णिच्चा ताईचेव माउया पयाणि जाव नंदावत्तं प० १०३ तिविठू य जाव कण्हे प० २४१ धम्मस्थिकाए जाव अद्धासमए प० १३७ नेरइया० प० १७३ पज्जत्तगाणं प० १५५ पडिसत्तू जाव सचक्केहिं प० २४६ पढभाए पढमं भागं जाव पण्णरसेसु पम्हलेसं जाव पम्हुत्तरवडेंसगं ६।१७ परूवेई जाव से णं प०६६ पुढवी कायसंजमे एवं जाव कायसंजमे १७१२ बलिस्स ..... १७८ बुद्धे......... १२१२ बुद्धे जाव प्पहीणे ५५३१,४,७२१३,८४१२,६५१४;प० ४० बुद्धे जाव सम्बदुक्ख० ३०१२,५११४,५०६१ बे ते चउ पंच प० १६७ भद्दवए णं मासे कित्तिए णं पोसे णं फरगुणे णं वइसाहे णं मासे २६।३-७ भवित्ता जाव पव्वइए ७११३७५०२ भवित्ता णं जाव पवइए ८३.४ भविस्सइ य जाव अवट्टिए प० १३३ भूयाणंदे जाव घोसे ३२१२ महुरा जाव हत्थिणपुरं प० २४४ मुंडे जाव पव्वइए ५६२ मुंडे जाव पव्वइया ७७१२ मुसावायाओ जाव सब्वाओ रुइल्लप्पभं जाब रुइल्लुत्तरवडेंसग १७ लोगप्पभं जाव लोगत्तरवडेंसगं १३३१४ वइरावतं जाव वइरुत्तरवडेंसगं १३।१४ वायणा जाव अंगट्टयाए १०६३ वृत्ति ५० १७६ वृत्ति प० १३३ प० १०२ वृत्ति पण. १ पषण० ३५ प०१५४ वृत्ति केवलं संख्यापूरिता ३।२१ प०६५ १७११ ठा० ४।१५१ ४२११ ४२।१ १५॥३ ४२११ ५० १६७ २६२ १६५ १६५ प० १३३ ठा० २१३५५-३६१ वृत्ति १६०५ १६५ ३२१ ३।२१ ३१२१ प०६१ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा जाव संखेज्जा वायणा जाव से गं विजया एवं चेव जाव वासुदेवा वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सणंकुमारे जाव पाणए सत्तमाए णं पुढवीए पुच्छा सवणो जाव भरणी सिज्झिस्संति जाव अंतं सिभिस्सति जाव सव्वदुक्खाण ० प०११ प० ८६ प०६२ प०६१ ६८।४-६ ६५१-३ ५६०१ जं०२ ३२२२ ठा० २।३८१-३८४ प० १४३ प० १४१ ६६ चंद०१०१११ ५।२२:७१२३,८,१५,१०१२५; १३।१७:१५।१६,१६३१६ ११४६ ३३२४,४११८,६१७६२०११११६ १२।२०१४।१८,१७१२११०।१८, १६१५,२०।१७,२१३१४,२२६१७; २३३१३२४।१५:२५।१८२६।११; २७।१५:२८1१५:२६।१८,३०११६; ३१।१४,३२।१४,३३३१४ ४४२ ७२।४;७३१२,७४।१:७८२,८३१३; ८४१४;६५१५१००।४ ४२११ ४२११ वृत्ति' हा१७ ३।२१ २ ३३।१ दसा०३ २८१३ २८३ २७।१ २८१३ २८१३ २८३ २८३ ५० १७५ प० १७५ २४६ ४२।१ सिद्धाइं जाव प्पहीणाई सिद्धे जाव प्पहीणे सिद्धे जाव सम्वदुक्ख सुज्जतं जाव सुज्जुत्तरवडे सगं सेवणया सिवित्ता जाव सावासोक्व० सेहस्स जाव सेहे राइणि यस्स सोइदियधारणा जाव णोइंदियधारणा सोइ दियनिग्गहे जाव फासि दिय० सोतिदियईहा जाव फासिदियईहा सोतिदियाघाते जाव णोइंदियावाते हंता गोयमा !............ २८.३ १- वृत्तौ किञ्चद्भेदेन लभ्यते यथा-- ४२।१ जाव तिकरणात् 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिन्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे'त्ति दृश्यम् । ४४।२ जाच तिकरणेण 'बुद्धाइं मुत्ताई अंतयडाइ सव्वदुरूख रहीणाईति दृश्यम् । ५६१ जाव तिकरणात् 'अंतगडे सिद्ध बुद्ध मुत्ते' ति दृश्यम् । Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२ आलोच्य-पाठ तथा वाचनान्तर आलोच्य-पाठ परियावेणं [आयारो २।२, पृ० १७] यद्यपि चूर्णी वृत्तीच 'परियावेणं' इति पाठो व्याख्यातोऽस्ति, आदर्शष्वपि एष एव पाठो जाते। तथापि 'माया मे, पिया मे' इत्यादि पदानां अर्थप्रसंगतया 'परियारेणं' इति पाठस्थ परिकल्पना सहज मेव जायते । प्राचीन लिप्या रकारवकारयोः सादश्यात् एतत् परिवर्तनं नास्वाभाविकमस्ति । मानवा [आयारो ५२६३, पृ० ४३] वृत्तिकृता 'मानवा' मनुजाः इति विवृतम् । चूणिकृता च नैतत् पदं विवतम् । किन्तु 'एवं थंभे मायाए वि लोभे वि जोण्यन्वं' इति निर्देशः कृतः । तेन 'माणवा' इति पदस्य स्थाने 'माणओं' इति पाठस्य परिकल्पना जायते । अचिरं [आयारो ८।८।२०, पृ० ७१] चुर्णी वृत्तौ च 'अचिरं, पदं स्थानार्थे व्याख्यातमस्ति । यद्येतत् स्थानावाची स्यात् तदा 'अहर' मिति पाठः संगच्छते । 'अजिरं प्रांगणम,' इति तस्यार्थो भवेत् । 'अइर' इति अतिरोहितार्थवाची देशीशब्दो पि विद्यते । केनापि कारणेन इकारस्य चकारो जात इति प्रतीयते । अथवा चर्णिकारेण वैकल्पिक रूपेण कालाथें अचिरशब्दस्य प्रयोगो निर्दिष्टः, सोपि युक्तः स्यात् । एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए [आयारचूला ११२६, पृ० ६०] आयारचूलाया: पाठ-संशोधने षड्आदर्शाः प्रयुक्ताः, चूर्णिवृत्तिश्च । तत्र पञ्चादशेषु उक्तपाठस्य ये पाठ-भेदास्ते तत्रैव पादटिप्पणे प्रदर्शिताः सन्ति । वृत्ती (पत्र ३००) 'एस विलंगयामो सेज्जाए' इति पाठो व्याख्यातोस्ति---"गृहस्थश्चानेनाभिसन्धानेन संस्कुर्याद्-- यथेष साधुः शय्यायाः संस्कारे विधातव्ये 'विलुंगयामो' त्ति निर्ग्रन्थ: अकिञ्चन इत्यत: स गृहस्थः कारणे संयतो वा स्वयमेव संस्कारयेदिति ।” अस्माभिः 'घ' प्रत्यनूसारी पाठः स्वीकृतः । चूर्णावपि (प० ३३२) 'एस खलु भगवया' इति पाठो लभ्यते । सेज्जाए अक्खाए' ४१ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अत्र दोषशब्द: अध्याहर्तव्यः । वस्तुतः उक्तपाठः व्याख्यागतः प्रतीयते । 'संथरेज्जा' इति पाठस्यानन्तरं 'तम्हा से संजए' इत्यादि पाठः स्यात्तदानीमपि स खण्डितो न प्रतिभाति । वृत्तिकृता उक्तपाठस्य या व्याख्या कृता, तथापि पूर्वानुमानस्य पुष्टिर्जायते । वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'विलुंग्यामो' पाठ आसीत् स केषुचिदेव आदर्शेषु उपलभ्यते नतु सर्वेषु । कप्पस [ इण्णगसमवाय सू० २१५, पृ० ९४१ ] अत्र 'कप्पस्स' इति पाठस्याशयो वृत्तिकृता कल्पभाष्यत्वेन सूचितः, वाचनान्तरे च पर्युषणा कल्पत्वेन सूचितः, यथा -- ' कप्पस्स समोसरणं नेयन्त्र' ति इहावसरे कल्पभाष्यक्रमेण समवसरण काव्येया, सा चावश्यकोक्काया न व्यतिरिच्यते, वाचनान्तरे तु पर्युषणाकल्पोक्तक्रमेणेत्यभिहितम् (वृत्ति, पत्र १४४ ) । पर्युषणाकल्पे समवसरणवक्तव्यता इत्थमस्ति-- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥ २०१ || सेकेणट्ठे भंते ! एवं दुच्चइ - - समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्या ? समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे इंदभूई अणगारे गोयमे गोतेणं पंच समणसयाइ वाइ, मज्झिमे अणगारे अग्गिभूई नामेण गोयमे गोतेणं पंच समणसयाइ वाएइ, कणीयसे अणगारे वाभूई नामें गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाइ वाएइ, येरे अज्जवियत्ते भारदाये गोतेणं पंच समणसयाइ वाएइ, थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गोते पंच समणस्याइ वाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिट्ठे गोते अधुलाई समणसयाई वाएइ, थेरे मोरियपुत्ते कासवगतेणं अधुट्ठाइ समणसयाई वाएइ, थेरे अकंपिए गोयमे गोत्तेणं थेरे अयनभाया हारियायणे गोते ते दुन्निव थेरा तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाइति, थेरे मेयज्जे थेरे य प्पभासे एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोते तिन्नि तिन्ति समणसयाई वाएंति, से एतेणं अट्ठेणं अज्जो ! एवं वुच्चइ -- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्या ॥ २०२॥ सव्वे एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्का रस वि गणहरा दुवाल संगिणो चोद्दसपुब्विणो मतगणपिडगधरा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्तिएणं पाणणं कालगया जाव सव्वदुक्खप्पहीणा । थेरे इंदभूई थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परिनिब्बुया || २०३ || जे इमे अज्जत्ताते समणा निग्गंथा विहरंति एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवञ्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना || २०४ || कल्पसूत्र, पृ० ६०, ६१ प्रस्तुताङ्गस्य उपसंहारसूत्रे ऋषि-यति-मुनि वंशानां वर्णनस्योल्लेखोस्ति । वृत्ति कृतास्य संबन्धः पर्युषणाकल्पगतसमवसरणप्रकरणेन सहयोजितः, यथा - गणधरव्यतिरिक्ताः शेषा निशिष्या ऋषयस्तद्वंशप्रतिपादकत्वादृषिवंश इति च तत्प्रतिपादनं चात्र पर्युषणाकल्पस्य ऋषिवंशपर्यवसानस्य समवसरणप्रक्रमेण भणितत्त्वादत एव यतिवंशो मुनिवंशश्चैतदुच्यते, यतिमुनिशब्दयोः ऋषिपर्यायत्वात् । वृत्ति, पत्र १४७, १४८ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वोक्तसमर्पणेन पर्युषणाकल्पस्य २०१ सूत्रात् २०४ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणं जायते, किन्तु वृत्तिकृता ऋषिवंशस्य यद् व्याख्यानं कृतं तेन २०१ सूत्रात् २२३ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणामावश्यक भवति । अत्र महती समस्या वर्तते । यदि पुर्ववर्ति समर्पणं मान्यं क्रियेत तदा ऋषिवंशस्य वर्णनं नान्यत्र क्वापि समुपलभ्यते । यदि च ऋषिवंशस्य वर्णनं समवसरणप्रक्रमेण सह संबध्यते तदा पूर्वोक्तसमर्पणस्याप्रयोजनीयता सिध्यति । वृत्तिकारेण नास्या असंगतेः कापि चर्चा कृता । किमत्र रहस्यमिति निश्चयपूर्वक वक्तुं न शक्यते, तथापि संभाव्यते समवसरणस्य संक्षेपीकरणसमये किंचित् परिवर्तनं जातम् । ऋषिवंशवर्णनम् -- समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अज्जमूहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबूनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते। थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायगसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसेज्जभवस्स मणगपि उणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायणसगोत्ते ॥२०॥ संखितवायणाए अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तं०--थेरस्स णं अज्जजसभइस्स तुंगियायणसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोत्ते, थेरे अज्ज भद्दबाहु पाइणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढर सगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्जथूलभदस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोते थेरे अज्जसुहत्थी वासिटसमोत्ते। थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-सुट्टियसुपडिबुद्धा कोडियकाकंदगा वाघावच्चसगोत्ता । थेराणं सुट्रियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदगाणं वग्यावच्चसमोत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्जइददिन्ने कोसियमोत्ते। थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जदिन्ने गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्ज दिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते । थेरस्स ण अज्जसीहगिरिस्स जातिसरस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले थेरे अज्जपोगिले थेरे अज्जजयते थेरे अज्जतावसे । थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया, थेराओ अज्जपोगिलाओ अज्जपोगिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताजो अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥२०६।। वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभद्दाओ परओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा-थेरस्स गं अज्जजसभहस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जभहवाह पाईणसगोत्ते, थेरे अज्जसंभूयविजये माढरसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जभबाहस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिण्णाया होत्या, तं०-थेरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जण्णदत्ते थेरे सोमदत्ते कासवगोते णं । थेरेहितो णं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एत्थ णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्स ण इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहातामलित्तिया कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासी खब्बडिया ॥२०७॥ थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयम्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा--- नंदणभद्दे उवनंदभद्द तह तीसभद्द जसभद्दे । थेरे य सुमिणभद्दे मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य ॥११॥ थेरे य थूलभद्दे उज्जुमती जबुनामधेज्जे य । थेरे य दीहभद्दे थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥ थेरस्स णं अज्जसंभूइविजयस्स माढरस गोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिन्नाताओ होत्था, तं जहा जक्खा य जक्खदिन्ना भूया तह होइ भूयदिन्ना य । सेणा वेणा रणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥१॥ ॥२०८।। थेरस्स णं अज्जथूलभहस्स गोयगोत्तस्स इमे दो थेरा अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहाथेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगात्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्टसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्छसगोत्तस्स इमे अट्ट थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं०-थेरे उत्तरे थेरे बलिस्सहे थेरे धण थेरे सिरिड थेरे कोडिन्ने थेरे नागे थेरे नागमित्त थेरे छलुए रोहगुत्ते कोसिए गोत्तेणं। थेरेहितो गं छलुएहितो रोहगुत्तेहिंतो कोसियगोत्तेहितो तत्थ णं तेरासिया निग्गया। थेरेहिंतो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्थ गं उत्तरबलिस्सहगणे नाम गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहा- कोसंबिया सोतित्तिया कोडवाणी चंदनागरी ।।२०६॥ थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिट्टसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-- थेरे स्थ अज्जरोहण भद्दज से मेहगणी य कामिड्ढी। सुट्ठियसुप्पडिबुद्धे रक्खिय तह रोहगुत्ते य ॥१॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते गणी य बंभे गणी य तह सोमे । दस दो य गणहा खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ ॥२१॥ थेरेहितो णं अज्जरोहणेहितो कासयतेहितो तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए। तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ छच्च कुलाइएवमाहिज्जति । से कि तं साहाओ? एवमाहिज्जंति --उदंबरिज्जिया मासपूरिया मतिपत्तिया सुवन्नपत्तिया, से तं सहाओ से किं तं कुलाइ ? एवमाहिज्जति, तं जहा पढमं च नागभूयं बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं चउत्थयं हथिलिज्ज तु ॥१॥ पंचमगं नंदिज्जं छ8 पुण पारिहासियं होइ । उद्देहगणस्सेते छच्च कुला होति नायव्वा ॥२॥ ॥२११॥ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ थेरेहितो गं सिरिगुत्तेहितो णं हारियसगोत्तेहितो एस्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ सत्त य कुलाई एवमाहिज्जति । से कि तं साहातो? एवमाहिज्जंति, तं जहा - हारिय'मालागारी संकासिया गवेधूया वज्जनागरी, से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं? एवमाहिज्जंति, तं जहा पढमेत्थ वत्थलिग्जं बीयं पुण वीचिधम्मक होइ । तइयं पुण हालिज्ज चउत्थगं पूसमित्तेजं ॥१॥ पंचमग मालिज्जं शुद्धं पूण अज्जवेडयं होई। सत्तमग कण्हसह सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥ ॥२१२॥ थेरेहितो भहजसे हितो भारद्दायसगोत्तेहितो एस्थ णं उड़वाडियगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिन्नि कुलाई एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? एवमाहिअंति, तं०- चंपिज्जिया भद्दिज्जिया काकदिया मेहलिज्जिया, से तं साहाओ से कि तं कलाई ? एवमाहिज्जति-- भहज सियं तह भद्द गुत्तियं तइयं च होइ जसभई । एयाई उडुवाडियगणस्स तिन्नेव य कुलाइं॥१॥ ॥२१३।। थेरेहितो णं कामिड्ढिहितो कुंडिल सगोत्तेहितो एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि सहाओ चत्तारि कुलाइ एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ? एव०सावत्थिया रज्जपालिया अन्तरिज्जिया खेमलिज्जिया, से तं साहाओ। से कि तं कूलाई? एव० गणिय मेहिय कामड्ढियं च तह होइ इदपुरग च । एयाई वेसवाडियगणस्स चत्तारि उकुलाइ ॥१॥ ॥२१४।। थेराहतो णं इसिगोत्तेहितो णं काकदएहितो वासिट्रसगोत्तेहितो एत्थ णं माणवगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिण्णि य कुलाइ एव० । से कि तं साहायो ? साहाओ एवमाहिति-कास विज्जिया गोयमिज्जिया वासिट्रिया सोरट्रिया, से तं साहाओ। से किं तं कुलाई? २ एवमाहिज्जंति, तं जहा-- इसिगोत्तियऽत्थ पढम, बिइयं इसिदत्तियं मूणेयध्वं । तइयं च अभिजसंत तिन्नि कुला माणवगणस्स ॥१॥ ॥२१॥ थेरेहितो णं सुट्ठियसुप्पडिबुद्धेहितो कोडियकाकंदिरहितो वग्घावच्चसगोत्तेहितो एत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाइएव० ! से कि तं साहाओ ? २ एवमाहिज्जंति, तं जहा~ उच्चानागरि विज्जाहरी य वइरी य मज्झिमिल्ला य । कोडियगणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाओ ।।१।। से किं तं कुलाइ? २ एव० तं जहा पढमेत्थ बंभलिज्जं बितियं नामेण वच्छलिज्जंतु । ततियं पूण वाणिज्ज चउत्थयं पन्नवाहणयं ॥१॥ ॥२१६॥ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेराणं सुट्टियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदाणं वग्धावच्चसगोत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या तं जहा-थेरे अज्जइंददिन्ने थेरे पियगथे थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्ते णं थेरे इसिदते थेरे अरहदत्ते। थेरेहिंतो गं पियगंथेहितो एत्थ ण मज्झिमा माहा निग्गया । थेरेहितो णं विजाहरगोवाहितो तत्थ ण विज्जाहरी साहा निम्मया ॥२६७।। थेरस्त णं अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिन्ने थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया वि होत्या, तं०-थेरे अज्जसंतिमेणिर माढरसगोते थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोते । थेरेहितो ए अज्जसतिसेणिएहितो णं माढरसगोत्तेहितो एत्थ ण उच्चानागरी साहा निग्गया ॥२१८।। थेरस्स ण अज्ससंतिसेणियस्स माढरसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं० ---थेरे अज्जसे णिए थेरे अज्जतावसे थेरे अज्जकुबेरे येरे अज्जकुबेरे थेरे अज्जइसिपालिते । थेरेहिनो णं अज्जसेणितेहिंतो एत्थ णं अज्जोणिया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जतावसे हिनो एत्य णं अज्जतावासी साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्ज कुबेरेहितो एत्थ णं अज्ज कुवेरा साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जइसिपालेहितो एत्थ णं अज्जइसिपालिया साहा निग्गया ॥२१॥ थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जातीसरस्स कोसियगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं० ----थेरे धणगिरी थेरे अज्जवइरे थेरे अज्जसमिए थेरे अरहदिन्ने । थेरेहितोपं अज्जसमिएहितो एत्थ णं बंभदेवीया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जवहरेहितो गोयमसगोत्तेहितो एत्थ णं अज्जव इरा साहा निग्गया ॥२२॥ थेरस्स अज्जवइरस्स गोत्तमसगोत्तमस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिन्नाया होत्था, तं० ----थेरे अज्जवइरसेणिए थेरे अज्जपउमे थेरे अज्जरहे । थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिहितो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। थेरेहिंतो णं अज्जरहेहितो एत्य णं अज्जजयंती साहा निम्मया ॥२२१।। थेरस्म णं अज्जरहरा बच्छसगोत्तस्स अज्जपूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते । थेररस णं अज्जयूस गिरिरस कोसियगोत्तस्स अज्जफरगुमित्ते थेरे अंतेवासी गायमसगुत्ते ।।२२२॥ वंदामि फरगुमित्तं च गोयपं धणगिरि च वासिटुं । कोच्छि सिवभूइ पि य कोसिय दोज्जितकंटे य॥१॥ त वंदिऊण सिरसा चित्तं वदामि कासवं गोत्त । णक्खं कासवगोत्तं रक्खं पि य कासवं वदे ।।२।। वंदामि अज्जनागं च गोयम जेहिलं च वासिदें। विण्ठं माढरगोतं कालगवि गोयमं वंदे ॥३॥ गोयमगोत्तभारं सप्पलयं तह य भयं वंदे। थेरं च संघवालियकासवगोत्तं पणिक्यामि ॥४॥ वंदामि अज्ज हत्थिं च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण' पढममासे कालगयं चेतसुद्धस्स ॥५॥ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदामि अज्जधम्मं च सुव्वयं सीसलद्धिसंपन्न । जस्स निक्खमणे देवो छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥६॥ हत्थं कासवगोतं धम्म सिवसाहगं पणिवयामि । सीहं कासवगोतं धम पि य कासवं बंदे ॥७॥ सुत्तत्यरयणभरिए खमदममद्दव गुणेहि संपन्ने । देविडिढखमासमणे कासवगोत्ते पणिवयामि ॥ ॥२२३॥ कल्पभाष्ये समवसरणवक्तव्यता--- गाथा १९७७-१२१७ वृहत्कल्पसूत्र, भाग २, पृ० ३६६-३७७ आवश्यकनियुक्ती समवसरणवक्तव्यता---गा० ५४५-६५८ आवश्यकनियुक्तिमलयगिरीया वृत्ति, पत्र ३०१-३३६ वाचनान्तर [आयारचूला १५॥३५ के पश्चात् प० २४०] स्थानाङ्गसूधे महापद्मप्रकरणे (६२) वृत्तिकारप्रदर्शिते वाचनान्तरे "कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जान सुहुपहुयास गेति व तेयसा जले।” इति पाठे आया रचूलाया भावनाध्ययनस्य समर्पणं सूचितमस्ति। वृत्तिकृता श्रीमदभय देव (रिणाऽपि एत। संवादि समुल्लिखितम्-"यया भाबनायामाचाराद्वितीयश्रुतस्कन्ध-पञ्चदशाध्ययने तथा अयं वर्णको व.'च्य इति भावः, कियदरं यावदित्याह-'जाव सुहुये' त्यादि" (वृत्ति, पत्र ४४०)। औपपातिकसूत्रे (सूत्राङ्क २७, वृत्ति पृष्ठ ६६) “वरमाणपदानां च भावनाध्ययनायुक्ते इमे संग्रहगाथे-- कसे सखे जीवे, गयणे वाए य सारए सलिले ।। पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे । कुंजर बसहे सोहे, नगराया चेव सागरमखोहे । चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव मुहुयहुए ॥" इति वृत्तिकृता भावनाध्ययनगतसंग्रहगाश्रयोः सूचनं कृतमस्ति । एतयोद्वयोः समर्पण-सूचनयोः सन्दर्भ भावनाध्ययनं दृष्टं तदा क्वापि समर्पितः पाठो नोपलल्यः । भावनाध्ययनस्य वृत्तिरत्यन्तं संक्षिप्ताऽसि, तत्र तस्य पाठय नास्ति कोपि संकेत: आदर्शषु चापि जस्थानपलब्धिरेव । चुगौं उक्तपाठस्य व्याख्या समुपलब्धा तेनेति निर्णयः कर्तुं शक्यते---णिव्याख्याताज पाठात् आदर्शतः पाठो भिन्नोस्ति । अयं वाचनाभेदः चूर्णिकारस्य समक्षमासीन्नवेति नानुमान क किञ्चित् साधन लभ्यते । स्थानाङ्गस्य वाचनान्तर-पाठे भावनाध्ययनस्य समर्षणमस्ति तस्यं सम्बन्धः चण्यं नुसारीपाटेनव विद्यते, तथैव औपपातिकवृत्तेः सूचनस्यापि सम्बन्धस्तेनैव । Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ स्थानाङ्ग महापद्मप्रकरणे एव स्वीकृतपाठेपि 'जहा भावणाते' इति समर्पणमस्ति । तस्यापि सम्बन्धश्चयॆनुसारिपाठेन विद्यते । आलोच्यमानपाठः किञ्चिद् भेदेनानेकेषु आगमेषु लभ्यते । तस्य तुलनात्मकमध्ययनमत्र प्रस्तूयते । आचाराङ्गचूर्णी पूर्णः पाठो विवृतो नास्ति । स. स्थानाङ्गस्य, कल्पसूत्रस्य, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः, आचाराङ्गचूर्णेश्च सम्बन्ध-समीक्षा-पूर्वक संयोजित: । स च इत्थं सम्भाव्यते--- संयोजित पाठः तए णं से भगवं अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए जाव गुत्तबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नसोते निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव अप्पडिहयगई जच्चकणगं पिव जायरूवे आदरिसफलगे इव पागडभावे कुमो इव गुत्तिदिए पुखरपत्तं य निरुवले वे गमणमिव निरालंबणे अणिलो इव निरालए चंदो इव सोमलेसे सूरो इव दित्ततेए सागरो इव गंभीरे विहग इव सव्वओ विप्पमुक्के मंदरो इव अप्पकंपे सारयसलिलं व सुद्धहियए खग्गविसाणं व एगजाए भार डपक्खी व अप्पमत्ते कुंजरो इव सोंडीरे वसभे इव जायत्थामे सीहो इव दुद्ध रिसे वसुंधरा इव सव्वभासविसहे सुहुयहुयासणे इव तेयसा जसंते। [कंसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कूम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥शा कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे । चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥] नस्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भवइ । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तंजहा--- अंडरा वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जंणं दिसं इच्छइ तं तं गं दिसं अपडिबद्धे सूचिभूए लहुभूए अणप्पगथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरई। तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुतरेणं दसणेणं अणुतरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं महदेणं लाघवेणं खंतीए मुत्तीए सक्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोवचिय-फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने । तर णं से भगवं अरहे जिणे जाए केवली सन्दन्न सव्वदरिसी सनेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जेव जाणइ पास इ, तं जहा-आगति गति ठिति चयणं उववायं तक्कं मणोमाणसियं भूत्तं कर्ड परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी, तं तं कालं मणसवयसकाएहि जोगेहि बदमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे अजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहरह। तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुयासुरं लोग अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं पंचमहन्वयाई सभावणाई छजीवनिकाए धम्म अक्खाइ देसमाणे बिहरइ], तंज हा--पुढविकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए। Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૨ स्नानाङ्ग (ह|६२) : तस्स णं भगवंतस्स' साइरेगाई दुवालसवासाइं निच्वं वोसटुकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उपज्जिहति तं दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोगिया वा, ते सव्वे सम्मं सहिस्सइ खमिस्सर तितिविates अहियासिस्सइ । तणं से भगवं अणगारे भविस्सर इरियासमिए भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभंडमत्तनिवखेवणासमिए, उच्चारपासवणखेल जल्लसिंधाणपारिट्ठावणियासमिए, मणगुते, वयगुत्ते, कायगुते, गुत्ते, गुतिदिए गुत्तवं भयारी अममे अकिंचणे छिन्नगंथे [वृ० पा० किन्नगंथे] निरुपले वे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहुयहुयासणे तिव तेयसा जलंते । कंसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कुंजर वसहे सीहे, नगराया चैव सागरम खोहे | चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चैव सुहुयहुए ॥२॥ नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबधे भविस्सइ, सेय परिवधे चउब्विहे पन्नत्ते, तंजहाअंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छड़ तं णं तं गं दिसं अपडिवद्धे सुचिभूए हुए अणुप्पगंथे संजमेण अप्पाणं भावेभाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेण अणुत्तरेण दंसणेणं अणुत्तरेण चरितेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दद्वेणं लाघवेणं स्वतिए मुत्तीए गुत्तीए सच्च- संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोय- विय-[चिय ?] - फल- परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पा भावेमाणसागंतरियाए बट्टमाणस्स अनंते अणुतरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति । तणं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति, केवली सव्वण्णसव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए सव्व जीवाणं आगई गतिं ठियं चयणं उववाय तक्क मणोमासि भुतं कडं परिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्त भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सव्वलोहे सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सर । तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुआसुरं लोगं अभिसमिच्चा समणाणं निग्गयाण सणेरइए जाव पंचमहव्वयाई सभावणाई छजीवनिकाया धम्मं देमेमाणे विहरिस्सति । कल्पसूत्र : तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए इरियासभिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभंडमत्त निक्खेवणासमिए, उच्चारपासवण खेल सिंघाणजल्लपारि ठावणियासमिए, मणसमिए, वइसमिए, कायसमिए, मणगुत्तं वयगुत्ते, कायगुत्ते, गुते, गुत्तिदिए, गुत्तबंभयारी, अकोहे, अमाणे, अमाए, अलोभे, संते, पसंते, उवसंते परिनिब्बुडे, अणासवे, अममे, अकिंचणे, छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंस पाई इव मुक्कतोये १, संखो इव निरंजणे २, जीवो इव अप्पडियगई ३, गगणं पिव निरालंबणे ४, १. अस्य स्थाने 'से णं भगवं' युज्यते । Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायुरिव अप्पडिबद्धे ५, सारयसलिलं व सुद्धहियए ६, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे ७, कुम्मो इव गुक्ति दिए ८, खग्गि विसाणं व एगजाए ६, विहग इव विप्पमुक्के १०, भारुडपक्खी इव अप्पमत्ते ११, कुंजरो इव सोंडीरे १२, वसभो इव जायथामे १३, सीहो इव दुद्धरिसे १४, मंदरो इव अप्पकंपे १५, सागरो इव गभीरे १६, चंदो इव सोमलेसे १७, सूरो इव दित्तनेए १८, जच्चकणगं व जायस्वे १६, वसुंधरा इव सब्वभासविसहे २०, सुहुयहुयासणी इव तेयसा जलंते २१ । एतेसि पदाणं इमातो दुन्नि संघयणगाहाओ कंसे संखे जीवे, गगणे वायू य सरयसलिले य । पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे ॥१॥ कंजरे बसभे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे ।। चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥ नत्थि णं तरस भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधो भवति । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालो भावओ। दवओ णं सचित्ताचित्तमीसिएसु दन्वेसु । खेत्तओ ण गामे वा नगरे वा अरणे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा । कालओ णं समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरते वा पक्खे वा मासे वा उवा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकालसंजोगे वा । भावओ णं कोहे वा माणे वा मायारा वा लोभे या भये वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अन्भक्खाणे वा पेसन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा। तस्स गं भगवंतस्स नो एवं भव। से णं भगवं वामावासवज्जं अट्ट गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराईए वाचीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेढुकचणे समदुवखसुहे इहलोगपरलोगअपडिवद्ध जीवियमरणे रिवकखे संसारपागामी कम्पसंगनिग्घायणट्टाए अब्भुट्टिए एवं च णं विपरइ । तस्स णं भगवंतस्स अणु त्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेरेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुतरेणं वोरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेण महवेणं अणत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणु त्तराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए तुवीए अणत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचिरियसोवचक्ष्यफलपरिनिव्वाण मग्गेणं अप्पाणं भावेमाणरस दुवालस संवच्छराई विइक्कताइ। तेरसमस संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पवखे वसाहमुद्धे तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीए पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिभिवटाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स बहिया उजवालियाए नईए तीरे वियावत्तस्म चेईयस्स अदूरसामंते सामागस्स गाहावइस्स कट्रकरणसि सालपायवस्स अहे गोदोहियाए उक्कुडुयनिसिज्जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्युत्तराहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवल वरनाणदसणे समुन्पने । । तए णं से भगवं अरहा जाए जिणे केवली सम्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणयासुररस लोगस्स परियायं जाणइ पासइ, सव्यलोए सव्वजीवाणं आगई गई लिइ चवणं उववायं तवक मणो Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणसियं भुत्तं कडं पडिसेवियं आविकम्म रहोकम्म अरहा अरहस्सभागी तं तं कालं मणवयणकायजोगे वट्टमाणाणं सब्वलोए सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्ष २ (पत्र १४६) तए णं से भगवं समणे जाए इरिआसमिए जाव परिट्ठावणिआसमिए मणसमिए क्यसमिए कायसमिए मण गुत्ते जाव गुत्तबंभयारी अकोहे जाव अलोहे संते पसंते उवसते परिणिबुडे छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे जच्चकणगं व जायरूवे आदरिसपडिभागे इव पागड भावे कम्मो इव गुत्तिदिए प्रक्खरपत्तमिव निरुवलेवे गगणमिव निरालंबणे अणिले इव णिरालए चंदो इव सोमदंसणे सुरो इव तेअंसी विहग इव अपडिबद्धगामी सागरो इव गंभीरे मंदरो इव अपे पूढवी विव सब्वफासविसहे जीवो विव अप्पडिहयगइत्ति । णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कधइ पडिबंधे, से पडिवंबे चउविहे भवंति, तंजहा-दवओ खित्तओ कालओ भावओ, दव्वओ इह खलु माया मे माया मे भगिणी में जाव संगथसंथुआ मे हिरणं मे सुवण्णं मे जाव उवगरणं मे, अहवा समासओ सचित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दव्वजाए सेवं तस्स ण भवइ, खित्तओ गामे वा णगरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगणे वा एवं तस्स ण भवइ, कालओ थोवे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊए वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा अन्नयरे वा दीहकालपडिबंधे एवं, तस्स ण भवइ, भावओ कोहे वा जाव लोहे वा भए वा हासे वा एवं तस्स न भवइ, से णं भगवं वासावासवज्ज हेमंतगिम्हासु गामे एगराइए णगरे पंचराइए ववगयहा ससोगअरइभवपरित्तासे णिम्भमे णिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणं अट्ठठे चंदणाणुलेवणे अरत्ते लेटेठुमि कंत्रणमि असमे इह लोए अपडिवद्ध जीवियमरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्घायणाए अन्भुदुिए विहरइ। तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्य एगे वाससहस्से विइकते समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिआ सगडमुहंसि उज्जाणंसि णि गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरिआए वटमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कारसिए पुवण्ह कालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अणुत्तरेणं ताणेणं जाव चरित्तेणं अणुत्तरेण तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएण विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीरा मुत्तीए तुदीए अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं सुचरिअसोवचिअफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणंते अणत्तरे णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपणे केवल-वरनाणदंसणे समुप्पण्णे जिणे जाए केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सरइअतिरियनरामरस्स लोग्गरस पज्जवे जाणइ पासइ, तंजहा-आगई गई टिइं उबवायं भूतं कडं पडिसेविअं आवीकम्म रहोकम्मं तं तं कालं मणवयकायजोगे एयमादी जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग म्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे एस खलु मोक्खमयो मम अण्णेसि च जीवाणं हियसुहणिस्सेसकरे सव्वदुक्खविमोक्खणे परम सुहसमाणणे भविग्सइ । तते णं से भगवं समणाणं निग्गंथाणं य णीगंथीण य पंच महब्वयाइ सभावणगाई छच्च जीवणिकाए धम्म देसेमाणे विहरति, तंजहापूढविकाइए भावणागमेणं पंच महव्वाईसभावणागाई भाणिअव्वाइति । सुत्रकृतांगे (२१६४-६६) प्रश्नव्याकरणे (संवरद्वार ५।११) रायपसेणइयसूत्रे (सुत्रांक ८१३८१६) औपणातिकसूत्रे (सूत्र २७-२६, १५२,१५३,१६४,१६५) चालोच्यमानपाठेनांशिकी क्वचिच्च तदधिकापि तुलना जायते। किन्तु एतेषां सूत्राणां पाठा: अनगार-वर्णन-संबद्धाः सन्ति, ततः पूर्णा तुलना प्रस्तुतपाठेन न नाम जायते । Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि-पत्र पंक्ति Mi555mmmnA 1०ी Kwxx WIKा rowY-9 murrord अशुद्ध मंदस सत्थ दियंति जाणे पाव समण णियाणाओ णिज्झोसइत्ता णियटुंति तितिक्खा० मंदस्स सत्थं वयंति जाण पावं समणु० णियाणओ णिज्झोस इता पियट्टति तितिक्खा उवगरण-पदं पाओवगमण-पदं भूज्जियं अणासेवियं पट्टणंसि जाणेज्जा उवणिमंतेज्जा x अज्जियं अणासेविय पट्टणसि লাইন্স उवाणिमतेज्जा १०३ १६४ १७४ १७८ अमेसणिज्ज वियडेण पेहाए १८१ १८७ पूण २६६ ३४८ अणसणिज्ज वियडण पहाए पण सोस परक्कमण्ण गंधमंत मारत्धा मच्छा -पदं अलमंथ ३४८ सीसं परक्कमण्ण गंधमतं गारत्था मुच्छा -पदं अलमंथू ३६३ ६२२ ६५२ ८९५ मडे नगर २६६ ३१० निगर पाठान्तर विधीत समक्खाय आय तेउ अतोमतेण घत विधति समक्खातं आयं ३ ०४ Marur m तेउ अतोमतेणं ४०० ४३५ धृतं Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education temational For Priyale & Personal use only www.jalnelibrary.org