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________________ * ५१० दव्व-पदं १३८. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव, अपरिणया चैव ॥ जीव- णिकाय-पदं १३६. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव ॥ १४०. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णा चेव || १४१. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा --- गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव ॥ ठाणं १४२. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चैव ॥ १४३. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमाaणगा चैव ॥ दव्व-पदं १४४. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव ॥ जीव- णिकाय-पदं १४५. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अनंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ॥ १४६. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा -- अनंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चैव ॥ १४७. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा -- अनंत रोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव || १४८. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अनंत रोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ॥ १४६. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अनंत रोगाढा चैव परंपरोगाढा चैव ॥ दव्य-पदं १५०. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा - अनंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ।। १५१. दुविहे काले पण्णत्ते, तं जहा ओसप्पिणीकाले चेव, उस्सप्पिणोकाले' चेव || १५२. दुविहे आगासे पण्णत्ते, तं जहा- लोगागासे चेव, अलोगागासे चेव ॥ ३. उवस्सप्पिणी ० (ख); ओस्सप्पिणी (ग) 1 १. सं० पा० - एव जाव वणस्सइकाइया 1 २. सं० पा०-- जाव दव्वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003559
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages472
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size8 MB
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