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________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) ५२६ दो विज्जुप्पभा, दो अंकावतो, दो पम्हावती, दो आसोविसा, दो सुहावहा, दो चंदपव्वता, दो सूरपवता, दो णागपव्वता, दो देवपव्वता, दो गंधमायणा, दो उसुगारपव्वया, दो चुल्लहिमवंतकूडा, दो वेसमणकूडा, दो महाहिमवंतकूडा, दो वेरुलियकूडा, दो णिसढकूडा, दो रुयगडा, दो गीलवंतकूडा, दो उवदंसणकूडा, दो रुप्पिकूडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरिकूडा, दो तिगिछिकूडा ॥ ३३७. दो पउमद्दहा, दो पउमद्दहवासिणीओ सिरीओ देवीओ, दो महापउमद्दहा, दो महाप उमद्दहवासिणीओ हिरीओ देवीओ, एवं जाव' दो पुंडरीयदहा, दो पोंडरीयद्दहवासिणीओ लच्छीओ देवीओ।। ३३८. दो गंगप्पवायदहा जाव' दो रत्तावतोपवातद्दहा ।। ३३६. दो रोहियाओ' जाव' दो रुप्पकलाओ, दो गाहवतीओ', दो दहवतीओ, दो पंकवतीओ', दो तत्तजलाओ, दो मत्तजलाओ, दो उम्मत्तजलाओ, दो खीरोयाओ', दो सीहसोताओ', दो अंतोवाहिणीओ, दो उम्मिमालिणीओं, 'दो फेणमालिणीओ, गंभीरमालिणीओ ॥ ३४०. दो कच्छा, दो सुकच्छा, दो महाकच्छा, दो कच्छावती, दो आवत्ता, दो मंगलवत्ता, दो पुक्खला, दो पुक्खलावई, दो वच्छा, दो सुवच्छा, दो महावच्छा, दो वच्छगावती, दो रम्भा, दो रम्मगा. दो रमणिज्जा, दो मंगलावती, दो पम्हा, दो सुपम्हा, दो महपम्हा", दो पम्हगावती, दो संखा, दो णलिणा, दो कुमुया, दो सलिलावती, दो वप्पा, दो सुवप्पा, दो महावप्पा, दो बप्पगावती, दो वग्गू, दो सुवग्गू, दो गंधिला, दो गंधिलावती ॥ दो खेमाओ, दो खेमपुरोओ, दो रिट्ठाओ, दो रिटुपुरोओ, दो खग्गीओ, दो मंजूसाओ, दो ओसधीओ", दो पोंडरिगिणीओ दो सुसीमाओ, दो कुंडलाओ, दो अपराजियाओ, दो पभंकराओ, दो अंकावईओ, दो पम्हावईओ, ३४१. १. ठा० २०२८७-२८६ । ६. वेगवती (वृपा)। २. ठा० २।२६४-३०० ।। ७. खारोआओ (क, ग, वृ); खीरोदाओ (वृपा)। ३. रोहियसाओ (ग); 'दो रोहियाओ' इत्यादौ ८. सीयसोताओ (वृपा)। नद्यधिकारे गङ्गादीनां सदपि द्वित्वं नोक्तं, ६. उंमिणमा° (ख)। जम्बुद्वीपप्रकरणोक्तस्य -- "महाहिमवंताओ १०. दो गंभीरमालिणीओ, दो फेणमालिणीओ वासहरपव्वयाओ महापउमद्दहाओ दो महा- (वृपा)। नदीओ पवहंति" इत्यादिसूत्रक्रमस्याश्रयणात्, ११. महा° (क, ग)। तत्र हि रोहिदादय एवाप्टी श्रूयन्त इति(वृ)। १२. उसुहीओ (ख) । ४. ठा० २१२६०-२६३ । १३. पोंडर ° (ख)। ५. गंधावतीओ (क, ग)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003559
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages472
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size8 MB
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