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ठाण
१०८. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे अचेलए सचेलियाहि णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे
णातिक्कमति, तं जहा -- १. खित्तचित्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । २. "दित्तचित्ते' समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । ३. जक्खाइटे समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहि अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । ४. उम्मायपत्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति । ५. णिग्गंथीपवाइयए समणे णिगंथेहि अविज्जमाणेहि अचेलए सचेलियाहिं
णिग्गंथीहि सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ॥ आसव-संवर-पदं १०६. पंच आसवदारा पण्णत्ता, तं जहा–मिच्छत्तं, अविरती, पमादो, कसाया',
जोगा। ११०. पंच संवरदारा पण्णत्ता, तं जहा-संमत्तं, विरती, अपमादो, अकसाइत्तं
अजोगित्तं ।। दंड-पदं १११. पंच दंडा पण्णत्ता, तं जहा--अट्ठादंडे, अणट्ठादंडे, हिंसादंडे, अकस्मादंडे, दिट्टी
विप्परियासियादंडे ॥ किरिया-पदं ११२. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया',
अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया ॥ ११३. मिच्छादिट्टियाणं णेरइयाणं पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा'--'आरंभिया,
यावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादसणवत्तिया ।
१. खेत्त इत्ते (क, ख, ग)।
४. कसाता (क, ख, ग)! २. सं० पा०–एवमेतेणं गमएणं दित्तचित्त । ५. अकम्हा ° (ख)। ___ जक्खातिढे उम्मायपत्ते ।
६. मातावत्तिता (क, ख, ग)। ३. वित्ततित्ते (क, ख, ग)।
७. सं० पा०-तंजहा जाव मिच्छादसणवत्तिया।
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