________________
संकेत- निर्देशिका
ये दोनों बिन्दु पूर्त-पाठ के द्योतक हैं। पूर्त-पाठ के प्रारंभ में भरा बिन्दु [] और उसके समापन में रिक्त विन्दु [ ° ] रखा गया है। देखें – पृष्ठ १४ सू० १४० 1
[?] कोष्ठकवर्ती पाठ के आगे प्रश्न [?] आदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का
सूचक है । देखें - पृ० ४०४ सू० २
यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें —
..
""
पृ० ६ ० २६ ॥
क्रास [X] पाठ न होने का सूचक है। देखें-- पृ० ४ ० ४ ।
पाठ के पूर्व या अन्त में खाली बिन्दु [0] अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें - पृ० ४ टिप्पणी १२, २ ।
'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूर्तिस्थल का निर्देश है । देखें - पृ० ४६९ टिप्पण ३ तथा पृ० ४६५ टिप्पण ४ ।
'एव', 'जहा' 'तहेव' आदि के टिप्पण में उनकी पूर्तिस्थल का निर्देश है । देखें-- पृ० ४९६, सू० १६०, १८४ तथा
अ, क, ख, ग, घ, च, छ । देखें – संपादकीय में 'प्रतिपरिचय' शीर्षक स्थल । क्वचित् प्रयुक्तादर्श |
क्व
सं०पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है । देखें - पृ० ४ टिप्पण ३ ।
वृत्ति का सूचक है । देखें -- पृ० ४ टिप्पण ५ ।
वृपा
वृत्ति सम्मत पाठान्तर । देखें- पृ० ४ टिप्पण १० । दो० दीपिका सम्मत पाठान्तर । देखें-- पृ० २५६ टिप्पण व्या०वि० व्याकरण विमर्श | देखें - पृ० २६० टिप्पण ३ । पू० पूर्ण पाठार्थं द्रष्टव्यम् । देखें-- पृ० ५५४ टिप्पण ६ । पूर्णिका सूचक है। देखें-- पृ० ४० टिप्पण ५ ।
चू०
चू०पी० चूर्णि सम्मत पाठान्तर । देखें- पृ० ४ टिप्पण १० ।
पद, विशेष गाथा तथा विशेष सूक्तियों को गहरे टाइप में दिया गया है। देखें-- आयारो ।
अणुओगदाराणि
ओववाइयं
चंदपण्णत्ती
जंबूद्वीवपण्णत्ती
X
0
वृ
अ०
ओ०
चंद
जं
ठाणं
이
दसा० दसासुयक्खंधो
नि० निसीहज्भयणं
प०
पण्ण ०
पण्णवणा
भ० भगवई
राय रायपसेणइयं
स०
सू०
पइण्णगसमवाओ
Jain Education International
समवाओ सूयगडो
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org