Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 15
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अनंतधर्मणस्तत्त्वं पश्यंती प्रत्यगात्मनः । अनेकांतमयीमूर्तिनित्यमेव प्रकाशताम् ॥ २॥ निर्मिते समयसारप्राभृतग्रंथे अधिकारशुद्धिपूर्वकत्वेन पातनिकासहितव्याख्यानं क्रियते । तत्रादौ "वंदित्तु सव्वसिद्धे" इति नमस्कारगाथामादिं कृत्वा सूत्रपाठक्रमेण प्रथमस्थले स्वतंत्रगाथाषट्रं भवति । तदनंतरं द्वितीयस्थले भेदाभेदरत्नत्रयप्रतिपादनरूपेण 'ववहारेणुवदिस्सदि'इत्यादि गाथा तातें जु सार विनकर्ममल शुद्ध जीव शुध नय कहै । इस ग्रंथ मांहि कथनी सवै समयसार बुधजन गहै ॥ ४ ॥ नामादिक छह ग्रंथमुख, तामें मंगलसार । विघन हरन नास्तिक हरन, शिष्टाचार उचार ॥ ५ ॥ समयसार जिनराज है, स्यादवाद जिनवैन । मुद्रा जिन निरग्रंथता, नमूं करै सब चैन ॥ ६ ॥ इसतरह मंगलपूर्वक प्रतिज्ञाकर श्रीकुंदकुंद नामा आचार्यकृत गाथाबंध समयप्राभृत ग्रंथकी जो संस्कृतटीका श्रीअमृतचंद्र आचार्यकृत आत्मख्याति नामा है उसकी देश भाषामय वचनिका लिखते (प्रारंभ करते ) हैं । अब संस्कृत टीकाकार श्रीमान् अमृतचंद्र नामा आचार्य ग्रंथकी आदिमें मंगलकेलिये इष्टदेवको नमस्कार करते हैं-"नमः" इत्यादि । इसका अर्थ-'समय' अर्थात् जीव नामा पदार्थ उसमें 'सार' जो द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म रहित शुद्ध आत्मा उसके लिये मेरा नमस्कार हो । कैसा है वह ? । 'भावाय' अर्थात शुद्ध सत्तास्वरूप वस्तु है । इस विशेषणपदसे सर्वथा अभाववादी नास्तिकोंका मत खंडित हआ। फिर कैसा है ? 'चित्स्वभावाय'-जिसका स्वभाव चेतनागुणरूप है। इस विशेषणसे गुण गुणीका सर्वथा भेद माननेवाले नैयायिकका निषेध हुआ। फिर कैसा है ? 'स्वानुभूत्या चकासते'-अपनी ही अनुभवनरूप क्रियासे प्रकाश करता है अर्थात् अपनेको अपनेकर ही जानता है, प्रगट करता है । इस विशेषणसे आत्माको तथा • ज्ञानको सर्वथा परोक्ष ही माननेवाले जैमिनीय-भट्ट-प्रभाकर भेदवाले मीमांसकोंका व्यवच्छेद हुआ। तथा ज्ञान अन्यज्ञानकर जाना जाता है आप अपनेको नहीं जानता ऐसा माननेवाले नैयायिकोंका प्रतिषेध होता है। फिर कैसा है ? 'सर्वभावांतरच्छिदे' जो अपनेसे अन्य सब जीव अजीव चराचर पदार्थ उनको सब क्षेत्रकालसंबंधी सब विशेषणोंकर सहित एक ही समय जाननेवाला है । इस विशेषणसे सर्वज्ञका अभाव माननेवाले मीमांसक आदिका निराकरण है ॥ इसतरहके विशेषणोंकर (गुणोंकर ) अपना इष्टदेव सिद्धकर नमस्कार किया है । भावार्थ-यहां मंगलकेलिये शुद्ध आत्माको नम १ इससे आगेका "तहां इसग्रंथ" इत्यादि पाठ प्रस्तावना और विषयसूचीमें लिखा जाना आवश्यक समझ छोड़दिया है, पाठकगण प्रस्तावना और विषयसूचीमें उक्त पाठको देख लें।

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