Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 13
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [विषयानुक्रमणिका .. विषयः । विषय कर्मको करना - पृ. सं. विषय , पृ० सं० बौद्धमती ऐसा मानते हैं कि कर्मको करने- मोक्षका 'अर्थी दर्शनज्ञानचारित्र खरूप मोक्ष वाला दूसरा है और भोगनेवाला दूसरा मार्गमें ही आत्माको प्रवर्तावे ऐसा उपहै उसका युक्तिकर निषेध ... ... ४४६ | देश किया है जो द्रव्यलिंगमें ही ममत्व कर्तृकर्मका भेद अभेद जैसे है उसीतरह करते हैं उनके मोक्ष नहीं है ... ... ५३३ नयविभागकर दृष्टांतपूर्वक साधन ... ४५१ व्यवहारनय तो मुनि श्रावकके लिंगको मोक्षनिश्चयव्यवहारके कथनको खडियाके दृष्टांत- . मार्ग कहता है और निश्चयनय किसी - कर स्पष्ट कहा है दस गाथाओंमें ... ४५७ लिंगको मोक्षमार्ग नहीं कहता ऐसा कथन ५३७ रागद्वेषमोहकर अपने. दर्शन ज्ञान चारित्रका इस ग्रंथको पूर्ण किया है उसके पढनेके, अर्थ ही घात होता है इसके छह गाथा ... ४७० जाननेके फलकी एक गाथा कह ग्रंथ पूर्ण ५४० अन्यद्रव्यका अन्यद्रव्य कुछ नहीं करसकता टीकाकारके वचन हैं कि इस ग्रंथमें आत्माको __ यह कथन ... ... ... ... ४७४ ज्ञानमात्र कहकर अनुभव कराया पर स्पर्श आदि पुद्गलके गुण हैं वे आत्माको कुछ . • आत्मा अनंतधर्मवाला है वह स्याद्वादसे ऐसा नहीं कहते कि हमको ग्रहण करो सधता है। ज्ञानमात्र कहनेमें स्याद्वादसे परंतु अज्ञानी जीव इनसे वृथा राग द्वेष विरोध आता है उसके मेंटने के लिये तथा करता है ऐसा दस गाथासे ... ... ४७७ चारित्रका विधान, उसमें ज्ञानचेतनाका तो एक ही ज्ञानमें उपाय भाव उपेयभाव किस तरह बनसकता है ? उसके सिद्ध अनुभवन और कर्मचेतना कर्मफलचेतनाके त्यागकी रीतिका वर्णन ... ... ४८६ - करनेके लिये स्याद्वादाधिकार और उपायोजो कर्म और कर्मफलको अनुभवता अप पेयाधिकारका इस सर्व विशुद्ध ज्ञानाधिनेको उसरूप करता है वह नवीनकर्मको कारमें परिशिष्टरूपसे व्याख्यान किया है ५४४ बांधता है ऐसा तीन गाथामें ... ... . एक ही ज्ञानमें तत् अतत् एक अनेक सत् इस जगह टीकाकारने कर्मचेतना और कर्म.. असत् नित्य अनित्य इन भावोंके १४ फलचेतनाके विधानको स्पष्ट किया है, भेद कर उनके १४ काव्य हैं ... ... ५४५ कर्मचेतनाके तो अतीत वर्तमान अनागत स्याद्वादकर ज्ञानमात्र भावमें अनेकांतात्मक कर्मके त्यागसे कृत कारित अनुमोदनासे वस्तुपना दिखलाया है ज्ञानमात्र कहनेका । मन वचन कायसे उनचास उनचास भंग प्रयोजन लक्षणकी प्रसिद्धिसे लक्ष्य प्रसिद्ध . (भेद) कर. त्यागका विधान ... ... ४८९ | होता है इसलिये ज्ञान लक्षण है आत्मा और कर्मफलचेतनाके त्यागके एकसौ अड़ लक्ष्य है ऐसा वर्णन ... ... ... ५५४ तालीस कर्मप्रकृतियों के नाम लेकर त्या एक ज्ञानक्रियारूप ही परिणत आत्मामें गका विधान दिखलाया है अनंतशक्तियां प्रगट है उनमेंसे सैंतालीस ... ... ५११ शक्तियोंके नाम तथा लक्षणोंका कथन ५५६ कर्तृकर्मभावसे ज्ञानको जुदा दिखाकर समख उपायोपेयभावका वर्णन, उसमें आत्मा अन्यद्रव्योंसे जुदा पंद्रह गाथाओंमें दिख परिणामी है इसलिये साधकपना और लाया है ... ... ... ... ... ५ सिद्धपना ये दोनों भाव अच्छी तरह भात्मा अमूर्तीक है इसलिये इसके पुदल बनते हैं ऐसा कथन ... ... ... ५६१ मयी देह नहीं है उसके तीन गाथा ... ५२९ | स्याद्वादकी महिमाका वर्णन ... ... ५६३ व्यलिंग देहमयी है इसलिये . आत्माके इस समयसार शुद्ध आत्माके अनुभवकी मोक्षका कारण नहीं है दर्शन ज्ञान चारित्र प्रशंसाकर ग्रंथ पूर्ण । ... ... ... ५६६ अपना भाव है वही मोक्षका कारण है । टीकाकारोंका वक्तव्य . ऐसा तीन गाथाओंमें कथन ... ... ५३१] ग्रंथ सटीक समाप्त ... ... ... ... ५७० * इति विषयानुक्रमणिका -

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