Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि इस ग्रंथ को उपयोगी बनाने के लिए रेखाचित्रों तथा भवनों के मानचित्रों की आवश्यकता थी। इस जटिल श्रम साध्य तथा तकनीकी दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य को करने में सक्षम आर्किटेक्ट का कार्य पूज्य गुरुवर के अनन्य भक्त श्री विनोद जोहरापुरकर जी, नागपुर ने सम्पन्न किया। आप एक जाने माने आर्किटेक्ट हैं तथा अपने अतिव्यस्त समय में से भी समय निकालकर यह हिमालय सरीखा महान कार्य अल्प समय में सम्पन्न किया है। जो कार्य कई महीनों में भी सम्पन्न नहीं हो पाता, उसे कुछ ही सप्ताहों में पर्याप्त कुशलता के साथ पूरा कर दिया। उनके इस कार्य की जितनी भी सराहना की जाए, वह कम ही है। श्री 1008 चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्वामी की निरन्तर कृपा उन पर बनी रहे, यही भावना है।
मैं इस ग्रथ के प्रकाशन के प्रमुख आधार स्तम्भ सफल युवा उद्योगपति परमगुरुभक्त श्रावकरन श्री नीलम कुमार जी अजमेरा, उस्मानाबाद के प्रति भी अपनी कृतज्ञता ज्ञापन करना कर्तव्य समझता हूं। आपने इस ग्रंथ के अति जटिल एवं व्ययसाध्य कार्य को प्रकाशन की समस्त राशि देकर अति सुगम कर दिया। श्री नीलमजी परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री 108 प्रज्ञाश्रमण देवनन्दि जी महाराज के अनन्य भक्त हैं। आपने सदैव ही गुरु चरणों में अपना सब कुछ अर्पण करने की उत्कृष्ट भावना की है। आपकी गुरु भक्ति नवयुवकों के लिए प्रेरणा स्तम्भ सदृश है। आपकी माताश्री कंचनबाई की प्रेरणा आपको सदैव जैनधर्म के प्रति भक्ति बनाए रखने में कारण रही। साथ ही माताश्री की प्रेरणा से आपने अनेकों समाज हितकारी कार्यों को सहज भावना से सम्पादित किया है।
श्री नीलमजी भारतवर्षीय दि. जैन महासभा के प्रमुख आधार स्तम्भों में से हैं। आपके द्वारा अनेक विद्यार्थियों को शिक्षण हेतु पूर्ण सहायता दी जाती है। अनेक छात्र उच्च शिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। तीर्थ क्षेत्रों की सहायता में आप सदा अग्रणी रहे हैं। सामाजिक सेवा की प्रेरणा से ओतप्रोत नीलमजी ने लातूर व उमरगा के भूकम्प पीड़ितों की जो सहायता की है, वह अनेक संस्थाएं मिलकर भी नहीं कर पाईं। आपने अनेक साधर्मी भाईयों को रोजगार की व्यवस्था कर उन्हें आर्थिक संकट से उबारा है। ऐसे युवा रत्न नीलमजी परमपूज्य गुरुदेव के प्रति सदैव अर्पित रहें तथा पूज्य गुरुदेव की उन पर असीम कृपा बनी रहे, यही आत्मीय भावना है।
श्री प्रज्ञाश्रमण दिगम्बर जैन संस्कृति न्यास के प्रमुख आधार श्री नीलमजी उत्तरोत्तर प्रगति करें, जिनेन्द्र प्रभु की अनन्त कृपा उन पर बनी रहे, यही भावना मैं सदैव व्यक्त करता हूं।