________________
( ५१ )
( ४ ) इसमें जिस पदार्थ का यद्यपि नवीन वर्णन नहीं भी किया जाता उसको भी केवल उक्ति-वैचित्र्य से लोकोत्तर अतिशय को प्राप्त करा दिया
जाता है।
( ५ ) साथ ही कवि अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी रुचि के अनुसार पदार्थों के स्वरूप को उस ढा से प्रस्तुत कर देता है जिस रूप में उनकी व्यवस्था ही नहीं होती।
( ६ ) उसमें शब्द और अर्थ को शक्ति से भिन्न वृत्ति वाले काम्यार्थ की अभिव्यक्ति कराई जाती है ।
(७) उसमें सरस अभिप्राय से युक्त पदार्थों का स्वरूप किसी लोकोत्तर वैचित्र्य मे उत्तेजित करके प्रस्तुत किया जाता है ।
(८) बकोक्ति का वह वैचित्र्य जिसके अन्दर कोई अतिशयोक्ति परिस्फुरित होती रहती है, इस मार्ग का प्राण होता है ।
इस मार्ग में निपुण कवियों के रूप में कुन्तक ने बाणभट्ट, भवभूति व राजशेखर को स्मरण किया है ।
मध्यम मार्ग मण्यम मार्ग में सुकुमार और विचित्र दोनों मार्गों में उल्लिखित विशेषतायें संयुक्त रूप में विद्यमान रहती हैं। उनमें कवि की शक्ति एवं व्युत्पत्ति से सम्भव होने वाला सौन्दर्य पराकाष्ठा को पहुँचा हुआ होता है। और सुकुमार तथा विचित्र मार्ग के माधुर्यादि गुण इस मार्ग में मध्यमात्ति का प्राश्रयण करके किसी अपूर्व सौन्दर्य की सृष्टि करते हैं। इस मार्ग में निपुण कवियों के रूप में कुन्तक ने मातृगुप्त, मायुराज व मञ्जीर आदि का नाम प्रहण किया है।
मार्गों के गुण कुन्तक ने इन प्रत्येक मार्गों के चार-चार नियत गुण बताये जाते हैं वे हैं
१. प्रसाद २. माधुर्य ३. लावण्य और ४. अभिजात्य । इनका स्वरूप . इस प्रकार है:
१. प्रसाद गुण-(१) सुकुमार मार्ग का प्रसाद गुण सरलता से अभिप्राय को व्यक्त कर देने वाला, सबसे पहले विवक्षित अर्थ का प्रतिपादन करने वाला होता है | सभी शृङ्गारादि रस तथा सभी अलंकार उसके विषय होते हैं। उसमें असमस्त पदों का प्रयोग किया जाता है अथवा समास के रहने पर गमक समास का प्रयोग होता है। प्रसिद्ध शब्दों का प्रयोग होता है और उनका परस्पर सम्बन्ध बिना किसी व्यवधान के हो जाता है।