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भीम रथ उनके राजकीय शिष्य थे। एन के साहु ने भी हिस्ट्री ऑफ दि उडीसा (पृ.९३) विस्तार से वर्णन करते हुए लिखा है कि तीर्थंकर महावीर के पूर्ववर्ती काल में कलिंग देश में जैन धर्म अत्यधिक प्रभावशाली था। कलिंग में महावीर का विहार और धर्मोपदेशः
__ तीर्थकर त्र-षभदेव और पार्श्वनाथ की तरह तीर्थकर महावीर के कलिंग देश में विहार करने का उल्लेख जैनागमों में उपलब्ध है। प्रथमानुयोग के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हरिवंश पुराण ३/३-७ में कथन हुआ कि भगवान् महावीर का समवसरण कलिंग देश में आया था। कहा भी है :
काशिकौशल कौशल्य कुसंध्यास्वष्ट नामकान्। साल्वत्रिगर्त पञ्चाल भद्रकारपटच्चशन्।। मौकमत्स्यकनीयांञ्च सूरसेन वृकार्थपान्। मध्यदेशनिमान् मान्यान् कलिङ्ग कुरूजाङ्गलान्।। कैकेया ऽऽत्रेयकाम्वोज वाह्रीकयवनश्रुतीन्। सिन्धुगान्धारसौवीरसूरभीरू दशेरू कान्।। वाडवान भरद्वाज क्वाथ तोयान समुद्रजान्। उत्तरांस्तार्ण कार्णश्च देशान् प्रच्छालाम कान्।। धर्मेणयोज्यत् वीरो विहरन विभवान्वितः यथैव भगवान् पूर्वं वृषभो भव्यवत्सल:
अर्थात् - जिस प्रकार भव्यवत्सल भगवान् त्र-षभदेव ने पूर्व काल में अनेक देशों में विहार कर उन्हें धर्ममय बना दिया था, उसी प्रकार भगवान् महावीर ने भी विहार कर मध्यवर्ती काशी, कौशल्य, कुसन्ध्य, अस्वष्ट, शाल्व, त्रिगर्त, पंचाल, भद्रकार पटच्चर, मौक, मत्स्य, कनीय, सूरसेन और वृकार्थक समुद्र तट के कलिंग, कुरूजांगल, कैकेय, आत्रीय, कम्बोज, वाहलीक, यवन, सिन्ध, गान्धार, सौवीर, सूर, भीरू, दरोरुक, वाडवान, भरद्वाज, क्वाथतोष, तथा उत्तरदेश के तार्ण, कर्ण और प्रच्छाल आदि देशों को धर्ममय बना दिया था। के.सि.पाणीग्राही ने भी हिस्ट्री आफँ उड़ीसा
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