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वाहने विपमुचितं मधुरं अपयातो यवन राज...। उक्त घटना भी उन्हें जन्मजात होना सिद्ध करती है। कलिंग जिन जिसे नन्दराजा अपहरण कर ले गया था उसे मगध के राजा बृहस्पति मित्र से छीन कर लाने की घटना भी उन्हें जन्मजात जैन होना सिद्ध करती है। इसी प्रकार जैन श्रमणों के लिए गुफायें बनवाना, आगमों का उद्धार करना भी उनके जैन होने के प्रमाण है।
यद्यपि राजा खारवेल जन्म से और कर्म से जैन राजा थे तो भी सभी धर्मों का सम्मान करते थे। हाथी गुम्फा शिलालेख इस बात का साक्षी है कि सभी धर्मों के प्रति उनका समभाव समादर था। सभी धर्मों के मंदिरों का उन्होंने जीर्णोद्धार किया था। कहा भी है -सवपासंड पूजको सवदेवायतन संकार कारकों...पंकित १७.
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि खारवेल एक धर्मनिरपेक्ष राजा था। कट्टरता उन्हें छू भी नहीं गई थी। एन.के. साहु ने (खारवेल पू.५६) में भी कहा है : “It thus indicates that kharavela was not only showing patronage to the Jaina Arhats but also extending equal respect and honour. खारवेल की पारिवारिक स्थितिः
खारवेल के परिवार के संबंध में हाथीगुम्फा शिलालेख में कुछ संकेत तो मिलते है, लेकिन उनका विवाह कब और कहाँ हुआ, इसका उल्लेख उक्त शिलालेख में उपलब्ध नहीं है। वहाँ उनकी दो रानियों के होने का नामोल्लेख ७वीं और १५ वीं पंक्तियों में किया गया है। १. वजिर घरवती रानी २. और सिंहपथ रानी। वजिर घरवती बडी और सिंहपथ रानी छोटी थी।
मंचपुरी गुंफा के ऊपरी भाग में स्थित अभिलेख से ज्ञात होता है कि वजिर घरवती चक्रवर्ती सम्राट खारवेल की अग्रमहिषी (पटरानी) थी जो राजा हाथीसिंह की प्रपौत्री और ललार्क राजा की पुत्री थी। कहा भी है -“ राजिनो ललाकस हाथिसिहस पपोतस अगमहिसिना......।"
हाथी गुम्फा शिलालेख की १५वीं पंक्ति से ज्ञात होता है कि सिंहपथ रानी राजा सिंहपथ की पुत्री थी। सिंहपथ रानी की इच्छानुसार खारवेल ने अर्हतों के लिए आश्रय
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