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हुआ है। इसे के बरामदे की छत समतल है और बेंचें है। इसे आधुनिक मोटे स्तम्भ सहारा दिये हुए हैं। बरामदे की छत का लटकता हुआ ऊपरी भाग वर्षा के पानी के अन्दर आने से रोकता है। बरामदा की दीवालों के पार्श्व पर कप आदि रखने के लिए अलमारी भी बनी हुई है। बरामदा को दोनों ओर से दो स्तम्भ इसे संभाले हुए हैं। प्रत्येक प्रकोष्ठ में एक एक प्रवेश द्वार है। दोनों कमरों की प्रवेश द्वारों पर धनुषाकार तोरण बने हुए हैं। इन के ऊपरी भाग क्रमान्तर माधवी लता और कमलों से सुसज्जित हैं। दूसरी ओर मकर के मुख से निकलती हुई लतायें दृष्टि गोचर होती हैं। मध्यवर्ती भाग में कोई नक्काशी या कला नहीं है। बांई ओर के कमरे के दोनों ओर दो विलऊआ चित्रित हैं। बरामदे के बाहर दो
तोता पहरेदार खड़े हुए हैं जो प्रवेश द्वार की रक्षा कर रहे
लिए हुए हैं। पुरुष धोती पहिने हुए है। पैर जूता विहीन हैं।
महिला दुष्टों ने इसे विकृत कर दिया है। दाहिने ओर के दरवाजे के बगल में महिला द्वारपाल है। इसके दाहिने हाथ में एक तोता है। महिला पैर मोड़ कर खड़ी हुई बहुत सुन्दर प्रतीत होती है। फूल युक्त पत्तों से इसके केश सजे हुए हैं। इसके थोड़े ऊपर लताओं से लिपटी हुए एक महिला है जो शाल मंजिका कहलाती है।
— दोनों कमरों के दरवाजों के मध्यवर्ती भाग के ऊपर अर्थात् तोरण पर एक पवित्र और पूज्य चैत्य-वृक्ष उत्कीर्णित किया गया है। जैन धर्म में चैत्य-वृक्ष का विशेष महत्व है। यह वृक्ष चारो ओर से एक घेरे से घिरा हुआ है। इसके ऊपर छत्र
और बगल में पताकायें सुशोभित हो रही हैं। इसके दोनों ओर स्त्री और पुरुष का एक-एक जोड़ा दृष्टि गोचर होता है। ये चैत्य-वृक्ष की पूजा करने के लिए आये हुए प्रतीत होते हैं। पुरुष हाथ जोड़े हुए है और स्त्री फूलों की माला आदि पूजा की सामग्री
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