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१४. हाथी-गुम्फा
- यह एक प्राकृतिक गुंफा है। इस गुफा का आकार विषम है। दीर्घाकार इस गुफा में एक शिलालेख उपलब्ध है। सामने से खुली है। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में राजा खारवेल ने एक विशाल चट्टान पर अपने शैशव कालीन स्मृतियों और स्वयं के राजत्व के १३ वर्षों का विवरण १७ पक्तियों में टंकित करवाया था। इसकी भाषा शौरसेनी प्राकृत है और ब्राह्मी लिपि है। जैन धर्म और इतिहास की दृष्टि से हाथी गुंम्फा का अनन्य महत्व है। भारत शब्द का उल्लेख इसी प्राचीनतम हाथी गुम्फा शिलालोख में सर्व प्रथम हुआ है। इस में मांगलिक चिह्न अंकित हैं। १५. धानघर गुम्फा
हाथी गुंम्फा से दाहिनी ओर से गणेश गुंफा की ओर बढ़ने पर धानघर गुंफा को देखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में हाथी गुम्फा और गणेश गुम्फा के मध्य में दाहिनी
ओर धानधर गुंफा है। इसमें एक दीर्धाकार प्रकोष्ठ है। इसकी छत नीची और भग्न है। इस में तीन द्वारपथ हैं। इस प्रकोष्ठ के सामने बेंच वाला बारामदा है। इस बारामदा को दो स्तम्भ और तीन घनाकार स्तम्भ संमाले हुए है। घनाकार स्तम्भ के पार्श्व भागों और उपरी भागों में स्थित तोरणों से द्वार मार्ग अलंकृत हैं। बांयें कूड्य स्तम्भ के समीप एक चौकीदार खड़ा है। वह धोती पहने, चादर धारण किये और पगड़ी बांधे पैर नंगे एवं एक बड़ी लाठी टिकाये हुए खड़ा है। यह गुंफा अनुच्च और कला विहीन है। ब्रेकेटसों के ऊपर हाथी, शेर, माधवी लतायें और कमल उतकीर्णित हैं। इस में कोई कारीगिरि या कला नहीं है। फर्श खुरदरा और ऊपर से उठा हुआ है। १६. हरिदास गुम्फा :
इस गुंफा का नाम १७ वीं शताब्दी में हुए उड़ीसा संत हरिदास के नाम पर हुआ है, ऐसा कतिपय विद्वानों का मानना है। ई. पू. प्रथम शताब्दी में निर्मित यह गुंफा हाथी गुम्फा के बाई ओर थोडी दूरी पर दक्षिण-पश्चिम की की ओर पूर्व मुखी है। इस लाईन में तीन गुंफायें निर्मित है। हरिदास गुम्फा सर्व प्रथम स्थित है, इस
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