Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 144
________________ उपसंहार : उड़ीसा में जैन धर्म के उद्भव और विकाश एक झरने की तरह रहा । उस ने उत्थान और पतन सब कुछ देखा । ई.पू. दूसरी शताब्दी जैन धर्म का स्वर्ण युग के रूप में विख्यात रही । ई. सन् १६वीं शताब्दी उस के ह्रास की साक्षी बनी। जैन धर्म ने तत्कालिन धर्म और पन्थों को प्रभावित किया है। इस के साथ ही वर्तमान कालीन समाज और साहित्य पर भी उस का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। यहाँ चिन्तनीय है कि उक्त धर्मों और पन्थों पर उस ने क्या प्रभाव डाला है? जैन धर्म के समय में महिमा धर्म का उदय भी हुआ था। महिमा स्वामी ने इस धर्म को स्थापना की थी। महिमा धर्मानुयायी साधु खण्डगिरि के आस-पास आश्रम (मठ) बनाकर रहते है। वे जैन धर्म के दक्षिणी क्षुल्लक की तरह गेरुआ रंग की एक कौपीन और एक उत्तरीय वस्त्र धारण करते है । वे रात में भोजन नहीं करते है और पूर्णता शाकाहारी होते है। दया को धर्म मानते है । आर. पी. महापात्र ने जैन मोनुमेंटस् (पृष्ठ ४०) में कहा भी है : No parking of food after sunset and their practice of burning the dead body showes the ifluence of the Digambar Jains. जगन्नाथ पन्थ भी जैन धर्म से काफी प्रभावीत हुआ है। जगन्नाथ की रथयात्रा की अवधारणा पूर्ण रूप से जैन धर्म से ली गई है। जगन्नाथ पन्थ का उदय ई. सन्. १२वीं शताब्दी में हुआ है। इस के बहुत पहले से पंचकल्याणाक-महोत्सव के अवसर पर जैन धर्म में रथयात्रा की प्रथा चली आ रही है। रथ की बनायट भी जैन धर्म की रथ की तरह होती है। 1 उड़ीसा के केउँझर, पुरी और कटक जिले मध्य काल में नाथ संप्रदाय की गढ़ थे। यही नाथ संप्रदाय सिद्ध संप्रदाय की रूप में प्रसिद्ध है। नाथ शब्द किसी परम सत्ता का सूचक है । और सिद्ध शब्द मुक्त परमात्मा का संसूचन करता है। यह दोनो शब्द जैन आगमिक शब्दावली से लिये गये हैं । नाथ संप्रदाय काय साधना नामक योग करते है । उनकी अवधारणा है कि इसी योग से अविनाशी और आध्यात्मिक जीवन प्राप्ति होता है। यहाँ ध्यातव्य है कि जैन धर्म में कायोत्सर्ग तप बहुत महत्वपूर्ण है। जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ कायोत्सर्ग और योग मुद्रा में उपलब्ध होती है। अतः सिद्ध है कि नाथ पन्थ काय Jain Education International १३१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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