Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 145
________________ योग की साधान के लिए जैन धर्म का त्र-णी है। नाथ संप्रदाय के लोगों के नाम के अन्त नाथ उपाधि भी जैन धर्म से ली गई है। उदाहरणार्थ : गोरखनाथ, मीन नाथ, बोधि नाथ, मत्सेन्द्र नाथ आदि में जैन धर्म के तीर्थंकरो तरह नाथ शब्द जुड़ा हुआ है। इस से प्रतीत होता है कि नाथ संप्रदाय भी जैन धर्म से काफी प्रभावित है । सारला दास के उड़िआ महाभारत में नाथ योग के उद्भव और युगधर्म के पालन करने की विधी जैन धर्म के साथ प्रभावीत, प्रतीत होती हुई कही गई है। आर्. पी. महापात्र ने जैन मोनुमेंटस् आफँ उड़ीसा (पृ. ३९) में कहा भी है : In the Sharala Mahabharat be find referance to the origin and practice of the Nath yougis indicate their link with Jain religion. उड़ीसा के समाज और साहित्य पर भी जैन धर्म का प्रभाव दिखलाई पड़ता है । सारला दास के उड़िआ महाभारत में जैन धर्म के अनेक सिद्धान्तो को देखा जासकता है। इस में उपलब्ध जगन्नाथ की कथा का रूप जैन साहित्य में विभीन्न रूप में कही गई कथाएँ प्रतीत होती है। उड़ीसा के मध्य कालीन साहित्य पर भी जैन धर्म का प्रभाव परिलक्षित होता है। वाउल चरित्र और राम गाथा जैसे प्रचीन उड़िआ ग्रन्थ भी जैन धर्म से बहुत प्रभावित हैं । इसी प्रकार जगन्नाथ दास का भागवत, चैतन्यदास का विष्णुगर्भ पुराण और दीनकृष्ण दास का रसकल्लोल उड़िआ साहित्य जैन दार्शनिक सिद्धान्तों के विवेचन तथा व्यवहार में उन सिद्धान्तों के पालन करने से परिपूर्ण हैं | जगन्नाथ दास के उड़आ भाषा में रचित भागवत के पांचवें खण्ड के पांचवें अयोध्या के त्र-षभ चारित विभाग में त्र- षभदेव के द्वारा अपने एक सौ पुत्रों को ब्रह्मचर्य, अंहिंसा, श्रद्धा, सत्ककर्म आदि का पालन करने कि उपेदश दिये जाने के प्रसङ्ग हमे उपलब्ध होते हैं। I उक्त सिद्धान्त जैन धर्म में गृहस्थों के आचरण के नियम बतलाए गये है। इसी प्रकार विवाहोपरान्त अष्ट मंगल करने का विधान जैन धर्म (श्वेताम्बर) से लिया गया प्रतीत होता है। उड़ीसा की जीवनशैली को भी जैन धर्म ने काफी प्रभावित किया है। उड़ीसा के ग्रामीण इलाकों में रहनेवालों विशेष कर सराकों पर जैन धर्म के साकाहार और अंहिसा सिद्धान्त का बहुत प्रभाव पड़ा है। पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित वट वृक्ष की पूजा करने की सामाजिक प्रथा जैन धर्म से ली गई है। जैन धर्मानुसार आदिनाथ तीर्थंकर ने वट वृक्ष के नीचे मुनि दीक्षा ली थी और तपस्या कर केवलज्ञान प्राप्त किया था। ईसी कारण से Jain Education International १३२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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