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प्रतिष्ठा काले हरि ओप जसनंदिक
श्री पारस्यनाथस्य कम्म खयः ।
इससे ज्ञात होता है कि राजा उद्योत केशरी ने अपने राजा होने के ५वें वर्ष में कुमार पर्वत (खंडगिरि) के जीर्ण-शीर्ण जलकुण्ड एवं तालावों की मरम्मत करवाई थी
और २४ तीर्थकरों की प्रतिमाओं की स्थापना करवाई थी। यशनन्दि जौनाचार्य पूजा करने केलिए रखे गये थे।
उक्त शिलालेख में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि २४ तीर्थकरों . की स्थापना कहाँ की गई थी अनुमान किया जाता है कि या तो इसी गुम्फा में उक्त तीर्थंकरों की स्थापना हुई होगी या अन्य गुम्फाओं में स्थापना कर वाई गई होगी। इस से प्रकट होता है कि ई.सन ११ वीं शताब्दी तक कलिंग में जैनधर्म जनधर्म की रूप में मान्य था। उस समय तीर्थकरों की पूजा के लिए गुम्फाओं और मंदिरो का निर्माण करायाँ जाता था। यही कारण है कि खंडगिरि में मंदिरों के खंडहर, आमल की शिला और शिखर इधर-उधर चारों ओर विखरे पड़े हुए हैं । इस गुंफा के आस-पास आकाशगंगा, गुप्तगंगा, श्याम कुण्ड और राधाकुण्ड जलाशय अभी भी विद्यमान है।
१२. भग्न गुम्फा:(राधा कुण्ड के समीप)
- बहुत गहरे राधाकुण्ड नामक जलाशय के समीप एक गुम्फा थी। इस गुम्फा में मूल रूप से दो कोठियाँ और मध में एक विभाजक दीवाल थी। छत और सामने के बगल की दीवार, दरवाजों सहित बरामदा आदि सभी पूर्ण रूप से नष्ट हो गये हैं। पीछे की दीवाल के नजदीक दो कोठियों को अलग-अलग करने वाली मध्यवर्ती दीवाल का भाग अभी भी विद्यमान है। उस में पहले चार स्तम्भों पर आधारित बरामदा के होने के भी प्रमाण मिलते हैं, जो अब नष्ट हो गया हे। कमरों का फर्श पीछे से उठा हुआ था। छत समतल थी। यहाँ पर किसी तीर्थकर के उत्कीर्णित होने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
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