Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 129
________________ जिन वृक्षो के नीचे तीर्थंकरों को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ वे अशोक वृक्ष कहलाते हैं। अशोक वृक्ष अर्थात शोक रहित या आनन्द दायक २४ तीर्थंकरों के २४ अशोक वृक्ष हैं। न्यग्रोध, सप्तपर्ण, साल, सरज, प्रियंगु, शिरीष, नाग वृक्ष अक्ष, बहेणा, धूलिपलाश, तेंदू, पाटल, जम्बु, पीपल, दधिपर्ण नन्दी, तिलक, आम्र, कंकेलि, अशोक, चम्पक, वकुल, मेषशृङ्ग, धकऔर शाल। ये अशोक भी अर्चनीय और पूजनीय हैं। अनन्त गुम्फा और जयविजय गुंफा में कैवल्य वृक्ष की पूजा दृश्य उत्कीर्णित किये गये है। श्रधालु महिलायें पूजा की सामग्री थाली में लिए हुऐ है और पुरुष हाथ जोड़े हुए है। इसी प्रकार अनन्त गुंफा में राजा-रानी वृक्ष की पूजा करते हुए उत्कीर्णित किये गये हैं। विशिष्ट चिन्हों की पूजा : प्राचीन काल में जैन धर्म में विशिष्ट चिन्हों की पूजा हुआ करती थी। खंडगिरि और उदयगिरि की गुंफाएँ इसका प्रमाण हैं। हाथी गुम्फा शिलालेख, अनन्त गुम्फा, आदि कतिपय गुम्फाओं में वद्ध मंगल, स्वत्तिक, नंदिपद श्रीवत्स, श्री वृक्ष त्रिरत्न मांगलिक चिन्ह उत्कीर्णित होने से सिद्ध होता है कि इन चिहों की पूजा करने का विधान जैनधर्म में था। क्यों कि आराधक को आराधना करने के लिए आलम्बन की आवश्यकता होती है। तीर्थंकरों की पूजाः ___ युग्म पहाड़िओं में उत्कीर्णित तीर्थंकर की मूर्तियों से सिद्ध होता है कि यहाँ पर तीर्थंकरों की पूजा होती रही। खंण्डगिरि की नवमुनि गुम्फा में सात तीर्थंकरों की बारहभूजा गुम्फा में २४ तीर्थंकरों और महावीर गुम्फा में २४ तीर्थकरों को उनके विशिष्ठ चिन्हों और शासन देवियों के उत्कीर्णित किया गया है। इसी प्रकार अम्बिका गुम्फा में दो तीर्थंकर त्र-षभनाथ और अम्विका की, ललाटेन्दु गुम्फ, अनन्त गुम्फा, और गणेश गुम्फा में क्रमश: खण्डगासन और पद्मासन अर्हतों की मूर्तियाँ उत्कीर्णित की गई हैं। इससे सिद्ध है कि इन गुम्फाओं में जैन विधि से पूजा विधान महोत्सव होता रहा। ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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