Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 138
________________ मूलनायक के बाई ओर क्रमश: चन्द्रप्रभ और पर्श्वनाथ की ओर दाहिनी ओर दोनो मूर्तियाँ भगवान् महावीर के है। वे चारो मूर्तियाँ योगासन में कमलाकार चैकि पर विराजमान हैं। योगासनस्थ पार्श्वनाथ की मूर्ति श्याम वर्ण की चन्द्रप्रभ की और एक महावीर की हैं। सफेद रंग के संगमरमर की और एक बादामी रंग के संगमरमर की है। मूलनायक पार्श्वनाथ एक काली रंग की चौकी पर कायोत्सर्ग रूप में खड़े है। ९फण वाला सर्प इन के चरणों से ले कर पूरी मूर्ति से लिपटा हुआ उनके मस्तक पर छत्र की तरह फ़ण फैलाए हुए मूर्ति को चमत्कारी बना रहा है। सभी तीर्थकर के चिन्ह नीचे बनेहुए हैं। यह नवीन मंदिर वि.सं.२०४४ वी.नि. २५२४ में निर्मित हुआ था। ईसी मंदिर में दो वेदीयों पर ५०० सिद्ध होने वाले मूनियों के चरण निर्मित हैं। ५. पंचमूर्ति मंदिर : . पंचमूर्ति मंदिर आदि मंदिर की दाहिनी ओर बहुत छोटा मंदिर है, जिस में ५ तीर्थकरों की मूर्तियाँ विराजमान हैं। इस के मूलनायक आदिनाथ प्रथम तीर्थकर भी खडगाहन कायोत्सर्ग रूप में हैं। दोनों ओर अष्टग्रह उत्कीर्णित है। इनका चिन्ह वृषभ भी दृष्टिगोचर होता है। यह मूर्ति श्याम वर्ण के पाषण से निर्मित है। इन के अगल-बगल में चँवरधारी भी खड़े हैं। इन के बांई ओर से दो मूर्तियां आदिनाथ तीर्थंकर कायोत्सर्ग में खड्गासन अवस्था में विद्यमान है यह मूर्ति बीच के आदिनाथ की अपेक्षा छोटी है। m NE A Page । are ARUN Jammation Hane KHES HAMANANEHA १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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