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१८७० में हुई थी, ऐसा मूर्ति में उत्कीर्णित आलेख से ज्ञात होता है। यह मूर्ति लगभग ढाई फीट ऊँची है। इस की बांई ओर दो मूर्तियाँ हैं ।
२. भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति :
चाँदी के सिंहासन पर चाँदी से निमर्ति इस मूर्ति की स्थापना वि.सं. २०५७ में माघ शुक्ल ५वीं को हुई थी । ९ फण वाली यह प्रतिमा बहुत भव्य है ।
३. भगवान् आदिनाथ :
पीतल की धातु से निर्मित इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. २००७ अर्थात् १९५० में हुई थी। इस की स्थापना वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया को हुइ थी। ध्यान मुद्रा में विराजमान इस मूर्ति का चिन्ह प्रतिमा के नीचे विद्यमान है। इसके पश्चात् दूसरी पंक्ति में महावीर स्वामी की प्रतीमा है।
४. भगवान् महावीर स्वामी :
इस की स्थापना २००७ में हुई थी। यह मूर्ति ध्यानावस्था और पद्मासन में विराजमान है।
५. चौबीसी
:
पीतल से निर्मित इस फलख में २४ तीर्थंकर स्थापित हैं । सब से ऊपर आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा और सबसे नीचे भगवान् महावीर की प्रतिमा उत्कीर्णित है। तत्पश्चात् ५-५ की दो पंक्तियों में फिर २-२ की ३ पंक्तियों में तीर्थंकरों की मूर्तियां जड़ी हुई हैं । यह चौवीसी मनमोहक और कलापूर्ण है ।
६. पार्श्वनाथ :
शान्तिनाथ भगवान् की दाहिनी ओर पार्श्वनाथ की मूर्ति ध्यनावस्था में विराजमान है । इसकी स्थापना वि.सं. २०५७ में माघ माह में हुई थी। यह प्रतिमा लगभग साढ़े सात इंच ऊँची है । ९ फणी सर्प का चिन्ह भी है ।
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