Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 119
________________ सेवक, केवलवृक्ष, उड़ते हुए मालायुक्त विद्याधर और उनके नीचे उनकी शासन देवियाँ चक्रेश्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृंख्ला, गांधारी, पद्मावती,और आम्रा उतकीर्णित हैं। इनके हाथों में उनके प्रतीक और उनके आसन की नीचे उनके चिन्ह भी अंकित हैं। दाहिनी दीवाल पर पुन: त्र-षभनाथ और पार्श्वनाथ की योगासन में स्थित मूर्तियाँ उत्कीर्णित हैं। इन्हें मिला कर तीर्थंकरों की संख्या नव हो जाती है। इसी कारण उक्त गुम्फा नव मुनि गुम्फा के नाम से प्रसिद्ध है। महाराज लीला के रूप में स्थित गणेश की प्रतिमा शासन देवियों के प्रारम्भ में है। बांई दीवार पर चन्द्रप्रभु की एक छोटी प्रतिमा भी है। लेकिन इसकी गणना नवमुनियों में नहीं होती है। इस गुम्फा में पांच शिलालेख विद्यमान थे। दाहिने कमरे की दाहिनी दीवाल पर एक शिलालेख में जो कि पार्शनाथ की मूर्ति के नीचे उपलब्ध है, श्रावकी रूवी का उल्लेख हुआ है। तीन आलेख अवशिष्ट विभाजक दीवाल पर विद्यमान है। पांचवा आलेख सब से बड़ा है। तीन लाईनों वाला यह आलेख बरामदा के अन्दर के शीर्ष भाग में है। उस महत्त्वपूर्ण अभिलेख में कुल चन्द्र के शिष्य शुभचन्द्र का उल्लेख हुआ है। कुलचन्द्र देशीगण के आचार्य थे। ११ वी. शताब्दी में सम्पूर्ण उड़ीसा में शासन करने वाले और शोमवंशी उद्योत केशरी के ८वें राज्य काल में आर्यसंघ कुलचन्द्र गृहकुल चलाते थे। कहा भी है : उँ श्रीमदुद्योत केशरी देवस्य प्रवर्द्ध माने विजयराज्ये, संवत-१८ श्री आर्यसंघ प्रतिबद्ध गृहकुल विनिर्गत देशीगण। आचार्य श्री कुलचन्द्र भट्टारकस्य शिष्य सुभचंद्रस्य।। उक्त विभक्त दीवाल के ३ शिलालेखों में सुभचन्द्र और उनके शिष्य विजय और श्रीधर का उल्लेख हुआ है। अनधिकृत कब्जा करने वाले इस गुम्फा को ताला डाल कर बन्द किये हुए हैं। अत: जैन मतानुयायी अपने इस मंदिर में स्थित प्राचीन तीर्थंकरों की पूजा, अर्चनादि करने से वंचित हैं। १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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