Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 121
________________ हैं। पीछे की दीवाल पर उत्कीर्णत पार्श्वनाथ की एक मूर्ति कायोत्सर्ग अवस्था में भी है। सभी तीर्थकर अपने-अपने चिन्ह के साथ तथा दुलते चमर, केवल वृक्ष, उड़ती आकृतियाँ और दिव्य संगीत सहित उत्कीर्णित की गई हैं। उक्त सभी तीर्थंकरों की २४ शासन देवियां उन तीर्थंकरों के नीचे पर्यकांशन में स्थित हैं। इन में से शांतिनाथ की शासन देवी महामानसी पैरों को आर-पार किये हुए बैठी है। मुनिसुव्रत तीर्थंकर की शासन देवी बहुरूपणी लेटी हुई है। शेष शासन देवियां पैरों पर विराजमान है। चौथी, १६वीं, २२वीं और २३वीं शासन देवियाँ नीचे अपने अपने वाहन जानवारों पर बैठी हुई हैं। हाथों के प्रतीक क्षतिग्रस्त हो युके हैं। जैनतरों ने अनधिकृत कब्जा कर चक्रेश्वरी और रोहिणी देवी को कपड़ा पहिना कर उनको काली और दुर्गा के रूप में पूजते और पुजवाते हैं। कायोत्सर्ग पार्श्वनाथ की मूर्ति को कपड़ा पहिनाकर उन्हें विष्णु कह कर मिथ्या प्रचार कर रहे हैं। बरामदे के बाहर यज्ञकुण्ड और हनुमान की मूर्ति बना ली है। बरामदा के आगे पहले टीन का छप्पर था लेकिन अव छत की अधूरी ढलाई पर रोक लगा दी गई है। बारहभुजी गुम्फा का निर्माण एक मंदिर के रूप में हुआ था यहाँ पहले श्रधालु भक्ति पूजा-पाठ किया करते थे। लेकिन सम्प्रति वे अपने परम पूज्य आराध्य तीर्थंकरों के दर्शन भी नहीं कर सकते है। ९. महावीर गुम्फा : - पूर्वोक्त गुम्फाओं की तरह इस गुम्फा का निर्माण भी श्रमणों के आवास के उदेश्य से किया गया था। कालान्तर में इसे पूजा गृह या मंदिर के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। इस गुम्फा को TIMIDIOMATO Idel त्रिशूल और सतखबरा के नाम से जाना जाता है। इसके नामकरण के संबंध में कोई तार्किक आधार महावीर गुफा में सूमतिनाथ एवं पद्मप्रभ तीर्थंकर ROBRUNG १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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