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मनुष्यों को शेरों से लड़ते हुए अशिष्ट ढंग से चित्रित किया गया है । अंदर के ब्रेकेटों की आकृतियाँ नष्ट हो गई हैं। पीछे के दीर्घ प्रकोष्ठ का अग्रभाग साधारण और कला विहीन है। इसके दरवाजों और प्रारम्भ की दीवाल का पुनः आधुनिकीकरण किया गया है
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९. मंचपुरी (स्वर्गपुरी) गुम्फा
पातालपुरी गुम्फा से दाक्षिण पश्चिम की ओर जाने पर मंचपुरी गुंफा के दर्शन होते हैं। यह गुम्फा रानी गुम्फा की डिजाइन की तर्जपर बनी हुई है। यह गुम्फा दो मंजिल वाली है । इसका ऊपरी भाग स्वर्गपुरी और अपर भाग मंचपुरी गुम्फा के नाम से प्रसिद्ध है । मंचपुरी गुम्फा की पूर्ण जानकारी के लिए दोनों मंजिलों का पृथक-पृथक वर्णन करना आवश्यक है। इस गुम्फा का निर्माण ई. पू. की पहली दूसरी शताब्दी में हुआ प्रतीत होता है, ऐसा विद्वानों का मत है। यह गुफा एक चट्टान पर बनी हुई हैं।
मंचपुरी (अपर मंजिल गुम्फा : नीचे की मंजिल मंचपुरी कहलाती है। इसमें चार कमरे हैं। मुख्य भवन में तीन कमरे विद्यमान हैं। ये तीनों कमरे शृंखला बद्ध हैं। एक कमरा मुख्य भवन के बाहर स्थित हैं । उक्त तीन कमरों में से दो कमरे एक लाईन (सीध) में बने हुए हैं। इन कमरों का मुख पश्चिम की ओर है। तीसरे का मुख उत्तर की ओर है। सम्पूर्ण शृंखला के बाहर एक बेंच वाला बरामदा है। पृष्ठ कमरों की छत कुछ वक्र और क्षतिग्रस्त हो गई है। फर्श सुन्दर और पीछे से उठा हुआ है। सामने के दोनों कमरों की बीच की दीवाल में गहरा ओर बडा बिल बरामदा में प्रवेश करने के लिए बना कर लोगों ने जंगला बनालिया हैं। इन दोनों कमरों में दो-दो प्रवेश द्वार हैं।
चार खम्भों का अधिकांश भाग आधुनिक कारीगिरि (शिल्प कौशल) से युक्त हैं। स्तम्भों पर बने ब्रेकेटों पर महिलाओं और घुड़ सवारों की आकृतियों अंकित हैं। बरामदा में प्रवेश करने के लिए बने पांच प्रवेश द्वारों को पार्श्ववर्ती घटों पर स्थित घनकार स्तंम्भ संभालें हुए हैं। इनके शीर्षगों पर बनी अकृतियां नष्ट हो गई हैं। पिछला भाग एक-दूसरे से सटाये हुए जानवार भी चित्रित हैं । पुष्पीय, वनस्पतीय, लताओं और जानवरों को खदेड़ते हुए लडकों से युक्त एक अर्धवृत्ताकार पट्टी को उत्कीर्णित किया
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