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जो अब उड़ीसा संग्रहालय में विद्यमान हैं। चौमुखा में त्र-षभनाथ महावीर,
शांतिनाथ और चन्द्रप्रभु तीर्थकर की मूर्तियाँ हैं। ११. चरम्पा में अम्बिका देवी आम के वृक्ष के नीचे बैठी हुई प्रतीत होती है जो अब
ग्राम देवी के रूप में पूजी जाती है। मयूरभंज जिला:
___ मयूरभंज जिले में मध्यकालीन प्राचीनता प्रचुरता से प्राप्त होती है।। प्राचीन कालीन अवशेषों का अभाव होने के कारण यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि मयूरभंज कब से जैन धर्म का केन्द्र रहा। ले किन निम्नांकित स्थानों में मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं। झारखंड की तरह मयूरभंज में भी सराक जैनों की वस्तियाँ हैं। मयूरभंज के राजा के जैन धर्म के साथ सम्बन्ध थे। उन्हों ने इस धर्म की स्थापना में संरक्षण प्रदान किया था और उनका जैनधर्म के प्रति अत्यधिक मोह था। सराक लोगजैन सिद्धान्तों का पालन, व्यवहार में करते थे और सामाजिक रीति रिवाजों में भी उनका प्रयोग करते थे। समस्त धार्मिक प्रथाओं का पालन करते थे। यहाँ संक्षेप में जैन स्मारक स्थलों का वर्णन करेंगे।
बडुसई : बारिपदा से ३० किलोमीटर दूर है। बौधिपोखरी ग्राम के समीप मंगला मंदिर के निकट अनेक जैन मूर्तियाँ सुरक्षित रखी हुई हैं। यहाँ के चौमुखा में चन्द्रप्रभ, त्र-षभनाथ, अजितनाथ और पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ उत्कीर्णित हैं। तीर्थंकर नेमिनाथ की शासन देवी आम्बिका और योगासन में स्थित तीर्थंकर की एक छोटी प्रतिमा है।
मयूरभंज में प्राप्त तीर्थंकर त्र-षभनाथ
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