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कोरापुट जिला :
___ कोरापुट जिला जंगलों से आच्छादित हैं। जैन धर्म के तीर्थंकरों, गणधरों, मूनियों और प्रचारकों के लिये यह शान्त और उपयोगी स्थान होने के कारण जैन धर्म का यहाँ बहुत प्रचार हुआ है। यही कारण है कि जैन पुरातत्त्व सम्बन्धी साम्मग्री और जैन स्मारकों के लिए कोरापुट जिला अनन्यतम रूप से धनी और अग्रणीय है। यहाँ पर मध्यकाल में निर्मित मंदिर, तीर्थकरों की यक्ष यक्षिणियों सहित मूर्तियाँ उपलब्ध हैं।
इसके अलावा हिन्दू मंदिरों की दीवालों पर भी जैन मूर्तियाँ दृढ़ता से स्थापित हैं। किसी-किसी हिन्दू मंदिर में वे हिन्दू देवी-देवताओं की तरह पूजी जाती हैं। जैन स्मारकों के लिए विख्यात कोरापुट क्षेत्र में जैन धर्म की कब प्रधानता रही या जैन धर्म का यहाँ कब अधिपत्य रहा है? यह निश्चित रूप से कह पाना या निश्चित समय निर्धारण करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।
नन्दपुर, सुअई, कचेला, चतुआ, सिंधपुर, बोरिंगुम्मा, यमुद, कोटपाड़, चरमुल, नारी गावँ, कमट, मली नयागाँव, देवता गंजर, कथरगुदा, पखान गुड़ा और पालव जैन मूर्तियों के प्रधान और लब्धप्रतिष्ठ केन्द्र हैं। इसके अतिरिक्त जयपुर के ब्राह्मणिक मंदिरों के परिसरे में जैन मूर्तियों को सुरक्षित रखा गया है। तुरन्त निर्मित जिला संग्रहालय जयपुर में भी विभिन्न स्थानों से जैन तीर्थंकरों और शासन देवियों की मूर्तियाँ बहुत बड़ी मात्रा में संचित की गई हैं। उड़ीआ भाषा में लिखी गई कृति ओड़ीशार जैनधर्म (पृष्ठ १५२) में एल.एन.साहु ने लिखा है कि कुमार विद्याधर सिंहदेव ने संसूचित किया था कि जयपुर
और नन्दपुर में जैन अवशेषों को देखने से मेरा चिन्तन और भी अधिक दृढ़ हुआ कि इन क्षेत्रों में जैनधर्म का प्रभुत्व था। नन्दपुर में जैन मूर्तियों की प्रचुरता पूर्वक उपलब्धि और महत्त्वपूर्ण विशाल जैन मंदिरों के महत्त्वपूर्ण तथा बृहत अवशेषों के मिलने से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि प्राचीन काल में नन्दपुर जैनधर्म का केन्द्रथा। जयपुर में प्राप्त जैनत्व हमे समझने के लिए बाध्य करता है कि प्राचीन काल में कलिंग जैनधर्म में था। क्यों कि कंलिग पर बहुत समय तक जैन धर्मानुयायी नन्दवंश के राजाओं का राज्य रहा।
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