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जैननगरी:
जानिsatण किलि
- यह जयपुर के सन्निकट अभी भी स्थित है। जयपुर के स्थानीय निवासी हिन्दु मतावलम्बी जैन मूर्तियों को हिन्दू देवी-देवताओं की तरह पूजते हैं। अकृत्रिम कायोत्सर्ग रूप में खड़गासन जैन मूर्तियों को हिन्दू लोग गंगा माई की मूर्ति मान कर उन्हें संतुष्ट करने के लिए उनके सामने बकरादि की बलि चढ़ाते हैं। भविष्य में अवश्य ही यह सिद्ध हो जायेगा कि जयपुर की समस्त पाषाण की मूर्तियाँ जैनधर्म की हैं । जैन नगरी नामक गाँव का अभी भी अस्तित्व में होना यही सिद्ध करता है कि जयपुर जैनधर्म का अनन्यतम गढ़ था।
एक गोशाक यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि कोरापुट जिले का महत्वपूर्ण और अग्रणीय भाग पूर्वी गंगेय सोम वंशी राजाओं और तेलगु चोदस के राजाओं के राज्य में सम्मिलित था। उन राजाओं ने अन्य धर्मों के साथ जैन धर्म के प्रचार-प्रसार करने की अनुमति दी थी। अब हम कोरापुट जिले में प्राप्त जैन स्मारक स्थलों का निरीक्षण प्रस्तुत करेंगे। नन्दपुर का सर्वेश्वर मंदिर : कणा ताजा नन्दपुर से पांच किलोमीटर दूर स्थित मली नुआ गाँव से लाई गई तेईस वें तीर्थंकर की शासन देवी ललितासन में स्थित पद्मावती की मूर्ति खुले वितान के नीचे रखी हुई है। इस के चार हाथ हैं और पांच फण वाला सर्प उन के मस्तक को ढाके हुए है। इनका एक हात खंडित है। इनके मस्तक पर सात फणी सर्पयुक्त पार्श्वनाथ तीर्थंकर विराजमान हैं। सुअई: मक यह घनघोर झाड़ियों और झुरमुटों से युक्त सुअई ग्राम में जैन स्मारक विद्यमान हैं। यहाँ १० -
सुअई से प्राप्त तीर्थकर त्र-षभनाथ
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