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४.
कहा भी है: “अभिसितो च छठे वसे राजसेयं संदंसयं तो सवकरण अनुग्रह अनेकानि सतसहसानि विसजति पोरं जानपदं।” पंक्ति ६७. राजा खारवेल उदार दानदाता थे। उन्होने मथुरा से लाये गये पल्लव युक्त कल्पवृक्ष प्रत्येक नागरिक को दिये थे। इसके अलावा समस्त ब्राह्मणों को, विजय से प्राप्त धन और कल्प वृक्ष वितरित किये थे। कहा भी है: “कपरूखे.... बम्हणानां जय परिहर ददाति।” पंक्ति ६। उक्त कथनों से राजा खारवेल की
दानशीलता प्रकट होती है। धर्म निरपेक्षः
यद्यपि राजा खारवेल जन्मना और कर्मणा जैन थे तो भी वे उदार तथा धर्म निरपेक्ष राजा थे। समस्त धर्मो को सम्मान देते थे। यही कारण है कि हाथीगुम्फा शिलालेख में उन्हें धर्मराजा, सर्वपासंड अर्थात् सर्व धर्म पूजक और सवदेवायतन संकारकारको अथात् समस्त धर्मों के मंदिरों के निर्माता और जीर्णोद्धारक कहा गया है। उन्होंने तत्कालीन यतियों तापसों और त्र-षियों श्रमणों और अर्हतों विश्राम हेतु अनेक गुफाओं रूप आश्रयों का निर्माण करवाया था। पंक्ति १५ में कहा भी है : .... "सकत समण सुविहितानं च सव दिशानं यतिनं तपस इसिनं संघायनं ...। सिंहपथ रानिस (भलासेहि)।" निर्माण-कार्य :
१.
राजा खारवेल ने अपने शासनकाल में अनेक निमाणि कार्य किए थे जो निम्नांक्ति है:
राजा बनने के प्रथम वर्ष में सर्वप्रथम अपने देश में तूफानों से क्षत-विक्षत या टूटे दुर्ग, प्राकार, गोपुर और अट्टालिकाओं का जीर्णोद्धार करवाकर उन्होंने प्राचीन
इमारतों को नया रूप प्रदान किया था। २. खबीरत्र-षि नामक सागर का जीर्णोद्धार कराकर घाटों को बंधवाया था। ३. राजा खारवेल ने अपने राज सिंहासन पर बैठने के पांचवें वर्ष में उस नहर
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