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जैन विद्वान् भी उक्त के अर्थ करने में एक मत नहीं हैं। आचार्य विद्दानन्द महाराज ने चोयठि का अर्थ १२ अंग करके माना है कि मौर्य काल में नष्ट हुए १२ अंगों की वाचना, पृच्छना और अनुप्रेक्ष अर्थात् मनन कर शीघ्र ही उद्धार किया था। डॉ. शशिकान्त जैन लखनऊ, प्रो. राजाराम जैन प्रभृति दिगम्बर विद्वानों ने आचार्य श्री का अनुकरण किया है।
श्वेताम्बर विद्वान् चिमनलाल जैचंद शाह ने उक्त पंक्ति का अर्थ करते हुए कहा है कि मौर्य राजा के काल में खोये हुए ६४ प्रकारण वाले चार खंड के अंग सप्तिका ग्रन्थ का उसने उद्धार किया था । अस्तु ।
उपर्युक्त कथन से सिद्ध है कि खारवेल ने चतुर्दिक में कलिंग राज्य की विजय दुंदुभि बजाकर उसकी सीमाएँ सुदूर तक विस्तृत तथा निष्कंटक कर वे संतुष्ट हो गये थे। तेरहवे वर्ष में अर्थात् ३७ वर्ष की आयु में उत्कृष्ट श्रावक अर्थात् ग्यारहवी प्रतिमाधारी ऐलक हो गये होगें ।
भिक्षु (मुनि) दीक्षा :
सभी विद्धान् इस विषय में एक मत हैं कि हाथीगुम्फा शिलालेख राजा खारवेल के राज्य में प्रशासन के १३ वर्षो के पश्चात् मौन है। १७ वीं पंक्ति में भिक्षु राजा कहा गया है । इससे अनुमान होता है कि जीवन के अंतिम समय में उन्होंने दिगम्बरी मुनि दीक्षा ले ली थी। मेरे इस कथन का दूसरा आधार खण्डगिरि की बारह भुजी गुंफा में चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियों के अतिरिक्त पश्चिमी दीवाल के कोंने में उनकी दिगम्बर भेष में मूर्ति का उत्कीर्डित होना है। उनका कमण्डलु नीचे रखा है। हाथ में पिच्छी लिए हुए ध्यान
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मुनि खारवेल
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