Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 25
________________ कहने का तात्पर्य यह है कि अशोक के निर्मम और क्रूरपूर्ण आक्रमण से शोकाकुल हुए कलिंगवासियों ने भले ही जोरजबरदस्ती से खारवेल के पूर्वजों के समय कलिंग में जैन धर्म का स्वीकार करने वालों ने ऊपरी तौर पर जैन धर्म को छोड़ दिआ हो अर्थात् बनावटी बौद्ध धर्म को मानने का स्वांग किया हो, लेकिन वे अपने अन्त:करण जैन धर्म का परित्याग नहीं कर सके थे। इस कथन का प्रमाण यही है कि जब कलिंग पुन: राजनैतिक और धार्मिक दृष्टि से स्वतंत्र हुआ तो जैन धर्म को पुन: कलिंग वासियों ने स्वीकार कर उसे राष्ट्रीय धर्म के रूप में प्रतिष्ठित होने का गौरव प्रदान किया । सम्राट अशोक द्वारा विजयी कलिंग पुनः कब स्वतंत्र हुआ ? इस विषय में सुनिश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अनुमान किया जाता है कि अशोक के उत्तराधिकारी कलिंग को अधिक समय तक गुलाम बनाये रखने में समर्थ नहीं हो सके। ऐसा प्रतीत होता है कि सम्राट खारवेल के पूर्वजों ने इसे स्वतंत्र करबाया होगा। उक्त अनुमान करने का आधार हाथी गुम्फा शिलालेख का विवरण है। जैन मोमेंट्स में कहा भी है: "We do not know when Kalinga became free again, but it seems being that she regained her independence in the region of one of Ashoka's weak successors. As any rate there is little doubt that Kalinga had become an independent country under Kharavela's dynasty of which the Hathigumpha inscription provides us with definite information." हाथी गुम्फा शिला लेख से ज्ञात होता है कि खारवेल का बचपन एक स्वतंत्र राजा के राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ था। वे चेदिवंश की दूसरी पीढ़ी में हुए स्वतंत्र कलिंग देश के किसी जैन राजा के पुत्र थे, क्यों कि उन्होंने अपने आप को चेदिवंश की तीसरी पीढ़ी का राजा होना माना है । इसका अर्थ स्पष्ट है कि चेदिवंश के किसी राजा ने कलिंग को मगध सम्राज्य की गुलामी से मुक्ति दिलाई थी। चेदिवंश एक प्राचीन राजवंश है। हरिवंश पुराण में चेदिवंश की विस्तृत वंशावली दी गई है। मालवा प्रान्त की वर्तमान चन्देरी नगरी के समीपवर्ती क्षेत्र में चेदि क्षत्रिय रहते रहे होंगे । पुन्नाट संघी आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराण (के १७ वें सर्ग के ३६२ Jain Education International १२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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