Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 29
________________ हुआ ? उनके माता-पिता कौन थे ? उनके जीवन का अन्त कब और कैसे हुआ ? इत्यदि जिज्ञासाओं का समाधान करने वाला एकमात्र साधन हाथीगुम्फा शिलालेख ही है, जो उडीसा की उदयगिरि की एक चट्टान की छत की कगार पर स्वयं खारवेल द्वारा खुदवाया गया था और जो जैनधर्म के इतिहास की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण और अनुपम है। इसके अलावा हमारे पास इस महान अद्भुत व्यकितत्व वाले राजा खारवेल को जानने के लिए कोई साधन नहीं है। वर्तमान में न सो इतिहासज्ञो के पास न पुरातत्त्वज्ञों के पास ओर न जैनियों के पास कोई साहित्य है और न कोई ठोस प्रमाण है जिसके आधार पर उस अनुपम राजा खारवेल के विशाल व्यकितत्व को जाना जा सके। संभव है भविष्य में किसी पुरातत्त्ववेत्ता को उनके संबंध में अधिक जानकारी देने वाला कोई प्रमाणिक अभिलेख मिल जाये। खारवेल की जन्म भूमि और उनके पूर्वजः हाथीगुम्फा शिलालेख के आन्तरिक विश्लेषण के आधार, पर जिस में उनके वाल्यावस्था से लेकर राजसिंहासन पर आरूढ होने के बाद १३ वर्षों का विवरण प्राप्त है, विद्वानों ने उसकी जन्म तिथि, जन्मभूमि आदि का ऊहापोहपूर्वक विश्लेषण किया है। नवीन कुमार साहु ने अंग्रेजी भाषा में लिखित खारवेल नामक अपनी कृति (पृ१-५३) में देश - विदेश के विद्वानों के विचारों का तार्किक परीक्षण किया है। खारवेल का जन्म ई. पू. दूसरी शताब्दी में चेदि-वंश में हुआ था। उक्त शिलालेख की प्रथम पंक्ति में कहा भी है : चेतराज वस वधनेन अर्थात् उन्होंने चेदि वंश की गौरव गरिमा में वृद्धि की थी। इसके साथ है १७ वी पंक्ति में राजसि वसुकुल विनिसितो कह कर उन्होंने अपने को वसुकुल का होना प्रकट किया है। चेदिवंश पुराना वंश है। इसका उल्लेख विमलसूरि कृत पउमचरितं और जिनसेन कृत हरिवंश पुराण सर्ग (१७/३६) में हुआ है। जिनसेन के अनुसार चेदिवंश की स्थापना पर्वत की तलहटी में शुक्तिमती (केन) नदी के किनारे अभिचन्द राजा ने की थी। इसकी राजधानी शुकितमती पुरी थी। राजर्षि वसु को अभिचन्द का पुत्र कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसी चेदिवंश ने अवसर पाकर कलिंग में १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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