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इंडियन एण्टीपवेरी (सं.८, १८६९, पृ.३०) में माना है कि अशोक सम्राट का आकर्षण अपने पितामह चन्द्रगुप्त के धर्म की ओर था। वे कहते हैं कि : _ अकवर के कुशल मंत्री अबुल-फजल ने आईन ए अकवरी में काश्मीर के राज्य के लिए तीन आवश्यक तथ्य कहे हैं- जिस में से पहला तथ्य यह है कि अशोक ने स्वयं काश्मीर में जैन धर्म का प्रचार किया था। अशोक के काश्मीर में जैन धर्म प्रचार की बात केवल मुसलमान ग्रन्थकार ही नहीं करते हैं, अपितु राजतरंगिणी में भी यह स्पष्ट स्वीकार करने में आई है। (द्रष्टव्य उत्तर भारत में जैन धर्म पृ.१२१)। कुछ विद्वान अशोक को हिन्दू और कुछ बौद्ध धर्मानुयामी मानते हैं, लेकिन यह दावे के साथ कहा जासकता है कि वे प्रारम्भ में जैन थे। वे धीरे धीरे बदलते गये और अन्त में बौद्ध धर्म की ओर पूर्ण रूप से झुक गये।
एच.एच. विल्सन, जे. एफ. फलीट, जैम्स एस मैकफेल आदि विद्वान भी अशोक सम्राट को बौद्ध धर्मानुयायी नहीं मानते थे। सम्भवत: अशोक ने कलिंग पर आक्रमण करने के कुछ समय पूर्व बैद्धों के धर्म से प्रभावित हो कर अपना धर्म परिवर्तित कर दिया था। लेकिन जैन धर्म की पवित्रता और जीवन की शाश्वता सम्बन्धी को जैन सिद्धान्त से अन्त तक प्रभावित रहा।
इतिहासकारों की मान्यता है कि ई.पू.२६१ में पूर्वाग्रह तथा सम्प्रदाय से पीड़ित हो कर और बौद्ध भिक्षुओं के बहकावे से प्रेरित हो कर अशोक ने जैनियों के गढ़ माने जाने वाले कलिंग देश पर आक्रमण किया था। उसने जैनधर्म और जैनधर्म को मानने वालों को कुचलने और नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयास किया था। लेकिन वह बौद्ध धर्म को कलिंग में प्रवेश करवा कर भी जैन धर्म को नष्ट नहीं कर सका। उस समय भी जैन धर्म कलिंग के प्रमुख और प्रभावशाली धर्म के रूप में माना जाता रहा। आर.पी महापात्र ने जैन मोनुमेंट्स (पृ.२०) में और के.सी. पाणिग्राही आदि ने हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा (२९७-२९८) में कहा भी है:
“..... But it can not be imagined that Buddhism under Ashok had completely ousted the old religion of Jainism in Kalinga."
"Jainism must have continued as one of the main religions of Orissa after the Kalinga war of 261 B.C."
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