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चमनलाल जैचंद शाह भी उत्तर भारत में जैनधर्म (पृ.१५१) नामक अपनी कृति में कहते है कि नन्द राजा की कलिंग विजय के समय वहाँ जैन धर्म प्रचलित धर्म था। इसका समर्थन करते हुए जायसवाल कहते हैं कि शैशुनाग वंश को नन्दिवर्धन अर्थात् राजा नन्द के समय में ही जैन धर्म उडीसा में प्रवेश कर चुका था। खारवेल के समय के पूर्व उदयगिरि पहाड़ीपर अर्हतों के मंदिर थे। क्यों कि शिला लेख में उनका
अस्तित्व खारवेल के समय से पूर्व संस्थानों के रूप में वर्णन किया गया है। ऐसा लगता है कि कुछ सदियों से जैन धर्म उड़ीसा का राष्ट्रीय धर्म था। के.सी पाणिग्राही ने हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा (पृ.२९६) में लिखा है कि :
“.... Mahavira visited it, and since then it continued to be one of its major religions at least up to the end of the first century B.C. when Kharavela's dynasty seems to have ended."
नन्द राजा अर्थात् विद्वानों द्वारा मान्य महापद्म राजा के द्वारा कलिंग जिन को कलिंग से मगध ले जाने से स्पष्ट है कि ई.पू ४-५ शताब्दी में कलिंग में जैन धर्म एक महान धर्म था। जो सम्पूर्ण कलिंग में प्रतिष्ठित था। और उस समय भी यह धर्म राष्ट्र धर्म के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका था। के.सी.पाणिग्राही ने हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा (पृ.२९७) में कहा भी है:
"The honoured real was an object of worship among the Kalinga people who must have left and resented its loss. It there follows that Jainism was the major religion of Kalinga in the fourth century B.C. and we shall not be far from he truth if we conclude that it was its state religion.
आर.पी. महापात्र ने भी जैन मोनुमेंट्स (पृ.२०) में कहा है: "It therefore follows that jainism was the major religion in the fourth century B.C. and we shall not far from the truth, if we conclude that it was the state religion."
- यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उक्त प्रसंग में नन्दराजा से तात्पर्य महापद्मनन्द से है। महापद्मनन्द जैन धर्मानुयायी थे। महापद्मनन्द का समय इतिहास के विद्वानों
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