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महावीर के निर्वाण के पश्चात् कलिंग में जैन धर्म :
भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् अर्थात् ई.पू. ५२७ के १०० वर्ष पश्चात्, कलिंग (प्राचीन उडीसा) में जैन धर्म राजकीय धर्म मानलिया गया था। उत्तर भारत में जैनधर्मनामक अपनी कृति मे चिमनलाल जैचंद शाह लिखते हैं कि उड़ीसा में जैन धर्म प्रवेश हो कर अन्तिम तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के १०० वर्ष पश्चात् ही जैन धर्म वहाँ का राज धर्म भी बन गया था। यह सब शिलालेख से प्रमाणित होता है।
खारवेल का हाथी गुम्फा शिलालेख इस बात का आज भी साक्षी है कि ई.पू पांचवीं शताब्दी में कलिंग में जैन धर्म का बहुत प्रचार था। यहाँ के जन-जन उसके आराधक एवं पुजारी थे। उक्त शिलालेख में नन्द राजा का दो बार उल्लेख हुआ है। पहली वार उल्लेख पांचवीं पंक्ति में और दूसरी बार १२वीं पंक्ति में हुआ है। वहाँ कहा गया है कि नंदराजनीतं कालिंगजिन संनिवेसं कलिंग राज च नराति।
उक्त पंक्ति से ज्ञात होता है कि नन्द राजा ने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने की इच्छा से कलिंग पर आक्रमण किया था। कलिंग पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् विजय चिन्ह स्वरूप वहाँ की राजधानी में पूजी जाने वाली कलिंग जिन की मूर्ति को अपने साथ मगध ले गये थे। इस कथन से दो महत्वपूर्ण बिन्दु उद्घाटित होते हैं कि जिस समय नन्दराजा ने कलिंग पर आक्रमण किया उस समय कलिंग देश जैन धर्म का गढ़ बन चुका था और कलिंग वासियों के मध्य में वह धर्म लोकप्रिय हो चुका था। वे कलिंग जिन की पूजार्चना किया करते थे। Jain monoments of Orissa में आर.पी. महापात्र ने कहा भी है:
"Therefore the Nandaraja who took away the image of Jina from Kalinga.... This reference is very interesting from the point of view of ancient religion of Orissa. It points out that Orissa since the time of mahavira contained to be the stronghold of Jainism in as much as the Nandraja carried of the image of Jina as the highest trophy. It therefore follows that Jainism was the major religion of Kalinga in the forth century B.C. and we shall not be far from the truth, if we conclude that it we its state religion.'
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