Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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॥ श्रीनाकोड़ापार्श्वनाथाय नमः ॥ .
* नमो नाणस्स * !
दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति ।
फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुंगवैः ।। 'दश अध्याय से युक्त तत्त्वार्थ सूत्र का पाठ करने से एक उपवास का फल प्राप्त होता है।' ऐसा श्रेष्ठ मुनिवरों ने कहा है ।
जैन दर्शन का सर्वमान्य ग्रन्थ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में विशेष प्रसिद्ध है।
समस्त जैन साहित्य में संस्कृत भाषा में सूत्रात्मकशैली में लिखित यह ग्रन्थ सर्वोपरि है। इस ग्रन्थ में श्री जैनागम के सर्वाधिक पदार्थों का संग्रह किया गया है । यह ग्रन्थ परम पूज्य वाचकप्रवर श्री उमास्वातिजी म. सा. द्वारा रचित है, जो स्वसिद्धान्त के साथ-साथ परसिद्धान्त के भी ज्ञाता थे। कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. भी उनको सर्वोत्कृष्ट संग्रहकार मानते थे। परम्परा के अनुसार उनको पूर्वविद् एवं श्रुतकेवली जैसे विशेषण भी दिये गये हैं। ऐसे तत्त्वार्थसूत्र को पूर्व महापुरुषों ने "अहत्प्रवचन-संग्रह" के रूप में पहचाना है।
इस ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार के सम्बन्ध में पारम्परिक जैन विद्वानों में तीव्र मतभेद प्रवर्तमान है। इस विषय में बहुत कुछ लिखा गया है। प्रसंगवश यहाँ पर कुछ विषयों पर संक्षेप में विमर्श किया जाता है
* ग्रन्थ नामार्थ * तत्त्वार्थः-तत्त्व के द्वारा अर्थ का निर्णय करना । अधिगमः-ज्ञान या विशेष-ज्ञान । सूत्रः-अल्प शब्दों में गम्भीर एवं विस्तृत भाव दर्शानेवाला शास्त्र-वाक्य सूत्र है ।