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१२६ आचार्य सुमतिसाधुसूरि के वि०सं० १५५१/ई०स० १४९५ में निधन के पश्चात् हेमविमलसरि तपागच्छ के ५५वें पट्टधर बने। इनके जीवन के बारे में विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से जानकारी प्राप्त होती है। इनका विवरण इस प्रकार है : १. वीरवंशावली २. लघुपौशालिकपट्टावली' ३. हेमविमलफागु२ रचनाकार-दानवर्धन के शिष्य मुनि हंसधीर;
रचनाकाल - वि०सं० १५५४/ई०स० १४९८ ४. हेमविमलसूरिसज्झाय ३ रचनाकार - अज्ञात
रचनाकाल - वि० सं० १५८३ से पूर्व हेमविमलसूरिसज्झाय रचनाकार - सुन्दरहंस गच्छनायकपट्टावलीसञ्झाय५ रचनाकार-सोमविमल
रचनाकाल - वि०सं० १६०२/ई०स० १५४६ ७. तपागच्छपट्टावलीसूत्र ६ रचनाकार- धर्मसागर उपाध्याय
रचनाकाल - वि०सं० १६४६/ई०स० १५९० ८. महावीरपट्टपरम्परा रचनाकार-देवविमल गणि
रचनाकाल-वि० सं० १६३९-१६५६ के मध्य ९. सूरिपरम्परा रचनाकार-विनयविजय
___ रचनाकाल-वि०सं० १७०८/ई०स० १६५२ १०. पट्टावलीसारोद्धार ९ रचनाकार-रविवर्धन ।
रचनाकाल-वि०सं० १७३९/ई०स० १६८३ ११. गुरुपट्टावली रचनाकार-अज्ञात
आचार्य हेमविमलसूरि के जन्म और दीक्षा के समय के बारे में उक्त साक्ष्यों में प्रायः मतभेद है। लघुपौशालिकपट्टावली आदि के अनुसार इनका जन्म वि०सं० १५२० में हुआ था
और वि०सं०१५२८ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, जबकि वीरवंशावली आदि में जन्म वि०सं० १५२२ और दीक्षा वि०सं० १५३८ में बतलाया गया है। अन्य प्रमुख बातों में उक्त साक्ष्यों में प्राय: समान विवरण मिलता है। लक्ष्मीसागरसूरि से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १५४८ में सुमतिसाधुसूरि ने इन्हें आचार्य पद प्रदान किया। गुरु के निधन के पश्चात् इन्हें तपागच्छ का नायकत्त्व प्राप्त हुआ।
हेमविमलसूरि द्वारा रची गयी कुछ कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं :
पार्श्वजिनस्तवन १ २. वरकाणापार्श्वनाथस्तवन २
तेरकाठियानीसज्झाय३ मृगापुत्रसज्झाय या मृगापुत्रचौपाई॥४
आचार्य हेमविमलसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रातिमायें बड़ी संख्या में मिलती हैं। ये वि०सं० १५४६ से वि०सं० १५८३ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :
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