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बुद्धिसागर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३७२ श्री विजयानंदसूरि पटधारी, समुद्रसूरि गच्छराज; तस राजें स्तवना कीधी, दिनदिन चढत दिवाजा रे. मु०२० संवत अढार सत्योत्तर (१८७७) वरसे, शक सत्तर बेहेताल; श्री सुरत बंदिरमें गाई, सोहम कुलगणमाल रे. मु० २१ पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, पृष्ठ ११९. वही, आमुख, पृष्ठ ४-५.. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ९३. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७१० -
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