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कीर्तिरत्नसूरि के पट्टधर मुक्तिरत्नसूरि हुए। इनके शिष्य पं० सौभाग्यरत्न द्वारा लिखी गयी कुमारपालरास की वि०सं० १८६९/ई०स० १८१३ की एक प्रति प्राप्त हुई है।२९
मुक्तिरत्नसूरि
पं० सौभाग्यरत्न (वि०सं० १८६९/ई०स० १८१३ में
___ कुमारपालरास के प्रतिलिपिकार) वि० सं० १८८२/ई० स० १८२६ में श्रीपालरास के प्रतिलिपिकार प्रेमरत्न ने स्वयं को भावरत्नसूरि की परम्परा का बतलाते हुए अपनी गुर्वावली दी है :
भावरत्नसूरि
मानरत्न
समतिरत्न
माणिक्यरत्न
प्रेमरत्न (वि०सं० १८८२/ई०स० १८२६ में
श्रीपालरास के प्रतिलिपिकार) इस प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार प्रेमरत्न द्वारा तत्कालीन गच्छनायक पुण्योदयात्नसूरि का नाम नहीं दिया गया है जो गच्छनायक .. घटते हुए प्रभाव का द्योतक माना जा सकता है।
वि०सं० १८९३ पौष सुदि १ रविवार को लिखित जयविजयकुंवरप्रबन्ध के प्रतिलिपिकार तेजरत्न भी इसी शाखा के थे। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्नानुसार दी है३१ :
कीर्तिरत्नसूरि
पंन्यास पं०
मयारत्न
पं० सौभाग्यरत्न
पं० राजेन्द्ररत्न
पं० तेजरत्न (वि०सं० १८९३/ई०स० १८३७ में
जयहि कुंवरप्रबन्ध के प्रतिलिपिकार)
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