Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 336
________________ - हीररत्नसूरि उदयरत्न उत्तमरत्न जिनरत्न क्षमारत्न पं० राजरत्न (वि०सं० १८५२/ई०स० १७९६ में उत्तमकुमारनोरास के रचनाकार) इन्हीं राजरत्न के शिष्य मयांकररत्न द्वारा वि०सं० १८९६ में लिखी गयी जम्बूस्वामीरास की प्रति प्राप्त हुई है।६ वि० सं० १८५६/ई०स० १८०० में रत्नपालरास के प्रतिलिपिकार मंछाराम भी स्वयं को हीररत्नसूरि की परम्परा का बतलाते हैं। इसकी प्रतिलिपि में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा निम्नानुसार दी है२७ : हीररत्नसूरि धनरत्न तेजरत्न जोधरत्न लावण्यरत्न गोविन्दरत्न मंछाराम (वि० सं० १८५६/ई०स० १८०० में रत्नपालरास के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १८६३/ई०स० १८०७ में लिखी गयी जम्बूस्वामीरास की प्रति की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार रंगरत्न ने स्वयं को दानरत्नसूरि की परम्परा का बतलाया है२८: दानरत्नसूरि कल्याणरत्न कुशलरत्न रंगरत्न (प्रतिलिपिकार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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